चिट्ठाजगत की ओर से धनतेरस की भेंट - गिरगिट का कूट मुक्त हुआ

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आलोक | Alok

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Oct 15, 2009, 5:38:19 AM10/15/09
to Chithakar | चिट्ठाकार
नमस्ते!
गिरगिट http://girgit.chitthajagat.in की सुविधा तो निःशुल्क थी ही, अब
गिरगिट का कूट भी मुक्त रूप से उपलब्ध है -

http://code.google.com/p/girgit/source/browse/#svn/trunk/Girgit/src/in/chitthajagat/girgit/server

यह कूट ही नौ लिपियों में आपके स्थलों का लिप्यंतरण करता है।
अब यह ग्नू आम सार्वजनिक अनुमतिपत्र (http://www.gnu.org/licenses/
gpl-3.0-standalone.html) के तहत उपलब्ध है, अर्थात् -

- आप इस कूट को पढ़ के इसमें बदलाव सुझा सकते हैं, और गिरगिट कूट दल के
सदस्य भी बन सकते हैं।
- यदि आप इस कूट का अपने स्थल में इस्तेमाल करना चाहें या इसके आधार पर
कोई और सेवा प्रकाशित करना चाहें तो आप कर सकते हैं, इसके लिए आपको किसी
को धन देने की ज़रूरत नहीं है।
- यदि आप इस कूट को बदल के या बिना बदले वितरित करते हैं तो भी वितरण की
शर्ते मूल शर्तों के अनुरूप ही होनी चाहिए, अर्थात्, आप वितरण और
परिवर्तन तो कर सकते हैं लेकिन इस कूट पर मालिकियत का दावा नहीं कर सकते
हैं न ही औरों को इसे वितरित करने से रोक सकते हैं।

इस प्रकार सर्वकाल के लिए यह कूट मुक्त है।


जीपीऍल अनुमति पत्र के बारे में और जानकारी यहाँ है - http://devanaagarii.net/hi/gpl/


यूँ तो यह कूट बहुत बढ़िया नहीं है - कोई भी औसत जावा प्रोग्रामर इसे देख
के मुस्कुरा ही देगा :) लेकिन उम्मीद है कि और लोगों की नज़र पड़ के यह
कूट बेहतर हो पाएगा। आप सभी के कूट संबंधी सुझाव आमंत्रित हैं। किसी भी
स्रोत की समीक्षा करने के बाद आप टिप्पणी दे सकते हैं - किसी भी पंक्ति
पर दोहरा चटका लगाइए, आपको वहाँ टिप्पणी करने की सुविधा मिल जाएगी।

यदि आपमें से कोई गिरगिट में नई सुविधाएँ जोड़ना चाहे तो भी आपका इस कूट
के साथ खेल करने को खुला आमंत्रण है।

हमारा प्रयास रहेगा कि ऐसे सुझाव शामिल किए जाएँ ताकि अन्य वातावरणों में
इस कूट का पुनः उपयोग सरल हो सके। आपकी पारखी नज़र की इस काम के लिए
ज़रूरत है।

गिरगिट के इस्तेमाल करने वालों को भी, आशा है इस कदम से, स्थिर कूट होने
के नाते अच्छी और निरंतर बनी रहने वाली सुविधा मिलेगी। यदि आपको गिरगिट
संबंधी समस्या हो तो girgit ऍट chitthajagat डॉट in पर लिख सकते हैं, या
फिर नया मसला जोड़ सकते हैं - http://code.google.com/p/girgit/issues/entry

धनतेरस की शुभकामनाओं के साथ, गिरगिटाते रहें,

http://girgit.chitthajagat.in

विपुल एवं आलोक
गिरगिट के मौजूदा अभिभावक

Kakesh Kumar

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Oct 15, 2009, 6:01:16 AM10/15/09
to chit...@googlegroups.com
वाह! ऐसे बड़े दिल वाले कार्यों से ही हिन्दी का भला होगा।

आओ बनायें हिन्दी औजार बेहतर।

काकेश


--
धन्यवाद सहित
सादर

काकेश
http://kakesh.com

Anunad Singh

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Oct 15, 2009, 7:42:58 AM10/15/09
to chit...@googlegroups.com
दीपावली पर इस अनुपम उपहार के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद  एवं  प्रकाशपर्व की शुभकामनाएँ!

