प्रभात व्यावहारिक हिंदी -अंग्रेजी कोष ( बदरीनाथ कपूर ) के अनुसार सर्जन का अर्थ ( surgeon ) बताया गया है. (पेज ८५७ ) जबकि सृजन का अर्थ ( The creation ) बताया गया है (page no 900) .क्या आप सहमत हैं इन अर्थों से ?
2009/9/29 narayan prasad <hin...@gmail.com>:
You can do an online search using the form at
http://www.sanskrit-lexicon.uni-koeln.de/mwquery/index.html
Shree
2009/9/29 Shree Devi Kumar <shree...@gmail.com>:
--
शुभकामनाओं के साथ -
आपका
रावेंद्रकुमार रवि
http://saraspaayas.blogspot.com/
http://hindeekaashringaar.blogspot.com/
> Thanks for the reference. A revised 2008 edition is here:
> http://www.sanskrit-lexicon.uni-koeln.de/monier/
YES, the advanced search button on this page goes to the form I referred to:
>
> २९ सितम्बर २००९ ५:१२ PM को, Shree Devi Kumar <shree...@gmail.com> ने लिखा:
>> You can do an online search using the form at
>> http://www.sanskrit-lexicon.uni-koeln.de/mwquery/index.html
>>
>> Shree
>>
रवि भाई ,
मैं इस बारे में उनसे बात नहीं किया हूँ बेहतर होगा आप बात करें .उनका इमेल हैं srijangatha@gmail.कॉम
सादर
दिनेश कुमार माली
ऐसी वार्ताओं में कोई किसी से छोटा-बड़ा (कम या अधिक ज्ञानी) नहीं होता
और किसी को ऐसा मानना भी नहीं चाहिए!
ज्ञान का अर्जन ही हमारा मुख्य ध्येय होना चाहिए!
अपनी वस्तु का नाम व्यक्ति अपनी इच्छा से रखता है -
सर्जन या सृजन के अतिरिक्त "सिरजन" भी रख सकता है!
मुझे नहीं लगता कि यहाँ मानस जी को बुलाने की आवश्यकता है!
On 01/10/2009, Shree Devi Kumar <shree...@gmail.com> wrote:
> Following resources may be helpful to members:
>
> Please see http://www.cs.colostate.edu/~malaiya/hindiint.html
> for a timeline of Hindi development -
> "*Brief History of Hindi:* Hindi started to emerge as Apabhramsha in the 7th
> cent. and by the 10 cent. became stable. Several dialects of Hindi have been
> used in literature. Braj was the popular literary dialect until it was
> replaced by khari boli in the 19th century."
> more details on website.
>
> Regarding सृजन/सर्जन
> Please see http://dsal.uchicago.edu/dictionaries/ for a number of online
> dictionaries.
> According to, Platts, John T. (John Thompson). A* dictionary of Urdu,
> classical Hindi, and English*. London: W. H. Allen & Co., 1884.
>
> S سرجن सृजन *sr̤ijan*, and सर्जन *sarjan*, and H. सिरजन *sirjan*, s.m.
> Creating, making, forming, producing:—*sr̤ijan-hār*, and *sarjan-hār*,
> and*sirjan-hār
> *, or *sirjan-hārā*, s.m. Creator, maker, former, producer; the Creator:—*
> sr̤ijan-īśvar*, s.m. God the Creator, the Almighty.
> So, it looks like that at that time both forms were acceptable.
>
> Shree
>
> >
>
१-१०-०९ को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:
--
Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.
ePandit: http://epandit.blogspot.com/
माली जी से क्षमा चाहूँगा - वे अभी भी भ्रमित हो रहे हैं!
सर्जन और सृजन के बारे में भी
और
श्र और शृ के बारे में भी!
उन्हें श्र और शृ के बारे में अपना भ्रम दूर करने के लिए एक नज़र ध्यान से
इस पोस्ट ( http://saraspaayas.blogspot.com/2009/09/blog-post.html )
और उस पर आई टिप्पणियों पर डालनी चाहिए!
