सृजन/सर्जन, मिलन/मेलन, रुदन/रोदन - इन युग्मों में कौन सही है ?

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narayan prasad

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Sep 29, 2009, 12:37:10 AM9/29/09
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
सृजन या सर्जन; रुदन या रोदन ?
http://groups.google.com/group/technical-hindi/msg/4c5257e494808044
 
उसी तरह "मिल्" धातु से "मेलन" ("मिलन" नहीं) । इसका प्रयोग "सम्मेलन" जैसे शब्दों में देखा जा सकता है । परन्तु हिन्दी में "मिलन" शब्द इतना प्रचलित हो गया है कि इसे हिन्दी भाषा में मान्य करना ही पड़ेगा ।
 
*******************************************************
क्‍या नृतक और नृतकी शब्‍दों का इस्‍तेमाल किया जा सकता है?
http://groups.google.com/group/technical-hindi/msg/7dbc040f9df9f721
 
 

Dinesh Mali

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Sep 29, 2009, 5:23:02 AM9/29/09
to technic...@googlegroups.com

प्रभात व्यावहारिक हिंदी -अंग्रेजी कोष ( बदरीनाथ कपूर ) के अनुसार सर्जन का अर्थ ( surgeon ) बताया गया है. (पेज  ८५७ ) जबकि सृजन का अर्थ (   The creation  ) बताया गया है (page no 900) .क्या आप सहमत हैं इन अर्थों से ?

Dinesh Kumar mali
2009/9/29 narayan prasad <hin...@gmail.com>

narayan prasad

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Sep 29, 2009, 5:40:26 AM9/29/09
to technic...@googlegroups.com
जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, तत्सम शब्द "सर्जन" और अंग्रेजी शब्द surgeon को मिक्स नहीं करना चाहिए ।
व्यवहार में व्याकरण की दृष्टि से बहुत कुछ अशुद्ध प्रयोग किये जाते हैं । हिन्दी में अशुद्ध शब्द "सृजन" का ही अधिक प्रयोग दिखता है । इसलिए इसे कोश में दर्शाना कोशकार ने उचित समझा होगा ।

२९ सितम्बर २००९ २:५३ PM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:

Shree Devi Kumar

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Sep 29, 2009, 7:32:18 AM9/29/09
to technic...@googlegroups.com
सृजन is there in the Monier Williams Sanskrit English dictionary. Please see
http://www.sanskrit-lexicon.uni-koeln.de/cgi-bin/monier/serveimg.pl?file=/scans/MWScan/MWScanjpg/mw1245-sRtajava.jpg

2009/9/29 narayan prasad <hin...@gmail.com>:

Shree Devi Kumar

unread,
Sep 29, 2009, 7:42:00 AM9/29/09
to technic...@googlegroups.com

अजित वडनेरकर

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Sep 29, 2009, 7:51:21 AM9/29/09
to technic...@googlegroups.com
1.असहमत होने का सवाल कैसे आया
हिन्दी में "मिलन" शब्द इतना प्रचलित हो गया है कि इसे हिन्दी भाषा में मान्य करना ही पड़ेगा ।
2. आपकी नज़र में मिलन शब्द किस भाषा का शब्द है?

2009/9/29 Dinesh Mali <siroh...@gmail.com>



--
शुभकामनाओं सहित
अजित
http://shabdavali.blogspot.com/

narayan prasad

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Sep 30, 2009, 12:26:25 AM9/30/09
to technic...@googlegroups.com
Thanks for the reference. A revised 2008 edition is here:

BTW, the word रुदन is also found along with रोदन in MW. 
It appears then that many un-Paninian words were in use even after the the period of Kalidasa. In epics (Mahabharata and Ramayana), there  are many word-forms that cannot be justified on Paninian grammar except the very general rules that are applicable to the Vedic literature.
 
---Narayan Prasad
 
 
२९ सितम्बर २००९ ५:१२ PM को, Shree Devi Kumar <shree...@gmail.com> ने लिखा:

रावेंद्रकुमार रवि

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Sep 30, 2009, 3:07:15 AM9/30/09
to technic...@googlegroups.com
धन्यवाद, प्रसाद जी!
इस वार्तालाप से बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल रही है!


--
शुभकामनाओं के साथ -
आपका
रावेंद्रकुमार रवि
http://saraspaayas.blogspot.com/
http://hindeekaashringaar.blogspot.com/

Shree Devi Kumar

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Sep 30, 2009, 6:24:40 AM9/30/09
to technic...@googlegroups.com
2009/9/30 narayan prasad <hin...@gmail.com>:

> Thanks for the reference. A revised 2008 edition is here:
> http://www.sanskrit-lexicon.uni-koeln.de/monier/

YES, the advanced search button on this page goes to the form I referred to:

>
> २९ सितम्बर २००९ ५:१२ PM को, Shree Devi Kumar <shree...@gmail.com> ने लिखा:

>> You can do an online search using the form at
>> http://www.sanskrit-lexicon.uni-koeln.de/mwquery/index.html
>>
>> Shree
>>

Dinesh Mali

unread,
Sep 30, 2009, 10:50:03 AM9/30/09
to technic...@googlegroups.com
रामचरित मानस में एक जगह आता है :-
" जाकें बल बिरंचि हरि ईसा , पालत सृजत हरत दससीसा" (२०.५)
इससे भी सिद्ध होता है कि सृजन का मतलब निर्माण से है. जबकि सर्जन शब्द उचित प्रतीत नहीं होता है.

2009/9/29 narayan prasad <hin...@gmail.com>

narayan prasad

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Sep 30, 2009, 11:09:43 AM9/30/09
to technic...@googlegroups.com
आपने गलत उदाहरण दिया है । सृजन या सर्जन कृदन्त है, जबकि सृजत शब्द सीधे संस्कृत के तिङन्त शब्द "सृजति" (रचना करता है) से लिया गया है । सृज् धातु तुदादि गण की धातु है । इसलिए तिङ् प्रत्यय परे रहते धातु को गुण नहीं होता । यह सब संस्कृत व्याकरण का विषय है । हिन्दी (खड़ी बोली) में संस्कृत के तिङन्त रूप का प्रयोग नहीं होता । परन्तु हिन्दी की बोलियों में ऐसा बन्धन नहीं है । रामचरितमानस खड़ी बोली में नहीं, बल्कि हिन्दी बोलियों के मिश्रण (मुख्यतः अवधी) में है ।
---नारायण प्रसाद

३० सितम्बर २००९ ८:२० PM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:

रावेंद्रकुमार रवि

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Sep 30, 2009, 1:16:19 PM9/30/09
to technic...@googlegroups.com
प्रसाद जी की बात सही है!

