अद्भुत सुगमतम शब्दकोष

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Dr. Kavita Vachaknavee

未读,
2010年7月29日 12:16:252010/7/29
收件人 hindi-...@yahoogroups.com
अद्भुत सुगमतम  शब्दकोष देखने में आया  ( हिन्दी > अनेक वैश्विक भाषाएँ) 


- (डॉ.) कविता वाचक्नवी

रावेंद्रकुमार रवि

未读,
2010年7月29日 12:41:072010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
क्या समूह का कोई सदस्य डॉ.कविता वाचक्नवी जी को
"शब्दकोष" की सही वर्तनी बताने की हिम्मत कर सकता है?

--
शुभकामनाओं के साथ -
आपका -
रावेंद्रकुमार रवि (संपादक : सरस पायस)

अजित वडनेरकर

未读,
2010年7月29日 12:51:452010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
कोश में और दोनो प्रचलित हैं। व्याकरण ग्रंथ इसके बारे में कोई
ठोस बात नहीं बताते।

मेरी नज़र में कविताजी ने गलत नहीं लिखा। मैं आदतन कोश लिखता हूं।

2010/7/29 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

--
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शुभकामनाओं सहित
अजित
http://shabdavali.blogspot.com/

रावेंद्रकुमार रवि

未读,
2010年7月29日 12:56:032010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
मेरी नज़र में तो अजित जी ग़लत को भी ग़लत लिख गए हैं!

narayan prasad

未读,
2010年7月29日 13:50:572010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
पहले कोष और कोश समानार्थी प्रयुक्त होते थे । प्रसिद्ध अमरकोष में ष का ही प्रयोग हुआ है, श का नहीं । परन्तु कोष का प्रयोग अब (शायद सन् 1950 के आसपास से) खजाना अर्थ में और कोश का निघंटु (शब्दकोश) अर्थ में लगभग निश्चित हो गया है ।
---नारायण प्रसाद

2010/7/29 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

क्या समूह का कोई सदस्य डॉ.कविता वाचक्नवी जी को
"शब्दकोष" की सही वर्तनी बताने की हिम्मत कर सकता है?

2010/7/29 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
कोश में और दोनो प्रचलित हैं। व्याकरण ग्रंथ इसके बारे में कोई ठोस बात नहीं बताते। मैं आदतन कोश लिखता हूं।

narayan prasad

未读,
2010年7月29日 13:56:212010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
बहुत-बहुत धन्यवाद कविता जी । यह तो वस्तुतः अद्भुत है !!!
सादर,
नारायण प्रसाद

2010/7/29 Dr. Kavita Vachaknavee <kavita.va...@gmail.com>

Dr. Kavita Vachaknavee

未读,
2010年7月29日 15:06:212010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
रावेन्द्र रवि जी,

