विदेह ३६३ म अंक ०१ फरबरी २०२३ (वर्ष १६ मास १८२ अंक ३६३) ई प्रकाशित भऽ गेल लिंक http://videha.co.in/

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Videha Maithili eJournal विदेह मैथिली ई-पत्रिका

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Feb 1, 2023, 10:41:04 AM2/1/23
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विदेह ३६३ म अंक ०१ फरबरी २०२३ (वर्ष १६ मास १८२ अंक ३६३) ई प्रकाशित भऽ गेल लिंक http://videha.co.in/

ऐ अंकमे अछि:-

१.१.गजेन्द्र ठाकुर- नूतन अंक सम्पादकीय

१.२.विदेह ई-लर्निङ्ग

१.३.अंक ३६२ पर टिप्पणी

२.गद्य खण्ड

२.१.नित नवल दिनेश कुमार मिश्र (लेखक गजेन्द्र ठाकुर)

२.२.नित नवल सुशील (लेखक गजेन्द्र ठाकुर)

२.३.आशीष अनचिन्हार- निरपेक्ष-गुट-निरपेक्ष

२.४.प्रेमशंकर झा 'पवन'- मैथिली फकरा (लोकोक्ति) संकलन

२.५.कुमार मनोज कश्यप- बलिक छागर

.६.आचार्य रामानंद मंडल- मैथिली साहित्य मे घोटाला

२.७.आचार्य रामानंद मंडल- २ टा कथा

२.८.योगेन्द्र पाठक 'वियोगी'- ॐ तत्‍ सत्‍ एकम्‍ एव अद्वितीयम्‍

२.९.संतोष कुमार राय 'बटोही'- मंगरौना (उपन्यास- खेप १०)

२.१०.जगदीश प्रसाद मण्डल- भंगतराह कवि

२.११.जगदीश प्रसाद मण्डल- मोड़पर (धारावाहिक उपन्यास आठम पड़ाव)

२.१२.रबीन्द्र नारायण मिश्र- मातृभूमि (उपन्यास)- २० म खेप

२.१३.डॉ किशन कारीगर- मैथिली साहित्य मे सोलकन साहित्यकार सब के असलियत

२.१४.दुर्गानन्द मण्डलक ५ टा कथा- कथा-१ जइपर सम्पादकीय समीक्षा अंग्रेजीमे सम्पादकीय पृष्ठ पर

२.१५.दुर्गानन्द मण्डलक ५ टा कथा- कथा-२ जइपर सम्पादकीय समीक्षा अंग्रेजीमे सम्पादकीय पृष्ठ पर

२.१६.दुर्गानन्द मण्डलक ५ टा कथा- कथा-३ जइपर सम्पादकीय समीक्षा अंग्रेजीमे सम्पादकीय पृष्ठ पर

२.१७.दुर्गानन्द मण्डलक ५ टा कथा- कथा-४ जइपर सम्पादकीय समीक्षा अंग्रेजीमे सम्पादकीय पृष्ठ पर

२.१८.दुर्गानन्द मण्डलक ५ टा कथा- कथा ५ जइपर सम्पादकीय समीक्षा अंग्रेजीमे सम्पादकीय पृष्ठ पर

२.१९.गजेन्द्र ठाकुर- लालदासक मिथिला रामायण मे कुण्डलिया आ सम्पादक बा प्रूफरीडरक अज्ञानतावश ओइमे छन्दोभङ्ग

 

३.पद्य खण्ड

३.१.राज किशोर मिश्र- चातर

३.२.कल्पना झा- मायक आँचर


१.१.गजेन्द्र ठाकुर- नूतन अंक सम्पादकीय

(पछिला अंकसँ आगाँ)

मैथिलीमे छद्म समीक्षा आ कमलानन्द झा प्रसङ

कमलानन्द झाक पोथी "मैथिली उपन्यास: समय समाज आ सवाल" (२०२१) क शीर्षक भ्रामक अछि। ई हुनकर किछु सवर्ण उपन्यासकारपर किछु सिण्डिकेटेड कथित समीक्षात्मक आलेखक संग्रह अछि, २६३ पन्नाक ई पोथी हार्डबाउण्डमे लाइब्रेरीकेँ मात्र बेचल जा सकत, जतऽ ई सड़ि जायत, अमेजनसँ हम ई चारि सय पाँच टाकामे किनलौं मुदा ऐमे पाँचो पाइक सामिग्री नै अछि।