On 30/09/2009, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:

Dinesh Mali

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Oct 1, 2009, 10:30:26 AM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
रवि भाई ,
यद्यपि मैं संस्कृत का इतना ज्ञानी आदमी नहीं हूँ पर देखने से लगता है कि
धातु + अन/अण/अणा= मूल शब्द
कृष् +अण=कृष्ण   ( न कि कर्षण )
तृष + अणा =तृष्णा ( न कि तर्षण )
सृज + अन =सृजन  ( तब क्यों सर्जन ?)
खैर छोडिये इन बातों को , हमारे बीच एक जाने माने सम्पादक श्री जय प्रकाश जी मानस है ,जिनकी वेब पत्रिका सृजनगाथा (http://www.srijangatha.com/) है ,उन्ही से पूछ लेते हैं कि आपने अपनी पत्रिका का नाम सर्जनगाथा क्यों नहीं रखा ?


2009/9/30 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

रावेंद्रकुमार रवि

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Oct 1, 2009, 10:38:26 AM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
जी हाँ, दिनेश भाई!
यह भी ठीक रहेगा!
क्या आपने उन्हें यहाँ आने के लिए आमंत्रित कर दिया है?

Dinesh Mali

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Oct 1, 2009, 10:51:15 AM10/1/09
to technic...@googlegroups.com

रवि भाई ,
मैं इस बारे में उनसे बात नहीं किया हूँ बेहतर होगा आप बात करें .उनका इमेल हैं srijangatha@gmail.कॉम

सादर
दिनेश कुमार माली

2009/10/1 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

Dinesh Mali

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Oct 1, 2009, 10:54:25 AM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
mobile no of shri Jai prakash Manas 09424182664
 
Regards
dinesh

2009/10/1 Dinesh Mali <siroh...@gmail.com>

narayan prasad

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Oct 1, 2009, 10:54:40 AM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
आपने जो कुछ उदाहरण दिये हैं उससे तो बिलकुल स्पष्ट ही है कि संस्कृत व्याकरण के बारे में ही नहीं, हिन्दी व्याकरण के बारे में भी आपका सीमित ज्ञान है ।
कृष् + अन = कृषण (यदि गुण नहीं हुआ तो) होगा, न कि कृष्ण ।
उसी प्रकार -
तृष् + अणा = तृषणा रूप बनेगा, न कि तृष्णा ।
इस अन या अणा के अ को आपने किधर गायब कर दिया ?

१ अक्तूबर २००९ ८:०० PM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:

Dinesh Mali

unread,
Oct 1, 2009, 10:59:15 AM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
श्री नारायण जी
मैं अपने सीमित ज्ञान की बात को स्वीकार करता हूँ परन्तु आप जो कहें उसकी हाँ में हाँ नहीं मिला सकता हूँ .
क्योंकि दुनिया हर आदमी की अपनी सीमा होती है हो सकता है आप इस मामले में असीम हो .


2009/10/1 narayan prasad <hin...@gmail.com>

Shree Devi Kumar

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Oct 1, 2009, 11:02:55 AM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
Following resources may be helpful to members:

Please see http://www.cs.colostate.edu/~malaiya/hindiint.html
for a timeline of Hindi development -
"Brief History of Hindi: Hindi started to emerge as Apabhramsha in the 7th cent. and by the 10 cent. became stable. Several dialects of Hindi have been used in literature. Braj was the popular literary dialect until it was replaced by khari boli in the 19th century."
more details on website.

Regarding सृजन/सर्जन
Please see http://dsal.uchicago.edu/dictionaries/ for a number of online dictionaries.
According to, Platts, John T. (John Thompson). A dictionary of Urdu, classical Hindi, and English. London: W. H. Allen & Co., 1884.

S سرجن सृजन sr̤ijan, and सर्जन sarjan, and H. सिरजन sirjan, s.m. Creating, making, forming, producing:—sr̤ijan-hār, and sarjan-hār, and sirjan-hār, or sirjan-hārā, s.m. Creator, maker, former, producer; the Creator:—sr̤ijan-īśvar, s.m. God the Creator, the Almighty.
So, it looks like that at that time both forms were acceptable.

Shree


रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 1, 2009, 1:14:20 PM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
यहाँ बहुत अच्छी जानकारी दी जा रही है!
प्रसाद जी के बाद देवी कुमार जी ने भी बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है!
मैं उनका आभारी हूँ!

ऐसी वार्ताओं में कोई किसी से छोटा-बड़ा (कम या अधिक ज्ञानी) नहीं होता
और किसी को ऐसा मानना भी नहीं चाहिए!

ज्ञान का अर्जन ही हमारा मुख्य ध्येय होना चाहिए!

अपनी वस्तु का नाम व्यक्ति अपनी इच्छा से रखता है -
सर्जन या सृजन के अतिरिक्त "सिरजन" भी रख सकता है!

मुझे नहीं लगता कि यहाँ मानस जी को बुलाने की आवश्यकता है!

On 01/10/2009, Shree Devi Kumar <shree...@gmail.com> wrote:
> Following resources may be helpful to members:
>
> Please see http://www.cs.colostate.edu/~malaiya/hindiint.html
> for a timeline of Hindi development -

> "*Brief History of Hindi:* Hindi started to emerge as Apabhramsha in the 7th


> cent. and by the 10 cent. became stable. Several dialects of Hindi have been
> used in literature. Braj was the popular literary dialect until it was
> replaced by khari boli in the 19th century."
> more details on website.
>
> Regarding सृजन/सर्जन
> Please see http://dsal.uchicago.edu/dictionaries/ for a number of online
> dictionaries.

> According to, Platts, John T. (John Thompson). A* dictionary of Urdu,
> classical Hindi, and English*. London: W. H. Allen & Co., 1884.
>
> S سرجن सृजन *sr̤ijan*, and सर्जन *sarjan*, and H. सिरजन *sirjan*, s.m.
> Creating, making, forming, producing:—*sr̤ijan-hār*, and *sarjan-hār*,
> and*sirjan-hār
> *, or *sirjan-hārā*, s.m. Creator, maker, former, producer; the Creator:—*
> sr̤ijan-īśvar*, s.m. God the Creator, the Almighty.


