Re: हिन्दी विधि चर्चा समूह vidhicharcha@googlegroups.com के लिए डाइजेस्ट - 1 विषय में 4 संदेश

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kewal krishna

unread,
Sep 11, 2011, 10:45:25 PM9/11/11
to vidhic...@googlegroups.com
श्री शेखावत जी, श्री दि्वेदी जी आभार।
माननीय द्विवेदी जी ने मुकदमे के बारे में पूछा है। प्रकरण इस प्रकार है
एक गांव में ललितकुमार और शिवकुमार के नाम पर संयुक्त भूमि स्थित है। इस भूमि का बंटवारा ललितकुमार और शिवकुमार के बीच 1994 में ही हो गया था। यह आपसी बंटवारा था, ललितकुमार ने आश्वस्त किया था कि बाद में खाते का विभाजन करा लिया जाएगा। इसके बाद अपने हिस्से की भूमि पर शिवकुमार तिवारी ने मिट्टी का मकान बना लिया और वे परिवार समेत उसी मकान में रहने लगे। उस वक्त ललित कुमार से सौहार्द्रपूर्ण रिश्ते थे अतः शिवकुमार का परिवार खाता विभाजन के लिए आश्वस्त था। बाद में शिवकुमार की मृत्यु हो गई तथा मकान में शिवकुमार के वारिसान निवास रत है। उन्होंने फौती उठा ली है।
अभी डेढ़ दो साल पहले जब शिवकुमार के वारिसानों ने मिट्टी के पुराने मकान को यथावत रखते हुए जब अतिरिक्त पक्के कमरों का  निर्माण अपने ही हिस्से में शुरू किया तो ललित कुमार ने यह कहते हुए आपत्ति प्रस्तुत की कि भूमि का बंटवारा नहीं हुआ है। जबकि वर्ष 1994 में अनेक ग्रामीणों तथा पारिवारिक सदस्यों की मौजूदगी में आपसी बंटवारा हुआ था। साथ ही ललित कुमार की ओर से प्रस्तुत गवाह ने इस बात की झूठी गवाही दी है कि भूमि का बंटवारा नहीं हुआ है। एक गवाह ने यहां तक कह दिया कि मकान शिवकुमार और ललित कुमर की संयुक्त प्रापर्टी है। तथ्य यह है कि ललित कुमार के हिस्से की जमीन अब भी वैसी की वैसी रिक्त पड़ी है। उस पर किसी तरह का अतिक्रमण नहीं है। 
ललित के आवेदन पर तहसीलदार ने स्थगन दे रखा है, जिससे शिवकुमार के वारिसानों का निर्माण कार्य मुकदमा शुरू होने के समय से यानी लगभग डेढ़ साल से अधूरा पड़ा है। 
मैं शिवकुमार के वारिसानों में से एक हूं। और उन गवाहों को पेश करना चाहता हूं जो वर्ष 1994 में आपसी बंटवारे के वक्त मौजूद थे। इनमें वे गवाह भी हैं जिन्होंने वर्ष 1994 में शिवकुमार से मिट्टी के मकान के निर्माण का ठेका लिया था और जिनके सामने तत्कालीन पटवारी ने जमीन की नापजोख कर ललित कुमार की मौजूदगी में दोनों पक्षों की जमीन चिन्हित की थी। 
इस मामले में पटवारी ने अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया है, जोकि शिवकुमार के वारिसानों के पक्ष में है। 
--------------पृष्ठभूमि यह है कि ललितकुमार ने जब संयुक्त हक वाले एक अन्य गांव में स्थित आबादी जमीन को बेचने की कोशिश की तो मैंने उन पर मुकदमा किया था और इस मुकदमे का फैसला तहसीलदार ने मेरे पक्ष में दिया है। इस आबादी भूखंड का फर्जी नजरीनक्शा उन्होंने पटवारी से बनवा लिया था। इसी के बाद ललित कुमार ने मेरे मकान वाले भूखंड के बंटवारा नहीं होने की बात कहते हुए मुकदमा कर दिया। 
ललितकुमार ने इसके बाद मुझ पर अनेक मुकदमे किए, लेकिन सभी मुकदमे मेरे पक्ष में निर्णित हुए। लेकिन इन मुकदमों की वजह से मुझे भारी आर्थिक, मानसिक और पारिवारिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। 
---------------------
महोदय, मैं वकीलों की फीस देने की हैसियत नहीं रखता। पूर्व में एक वकील किया था जो तलवाना पटाने के 700 रुपए और किसी आवेदन का जवाब तैयार करने के 1000 रुपए मांगता था। बाद में मुझे पता चला कि तलवाना का फार्म 1 रुपए में और टिकट 2 रुपए में आती है। चूंकि बहुत से मुकदमे थे और ललितकुमार तरह-तरह के आवेदन लगाकर मुझे परेशान करने की कोशिश करता रहा है इसलिए मैं अपने वकील का खर्च वहन करने में असमर्थ था। अन्य वकीलों से भी बात की, लेकिन आखिरकार निर्णय लिया कि खुद के मुकदमे खुद लड़ूगा और किताबों का अध्ययन करूंगा। अन्य शहरों में मेरे बहुत से वकील मित्र है, जिनसे समय-समय पर मार्गदर्शन लेता रहता हूं। कृपाकर मेरी मदद करें।