एतऽ एकटा भूल सुधार अछि, एकटा गएर सवर्ण लेखक सुभाष चन्द्र यादवक उपन्यास 'गुलो'केँ बिनु पढ़ने ओ दू पाँति लिखलन्हि आ निपटा देलन्हि, ओ दुनू पाँति हम एतऽ अहाँक मनोरंजनार्थ प्रस्तुत कऽ रहल छी। अहाँ गुलो पढ़नहिये हएब, जँ नै पढ़ने छी तँ पहिने पढ़ि लिअ, कारण तखन बेशी मनोरंजक अनुभव हएत, गुलो सुभाष चन्द्र यादव जीक अनुमति सँ उपलब्ध अछि विदेह आर्काइवपर ऐ http://videha.co.in/pothi.htm लिंकपर।

"उपन्यासक कमजोरी अछि लेखकक राजनीतिक पूर्वाग्रह। राजनीति विशेषक पक्षधरता रचनाक संग न्याय नहि कऽ पबैत अछि।"

जइ उपन्यासमे राजनीति दूर-दूर धरि नै छै ओतऽ 'राजनैतिक पूर्वाग्रह' आ 'राजनीति विशेषक पक्षधरता'क तँ प्रश्ने नै छै। राजनीतिक पूर्वाग्रह बा पक्षधरताक सोङर धूमकेतु आ यात्री प्रयुक्त केलन्हि। सुभाष चन्द्र यादव जीक 'भोट' जे २०२२मे आयल जे सुभाष चन्द्र यादव जीक अनुमति सँ उपलब्ध अछि विदेह आर्काइवपर ऐ http://videha.co.in/pothi.htm लिंकपर, से राजनीतिपर अछि मुदा ओतहुओ सुभाषजीक भगता शैलीकेँ राजनीतिक पूर्वाग्रह बा पक्षधरताक सोङरक आवश्यकता नै पड़लै। पढ़ू हमर पोथी 'नित नवल सुभाष चन्द्र यादव' जे उपलब्ध अछि ऐ http://videha.co.in/pothi.htm लिंकपर।

कमलानन्द झाक बिनु पढ़ने सुभाष चन्द्र यादवक विरुद्ध ब्राह्मणवादी जातिगत पूर्वाग्रह एकटा खतराक घण्टी अछि। जइ हिसाबे ब्राह्मणवादकेँ आगाँ बढ़बैले कमलानन्द झा वामपंथक सोङर पकड़ै छथि आ सामाजिक न्यायक बलि चढ़बऽ चाहै छथि, तकर प्रति समानान्तर धारा सचेत अछि। ई अपन बायोडाटामे गएर सवर्णसँ छीनि कऽ, समानान्तर धाराक लोकक हककेँ मारि कऽ लेल साहित्य अकादेमीक मैथिल अनुवाद असाइनमेण्टक गर्वसँ चर्चा करैत छथि। आ ई असाइनमेण्ट हिनका मेरिटसँ नै जातिगत टाइटिलसँ भेटल छन्हि, अही सभ किरदानीक एवजमे भेटल छन्हि। हिनका सन लोक लेल मैथिली बायोडेटाक एकटा पाँति अछि, समानान्तर धारा लेल जीवन-मरणक प्रश्न।

कमलानन्द झाकेँ हम किए छद्म समीक्षक कहलियनि? कारण ओ छद्म समीक्षक छथि। ओ लिखै छथि- "मैथिली उपन्यास-यात्राक लगभग सय वर्षक बाद मैथिल अन्तरजातीय विवाहक सपना, संघर्ष आ विडम्बना पर गरिमायुक्त उपन्यास लिखबाक श्रेय गौरीनाथकेँ जाइत छनि।" तँ की कमलानन्द झा सुशीलसँ ई श्रेय छीनि लेलनि? की ई हुनकर ब्राह्मणवादी संस्कारक अहंकार- जे हम ककरो चढ़ा सकै छिऐ आ ककरो उतारि सकै छिऐ- केर पराकाष्ठा थीक, आकि हुनकर अध्ययनक अभावक प्रमाण? चलू अहाँकेँ लऽ चली कमलानन्द झा केर स्वार्थी दुनियाँसँ दूर, छल-छद्मसँ दूर सुशीलक जादूबला साहित्यक निश्छल दुनियाँमे।अहाँक स्वागत अछि सुशीलक साहित्यक दुनियाँमे। प्रस्तुत अछि सुशीलक 'गामबाली' (१९८२) जे आब उपलब्ध अछि विदेह आर्काइवमे लिंक http://videha.co.in/pothi.htm पर। पहिल पाँतीमे उपन्यास आरम्भसँ पहिनहिये 'गामबाली' उपन्यासक सम्बन्धमे सुशील लिखै छथि- "विधवा विवाह आ अन्तर्जातीय विवाहक समर्थनमे।" आ उपन्यास आरम्भ। गामबालीक मृत्यु आ तखने झमेला, गामबालीक दाह संस्कार के करतै? ब्राह्मण समाज कि जादव समाज?