शायद वे समझ सकें कि
कौन ग़लत वर्तनी ( श्रृंगार ) को बढ़ावा दे रहा है
और
कौन सही वर्तनी ( शृंगार ) को!
On 02/10/2009, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> << आपकी राय जानना चाहूंगा कि क्या उन्होंने अशुद्ध प्रयोग किये ?>>
>
> यदि आप प्रसंग पर अपना ध्यान आकृष्ट करेंगे तो यह स्पष्ट होगा कि जहाँ कहीं
> मैंने किसी शब्द के बारे में शुद्ध या अशुद्ध की बात की है, वह सब संस्कृत
> व्याकरण की दृष्टि से है । सृजन शब्द पाणिनि नियम के विरुद्ध है । परन्तु
> हिन्दी में साधारणतः इसी का प्रयोग दिखता है । इसलिए विद्वज्जन भी इसी शब्द का
> प्रयोग करते हैं । यदि मेरे बारे में पूछें कि मैं जब लिखूँगा तो सृजन शब्द का
> व्यवहार करूँगा या सर्जन का, तो मेरा उत्तर यह होगा - मैं व्यक्ति विशेष के
> अनुसार उचित शब्द चुनूँगा । यदि किसी पंडित को लिखूँगा तो सर्जन का प्रयोग
> करूँगा (ताकि वे यह न समझ बैठें कि मुझे व्याकरण-सम्मत इस शब्द का ज्ञान नहीं
> है) और सामान्य रूप से सृजन शब्द का ।
>
> उत्सुकतावश मैंने बंगला, उड़िया, कन्नड, मलयालम, तेलुगु कोश उलटकर देखे ।
> मलयालम और तेलुगु में न तो सृजन मिला, न सर्जन । बाकी में दोनों शब्द ।
>
> --- नारायण प्रसाद
> २ अक्तूबर २००९ ७:१८ AM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:
>
>>
>> आपने २९ सितम्बर को मेरे एक उदहारण के उपलक्ष में लिखा था जिसे मैं दोहरा रहा
>> हूँ :-
>>
>> प्रश्न :-प्रभात व्यावहारिक हिंदी -अंग्रेजी कोष ( बदरीनाथ कपूर ) के अनुसार
>> सर्जन का अर्थ ( surgeon ) बताया गया है. (पेज ८५७ ) जबकि सृजन का अर्थ (
>> The creation ) बताया गया है (page no 900) .क्या आप सहमत हैं इन अर्थों से
>> ?
>>
>> आपका उत्तर :-जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, तत्सम शब्द "सर्जन" और
>> अंग्रेजी शब्द surgeon को मिक्स नहीं करना चाहिए ।व्यवहार में व्याकरण की
>> दृष्टि से बहुत कुछ अशुद्ध प्रयोग किये जाते हैं । *हिन्दी में अशुद्ध शब्द
>> "सृजन" का ही अधिक प्रयोग दिखता है* । इसलिए इसे कोश में दर्शाना कोशकार ने
>> उचित समझा होगा ।
>>
>> प्रश्न :-रामचरित मानस में एक जगह आता है :-
>> " जाकें बल बिरंचि हरि ईसा , पालत सृजत हरत दससीसा" (२०.५)
>> इससे भी सिद्ध होता है कि सृजन का मतलब निर्माण से है. जबकि सर्जन शब्द उचित
>> प्रतीत नहीं होता है.