> So, it looks like that at that time both forms were acceptable.
>
> Shree
>
> >
>

narayan prasad

unread,
Oct 1, 2009, 1:32:46 PM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
श्री दिनेश माली जी,
     इस क्षेत्र में मेरा ज्ञान भी सीमित है । पेशे से मैं इंजीनियर हूँ । संस्कृत व्याकरण का जो कुछ मेरा ज्ञान है वह मैंने स्वाध्याय (self-study) से प्राप्त किया है ।
--- नारायण प्रसाद

१ अक्तूबर २००९ ८:२९ PM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:

ePandit Shrish

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Oct 1, 2009, 3:34:48 PM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
दिनेश जी, मेरे विचार से जब तक कोई स्वयं अनुमति न दे, उसका मोबाइल नंबर
इस तरह समूह पर सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिये, बल्कि इच्छुक को
व्यक्तिगत रूप से ईमेल करना चाहिये।

१-१०-०९ को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:


--
Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.

ePandit: http://epandit.blogspot.com/

Dinesh Mali

unread,
Oct 1, 2009, 8:16:14 PM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
श्री नारायण जी ,
यह बात मेरे साथ भी लागू होती है. मैं भी पेशे से इंजिनियर हूँ .परन्तु जब आपने सृजन शब्द को गलत कहा तो मैं अपने तर्क खोजने लगा उसको सही साबित करने के लिए . अगर आप बोल देते कि दोनों शब्द सही है ,तो एक बात भी बनती .मगर आपने जिस विश्वास के साथ उसे अशुद्ध कहना शुरू कर दिए अर्थात अपने ज्ञान को सर्वोपरि रखने की चेष्टा किये यह अनुचित था. यही नहीं रवि जी भी आपकी हाँ में हाँ मिलाये हुए थे. काश ! शब्दों के मानकीकरण का काम केंद्रीय हिंदी निदेशालय करता तो उचित रहता. कभी कभी तो उसकी सिफारिशें भी उलटी पुलटी रहती है जैसे चिह्न को चिहन ( 2.1.2.2 manak hindi vartani rules 2003 )
छ,ट,ड,ढ,ह के संयुक्ताक्षर हल् चिहन लगाकर ही बनाये जाए .यथा
विद् या  ब्रहमा चिहन आदि ( विद्या ,चिह्न ,ब्रह्मा नहीं )
ठीक उसी प्रकार ,२.१.२.४ के अनुसार श्र का प्रचलित रूप ही मान्य होगा ,परन्तु इंजिनियर साहब आप और रविजी मिलकर शृ को मान्यता दिलाने के लिए जी जान लगाकर लगे हुए हैं.इससे व्यर्थ में संदेह जैसी स्थिति पैदा होती है गीता में कहा गया है :- " यद् यद् आचरति श्रेष्ठ तद तद एव इतरो जनाः ,स यत्प्रमाणं kurute lokas tad anuvaratate "
सादर
 दिनेश कुमार माली


2009/10/2 ePandit Shrish <sharma...@gmail.com>

narayan prasad

unread,
Oct 1, 2009, 9:11:57 PM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
श्री दिनेश माली जी,
 
<<जब आपने सृजन शब्द को गलत कहा तो मैं अपने तर्क खोजने लगा उसको सही साबित करने के लिए . अगर आप बोल देते कि दोनों शब्द सही है ,तो एक बात भी बनती >>
 

 मैंने यह नहीं कहा कि हिन्दी में "सृजन" शब्द अशुद्ध है । प्रश्न है कि व्याकरण की दृष्टि से "सृजन" और "सर्जन" इन दो रूपों में कौन सा सही है । संस्कृत व्याकरण के अनुसार "सर्जन" शुद्ध है, "सृजन" नहीं । परन्तु हिन्दी में संस्कृत का ही व्याकरण लगाया जाय, कोई जरूरी नहीं । नियम के अनुसार "सामर्थ्य" शब्द पुंल्लिंग होना चाहिए, परन्तु हिन्दी में साधारणतः इसका स्त्रीलिंग में प्रयोग होता है । अन्तर्राष्ट्रीय शब्द संस्कृत में नहीं चलेगा, इसे अन्ताराष्ट्रीय लिखना पड़ेगा । ऐसे मेरा मानना है कि  अन्तर्राष्ट्रीय के स्थान पर अन्तरराष्ट्रीय लिखा जाना चाहिए ।
<<अपने ज्ञान को सर्वोपरि रखने की चेष्टा किये यह अनुचित था.>>
 
यह चर्चा-समूह है । सभी के विचारों की अभिव्यक्ति के बाद ही कोई अन्तिम निर्णय लिया जा सकता है । इस दौरान किसी का विचार भी गलत साबित हो सकता है । श्री जी ने MW का उद्धरण देकर यह सूचित किया कि संस्कृत साहित्य में भी "सृजन" शब्द का व्यवहार हुआ है । पाणिनि व्याकरण के अनुसार "विश्राम" शब्द अशुद्ध है, इसे "विश्रम" लिखा जाना चाहिए । परन्तु पाणिनि के बाद के वैयाकरणों ने "विश्राम" शब्द का भी प्रयोग देखकर इसे मान्यता दे दी ।
 
<<कभी कभी तो उसकी सिफारिशें भी उलटी पुलटी रहती है जैसे चिह्न को चिहन ( 2.1.2.2 manak hindi vartani rules 2003 )
छ,ट,ड,ढ,ह के संयुक्ताक्षर हल् चिहन लगाकर ही बनाये जाए .यथा
विद् या  ब्रहमा चिहन आदि ( विद्या ,चिह्न ,ब्रह्मा नहीं )>>
 
केंद्रीय हिंदी निदेशालय का यह प्रस्ताव मुझे भी पसन्द नहीं । हाँ, Computing के क्षेत्र में यदि सभी युक्ताक्षरों को हल् चिह्न से ही निर्दिष्ट किया जाय, तो बहुत आसानी होगी । परन्तु हम मशीन के लिए अपनी भाषा-लेखन-शैली को विकृत क्यों करें ?
 
सादर

नारायण प्रसाद
२ अक्तूबर २००९ ५:४६ AM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:

Dinesh Mali

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Oct 1, 2009, 9:48:21 PM10/1/09
to technic...@googlegroups.com
 
आपने २९ सितम्बर को मेरे एक उदहारण के उपलक्ष में लिखा था जिसे मैं दोहरा रहा हूँ :-

प्रश्न :-प्रभात व्यावहारिक हिंदी -अंग्रेजी कोष ( बदरीनाथ कपूर ) के अनुसार सर्जन का अर्थ ( surgeon ) बताया गया है. (पेज  ८५७ ) जबकि सृजन का अर्थ (   The creation  ) बताया गया है (page no 900) .क्या आप सहमत हैं इन अर्थों से ?

