मै दिनेश जी की राय से पूर्णतया सहमत हूं। यदि वादी यह साबित करने में
सफल रहता है कि सम्पत्ति संयुक्त परिवार की आय से खरीदी गयी है तो निश्चय
ही न्यायालय ऐसे मामले में वादी के पक्ष में निर्णय करेंगा। जहाँ तक
बेनामी सम्पत्ति को साबित किये जाने का प्रश्न है इसमें वर्तमान में
सम्पत्ति पर सभी सहदायियों का कब्जा होना, पट्टा प्राप्त करते समय
प्रतिफल राशि का भुगतान वादी/वादीगण द्वारा किया जाना, पट्टा अकेले भाई
के नाम से प्राप्त किये जाने के पीछे मात्र भाई का सबसे बड़ा होना आदि-आदि
को साबित करके किया जा सकता है। इसके अलावा सम्पत्ति के उपयोग में किये
जाने वाले भुगतान की रसीदों यथा बिजली, पानी आदि के मूल बिल वादीगण के
कब्जे में हो तो यह भी वाद को साबित करने में सहायक होगें। केवल पिता
द्वारा प्रतिफल राशि अदा कर पुत्र के नाम से सम्पत्ति क्रय किये जाने
मात्र से सम्पत्ति को बेनामी घोषित नहीं करवाया जा सकता।