सोनी सोरी का पत्र जिसे कोई भी पढना नहीं चाहता
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Himanshu Kumar
मेरा भगवान जूतों से पीटा जाता हैं
और उसकी पत्नी जो देवी है
उसे टट्टी खिलाई जाती है
और गाँव के बाहर पेड़ से बाँध कर उसके बाल काटते हैं बड़ी जाति के पुरुष
क्योंकि वो मानते हैं कि वो असल में एक डायन है
एक दूसरी देवी की बेटी की योनी में पत्थर भरता है तुम्हारा एक देवता
मेरे भगवान की पैंट फटी हुई है
मेरे भगवान के पाँव गंदे हैं
मेरे भगवान से पसीने की तेज गंध आती है
मेरा भगवान रथ पर नहीं
टूटी हुई साइकिल पर सवार है
मेरे भगवान के पिछवाड़े में
ईंट भट्टे का मालिक डंडा घुसेड़ देता है
क्योंकि मेरा भगवान पूरी मजदूरी
मांग रहा था
मेरी देवी के साथ
पूरा थाना
महीना भर
बलात्कार करता है
अब मेरी यह देवी
अपना पेट पालने के लिये चाय की दूकान पर बर्तन मांजती है
आप मुझे नास्तिक समझ रहे थे ?
नहीं जनाब
मेरा भगवान बस आपके
सोने के जेवरों से सजे हुए
लेट कर अपनी पत्नी से पैर दबवाते हुए
भगवान से अलग तरह का है
संदीप साहू, भुवनेश्वर से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए, शनिवार, 6 जुलाई, 2013 को 12:59 IST तक के समाचार
केंद्र सरकार और स्थानीय आदिवासियों के कड़े विरोध के बावजूद ओडिशा सरकार ने शुक्रवार को नियमगिरी पर्वत में बॉक्साइट के खनन के बारे में निर्णय लेने के लिए 12 ग्राम सभाओं की बैठक की तिथियों की घोषणा कर दी.
18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर्वत में खनन के बारे में अंतिम निर्णय स्थानीय ग्राम सभाओं पर छोड़ दिया था और तीन महीनों के अन्दर खुदाई से प्रभावित होने वाले सभी गावों में ग्राम सभा की बैठक बुलाकर इस मुद्दे पर उनकी राय लेने का आदेश दिया था.
क्लिक करें देखिए: नियमगिरी के आदिवासी
डोंगरिया कंध आदिवासी इस पर्वत को पवित्र मानते हैं. नियमगिरि पर्वत और इसके आसपास 100 से भी अधिक गाँव हैं और केंद्र आदिवासी मंत्रालय और स्थानीय आदिवासी, दोनों ने राज्य सरकार से आग्रह किया था कि इन सभी गावों में ग्राम सभा बुलाई जाए.
लेकिन सभी आपत्तियों के बावजूद केवल 12 गावों में ग्राम सभा की घोषणा से अब यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य सरकार ने इस बारे में केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय की आपत्तियों को नज़रंदाज़ करने करने का मन बना लिया है.
आदिवासी कल्याण मंत्री लालबिहारी हिम्रिका की घोषणा के अनुसार रायगडा जिले में सात और कालाहांडी जिले में पांच गावों में ही ग्राम सभा की बैठक बुलाई जाएगी. रायगडा जिले के सात गाँव में ग्राम सभा 18 जुलाई से 19 अगस्त के बीच होगी जबकि कालाहांडी जिले के पांच गाँव में ग्राम सभा 23 जुलाई से 30 जुलाई के बीच होगी.
क्लिक करें पढ़िए: ग़रीबों को आदिवासियों को दबाकर विकास नहीं
नियमगिरि में बॉक्साइट खनन का विरोध करने वालों ने राज्य सरकार के इस निर्णय की कड़ी निंदा की है.
2004 में इस पर्वत में खुदाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले जाने माने पर्यावरणविद् बिस्वजीत मोहंती ने सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बीबीसी से कहा, "इससे यह स्पष्ट हो गया की ओडिशा सरकार पर्यावरण और आदिवासी अधिकार से जुड़े सभी कानूनों और संविधानिक विधि व्यवस्था को ताक पर रखते हुए वेदांता कंपनी की तरफदारी करने पर तुली हुई है."
हालांकि आदिवासी विकास मंत्री हिम्रिका ने इस आरोप का खंडन किया है. उन्होंने कहा, "क्लिक करें वेदांता से सरकार का कोई लेना देना नहीं है. हमने ग्राम सभा के आयोजन के बारे में विधि विभाग और अधिवक्ता जनरल दोनों की राय ली और दोनों ने कहा कि हमारा फैसला सही है."
2003 में राज्य सरकार के ओडिशा खान निगम यानी ओएमसी और वेदांता कंपनी के बीच हुए समझौते के तहत सरकार ने वेदांता को अगले 30 वर्ष में लगभग 15 करोड़ टन बॉक्साइट खनन की अनुमति दी थी.