यदि इस कूट की संरचना  एवं कार्य करने की विधि के बारे में  पाँच-दस वाक्यों में लिख सकें तो  दूसरों को इसे समझने में और आसानी होगी।

-- अनुनाद


आलोक | Alok

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Oct 15, 2009, 8:06:35 AM10/15/09
to Chithakar | चिट्ठाकार
और जानकारी -

मूल गिरगिट २००५ में http://devanaagarii.net/hi/girgit/ पर आतिथ्यित
किया गया था - यह जावास्क्रिप्ट में लिखा गया था, और यह अन्य भारतीय
भाषाओं के सादे पाठ को बाकी लिपियों में बदलता था। था क्या, अभी भी बदलता
है।

कुछ डेढ़ साल पहले विपुल जी ने पीएचपी भाषा में एकदम नया कूट लिखा,
जिसमें देवनागरी, गुरुमुखी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़,
बंगाली, उड़िया - नौ लिपियों का आपस में तथा रोमन (अंग्रेज़ी) में
लिप्यंतरण भी था। पुराने गिरगिट में रोमन लिप्यंतरण नहीं था। (http://
en.girgit.chitthajagat.in)

यह सुविधा भोमियो से प्रेरित थी, जो कि लिप्यंतरण की सुविधा प्रदान करता
था, लेकिन फ़िलहाल बंद है।

इस पीएचपी वाले गिरगिट में यह खास बात थी कि हटमल में से छाँट छाँट के
शब्दों का लिप्यंतरण किया गया, ताकि पन्ने की शक्लोसूरत, और विज्ञापन जस
के तस बन रहें यानी पाठक को वही सामग्री रोमन या अन्य लिपि में मिल सके,
और प्रकाशक को भी विज्ञापन के लाभ वैसे के वैसे ही मिलते रहें। गिरगिट को
विज्ञापित करने के लिए विजेट भी उपलब्ध कराए गए, जो कि लोग अपने स्थल या
चिट्ठे पर लगा सकते हैं।

समय के साथ यह सेवा काफ़ी लोकप्रिय होती गई, और अब डेढ़ साल बाद ऐसी
स्थिति आ गई थी कि कोई और विकल्प देखा जाए ताकि इसकी निरंतरता बनी रहे।

इसी के चलते विपुल जी ने यह फ़ैसला लिया कि इस सुविधा को किसी अन्य बेहतर
जगह आतिथ्यित किया जाए, और साथ ही इसका कूट मुक्त कर दिया जाए ताकि और
सक्षम लोग भी इसके जरिए बेहतर सेवाएँ तैयार कर सकें। अंततः इसे नई भाषा -
जावा - में लिख कर नई जगह चढ़ाया गया है।

आज के समय में हर रोज गिरगिट के पास कुल १३,३०० से अधिक पन्नों को
लिप्यंतरित करने के अनुरोध आते हैं, और इस समय इसकी क्षमता इस मात्रा से
कई गुना अधिक पन्नों को गिरगिटाने की हो चुकी है। इस नए उद्धरण में पाठक
को तो कोई फ़र्क नहीं दिखेगा, क्योंकि यह तकनीकी बदलाव ही है। इस समय कुछ
उद्धरण जावा और कुछ उद्धरण पीएचपी पर चल रहे हैं लेकिन पाठक को इनमें
फ़र्क नहीं दिखेगा।

यदि कोई जावाज्ञ इस कूट की समीक्षा करके सुझाव देना चाहे तो खुशी होगी।
यदि आपको कोई नई सेवा गिरगिट के कूट के जरिए बनानी हो तो भी सहायता करने
में हमें खुशी होगी।

ध्यान दें कि गिरगिट केवल लिपि बदलता है, दूसरी भाषा में अनुवाद नहीं
करता है। यदि आपका किसी भारतीय भाषा में स्थल है तो इसका प्रयोग करके आप
अपने पाठक/आय बढ़ा सकते हैं।

Ravishankar Shrivastava

unread,
Oct 15, 2009, 8:44:26 AM10/15/09
to chit...@googlegroups.com
On 10/15/2009 5:36 PM, आलोक | Alok wrote:
> और जानकारी -
>
> मूल गिरगिट २००५ में http://devanaagarii.net/hi/girgit/ पर आतिथ्यित
> किया गया था - यह जावास्क्रिप्ट में लिखा गया था, और यह अन्य भारतीय
> भाषाओं के सादे पाठ को बाकी लिपियों में बदलता था। था क्या, अभी भी बदलता
> है।
>
वाह! धन्यवाद. और इस खुलासे से प्रसन्नता हुई कि प्रतिदिन 13 हजार बार गिरगिट का
प्रयोग अन्य भाषाओं में पृष्ठ पढ़ने के लिए होता है. तकनालॉजी भाषाई दीवार को सचमुच तोड़
रही है. बड़ी तेजी से...
सादर
रवि

Vipul Jain

unread,
Oct 15, 2009, 9:12:26 AM10/15/09
to chit...@googlegroups.com
रवि जी,

13000 (मानवीय) + 25000 (सर्च इंजन) कुल ३८०००-४०००० बार गिरगिट का
प्रयोग अन्य भाषाओं में पृष्ठ पढ़ने के लिए रोज़ होता है,