>>
>> आपका उत्तर:-आपने गलत उदाहरण दिया है । सृजन या सर्जन कृदन्त है, जबकि सृजत
>> शब्द सीधे संस्कृत के तिङन्त शब्द "सृजति" (रचना करता है) से लिया गया है ।
>> सृज् धातु तुदादि गण की धातु है । इसलिए तिङ् प्रत्यय परे रहते धातु को गुण
>> नहीं होता । यह सब संस्कृत व्याकरण का विषय है । हिन्दी (खड़ी बोली) में
>> संस्कृत के तिङन्त रूप का प्रयोग नहीं होता । परन्तु हिन्दी की बोलियों में
>> ऐसा
>> बन्धन नहीं है । रामचरितमानस खड़ी बोली में नहीं, बल्कि हिन्दी बोलियों के
>> मिश्रण (मुख्यतः अवधी) में है ।
>> ---नारायण प्रसाद
>>
>> प्रश्न :-अब मान लेते हैं तुलसी दासजी की भाषा शुद्ध हिंदी नहीं थी अर्थात
>> अवधी भाषा का बाहुल्य था . परन्तु आधुनिक हिंदी के लेखाकारों ने सृजन शब्द का
>> इस्तेमाल बहुतायत से किया है यहाँ तक कि उनके ब्लॉग और पत्रिकाओं के नाम भी
>> इसी
>> शब्द से जुड़े हैं . आपकी राय जानना चाहूंगा कि क्या उन्होंने अशुद्ध प्रयोग
>> किये ?
>>
>> http://shabdsrijan.blogspot.com/
>> http://www.srijangatha.com/
>>
>
> >
>
http://pustak.org/bs/home.php?mean=80956
1. श्री जय प्रकाश मानस द्वारा संपादित पत्रिका "सृजनगाथा" पर प्रकाशित
एक ललित निबंध
सर्जन फिर विसर्जन या फिर सर्जन / नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
का लिंक -
http://www.srijangatha.com/2009-10/april/lalit%20nibandh-narmad%20prasad.htm
2. श्री अखिलेश द्वारा संपादित "तद्भव" पर प्रकाशित
वरिष्ठ आलोचक सत्यप्रकाश मिश्र के आलेख -
महादेवी का सर्जन : प्रतिरोध और करुणा
-----------------------------
का लिंक है -
http://www.tadbhav.com/issue%2015/Mahadevi%20ka.htm
3. राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका - मधुमती
में प्रकाशित श्री हरिराम मीणा की रचना -
मेघ-सर्जन
-------------
का लिंक -
http://www.lakesparadise.com/madhumati/show_artical.php?id=752
4. लिनक्स में हिंदी, हिंदी में लिनक्स पर प्रकाशित आलेख
|| भविष्य-सर्जन की कला व विज्ञान ||
का लिंक -
http://in.geocities.com/dysxhi/hi/creating_future.html
On 02/10/2009, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
--
शुभकामनाओं के साथ -
आपका
रावेंद्रकुमार रवि
http://saraspaayas.blogspot.com/
http://hindeekaashringaar.blogspot.com/
On 02/10/2009, अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com> wrote:
> *साथियों, *
> *बहुत अच्छी बहस चली। बहुत कुछ हासिल हुआ। *
> *shringar के संदर्भ में श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही है।
> हालांकि यह भी उचित नहीं है। *
> *सही तो यह[image: Sh_ri.jpg]है। पर हिन्दी कम्प्युटिंग में यह वर्ण ही नहीं
> मिलता। *
On 02/10/2009, ShreeDevi Kumar <shree...@gmail.com> wrote:
> * If**[image: Sh_ri.jpg] is the correct way to write it, please use
> sanskrit2003 font that comes with Itranslator 2003.
>
> See attached jpg.