आपका उत्तर :-जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, तत्सम शब्द "सर्जन" और अंग्रेजी शब्द surgeon को मिक्स नहीं करना चाहिए ।व्यवहार में व्याकरण की दृष्टि से बहुत कुछ अशुद्ध प्रयोग किये जाते हैं । हिन्दी में अशुद्ध शब्द "सृजन" का ही अधिक प्रयोग दिखता है । इसलिए इसे कोश में दर्शाना कोशकार ने उचित समझा होगा ।
 
प्रश्न :-रामचरित मानस में एक जगह आता है :-

" जाकें बल बिरंचि हरि ईसा , पालत सृजत हरत दससीसा" (२०.५)
इससे भी सिद्ध होता है कि सृजन का मतलब निर्माण से है. जबकि सर्जन शब्द उचित प्रतीत नहीं होता है.
 
आपका उत्तर:-आपने गलत उदाहरण दिया है । सृजन या सर्जन कृदन्त है, जबकि सृजत शब्द सीधे संस्कृत के तिङन्त शब्द "सृजति" (रचना करता है) से लिया गया है । सृज् धातु तुदादि गण की धातु है । इसलिए तिङ् प्रत्यय परे रहते धातु को गुण नहीं होता । यह सब संस्कृत व्याकरण का विषय है । हिन्दी (खड़ी बोली) में संस्कृत के तिङन्त रूप का प्रयोग नहीं होता । परन्तु हिन्दी की बोलियों में ऐसा बन्धन नहीं है । रामचरितमानस खड़ी बोली में नहीं, बल्कि हिन्दी बोलियों के मिश्रण (मुख्यतः अवधी) में है ।
---नारायण प्रसाद
 
प्रश्न :-अब मान लेते हैं तुलसी दासजी की भाषा शुद्ध हिंदी नहीं थी अर्थात अवधी भाषा का बाहुल्य था . परन्तु आधुनिक हिंदी के लेखाकारों ने सृजन शब्द का इस्तेमाल बहुतायत से किया है यहाँ तक कि उनके ब्लॉग और पत्रिकाओं के नाम भी इसी शब्द से जुड़े हैं . आपकी राय जानना चाहूंगा कि क्या उन्होंने अशुद्ध प्रयोग किये ?
 
 
 
2009/10/2 narayan prasad <hin...@gmail.com>

narayan prasad

unread,
Oct 2, 2009, 12:57:17 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
<< आपकी राय जानना चाहूंगा कि क्या उन्होंने अशुद्ध प्रयोग किये ?>>
 
यदि आप प्रसंग पर अपना ध्यान आकृष्ट करेंगे तो यह स्पष्ट होगा कि जहाँ कहीं मैंने किसी शब्द के बारे में शुद्ध या अशुद्ध की बात की है, वह सब संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से है । सृजन शब्द पाणिनि नियम के विरुद्ध है । परन्तु हिन्दी में साधारणतः इसी का प्रयोग दिखता है । इसलिए विद्वज्जन भी इसी शब्द का प्रयोग करते हैं । यदि मेरे बारे में पूछें कि मैं जब लिखूँगा तो सृजन शब्द का व्यवहार करूँगा या सर्जन का, तो मेरा उत्तर यह होगा - मैं व्यक्ति विशेष के अनुसार उचित शब्द  चुनूँगा । यदि किसी पंडित को लिखूँगा तो सर्जन का प्रयोग करूँगा (ताकि वे यह न समझ बैठें कि मुझे व्याकरण-सम्मत इस शब्द का ज्ञान नहीं है) और सामान्य रूप से सृजन शब्द का ।
 
उत्सुकतावश मैंने बंगला, उड़िया, कन्नड, मलयालम, तेलुगु कोश उलटकर देखे । मलयालम और तेलुगु में न तो सृजन मिला, न सर्जन । बाकी में दोनों शब्द ।

--- नारायण प्रसाद
२ अक्तूबर २००९ ७:१८ AM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 2, 2009, 2:12:14 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
आदरणीय विद्वान साथियो!
मुझे लगता है कि एक बार फिर हम सार्थकता से निरर्थकता की ओर भटक रहे हैं!
प्रसाद जी व अन्य साथियों ने बात को अधिक स्पष्ट कर दिया है!
अब इस बारे में किसी और स्पष्टीकरण की आवश्यकता, फिलहाल यहाँ तो नहीं है!

माली जी से क्षमा चाहूँगा - वे अभी भी भ्रमित हो रहे हैं!
सर्जन और सृजन के बारे में भी
और
श्र और शृ के बारे में भी!
उन्हें श्र और शृ के बारे में अपना भ्रम दूर करने के लिए एक नज़र ध्यान से
इस पोस्ट ( http://saraspaayas.blogspot.com/2009/09/blog-post.html )
और उस पर आई टिप्पणियों पर डालनी चाहिए!
शायद वे समझ सकें कि
कौन ग़लत वर्तनी ( श्रृंगार ) को बढ़ावा दे रहा है
और
कौन सही वर्तनी ( शृंगार ) को!

On 02/10/2009, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> << आपकी राय जानना चाहूंगा कि क्या उन्होंने अशुद्ध प्रयोग किये ?>>
>
> यदि आप प्रसंग पर अपना ध्यान आकृष्ट करेंगे तो यह स्पष्ट होगा कि जहाँ कहीं
> मैंने किसी शब्द के बारे में शुद्ध या अशुद्ध की बात की है, वह सब संस्कृत
> व्याकरण की दृष्टि से है । सृजन शब्द पाणिनि नियम के विरुद्ध है । परन्तु
> हिन्दी में साधारणतः इसी का प्रयोग दिखता है । इसलिए विद्वज्जन भी इसी शब्द का
> प्रयोग करते हैं । यदि मेरे बारे में पूछें कि मैं जब लिखूँगा तो सृजन शब्द का
> व्यवहार करूँगा या सर्जन का, तो मेरा उत्तर यह होगा - मैं व्यक्ति विशेष के
> अनुसार उचित शब्द चुनूँगा । यदि किसी पंडित को लिखूँगा तो सर्जन का प्रयोग
> करूँगा (ताकि वे यह न समझ बैठें कि मुझे व्याकरण-सम्मत इस शब्द का ज्ञान नहीं
> है) और सामान्य रूप से सृजन शब्द का ।
>
> उत्सुकतावश मैंने बंगला, उड़िया, कन्नड, मलयालम, तेलुगु कोश उलटकर देखे ।
> मलयालम और तेलुगु में न तो सृजन मिला, न सर्जन । बाकी में दोनों शब्द ।
>
> --- नारायण प्रसाद
> २ अक्तूबर २००९ ७:१८ AM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:
>
>>
>> आपने २९ सितम्बर को मेरे एक उदहारण के उपलक्ष में लिखा था जिसे मैं दोहरा रहा
>> हूँ :-
>>
>> प्रश्न :-प्रभात व्यावहारिक हिंदी -अंग्रेजी कोष ( बदरीनाथ कपूर ) के अनुसार
>> सर्जन का अर्थ ( surgeon ) बताया गया है. (पेज ८५७ ) जबकि सृजन का अर्थ (
>> The creation ) बताया गया है (page no 900) .क्या आप सहमत हैं इन अर्थों से
>> ?
>>
>> आपका उत्तर :-जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, तत्सम शब्द "सर्जन" और
>> अंग्रेजी शब्द surgeon को मिक्स नहीं करना चाहिए ।व्यवहार में व्याकरण की

