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तुम जैसे बहादुरों के रहते हमें किसी विदेशी शत्रु की क्या ज़रूरत है ? - Himanshu Kumar

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AYUSH | Adivasi Yuva Shakti

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Jun 29, 2013, 6:17:12 AM6/29/13
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Himanshu Kumar  : 
ऐसा नहीं है की आदिवासियों की तरफदारी करने के कारण ही हम जैसे लोगों को नक्सली समर्थक माना जाता हो . असल में तो जो कोई भी अब इस मुल्क में आदिवासियों की तरफदारी करेगा और इन अमीर उद्योगपतियों की लूट पर सवाल उठाएगा उसे ही हमारे पुलिस बहादुर नक्सली कह कर परेशान करना शुरू कर देंगे .
अगर आपको मेरी इस बात पर शक है तो नमूना पेश है जनाब . 
भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय ने आदिवासी इलाकों में शांती लाने के लिए इन इलाकों में विकास को बढ़ावा देने की योजना बनाई . इस काम के लिए हर जिले में एक नौजवान की नियुक्ति भी करी गयी . 
महाराष्ट्र के आदिवासी जिले गढ़चिरोली में भारत सरकार ने विकास को तेज़ करने के लिए जिस नौजवान को नियुक्त किया उसे वहाँ की पुलिस ने पकड़ लिया . इस सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति के साथ उसके एक मित्र को भी पकड़ लिया गया . खूब परेशान करने के बाद आखिरकार इन्हें छोड़ना तो पड़ा . लेकिन खतरनाक और शर्मनाक बात यह है की पुलिस का कहना है की हम तो इन सज्जन पर बहुत पहले से नज़र रखे हुए थे क्योंकि यह सज्जन तो नवीन जिंदल के कारखाने का विरोध करने वाले आन्दोलन को समर्थन दे रहे हैं .
जियो बहादुर मोर देश के बहादुर पुलिसवा . किसकी नौकरी कर रहे हो ? जिंदल गडकरी , और अम्बानी की ? और गोली लाठी चला रहे हो अपने ही देश के किसानों आदिवासियों और गरीबों पर . Inline image 1 
याद रखना पुलिस वाले भाइयों, जब इस दौर का इतिहास लिखा जाएगा तब तुम्हारा ज़िक्र किस रूप में किया जाएगा इसका ख़याल ज़रूर रखना ?


himanshu kumar 2.png

Adi karyakram

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Jun 29, 2013, 2:47:27 PM6/29/13
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अगर एक पुलिस वाला आपकी निर्दोष बेटी या बहन को थाने के भीतर ले जाकर उसके कपडे उतारे , फिर आपकी उस निर्दोष बेटी या बहन को बिजली के झटके दे और फिर आपकी निर्दोष बेटी या बहन के गुप्तांगों में पत्थर डाल दे इसके बाद सरकार और सुप्रीम कोर्ट भी आपकी निर्दोष बेटी या बहन की कोई मदद न करे तो फिर आप क्या करेंगे ? 
१- किसी और विषय पर बात करेंगे ?
२- फेसबुक पर स्टेट्स लिखेंगे ?
३ - इस बात पर ध्यान नहीं देंगे ?


2013/6/29 AYUSH | Adivasi Yuva Shakti <ay...@adiyuva.in>
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Adi karyakram

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Jun 29, 2013, 2:56:26 PM6/29/13
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Himanshu Kumar  : तीस साल पहले पुलिस ने भारतीय सेना के एक रिटायर्ड जवान को जीप के पीछे बाँध कर घसीटा था ! पुलिस ने उसे बचाने आये आदिवासियों के ऊपर गोली चला कर उन्हें दूर भगा दिया ! ये आदिवासी तीर धनुष लेकर इस जवान की जान बचाने की असफल कोशिश कर रहे थे !
पुलिस ने सेना के इस जवान को पकड कर अपनी गाडी में डाला फिर उसके पेट में संगीन घोंप दी !इसके बाद इस घायल सैनिक को जीप के पीछे बाँध कर गाँव में घसीटा ! उसका कसूर यह था की उसने अपने गाँव वालों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई थी !इस हत्या की कभी कोई जांच नहीं की गयी ! ना ही इस हत्या के लिए ज़िम्मेदार किसी पुलिस वाले को कोई सजा हुई !
मृतक सिपाही गंगाराम कलुन्दिया झारखंड की 'हो' जनजाति का सदस्य था !
वह १९ साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गया था ! उसने सन पैंसठ और सन इकहत्तर की लड़ाई में भाग लिया था ! वह बिहार रेजिमेंट में था ! वह तरक्की करते हुए जूनियर आफिसर के ओहदे तक पहुँच गया था !

जब उसके गाँव को आसपास के ११० गाँव के साथ विश्व बैंक के पैसे से कुजू बाँध बनाने के लिए उजाड़ा जाने लगा तो गंगाराम कलुन्दिया ने अपने लोगों की ज़मीन और उनके मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए संगठित करने का फैसला लिया ! इसके लिए उसने सेना से स्वैछिक सेवा निवृत्ति ले ली ! वह अपने गाँव इलिगारा जिला सिंहभूम में लोगों को संगठित कर रहा था तभी चार अप्रैल १९८२ को पुलिस ने उसकी हत्या कर दी ! 

' ये वो पत्थर है ! इसे हमने गंगाराम कलुन्दिया की याद में लगाया है ! मैं तब चौदह साल का था! इस जगह हमने पुलिस को गंगाराम को ले जाने से रोकने की कोशिश करी की थी !' तोब्ड़ो मुझे बताता है ! 'और उस जगह से पुलिस ने हम लोगों पर गोली चलाई थी !'

गंगाराम कलुन्दिया की हत्या के बाद शुरू हुआ आदिवासियों का संघर्ष जारी रहा ! तोब्ड़ो को पुलिस के आस पास होने की खबर सुन कर भूमिगत होना पड़ता था !
सुरेन्द्र बुदुली की उम्र बावन साल है !वह भी बाँध के खिलाफ आन्दोलन में शामिल था ! इन लोगों को जीत तब मिली जब विश्व बैंक ने इस इस बाँध के लिए पैसा भेजना बंद कर दिया ! विश्व बेंक की रिपोर्ट में लिखा था इस ज़मीन पर केवल धान होता है ! "लेकिन यह झूठ है! हम सब्जी भी उगाते हैं "

अब गंगाराम की याद में हर साल शहीदी दिवस मनाया जाता है ! अब हर पार्टियों के नेता जो दलाल और ठेकेदार हैं वो शहीदी दिवस का फायदा उठाना चाहते हैं ! लेकिन उस समय ये लोग सरकार के डर से गंगाराम कलुन्दिया का नाम भी नहीं लेते थे !

हजारों में 
गंगाराम कलुन्दिया अकेले आदिवासी कार्यकर्ता नहीं थे जिन्हें आदिवासियों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने के कारण मार डाला गया हो ! चाईबासा से कुछ ही किलोमीटर दूर साल के जंगल में बंडा गाँव में बीच बाज़ार में लाल सिंह मुंडा को दिन दहाड़े मार डाला गया था ! उसकी गलती यह थी की वह गाँव की पवित्र देवभूमि पर ठेकेदारों द्वारा कबाड़ खाना खोलने का विरोध कर रहा था !

' आप बस से चाईबासा जाइए ! थोडा पीछे आइये ! आपको बाहरी लोग बस से उतर कर आदिवासियों की पवित्र देवभूमि पर पेशाब करते हुए मिलेंगे !' फिलिप कुजूर ने बताया ! फिलिप कुजूर खुद आदिवासी हैं और वे झारखंड खनिज क्षेत्र समन्वय समिति के सदस्य हैं ! कुजूर ललित महतो के साथी रहे हैं !ललित महतो की पलामू में मई २००८ में हत्या कर दी गयी थी !इसी प्रकार नियामत अंसारी को माओवादियों ने २ मार्च २०११ को मार डाला था ! प्रदीप प्रसाद को पी एल ऍफ़ आई के आतंकवादियों ने २९ दिसम्बर २०११ को मार डाला था ! इसी प्रकार सिस्टर वालसा को, जो पचुवारा में आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ रहीं थी उन्हें १५ नवम्बर २०११ को मार डाला गया !

गाँव की सड़कों पर आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई में मारे गए आदिवासियों के नामो के पत्थर लगे हैं ! चाईबासा में कार्यरत सामजिक संस्था ' बिरसा ' के प्रांगण में एक पत्थर पर कुछ और नाम भी हैं ! ' वह्स्पति महतो पुरलिया में १९७७ में मारे गए , शक्तिनाथ महतो धनबाद में १९७७ में मारे गए , अजीत महतो तिरल्डीह में १९८२ में मारे गए , बीदर नाथ गुआ में १९८३ में मारे गए ! अश्विनी कुमार सवाया को १९८४ में चाईबासा में मारा गया और देवेन्द्र मांझी को गोईलकेरा १९९४ में मारा गया ! इस शिला लेख के अंत में लिखा है 'और अनाम शहीद .... हज़ारों में '

फिलिप बताते हैं की जब मैं युवा था तो एक बार दो वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ भ्रमण कर रहा था ! वे दोनों बूढ़े कार्यकर्ता हर गाँव की और इशारा कर के बताते थे ' इस गाँव में हमारे फलां कार्यकर्ता की हत्या कर दी गयी और इस गाँव में दुसरे की , हमने इन सब को लोगों के अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया था ' मैंने अंत में पलट कर पूछा आपने उन्हें लड़ना तो सिखाया पर खुद को जिंदा कैसे बचा कर रखना है यह क्यों नहीं सिखाया ? 

गंगाराम की बातें सब करते हैं लेकिन उनकी पत्नी की कोई देखभाल नहीं करता !
बिरनकुई कुलान्दिया गंगाराम की विधवा है ! इन की बेटी प्रसव के दौरान मर गयी ! सरकार ने इनके पति को मार डाला ! और इनकी बेटी की मौत अस्सी हज़ार हर साल मरने वाली माओं में से बस एक संख्या भर है !

गंगाराम के मरने के बाद उसके छोटे भाई ने गंगाराम की पन्द्रह एकड़ ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया ! गंगाराम की पत्नी को भूख से व्याकुल होकर उसी गाँव को छोड़ना पड़ा जिसे बचाने के लिए उसकी पति ने अपनी जान दे दी थी !
अब वह अपने भतीजे के पास रहती है !
गंगा राम की पत्नी गर्व से अपने पति को राष्ट्रपति द्वारा दिए गए प्रशस्ति पत्र को पढ़ती है ! उसकी आवाज़ सौम्य है ! परन्तु इस आवाज़ में पति के हत्यारों को माफी ना देने का और न्याय के लिए लड़ने का स्वर भी है !
-( लेखक जावेद इकबाल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं )
-अनुवाद - हिमांशु कुमार




2013/6/30 Adi karyakram <adi.ac...@gmail.com>
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AYUSH activities

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Jun 29, 2013, 3:01:52 PM6/29/13
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Himanshu Kumar :  यह विचार मेरे नहीं हैं -
कल एक सज्जन रेलवे स्टेशन पर कह रहे थे की अगर हिमालय में भी बस्तर की तरह नक्सलाईट होते तो जैसे बस्तर में उन्होंने सारे लालची उद्योगपतियों को बाहर ही रोके हुए रखा है वैसे ही वो पहाड़ों में भी रोके रहते . और हिमालय इस तरह से तबाह न होता .
( गांधीवादियों डूब मरो चुल्लू भर पानी में आज कोई तुम्हरा उदहारण नहीं दे रहा है की अगर गांधीवादी लोग होते तो पहाड़ का यह हाल न होता )

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Jul 4, 2013, 10:05:05 AM7/4/13
to adi...@googlegroups.com, ay...@adiyuva.in
  • सोनी सोरी का पत्र जिसे कोई भी पढना नहीं चाहता

    शनिवार दिनांक 8/10/2011 को रात में दंतेवाड़ा का पुराना थाना के ही बगल में नया थाना बना है उसी नया थाना भवन में प्रताडना किया गया है|

    रात में मैं सोई थी दो लेडीज पुलिसकर्मी मुझे उठाये है| मैंने पूछा क्यों जगा रहे हो, कहने लगे एस पी अंकित गर्ग साहब आये हैं|

    मुझे दूसरे रूम में ले गये| उस रूम में एस पी अंकित गर्ग और किरन्दूल थाने का एस डी पी ओ भी बैठा हुआ था .

    मुझे उस रूम में बिठाया गया साथ में कुछ समय तक लेडिज पुलिसकर्मी थे कुछ देर बाद उन दोनों लेडीज को रूम से बाहर आने को कहा और कहा कि यह पर जो कुछ भी हो रहा है| इस बात को किसी से नहीं कहोगे यदि ऐसा हुआ तो तुम लोग के साथ क्या कर सकता हूँ| तुम लोग अच्छी तरह जानते हो .

    वो दोनों ने कहा जी सर हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे ठीक है जाओ ऐसा कहा है| फिर मानकर आरक्षक और वसंत को बुलाया कहने लगा मानकर तुम डरना मत मैं हूँ ना| ये मदर सौद तुम्हारा क्या बिगाड़ेगी| मादर सौद तुम जानना चाहोगी ये प्लान हमने बनाया था जो कामयाब होते नजर आ रहा है|

    मानकर को कहने लगे बेटा तुम बहुत ही बहादुरी का काम किया तुमसे मैं बहुत खुश हूँ| मदर सौद मैं कौन हूँ एस पी अंकित गर्ग हूँ| जो पहले बीजापुर में था अब बहुत जल्द एस पी से बड़ा रेंज का अधिकारी बनने वाला हूँ| टेबल बजाकर कहने लगा सबकुछ यह से होता है| हम जो कहेंगे वही होगा शासन प्रशासन सरकार यह है| समझी मादर सौद |

    मानकर को तुम क्या बदनाम करोगे उसे तो अब प्रमोशन मिलेगा| काफी देर तक गन्दी गन्दी गाली देकर मानसिक रूप से प्रताडित किया| कई गालियों को मैंने पहले खत में जिक्र किया है| शायद आपको वो खत प्राप्त हुई होगी पूरी बाते खत पर बयान नहीं कर सकती कुछ कागजों में साइन करने को कहा कुछ बातों को लिखकर देने को कहा जब मैंने मना करने लगी तो कडक बातों से दबाव डाला फिर भी मैंने इंकार करने लगी तब करेंट सार्ट पैर कपड़ा में देने लगे .