>
> Shree
> *
> 2009/10/2 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
>
>> *साथियों, *
>> *बहुत अच्छी बहस चली। बहुत कुछ हासिल हुआ। *
>> *shringar के संदर्भ में श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही
>> है। हालांकि यह भी उचित नहीं है। *
>> *सही तो यह[image: Sh_ri.jpg]है। पर हिन्दी कम्प्युटिंग में यह वर्ण ही नहीं
>> मिलता। *
--- Shree
2009/10/2 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>:
On 06/10/2009, Hariram <hari...@gmail.com> wrote:
> शृ लिखना ही तकनीकी दृष्टि से सरल है। यही होना चाहिए।
>
> 'श्र' को भी श्र या श्र या 'श' के नीचे 'र-कार' लगाकर लिखना तकनीकी दृष्टि से
> सरल होता। किन्तु श का बायँ अंश OVERLAP हो जाता। इसलिए मजबूरीवश तथा ज्यादा
> प्रयोग होने के कारण 'श्र' के glyph को font में रखना पड़ा।
>
> -- हरिराम
> http://hariraama.blogspot.com
>
>
>
>
>
>
> 2009/10/2 narayan prasad <hin...@gmail.com>
>
>> <<श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही है। >>
>>
>> दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है । "श्रृंगार" बिलकुल अशुद्ध है, जबकि
>> "शृंगार"
>> या "शृङ्गार" शुद्ध। यह बात अलग है कि "शृ" को तीन तरह से लिखा जा सकता है
>> परन्तु अभी पीसी मॉनीटर पर टेक्स्ट रूप में एक ही दिखता है ।
>> ----नारायण प्रसाद
>> २ अक्तूबर २००९ १:२३ PM को, अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com> ने
>> लिखा:
>>
>>> *साथियों, *
>>> *बहुत अच्छी बहस चली। बहुत कुछ हासिल हुआ। *
>>> *shringar के संदर्भ में श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही
>>> है। हालांकि यह भी उचित नहीं है। *
>>> *सही तो यह[image: Sh_ri.jpg]है। पर हिन्दी कम्प्युटिंग में यह वर्ण ही नहीं
>>> मिलता। *
नारायण जी तथा आप तो संस्कृत के प्रकांड पंडित है अतः ऐसा नहीं है कि आप इसका अर्थ नहीं समझ पा रहे हो फिर भी मैं इसका हिंदी अर्थ नीचे लेख रहा हूँ :-
" हे गुरुदेव! आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है ,मैंने ज्ञान भी प्राप्त कर लिया है ,मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है, संशय समाप्त हो गए है ; आपके वचनों का अनुपालन करूंगा"
नारायण जी तथा आप तो संस्कृत के प्रकांड पंडित है अतः ऐसा नहीं है कि आप इसका अर्थ नहीं समझ पा रहे हो फिर भी मैं इसका हिंदी अर्थ नीचे लिख रहा हूँ :-
" हे गुरुदेव! आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है ,मैंने ज्ञान भी प्राप्त कर लिया है ,मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है संशय समाप्त हो गए है ; आपके वचनों का अनुपालन करूंगा"
लगता है चुपचाप पढ़ते पढ़ते आप कुछ ई-पत्रों को बिना पढ़े चुपचाप निकल गये :-)
नारायण जी ने आपके प्रश्न का विस्तार से उत्तर दिया था। जिस संलग्न कर रहा हूँ।