दिनेश कुमार मिश्रक 'दुइ पाटन के बीच मे' कोसी नदीक ऐतिहासिक आत्मकथा थीक, ओ मिथिलाक आन धार सभक ऐतिहासिक आत्मकथा सेहो लिखने छथि जेना बन्दिनी महानन्दा, बागमती की सद्गति!, दुइ पाटन के बीच में.. (कोसी नदी की कहानी), न घाट न घर, बगावत पर मजबूर मिथिला की कमला नदी, भुतही नदी और तकनीकी झाड़-फूंक, The Kamla River and People On Collision Course, Bhutahi Balan- Story of a ghost river and engineering witchcraft, Refugees of the Kosi Embankments। साहित्य अकादेमीक मैथिली परामर्शदात्री समितिक सदस्य पंकज झा पराशर द्वारा हिनकर पोथी सभसँ पैराक पैरा मैथिली अनुवाद कऽ अपना नामे उपन्यास छपबाओल गेल अछि, जकरा छद्म समीक्षक कमलानन्द झा ऐ चोर लेखकक रिसर्च कहै छथि! एतऽ स्पष्ट कऽ दी जे ई चोर लेखक आ छद्म समीक्षक दुनू अलीगढ़ मुस्लिम विद्यालयक हिन्दी विभागमे छथि। ई रिसर्च दिनेश कुमार मिश्रक थीक, जे आइ.आइ.टी. खड़गपुरसँ सिविल इन्जीनियरिङ मे बी. टेक. १९६८मे आ स्ट्रक्चरल इन्जीनियरिङमे एम.टेक. १९७०मे केने छथि, आ ओइ रिसर्च लेल क्वालिफाइड छथि। जखन कोनो विषयमे नामांकन नै होइ छै तखन लोक हारि-थाकि हिन्दीमे नामांकन लइए, नै तँ कमलानन्द झा केँ बुझऽ मे आबि जइतन्हि जे ई रिसर्च कोनो सिविल इन्जीनियरेक भऽ सकैत अछि, भऽ सकैए बुझलो होइन्ह। हिन्दी मूल आ मैथिलीक स्क्रीनशॉट आँगा संलग्न अछि।

दिनेश कुमार मिश्र मिथिलाक नै छथि मुदा मिथिलाक सभ धारक कथा ओ लिखने छथि, हम सभ हुनका प्रति कृतज्ञ छी आ हुनकर ऋणसँ मिथिलावासी कहियो उऋण नै भऽ सकता, मुदा मूलधाराक पुरस्कार आ पाइ लोलुप लोकसँ कृतघ्नते भेटत से फेर सिद्ध भेल। ऐ लेखककेँ दस बारह बर्ख पहिने सेहो तारानन्द वियोगी उद्धारक भेटल छलखिन्ह जे लिखने रहथिन्ह जे ओ कवितामे प्रभावित भऽ अनायासे अपन रचनामे दोसरक सामिग्री चोरि कऽ लइ छथि, एहने सन। आब ऐ कमलानन्द झा क आश्रय तकलन्हि मुदा दुर्भाग्य! जइ हिसाबे ब्राह्मणवादकेँ आगाँ बढ़बैले कमलानन्द झा वामपंथक सोङर पकड़ै छथि आ सामाजिक न्यायक बलि चढ़बऽ चाहै छथि, तकर प्रति समानान्तर धारा सचेत अछि। सीलिंगसँ बचबा लेल जमीन-जत्थाबला लोक कम्यूनिस्ट बनला आ आब ब्राह्मणवाद बचेबालेल वामपंथक शरण, एहेन लोक सभसँ कम्यूनिज्मकेँ बहुत नुकसान भेल छै।


