इस बीच दूसरा पक्ष, जिसका सत्व स्पष्ट है, एक भूमि में फौती के लिए
तहसीलदार के न्यायालय में आवेदन करता है। पहले पक्ष ने न्यायालय में तर्क
दिया है कि इसी भूमि से संबंधित वाद राजस्व मंडल में लंबित है, अतः दूसरे
पक्ष का फौती आवेदन खारिज किया जाना चाहिए। दूसरे पक्ष का तर्क है कि
उसका सतत्व स्पष्ट है, और कोई स्टे भी नहीं है, इसलिए फौती आवेदन का
निराकरण किया जाना चाहिए।
प्रश्न यह है कि क्या तहसीलदार इन परिसि्थयों में फौती आवेदन का निराकरण
कर सकता है। क्या इसके लिए कोई न्यायिक दृष्टांत है।
On Feb 14, 10:17 pm, राकेश शेखावत Rakesh शेखावत Shekhawat
<shekhawat...@gmail.com> wrote:
> केवल कृष्ण जी,
> नमस्कार।
> वस्तुतः नामान्तकरण एक वित्तिय देयता तय करने की राजस्व प्रक्रिया है। जो राज्य
> सरकार लगान वसूली के लिए अपनाती है। लेकिन यह भी सच है कि इसे मात्र वित्तिय
> एवं प्रशासनिक मामला माना जाना भी ठीक नहीं है क्योंकि वस्तुतः अधिकार अभिलेख
> को आदिनांक(न्चकंजम) करने का मूलभूत आधार भी यही होता है।
> चूँकि आपके मामले में स्वत्व का प्रश्न विद्यमान है जिसके सम्बंध में शीर्ष
> राजस्व न्यायालय में मामला लम्बित है ऐसे में मामले का अन्तिम रूप से निस्तारण
> होने तक, चाहे मामले में किसी प्रकार का कोई स्टे ना हो, तहसीलदार महोदय द्वारा
> नामान्तकरण खोला जाना किसी भी प्रकार से सुसंगत एवं संभव नहीं लगता।
> अच्छा हो आप द्वितीय पक्षकार को सक्षम न्यायालय में घोषणा का वाद प्रस्तुत करने
> की सलाह देवें।
>
> 2011/2/14 केवलकृष्ण <kewalkrishn...@gmail.com>