    कुछ देर के लिये रोक दिया और कहने लगा हम जो कह रहे हैं| वो करो इसी में आपकी भलाई है| तुम बच जाओगी समझी| हिमाँशु, स्वामी अग्निवेश, प्रशांत भूषण, कोलिन, लिंगाराम, कविता श्रीवास्तव, मेधा पाटेकर, अरुंधती राय, नंदनी सुन्दर, मनीष कुंजम, रामा सोडी, एस्सार कंपनी का मालिक ये सब के नाम से लेटर लिखकर दो ये सब नक्सली समर्थक है|

    मैं और लिंगा दिल्ली तक यहाँ की हर खबर देते थे जो मैं जानती हूँ ये लोग बुलाने पर मैं दिल्ली गई थी एस्सार कंपनी के अधिकारी नक्सली तक रूपये पहुचानें के लिये हमेशा मनीष कुंजम, रामा सोडी और मुझे देते थे इस तरह से हमलोग नक्सली का मदद करते थे बहुत सारे बाते है | इस तरह का खत लिखने को कहा| जो मैं लिखकर नहीं दी ना ही उनके लिखा कागज पर साइन भी नहीं किया|

    मदर सौद हमारे लिखित कागज में साइन कर बहुत ही दबाव डाले मैंने कहा आप जान ले लो पर मैं जो गुनाह की नहीं और जिन लोगों के बारे में कह रहे हो| हो भी नहीं करूंगी| मैंने कहा इससे अच्छा मार दो कहने लगा ये भी कर लेते पर नहीं कर सकते क्योंकि तुम्हें दिल्ली से अरेस्ट किया गया है| अब तुम मेरी बात् नहीं मान रही हो तो सजा देकर ही जेल में भेजेंगे ताकि शर्म से जेल की दीवारों में अपना सर पटककर मर जाउंगी शिक्षित महिला हो इतनी शर्म को तो लेकर जी तो नहीं पाऊँगी|

    इस तरह का बाते कहा और फिर करंट सार्ट देने को कहा करंट सार्ट दे देकर मेरे कपड़े को उतराया गया नंगा करके खड़ा रखा| एस पी अंकित गर्ग कुर्सी में बैठकर हमे देख रहा था| शरीर को देख देखकर गन्दी गन्दी गालियां देकर बेइज्जत किया कुछ देर बाद बाहर निकला और कुछ समय बाद फिर तीन लडके को भेजा वो लडके उल्टी सीधी हरकते करने लगे और धक्का देने पर गिर गई फिर मेरे शरीर में बेदर्दी के साथ डाला गया सहा नहीं पाई बेहोश की हालात में थी काफी देर बाद होश आया तो मैंने अपने आप को जिस रूम में सोई थी वह पाई|

    तब तक सुबह हो चुका था रविवार दिनांक 9/10/2011 उस दिन भर दर्द को अंदर ही अंदर सहती रही किससे कहती वहाँ पर मेरा अपना कोई था ही नहीं| सोमवार दिनांक 10/10/2011 को सुबह लेडीज पुलिस हमे कहने लगी फ्रेश हो जाओ तुमको कोर्ट ले जाना है| तब मैंने कहा मेडम मुझे चक्कर आ रहा है| मेरी हिम्मत नहीं हो रही है| कुछ देर रुक जाओ कहने लगी तुम्हें जल्दी तैयार होने को बोले है| नहीं तो हमे गाली पडेगा| तब मैंने कहा एक कप चाय पीला दीजिये जिससे मैं हिम्मत कर सकू चाय पीया और धीरे धीरे बाथ रूम तक गई कुछ देर बाद चक्कर आया तो गिर गई|

    मैं पहले से ही बाथरूम तक जाने लायक नहीं थी फिर भी दबाव डालकर बाथरूम में प्रवेश होने के लिये भेजा गया| शायद ये लोग अच्छी हालात बनाकर मुझे कोर्ट न्यायालय में ले जाना चाहते थे| पर ऐसा नहीं हुआ बाथरूम में गिरते ही बेहोश हो गई फिर दंतेवाड़ा थाना से निकालकर दंतेवाडा अस्पताल में ले गये काफी देर बाद मुझे होश आया|

    होश आने के बाद दर्द और ज्यादा बढा गया ना हो सकी ना बिस्तर से उठ सकी पूरी तरह घायल हालात में थी प्रताडना का जिक्र किसी से उस वक्त नहीं किया मुझे धमकी दिया गया था फिर भी कोशिश करती रही कि मौका देखकर मेरे ऊपर किया गया प्रताड़ना के बारे में बताऊ पुलिसकर्मी तो हर पल मेरे साथ थे| फिर मुझे दंतेवाडा अस्पताल से करीब दो बजे गाड़ी के बीच सीट में सुला कर कोर्ट में लाया गया बहुत देर तक कोर्ट न्यायालय के बाहर ही रखे न्यायालय के अंदर नहीं ले गये और एस डी पी ओ न्यायालय के अंदर से कागजात लेकर आया और कहने लगा इसमें साइन करो.

    मैंने कहा सर मैं कुछ जज के सामने बयान देना चाहती हूँ| तब कहने लगा ये सब बाद में होगा| ये सब कागजात तुम्हें जेल भेजने के लिये है| साइन करो क्या करती इससे अच्छा तो जेल जाना ही ठीक है| सोचकर साइन कर दिया| जज मेडम बैगेर देखे सुने हमे जेल भेज दिया बहुत देर बाद कोर्ट से फिर दंतेवाडा थाना में लाए दो व्यक्ति पहले से ही थाने में मौजूद थे इतनी परेशानी होने के बाद भी वो दोनों व्यक्ति हमे पूछताछ कर रहे थे कविता श्रीवास्तव के बारे में मैंने कहा मेरी हालात ठीक नहीं है| इस वक्त मैं बात करने योग्य नहीं हूँ| मुझे जबरदस्ती ना करे|

    तब तक रामदेव मेरा भाई परिवार के साथ थाना आया और कहने लगा मेरी दीदी को इधर क्यों लाए हो कोर्ट ने तो जेल ले जाने की परमिशन दिया है| तब तुरंत जगदलपुर के लिये रवाना किये| जगदलपुर सेन्ट्रल जेल में शाम को करीब 7-8 बजे पहुंचे मेरी हालात देखकर जेल वाले ने दाखिला नहीं दिया|

    फिर दंतेवाडा का ही गार्ड हमें जगदलपुर अस्पताल में भर्ती किया| इलाज होता रहा मंगलवार दिनांक 11/10/2011 को जगदलपुर का डॉक्टर रायपुर के लिये रिफर किया| शाम को जगदलपुर अस्पताल से करीब 10-11 बजे रायपुर के लिये निकले रायपुर में बुधवार दिनांक 12/10/2011 सुबह पहुचे रायपुर अस्पताल में भर्ती किया गया इलाज होता रहा| रायपुर का गार्ड जबरदस्ती डॉक्टर से कहकर हमे उसी दिन शाम को करीब 8-9 बजे सेन्ट्रल जेल रायपुर में ले आये .

    हमने बहुत कोशिश किया कि सर हमें तकलीफ है| इलाज होने दो फिर भी जबरन ले आये और कहने लगे लाल गेट को दिखते ही अपने आप ठीक हो जाओगे ऐसे कहे है| चलने योग्य भी नहीं थी बड़ी तकलीफों का सामना करते हुए जेल की गेट को प्रवेश किया|

    स्व हस्ताक्षरित
    प्रार्थी
    श्रीमती सोनी सोरी (सोढ़ी)

https://www.facebook.com/himanshukumardantewada/posts/672617839419336


On Tuesday, July 2, 2013 10:25:49 PM UTC+5:30, AYUSH Adivasi Yuva Shakti wrote:
Himanshu Kumar  
मेरा भगवान जूतों से पीटा जाता हैं 
और उसकी पत्नी जो देवी है 
उसे टट्टी खिलाई जाती है 
और गाँव के बाहर पेड़ से बाँध कर उसके बाल काटते हैं बड़ी जाति के पुरुष 
क्योंकि वो मानते हैं कि वो असल में एक डायन है 

एक दूसरी देवी की बेटी की योनी में पत्थर भरता है तुम्हारा एक देवता 

मेरे भगवान की पैंट फटी हुई है 
मेरे भगवान के पाँव गंदे हैं 
मेरे भगवान से पसीने की तेज गंध आती है
मेरा भगवान रथ पर नहीं
टूटी हुई साइकिल पर सवार है

मेरे भगवान के पिछवाड़े में
ईंट भट्टे का मालिक डंडा घुसेड़ देता है
क्योंकि मेरा भगवान पूरी मजदूरी
मांग रहा था

मेरी देवी के साथ
पूरा थाना
महीना भर
बलात्कार करता है
अब मेरी यह देवी
अपना पेट पालने के लिये चाय की दूकान पर बर्तन मांजती है

आप मुझे नास्तिक समझ रहे थे ?

नहीं जनाब
मेरा भगवान बस आपके
सोने के जेवरों से सजे हुए
लेट कर अपनी पत्नी से पैर दबवाते हुए
भगवान से अलग तरह का है

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Jul 6, 2013, 4:48:57 AM7/6/13
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अपहृत विधायक और एक विदेशी सैलानी को छोडने के बदले माओवादियों ने जिन लोगों की सरकार से रिहाई की मांग की है उनमें आरती मांझी भी शामिल् हैं. आरती मांझी पिछले तीन वर्षों फरवरी 2010 से ओड़िसा बेरहामपुर जेल में बंद हैं. आरती को माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और स्पेशल ओपरेशन ग्रुप के जवानों ने उनका सामूहिक बलात्कार किया था. आरती मांझी की गिरफ़्तारी के बाद और जेल में बंद रहने के दौरान कई दफा पुलिसकर्मी उनका बलात्कार कर चुके हैं. बावजूद इसके उन्हें अदालत में नहीं पेश किया जा रहा है. 

सरकार और माओवादियों के बीच चल रही मौजूदा वार्ता की मध्यस्थता करने वालों में शामिल मानवाधिकार कार्यकर्ता दण्डपाणी मोहंती ने आरती मांझी के परिवार के लिये सबसे पहले न्याय की गुहार 3 जुलाई 2011 को लगायी थी. प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उन्होंने सरकार से मांग की थी कि आरती मांझी और जुलाई 2011 में गजपति जिले से गिरफ्तार किये गए उसके पिता दकासा मांझी, भाई लालू मांझी, रीता पत्रों और विक्रम पत्रों की तत्काल रिहाई की जाये. मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की ओर से इस मामले में हुई फैक्ट फाइंडिंग का हवाला देते हुए दण्डपाणी ने बलात्कार और बंदियों पर किये अत्याचार के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों पर कारवाई की भी मांग की थी. 

प्रेस विज्ञप्ति में दंपनी ने लिखा था कि पुलिस ने सामूहिक बलात्कार कर आरती का मुंह बंद करने के लिये उसे जेल में डाल दिया गया. अब पुलिस अधिकारी आरती मांझी के पिता दशरथ मांझी और भाइयों को मार पीट रहे हैं और उनसे थाने में कोरे कागजों पर दस्तखत कराये गये हैं.

दंडपानी मोहन्ती की इस करुण पुकार पर इस देश के क़ानून की इज्जत करने वाले हम जैसे लोग कुछ भी नहीं कर पाए थे. बस फेसबुक पर लिख दिया गया. एक दो लोगों ने ई मेल को आगे बढ़ा दिया, लेकिन उससे थाने के पुलिस वालों पर या आदेश देने वाले तंत्र के शीर्ष पर बैठे मुख्यमंत्री पर न कोई फर्क पड़ना था और न पड़ा. निर्दोष होने के बावजूद आरती मांझी सरकार की सारी बदमाशियों को चुपचाप सहते हुए जेल में पड़ी रही. हम सभी लोग भी हार कर चुपचाप बैठ गये और दण्डपाणी मोहन्ती का नाम गुम हो गया.

लेकिन अचानक दण्डपाणी मोहन्ती का नाम मीडिया में चमकने लगा. वो अचानक महत्वपूर्ण हो गये. फिर आरती मांझी का नाम भी में आने लगा. फिर खबर आयी कि सरकार आरती मांझी को रिहा कर रही है. पता चला कि जंगलों में रहने वाले और इस देश के पवित्र संविधान को न मानने वाले कुछ देशद्रोहियों को इस आदिवासी लड़की की परवाह है. उन लोगों ने सरकार चला रही पार्टी के एक एम्एलए को और नहाती हुई आदिवासी औरतों के फोटो खींच रहे दो विदेशियों को पकड लिया है.

फिर पता चला कि जिस दण्डपाणी मोहन्ती की चीख कोई नहीं सुन रहा था, उन्हें सरकार ने सादर घर से बुलाया है और उन्हें इस एमएलए और विदेशियों को छुड़ाने के लिये सरकार और नक्सलियों के बीच मध्यस्थता करने के लिये कहा गया है. आज खबर आ रही है कि सरकार आरती मांझी को छोड़ देगी. हम सब खुश हैं बच्ची अपने घर पहुँच जायेगी.

हम दुखी भी हैं कि अब देश में क़ानून खत्म हुआ. पुलिस हमारी बेटियों से बलात्कार करती है. हम कुछ नहीं कर पाते. हम दुखी हैं अदालतों का इकबाल खत्म हुआ. मामला अदालत में था फिर भी पुलिस आरती के पिता और भाई को घर से उठा कर ले गयी और थाने में ले जाकर पीटा और अदालत कुछ नहीं कर पायी. हम उदास हैं की हम अपनी बेटी को बचाने लायक नहीं रहे. हमें डर है कि अब अपनी बेटी के घर आ जाने के बाद उससे नज़र कैसे मिला पायेंगे? वो हमसे पूछेगी कि हमारी राष्ट्रभक्ति, कानून को पवित्र मानने की हमारी आस्था किस काम की, अगर वो उसे उस नरक से और गैरकानूनी हिरासत से मुक्त नहीं करा सकती? 

हम शर्मिंदा हैं, लेकिन हम मन ही में अपने नालायक बेटों को आशीर्वाद दे रहे हैं. हम मन ही मन में अपनी पुलिस और सरकार के हार जाने की खुशी मना रहे हैं. हम क्या कर सकते हैं इस हालत में इसके अलावा? आजादी के बाद ये हालत इतनी जल्दी आ जायेगी, हमने कभी सोचा भी नहीं था. अभी कल तक ही तो मैं इस तिरंगे को और अपनी संसद को प्राणों से भी अधिक प्यारा मानता था. अपने पिता से आज़ादी की लड़ाई के किस्से सुनते ही बचपन बीता. गांधी की जीवनी पढते हुए गाँव को पूर्ण स्वराज्य की इकाई बनाने की पुलक के साथ जवानी में भारत को आदर्श राष्ट्र बनाने का सपना लेकर अपना घर छोड़ कर गावों में चला गया था.