लेकिन नियमगिरि को देवता के रूप में पूजने वाले स्थानीय डोंगरिया कंध आदिवासी और ‘सर्वाइवल इंटरनेशनल’ तथा ‘एक्शन ऐड’ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के कड़े विरोध और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामलों के कारण यहाँ खुदाई शुरू नहीं हो पाई है. इसके परिणाम स्वरुप पहाड़ के ठीक नीचे लान्जिगढ़ में क्लिक करें वेदांता द्वारा लगाई गई 10 लाख टन की रिफाइनरी पिछले दिसम्बर से बंद पड़ी है .
ग्राम सभाओं की संख्या 12 में सीमित रखने के राज्य सरकार के निर्णय के बारे में नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय ने पिछले महीने ओडिशा सरकार को दो पत्र लिखे. 7 जून को विभागीय सचिव विभा पूरी दास ने राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव बिजय कुमार पटनायक के पास लिखे गए अपने पत्र में कहा की राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की राय का गलत मतलब निकाला है.
इसके कुछ ही दिन बाद विभागीय मंत्री वी किशोर चन्द्रदेओ ने सीधे राज्यपाल एससी जमीर को ख़त लिखा और उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया.
अपने पत्र में देओ ने राज्य सरकार पर वेदांता एल्युमीनियम कंपनी की तरफदारी करने का सीधा आरोप लगाते हुए राज्यपाल से अपील की कि वे अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल कर यह निश्चित करें कि नियमगिरि पहाड़ के इर्दगिर्द उन सभी गाँव में ग्राम सभा हो, जिनके लोग बॉक्साइट के खनन से प्रभावित होंगे.
इसके पहले स्थानीय डोंगरिया कंध आदिवासियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी राज्यपाल से मिलकर नियमगिरि के पास स्थित सभी 104 गाँव में ग्राम सभा कराने का आग्रह किया.
नियमगिरि में खुदाई का विरोध कर रहे संगठनों का कहना है राज्य सरकार केवल खानापूर्ति कर रही है और लोगों की राय जानने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है.
उनका आरोप है कि 12 गाँव ऐसे चुने गए हैं कि वहां सरकार अपनी मंशा के अनुरूप परिणाम निकलवा सके. इस बारे में वो इस बात का उल्लेख करते हैं कि कालाहांडी में जिन पांच गावों को चुना गया है, उनमें से एक इज्रुपा नाम के गांव में केवल एक ही परिवार रहता है जबकि अन्य गाँव में 10 या 12 परिवार ही बसते हैं.
नियमगिरि के आसपास रहने वाले सभी आदिवासी इस पर्वत को 'नियम राजा' कहते हैं और उसकी पूजा करते हैं. डोंगरिया कंध आदिवासियों के नेता कुमुटी माझी ने कहा, "सरकार चाहे कुछ भी कर ले. लेकिन हम मरते दम तक नियमगिरी पहाड़ में खुदाई करने नहीं देंगे."
नियमगिरि इलाके से मिल रही खबरों के अनुसार कम से कम चार सरपंचों ने अपने बल बूते पर ग्राम सभा आयोजित करने का निर्णय लिया है. इनमें से तीन पंचायत रायगडा जिले में हैं और एक कालाहांडी में. इन चार पंचायतों के अन्दर लगभग 60 गाँव आते हैं.
रायगडा जिले के मुनिखोल पंचायत के सरपंच मालती काद्राका कहती हैं, "संविधान ने हमें ग्राम सभा की बैठक बुलाने का अधिकार दिया है और इसका इस्तेमाल कर हम बैठक बुलाएंगे और ग्राम सभा के निर्णय सीधे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजेंगे."
स्थानीय प्रशासन ने स्थानीय लोगों से कहा है की वे जंगल अधिकार कानून के तहत अपने अपने दावे 14 जुलाई तक अपने अपने सरपंच के पास पेश करें. लेकिन यह सूचना इस दुर्गम इलाके में रहनेवाले अधिकांश लोगों के पास अभी तक नहीं पहुचं पाई है.
वेदांता विरोधियों का कहना है कि सरकार केवल ओडिया अखबारों में इस बारे में विज्ञापन निकाल कर चुप बैठ गई है, जबकि यहाँ के ज्यादातर आदिवासी न अखबार पढ़ते हैं और न ही ओडिया पढ़ पाते हैं.
सरकार की उदासीनता को देख एक स्थानीय पत्रकार और समाजसेवी मुहम्मद असलम ने विज्ञापन के मज़मून मोबाइल फ़ोन के जरिए लोगों तक उनकी अपनी भाषा यानी कुई में पहुँचाने का बीड़ा उठाया है.
लेकिन इस इलाके में मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या इतनी कम है और मोबाइल नेटवर्क इतना ख़राब है कि यह सूचना 14 जुलाई तक बहुत लोगों तक पहुँच पाएगी, ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती.