>> दृष्टि से बहुत कुछ अशुद्ध प्रयोग किये जाते हैं । *हिन्दी में अशुद्ध शब्द
>> "सृजन" का ही अधिक प्रयोग दिखता है* । इसलिए इसे कोश में दर्शाना कोशकार ने


>> उचित समझा होगा ।
>>
>> प्रश्न :-रामचरित मानस में एक जगह आता है :-
>> " जाकें बल बिरंचि हरि ईसा , पालत सृजत हरत दससीसा" (२०.५)
>> इससे भी सिद्ध होता है कि सृजन का मतलब निर्माण से है. जबकि सर्जन शब्द उचित
>> प्रतीत नहीं होता है.
>>
>> आपका उत्तर:-आपने गलत उदाहरण दिया है । सृजन या सर्जन कृदन्त है, जबकि सृजत
>> शब्द सीधे संस्कृत के तिङन्त शब्द "सृजति" (रचना करता है) से लिया गया है ।
>> सृज् धातु तुदादि गण की धातु है । इसलिए तिङ् प्रत्यय परे रहते धातु को गुण
>> नहीं होता । यह सब संस्कृत व्याकरण का विषय है । हिन्दी (खड़ी बोली) में
>> संस्कृत के तिङन्त रूप का प्रयोग नहीं होता । परन्तु हिन्दी की बोलियों में
>> ऐसा
>> बन्धन नहीं है । रामचरितमानस खड़ी बोली में नहीं, बल्कि हिन्दी बोलियों के
>> मिश्रण (मुख्यतः अवधी) में है ।
>> ---नारायण प्रसाद
>>
>> प्रश्न :-अब मान लेते हैं तुलसी दासजी की भाषा शुद्ध हिंदी नहीं थी अर्थात
>> अवधी भाषा का बाहुल्य था . परन्तु आधुनिक हिंदी के लेखाकारों ने सृजन शब्द का
>> इस्तेमाल बहुतायत से किया है यहाँ तक कि उनके ब्लॉग और पत्रिकाओं के नाम भी
>> इसी
>> शब्द से जुड़े हैं . आपकी राय जानना चाहूंगा कि क्या उन्होंने अशुद्ध प्रयोग
>> किये ?
>>
>> http://shabdsrijan.blogspot.com/
>> http://www.srijangatha.com/
>>
>
> >
>

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 2, 2009, 3:22:27 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
यहाँ एक साथ दिए गए हैं अँगरेज़ी व संस्कृत के "सर्जन" के अर्थ -

http://pustak.org/bs/home.php?mean=80956

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 2, 2009, 3:39:00 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
सर्जन से संबंधित कुछ उदाहरण -

1. श्री जय प्रकाश मानस द्वारा संपादित पत्रिका "सृजनगाथा" पर प्रकाशित
एक ललित निबंध
सर्जन फिर विसर्जन या फिर सर्जन / नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
का लिंक -
http://www.srijangatha.com/2009-10/april/lalit%20nibandh-narmad%20prasad.htm

2. श्री अखिलेश द्वारा संपादित "तद्भव" पर प्रकाशित
वरिष्ठ आलोचक सत्यप्रकाश मिश्र के आलेख -
महादेवी का सर्जन : प्रतिरोध और करुणा
-----------------------------
का लिंक है -
http://www.tadbhav.com/issue%2015/Mahadevi%20ka.htm

3. राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका - मधुमती
में प्रकाशित श्री हरिराम मीणा की रचना -
मेघ-सर्जन
-------------
का लिंक -
http://www.lakesparadise.com/madhumati/show_artical.php?id=752

4. लिनक्स में हिंदी, हिंदी में लिनक्स पर प्रकाशित आलेख
|| भविष्य-सर्जन की कला व विज्ञान ||
का लिंक -
http://in.geocities.com/dysxhi/hi/creating_future.html

narayan prasad

unread,
Oct 2, 2009, 3:41:33 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
प्रतीत होता है कि इसमें अभी सृ से शुरू होने वाले शब्दों की प्रविष्टि नहीं की गई है ।

२ अक्तूबर २००९ १२:५२ PM को, रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com> ने लिखा:

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 2, 2009, 3:44:02 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
जी, प्रसाद जी!

On 02/10/2009, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:

--
शुभकामनाओं के साथ -
आपका

रावेंद्रकुमार रवि

http://saraspaayas.blogspot.com/
http://hindeekaashringaar.blogspot.com/

अजित वडनेरकर

unread,
Oct 2, 2009, 3:53:02 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
साथियों,
बहुत अच्छी बहस चली। बहुत कुछ हासिल हुआ।
shringar  के संदर्भ में श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही है। हालांकि यह भी उचित नहीं है।
सही तो यहSh_ri.jpgहै। पर हिन्दी कम्प्युटिंग में यह वर्ण ही नहीं मिलता।

2009/10/2 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>



--
शुभकामनाओं सहित
अजित
http://shabdavali.blogspot.com/

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 2, 2009, 3:59:37 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
हार्दिक धन्यवाद, अजित जी!
कम से कम एक ग़लत वर्तनी ( श्रृ )
के प्रचलन पर तो रोक लग सकती है,
अगर हम सब चाहें तो!