ये क्या भयानक हालत है. मैं खुद हैरान हूं कि आज मैं इस देश के संविधान को न मानने वालों की जीत की कामना कर रहा हूं? आश्चर्य है कि मैं सरकार के हार जाने पर खुश हूं. इसके लिये कौन ज़िम्मेदार है. वो जंगल में रहने वाले बागी इस हालत के ज़िम्मेदार हैं या सरकार में बैठे लोग ज़िम्मेदार हैं. या हमारा समाज हार गया है अपने लालच के सामने. हमने कुछ सामान्य से सुखों के लिये धनपतियों को सब कुछ बेच दिया.
अपनी आज़ादी, अपना संविधान, अपनी संसद, अपनी सरकार, अपनी पुलिस - सब रख दिया धन के चरणों में. अब जिसके पास धन उसके चाकर सब कुछ. अब क्या राष्ट्र, क्या राष्ट्र का गर्व? सब नष्ट हुआ. सारे हसीं सपने चूर चूर हुए. अब आँख के आंसू सूखेंगे तो आगे देखूँगा किधर जाना है. अभी तो नजर डबडबाई हुई है.

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Jul 6, 2013, 4:53:26 AM7/6/13
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Is anybody listening ? Soni writes from Jail.

On the night of Saturday, 8.10.2011, in the new police station in Dantewada which has been built next to the old police-station, I was tortured. That night, when I was sleeping, I was woken up by two policewomen. I asked them, why am I being woken? I was told that SP Ankit Garg has come. I was taken to a second room. In that room, SP Ankit Garg and the SDPO of Kirandul Police Station were seated. I was made to sit in that room for some time along with the women police.
After a while, the two police women were asked to go out of the room. They were told, “Whatever is happening in this room should stay in this room—if word gets out, you know very well what will happen to you.” The two of them said, “Yes, sir. We won’t tell anyone.” “Okay. Go,” they were told.
After this, Constable Mankar and Basant were called. He told Mankar. “Don’t be afraid. After all, I am here for you. What will this bitch do to you? Bitch, you should know that the plan was hatched by us together, and it looks like the plan is yielding success.” He told Mankar, “Son, you have acted very bravely. I am very happy with you.” “Bitch, do you know who I am? I am SP Ankit Garg … who used to be in Bijapur earlier, and am soon going to be promoted from an SP to an official of the big range.” He banged on the table and said, “Everything happens from here. Whatever we order will be carried out. We are the administration, authority and government. Do you understand, you bitch? How will you defame Mankar? He will now be given a promotion.”
For a long time, he verbally abused me and tortured me psychologically. I have referred to the verbal abuse in my earlier letter. Maybe you have received that letter. I can’t write about all the abuses in this letter. I was asked to sign on some papers and was asked to write down some things. When I refused, I was pressured through stern talk. I still refused, and then they started giving me (electric) current in my feet, legs and on my clothes. For some time, they stopped doing this and told me, “Do whatever we are asking you to do. Your well-being lies in this. You will be safe, do you understand? Write a letter saying that Himanshu, Swami Agnivesh, Prashant Bhushan, Colin, Lingaram, Kavita Srivastav, Medha Patkar, Arundhati Roy, Nandini Sundar, Manish Kunjam, Rama Sodhi, the owner of Essar company, are all Naxalite supporters. That Linga and I used to send all news from here to Delhi. That I went to Delhi since they had asked me to come. That Essar company officials used to always give money to Naxalites through Manish Kunjam, Rama Sodhi, and me. This is the way in which we used to help the Naxalites…” There were a lot of things. This is how they asked me to write a letter.
I did not write such a letter, nor did I sign the papers on which they had written. “Bitch, sign the papers which we have written!”—a lot of pressure was put on me. I told them that I am willing to die but I have not committed any crime and I will also not write about the people you are asking me to write about. I told them that it is better that they kill me. He said, “This also would have been done, but we can’t do it now since you have been arrested in Delhi. However, since you are not obeying my commands, I will send you back only after punishing you. You will be so ashamed of yourself; you will beat your head against the walls of the jail and die of shame. You are an educated woman; you will not be able to live with this shame.”
He said these kinds of things and ordered that electric shocks be given. After repeatedly giving me electric shocks, my clothes were taken off. I was made to stand naked. SP Ankit Garg was watching me, sitting on his chair. While looking at my body, he abused me in filthy language and humiliated me. After some time, he went out and in a little while, he sent three boys. These boys started molesting me and I fell after they pushed me. Then they put things inside my body in a brutal manner. I couldn’t bear the pain, I was almost unconscious. After a long time, I regained consciousness and found myself in the room in which I had slept. By then, it was already morning.
On Sunday, 9-10-2011, I bore the pain quietly, all by myself. Whom could I tell; there was no one that was on my side there. On the morning of Monday, 10-10-2011, the women police told me to freshen up since I had to be taken to court. I told them, “Madam, I am feeling quite dizzy. I am not feeling strong enough. Please wait for a bit.” They said, “They are asking to have you ready quickly. Otherwise, they will shower abuses on us.” Then I asked for a cup of tea so that I could get some strength. I drank some tea, and slowly got up and went to the bathroom. After a while, I felt dizzy and fell down. I was anyway not fit enough to go to the bathroom, but I was pressured to go to the bathroom to freshen up. Maybe these people wanted to present me in a good condition in front of the court. But this could not happen. As soon as I fell in the bathroom, I became unconscious. Then, they took me from the Dantewada police station to the Dantewada hospital. After a long time, I regained consciousness. After regaining consciousness, my pains had increased and I could not stand up, nor could I even get off the bed. I was in a fully injured condition.
I did not mention my torture to anyone at that time. I had been threatened. Still, I kept looking for an opportunity to talk about my torture, but I was surrounded by police at all times. Then, around 2 pm, I was taken from the Dantewada hospital, lying down on the seat of the police vehicle, and brought to the court. For a long time, we were kept outside the court and were not taken inside the court. SDPO brought some papers from inside the court and asked me to sign them. I told him, “Sir, I want to give some testimony in front of the Judge.” He told me that all that will happen later. All these papers are to send you to jail, sign them. What could I do? I thought that going to jail is better than this. The Judge Madam did not hear me out, did not talk to me, and just sent me off to jail.
After the court, they brought me to Dantewada police station. Two people were already present in the Dantewada police station. In spite of all my difficulty, they started to interrogate me about Kavita Srivastav. I told them that I am not feeling well, I am not in any shape to talk. Please do not force me. By that time, my brother Ramdev had reached the police station along with my family. He started asking, “why have you brought my sister here? The court had given you the permission to take her to the jail.” Then, they immediately took me to the Jagdalpur. We reached the Jagdalpur Central Jail around 7-8 pm. On seeing my condition, the jail authorities refused to admit me. Then the guard (unclear) of Dantewada only got me admitted into the Jagdalpur hospital. They treated me. Then, on Tuesday, 11-10-2011, the doctor at Jagdalpur hospital referred me to Raipur. In the evening around 10-11 pm, we left for Raipur and reached Raipur on Wednesday morning, 12-10-2011. I was treated there. The Raipur guard forced the doctor and brought me to the Central Jail Raipur around 8-9 pm. I tried my best to tell them, “Sir, I am in a lot of pain. Please let my treatment continue.” Then also, they brought me forcibly and told me, “You will get better immediately on seeing the red gate.” I wasn’t in any condition even to walk. I managed to enter the gate of the jail with a lot of difficulty.
Applicant,
Soni Sori

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Jul 6, 2013, 5:06:16 AM7/6/13
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खौफनाक यह भी है कि हमारी पुलिस द्वारा की गयी सारी हत्याएं खुद ब खुद जायज़ मान ली जाती हैं ! हम सही हैं क्योंकि हम पुलिस हैं और जो पुलिस नहीं हैं वो निश्चित तौर पर चोर ही होंगे !बचपन से हम चोर पुलिस ही खेलते हुए बड़े हुए हैं ! पर अब बालिग होने का वख्त है ! शहीद वो भी माने जा सकते हैं जो पुलिस नहीं थे , और कातिल वो भी हो सकते हैं जो पुलिस थे !



आईबी ने इशरत मामले में सरकार से कहा है कि सीबीआई के कारण देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में है। सरकार ने देश से कहा है कि माओवादियों के कारण आंतरिक सुरक्षा खतरे में है। अब हम भला किससे कहें कि देश किसके कारण खतरे में है! सब खतरे की बात उसी से कह रहे हैं जिसके कारण सीमा आज़ाद, जीतन मरांडी, शीतल साठे जैसे लोगों की जान खतरे में है। वैसे हम बहुत कुछ कहना चाहते हैं लेकिन अपनी तो यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते


केलेंडर में छपे सैनिकों का जुबानी समर्थन कीजिये ! केलेंडर में छपे भगवान के लिये दुसरे सभी को गाली दीजिए ! केलेंडर में छपे देश के नक़्शे के लिये अपने देशवासियों का ही खून बहाने वाली फौज के गुण गाइए ! अपने लिये मुनाफा बटोरने वाला व्यापार कीजिये ! और फिर देश के गरीबों की हालत बदलने के लिये अपनी पूरी जिंदगी तबाह कर देने वाले लोगों को पीटीए , उन्हें देशद्रोही कहिये नक्सल कहिये ! जियो केलेंडर छाप देशभक्तों 

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Jul 6, 2013, 6:41:03 AM7/6/13
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तो सवाल तीन हैं। क्या झारखंड के आदिवासी नक्सलियों के साथ है। क्या पुलिस पर हमला कर आदिवासी अपने क्षेत्र को आजाद चाहते हैं। और क्या आदिवासियों में सरकारी योजनाओ को लेकर आक्रोश है। यह तीन सवाल इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि केन्द्र सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्री किशोर चन्द्र देव ने 12 दिन पहले ही यह माना कि झारखंड के आदिवासियों में सरकारी योजनाओं और खनन को लेकर बेहद आक्रोश है। मंत्री ने 21 जून को बकायदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पत्र लिखा।
जिसमें लिखा की संविधान की धज्जियां उड़ाते हुये गैर कानूनी तरीके से झारखंड में खनन हो रहा है और इसपर तत्काल रोक लगनी चाहिये। मंत्री ने संविधान के अनुच्चछेद 244 और शिड्यूल 5 का हवाला देकर आदिवासियों के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया। और इसके लिये खास तौर से पश्चमी सिंहभूम के सारंडा इलाके का जिक्र किया।
लेकिन महत्वपूर्ण यह भी है कि जिस पाकुड जिले के एसपी की मौत नक्सलियो के हमले में हुई उसी पाकुड के अमरापाडा में पंचवारा कोयले की खादान से कोयला निकाल कर पंजाब भेजा जा रहा है और यहां के आदिवासी लगातार उसका विरोध भी करते रहे हैं। लेकिन कोयला खादान के मालिक बंगाल इमटा और ईसीएल की बपौती ऐसी है कि विरोध करने वाले आदिवासियों को पकड़ कर मारने पीटने का काम पुलिस खादान मालिकों के इशारे पर करती रहती है।
असल में समूचे झारखंड में बीते दस बरस में ढाई दर्जन से ज्यादा ऐसी योजनाओं पर हरी झंडी दी गई है, जो आदिवासियों को उन्हीं की जमीन से बेदखल और संविधान के तहत आदिवासियों के हक के सारे सवाल हाशिये पर ढकेलती है। लेकिन कारपोरेट पैसे और योजनाओं के मुनाफे के खेल में समूचे झारखंड को ही ताक पर रखा गया है। और यही सवाल पहली बार मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल के आदिवासी मामलो के मंत्री ने भी उठाया है लेकिन कांग्रेस ने इस दिशा में कोई कदम उटाने के बदले झरखंड में जोड़ तोड़ से सरकार कैसे बने इसके लिये झमुमो के साथ कांग्रेस दिल्ली में बैठक में ही मशगुल है। और त्रासदी देखिये जब हमला हुआ उस वक्त दिल्ली में झारखंड के नेता काग्रेस के साथ बैठकर जोड़-तोड़ की अपनी सरकार बनाने में मशगुल थे। यानी खाकी का खून बहेगा और खादी मौज करेगा। वह भी उस इलाके में जहां 72 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। 73फिसदी महिलाएं एनीमिक हैं और 52 फिसदी बच्चे कुपोषित हैं।

आलेख : पुण्य प्रसून वाजपेयी (वरिष्ठ पत्रकार )

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Jul 6, 2013, 8:25:23 AM7/6/13
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"नियमगिरि में 12 गाँव ऐसे चुने गए हैं जहाँ सरकार अपनी मंशा के अनुरूप परिणाम निकलवा सके"

"कालाहांडी में जिन पांच गाँव को चुना गया है, उनमें से एक में केवल एक ही परिवार रहता है जबकि अन्य गाँव में 10 या 12 परिवार ही बसते हैं"

"स्थानीय प्रशासन की ओर से नियमगिरि के आस पास के गाँव वालों को कहा गया है कि वे जंगल अधिकार कानून के तहत अपने अपने दावे 14 जुलाई तक अपने सरपंच के पास पेश करें. सरकार केवल अखबारों में इस बारे में विज्ञापन निकाल कर चुप बैठ गयी है, जबकि यहाँ के ज़्यादातर आदिवासी न अखबार पढ़ते हैं और न ही उड़िया पढ़ पाते हैं"

"यहाँ बसने वाले डोंगरिया कंध आदिवासी नियमगिरि पहाड़ को अपना देवता मानते हैं और 'नियम रजा' की पूजा करते है"

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Jul 6, 2013, 8:27:22 AM7/6/13
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'भगवान' का फैसला करेगी 12 गांव की पंचायत

संदीप साहू, भुवनेश्वर से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए,  शनिवार, 6 जुलाई, 2013 को 12:59 IST तक के समाचार

केंद्र सरकार और स्थानीय आदिवासियों के कड़े विरोध के बावजूद ओडिशा सरकार ने शुक्रवार को नियमगिरी पर्वत में बॉक्साइट के खनन के बारे में निर्णय लेने के लिए 12 ग्राम सभाओं की बैठक की तिथियों की घोषणा कर दी.

18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर्वत में खनन के बारे में अंतिम निर्णय स्थानीय ग्राम सभाओं पर छोड़ दिया था और तीन महीनों के अन्दर खुदाई से प्रभावित होने वाले सभी गावों में ग्राम सभा की बैठक बुलाकर इस मुद्दे पर उनकी राय लेने का आदेश दिया था.

क्लिक करें देखिए: नियमगिरी के आदिवासी

डोंगरिया कंध आदिवासी इस पर्वत को पवित्र मानते हैं. नियमगिरि पर्वत और इसके आसपास 100 से भी अधिक गाँव हैं और केंद्र आदिवासी मंत्रालय और स्थानीय आदिवासी, दोनों ने राज्य सरकार से आग्रह किया था कि इन सभी गावों में ग्राम सभा बुलाई जाए.

लेकिन सभी आपत्तियों के बावजूद केवल 12 गावों में ग्राम सभा की घोषणा से अब यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य सरकार ने इस बारे में केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय की आपत्तियों को नज़रंदाज़ करने करने का मन बना लिया है.