विपुल

2009/10/15 Ravishankar Shrivastava <ravir...@gmail.com>:

sanjay | जोग लिखी

unread,
Oct 16, 2009, 3:40:33 AM10/16/09
to Chithakar | चिट्ठाकार
13000 (मानवीय) + 25000 (सर्च इंजन) कुल ३८०००-४०००० बार गिरगिट का
प्रयोग अन्य भाषाओं में पृष्ठ पढ़ने के लिए रोज़ होता है

यह आँकड़े सुखद आश्चर्य जगाते है. मुक्त स्त्रोत होने के बाद गिरगिट बेहतर
होगा ऐसी कामना है. प्रोग्रामर नहीं है अतः ज्यादा कहने की स्थिति में
नहीं हूँ. बहरहाल अच्छे नेक काम की बधाई.

Unmukt

unread,
Oct 16, 2009, 3:47:09 AM10/16/09
to Chithakar | चिट्ठाकार
अरे वाह, बहुत प्रसन्नता हुई।

Vipul Jain

unread,
Oct 16, 2009, 3:55:06 AM10/16/09
to chit...@googlegroups.com
संजय जी

आप प्रोग्रामर नहीं हैं लेकिन आप इस कूट पर एक नज़र जरूर डालें,

http://code.google.com/p/girgit/source/browse/#svn/trunk/Girgit/src/in/chitthajagat/girgit/server

इसमें सबसे खास यह है कि आलोक भाई ने सभी वैरीएबल नाम देवनागरी में लिखे हैं।

विपुल

2009/10/16 sanjay | जोग लिखी <sanjay...@gmail.com>:

Suresh Chiplunkar

unread,
Oct 16, 2009, 7:36:29 AM10/16/09
to Chithakar | चिट्ठाकार
सभी तकनीकी मित्रों को दीपावली की शुभकामनाएं…
यह जावारूपी तकनीकी कूट मुफ़्त में उपलब्ध करवाने हेतु विपुल जी एवं आलोक
जी का भी आभार (तकनीक के बारे में नितांत अंगूठा छाप होने के बावजूद,
बाकी सभी मित्रों के मत पढ़ने से लगता है कि निश्चित की बहुत अच्छी बात
हुई है…)।

माहौल हल्का करने के लिये एक भदेस भारतीय का सवाल - "गिरगिट" का कूट
बनाने के लिये क्या पहले उसे धूप में सुखाना आवश्यक है? :)

On Oct 16, 12:55 pm, Vipul Jain <drvipulj...@gmail.com> wrote:
> संजय जी
>
> आप प्रोग्रामर नहीं हैं लेकिन आप इस कूट पर एक नज़र जरूर डालें,
>

> http://code.google.com/p/girgit/source/browse/#svn/trunk/Girgit/src/i...


>
> इसमें सबसे खास यह है कि आलोक भाई ने सभी वैरीएबल नाम देवनागरी में लिखे हैं।
>
> विपुल
>

> 2009/10/16 sanjay | जोग लिखी <sanjaybeng...@gmail.com>:

Vipul Jain

unread,
Oct 16, 2009, 8:12:56 AM10/16/09
to chit...@googlegroups.com
> "गिरगिट" का कूट
> बनाने के लिये क्या पहले उसे धूप में सुखाना आवश्यक है? :)

सुरेश जी बिलकुल, धूप में सुखाना जरूरी है, जिस से राह चलते बंदे उसे
देखें, उस के रंग, प्रिंट पर छींटाकशी हो, इस से ही उत्तम कुट सामने आ
सकेगा। आप जो भी मुक्त स्रोत का कूट प्रयोग कर रहे हैं उन सबको धूप में
सुखा कर ही पकाया गया है। जैसे जैसे बदलाव होते जाएँगे आपको नए संस्करण
मिलते जाएँगे।

विपुल

आलोक | Alok

unread,
Oct 20, 2009, 8:09:45 AM10/20/09
to Chithakar | चिट्ठाकार
नमस्ते।
गिरगिट के कूट संबंधी चर्चा व ताज़े समाचार जानने के लिए आप चाहें तो
http://groups.google.com/group/girgit गिरगिट समूह की सदस्यता ले सकते
हैं।
चिट्ठाकार डाक सूची संचालकों से अनुरोध है कि यदि गिरगिट संबंधी कोई
चर्चा आम दिलचस्पी की न लगे तो उसे http://groups.google.com/group/girgit
पर आगे बढ़ाने के लिए कह सकते हैं।

http://groups.google.com/group/girgit पर कूट के ताज़े बदलाव व समीक्षा
तथा नई सुविधाओं की चर्चा किसी भी भाषा में की जा सकती है।

आलोक

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