अजित जी और नारायण जी ने स्थित यद्यपि काफी साफ़ कर दी है पुनरपि मैं कामना करती हूँ कि काश आप भी संस्कृत का विधिवत्  अध्ययन करें. बल्कि भाषा से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को संस्कृत अनिवार्य पढनी चाहिए. स्कूल  पाठ्यक्रम वाली संस्कृत नहीं अपितु धातुपाठ और व्याकरण आदि . यह देश के नहीं अपितु समूची मानव जाति के अहित में है / हुआ,  कि भारत में संस्कृत को वर्गविशेष की भाषा के रूप में कर्मकाण्ड तक सीमित मान लिया गया और अब ऐसी ही साजिश हिन्दी के साथ स्वयं कुछ हिन्दी वाले भी करने में लगे हैं ( कि हिन्दी हिन्दुओं कि व उर्दू मुस्लिमों की भाषा है) | इसके कितने घातक परिणाम होंगे, इसका उन्हें अनुमान भी नहीं. विश्व के अन्य देशों के भाषाविदों या विद्यार्थियों द्वारा जिस प्रकार संस्कृत को भाषाओं की मूल  मान कर अध्ययन किया जाता है उसी प्रकार भारत में भी सभी पूर्वाग्रहों से हट कर संस्कृत का अध्ययन किया जाना अनिवार्य है. दुर्भाग्य है कि भारत के अधिकाँश आधुनिक भाषाविज्ञानी संस्कृत के अध्ययन  से कोरे होते हैं. प्रसंगवश बता दूँ कि पाणिनी पर अब तक विश्व में जितने कार्य हुए हैं उनकी परिगणना मात्र करने वाला एक सर्वेक्षण जर्मनी के एक भाषाचेता ने किया है, जो कई वोल्यूम में छपा( यद्यपि उसमें केवल लिस्टिंग की गई है)| और ऊपर से दुर्भाग्य यह कि केवल दो भारतीय प्रखर विद्वान उस में अपनी महता प्रमाणित कर विशिष रूप में सम्मिली किए गए. वे हैं श्रद्धेय ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी ( जो लाहौर में रामलाल कपूर त्रस्त द्वारा संचालित एक मात्र आर्ष गुरुकुल के आद्य आचार्य व संस्थापक थे व  बाद में मोतीझील बनारस के उनके गुरुकुल में युधिष्ठिर जी व आदरणीया स्वर्गीया प्रज्ञा जी (आर्ष कन्या गुरुकुल बनारस की संस्थापिका व आचार्या ) उनके शिष्य थे | दूसरे सम्मिलित व्यक्ति हैं  मेरे पितृतुल्य परिवारी महामहोपाध्याय पं. युधिष्ठिर जी मीमांसक.  मात्र इन दो लोगों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि इनके जितना गंभीर काम करने वालों में शेष सभी विदेशी भाषावेत्ता हैं, बहुधा फ्रांस व जर्मनी के. है ना आश्चर्य की बात! यह संस्कृत और संस्कृत के भाषाविज्ञानी पाणिनी का महत्व प्रतिपादित करता है; जिसे अपने देश में सही महत्व नहीं मिला जो मिलना चाहिए. इसलिए यदि कोई इस पूर्वाग्रह के कारण संस्कृत से पल्ला झाड़ता है कि वह केवल पंडितों या कर्म काण्ड की भाषा है तो यह उस भाषा का नहीं अपितु स्वयं ऐसा करने वालों का दुर्भाग्य है. 
  
 लंबा लिख गई हूँ किन्तु संस्कृत के प्रति मेरी भावुकता/ भावना के चलते ऐसा हो गया. अस्तु!

अब निवेदन है कि संस्कृत के नियमानुसार कोष ही सही रूप है| हिन्दी में (जैसा कि नारायण जी ने भी लिखा)  कोष व कोश को किन्हीं अर्थ-विशेष में रूढ़ कर लिया गया है, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि जो मूल शब्द सही लिखे उसे किसी पूर्वाग्रह के चलते अजीब ढंग से वाक्य लिख कर व्यंग्यायित किया जाए.

अजित जी ग़लत पर आपकी टिप्पणी के पश्चात् यही जोडूँगी कि नुक्ते वाले मामले पर लम्बी बहस मुबाहिसें हो चुकी हैं, इसलिए नुक्ते पर यह मीनमेख अब बस  करें.

सादर सप्रेम
- (डॉ.) कविता वाचक्नवी



2010/7/29 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

未读,
2010年7月29日 15:14:132010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
सही कहते हैं। नुक़ताचीनी भी इसे ही कहते हैं। हिन्दी में नुक़ता नहीं लगता।
पर मैं अक़सर लगाने की कोशिश करता हूं।
कभी छूट भी जाता है, सो आप जैसे पारखियों की ज़ेर-निग़ाह...

2010/7/29 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>
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अजित वडनेरकर

未读,
2010年7月29日 15:17:412010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
ज़ेरे निग़ाह पढ़ें

2010/7/30 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
360.gif

Dr. Kavita Vachaknavee

未读,
2010年7月29日 15:24:102010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
गत ईमेल के निम्न वाक्य के उभरे शब्दों को  कृपया सही कर पढ़ें -

महत्ता प्रमाणित कर विशिष्ट  रूप में सम्मिलित किए गए. वे हैं श्रद्धेय ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी ( जो लाहौर में रामलाल कपूर ट्रस्ट .."


निम्न वाक्य को इस रूप में पढ़ें -

"अजित जी के  `ग़लत' पर आपकी..."


सादर सप्रेम
-  क.वा.