===
अजित जी,
मैंने कन्नड के दर्जनो व्याकरण ग्रन्थ (मराठी, कन्नड और अंग्रेजी माध्यम में) देखे हैं ।
मराठी व्याकरण (हिन्दी और मराठी माध्यम में) का भी अध्ययन किया है । परन्तु मराठी
व्याकरण और कन्नड व्याकरण में कुछ भी साम्य दृष्टिगोचर होने की बात स्मरण में नहीं आ रही ।
"कन्नड भाषा प्रवेश" (मराठी माध्यमाच्या द्वारा) में श्री॰ गुरुनाथ व्यंकटेश दिवेकर लिखते हैं -
<QUOTE>
"कन्नड भाषा ही कोणत्याही अन्य द्राविड भाषेपेक्षा मराठीला जवळची भाषा आहे ।"
<UNQUOTE>
मेरे विचार में केवल शब्दावली और वाक्यों के शाब्दिक अर्थ समान होना व्याकरणिक साम्य नहीं
कहला सकता । परन्तु प्रतीत होता है, इसी आधार पर यह मान लिया गया है कि मराठी का
व्याकरण वस्तुतः कन्नड का व्याकरण है । दिवेकर जी की पुस्तक से एक पैरा उद्धृत कर रहा हूँ
। आप खुद ही अनुमान लगा ले सकते हैं ।
<QUOTE>
कन्नड भाषिकांचे, विशेषतः उत्तर कर्नाटकातील लोकांचे रीतिरिवाज महाराष्ट्रीयांच्या
सामाजिक व्यवहारापेक्षा फारसे वेगळे नाहीत । विशेषतः सीमा भागांत स्वाभाविकपणेच अशी
एक सम्मिश्र जीवनपद्धती निर्माण झालेली आहे की मराठी भाषिकांचे बोलणे, आवडी निवडी,
सणवार, कुलाचार यांवर कर्नाटकाचीच छाप असते. त्यांच्या बोलण्यांत पुष्कळ कानडी शब्द
असतातच, पण त्याशिवाय वाक्प्रचार, idioms म्हणजे व्याकरण दृष्ट्या क्रियापदे, लिंग
विभक्ती, इत्यादींच्या संबंधाने त्यांचे बोलणे कानडी थाटाचे असते. उदाहरणार्थ, "मी म्हणतो,
पैशालाच काय म्हणून इतके महत्व द्यायचे ?" हे वाक्य तेथील मराठीत "नव्हे ! पैशालाच इतके
का महत्व द्यावे म्हणे !" असेच काही तरी असते. याचे कारण म्हणजे कानडीत ते "अल्ला,
दुड्डिगॆ याक इष्टु महत्व कॊडबेकंतऽ" असे असते. त्या शिवाय "उभा राहिला" ऐवजी
"उभारला"; "जाऊ द्या ते" ऐवजी "जाऊ दे सोडा ते"; "करून टाकले" ऐवजी "करून सोडले" असे
वाक्प्रचार कानडी भाषेतील "बिडु" (सोडणे) या सहायक क्रियापदाच्या विशेष वापरामुळे
मराठी भाषिकांमध्ये रूढ झालेले आहेत. काही मूळ क्रियापदे कानडीतील व्यवहाराप्रमाणेच
असतात. "थांबा ! दार उघडतो" हे वाक्य "उबारा दार काढतो" असे होते. हे "निंदर्रि -
बागला तगीतीनी" याचा अनुवाद होय. "हा मुलगा शाळेत जातो" हे वाक्य "हा मुलगा शाळा
शिकतो" असे होते. अर्थात् पुणे, मुंबई या ठिकाणी दीर्घकाळ वास्तव्य केल्यावर या प्रकारच्या
बोलण्यात सुधारणा (प्रयत्न केल्यास) होते ही बाब वेगळी.
<UNQUOTE>
सादर
नारायण प्रसाद
अजित वडनेरकर wrote:
> बहुत सुंदर बात कही है। यहां मजेदार बातें होती हैं। सबसे अच्छी बात है चुटकी लेने का
> भाव, जो नितांत गंभीर से नाम और गंभीर से स्वभाव वाले इस मंच पर बेहद ज़रूरी है:)
> मैं तो चुपचाप पढ़ता हूं। काफी कुछ जानने को मिलता है।
>
> पर नारायण जी, मेरी उस जिज्ञासा का क्या हुआ-प्रभाकर माचवे के मुताबिक मराठी का
> व्याकरण कन्नड़ आधारित है?