'वेदांता की तरफदारी'

आदिवासी कल्याण मंत्री लालबिहारी हिम्रिका की घोषणा के अनुसार रायगडा जिले में सात और कालाहांडी जिले में पांच गावों में ही ग्राम सभा की बैठक बुलाई जाएगी. रायगडा जिले के सात गाँव में ग्राम सभा 18 जुलाई से 19 अगस्त के बीच होगी जबकि कालाहांडी जिले के पांच गाँव में ग्राम सभा 23 जुलाई से 30 जुलाई के बीच होगी.

क्लिक करें पढ़िए: ग़रीबों को आदिवासियों को दबाकर विकास नहीं

नियमगिरि में बॉक्साइट खनन का विरोध करने वालों ने राज्य सरकार के इस निर्णय की कड़ी निंदा की है.

2004 में इस पर्वत में खुदाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले जाने माने पर्यावरणविद् बिस्वजीत मोहंती ने सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बीबीसी से कहा, "इससे यह स्पष्ट हो गया की ओडिशा सरकार पर्यावरण और आदिवासी अधिकार से जुड़े सभी कानूनों और संविधानिक विधि व्यवस्था को ताक पर रखते हुए वेदांता कंपनी की तरफदारी करने पर तुली हुई है."

हालांकि आदिवासी विकास मंत्री हिम्रिका ने इस आरोप का खंडन किया है. उन्होंने कहा, "क्लिक करें वेदांता से सरकार का कोई लेना देना नहीं है. हमने ग्राम सभा के आयोजन के बारे में विधि विभाग और अधिवक्ता जनरल दोनों की राय ली और दोनों ने कहा कि हमारा फैसला सही है."

राज्यपाल से गुहार

2003 में राज्य सरकार के ओडिशा खान निगम यानी ओएमसी और वेदांता कंपनी के बीच हुए समझौते के तहत सरकार ने वेदांता को अगले 30 वर्ष में लगभग 15 करोड़ टन बॉक्साइट खनन की अनुमति दी थी.

लेकिन नियमगिरि को देवता के रूप में पूजने वाले स्थानीय डोंगरिया कंध आदिवासी और ‘सर्वाइवल इंटरनेशनल’ तथा ‘एक्शन ऐड’ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के कड़े विरोध और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामलों के कारण यहाँ खुदाई शुरू नहीं हो पाई है. इसके परिणाम स्वरुप पहाड़ के ठीक नीचे लान्जिगढ़ में क्लिक करें वेदांता द्वारा लगाई गई 10 लाख टन की रिफाइनरी पिछले दिसम्बर से बंद पड़ी है .

ग्राम सभाओं की संख्या 12 में सीमित रखने के राज्य सरकार के निर्णय के बारे में नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय ने पिछले महीने ओडिशा सरकार को दो पत्र लिखे. 7 जून को विभागीय सचिव विभा पूरी दास ने राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव बिजय कुमार पटनायक के पास लिखे गए अपने पत्र में कहा की राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की राय का गलत मतलब निकाला है.

इसके कुछ ही दिन बाद विभागीय मंत्री वी किशोर चन्द्रदेओ ने सीधे राज्यपाल एससी जमीर को ख़त लिखा और उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया.

अपने पत्र में देओ ने राज्य सरकार पर वेदांता एल्युमीनियम कंपनी की तरफदारी करने का सीधा आरोप लगाते हुए राज्यपाल से अपील की कि वे अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल कर यह निश्चित करें कि नियमगिरि पहाड़ के इर्दगिर्द उन सभी गाँव में ग्राम सभा हो, जिनके लोग बॉक्साइट के खनन से प्रभावित होंगे.

इसके पहले स्थानीय डोंगरिया कंध आदिवासियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी राज्यपाल से मिलकर नियमगिरि के पास स्थित सभी 104 गाँव में ग्राम सभा कराने का आग्रह किया.

'नहीं करने देंगे खुदाई'

नियमगिरि में खुदाई का विरोध कर रहे संगठनों का कहना है राज्य सरकार केवल खानापूर्ति कर रही है और लोगों की राय जानने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है.

उनका आरोप है कि 12 गाँव ऐसे चुने गए हैं कि वहां सरकार अपनी मंशा के अनुरूप परिणाम निकलवा सके. इस बारे में वो इस बात का उल्लेख करते हैं कि कालाहांडी में जिन पांच गावों को चुना गया है, उनमें से एक इज्रुपा नाम के गांव में केवल एक ही परिवार रहता है जबकि अन्य गाँव में 10 या 12 परिवार ही बसते हैं.

नियमगिरि के आसपास रहने वाले सभी आदिवासी इस पर्वत को 'नियम राजा' कहते हैं और उसकी पूजा करते हैं. डोंगरिया कंध आदिवासियों के नेता कुमुटी माझी ने कहा, "सरकार चाहे कुछ भी कर ले. लेकिन हम मरते दम तक नियमगिरी पहाड़ में खुदाई करने नहीं देंगे."

नियमगिरि इलाके से मिल रही खबरों के अनुसार कम से कम चार सरपंचों ने अपने बल बूते पर ग्राम सभा आयोजित करने का निर्णय लिया है. इनमें से तीन पंचायत रायगडा जिले में हैं और एक कालाहांडी में. इन चार पंचायतों के अन्दर लगभग 60 गाँव आते हैं.

रायगडा जिले के मुनिखोल पंचायत के सरपंच मालती काद्राका कहती हैं, "संविधान ने हमें ग्राम सभा की बैठक बुलाने का अधिकार दिया है और इसका इस्तेमाल कर हम बैठक बुलाएंगे और ग्राम सभा के निर्णय सीधे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजेंगे."

समाजसेवी की मुहिम

स्थानीय प्रशासन ने स्थानीय लोगों से कहा है की वे जंगल अधिकार कानून के तहत अपने अपने दावे 14 जुलाई तक अपने अपने सरपंच के पास पेश करें. लेकिन यह सूचना इस दुर्गम इलाके में रहनेवाले अधिकांश लोगों के पास अभी तक नहीं पहुचं पाई है.

वेदांता विरोधियों का कहना है कि सरकार केवल ओडिया अखबारों में इस बारे में विज्ञापन निकाल कर चुप बैठ गई है, जबकि यहाँ के ज्यादातर आदिवासी न अखबार पढ़ते हैं और न ही ओडिया पढ़ पाते हैं.

सरकार की उदासीनता को देख एक स्थानीय पत्रकार और समाजसेवी मुहम्मद असलम ने विज्ञापन के मज़मून मोबाइल फ़ोन के जरिए लोगों तक उनकी अपनी भाषा यानी कुई में पहुँचाने का बीड़ा उठाया है.

लेकिन इस इलाके में मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या इतनी कम है और मोबाइल नेटवर्क इतना ख़राब है कि यह सूचना 14 जुलाई तक बहुत लोगों तक पहुँच पाएगी, ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती.

18 अप्रैल को सुप्रीमे कोर्ट ने नियमगिरि में बॉक्साइट खनन के बारे में अंतिम निर्णय स्थानीय ग्राम सभाओं पर छोड़ दिया था और तीन महीने के अन्दर यह प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया था.

कोर्ट ने केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय को इस प्रक्रिया की देखरेख की जिम्मेदारी सौपते हुए उसे यह निश्चित करने के लिए कहा था की ग्राम सभा के जरिए उन सभी की राय ली जाये, जिनका नियमगिरि पहाड़ से धार्मिक और भावनात्मक संबंध है.


AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Jul 9, 2013, 12:59:23 PM7/9/13
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|| पुरे देश के आदिवासी युवा एकजुट हो || 
आज छत्तीसगड हाई कोर्ट ने सोनी सोरी और कोड़ोलिपा लिंगा की जमानत याचिका ख़ारिज कर दी जब की इन पर छत्तीसगड पुलिश दुआरा लागाये आठ फर्जी मुकदमो में से ७ मुकदमो में बरी हो चुके है दोस्तों हमारे देश में जायदातर आदिवासिओ के पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी की वयवस्था भी नहीं है तो भला ये भोले भाले आदिवासी अपने आपको बेगुनाह साबित करने के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कहा से जायेगे जबकि हमारे देश में हमारी ही चुनी हूवी सरकारे आदिवासिओ की रक्षा करने की बजाय आदिवासिओ पर फर्जी मुकदमो में फसा फसा कर हजारो बेकसूर आदिवासिओ महिलायों और युवको को जेलों में ठूस रही है और इनकी चिंता करनेवाला कोई नहीं है जो हमारे जनप्रतिनिधि आदिवासी विधयक और सांसद है आरक्षित सीटों से चुनाव जितने के बाद राजनितिक पार्टियों की गुलामगिरी करते है आज छत्तीसगड ,मध्यप्रदेश ,झारखण्ड ,ओड़िसा बिहार ,आंध्राप्रदेश ,महाराष्ट्रा ,में नक्षलायट के नाम पर ९० प्रतिशत आदिवासी युवक और युवतिया नक्सलायट के नाम पर जेलों में कैद है पर इनकी चिंता करने वाल कोई नहीं है जो भी आदिवासी अपने जमीन छिनने का वरोध करता है उसे नक्सलायट के नाम पर जेलो में डाल दिया जा रहा है दोस्तों आप सभी से अनुरोध है अगर देश में आदिवासिओ के अस्तित्व को बचाना है तो आप सभी युवाओ को बहुत जल्दी एकजूट होना पडेगा नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब पुरे आदिवासी समुदाय को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की जार्ज पर मिटा दिया जाएगा 
@जय आदिवासी युवा शक्ति @

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Jul 10, 2013, 10:15:53 AM7/10/13
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||आदिवासिओ का शिकार करती है बिहार पुलिस -इंडिया टुडे १० जुलाई २०१३ ||

दोस्तों देश में आज आदिवासिओ को बहुत ही निर्मम तरीके से मार जा रहा है कोई भी आदिवासी गाँवो में जाता है और देश के मूल निवासी भोलेभाले आदिवासिओ का शिकार कर लेते है कुछ वर्षो पहले हम लोगो फिल्मो में देखा करते थे की कुछ लोग बंदूके लेकर पशु पक्षियों का शिकार करने जाते थे पर आज कुछ स्वयंसेवी संस्थाओ के दबाव में आकर सरकार ने पशु -पक्षिओ के शिकार पर प्रतिबंद लगा दिया तो आज देश में पुलिश और और सी आर पी ऍफ़ के लोग आदिवासिओ का ही शिकार करने लगे है पर इस ना तो देश के आदिवासी विधायको का ध्यान जाता और ना ही देश ४७ आदिवासी सांसदों का ध्यान जाता है और तो देश में पशु पक्षिओ के संरक्षण के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाले देश के किसी भी संगठन का ध्यान नहीं जाता है 
२४ जून २०१३ १३ को बिहार के पश्चिम चंपारण जिले दरदरी गाँव में पुलिश ने पाच आदिवासी युवाओं का शिकार कर लिया जो अपनी जिंदगी के सुरुवाती चरण में थे जो की पदाई करके नौकरी चाहते थे जो छात्र थे उनमे से 
१ भूदेव -राजेस्थान के कोटा में इन्जीनिअरिंग की तैयारी कर रहा था 
२ अनूप १० वी कक्षा का विद्यार्थी था जो सेमरीडीह गाँव के भीम चेत्रिया का बेटा था 
३ ब्रह्मदेव ख़तईत और उसका भाई धर्म जीत ख़तईत ये दोनों भाई बाजार से खेत में डालने के लिए खाद लेने जा रहे थे 
४ शिव मोहन उम्र १० वर्ष
दो दर्जन से जायदा जख्मी आदिवासी बगहां ,हरनाताड़,बेतिया पटना ,और गोरख्पुअर के अस्पतालों में जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे है
दोस्तों इसी तरह के नरसंहार इसी साल छत्तीसगड़ के बीजापुर जिले के एडमसेटा में हुआ था जिसमे करमा नृत्य कर रहे १० जयदा आदिवासियो को बेरहमी से सी आर पि फ के जवानो ने मार दिया 
और पिछले साल साल भी इसी तरह छत्तीसगड़ के बीजापुर जिले सारकेगुडा शादी समारोह में नाच रहे २० आदिवासियो को निर्ममता से मार दिया गया
सारी खबरे अकबारो और टीवी चेनलो ने देखने के बावजूद देश सारे आदिवासी युवा भूल जाते है और फेसबुक पर लडकियों से चेटिंग में हजारो घंटो का समय बर्बाद करते है पर इतना नहीं सोचते है की हमारे ही अपने भाइयो और बहनों को क्योँ मारा जा रहा है 
सत्ताधारी जे डी यू के ११८ में से पर ५८ विधायको क्रिमिनल केश चल रहे है और यही स्थति देश के सभी राज्यों की और केंद्र सरकार की है लेकिन ये सब कब तक चलता रहेगा कब जागेगा मेरा आदिवासी सामाज कब उठेगे मेरे आदिवासी सामाज के सोयेहुवे आदिवासी युवा 

@जय आदिवासी युवा शक्ति @



AYUSH activities

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Jul 21, 2013, 2:11:59 AM7/21/13
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छत्तीसगढ़ की सरकार ने आदिवासियों की ज़मीन छीनने के लिये आदिवासियों को उनके गाँव से बाहर भगाने की योजना बनाई . सरकार ने हजारों गुंडों को जमा किया उन्हें राइफलें दीं और उनसे कहा कि जाओ गाँव वालों को भगा दो .

इन गुंडों को सरकार ने नाम दिया स्पेशल पुलिस आफिसर यानि एसपीओ . इन गुन्डे एसपीओ की फौज के साथ सरकार ने सीआरपीएफ और पुलिस को भी साथ मे जोड़ दिया . और इस तरह इन हज़ारों लोगों को आदिवासियों के गाँव खाली कराने का आदेश दे दिया गया .

इन सरकारी गुंडा फौज को यह छूट भी दी गई कि बलात्कार करने और लूटपाट करने पर भी आपके खिलाफ कोई कारवाही नहीं की जायेगी .

इन सरकारी गुंडों ने दंतेवाड़ा जिले मे साढ़े छह सौ से ज़्यादा गाँव जला दिये .

हमारे कुछ मित्रों ने मामला सर्वोच्च सर्वोच्च न्यायालय मे उठाया सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी गाँव को दोबारा बसाया जाए . सभी दोषी पुलिस वालों के विरुद्ध मामले दर्ज किये जाएँ .
लेकिन आज तक किसी आदिवासी को मुआवजा नहीं दिया गया . किसी पुलिस वाले के खिलाफ मामला दर्ज़ नहीं किया गया .

सरकार ने बहाना बनाया कि कोई गाँव वाला सामने आकर शिकायत ही दर्ज नहीं करवाता. कोई गाँव वाला मुआवजा नहीं मांगता .

हमने साढ़े पांच सौ गाँव वालों की शिकायतें कलेक्टर को सौंपी कि इन्हें मुआवजा दीजिए . इतनी ही शिकायतें पुलिस अधीक्षक को सौंपी कि इन के अनुसार एफआईआर दर्ज़ कीजिये .