2010/7/29 Dr. Kavita Vachaknavee <kavita.va...@gmail.com>
रावेन्द्र रवि जी,

vinodji sharma

未读,
2010年7月29日 20:53:102010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
नमस्कार,
परम आदरणीया कविताजी ते क्षमा याचना सहित निवेदन है कि (कि हिन्दी हिन्दुओं कि व उर्दू मुस्लिमों की भाषा है) वाक्य में 'हिंदुओं कि' के स्थान पर 'हिंदुओं की' होना चाहिये। अंतर्जाल पर लिखने वाले अधिकांश लेखक व कवि "कि" के स्थान पर "की" तथा "की" के स्थान पर "कि" का उपयोग कर रहे हैं। इसी प्रकार दो स्थानों पर "महत्व" लिखा गया है जो "महत्त्व" लिखा जाना चाहिये था। मेरा उद्देश्य त्रुटि इंगित करना नहीं है, किंतु जब भाषा की शुद्धता पर चर्चा हो रही है, तो मैं ने यह उपयुक्त समझा कि अंतर्जाल पर होने वाली सामान्य भूलों की ओर संकेत करूँ। 
धन्चवाद।
2010/7/30 Dr. Kavita Vachaknavee <kavita.va...@gmail.com>

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सादर शुभकामनाओं सहित,
विनोद कुमार शर्मा
9413394205
01412247205

vinodji sharma

未读,
2010年7月29日 20:56:102010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
पुनश्च - कृपया प्रथम पंक्ति में "कविताजी ते" के स्थान पर "कविताजी से" पढ़ें। धन्यवाद।

2010/7/30 vinodji sharma <vinodj...@gmail.com>

Dr. Kavita Vachaknavee

未读,
2010年7月29日 21:45:552010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
नमस्ते,
ईमेल के लिए धन्यवाद.  मैं यद्यपि नारायण जी के मेल के उत्तर में ही निवेदन करना चाहती थी किन्तु  टाल गई, अब आपका सन्देश पाकर लिखने को बाध्य होना पड़ा.
जहाँ तक ` कि'/ `की' का प्रश्न है,  प्रथम तो यह कि गत डेढ़ माह से, दुर्घनाग्रस्त होने के उपरांत से, बिस्तर पर बँधे बँधे परिवार में से जिस का भी लैपटॉप हाथ में आता है उसी से प्रत्युत्तर शीघ्र देने में लग जाती हूँ. दुर्भाग्यवश घर में ६ लैपटॉप और एक पीसी है; केवल निजी लैपटॉप में देवनागरी का विकल्प है, अतः शेष सभी से काम करते हुए मुझे गूगल मेल की लिप्यन्तरण सुविधा द्वारा काम चलाना होता है, उसमें चूकें बहुधा हो जाती हैं क्योंकि वह सीधे लिखने का यन्त्र नहीं है और उसमें शब्द विकल्प की सुविधा भी यथेष्ट नहीं होती. बहुधा हलंत शब्दों के लिए तो यों ही काम चलाना पड़ता है या कभी कभी द्रविड़ प्राणायाम करके हल निकालना होता है. 
ऊपर से मैं लगभग ( इस दुर्घटना काल को छोड़ कर) निरंतर थोड़े थोड़े अंतराल पर लम्बी यात्राओं पर रहती हूँ. आगामी कई माह पुनः यही होने वाला है, सो उन यात्राओं में सभी जगह वाई-फाई न होने के कारण स्थानीय सिस्टम का उपयोग (वह भी कभी हाथ लग जाए तो) कर के ही संतोष करना पड़ता है, तब भी यही लिप्यन्तरण ही किसी तरह गाड़ी चलाता है.
  पुनरपि मुझे सावधान रहना चाहिए. आपने अच्छा ध्यान दिलाया.
 सधन्यवाद.
- (डॉ.) कविता वाचक्नवी


2010/7/30 vinodji sharma <vinodj...@gmail.com>

Ravishankar Shrivastava

未读,
2010年7月29日 23:29:102010/7/29
收件人 technic...@googlegroups.com
On 7/29/10 9:46 PM, Dr. Kavita Vachaknavee wrote:
> अद्भुत सुगमतम शब्दकोष देखने में आया ( हिन्दी > अनेक वैश्विक भाषाएँ)
>
> http://shabdkosh-hindi.com/
>

प्रतीत होता है कि गूगल ट्रांसलेट एपीआई का प्रयोग कर बनाया गया है. वस्तुतः यह गूगल
ट्रांसलेट का एक अलग तरह का इंटरफेस है. इस तरह से यह मात्र शब्द कोश नहीं है, बल्कि
ट्रांसलेट टूल है जिसमें आप जैसे जैसे वाक्य लिखते जाएंगे, पूरा वाक्य अनुवादित होता जाएगा.
इंटरफेस अच्छा और साफ-सुथरा है तथा भविष्य की भाषाई कम्प्यूटिंग की ताक़त की एक झलक तो
दिखाता ही है.
सादर,
रवि