18 अप्रैल को सुप्रीमे कोर्ट ने नियमगिरि में बॉक्साइट खनन के बारे में अंतिम निर्णय स्थानीय ग्राम सभाओं पर छोड़ दिया था और तीन महीने के अन्दर यह प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया था.
कोर्ट ने केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय को इस प्रक्रिया की देखरेख की जिम्मेदारी सौपते हुए उसे यह निश्चित करने के लिए कहा था की ग्राम सभा के जरिए उन सभी की राय ली जाये, जिनका नियमगिरि पहाड़ से धार्मिक और भावनात्मक संबंध है.
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आप को विकास करना है
आप को मेरी ज़मीन पर कारखाना लगाना है
तो आप सरकार से कह कर मेरी ज़मीन का सौदा कर लेंगे
फिर आप मेरी ज़मीन से मुझे निकलने का हुक्म देंगे
में नहीं हटूंगा तो आप मुझे मेरी ज़मीन से दूर करने के लिये अपनी पुलिस को भेजेंगे
आपकी पुलिस मुझे पीटेगी , मेरी फसल जलायेगी
आपकी पुलिस मेरे बेटे को देश के लिये सबसे बड़ा खतरा बता कर जेल में डाल देगी
तुम्हारी पुलिस मेरी बेटी के गुप्तांगों में पत्थर भर देगी
में अदालत जाऊँगा तो मेरी सुनवाई नहीं की जायेगी
में कहूँगा कि यह कैसा विकास है जिसमे मेरा नुक्सान ही नुक्सान है
तो तुम पूछोगे अच्छा तो वैकल्पिक विकास का माडल क्या है तेरे पास बता ?
आप पूछेंगे कि हम तेरी ज़मीन ना लें तो फिर विकास कैसे करें ?
अजीब बात है यह तो .
विकास तुम्हें करना है विकल्प में क्यों ढूंढूं ?
में तुम्हें क्यों बताऊँ कि तुम मेरी गर्दन कैसे काटोगे ?
अरे तुम्हें विकास करना है तो उसका माडल ढूँढने की जिम्मेदारी तुम्हारी है भाई .
राष्ट्र तुमने बनाया
इसे लोकतन्त्र तुमने बताया
राष्ट्रभक्ति के मन्त्र तुमने पढ़े
अब इस राष्ट्र के बहाने से तुम मेरी ज़मीन क्यों ले रहे हो भाई
क्या राष्ट्र मेरी ज़मीन छीन कर मज़ा करने के लिये बनाया था ?
क्या राष्ट्र तुमने इसीलिये बनाया था कि तुम राष्ट्र के नाम पर इस सीमा के भीतर रहने वाले गरीबों को पीट कर उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लो
अगर राष्ट्र हम गरीबों के लिये नहीं है
अगर इस राष्ट्र की फौज पुलिस और बंदूकें मेरी बेटी की रक्षा के लिए नहीं हैं
अगर राष्ट्र मुझे लूटने का एक साधन मात्र है तुम ताकतवर लोगों के हाथों का
तो लो फिर
में तुम्हारे राष्ट्र से स्तीफा देता हूं
अब तुम्हारा और मेरा कोई लेना देना नहीं है
मैंने तुम्हें अपनी तरफ से आज़ाद किया
अब अगर तुम अपनी पुलिस मेरी ज़मीन छीनने के लिये भेजोगे तो में उसका सामना करूँगा
में अपनी ज़मीन अपनी बेटी और अपनी आजादी की हिफाज़त ज़रूर करूँगा
में गाँव का आदिवासी हूं
अजीब बात है
जब तुम्हारे सिपाही की गोली से मैं मरता हूं
तब तुम मेरी मरने के बारे में बात भी नहीं करते
लेकिन जब तुम्हारे लिये मेरी ज़मीन छीनने के लिये भेजे गये तुम्हारे सिपाही मरते हैं तब तुम राष्ट्र राष्ट्र चिल्लाने लगते हो .
बड़े चालाक हो तुम .
मेरे मृत्यु के समय तुम
साहित्य धर्म और अध्यात्म की फालतू चर्चा करते रहते हो
तुम्हारे साहित्य धर्म और अध्यात्म में भी मेरी कोई जगह नहीं होती
मेरी मौत तुम्हारे राष्ट्र के लिये कोई चिन्ता की बात नहीं है तो मैं तुम्हारे विकास की चिन्ता में अपनी ज़मीन क्यों दे दूं भाई ?
अगर तुम्हें मेरी बातें बुरी लग रही हैं तो
मेरी तरह मेहनत कर के जीकर दिखाओ
बराबरी न्याय और लोकतन्त्र का आचरण कर के दिखाओ
इंसानियत से मिल कर रह कर दिखाओ
हमें रोज़ रोज़ मारने के लिये हमारे गाँव में भेजी गई पुलिस वापिस बुलाओ
तुम्हारी जेल में बंद मेरी बेटी और बेटों को वापिस करो
फिर उसके बाद ही अहिंसा लोकतन्त्र और राष्ट्र की बातें बनाओ .
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