लेकिन एक भी आदिवासी को ना मुआवजा मिला ना किसी दोषी पुलिस वाले के खिलाफ मामला दर्ज़ हुआ .

अभी इसी हफ्ते छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कोंडासावली गाँव के लोग सुकमा के कलेक्टर के पास गये . गाँव वालों ने बताया कि किस गाँव वाले की हत्या पुलिस वालों ने करी थी . किस महिला के साथ पुलिस वालों ने थाने मे ले जाकर बलात्कार किया .

लेकिन एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी अभी सुकमा के कलेक्टर ने कोई कार्यवाही नहीं की है .

हम अगर अपने प्रशासन , न्याय तन्त्र और सामजिक सरोकारों को खुद ही नष्ट कर देंगे तो फिर नक्सलियों को कुछ करने की क्या ज़रूरत बचेगी ?

...

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Aug 6, 2013, 12:22:43 PM8/6/13
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जेल में सोनी सोरी बहुत कमज़ोर हो गयी है . 
जेल की डाक्टर अंजना भास्कर के लिखे नोट के अनुसार दिनाक 22-05-2013 सोनी सोरी का होमोग्लोबिन 8.0 से गिर कर दो दिन बाद ही दिनांक 24-05-2013 को 5.4 के चिंता जनक स्तर तक कम हो गया . 
सोनी सोरी की यह जांच सोनी द्वारा बहुत कमजोरी महसूस करने की बार बार शिकायत करने के बाद करी गयी थी . 
सोनी सोरी को यह जांच करवाने के लिए जगदलपुर के महारानी अस्पताल में जंजीरों से बाँध कर ले जाया गया . 
सोनी सोरी ने खुद को जंजीरों से बाँध कर अस्पताल ले जाने का विरोध किया. अगले दिन सोनी सोरी को अस्पताल में बिना जंजीरों में बांधे ले जाया गया जहाँ सोनी सोरी को तीन बोतल खून चढाया गया . 
डाक्टरों के मुताबिक़ इसके बाद सोनी सोरी का होमोग्लोबिन फिर से 8.0 के स्तर पर पहुँच गया .

दिनांक 29.07.2013 को सोनी सोरी को एक्सपायरी डेट की पुरानी दवाई दी गयी दवा का नाम है Fluconazole Tablets IP NUFORCE – 200” of Batch No. 11NFL- 005 
इस दवा के बनने का दिनांक 05/2011 अंकित है और एक्सपायरी दिनांक 04/2013 था फिर भी वह एक्सपायर्ड दवा सोनी सोरी को दी गयी .
हमें भय है की सोनी सोरी को इरादतन उचित इलाज से वंचित किया जा रहा है ताकि सोनी सोरी के स्वास्थ्य को अधिकतम हानि पहुंचाई जा सके .

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

unread,
Aug 6, 2013, 12:28:41 PM8/6/13
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मैं शायद इस राज़ को दिल में ले कर ही मर जाऊंगा कि सोनी सोरी के पति के इलाज के लिए पैसा भेजने के लिए मैंने कितने बड़ी बड़ी संस्थाओं और व्यक्तियों को फोन पर मेसेज भेजे , ई मेल किये लेकिन किसी ने जवाब भी नहीं दिया। 
सोनी सोरी की बारह साल की बेटी मुझसे रोज़ फोन पर पूछती थी की अंकल क्या आप पापा के इलाज के लिए कल पैसा भेज देंगे। मैं रोज़ इस उम्मीद में उस बच्ची को आश्वासन देता था कि कहीं से किसी का शायद जवाब आ ही जाएगा। 
उस बच्ची के पिता तो नहीं बचे। अब सोनी सोरी की उस बेटी की पढ़ाई भी बंद हो जायेगी। हक के लिए आवाज़ उठाने वालों के लोगों के बच्चों को ये सब तो झेलना ही पड़ता है। ये बच्ची भी झेलेगी। 
खैर छोडिये ये सब, आइये कुछ और बात करें।


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Police has fulfilled its promise to Soni Sori

The police had made a pledge to Soni Sori and her nephew Linga Kodopi. The Chhattisgarh police had locked up Linga Kodopi in the Dantewada police station for forty days, and pressured him incessantly to become a special police officer. His aunt Soni Sori filed a petition in the court, and was able to free her nephew from the clutches of the police. This audacious deed of her angered the police to no end. The police warned both Soni Sori and Linga Kodopi that since they had insulted them, they would make sure that her whole family was destroyed. They also threatened that even if she and her nephew were released by the court, they would kill them both.
At first, the police slapped a false case against Soni Sori's husband Anil. A little while later, Soni and her nephew Linga Kodopi were also trapped in the same case.
Soni Sori's husband was freed last month. However, Anil was in no position to go home. The police had, after all, fulfilled their promise. They have succeeded in turning Anil into a vegetable. He cannot talk to anyone any more, nor is he able to communicate all what has been done to him.
On the morning of 27th of April, the day when he was going to be released through the court, Soni and Anil had met in the prison. Anil was hale and hearty then.
A little while later, when the police van was ready to take Soni and Linga to Dantewada, Soni, sensing that something was wrong, asked the police why, when her husband Anil's appearance was also required in the court, they were not taking him along. Since the police were evasive, Soni became adamant and insisted that she would only go to the court if accompanied by her husband. The police responded that someone from Delhi had come to meet her at the Dantewada court, and so it was important for her and Linga to come along.
Soni Sori went to the court, but there was no one there to see her. The police had lied. The court declared Soni, Soni's husband, and her nephew Linga Kodopi - all of them - innocent. Soni was very happy that day because her husband was about to be released and he would finally get to see their children. There are several other false cases against Soni Sori and Linga Kodopi, which is why they have not been freed as yet.
But as she returned to the prison, she was aghast. The police brought her to the hospital from the prison to see her husband. Soni's husband was lying there in a helpless state, and had lost control over all his body parts. He had become almost a living corpse. He could not even speak. The prison authorities said that they had released him, and that there was no case against him now.
The police brought Soni Sori back to the prison. Her husband's freedom is now meaningless. He cannot even recognize his own children. The police has therefore fulfilled the first installment of the promise they made to Soni Sori - that they would destroy her family. They are eagerly waiting to fulfill the rest of the installments.
Not too long ago, the police had punished Soni Sori for daring to go to the court, by inserting pebbles in her private parts. The police officer who committed this heinous act was awarded a medal of bravery by the President of India.
This is the first act of a frightful play about Indian democracy and the Indian judicial system being staged before our very eyes. The weak-hearted are advised to close their eyes, because the following acts are expected to be bloodier and gorier.

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Anil Futane — the husband of tribal schoolteacher Soni Sori, who was arrested on the charge of aiding Maoists — died on Friday of some undiagnosed neurological condition that paralysed him from waist down. “Wish he was not married at all …perhaps he would have survived longer,” said a friend of Mr. Futane, on condition of anonymity. Mr Futane — who used to put his dilapidated Bolero on rent to run a household of eight — passed away in Gidam town in Dantewada. Mr. Futane was arrested for allegedly planning and executing an attack on local Congress leader Awdesh Gautam, a few months before Ms. Sori was.

“We did not know about his [Futane’s] fault, even long after his arrest, till finally one of our friends in district police explained it to us,” one of Mr. Futane’s relatives said. Mr Futane’s “problem,” his friend felt, was his wife . “If he was not Soni’s husband, perhaps he would not have undergone so much pressure … would have survived longer,” said Mr. Futane’s friend.

Mr. Futane, said lawyer K.K. Dubey, “ was picked up in July 2010 for masterminding an attack about which he had no clue.” Fifteen people were accused in the Awdesh Gautam case, which was a “completely concocted” allegation, Mr Dubey feels.

“Finally, nothing was proved in the court and after being in jail for nearly three years he came out on May 1, 2013,” Mr. Dubey said. The key issues factored into the acquittal of all the accused, including Mr. Futane, was “non availability of witness,” and “weapons of the deceased [killed during the attack on Awdesh Gautam] were not recovered from the accused,” the judge said.

A medium build man, Mr. Futane, never looked very sick, but close to his release from jail, his thigh muscles started giving up and around the time he was released he was paralysed from waist down.

A few months after her husband’s arrest, Ms. Sori was picked up by the police and allegedly tortured in custody. The couples’ three children, two daughters and one son, were sent to live with Ms. Sori’s father in Dantewada. “Thus the family was slowly divided and ruined,” said a social activist in Dantewada.

Mr. Futane’s case, like those of other tribal people, did not receive any attention from media or civil society. “It is sad that his case got no attention from anyone even after he was paralysed,” the superintendent of Jagdalpur jail, Rajendra Gaikwad, once told this correspondent soon after Mr Futane’s release

On Friday, Ms. Sori approached Dantewada District court for a limited period bail to perform her husband’s last rites. But her request was denied by sessions judge Anita Dehriya, who had acquitted Mr. Futane three months back.


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Soni Sori’s Husband, Anil Futane, Passes Away
By the time he was acquitted, Anil Futane was beaten so severely in jail he became paralyzed. With his death on 2 August, serious questions are being raised about the working of the police force in Chhattisgarh

Soni Sori’s husband, Anil Futane, died on 2 August at his native place in Geedum tehsil in Dantewada district of Chhattisgarh. Like Soni, he had been arrested and jailed as a Maoist. On 1 May 2013 he was acquitted by the court after spending nearly three years in jail. While in jail he was beaten so severely he became paralyzed. Soni, Anil’s wife, is still lodged in Jagdalpur central jail and his last rites were performed in her absence.

Soni and her husband were residents of Sameli village in Chhattisgarh. While Soni was a teacher in a government primary school, her husband, Anil ferried local passengers in a Bolero jeep. In July 2010 a case was filed againstSoni Sori, Anil and Lingaram Kodopi for carrying out a naxal attack on the house of Avdhesh Gautam, a Congress leader from Nakulnar in the Dantewada district of Chhattisgarh. Although Anil was acquitted in all the cases, his health has severely deteriorated in the three years he spent in jail.

NRK Pillai, a CPI leader and a senior journalist from Dantewada, says that the police left Anil at his house in the Geedum tehsil of Dantewada. Although he had been acquitted in all the cases, no one came forward for his treatment. Pillai says he had gone to Anil’s house to meet him and saw that he was in serious need of medical attention. He talked to his associates in Delhi regarding Anil’s health and was advised to send him to Delhi for proper treatment. According to Pillai no one came forward to take Anil to Delhi because of police fear.



A prisoner, who was lodged in Jagdalpur jail along with Anil, told TEHELKA on condition of anonymity, “Police torture had taken a heavy toll on Anil’s health and he started staying ill in jail. By the time he was released he was already paralyzed. His wife was in jail and there was no one to look after him.”

TEHELKA has been consistently following the Soni Sori case, one of the biggest symbols of police atrocity and torture in this country. A teacher in a government primary school in Jabeli village, Dantewada, Sori fled the state fearing for her life and reached New Delhi seeking legal assistance but was arrested in Delhi by theChhattisgarh police in October 2011 for being a “Maoist on the run”. She was charged by the police, along with her nephew, for acting as a conduit of Maoists to collect protection money from an Essar contractor. Charges of conspiracy, sedition, waging war against the state and those related to contributing to terrorist activity and raising funds for terrorist activity have been slapped against her in seven cases she is fighting in Dantewada.

Sori had earlier complained about inhuman treatment being meted out to her in Raipur jail and had accused a senior police officer Ankit Garg of sexual torture in police custody. In a medical examination conducted on her by the orders of Supreme Court, several stones were recovered from her private parts.

On Saturday, June 29, 2013 3:47:12 PM UTC+5:30, AYUSH Adivasi Yuva Shakti wrote:

AYUSH activities

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Aug 13, 2013, 9:59:57 AM8/13/13
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आदरणीय रमन सिंह जी ,

मैने इससे पिछले पत्र में आपको बताया ही था कि हमारी संस्था के साथियों ने सलवा जुडुम द्वारा जलाकर नष्ट कर दिये गये सैकड़ो गांवों में से दो को फिर से बसाने का काम शुरु किया है ।
दिनांक 05.07.2008 को इनमें से एक नेन्ड्रा गांव में अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ गया था मेरे सामने लगभग डेढ़ सौ आदिवासी स्त्री-पुरुष और बच्चे बैठे थे उनके कपड़े तार - तार हो चुके थे क्यों कि उन्हें बाज़ार आने की अनुमति नहीं है वहां उनका कत्ल कर दिया जायेगा । ज्यादातर लोग कुपोषित थे क्यों कि तीन वर्षो से उनके खेत जला दिये जा रहे हैं । 
मैंने उन लोगों से पूछा हम आपके लिये सबसे पहले क्या कर सकते हैं ? एक बूढ़ा खड़ा हुआ और उसने कहा दो साल पहले मेरी बारह साल की लड़की को सलवा जुडुम वाले पकड़ कर कैम्प में ले गये थे मेरी बेटी अभी भी वहाँ है ,क्या आप मेरी बेटी मुझे वापिस दिलवा सकते हैं ?
मेरे मन में आज़ादी के साठ साल बाद प्रश्न उठ रहा था कि इस ‘जन गण मन का अधिनायक‘ क्या यही हैं ? भारत के संविधान के पहले पन्ने पर अंकित ‘‘हम भारत के लोग‘‘ में क्या ये लोग भी शामिल हैं ?
इस व्यक्ति की बेटी को बाप से छीनने वाले कोई असामाजिक तत्व नहीं है बल्कि वो राज्य सत्ता समर्थित कायवाही के तहत छीनी गई है ।
मेरी भी बारह साल की बेटी हैं ,मैं सोचने लगा कि क्या उसे भी मुझसे कोई इस तरह छीन कर खुलेआम ज़बरदस्ती शिविर में रख सकता है । इतना सोचने मा़त्र से ही मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा उस क्षण भारत के संविधान नें मुझे भीतरी शक्ति दी और आश्वस्त किया कि मेरे साथ ऐसा इस लिये नहीं हो सकता क्योंकि मैं भारत के संविधान को समझता हूँ और मेरी उस तक पहुँच भी है ।
लेकिन बस्तर के इस आदिवासी की पहुँच संविधान तक नहीं हैं ये बात हम सब जानते हैं इसलिये हम खुले आम उससे उसकी बेटी को छीन कर सरकारी सलवा जुडुम शिविर में रखने की जुर्रुत कर पा रहे हैं । 
मैंने नेन्ड्रा गांव में लोगों से कहा कि हमारी संस्था कोशिश करेगी कि आपको अपने घरों को फिर से बनाने के लिये खपरे आदि की मद्द करें । गांव के युवकों नें मुझे जो उत्तर दिया उससे मेरा सर आत्मसम्मान से उठ गया उसने कहा ‘‘धन्यवाद ,हमारे लिये ये ताड़ के पत्ते काफी हैं ,आप बस हमारे साथ रहिये । ताकि सरकार हमें मार ना डाले . बस्तर का आदिवासी आज भी मुझ जैसे शहरी से कोई खैरात नहीं चाहता बस वो इतना चाहता है कि उसे हमें जिन्दा रहने दें । 
मैनें लोगों से कहा आप खेती करना शुरु कीजिये लोगों नें कहा सलवा जुडुम और र्फोस फिर से हमारी फसल जला देगी । मैंने आश्वस्त किया कि हमारी संस्था के कार्यकर्ता आपके साथ रहेंगे और अगर सलवा जुडुम वाले आयेंगे तो हमारे साथी उनसे बात करेंगे । हँलाकि मैं आज भी भीतर से डरा हुआ हूँ कि वास्तव में अगर सलवा जुडुम के हुजूम नें फिर से उस गांव पर हमला बोला और हमारे कार्यकर्ताओं की हत्या कर ही दी तो भारत का संविधान वहाँ उन्हें कहाँ बचाने जायेगा ।
रमन सिंह जी होना तो ये चाहिये था कि जनता पर नक्सली हमला करते तो आप उन्हें बचाते ,पर हो ये रहा हैं कि गांवो में रह रही जनता को ये महसूस हो रहा है कि सरकार उन पर हमला कर रही है और नक्सली उन्हें बचा रहे हैं । मैं नही जानता ये स्थिति राष्ट्र के लिये कितनी फायदेमंद है ,शायद आप ज्यादा अच्छे से समझते हो ‘मेरी बुद्धि तो कुछ समझ नहीं पा रही हैं ।
हमारे साथी कोशिश कर रहे हैं कि स्कूल चल पड़े ;आंगनबाड़ी खुल जाये ;राशन दुकान से राशन मिलने लगे ,लोग देश और व्यवस्था को फिर से प्यार और विश्वास से देखने लगे लेकिन सरकार के ही लोग ऐसा नहीं होने दे रहे हैं क्यों ,समझ में नही आता । 
और सबसे बड़ी चीज़ जो हमें परेशान करती है वो है हर बात में सरकार और प्रशासन द्वारा झूठ बोलना । 
सरकार ने स्कूल खुद बंद किये ,आंगन बाड़ी ,स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का जुडूम और र्फोस के लोगों ने अन्दरुनी गांवो में जाना बन्द करवा दिया , और कहा गया कि इस गांव के लोग सलवा जुडुम में नही आये हैं ,इसलिये ये नक्सली है इसलिये इनको कुछ नही मिलना चाहिये और झूठ बोला जाता है कि नक्सली गांव में काम नहीं करने देते । 