On 02/10/2009, अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com> wrote:
> *साथियों, *
> *बहुत अच्छी बहस चली। बहुत कुछ हासिल हुआ। *
> *shringar के संदर्भ में श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही है।
> हालांकि यह भी उचित नहीं है। *
> *सही तो यह[image: Sh_ri.jpg]है। पर हिन्दी कम्प्युटिंग में यह वर्ण ही नहीं
> मिलता। *

narayan prasad

unread,
Oct 2, 2009, 4:28:14 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
<<श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही है। >>
 
दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है । "श्रृंगार" बिलकुल अशुद्ध है, जबकि "शृंगार" या "शृङ्गार" शुद्ध। यह बात अलग है कि "शृ" को तीन तरह से लिखा जा सकता है परन्तु अभी पीसी मॉनीटर पर टेक्स्ट रूप में एक ही दिखता है ।
----नारायण प्रसाद
२ अक्तूबर २००९ १:२३ PM को, अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com> ने लिखा:
Sh_ri.jpg

ShreeDevi Kumar

unread,
Oct 2, 2009, 5:06:56 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
IfSh_ri.jpg is the correct way to write it, please use sanskrit2003 font that comes with Itranslator 2003.

See attached jpg.

Shree

2009/10/2 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
Sh_ri.jpg
shringar.JPG

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 2, 2009, 10:33:06 AM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
श्री जी!
कृपया फॉण्ट की प्रतिलिपि उपलब्ध कराइए!

On 02/10/2009, ShreeDevi Kumar <shree...@gmail.com> wrote:
> * If**[image: Sh_ri.jpg] is the correct way to write it, please use


> sanskrit2003 font that comes with Itranslator 2003.
>
> See attached jpg.
>
> Shree

> *


> 2009/10/2 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
>

>> *साथियों, *

>> *बहुत अच्छी बहस चली। बहुत कुछ हासिल हुआ। *
>> *shringar के संदर्भ में श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही
>> है। हालांकि यह भी उचित नहीं है। *
>> *सही तो यह[image: Sh_ri.jpg]है। पर हिन्दी कम्प्युटिंग में यह वर्ण ही नहीं
>> मिलता। *

ShreeDevi Kumar

unread,
Oct 2, 2009, 11:30:21 PM10/2/09
to technic...@googlegroups.com
You can download the software as well as font for free from
http://www.omkarananda-ashram.org/Sanskrit/itranslator2003.htm

--- Shree

2009/10/2 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>:

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 3, 2009, 2:10:48 AM10/3/09
to technic...@googlegroups.com
Thankyou, Shree jee!

Dinesh Mali

unread,
Oct 3, 2009, 5:41:11 AM10/3/09
to technic...@googlegroups.com
shree jee ,
 
Is this software compatible for window vista ?
 
Regards
dinesh kumar mali

2009/10/3 ShreeDevi Kumar <shree...@gmail.com>

ShreeDevi Kumar

unread,
Oct 3, 2009, 9:32:50 AM10/3/09
to technic...@googlegroups.com
Please see teh webpage - it has detailed info.

Itranslator 2003 should work well on Vista. There is an older Itranslator 99 also.

I downloaded the beta today on XP - it seemed to have some problem but I think that was because it might have removed the fonts which were already installed.

Shree

2009/10/3 Dinesh Mali <siroh...@gmail.com>

Hariram

unread,
Oct 6, 2009, 10:02:28 AM10/6/09
to technic...@googlegroups.com
शृ लिखना ही तकनीकी दृष्टि से सरल है। यही होना चाहिए।
 
'श्र' को भी श्‍र या श्‌र या 'श' के नीचे 'र-कार' लगाकर लिखना तकनीकी दृष्टि से सरल होता। किन्तु श का बायँ अंश OVERLAP हो जाता। इसलिए मजबूरीवश तथा ज्यादा प्रयोग होने के कारण 'श्र' के glyph को font में रखना पड़ा।
 
-- हरिराम
 
 
 


 
2009/10/2 narayan prasad <hin...@gmail.com>
Sh_ri.jpg

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 6, 2009, 11:14:23 AM10/6/09
to technic...@googlegroups.com
मजबूरीवश नहीं,
मुझे तो लगता है कि
भूलवश ऐसा हुआ है
और
इसे सुधारा जाना चाहिए!

On 06/10/2009, Hariram <hari...@gmail.com> wrote:
> शृ लिखना ही तकनीकी दृष्टि से सरल है। यही होना चाहिए।
>
> 'श्र' को भी श्‍र या श्‌र या 'श' के नीचे 'र-कार' लगाकर लिखना तकनीकी दृष्टि से
> सरल होता। किन्तु श का बायँ अंश OVERLAP हो जाता। इसलिए मजबूरीवश तथा ज्यादा
> प्रयोग होने के कारण 'श्र' के glyph को font में रखना पड़ा।
>
> -- हरिराम
> http://hariraama.blogspot.com
>
>
>
>
>
>
> 2009/10/2 narayan prasad <hin...@gmail.com>
>
>> <<श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही है। >>
>>
>> दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है । "श्रृंगार" बिलकुल अशुद्ध है, जबकि
>> "शृंगार"
>> या "शृङ्गार" शुद्ध। यह बात अलग है कि "शृ" को तीन तरह से लिखा जा सकता है
>> परन्तु अभी पीसी मॉनीटर पर टेक्स्ट रूप में एक ही दिखता है ।
>> ----नारायण प्रसाद
>> २ अक्तूबर २००९ १:२३ PM को, अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com> ने
>> लिखा:
>>

>>> *साथियों, *

>>> *बहुत अच्छी बहस चली। बहुत कुछ हासिल हुआ। *
>>> *shringar के संदर्भ में श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही
>>> है। हालांकि यह भी उचित नहीं है। *
>>> *सही तो यह[image: Sh_ri.jpg]है। पर हिन्दी कम्प्युटिंग में यह वर्ण ही नहीं
>>> मिलता। *

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 6, 2009, 2:02:41 PM10/6/09
to technic...@googlegroups.com
माली जी का इस तरह चुप हो जाना अच्छा नहीं लगा!

Dinesh Mali

unread,
Oct 6, 2009, 10:13:29 PM10/6/09
to technic...@googlegroups.com
इस सन्दर्भ में इतना ही कहूंगा नारायणजी एवं रवि जी को ,
गीता के इस श्लोक से ,
नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रासादान्मयाच्युत।
स्थितोस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ।। (अध्याय १८.७३)


2009/10/6 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 6, 2009, 10:25:44 PM10/6/09
to technic...@googlegroups.com
दिनेश भाई,
इस श्लोक का भावार्थ भी हिंदी में बताने की कृपा कीजिए,
ताकि सब लोग अच्छी तरह से लाभान्वित हो सकें!