११ सितम्बर २०११ ६:२३ अपराह्न को, <vidhic...@googlegroups.com> ने लिखा:

समूह: http://groups.google.com/group/vidhicharcha/topics

    "राकेश शेखावत Rakesh Shekhawat" <shekha...@gmail.com> Sep 11 06:41AM -0700 ^
     
    किसी मुकदमे में यदि अनावेदक स्वयं अपना पक्ष रख रखा हो तो उसे अपने पक्ष
    की गवाही लेने का हक होगा कि नहीं। तहसील कोर्ट में चल रहे एक मामले में
    तहसीलदार ने अनावेदक के आवेदक के गवाहों के प्रतिपरीक्षण की अनुमति तो दी
    लेकिन स्वयं के गवाहों की गवाही लेने के संबंध में आवेदक पक्ष के वकील की
    आपत्ति स्वीकार भी कर ली। कृपाकर बताएं कि आनावेदक के क्या अधिकार है और
    क्या अपने पक्ष की गवाही दिलाने के लिए उसे वकील रखने की बाध्यता है।
    अधिकार है तो किस नियम के तहत।
     
    जैसा कि आपने बताया आप स्वयं अपने मुकदमें में स्वयं की पैरवी बतौर
    अनावेदक(अप्रार्थी) कर रहे है। जहाँ तक विधि का प्रश्न है कानून में आपको
    अपने मुकदमें में पैरवी करने की पूर्ण स्वीकृति प्रदान करता है। आपके
    प्रश्न से मुझे जितना समझ पड़ा न्यायालय ने आपको प्रार्थी(आवेदक) द्वारा
    प्रस्तुत गवाहो से तो
    आपनिश्चय ही जैसा कि आपने बताया आप प्रतिपरीक्षण की अनुमति प्रदान कर दी
    लेकिन जब आपने अपनी ओर से गवाह प्रस्तुत कर उनसे सवाल पूछे तो इस पर पर
    आवेदक पक्ष के वकील को सवालो पर आपत्ति प्रकट की होगी जिसे न्यायालय ने
    स्वीकार कर लिया। मित्र साक्ष्य करवाने के कुछ नियम होते है। सर्वप्रथम
    जिसके द्वारा गवाह लाया जाता है उसके द्वारा अपने गवाह का परीक्षण करवाया
    जाता है। जिसे मुख्य परीक्षण कहते है। जिससे जिरह या प्रतिपरीक्षण करने
    का अधिकार दूसरे पक्ष को होता है। प्रतिपरीक्षण में पक्षकार या उसके
    अधिवक्ता को किसी भी प्रकार से प्रश्न पूछने की अनुमति होती है लेकिन
    मुख्य परीक्षण में पक्षकार अपने गवाह से सूचक प्रश्न नहीं पूछ सकता। सूचक
    प्रश्न से अभिप्राय ऐसे प्रश्नो से है जो किसी व्यक्ति को उसका उत्तर
    सुझाते है अर्थात जिनके उत्तर हाँ या ना में सम्भव है। ऐसे प्रश्नो को
    मुख्य परीक्षण के दौरान पूछने पर पाबंदी है। लेकिन सिविल प्रक्रिया
    संहिता में सन 2002 के संशोधन के बाद मुख्य परीक्षा के लिए शपथपत्र पेश
    किये जाने का प्रावधान है अर्थात मुख्य परीक्षण के रूप में आप अपने गवाह
    का शपथपत्र पेश कर दे जिससे आपकी समस्या का समाधान संभव है। इसके लिए आप
    धारा 135 व 141 भारतीय साक्ष्य अधिनियम तथा आदेश 18 नियम 4 सिविल
    प्रक्रिया संहिता का अध्ययन करे।
     
