हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में किसी व्यक्ति के निर्वसियती निधन पर उसकी
सम्पत्ति का व्ययन उसके प्रथम श्रेणी विधिक वारिसान के मध्य (अधिनियम में
वर्णित अनुसूची के अनुसार) में धारा 8 के अनुसार होगा। लेकिन इसका एक
अपवाद धारा 6 है जो कि सहदायिकी सम्पत्ति (पुश्तैनी सम्पत्ति) के बाबत
है। इसके अनुसार मिताक्षरा सम्पत्ति में हित रखने वाले व्यक्ति की मृत्यु
पर उसका हित/हिस्सा उत्तरजीवी सदस्यों में उत्तरजीविता के आधार पर न्यागत
होगा। सरल शब्दो में कहे तो उसका हिस्सा सभी जिवित सहदायियो/हिस्सेदारों
में बराबर बंट जावेगा। (यहाँ यह भी स्पष्ट हो कि सन 2004 से पूर्व परिवार
के केवल पुरूष सदस्य ही सहदायी माने जाते थे लेकिन सन 2004 में आये
संशोधन के पश्चात उक्त विभेद समाप्त हो गया है।) सहदायिक/पुश्तैनी
सम्पत्ति के अलावा शेष समस्त सम्पत्ति स्व-अर्जित सम्पत्ति में पुत्र या
पुत्री पिता के जिवित उक्त सम्पत्ति में किसी प्रकार के हिस्से या विभाजन
की मांग नहीं कर सकते। जहाँ तक आपके प्रश्न का उत्तर है तो यदि आप यह
साबित कर सकते है कि उक्त सम्पत्ति सहदायिक/पुश्तैनी प्रकृति की है तभी
उक्त सम्पत्ति में पुत्री का हिस्सा बनता है। ऐसी अवस्था में आप ना केवल
जिस घर में रह रही है उसको बेचने पर रोक लगवा सकती है बल्कि पिता द्वारा
बिना परिवार की आवश्यकता के बेचान किये गये विक्रयपत्रों को भी निरस्त
करवा सकती है।