Re: Digest for shirdi-sai-baba-sai-satcharitra@googlegroups.com - 25 Messages in 16 Topics

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Jayasree Rao

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Feb 7, 2012, 1:33:24 AM2/7/12
to shirdi-sai-baba...@googlegroups.com
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2012/2/7 <shirdi-sai-baba...@googlegroups.com>

Group: http://groups.google.com/group/shirdi-sai-baba-sai-satcharitra/topics

    ravi mujumdar <ravi.mu...@gmail.com> Jan 27 06:07PM +0530  

    shree sai per pura jiven arpit hay. sai hi mera janam hai aur sai hi mera mrutyu
     

     

    akhila rajput <rajput...@gmail.com> Jan 26 09:38PM +0530  

    Om Sai ram.
     
     
    Dear Sai maa,
    Please take us to your Holy Darbar Shidiri soon.
    Please Baba...........bless us.
     
     
    Jai Sainath.
     
     
     
     
     
     
    Thanks&regards
    Akhila.R

     

    manoj melur <melur...@gmail.com> Jan 27 10:08AM +0530  

    *oam namo narayanaya oam namo narayanaya oam namo narayanaya*
     
     
    sairam
    --
    manojkumar

     

    Virti <saiv...@gmail.com> Jan 26 09:30PM  

    Offer your mind and intellect to me, remembering me all the time.
     
    http://www.babasaiofshirdi.org/
     
     
    --
    Posted By Virti to Free Sms of Shirdi Sai Baba | Sai Baba Sayings | Shirdi
    Sai Baba quotes | Sutras at 1/27/2012 03:00:00 AM

     

    Anand Sai <bhawes...@saimail.com> Jan 26 05:07PM +0530  

    *ॐ सांई राम*
     
     
    *आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ
    कामनाएं , **हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर
    आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से
    अनुमति चाहते है , **हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र
    का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, **किसी भी प्रकार
    की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...*
     
     
    श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 42 - महासमाधि की ओर
    ------------------------------
     
     
    -------------------------------------
     
     
    भविष्य की आगाही – रामचन्द्र दादा पाटील और तात्या कोते पाटील की मृत्यु टालना
    – लक्ष्मीबाई शिन्दे को दान – अन्तिम क्षण ।
     
     
    बाबा ने किस प्रकार समाधि ली, इसका वर्णन इस अध्याय में किया गया है ।
     
     
    प्रस्तावना
     
    ................
     
    गत अध्यायों की कथाओं से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि गुरुकृपा की केवल एक
    किरण ही भवसागर के भय से सदा के लिये मुक्त कर देती है तथा मोक्ष का पथ सुगम
    करके दुःख को सुख में परिवर्तित कर देती है । यदि सदगुरु के मोहविनाशक पूजनीय
    चरणों का सदैव स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे समस्त कष्टों और भवसागर के दुःखों
    का अन्त होकर जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा हो जायेगा । इसीलिये जो अपने
    कल्याणार्थ चिन्तित हो, उन्हें साई समर्थ के अलौकिक मधुर लीलामृत का पान करना
    चाहिये । ऐसा करने से उनकी मति शुद्घ हो जायेगी । प्रारम्भ में डाँक्टर पंडित
    का पूजन तथा किस प्रकार उन्होंने बाबा को त्रिपुंड लगाया, इसका उल्लेख मूल
    ग्रन्थ में किया गया है । इस प्रसंग का वर्णन 11 वें अध्याय में किया जा चुका
    है, इसलिये यहाँ उसका दुहराना उचित नहीं है ।
     
     
    भविष्य की आगाही
     
    ......................
     
