फौती नामांतरण

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केवलकृष्ण

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Feb 14, 2011, 8:06:51 AM2/14/11
to हिन्दी विधि चर्चा समूह
एक मामले में एक पक्षकार के पक्ष में नायब तहसीलदार ने नामांतरण आदेश
जारी किया, लेकिन दूसरे पक्ष की आपत्तियों के बाद तहसीलदार ने यह कहते
हुए रिकार्ड यथावत रखने का आदेश दिया कि नायब तहसीलदार विभागीय परीक्षा
उत्तीर्ण नहीं थे। तहसीलदार ने पहले पक्ष के नामांतरण आवेदन की पुनः
सुनवाई की और अंततः उसका आवेदन खारिज हो गया। साथ ही उसे सलाह दी कि
सतत्व की उद्घोषणा के लिए वह सिविल कोर्ट जा सकता है। पहले पक्ष ने एसडीओ
कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी उसकी अपील खारिज हो गई। साथ ही कोर्ट
ने मियाद अधिनियम के तहत दिए गए उसके तर्कों से भी असहमति व्यक्त की।
पहले पक्ष ने दूसरी अपील अपर कलेक्टर के न्यायालय में की, वहां दूसरी
अपील स्वीकार करते हुए दोनों निम्न न्यायालयों के आदेश को खारिज कर दिया
गया।
इधर दूसरे पक्ष ने अपर कलेक्टर के फैसले के खिलाफ राजस्व मंडल में अपील
की जहां मुकदमा जारी है।
इस पूरे मामले में पहले पक्ष का सत्व संदिग्ध है और वह अपने पक्ष में कोई
उद्घोषणा या स्टे प्राप्त नहीं कर पाया है। वह दूसरे पक्ष के सत्व को
स्वीकार करता है, उसे चुनौती नहीं देता। बल्कि दूसरे पक्ष के साथ अपना
भी नामांतरण चाहता है।

इस बीच दूसरा पक्ष, जिसका सत्व स्पष्ट है, एक भूमि में फौती के लिए
तहसीलदार के न्यायालय में आवेदन करता है। पहले पक्ष ने न्यायालय में तर्क
दिया है कि इसी भूमि से संबंधित वाद राजस्व मंडल में लंबित है, अतः दूसरे
पक्ष का फौती आवेदन खारिज किया जाना चाहिए। दूसरे पक्ष का तर्क है कि
उसका सतत्व स्पष्ट है, और कोई स्टे भी नहीं है, इसलिए फौती आवेदन का
निराकरण किया जाना चाहिए।

प्रश्न यह है कि क्या तहसीलदार इन परिसि्थयों में फौती आवेदन का निराकरण
कर सकता है। क्या इसके लिए कोई न्यायिक दृष्टांत है।

राकेश शेखावत Rakesh शेखावत Shekhawat

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Feb 14, 2011, 12:17:10 PM2/14/11
to vidhic...@googlegroups.com

केवल कृष्ण जी,
नमस्कार।
वस्तुतः नामान्तकरण एक वित्तिय देयता तय करने की राजस्व प्रक्रिया है। जो राज्य सरकार लगान वसूली के लिए अपनाती है। लेकिन यह भी सच है कि इसे मात्र वित्तिय एवं प्रशासनिक मामला माना जाना भी ठीक नहीं है क्योंकि वस्तुतः अधिकार अभिलेख को आदिनांक(न्चकंजम) करने का मूलभूत आधार भी यही होता है।
चूँकि आपके मामले में स्वत्व का प्रश्न विद्यमान है जिसके सम्बंध में शीर्ष राजस्व न्यायालय में मामला लम्बित है ऐसे में मामले का अन्तिम रूप से निस्तारण होने तक, चाहे मामले में किसी प्रकार का कोई स्टे ना हो, तहसीलदार महोदय द्वारा नामान्तकरण खोला जाना किसी भी प्रकार से सुसंगत एवं संभव नहीं लगता। 
अच्छा हो आप द्वितीय पक्षकार को सक्षम न्यायालय में घोषणा का वाद प्रस्तुत करने की सलाह देवें।

2011/2/14 केवलकृष्ण <kewalkr...@gmail.com>



--
राकेश शेखावत

7/86 विद्याधरनगर, जयपुर(राजस्थान)
मेरे चिठ्ठे
http://rajasthanlawyer.blogspot.com/
http://importantjudgement.blogspot.com/

केवलकृष्ण

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Feb 14, 2011, 2:55:28 PM2/14/11
to हिन्दी विधि चर्चा समूह
पुनःश्च
प्रथम पक्ष ने सत्व की उद्घोषणा के लिए सिविल कोर्ट में भी वाद दाखिल कर
रखा है, जहां सुनवाई जारी है।

केवलकृष्ण

unread,
Feb 14, 2011, 3:01:14 PM2/14/11
to हिन्दी विधि चर्चा समूह
अन्य तथ्य यह है कि इसी तहसील के अन्य हलकों में द्वितीय पक्ष की फौती
पूर्व में उठाई जा चुकी है।

केवलकृष्ण

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Feb 14, 2011, 3:02:41 PM2/14/11
to हिन्दी विधि चर्चा समूह
पुनःश्च
प्रथम पक्ष ने सत्व की उद्घोषणा के लिए सिविल कोर्ट में भी वाद दाखिल कर
रखा है, जहां सुनवाई जारी है।

On Feb 14, 10:17 pm, राकेश शेखावत Rakesh शेखावत Shekhawat


<shekhawat...@gmail.com> wrote:
> केवल कृष्ण जी,
> नमस्कार।
> वस्तुतः नामान्तकरण एक वित्तिय देयता तय करने की राजस्व प्रक्रिया है। जो राज्य
> सरकार लगान वसूली के लिए अपनाती है। लेकिन यह भी सच है कि इसे मात्र वित्तिय
> एवं प्रशासनिक मामला माना जाना भी ठीक नहीं है क्योंकि वस्तुतः अधिकार अभिलेख
> को आदिनांक(न्चकंजम) करने का मूलभूत आधार भी यही होता है।
> चूँकि आपके मामले में स्वत्व का प्रश्न विद्यमान है जिसके सम्बंध में शीर्ष
> राजस्व न्यायालय में मामला लम्बित है ऐसे में मामले का अन्तिम रूप से निस्तारण
> होने तक, चाहे मामले में किसी प्रकार का कोई स्टे ना हो, तहसीलदार महोदय द्वारा
> नामान्तकरण खोला जाना किसी भी प्रकार से सुसंगत एवं संभव नहीं लगता।
> अच्छा हो आप द्वितीय पक्षकार को सक्षम न्यायालय में घोषणा का वाद प्रस्तुत करने
> की सलाह देवें।
>

> 2011/2/14 केवलकृष्ण <kewalkrishn...@gmail.com>

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