>
> 2009/10/7 Dinesh Mali <siroh...@gmail.com <mailto:siroh...@gmail.com>>
>
> नारायण जी तथा आप तो संस्कृत के प्रकांड पंडित है अतः ऐसा नहीं है कि आप इसका
> अर्थ नहीं समझ पा रहे हो फिर भी मैं इसका हिंदी अर्थ नीचे लिख रहा हूँ :-
>
> " हे गुरुदेव! आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है ,मैंने ज्ञान भी प्राप्त कर लिया
> है ,मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है संशय समाप्त हो गए है ; आपके वचनों का अनुपालन करूंगा"
>
>
> 2009/10/7 Dinesh Mali <siroh...@gmail.com
> <mailto:siroh...@gmail.com>>
>
> नारायण जी तथा आप तो संस्कृत के प्रकांड पंडित है अतः ऐसा नहीं है कि आप
> इसका अर्थ नहीं समझ पा रहे हो फिर भी मैं इसका हिंदी अर्थ नीचे लेख रहा हूँ :-
>
> " हे गुरुदेव! आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है ,मैंने ज्ञान भी प्राप्त कर
> लिया है ,मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है, संशय समाप्त हो गए है ; आपके वचनों का
> अनुपालन करूंगा"
>
> 2009/10/7 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com
> <mailto:raavend...@gmail.com>>
>
> दिनेश भाई,
> इस श्लोक का भावार्थ भी हिंदी में बताने की कृपा कीजिए,
> ताकि सब लोग अच्छी तरह से लाभान्वित हो सकें!
>
> On 07/10/2009, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com
> <mailto:siroh...@gmail.com>> wrote:
> > इस सन्दर्भ में इतना ही कहूंगा नारायणजी एवं रवि जी को ,
> > गीता के इस श्लोक से ,
> > नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रासादान्मयाच्युत।
> > स्थितोस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ।। (अध्याय १८.७३)
> >
> >
> > 2009/10/6 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com
> <mailto:raavend...@gmail.com>>
> >
> >> माली जी का इस तरह चुप हो जाना अच्छा नहीं लगा!
> >>
> >> On 06/10/2009, रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com
> <mailto:raavend...@gmail.com>> wrote:
> >> > मजबूरीवश नहीं,
> >> > मुझे तो लगता है कि
> >> > भूलवश ऐसा हुआ है
> >> > और
> >> > इसे सुधारा जाना चाहिए!
> >> >
> >> > On 06/10/2009, Hariram <hari...@gmail.com
> <mailto:hari...@gmail.com>> wrote:
> >> >> शृ लिखना ही तकनीकी दृष्टि से सरल है। यही होना चाहिए।
> >> >>
> >> >> 'श्र' को भी श्र या श्र या 'श' के नीचे 'र-कार' लगाकर
> लिखना तकनीकी
> >> दृष्टि
> >> >> से
> >> >> सरल होता। किन्तु श का बायँ अंश OVERLAP हो जाता। इसलिए
> मजबूरीवश तथा
> >> ज्यादा
> >> >> प्रयोग होने के कारण 'श्र' के glyph को font में रखना पड़ा।
> >> >>
> >> >> -- हरिराम
> >> >> http://hariraama.blogspot.com
> <http://hariraama.blogspot.com/>
> >> >>
> >> >>
> >> >>
> >> >>
> >> >>
> >> >>
> >> >> 2009/10/2 narayan prasad <hin...@gmail.com
> <mailto:hin...@gmail.com>>
> >> >>
> >> >>> <<श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही है। >>
> >> >>>
> >> >>> दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है । "श्रृंगार" बिलकुल अशुद्ध है, जबकि
> >> >>> "शृंगार"
> >> >>> या "शृङ्गार" शुद्ध। यह बात अलग है कि "शृ" को तीन तरह से
> लिखा जा सकता
> >> >>> है
> >> >>> परन्तु अभी पीसी मॉनीटर पर टेक्स्ट रूप में एक ही दिखता है ।
> >> >>> ----नारायण प्रसाद
> >> >>> २ अक्तूबर २००९ १:२३ PM को, अजित वडनेरकर
> <wadnerk...@gmail.com <mailto:wadnerk...@gmail.com>> ने
--
धन्यवाद सहित
सादर
काकेश
http://kakesh.com