    पाठको । आपने अभी तक केवल बाबा के जीवन-काल की ही कथायें सुनी है । अब आप
    ध्यानपूर्वक बाबा के निर्वाणकाल का वर्णन सुनिये । 28 सितम्बर, सन् 1918 को
    बाबा को साधारण-सा ज्वर आया । यह ज्वर 2-3 दिन ततक रहा । इसके उपरान्त ही बाबा
    ने भोजन करना बिलकुल त्याग दिया । इससे उनका शरीर दिन-प्रतिदिन क्षीण एवं
    दुर्बल होने लगा । 17 दिनों के पश्चात् अर्थात् 18 अक्टूबर, सन् 1918 को 2
    बजकर 30 मिनट पर उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया । (यह समय प्रो. जी. जी. नारके
    के तारीख 5-11-1918 के पत्र के अनुसार है, जो उन्होंने दादासाहेब खापर्डे को
    लिखा था और उस वर्ष की साईलीलापत्रिका के 7-8 पृष्ठ (प्रथम वर्ष) में प्रकाशित
    हुआ था) । इसके दो वर्ष पूर्व ही बाबा ने अपने निर्वाण के दिन का संकेत कर
    दिया था, परन्तु उस समय कोई भी समझ नहीं सका । घटना इस प्रकार है । विजया दशमी
    के दिन जब लोग सन्ध्या के समय सीमोल्लंघनसे लौट रहे थे तो बाबा सहसा ही
    क्रोधित हो गये । सिर पर का कपड़ा, कफनी और लँगोटी निकालकर उन्होंने उसके
    टुकड़े-टुकड़े करके जलती हुई धूनी में फेंक दिये । बाबा के द्घारा आहुति
    प्राप्त कर धूनी द्घिगुणित प्रज्वलित होकर चमकने लगी और उससे भी कहीं अदिक
    बाबा के मुख-मंडल की कांति चमक रही थी । वे पूर्ण दिगम्बर खड़े थे और उनकी
    आँखें अंगारे के समान चमक रही थी । उन्होंने आवेश में आकर उच्च स्वर में कहा
    कि लोगो । यहाँ आओ, मुझे देखकर पूर्ण निश्चय कर लो कि मैं हिन्दू हूँ या
    मुसलमान । सभी भय से काँप रहे थे । किसी को भी उनके समीप जाने का साहस न हो
    रहा था । कुछ समय बीतने के पश्चात् उनके भक्त भागोजी शिन्दे, जो महारोग से
    पीड़ित थे, साहस कर बाबा के समीप गये और किसी प्रकार उन्होंने उन्हें लँगोटी
    बाँध दी और उनसे कहा कि बाबा । यह क्या बात है । देव आज दशहरा (सीमोल्लंघन) का
    त्योहार है । तब उन्होंने जमीन पर सटका पटकते हुए कहा कि यह मेरा सीमोल्लंघन
    है । लगभग 11 बजे तक भी उनका क्रोध शान्त न हुआ और भक्तों को चावड़ी जुलूस
    निकलने में सन्देह होने लगा । एक घण्टे के पश्चात् वे अपनी सहज स्थिति में आ
    गये और सदी की भांति पोशाक पहनकर चावड़ी जुलूस में सम्मिलित हो गये, जिसका
    वर्णन पूर्व में ही किया जा चुका है । इस घटना द्घारा बाबा ने इंगित किया कि
    जीवन-रेखा पार करने के लिये दशहरा ही उचित समय है । परन्तु उस समय किसी को भी
    उसका असली अर्थ समझ में न आया । बाबा ने और भी अन्य संकेत किये, जो इस प्रकार
    है ः-
     
     
    रामचन्द्र दादा पाटील की मृत्यु टालना
     
    .....................................
     
    कुछ समय के पश्चात् रामचन्द्र पाटील बहुत बीमार हो गये । उन्हें बहुत कष्ट हो
    रहा था । सब प्रकार के उपचार किये गये, परन्तु कोई लाभ न हुआ और जीवन से हताश
    होकर वे मृत्यु के अंतिम क्षणों की प्रतीक्षा करने लगे । तब एक दिन मध्याहृ
    रात्रि के समय बाबा अनायास ही उनके सिरहाने प्रगट हुए । पाटील उनके चरणों से
    लिपट कर कहने लगे कि मैंने अपने जीवन की समस्त आशाये छोड़ दी है । अब कृपा कर
    मुझे इतना तो निश्चित बतलाइये कि मेरे प्राण अब कब निकलेंगे । दया-सिन्धु बाबा
    ने कहा कि घबराओ नहीं । तुम्हारी हुँण्डी वापस ले ली गई है और तुम शीघ्र ही
    स्वस्थ हो जाओगे । मुझे तो केवल तात्या का भय है कि सन् 1918 में विजया दशमी
    के दिन उसका देहान्त हो जायेगा । किन्तु यह भेद किसी से प्रगट न करना और न ही
    किसी को बतलाना । अन्यथा वह अधिक बयभीत हो जायेगा । रामचन्द्र अब पूर्ण स्वस्थ
    हो गये, परन्तु वे तात्या के जीवन के लिये निराश हुए । उन्हें ज्ञात था कि
    बाबा के शब्द कभी असत्य नहीं निकल सकते और दो वर्ष के पश्चात ही तात्या इस
    संसर से विदा हो जायेगा । उन्होंने यह भेद बाला शिंपी के अतिरिक्त किसी से भी
    प्रगट न किया । केवल दो ही व्यक्ति – रामचन्द्र दादा और बाला शिंपी तात्या के
    जीवन के लिये चिन्ताग्रस्त और दुःखी थे ।
     