     

     

    "दिनेशराय द्विवेदी" <drdwi...@gmail.com> Sep 11 08:11PM +0530 ^
     
    @राकेश शेखावत
    अब तो व्यवहार प्रक्रिया में मुख्य परीक्षण का लगभग विलोप कर ही दिया गया है
    और उस के स्थान पर साक्षी का शपथ पत्र ही लिया जाता है। कोई मुख्य परीक्षण
    कराना चाहे तब भी अदालत मना कर देती है। केवल दस्तावेजात को प्रदर्शित कराने के
    लिए ही मुख्य परीक्षण की अनुमति होती है।
    मुझे लगता है कि केवलकृष्ण जी की समस्या यही है। उन्हें अपने गवाह का शपथ पत्र
    प्रस्तुत कर देना चाहिए तथा न्यायालय से निवेदन करना चाहिए कि जिन दस्तावेज को
    वे प्रदर्शित करवाना चाहते हैं
    उन्हें प्रदर्शित करवा ले।
     
    2011/9/11 राकेश शेखावत Rakesh Shekhawat <shekha...@gmail.com>
     
     
    --
    *दिनेशराय द्विवेदी, *कोटा, राजस्थान, भारत
    Dineshrai Dwivedi, Kota, Rajasthan,
    *क्लिक करें, ब्लाग पढ़ें ... अनवरत <http://anvarat.blogspot.com/> तीसरा
    खंबा <http://teesarakhamba.blogspot.com/>*

     

    "दिनेशराय द्विवेदी" <drdwi...@gmail.com> Sep 11 09:12PM +0530 ^
     
    केवल कृष्ण जी,
    यदि आप बताएँ कि तहसील में मुकदमा किस तरह का है और आप किस तथ्य को साबित करने
    के लिए गवाह प्रस्तुत करना चाहते हैं, तो बात स्पष्ट हो। आप की मदद की जा सके।
     
    2011/9/10 केवलकृष्ण <kewalkr...@gmail.com>
     
     
    --
    *दिनेशराय द्विवेदी, *कोटा, राजस्थान, भारत
    Dineshrai Dwivedi, Kota, Rajasthan,
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    खंबा <http://teesarakhamba.blogspot.com/>*

     

    "राकेश शेखावत Rakesh Shekhawa" <shekha...@gmail.com> Sep 11 09:51PM +0530 ^
     
    दिनेश जी आप का कहना बिल्कुल सही है लेकिन व्यवहार में अभी भी तहसील वगैरहा में
    शपथपत्र का चलन कम है।
     
    2011/9/11 दिनेशराय द्विवेदी <drdwi...@gmail.com>
     
     
    --
    राकेश शेखावत
     
    7/86 विद्याधरनगर, जयपुर(राजस्थान)
    My Blog
    http://importantjudgement.blogspot.com/

     


दिनेशराय द्विवेदी

unread,
Sep 11, 2011, 11:12:11 PM9/11/11
to vidhic...@googlegroups.com
केवलकृष्ण जी,
दीवानी प्रक्रिया संहिता में 2002 में हुए संशोधनों के बाद किसी भी पक्ष के गवाह का मुख्य परीक्षण शपथ पत्र पर ही लेने की प्रक्रिया है। आप अपने गवाह से जो कुछ भी बयान दिलाना चाहते हैं उन्हें शपथ पत्र के रूप में लिख कर उसे शपथ आयुक्त से तस्दीक करवा कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें। आप को मौखिक बयान करवाने की आवश्यकता नहीं है। प्रतिपक्षी या उस का वकील आप के गवाह से जिरह कर लेगा। इस संबंध में शेखावत जी द्वारा दी गई सलाह पर अमल करें।

2011/9/12 kewal krishna <kewalkr...@gmail.com>



--
दिनेशराय द्विवेदी, कोटा, राजस्थान, भारत
Dineshrai Dwivedi, Kota, Rajasthan,
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