जीतू भाई एवं नीरज भाई,
कुछ प्राचीन राजे-रजवाड़ों के जमाने के जारी किए गए, मकान-जमीन के पट्टे-
दस्तावेजों की प्रतियाँ तो मिल गईं हैं, जो मुड़िया लिपि में (विशेष
कपड़े जैसे कागज पर तथा चमड़े के बने कागज पर किसी विशेष स्याही से) लिखे
गए हैं। व्यापारियों के बही-खातों में मुड़िया लिपि का परवर्ती रूप
प्रयोग किया जाता हैं। कुछ और प्राचीन दस्तावेज मिल सकें तो बेहतर होगा।
मुड़िया( या मुळिया या मूल) लिपि क्या ब्राह्मी के बाद देवनागरी के
आरम्भिक काल की लिपि थी? संस्कृत की 'आक्षरिक' स्वरूपवाली वर्तमान
देवनागरी का विकास क्या इसके बाद में हुआ? इस विषय पर अभी शोध किया जाना
है।
हरिराम
हरिराम