निजी मंदिर, सर्वराकार, सेवायत

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kewal krishna

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Oct 15, 2010, 9:23:22 AM10/15/10
to हिन्दी विधि चर्चा समूह
छत्तीसगढ़ के एक गांव में वर्ष 1920 में शत्रुघ्न प्रसाद तिवारी ने एक
महादेव मंदिर की स्थापना की और लगभग 14 एकड़ भूमि भगवान शंकर के नाम पर
अर्पित की। उन्होंने दान पत्र में लिखा कि इस भूमि का उपयोग मंदिर के राग
भोग के लिए उनके वारिसानों द्वारा किया जाएगा। बाद के राजस्व दस्तावेजों
में उनके चार पुत्रों के नाम सर्वराकार के रूप में रघुनंदन प्रसाद
तिवारी, छबिराम तिवारी, जीवनलाल तिवारी और नंदलाल तिवारी दर्ज हुआ। भूमि
स्वामी के रूप में भगवान शंकर महादेव मंदिर दर्ज है। कालांतर में रघुनंदन
प्रसाद तिवारी, छबिराम तिवारी, जीवन लाल तिवारी की मृत्यु हो गई। इनमें
से रघुनंदन प्रसाद तिवारी के वारिसानों के नाम रामकुमार आदि दर्ज हुए।
प्रबंधक के रूप में कलेक्टर का नाम दर्ज हुआ। इसी बीच सरकार ने बी-1 और
खसरा का कम्प्यूटरी करण किया, जिसमें सर्वराकार के रूप में सिर्फ रघुनंदन
प्रसाद तिवारी दर्ज है। इसमें कलेक्टर का उल्लेख नहीं है। शेष नाम
रहस्यमयी तरीके से बी-1, खसरा से नदारद हैं।
इस बीच एक व्यक्ति ने जो कि रघुनंदन प्रसाद तिवारी का पुत्र होने का दावा
करता है और जिसका कि रघुनंदन प्रसाद तिवारी के वैध वारिसान विरोध करते
हैं, वह तहसील न्यायालय में छबिराम प्रसाद तिवारी की एक वसीयत पेश कर
अपना नाम मंदिर के सर्वराकार के रूप में दर्ज कराने के लिए आवेदन
प्रस्तुत करता है। रघुनंदन के वैध वारिसानों का कहना है कि यह व्यक्ति
रघुनंदन का पुत्र नहीं है।
प्रश्न ः-
1.निजी मंदिरों के मामले में सर्वराकार क्या हैं। किस विधि में इसकी
परिभाषा दी हुई है। उनके अधिकार और कर्तव्य क्या हैं।
2. किस विधी की किस धारा में सर्वराकार का उल्लेख है।
3. क्या सर्वराकार को भगवान के नाम की संपत्ति की वसियत करने का अधिकार
है।
4. सेवायत और सर्वराकार में क्या फर्क है। क्या दोनों एक ही हैं।
5.सर्वराकार का पद हस्तांतरित किया जा सकता है या नहीं। एक सर्वराकार
दूसरे सर्वराकार की नियुक्ति कर सकता है अथवा नहीं।
6. यह मंदिर पूरी तरह निजी है। इसके निर्माण में दान के पैसों का उपयोग
नहीं हुआ है। ऐसे में शासन इस मंदिर के मामले में कहां तक हस्तक्षेप कर
सकता है।
7. निजी मंदिर में कलेक्टर का प्रबंधक होना क्या विधिक व्यवस्था है।
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