आप बता सकते हैं नक्सलियों नें कितने आंगन बाड़ी कार्यकर्ता ,स्वास्थ कार्यकर्ता या शिक्षिकों को मारा हैं ? विशेषतः अपने कर्तव्य पालन करते हुए ? मेरे पास आपके प्रशासन का लिखित जवाब हैं एक को भी नहीं । फिर भी स्कूल आंगन बाड़ी हैण्डपम्प स्वास्थ राशन दन्तेवाड़ा के सैकड़ों गांवो में लाखो लोगो के लिये क्या सोच कर बन्द किया गया ? शायद आपको आपके सलाहकारों नें समझाया होगा कि इससे नक्सली भूखे मर जायेंगे और नक्सल वाद खत्म हो जायेगा । लेकिन हुआ कुछ और ही ।
पहले नक्सलवादी कुछ गांवो तक ही सिमटे हुए थे और अब सरकार ही कुछ कस्बों तक सिमट गयी हैं । 
सच बताइये आपको नहीं लगता बस्तर में गांवो को जला कर लोगों की हत्या करके आप कुछ भी हासिल नहीं कर पाये ।
और मजे की बात ये है कि अक्ल की कहने वालों को आपके चाटुकार और आपके पालतू नेता प्रतिपक्ष तुरन्त नक्सली समर्थक कहने लगते हैं । सारे बुद्धिजीवी स्वतन्त्र पत्रकार ,सामाजिक कार्यकर्ता ,मानवधिकारवादी ,सब नक्सली, और राशन का चावल डकारने वाले ,बैल वितरण में दलाली खाने वाले ,ठेकेदारी और ट्रांसफर में रिश्वत खाने वाले सब देश भक्त और पार्टीभक्त बन बैठे हैं ।
रमन सिंह जी मेरे परिवार के अनेकों सदंस्यों ने इस देश की आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया था और पेंशन भी ठुकरा दी । मेरे पिता आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में तीस वर्ष झोला लेकर घूमे और आज भी मुझे बस्तर के आदिवासियों के बीच काम करते हुए देखते हैं और मुझे बताते हैं कि मैं बिल्कुल सत्य मार्ग पर हूँ इसलिये मुझे अब किसी और के प्रमाण पत्र की ज़रुरत नहीं हैं । इसलिये बस्तर में जो बड़े पूँजीपतियों के कहने से सलवा जुडुम के मार्फत आप गांव खाली करवाने की मुहिम चलवा रहे हैं और जिसमें पुलिस आपकी लठैत की भूमिका निभा रही है उसे मैं अपने जिन्दा रहते या जेल के बाहर - रहते तो पूरा होने नहीं दुँगा । यह मेरा आपसे वादा हैं ।
मैं आपके द्वारा खाली कराये गये सारे गांवो को दोबारा बसाने निकल पड़ा हूँ मैं सलवा जुडुम नाम के इस सबसे बड़े औेद्यौगिक विस्थापन षडयन्त्र को विफल कर रहा हूँ ,गांधी के सत्याग्रही के नाते अपने हर कदम की पूरी सूचना आपको देता रहूँगा ।


हिमांशु कुमार 
कंवलनार -दंतेवाड़ा 
५/७ २००८


Photo: आदरणीय रमन सिंह जी ,
	
	मैने इससे पिछले पत्र में आपको बताया ही था कि हमारी संस्था के साथियों ने सलवा जुडुम द्वारा जलाकर नष्ट कर दिये गये सैकड़ो गांवों में से दो को फिर से बसाने का काम शुरु किया है ।
दिनांक 05.07.2008 को इनमें से एक नेन्ड्रा गांव में अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ गया था मेरे सामने लगभग डेढ़ सौ आदिवासी स्त्री-पुरुष और बच्चे बैठे थे उनके कपड़े तार - तार हो चुके थे क्यों कि उन्हें बाज़ार आने की अनुमति नहीं है वहां उनका कत्ल कर दिया जायेगा । ज्यादातर लोग कुपोषित थे क्यों कि तीन वर्षो से उनके खेत जला दिये जा रहे हैं । 
मैंने उन लोगों से पूछा हम आपके लिये सबसे पहले क्या कर सकते हैं ? एक बूढ़ा खड़ा हुआ और उसने कहा दो साल पहले मेरी बारह साल की लड़की को सलवा जुडुम वाले पकड़ कर कैम्प में ले गये थे मेरी बेटी अभी भी वहाँ है ,क्या आप मेरी बेटी मुझे वापिस दिलवा सकते हैं ?
मेरे मन में आज़ादी के साठ साल बाद प्रश्न उठ रहा था कि इस ‘जन गण मन का अधिनायक‘ क्या यही हैं ? भारत के संविधान के पहले पन्ने पर अंकित ‘‘हम भारत के लोग‘‘ में क्या ये लोग भी शामिल हैं  ?
	इस व्यक्ति की बेटी को बाप से छीनने वाले कोई असामाजिक तत्व नहीं है बल्कि वो राज्य सत्ता समर्थित  कायवाही के तहत छीनी गई है ।
	मेरी भी बारह साल की बेटी हैं ,मैं सोचने लगा कि क्या उसे भी मुझसे कोई इस तरह छीन कर खुलेआम ज़बरदस्ती शिविर में रख सकता है । इतना सोचने मा़त्र से ही मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा  उस क्षण भारत के संविधान नें मुझे भीतरी शक्ति दी और आश्वस्त किया कि मेरे साथ ऐसा इस लिये नहीं हो सकता क्योंकि मैं भारत के संविधान को समझता हूँ और मेरी उस तक पहुँच भी है ।
 लेकिन बस्तर के इस आदिवासी की पहुँच संविधान तक नहीं हैं ये बात हम सब जानते हैं इसलिये हम खुले आम उससे उसकी बेटी को छीन कर सरकारी सलवा जुडुम शिविर में रखने की जुर्रुत कर पा रहे हैं । 
मैंने नेन्ड्रा गांव में लोगों से कहा कि हमारी संस्था  कोशिश करेगी कि आपको अपने घरों को फिर से बनाने के लिये खपरे आदि की मद्द करें । गांव के युवकों नें मुझे जो उत्तर दिया उससे मेरा सर आत्मसम्मान से उठ गया उसने कहा ‘‘धन्यवाद ,हमारे लिये ये ताड़ के पत्ते काफी हैं ,आप बस हमारे साथ रहिये । ताकि सरकार हमें मार ना डाले . बस्तर का आदिवासी आज भी मुझ जैसे शहरी से कोई खैरात नहीं चाहता बस वो इतना चाहता है कि उसे हमें जिन्दा रहने दें । 
	मैनें लोगों से कहा आप खेती करना शुरु कीजिये लोगों नें कहा सलवा जुडुम और र्फोस फिर से हमारी फसल जला देगी । मैंने आश्वस्त किया कि हमारी संस्था के कार्यकर्ता आपके साथ रहेंगे और अगर सलवा जुडुम वाले आयेंगे तो हमारे साथी उनसे बात करेंगे । हँलाकि मैं आज भी भीतर से डरा हुआ हूँ कि वास्तव में अगर सलवा जुडुम के हुजूम नें फिर से उस गांव पर हमला बोला और हमारे कार्यकर्ताओं की हत्या कर ही दी तो भारत का संविधान वहाँ उन्हें कहाँ बचाने जायेगा ।
	रमन सिंह जी होना तो ये चाहिये था कि जनता पर नक्सली हमला करते तो आप उन्हें बचाते ,पर हो ये रहा हैं कि गांवो में रह रही जनता को ये महसूस हो रहा है कि सरकार उन पर हमला कर रही है और नक्सली उन्हें बचा रहे हैं । मैं नही जानता ये स्थिति राष्ट्र के लिये कितनी फायदेमंद है ,शायद आप ज्यादा अच्छे से समझते हो ‘मेरी बुद्धि तो कुछ समझ नहीं पा रही हैं ।
	हमारे साथी कोशिश कर रहे हैं कि स्कूल चल पड़े ;आंगनबाड़ी खुल जाये ;राशन दुकान से राशन मिलने लगे ,लोग देश और व्यवस्था को फिर से प्यार और विश्वास से देखने लगे लेकिन सरकार के ही लोग ऐसा नहीं होने दे रहे हैं क्यों ,समझ में नही आता । 
और सबसे बड़ी चीज़ जो हमें परेशान करती है वो है हर बात में सरकार और प्रशासन द्वारा झूठ बोलना । 
सरकार ने स्कूल खुद  बंद किये ,आंगन बाड़ी ,स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का जुडूम और र्फोस के लोगों ने अन्दरुनी गांवो में जाना बन्द करवा दिया , और कहा गया कि इस गांव के लोग सलवा जुडुम में नही आये हैं ,इसलिये ये नक्सली है इसलिये इनको कुछ नही मिलना चाहिये और झूठ बोला जाता है कि नक्सली गांव में काम नहीं करने देते । 

आप बता सकते हैं नक्सलियों नें कितने आंगन बाड़ी कार्यकर्ता ,स्वास्थ कार्यकर्ता या शिक्षिकों को मारा हैं ? विशेषतः अपने कर्तव्य पालन करते हुए ? मेरे पास आपके प्रशासन का लिखित जवाब हैं एक को भी नहीं । फिर भी स्कूल आंगन बाड़ी हैण्डपम्प स्वास्थ राशन दन्तेवाड़ा के सैकड़ों गांवो में लाखो लोगो के लिये क्या सोच कर बन्द किया गया ? शायद आपको आपके सलाहकारों नें समझाया होगा कि इससे नक्सली भूखे मर जायेंगे और नक्सल वाद खत्म हो जायेगा । लेकिन हुआ कुछ और ही ।
 पहले नक्सलवादी कुछ गांवो तक ही सिमटे हुए थे और अब सरकार ही कुछ कस्बों तक सिमट गयी हैं । 
	सच बताइये आपको नहीं लगता बस्तर में गांवो को जला कर लोगों की हत्या करके आप कुछ भी हासिल नहीं कर पाये ।
	और मजे की बात ये है कि अक्ल की कहने वालों को आपके चाटुकार और आपके पालतू नेता प्रतिपक्ष तुरन्त नक्सली समर्थक कहने लगते हैं । सारे बुद्धिजीवी स्वतन्त्र पत्रकार ,सामाजिक कार्यकर्ता ,मानवधिकारवादी ,सब नक्सली, और राशन का चावल डकारने वाले ,बैल वितरण में दलाली खाने वाले ,ठेकेदारी और ट्रांसफर में रिश्वत खाने वाले सब देश भक्त और पार्टीभक्त बन बैठे हैं ।
	रमन सिंह जी मेरे परिवार के अनेकों सदंस्यों ने इस देश की आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया था और पेंशन भी ठुकरा दी । मेरे पिता आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में तीस वर्ष झोला लेकर घूमे और आज भी मुझे बस्तर के आदिवासियों के बीच काम करते हुए देखते हैं और मुझे बताते हैं कि मैं बिल्कुल सत्य मार्ग पर हूँ इसलिये मुझे अब किसी और के प्रमाण पत्र की ज़रुरत नहीं हैं । इसलिये बस्तर में जो बड़े पूँजीपतियों के कहने से सलवा जुडुम के मार्फत आप गांव खाली करवाने की मुहिम चलवा रहे हैं और जिसमें पुलिस आपकी लठैत की भूमिका निभा रही है उसे मैं अपने जिन्दा रहते या जेल के बाहर - रहते तो पूरा होने नहीं दुँगा । यह मेरा आपसे वादा हैं ।
	मैं आपके द्वारा खाली कराये गये सारे गांवो को दोबारा बसाने निकल पड़ा हूँ मैं सलवा जुडुम नाम के इस सबसे बड़े औेद्यौगिक विस्थापन षडयन्त्र को विफल कर रहा हूँ ,गांधी के सत्याग्रही के नाते अपने हर कदम की पूरी सूचना आपको देता रहूँगा ।
									
हिमांशु कुमार  
कंवलनार -दंतेवाड़ा 
५/७ २००८


On Saturday, June 29, 2013 3:47:12 PM UTC+5:30, AYUSH Adivasi Yuva Shakti wrote:

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

unread,
Aug 15, 2013, 4:06:45 AM8/15/13
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जिस समाज में कड़ी मेहनत करने वाले करोड़ों लोग गरीब और एक प्रतिशत आरामतलब लोग देश की ज्यादातर दौलत और आमदनी के मालिक हों .