> - (डॉ.) कविता वाचक्नवी
> http://www.google.com/profiles/kavita.vachaknavee
>

Anunad Singh

未读,
2010年7月30日 00:17:072010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
यह देखने में तो बहुत अच्छा है किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो इसकी उपयोगिता समझ में नहीं आ रही है। यह  'गूगल ट्रांस्लेट'  से किस मामले में अधिक सुविधाजनक हो सकता है या कुछ नया कर सकता है?

-- अनुनाद सिंह

=========================

३० जुलाई २०१० ८:५९ AM को, Ravishankar Shrivastava <ravir...@gmail.com> ने लिखा:

Mayur Dubey

未读,
2010年7月30日 02:31:162010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
आपने बिलकुल सही पकड़ा , ये सिर्फ गूगल कि एपीआई का अनुप्रयोग ही है , जो कि गूगल कोड पर निशुल्क उपयोग हेतु उपलब्ध है , इसे उपयोग कर हममे से कोई भी अपने ब्लॉग पर ऐसा अनुवादक बना सकता है .

गूगल कुछ API सार्वजनिक ज़रूर करता है पर, खुद उनसे उन्नत API ही इस्तेमाल करता है .
ऐसे में इस साईट को ट्रांसलेशन के लिए उपयोग करते हुए यदि हम एक साथ 60 शब्दों से अधिक डालते हैं तो ये काम नहीं करता .
यदि इस तरह शब्दों का अर्थ ढूँढना है तो फिर गूगल ट्रांसलेट पर ही जाना बेहतर है , जहाँ काम तेजी से हो .

धन्यवाद,
मयूर

2010/7/30 Anunad Singh <anu...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

未读,
2010年7月30日 03:29:192010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
कुछ विद्वान साथी इधर उधर भटक रहे हैं। 

व्यवहार और शिष्टाचार की भाषा में फर्क होता है। यह समूह एक परिवार है जहां शिष्टाचार की तुलना में व्यवहार महत्वपूर्ण है। यहां साहित्य रचना नहीं हो रही है बल्कि सूचना और जानकारियों का आदान-प्रदान हो रहा है। महान लेखक भी वर्तनी दोष से बच नहीं सके थे। वर्तनी को पकड़ लिया तो सारी लोक भाषाएं और हिन्दी की बोलियों के प्रयोग बंद हो जाएंगे जिनसे इस भाषा में लालित्य बना है। आपसी पत्रव्यवहार में हम संदेश को महत्व देते हैं या वर्तनी दोष को? वर्तनी दोष न रहेगा तब सम्पादक तो भूखा मर जाएगा? 
संवाद पर व्याकरण को हावी न होने दें साथियों। किसी भी समूह का उद्धेश्य अंततः संवाद है। यहां इतना अज्ञानी कोई नहीं कि जब तक मूल समस्या ही वर्तनी न हो, इस विषय पर चर्चा चलाना चाहे। 

मेरी मंशा साफ है, फिर भी अग्रिम क्षमायाचना उनसे जो जल्दी बुरा मानते हैं। 





2010/7/30 Mayur Dubey <mayurdu...@gmail.com>



--

रावेंद्रकुमार रवि

未读,
2010年7月30日 04:21:562010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
♣ मेरी नज़र में कविताजी ने गलत नहीं लिखा। मैं आदतन कोश लिखता हूं। ♣
--
मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई, अजित जी! क्षमाप्रार्थी हूँ!
--
आपके पहले वाक्य में नज़र में नुक़्ता लगा था और ग़लत में नहीं,
इसलिए मैंने ऐसा लिखा था!
--
आपके दूसरे वाक्य पर मैं अधिक ध्यान नहीं दे पाया,
जो यह स्पष्ट करता है कि आप वर्तनी को "आदतन" लिखते हैं!
--
यही लापरवाही मेरी इस बड़ी ग़लती का कारण बन गई!
--
पुन: क्षमाप्रार्थी हूँ!
प्रार्थना है कि अब इस बात को "अद्भुत सुगमतम शब्दकोष"
शीर्षक के अंतर्गत आगे न बढ़ाया जाए!
--
यह बात मुझे अच्छी तरह याद है कि इस समूह के स्वामी प्रसाद जी
अपनी पसंद के अनुसार हिंदी-वर्तनी लिखते हैं!
--
और अब यह बात भी याद रखूँगा कि अजित जी
अपनी आदत के अनुसार हिंदी-वर्तनी लिखते हैं!