Dinesh Mali

unread,
Oct 6, 2009, 10:33:08 PM10/6/09
to technic...@googlegroups.com

नारायण जी तथा आप तो संस्कृत के प्रकांड पंडित है अतः ऐसा नहीं है कि आप इसका अर्थ नहीं समझ पा रहे हो फिर भी मैं इसका हिंदी अर्थ नीचे लेख रहा हूँ :-

" हे गुरुदेव! आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है ,मैंने ज्ञान भी प्राप्त कर लिया है ,मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है, संशय समाप्त हो गए है ; आपके वचनों का अनुपालन करूंगा"

2009/10/7 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

Dinesh Mali

unread,
Oct 6, 2009, 10:34:22 PM10/6/09
to technic...@googlegroups.com

नारायण जी तथा आप तो संस्कृत के प्रकांड पंडित है अतः ऐसा नहीं है कि आप इसका अर्थ नहीं समझ पा रहे हो फिर भी मैं इसका हिंदी अर्थ नीचे लिख रहा हूँ :-

" हे गुरुदेव! आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है ,मैंने ज्ञान भी प्राप्त कर लिया है ,मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है संशय समाप्त हो गए है ; आपके वचनों का अनुपालन करूंगा"


2009/10/7 Dinesh Mali <siroh...@gmail.com>

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 6, 2009, 10:36:08 PM10/6/09
to technic...@googlegroups.com
ईश्वर आपकी मदद करे
और
ऐसा करने के लिए शक्ति प्रदान करे!

narayan prasad

unread,
Oct 6, 2009, 11:33:22 PM10/6/09
to technic...@googlegroups.com
दिनेश जी,
  यह चर्चा समूह है जिसमें प्रत्येक सदस्य कुछ न कुछ दूसरों के अभिव्यक्त विचारों से सीखता है ।  मैं भी इस समूह का एक सामान्य सदस्य मात्र हूँ ।
---नारायण प्रसाद

७ अक्तूबर २००९ ७:४३ AM को, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com> ने लिखा:

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 6, 2009, 11:38:03 PM10/6/09
to technic...@googlegroups.com
"प्रत्येक सदस्य कुछ न कुछ दूसरों के अभिव्यक्त विचारों से सीखता है" -
बिल्कुल सही कथन!

अजित वडनेरकर

unread,
Oct 7, 2009, 4:32:06 AM10/7/09
to technic...@googlegroups.com
बहुत सुंदर बात कही है। यहां मजेदार बातें होती हैं। सबसे अच्छी बात है चुटकी लेने का भाव, जो नितांत गंभीर से नाम और गंभीर से स्वभाव वाले इस मंच पर बेहद ज़रूरी है:)
मैं तो चुपचाप पढ़ता हूं। काफी कुछ जानने को मिलता है।

पर नारायण जी, मेरी उस जिज्ञासा का क्या हुआ-प्रभाकर माचवे के मुताबिक मराठी का व्याकरण कन्नड़ आधारित है?

रावेंद्रकुमार रवि

unread,
Oct 7, 2009, 4:34:51 AM10/7/09
to technic...@googlegroups.com
"मैं तो चुपचाप पढ़ता हूं। काफी कुछ जानने को मिलता है।" - यह बात भी
बहुत सुंदर है!

Kakesh Kumar

unread,
Oct 7, 2009, 4:48:40 AM10/7/09
to technic...@googlegroups.com
अजित जी,

लगता है चुपचाप पढ़ते पढ़ते आप कुछ ई-पत्रों को बिना पढ़े चुपचाप निकल गये :-)

नारायण जी ने आपके प्रश्न का विस्तार से उत्तर दिया था। जिस संलग्न कर रहा हूँ।

===
अजित जी,
मैंने कन्नड के दर्जनो व्याकरण ग्रन्थ (मराठी, कन्नड और अंग्रेजी माध्यम में) देखे हैं ।
मराठी व्याकरण (हिन्दी और मराठी माध्यम में) का भी अध्ययन किया है । परन्तु मराठी
व्याकरण और कन्नड व्याकरण में कुछ भी साम्य दृष्टिगोचर होने की बात स्मरण में नहीं आ रही ।

"कन्नड भाषा प्रवेश" (मराठी माध्यमाच्या द्वारा) में श्री॰ गुरुनाथ व्यंकटेश दिवेकर लिखते हैं -

<QUOTE>
"कन्नड भाषा ही कोणत्याही अन्य द्राविड भाषेपेक्षा मराठीला जवळची भाषा आहे ।"
<UNQUOTE>

मेरे विचार में केवल शब्दावली और वाक्यों के शाब्दिक अर्थ समान होना व्याकरणिक साम्य नहीं
कहला सकता । परन्तु प्रतीत होता है, इसी आधार पर यह मान लिया गया है कि मराठी का
व्याकरण वस्तुतः कन्नड का व्याकरण है । दिवेकर जी की पुस्तक से एक पैरा उद्धृत कर रहा हूँ
। आप खुद ही अनुमान लगा ले सकते हैं ।

<QUOTE>
कन्नड भाषिकांचे, विशेषतः उत्तर कर्नाटकातील लोकांचे रीतिरिवाज महाराष्ट्रीयांच्या
सामाजिक व्यवहारापेक्षा फारसे वेगळे नाहीत । विशेषतः सीमा भागांत स्वाभाविकपणेच अशी
एक सम्मिश्र जीवनपद्धती निर्माण झालेली आहे की मराठी भाषिकांचे बोलणे, आवडी निवडी,
सणवार, कुलाचार यांवर कर्नाटकाचीच छाप असते. त्यांच्या बोलण्यांत पुष्कळ कानडी शब्द
असतातच, पण त्याशिवाय वाक्प्रचार, idioms म्हणजे व्याकरण दृष्ट्या क्रियापदे, लिंग
विभक्ती, इत्यादींच्या संबंधाने त्यांचे बोलणे कानडी थाटाचे असते. उदाहरणार्थ, "मी म्हणतो,
पैशालाच काय म्हणून इतके महत्व द्यायचे ?" हे वाक्य तेथील मराठीत "नव्हे ! पैशालाच इतके
का महत्व द्यावे म्हणे !" असेच काही तरी असते. याचे कारण म्हणजे कानडीत ते "अल्ला,
दुड्डिगॆ याक इष्टु महत्व कॊडबेकंतऽ" असे असते. त्या शिवाय "उभा राहिला" ऐवजी
"उभारला"; "जाऊ द्या ते" ऐवजी "जाऊ दे सोडा ते"; "करून टाकले" ऐवजी "करून सोडले" असे
वाक्प्रचार कानडी भाषेतील "बिडु" (सोडणे) या सहायक क्रियापदाच्या विशेष वापरामुळे
मराठी भाषिकांमध्ये रूढ झालेले आहेत. काही मूळ क्रियापदे कानडीतील व्यवहाराप्रमाणेच
असतात. "थांबा ! दार उघडतो" हे वाक्य "उबारा दार काढतो" असे होते. हे "निंदर्रि -
बागला तगीतीनी" याचा अनुवाद होय. "हा मुलगा शाळेत जातो" हे वाक्य "हा मुलगा शाळा
शिकतो" असे होते. अर्थात् पुणे, मुंबई या ठिकाणी दीर्घकाळ वास्तव्य केल्यावर या प्रकारच्या
बोलण्यात सुधारणा (प्रयत्न केल्यास) होते ही बाब वेगळी.