जिस देश में करोड़ों लोगों की ज़मीन को इन अमीरों के लिये सरकारी बंदूकों के दम पर छीनने को विकास बताया जाता हो .

उस देश का आराम तलब अमीर वर्ग अपनी इस लूट को बरकरार रखने के लिये अपने बंदूकधारी मजदूरों अर्थात पुलिस और सेना को बहुत महत्व देता है .

देश के ज्यादातर लोगों को भी इस सेना को ज़रूरी समझने के लिये काल्पनिक डर दिखा कर डराया जाता है .

ये आरामतलब अमीर शोषक और शासक लोग आप को कश्मीरियों का , मणिपुरियों का , बस्तरियों का ,मुसलमानों का , ईसाईयों का डर दिखा कर खुद के हाथ में फांसी देने का, किसी को भी गोली से उड़ा देने का, किसी भी महिला की योनी में पत्त्थर भरने का अधिकार अपने हाथ में ले लेता है .

और आप बेवकूफ बन जाते हैं और इन लुटेरों को खुशी खुशी देश के करोड़ों गरीबों को कुचलने का अधिकार दे देते हैं .

इसे ही शासक़ वर्ग का षड्यंत्र कह जाता है .

इस षड्यंत्र को समझना ही आपको असली नागरिक बनायेगी .

ऐसे समझदार नागरिक ही एक हिंसा मुक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं .

फांसी दो , मार दो , काट दो का शोर मचाने वाली भीड़ मत बनिए . 

आपकी मेहनत से मज़े करने वाले तो आपको ऐसा ही बेवकूफ बना कर रखना चाहते हैं .

अगर आज़ाद रहना चाहते हो तो दूसरों की आजादी की भी इज्ज़त करना सीखो 



On Saturday, June 29, 2013 3:47:12 PM UTC+5:30, AYUSH Adivasi Yuva Shakti wrote:

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

unread,
Sep 14, 2013, 10:32:33 AM9/14/13
to adi...@googlegroups.com, ay...@adiyuva.in
आज से लगभग 100 साल जब पहले टाटा कंपनी साकची (अब जमशेदपुर) में स्थापित की जा रही थी उसी परक्रिया में कई गाँव को लिल लिया। जानकारों का कहना हैं की उन्हें न तो मुआबजा मिला और न ही पुनरवास की कोई व्यवस्था की गयी बस जाना हैं तो जाना है। उस के बाद टाटा ने पानी के लिए शहर के ही समिप, जिसे आज हम डिमना के नाम से जानते हैं, एक डेम बनाया गया।उस में 12 गाँव को डुबोया गया। इन्हें भी न तो पूर्ण मुआबजा मिला और न ही अन्य सुबिधाये। डिमना डेम के विस्थापित आज भी संघर्ष रथ हैं। 
दूसरी और टाटा कंपनी टाटा से ले कर भारत को छोड़ दिजीये सात समुन्दर पर कोरस को खरिद लिया इस से हमें कोई दिक्कत नहीं हैं। हमारा तो बस ये सवाल हैं की इस बिच में आप झारखंडियो को कैसे भूल गए। जिसके मिट्टी, पानी, खनिज सम्पद्दा को लगभग मुफ्त में दोहन कर रहे है?
आज से लगभग 100 साल जब पहले टाटा कंपनी साकची (अब जमशेदपुर) में स्थापित की जा रही थी उसी परक्रिया में कई गाँव को लिल लिया। जानकारों का कहना हैं की उन्हें न तो मुआबजा मिला और न ही पुनरवास की कोई व्यवस्था की गयी बस जाना हैं तो जाना है। उस के बाद टाटा ने पानी के लिए शहर के ही समिप, जिसे आज हम डिमना के नाम से जानते हैं, एक डेम बनाया गया।उस में 12 गाँव को डुबोया गया। इन्हें भी न तो पूर्ण मुआबजा मिला और न ही अन्य सुबिधाये। डिमना डेम के विस्थापित आज भी संघर्ष रथ हैं। 
दूसरी और टाटा कंपनी टाटा से ले कर भारत को छोड़ दिजीये सात समुन्दर पर कोरस को खरिद लिया इस से हमें कोई दिक्कत नहीं हैं। हमारा तो बस ये सवाल हैं की इस बिच में आप झारखंडियो को कैसे भूल गए। जिसके मिट्टी, पानी, खनिज सम्पद्दा को लगभग मुफ्त में दोहन कर रहे है?






















On Saturday, June 29, 2013 3:47:12 PM UTC+5:30, AYUSH Adivasi Yuva Shakti wrote:

DEVENDRA BAGHEL

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Sep 15, 2013, 2:18:03 AM9/15/13
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|| देश में आदिवासिओ को सिर्फ वोट बैंक की तरह उपयोग किया गया है ||


14 सितम्बर 2013 8:02 pm को, AYUSH Adivasi Yuva Shakti <ay...@adiyuva.in> ने लिखा:
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Sep 17, 2013, 8:35:45 AM9/17/13
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अगर मेढ़क को गरम पानी में फेंक दिया जाय। तो मेढ़क तुरंत कूद कर पानी से बाहर निकल जायेगा। लेकिन अगर उसी मेढक को ठन्डे पानी में डाल कर बर्तन को आग पर रख कर पानी को धीरे धीरे गरम करेंगे तो मेंढक पानी से निकल कर नहीं भागेगा। 

  • मेंढक उसी में उबल कर जायेगा। 

    आप को भी सरकार इसी तरह हौले हौले ग़लत बातों को सहन करने आदत डालती है। इसके बाद सरकार के बड़े बड़े अपराध भी आप आँख मूँद कर सहन करने लगते हैं। 

    कल ही पुलिस ने बयान दिया की गढ़ चिरोली में उसने जिन " नक्सलियों " को पकड़ा है उन्होंने बताया है कि ये लोग दिल्ली में एक 'जन सुनवाई' करने वाले हैं जिसमे "नक्सल समर्थक " लोग आकार अपनी बातें रखने वाले हैं। 

    असल में तो सरकार ने कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को अलग अलग जगहों से पकड़ा है और उन्हें गढ़चिरोली में गिरफ्तार बताया है। 

    तो साहेबान बात निकली ही है तो आप भी जान लीजिये की ये " आपरेशन ग्रीन हंट " क्या है ? 

    असलियत में सरकार ने बस्तर में आदिवासियों को उनके गाँव से उजाड़ना शुरू किया तो सरकार ने इसका कारण बताया कि इन गाँव में नक्सली शरण लेते हैं इसलिए हम इन गाँव को खाली करवा रहे हैं। और सरकार द्वारा ये गाँव खाली कैसे करवाए जाते थे?

    गाँव में आग लगा कर , फसलें जला कर , औरतों से बलात्कार कर के। 

    वैसे यह तर्क देश के पढ़े लिखे तबके ने बड़े मज़े में स्वीकार भी कर लिया। किसी ने यह नहीं पूछा कि दिल्ली में भी तो जेब कतरे और आतंकवादी हैं। लेकिन पुलिस कभी दिल्ली वालों से यह नहीं कहती कि चलो सब लोग दिल्ली खाली करो हमें जेबकतरों और आतंकवादियों को पकड़ना है।

    लेकिन आदिवासियों के साथ आपको यह करने की छूट है। आदिवासी इंसान थोड़े ही हैं। इसलिए आपने आदिवासियों के साथ यह व्यवहार करने की जुर्रत करी और राष्ट्र रक्षक का तमगा भी हासिल किया। 

    अपने घर और फसल जलाए जाने की वजह से आदिवासी जंगलों में छिप गए। तब सरकार ने जंगलों में छिपे हुए आदिवासियों को मार कर वहाँ से भी भगाने के लिए "आपरेशन ग्रीन हंट" शुरू किया। ग्रीन हंट का मतलब ही है हरियाली का शिकार। 

    जब हम लोग सर्वोच्च न्यायलय में गए और हमने कहा की लोग जंगल में छिपे हुए हैं। जब तक उन्हें वापिस उनके घरों में नहीं बसाया जाता , तब तक अगर हमारे सुरक्षा बल अगर जंगल में जायेंगे तो हमें अंदेशा है की बड़े पैमाने पर निर्दोष लोग मारे जायेंगे। क्योंकि इन्ही सुरक्षा बलों ने पहले इन आदिवासियों के घर जलाये हैं। अब दुबारा यदि आदिवासी इन्हें जंगल में देखेंगे तो वह भयभीत होकर भागेंगे। सुरक्षा बल भागते हुए लोगों पर नक्सली होने का संदेह करेंगे और उन्हें मार डालेंगे। 

    हमने सुझाव दिया की इसलिए पहले तो आप आदिवासियों को उनके गावों में दुबारा बसा दीजिये। 

    लेकिन सरकार ने किसी भी आदिवासी को उसके घर में नहीं बसाया। हम लोगों ने जब आदिवासियों को उनके गाँव में बसाने की कोशिश करी तो सरकार घबरा गयी। सरकार को लगा की बड़ी मेहनत से तो आदिवासियों को उजाड़ा था ये लोग उन्हें फिर से उनकी ज़मीनों पर बसा रहे हैं। सरकार ने गाँव बसाने वाले हमारे कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया।

    इस बीच सरकारी सुरक्षा बल लगातार जंगलों में और गाँव में लोगों को डराने धमकाने गाँव जलाने आदिवासियों की हत्याएं करने का काम कर रही हैं। 

    ताड़ मेटला में पिछले साल आदिवासियों के तीन गाँव जलाए गए, और पांच महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया । 

    सारकेगुड़ा में सत्रह आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया जिनमे पांच बच्चे थे। लिंगागिरी में उन्नीस आदिवासियों की हत्या की गयी जिनमे पांच लडकियां थीं , 

    गोमपाड गाँव में सोलह आदिवासियों की हत्या कर दी गयी जिनमे अस्सी साल का बुज़ुर्ग भी शामिल है और सत्तर साल की बुज़ुर्ग महिला के वक्ष सीआरपीऍफ़ की कोबरा बटालियन ने काट डाले , डेढ़ साल के बच्चे की अंगुलियाँ काट डाली गयी।

    कुछ ही महीने पाहिले एड्समेत्ता गाँव में पूजा करते हुए नौ आदिवासियों को सीआरपीऍफ़ ने मार डाला। 

    इन आदिवासियों की तकलीफ सुनने के लिए सरकार ने कोई इंतजाम नहीं किया है। अब अगर सामाजिक कार्यकर्ता इन आदिवासियों की तकलीफ सुनने के लिए जनसुनवाई का आयोजन करते हैं तो पुलिस उन्हें जेल में डाल देगी। 

    ठीक है मत बोलने दीजिये इन आदिवासियों को। इनकी तकलीफ सुनने की कोशिश करने वालों को आप नक्सली कह कर जेल में डाल दीजिये। 

    लेकिन उसका परिणाम क्या होगा ये भी तो सोचिये। 

    इसका फायदा सरकार को होगा या नक्सलियों को?

    सरकार मारेगी तो लोग किसके पास जायेंगे ?

    और हम जो शहरी पढ़े लिखे लोग हैं वो मेंढक की तरह पानी के गरम होते जाने को महसूस ही नहीं कर रहे हैं। 

    सम्भव है हम भी अपने आदिवासियों को वैसे ही मार डालें जैसे अमरीका, कनाडा , न्यूजीलेंड, आस्ट्रेलिया व अन्य साठ देशों ने अपने यहाँ के मूल निवासियों को मार डाला है। 

    लेकिन जनाब फिर अपने लोकतंत्र, बराबरी , सामान नागरिकता , महान संस्कृति ,विश्वगुरु भारत , और आध्यात्मिकता आदि का क्या होगा ?

    या फिर वैसा ही करोगे जैसा पिछली बार किया था कि भारत के मूल निवासियों को मारो फिर अपने धर्म ग्रन्थ में लिख दो कि जी वो तो असुर और राक्षस लोग थे ,जिनका हमारे देवताओं ने वध कर दिया जिससे धर्म की स्थापना हो सके। 

    मुझे अंदेशा हो रहा है की इस चुनाव में चाहे मोदी जीते या कांग्रेस। चुनाव के तुरंत बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं पर बड़े पैमाने पर हमला होगा। अगले दस साल ज़मीनों , नदियों, खदानों और जंगलों पर कब्ज़े के होंगे। 

    जो भी इस लूट खसोट पर सवाल उठाएगा उसे जेल में डाल दिया जाएगा। 

    प्रधान मंत्री लाल किले से बोल ही चुके हैं की जो हमारे विकास का विरोधी है वही आतंकवादी है। और शहरी लोगों के लिए विकास का मतलब है की गरीबों की ज़मीनें टाटा और अम्बानी को सौंप दो। ताकि इनके उद्योगों में हमारे बच्चों को काम मिल सके। 

    जो करोगे सो भरोगे। जैसा बोओगे वैसा काटोगे। बंदूकें बोओगे लाशें पाओगे। 

    हम तो गांधी बाबा के वचन सुनाते हैं। मानना या न मानना आपकी मर्जी।


On Saturday, June 29, 2013 3:47:12 PM UTC+5:30, AYUSH Adivasi Yuva Shakti wrote:

AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Feb 8, 2014, 10:30:54 AM2/8/14
to adi...@googlegroups.com, ay...@adiyuva.in
आज सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी की प्रेस कांफ्रेंस हुई . सोनी सोरी ने पूछा कि मुझे नग्न कर,मुझे बिजली के झटके दे कर , मेरे शरीर में पत्थर भरने से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा क्या ?

सोनी ने पूछा कि मेरे साथ ये सब करने वाले को इस देश के राष्ट्रपति ने पुरस्कार क्यों दिया ?

सोनी ने कहा कि मैं छत्तीसगढ़ वापिस जाऊंगी . छत्तीसगढ़ सरकार मेरी ह्त्या की कोशिश कर सकती है . सोनी ने कहा कि मैं चाहती हूँ कि सरकार मेरा मुकाबला ज़रूर करे . मैं सरकार को ये मौका देती हूँ .
ये लड़ाई बराबरी की तब होगी जब सरकार मुझे जान से ना मारे .

लिंगा कोडोपी ने कहा कि मैंने पुलिस की ज्यादतियां उजागर करी तो पुलिस ने मुझे फर्ज़ी मामलों में फंसा दिया और थाने में मेरी गुदा में मिर्चें भरी गयी . 

लिंगा कोडोपी ने पूछा कि इस देश में आदिवासी पत्रकार होना अपराध क्यों है ?