--

रावेंद्रकुमार रवि

未读,
2010年7月30日 04:27:282010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
विनोद जी,
"अंतरजाल" को "अंतर्जाल" लिखना भी अंतरजाल पर होनेवाली सामान्य भूलों में एक है!
--
आपसे भी यही निवेदन है कि इस बात को "अद्भुत सुगमतम शब्दकोष"

शीर्षक के अंतर्गत आगे न बढ़ाया जाए!

--

रावेंद्रकुमार रवि

未读,
2010年7月30日 04:33:042010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
कविता जी,
इस बात के लिए क्षमा चाहूँगा कि मैंने
इस चर्चा को मुख्य विषय से हटाने का अपराध किया!
--
कोश और कोष पर अलग से विचार करेंगे,
ताकि इनके अर्थ स्पष्ट होकर समूह के सामने आ सकें!
--
आपकी प्रेरणा से हिंदी के लिए संस्कृत-व्याकरण का अध्ययन प्रारंभ कर दिया है!
इस प्रेरणा के लिए आपका आभारी भी हूँ!

ePandit | ई-पण्डित

未读,
2010年7月30日 10:35:212010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
अब निवेदन है कि संस्कृत के नियमानुसार कोष ही सही रूप है| हिन्दी में (जैसा कि नारायण जी ने भी लिखा)  कोष व कोश को किन्हीं अर्थ-विशेष में रूढ़ कर लिया गया है, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि जो मूल शब्द सही लिखे उसे किसी पूर्वाग्रह के चलते अजीब ढंग से वाक्य लिख कर व्यंग्यायित किया जाए.

मैं कविता जी से सहमत हूँ कि मानकीकरण के नाम पर परम्परागत देवनागरी की वर्तनियों को अशुद्ध ठहराया जाय। उदाहरण के लिये मानकीकरण के अनुसार 'हिंदी' लिखा जाना चाहिये लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि 'हिन्दी' गलत है।

३० जुलाई २०१० १२:३६ AM को, Dr. Kavita Vachaknavee <kavita.va...@gmail.com> ने लिखा:

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Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.

ePandit: http://epandit.shrish.in/

ePandit | ई-पण्डित

未读,
2010年7月30日 10:36:362010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
कृपया उपरोक्त पंक्ति को इस प्रकार पढ़ें -
मैं कविता जी से सहमत हूँ कि यह ठीक नहीं कि मानकीकरण के नाम पर परम्परागत देवनागरी की वर्तनियों को अशुद्ध ठहराया जाय।

३० जुलाई २०१० ८:०५ PM को, ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com> ने लिखा:

ePandit | ई-पण्डित

未读,
2010年7月30日 10:44:102010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
अब निवेदन है कि संस्कृत के नियमानुसार कोष ही सही रूप है| हिन्दी में (जैसा कि नारायण जी ने भी लिखा)  कोष व कोश को किन्हीं अर्थ-विशेष में रूढ़ कर लिया गया है, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि जो मूल शब्द सही लिखे उसे किसी पूर्वाग्रह के चलते अजीब ढंग से वाक्य लिख कर व्यंग्यायित किया जाए.

मुझे याद है कि आरम्भ में मैं भी कोष ही लिखता था (मुझे परम्परागत वर्तनियाँ पसन्द हैं) और मुझ पर भी ऐसे ही व्यंग्य किया गया था। फिर यद्यपि शुद्धम् लोकविरुद्धम वाले नियम के अनुसार मैं कोश लिखने लगा।

३० जुलाई २०१० १२:३६ AM को, Dr. Kavita Vachaknavee <kavita.va...@gmail.com> ने लिखा:
रावेन्द्र रवि जी,

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ePandit | ई-पण्डित

未读,
2010年7月30日 11:05:452010/7/30
收件人 technic...@googlegroups.com
२९ जुलाई २०१० ११:२० PM को, narayan prasad <hin...@gmail.com> ने लिखा:

पहले कोष और कोश समानार्थी प्रयुक्त होते थे । प्रसिद्ध अमरकोष में ष का ही प्रयोग हुआ है, श का नहीं । परन्तु कोष का प्रयोग अब (शायद सन् 1950 के आसपास से) खजाना अर्थ में और कोश का निघंटु (शब्दकोश) अर्थ में लगभग निश्चित हो गया है ।
---नारायण प्रसाद

नारायण जी एक जिज्ञासा है कि यदि कोश का शब्दकोश के सन्दर्भ  में अर्थ लिया जाता है तो कविताकोश सही है या कविताकोष?
 