<UNQUOTE>

सादर


नारायण प्रसाद


अजित वडनेरकर wrote:
> बहुत सुंदर बात कही है। यहां मजेदार बातें होती हैं। सबसे अच्छी बात है चुटकी लेने का
> भाव, जो नितांत गंभीर से नाम और गंभीर से स्वभाव वाले इस मंच पर बेहद ज़रूरी है:)
> मैं तो चुपचाप पढ़ता हूं। काफी कुछ जानने को मिलता है।
>
> पर नारायण जी, मेरी उस जिज्ञासा का क्या हुआ-प्रभाकर माचवे के मुताबिक मराठी का
> व्याकरण कन्नड़ आधारित है?
>

> 2009/10/7 Dinesh Mali <siroh...@gmail.com <mailto:siroh...@gmail.com>>


>
> नारायण जी तथा आप तो संस्कृत के प्रकांड पंडित है अतः ऐसा नहीं है कि आप इसका
> अर्थ नहीं समझ पा रहे हो फिर भी मैं इसका हिंदी अर्थ नीचे लिख रहा हूँ :-
>
> " हे गुरुदेव! आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है ,मैंने ज्ञान भी प्राप्त कर लिया
> है ,मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है संशय समाप्त हो गए है ; आपके वचनों का अनुपालन करूंगा"
>
>
> 2009/10/7 Dinesh Mali <siroh...@gmail.com

> <mailto:siroh...@gmail.com>>


>
> नारायण जी तथा आप तो संस्कृत के प्रकांड पंडित है अतः ऐसा नहीं है कि आप
> इसका अर्थ नहीं समझ पा रहे हो फिर भी मैं इसका हिंदी अर्थ नीचे लेख रहा हूँ :-
>
> " हे गुरुदेव! आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है ,मैंने ज्ञान भी प्राप्त कर
> लिया है ,मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है, संशय समाप्त हो गए है ; आपके वचनों का
> अनुपालन करूंगा"
>
> 2009/10/7 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com

> <mailto:raavend...@gmail.com>>


>
> दिनेश भाई,
> इस श्लोक का भावार्थ भी हिंदी में बताने की कृपा कीजिए,
> ताकि सब लोग अच्छी तरह से लाभान्वित हो सकें!
>
> On 07/10/2009, Dinesh Mali <siroh...@gmail.com

> <mailto:siroh...@gmail.com>> wrote:
> > इस सन्दर्भ में इतना ही कहूंगा नारायणजी एवं रवि जी को ,
> > गीता के इस श्लोक से ,
> > नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रासादान्मयाच्युत।
> > स्थितोस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ।। (अध्याय १८.७३)
> >
> >
> > 2009/10/6 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com

> <mailto:raavend...@gmail.com>>


> >
> >> माली जी का इस तरह चुप हो जाना अच्छा नहीं लगा!
> >>
> >> On 06/10/2009, रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com

> <mailto:raavend...@gmail.com>> wrote:
> >> > मजबूरीवश नहीं,
> >> > मुझे तो लगता है कि
> >> > भूलवश ऐसा हुआ है
> >> > और
> >> > इसे सुधारा जाना चाहिए!
> >> >
> >> > On 06/10/2009, Hariram <hari...@gmail.com

> <mailto:hari...@gmail.com>> wrote:
> >> >> शृ लिखना ही तकनीकी दृष्टि से सरल है। यही होना चाहिए।
> >> >>
> >> >> 'श्र' को भी श्‍र या श्‌र या 'श' के नीचे 'र-कार' लगाकर
> लिखना तकनीकी
> >> दृष्टि
> >> >> से
> >> >> सरल होता। किन्तु श का बायँ अंश OVERLAP हो जाता। इसलिए
> मजबूरीवश तथा
> >> ज्यादा
> >> >> प्रयोग होने के कारण 'श्र' के glyph को font में रखना पड़ा।
> >> >>
> >> >> -- हरिराम
> >> >> http://hariraama.blogspot.com

> <http://hariraama.blogspot.com/>
> >> >>
> >> >>
> >> >>
> >> >>
> >> >>
> >> >>
> >> >> 2009/10/2 narayan prasad <hin...@gmail.com
> <mailto:hin...@gmail.com>>


> >> >>
> >> >>> <<श्रृंगार लिखने की बजाय शृंगार लिखना ज्यादा सही है। >>
> >> >>>
> >> >>> दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है । "श्रृंगार" बिलकुल अशुद्ध है, जबकि
> >> >>> "शृंगार"
> >> >>> या "शृङ्गार" शुद्ध। यह बात अलग है कि "शृ" को तीन तरह से
> लिखा जा सकता
> >> >>> है
> >> >>> परन्तु अभी पीसी मॉनीटर पर टेक्स्ट रूप में एक ही दिखता है ।
> >> >>> ----नारायण प्रसाद
> >> >>> २ अक्तूबर २००९ १:२३ PM को, अजित वडनेरकर

> <wadnerk...@gmail.com <mailto:wadnerk...@gmail.com>> ने


--
धन्यवाद सहित
सादर

काकेश
http://kakesh.com

narayan prasad

unread,
Oct 7, 2009, 6:22:16 AM10/7/09
to technic...@googlegroups.com
<<मेरी उस जिज्ञासा का क्या हुआ-प्रभाकर माचवे के मुताबिक मराठी का व्याकरण कन्नड़ आधारित है?>>
 
मैंने तो उत्तर दे दिया था । आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हूँ ।
 
---नारायण प्रसाद
 
७ अक्तूबर २००९ २:०२ PM को, अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com> ने लिखा:

अजित वडनेरकर

unread,
Oct 7, 2009, 7:53:18 AM10/7/09
to technic...@googlegroups.com
क्या बात कही है काकेश भाई,
शुक्रिया...सचमुच ऐसा ही हुआ होगा। 

2009/10/7 Kakesh Kumar <kakes...@gmail.com>
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