अरुंधती राय ने कहा कि हमें पूछना चाहिए कि आखिर आदिवासी इलाकों में ये लड़ाई किस के लिए चल रही है . सरकार से हमें पूछना चाहिए कि आपने आदिवासी इलाकों की ज़मीनों को किसे देने के समझौते किये हैं उन्हें जनता के सामने उजागर कीजिये . अरुंधती ने कहा कि निर्भया के लिए हमने फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाया लेकिन सोनी सोरी के लिए हमारे पास सुपर स्लो कोर्ट है जो उसके शरीर से निकाले हुए पत्थर मिलने के बाद दो साल बाद उसे सिर्फ ज़मानत देता है .

प्रशांत भूषण ने कहा कि पुलिस द्वारा निर्दोषों को फर्ज़ी मामलों में फंसाया जाना इस देश की एक बड़ी समस्या है . देश में अशांति का ये एक बड़ा कारण है .

विस्तृत रिपोर्ट कल तक .
आज सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी की प्रेस कांफ्रेंस हुई . सोनी सोरी ने पूछा कि मुझे नग्न कर,मुझे बिजली के झटके दे कर , मेरे शरीर में पत्थर भरने से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा क्या ?

सोनी ने पूछा कि मेरे साथ ये सब करने वाले को इस देश के राष्ट्रपति ने पुरस्कार क्यों दिया ?

सोनी ने कहा कि मैं छत्तीसगढ़ वापिस जाऊंगी . छत्तीसगढ़ सरकार मेरी ह्त्या की कोशिश कर सकती है . सोनी ने कहा कि मैं चाहती हूँ कि सरकार मेरा मुकाबला ज़रूर करे . मैं सरकार को ये मौका देती हूँ .
ये लड़ाई बराबरी की तब होगी जब सरकार मुझे जान से ना मारे .

लिंगा कोडोपी ने कहा कि मैंने पुलिस की ज्यादतियां उजागर करी तो पुलिस ने मुझे फर्ज़ी मामलों में फंसा दिया और थाने में मेरी गुदा में मिर्चें भरी गयी . 

लिंगा कोडोपी ने पूछा कि इस देश में आदिवासी पत्रकार होना अपराध क्यों है ?

अरुंधती राय ने कहा कि हमें पूछना चाहिए कि आखिर आदिवासी इलाकों में ये लड़ाई किस के लिए चल रही है . सरकार से हमें पूछना चाहिए कि आपने आदिवासी इलाकों की ज़मीनों को किसे देने के समझौते किये हैं उन्हें जनता के सामने उजागर कीजिये . अरुंधती ने कहा कि निर्भया के लिए हमने फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाया लेकिन सोनी सोरी के लिए हमारे पास सुपर स्लो कोर्ट है जो उसके शरीर से निकाले हुए पत्थर मिलने के बाद दो साल बाद उसे सिर्फ ज़मानत देता है .

प्रशांत भूषण ने कहा कि पुलिस द्वारा निर्दोषों को फर्ज़ी मामलों में फंसाया जाना इस देश की एक बड़ी समस्या है . देश में अशांति का ये एक बड़ा कारण है .

विस्तृत रिपोर्ट कल तक .

AYUSH | Adivasi Yuva Shakti

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Feb 10, 2014, 9:24:08 AM2/10/14
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Soni Sori and Linga Kododopi express their gratitude to the Supreme Court
 



AYUSHonline team



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AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Feb 26, 2014, 9:46:31 AM2/26/14
to adi...@googlegroups.com, ay...@adiyuva.in
मेरे पिता श्री प्रकाश भाई ने विद्यार्थी काल में मुज़फ्फर नगर के रेलवे रिकार्ड रूम में आग लगाई और पुलिस की घर में बार बार दबिश पड़ने पर फरार हो गए .

बाद में गांधी जी से पत्र व्यवहार हुआ . उन्होंने अपने आश्रम सेवाग्राम में बुला लिया . पिताजी को बुनियादी तालीम के काम में लगा दिया .

आजादी के बाद विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन शुरू किया . पिताजी उस आंदोलन में शामिल हो गए . वर्षों तक अमीरों से ज़मीने मांग कर गाँव के गरीबों में बांटने का काम किया . कभी छह महीने में एक दो दिन के लिए ही घर आते थे .

भूदान आन्दोलन से प्रेरित होकर सरकार ने सीलिंग कानून लागू किया . सरकार के पास बड़े ज़मीदारों की लाखों एकड़ ज़मीन आ गयी . इस ज़मीन को भूमिहीन गरीबों को बांटने का फैसला लिया गया .

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा विनोबा जी के पास गए और कहा कि इस सरकारी ज़मीन को बांटने का काम करने के लिए मेरे पास राजनीति में कोई ईमानदार आदमी नहीं है .आप कोई आदमी दीजिए . 

विनोबा जी ने मेरे पिता का नाम बहुगुणा जी को दिया . 

बहुगुणा जी ने मेरे पिताजी को केबिनेट मिनिस्टर का दर्ज़ा दिया और ज़मीन बाटने की जिम्मेदारी दी. 

पिताजी ने अपने सामाजिक कार्यकर्त्ता साथियों को बुलाया और आन्दोलन के तरीके से बीस लाख एकड़ सरकारी ज़मीन भूमिहीन किसानों में बांटी .

पिताजी आज भी खुद भूमिहीन हैं . 

उनका इकलौता बेटा मैं भी भूमिहीन हूँ .

न कोई मकान न बैंक में हज़ार रूपये से ज़्यादा का कभी बैंक बैलेंस .

अट्ठारह साल बस्तर में संस्था चलाई . संस्था में करीब एक हज़ार कार्यकर्ता थे .

लेकिन जब बस्तर छोड़ कर निकला तो मेरे पास सिर्फ तीस हज़ार रूपये थे . 

आज भी अगले महीने के मकान किराये की जुगाड हर महीने किसी से कह सुन कर करनी पड़ती है .

लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार कहती है कि मेरे दिल्ली में कई मकान हैं . और मुझे विदेशों से अकूत पैसा मिलता है . 

अलबत्ता अपने वो मकान कभी मैंने भी नहीं देखे . सिर्फ रमन सिंह ने देखे हैं .

लेकिन पिता से मिले इस फक्कडपन ने मुझे ताकत बहुत दी है .

मेरी आवाज़ में दम है क्योंकि मेरी ज़रूरतें कम हैं .
मेरे पिता श्री प्रकाश भाई ने विद्यार्थी काल में मुज़फ्फर नगर के रेलवे रिकार्ड रूम में आग लगाई और पुलिस की घर में बार बार दबिश पड़ने पर फरार हो गए .

बाद में गांधी जी से पत्र व्यवहार हुआ . उन्होंने अपने आश्रम सेवाग्राम में बुला लिया . पिताजी को बुनियादी तालीम के काम में लगा दिया .

आजादी के बाद विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन शुरू किया . पिताजी उस आंदोलन में शामिल हो गए . वर्षों तक अमीरों से ज़मीने मांग कर गाँव के गरीबों में बांटने का काम किया . कभी छह महीने में एक दो दिन के लिए ही घर आते थे .

भूदान आन्दोलन से प्रेरित होकर सरकार ने सीलिंग कानून लागू किया . सरकार के पास बड़े ज़मीदारों की लाखों एकड़ ज़मीन आ गयी . इस ज़मीन को भूमिहीन गरीबों को बांटने का फैसला लिया गया .

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा विनोबा जी के पास गए और कहा कि इस सरकारी ज़मीन को बांटने का काम करने के लिए मेरे पास राजनीति में कोई ईमानदार आदमी नहीं है .आप कोई आदमी दीजिए . 

विनोबा जी ने मेरे पिता का नाम बहुगुणा जी को दिया . 

बहुगुणा जी ने मेरे पिताजी को केबिनेट मिनिस्टर का दर्ज़ा दिया और ज़मीन बाटने की जिम्मेदारी दी. 

पिताजी ने अपने सामाजिक कार्यकर्त्ता साथियों को बुलाया और आन्दोलन के तरीके से बीस लाख एकड़ सरकारी ज़मीन भूमिहीन किसानों में बांटी .

पिताजी आज भी खुद भूमिहीन हैं . 

उनका इकलौता बेटा मैं भी भूमिहीन हूँ .

न कोई मकान न बैंक में हज़ार रूपये से ज़्यादा का कभी बैंक बैलेंस .

अट्ठारह साल बस्तर में संस्था चलाई . संस्था में करीब एक हज़ार कार्यकर्ता थे .

लेकिन जब बस्तर छोड़ कर निकला तो मेरे पास सिर्फ तीस हज़ार रूपये थे . 

आज भी अगले महीने के मकान किराये की जुगाड हर महीने किसी से कह सुन कर करनी पड़ती है .

लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार कहती है कि मेरे दिल्ली में कई मकान हैं . और मुझे विदेशों से अकूत पैसा मिलता है . 

अलबत्ता अपने वो मकान कभी मैंने भी नहीं देखे . सिर्फ रमन सिंह ने देखे हैं .

लेकिन पिता से मिले इस फक्कडपन ने मुझे ताकत बहुत दी है .

मेरी आवाज़ में दम है क्योंकि मेरी ज़रूरतें कम हैं .



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Mar 29, 2014, 12:51:46 PM3/29/14
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आप को विकास करना है 
आप को मेरी ज़मीन पर कारखाना लगाना है 
तो आप सरकार से कह कर मेरी ज़मीन का सौदा कर लेंगे 
फिर आप मेरी ज़मीन से मुझे निकलने का हुक्म देंगे 
में नहीं हटूंगा तो आप मुझे मेरी ज़मीन से दूर करने के लिये अपनी पुलिस को भेजेंगे 
आपकी पुलिस मुझे पीटेगी , मेरी फसल जलायेगी 
आपकी पुलिस मेरे बेटे को देश के लिये सबसे बड़ा खतरा बता कर जेल में डाल देगी 
तुम्हारी पुलिस मेरी बेटी के गुप्तांगों में पत्थर भर देगी 
में अदालत जाऊँगा तो मेरी सुनवाई नहीं की जायेगी 
में कहूँगा कि यह कैसा विकास है जिसमे मेरा नुक्सान ही नुक्सान है 
तो तुम पूछोगे अच्छा तो वैकल्पिक विकास का माडल क्या है तेरे पास बता ?
आप पूछेंगे कि हम तेरी ज़मीन ना लें तो फिर विकास कैसे करें ?

अजीब बात है यह तो .
विकास तुम्हें करना है विकल्प में क्यों ढूंढूं ?
में तुम्हें क्यों बताऊँ कि तुम मेरी गर्दन कैसे काटोगे ?
अरे तुम्हें विकास करना है तो उसका माडल ढूँढने की जिम्मेदारी तुम्हारी है भाई .

राष्ट्र तुमने बनाया 
इसे लोकतन्त्र तुमने बताया 
राष्ट्रभक्ति के मन्त्र तुमने पढ़े 
अब इस राष्ट्र के बहाने से तुम मेरी ज़मीन क्यों ले रहे हो भाई 
क्या राष्ट्र मेरी ज़मीन छीन कर मज़ा करने के लिये बनाया था ?
क्या राष्ट्र तुमने इसीलिये बनाया था कि तुम राष्ट्र के नाम पर इस सीमा के भीतर रहने वाले गरीबों को पीट कर उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लो

अगर राष्ट्र हम गरीबों के लिये नहीं है 
अगर इस राष्ट्र की फौज पुलिस और बंदूकें मेरी बेटी की रक्षा के लिए नहीं हैं 
अगर राष्ट्र मुझे लूटने का एक साधन मात्र है तुम ताकतवर लोगों के हाथों का 
तो लो फिर 
में तुम्हारे राष्ट्र से स्तीफा देता हूं 
अब तुम्हारा और मेरा कोई लेना देना नहीं है 
मैंने तुम्हें अपनी तरफ से आज़ाद किया 
अब अगर तुम अपनी पुलिस मेरी ज़मीन छीनने के लिये भेजोगे तो में उसका सामना करूँगा 
में अपनी ज़मीन अपनी बेटी और अपनी आजादी की हिफाज़त ज़रूर करूँगा

में गाँव का आदिवासी हूं 
अजीब बात है 
जब तुम्हारे सिपाही की गोली से मैं मरता हूं 
तब तुम मेरी मरने के बारे में बात भी नहीं करते 
लेकिन जब तुम्हारे लिये मेरी ज़मीन छीनने के लिये भेजे गये तुम्हारे सिपाही मरते हैं तब तुम राष्ट्र राष्ट्र चिल्लाने लगते हो .
बड़े चालाक हो तुम .

मेरे मृत्यु के समय तुम 
साहित्य धर्म और अध्यात्म की फालतू चर्चा करते रहते हो 
तुम्हारे साहित्य धर्म और अध्यात्म में भी मेरी कोई जगह नहीं होती 
मेरी मौत तुम्हारे राष्ट्र के लिये कोई चिन्ता की बात नहीं है तो मैं तुम्हारे विकास की चिन्ता में अपनी ज़मीन क्यों दे दूं भाई ?

अगर तुम्हें मेरी बातें बुरी लग रही हैं तो 
मेरी तरह मेहनत कर के जीकर दिखाओ 
बराबरी न्याय और लोकतन्त्र का आचरण कर के दिखाओ 
इंसानियत से मिल कर रह कर दिखाओ 
हमें रोज़ रोज़ मारने के लिये हमारे गाँव में भेजी गई पुलिस वापिस बुलाओ 
तुम्हारी जेल में बंद मेरी बेटी और बेटों को वापिस करो 
फिर उसके बाद ही अहिंसा लोकतन्त्र और राष्ट्र की बातें बनाओ .

Mukesh Gupta

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Apr 15, 2014, 11:58:14 PM4/15/14
to adi...@googlegroups.com, ay...@adiyuva.in
Dear I have got a very sentimental attachment with tribal people and wish to help rather cooperate in their social activities.
 I am in exhibition trade and have contact with corporate sector, if you people wish we can manage to sale your tribal product ( handicraft items) to as corporate gift and with this fund generating process you can help out the needy person.
If you wish for this proposal, please mail to me or call me.

Regards

Mukesh Gupta


Thanks

Mukesh Gupta

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Branches: New Delhi, Rishikesh,

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AYUSH Adivasi Yuva Shakti

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Jul 2, 2013, 12:55:49 PM7/2/13
to adi...@googlegroups.com, ay...@adiyuva.in

AYUSH | adivasi yuva shakti

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Feb 25, 2016, 10:42:45 AM2/25/16
to AYUSH | adivasi yuva shakti, ay...@adiyuva.in
क्या आपकी भारतमाता की काॅन्सेप्ट में यह माता भी शामिल हैं.....? अगर भारत'माता' की काॅन्सेप्ट में देश के हर एक नारी का स्वाभिमान शामिल हैं तो सोनी सोरी पर हुए एसिड हमले का विरोध करें। सोनी सोरी आदिवासियों के अस्तित्व के लिए लढ रहीं हैं, उनके लिए यह ओनलाईन पिटीशन साईन करें। - http://www.indiaresists.com/sign-petition-condemn-attack-on-soni-sori-demand-prompt-action/
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