2010/7/29 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

क्या समूह का कोई सदस्य डॉ.कविता वाचक्नवी जी को
"शब्दकोष" की सही वर्तनी बताने की हिम्मत कर सकता है?

2010/7/29 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
कोश में और दोनो प्रचलित हैं। व्याकरण ग्रंथ इसके बारे में कोई ठोस बात नहीं बताते। मैं आदतन कोश लिखता हूं।

--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
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Dr. Kavita Vachaknavee

未读,
2010年8月3日 13:23:362010/8/3
收件人 hindi-...@yahoogroups.com

आदरणीय मल्होत्रा जी,

आप ने इसे उपयोगी पाया तो मेरा इस लिंक को समूह पर भेजना सार्थक हुआ. धन्यवाद.

अब रही बात संस्कार के समानार्थी शब्द की,  तो मैं आप ही की बात को और आगे बढ़ना चाहूँगी कि केवल `संस्कार' ही नहीं अपितु `धर्म' के लिए भी किसी भाषा में कोई शब्द नहीं है, `रिलिजन' तो `सम्प्रदाय' अथवा `पंथ' का वाचक है; इसी प्रकार `निर्वाण' शब्द के लिए भी कोई समानार्थी शब्द असंभव है कि कहीं मिले. 

वस्तुत: दर्शन (+ जीवनदर्शन )  की शब्दावली के लिए यह समस्या बने रहेगी कि उसके लिए अधूरे विकल्पों में से किसी का चुनाव मन मार कर करना पड़ेगा.

जिन भाषासमाजों में जिस जीवनदर्शन की परम्परा है, उन भाषा समाजों में ही तो वे शब्द मिलेंगे ना!  यही हाल रिश्ते नाते के शब्दों का भी है कि साढ़ू, समधिन, चचिया सास, पतोहू, चचेरा, ममेरा, फुफेरा, सलहज जैसे ढेरों संबंधो के लिए सही सटीक व निश्चित शब्द भारतीय भाषाओं से इतर भाषासमाजों में नहीं है.जहाँ भाभी भी `सिस्टर इन लॉ 'है, तो साली भी, सलहज भी, ननद भी, जेठानी भी और देवरानी भी. 

इनके लिए भी सही शब्द बस ढूँढते रह जाएँगे वाली बात है .

सादर 

- (डॉ.) कविता वाचक्नवी


2010/7/31 Vijay K. Malhotra <malho...@gmail.com>
मैं समझता हूँ कि हिंदी >  वैश्विक भाषा    और वैश्विक भाषा  > हिंदी का
यह पहला ऑनलाइन महत्वपूर्ण और अनुकरणीय उदाहरण है.
कविता जी को एक बार फिर इंटरनेट के सागर से ऐसा नायाब मोती ढूँढकर लाने
के लिए शतशः बधाई....
मैंने हिंदी >रूसी, हिंदी  >अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ी > हिंदी का प्रयोग
करके देखा है और इसे बहुत उपयोगी पाया है.
बस एक हिंदी शब्द है जिसका अंग्रेज़ी पर्याय खोजने के लिए मैं बेचैन हूँ
और वह है संस्कार. इस कोश में भी इसका एक ही अर्थ rite (जैसे अंतिम
संस्कार/ Last rites) बताया गया है,जबकि इसके अनेक निहितार्थ हैं.
कृपया इस शब्द के अन्य अंग्रेज़ी खोजने में मेरी मदद करें.
विजय

2010/7/29 Dr. Kavita Vachaknavee <kavita.va...@gmail.com>:
--
विजय कुमार मल्होत्रा
पूर्व निदेशक (राजभाषा),
रेल मंत्रालय,भारत सरकार
Vijay K Malhotra
Former Director (Hindi),
Ministry of Railways,
Govt. of India
आवास का पता / Residential Address:
Vijay K Malhotra
WW/67/SF,
MALIBU TOWNE,
SOHNA ROAD,
GURGAON- 122018
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