     
    रामचन्द्र ने शैया त्याग दी और वे चलने-फिरने लगे । समय तेजी से व्यतीत होने
    लगा । शके 1840 का भाद्रपद समाप्त होकर आश्विन मास प्रारम्भ होने ही वाला था
    कि बाबा के वचन पूर्णतः सत्य निकले । तात्या बीमार पड़ गये और उन्होंने चारपाई
    पकड़ ली । उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि अब वे बाबा के दर्शनों को भी जाने
    में असमर्थ हो गये । इधर बाबा भी ज्वर से पीड़ित थे । तात्या का पूर्ण विश्वास
    बाबा पर था और बाबा का भगवान श्री हरि पर, जो उनके संरक्षक थे । तात्या की
    स्थिति अब और अधिक चिन्ताजनक हो गई । वह हिलडुल भी न सकता था और सदैव बाबा का
    ही स्मरण किया करता था । इधर बाबा की भी स्थिति उत्तरोत्तर गंभीर होने लगी ।
    बाबा द्घार बतलाया हुआ विजया-दसमी का दिन भी निकट आ गया । तब रामचन्द्र दादा
    और बाला शिंपीबहुत घबरा गये । उनके शरीर काँप रहे थे, पसीने की धारायें
    प्रवाहित हो रही थी, कि अब तात्या का अन्तिम साथ है । जैसे ही विजया-दशमी का
    दिन आया, तात्या की नाड़ी की गति मन्द होने लगी और उसकी मृत्यु सन्निकट दिखलाई
    देने लगी । उसी समय एक विचित्र घटना घटी । तात्या की मृत्यु टल गई और उसके
    प्राण बच गये, परन्तु उसके स्थान पर बाबा स्वयं प्रस्थान कर गये और ऐसा प्रतीत
    हुआ, जैसे कि परस्पर हस्तान्तरण हो गया हो । सभी लोग कहने लगे कि बाबा ने
    तात्या के लिये प्राण त्यागे । ऐसा उन्होंने क्यों किया, यह वे ही जाने,
    क्योंकि यह बात हमारी बुद्घि के बाहर की है । ऐसी भी प्रतीत होता है कि बाबा
    ने अपने अन्तिम काल का संकेत तात्या का नाम लेकर ही किया था ।
     
     
    दूसरे दिन 16 अक्टूबर को प्रातःकाल बाबा ने दासगणू को पंढरपुर में स्वप्न दिया
    कि मसजिद अर्रा करके गिर पड़ी है । शिरडी के प्रायः सभी तेली तम्बोली मुझे
    कष्ट देते थे । इसलिये मैंने अपना स्थान छोड़ दिया है । मैं तुम्हें यह सूचना
    देने आया हूँ कि कृपया शीघ्र वहाँ जाकर मेरे शरीर पर

     

    vikram sharma <mcom...@gmail.com> Jan 26 02:47PM +0530  

    om sai ram
     
    On Thu, Jan 26, 2012 at 4:20 AM, The Glory Of Shirdi Sai <

     

    akhila rajput <rajput...@gmail.com> Jan 26 12:56PM +0530  

    Om SriSairam.
    Thank you for this beautiful pictures of Saimaa.
     
    Happy BABA'S DAY TO ALL.
     
     
    Jai Sainath.
     
     
    --
    --------------
    Thanks &Regards,
    Akhila.R

     

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vikram sharma

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Feb 7, 2012, 1:54:59 AM2/7/12
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om sai ram


2012/2/7 Jayasree Rao <jayasree....@gmail.com>
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