इस अंक में पढ़िये
संपादकीय
साहित्य : संवेदना या विचारधारा
कविता
◙ स्मरणीय- फ़िराक़ गोरखपुरी, दुष्यंत कुमार
◙ कवि- प्रभात त्रिपाठी,चतुरानन झा 'मनोज', तसलीम अहमद, अखिलेश शुक्ल, रविकांत
छंद
◙ गीत - रवीन्द्र कुमार खरे,बलवीर सिंह 'करुण', डॉ. चित्तरंजन कर
◙ ग़ज़ल - मुकेश पोपली,केशव शरण
◙ प्रवासी - राकेश खंडेलवाल, संदीप कुमार त्यागी 'दीप'
◙ माह के छंदकार - जय चक्रवर्ती
◙ अजयगाथा - वही पखेरू
भाषांतर
◙ रेत(पंजाबी उपन्यास) - हरजीत अटवाल/सुभाष नीरव
इस बार अप्रैल के महीने में बर्फ़ पड़ गयी। अप्रैल के महीने में यद्यपि मौसम बदल जाता है, पर इस मुल्क का यही हाल है कि लम्बी भविष्य वाणी नहीं की जा सकती। पिछले साल अप्रैल में तेज़ धूप थी और इस वर्ष बर्फ़ पड़ रही थी। बर्फ़ पड़ने के बाद ठंडी हवा चल पड़ी और बर्फ़ मोटी चादर बनकर सड़कों, छतों और पार्कों में जम गयी थी।........
मूल्याँकन
◙ रूपवाद और हिंदी कविता - सुशील कुमार
◙ कहानी और नारी - सुरेश तिवारी
प्रसंगवश
◙ वर्ग-संघर्ष को अस्तित्ववादी नज़रिए से प्रस्तुत करता है
`द व्हाइट टाइगर` - कृष्ण कुमार यादव
महत्वपूर्ण राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों को अपने में समेटे इस उपन्यास का ताना-बाना दिल्ली की ज़िंदगी के इर्द-गिर्द बुना गया है। इसमें शहरों के उस अँधेरे पक्ष को कथावस्तु बनाया गया है जिसे प्रगति व विकास का कोई लाभ नहीं मिला।
◙ छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय नृत्य सुआ - डॉ. राजेन्द्र सोनी
कुछ ग्रामीण बालिकाएँ जो अविवाहित हैं और जिन्हें सुआ नृत्य करने का शौक है अपनी माँ से कहती हैं - माँ मुझे पैर के लिये पैजनी, हाथ के लिये बटुआ, गले के लिये सुतिया, माथे के लिये टिकली, कान की खूँटी और संदूक से नई साड़ी दे दे, मैं सहेलियों के साथ सुआ नृत्य करने जाऊँगी।
एक शब्द
शेष-विशेष
ज़िंदगी के रंग....
◙ तीसरी प्रकृति का प्राणी - साहू ठाकुर राम
सरदार भगत सिंह को घेरने के लिए जब लाहौर में पुलिस आ गई तो अनारकली में रहने वाले हिजड़ों ने वहाँ हंगामा खड़ाकर दिया था और तालियाँ पीट-पीट कर और हाय-हाय करके सिपाहियों को तलाशी नहीं लेने दी। इसी बीच सरदार भगतसिंह ख़ुद हिंजड़ों का वेश बनाकर भाग गए । मन्थन नाथ गुप्त की पुस्तक 'भारत के क्रांतिकारी' में इस बात का उल्लेख है।
हिन्दी विश्व....
शोध....
अध्यात्म....
◙ क़ुरान शरीफ़ : शंकाएँ तथा समाधान - तनवीर जाफ़री
बचपन
कहानी
दालमंडी में मैना का ही कोठा था जहाँ सूर, कबीर से लेकर जयदेव की अष्टपदी तक के स्वर गुँजते थे। डाह में अन्त मंगलामुखियाँ जिनमें अनवरी का स्वर सबसे ऊँचा था तानें कसतीं, "बस भाँवरें फिरना ही बाक़ी बचा है। लक्षण तो सती-सावित्री जैसे हैं। असलियत तो यह है कि इसकी सात पुश्तों ने कोठे को आबाद किया है।
◙ बाबू भइया पंड्या - सूरज पंड्या
लघुकथा
◙ तानाशाह और शेर - कन्फ्यूशियस
संस्मरण
◙ रवीन्द्र : हँसना ही जीवन है - अमरकांत
उन दिनों रवीन्द्र कालिया और ममता कालिया, दोनों ही कठिन संघर्ष के दौर से गुज़र रहे थे। तेज़ी से बूढ़े हो रहे एक प्रेस मालिक और प्रकाशक से उन्होंने आंशिक भुगतान करके प्रेस लिया था और शेष भुगतान उन पुस्तकों को छाप-छाप कर करना था, जो पाठ्यक्रम में लगी थीं । तब उनको स्वयं प्रुफ भी पढ़ने पढ़ते थे।
◙ रेत के समन्दर में हिंदी - सुरेश तिवारी
व्यंग्य
◙ अगली सदी का शोधपत्र - सूर्यबाला
पुस्तकायन
◙ अभिव्यक्तियों के बहाने - मोहिनी ठाकुर
◙ अभिव्यक्तियों के बहाने - कृष्ण कुमार यादव
◙ क्रियेटिंग अ वर्ल्ड विदाउट पोवर्टी - मो. युनुस, कार्ल वेबर
ललित निबंध
◙ सफ़ेद धरती कारौ बीज - डॉ. मालती शर्मा
शब्द से संसार की सृष्टि, स्थिति और लय भी है। शिव का तांडवनृत्य विशाल विश्व को अपने नृत्य की ध्वनि प्रतिध्वनियों से पदाघात के नाद से ही तो नष्ट करता है। यह संसार हम और हमारा यह जीवन शब्द ही तो हैं। शब्द ही हम हैं, वे ही हमारा अस्तित्व हैं।
ग्रंथालय में (ऑनलाइन किताबें)
◙ लौटते हुए परिंदे(कहानी संग्रह) - सुरेश तिवारी
◙ कारवाँ लफ़्जों का (मुक्तक एवं ग़ज़ल संग्रह) - जयंत थोरात
◙ प्रिय कविताएँ (कविता संग्रह)- भगत सिंह सोनी
हलचल
(देश विदेश की सांस्कृतिक खबरें)
◙ अंधेरी रात का सूरज' का विमोचन
◙ आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जीवनी पुस्तक का लोकार्पण
◙ पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया का निधन
◙ ख़राब हालात में रचनात्मकता बढ़ जाती है - राही
◙ 1800 पृष्ठीय प्रमोद वर्मा समग्र का प्रकाशन