दिनेश क़ुमार मिश्रक सभटा पोथी आब हुनकर अनुमतिसँ उपलब्ध अछि विदेह आर्काइवमेः
http://videha.co.in/pothi.htm
एतऽ एकटा गप मोन पाड़ि दी जे जखन बिल गेट्सकेँ पूछल गेलन्हि जे की ओ एक्स बॉक्स भारतमे पाइरेशीक डरसँ देरीसँ आनि रहल छथि? तँ हुनकर उत्तर रहन्हि जे माइक्रोसॉफ्ट पाइरेशीक डरे कोनो उत्पाद देरीसँ नै उतारने अछि। से विदेह पेटारमे हम सभ ऐ तरहक रिस्क रहितो एकरा आर समृद्ध करैत रहब, कारण समानान्तर धारामे सड़ल माँछ द्वारे पोखरिक सभ माँछ नै सड़ैए, एतुक्का मलाह गोट-गोट कऽ सड़ल माँछ निकालैत रहल छथि, निकालैत रहता।

सिण्डीकेटेड समीक्षापर अन्तिम प्रहार।

मूल दिनेश कुमार मिश्र (दुइ पाटन के बीच में... २००६): यह ध्यान देने की बात है कि 1923 से 1946 के बीच कोसी क्षेत्र में मलेरिया से 5,10,000, कालाजार से 2,10,000, हैजे से 60,000 तथा चेचक से 3,000 मौतें (कुल 7,83,000) हुईं।
चोर पंकज झा पराशर (साहित्य अकादेमीक मैथिली परामर्शदात्री समितिक सदस्य) [जलप्रांतर २०१७ (पृ. १०३)]:

मूल दिनेश कुमार मिश्र (दुइ पाटन के बीच में... २००६): भारतवर्ष में बिहार में कोसी नदी को बांधने का काम 12वीं शताब्दी में किसी राजा लक्ष्मण द्वितीय ने करवाया था और इस काम के लिए उसने प्रजा से 'बीर' की उपाधि पाई और नदी का तटबन्ध 'बीर बांध' कहलाया। इस तटबन्ध के अवशेष अभी भी सुपौल जिले में भीम नगर से कोई 5 किलोमीटर दक्षिण में दिखाई पड़ते हैं। डॉ. फ्रांसिस बुकानन (1810-11) का अनुमान था कि यह बांध किसी किले की सुरक्षा के लिए बनी बाहरी दीवार रहा होगा क्योंकि यह बांध धौस नदी के पश्चिमी किनारे पर तिलयुगा से उसके संगम तक 32 किलोमीटर की दूरी में फैला हुआ था। डॉ. डब्लू.डब्लू. हन्टर (1877) बुकानन के इस तर्क के साथ सहमत नहीं थे कि यह बांध किसी किले की सुरक्षा दीवार था। स्थानीय लोगों के हवाले से हन्टर का मानना था कि अधिकांश लोग इसे किले की दीवार नहीं मानते और उनके हिसाब से यह कुछ और ही चीज थी मगर वह निश्चित रूप से कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे। फिर भी जो आम धारणा बनती है वह यह है कि यह कोसी नदी के किनारे बना कोई तटबन्ध रहा होगा जिससे नदी की धारा को पश्चिम की ओर खिसकने से रोका जा सके। लोगों का यह भी कहना था कि ऐसा लगता था कि इस तटबन्ध का निर्माण कार्य एकाएक रोक दिया गया होगा।

 

छद्म समीक्षक कमलानन्द झा द्वारा चोर उपन्यासकारक पीठ ठोकब, देखू छद्म समीक्षक कमलानन्द झा द्वारा उद्धृत चोर पंकज झा पराशर (मैथिली उपन्यास, समय, समाज आ सवाल पृ. २५७-२५८):

 

चोर पंकज झा पराशर (साहित्य अकादेमीक मैथिली परामर्शदात्री समितिक सदस्य) [जलप्रांतर २०१७ (पृ. ३१)]:

मूल दिनेश कुमार मिश्र (दुइ पाटन के बीच में... २००६): कोसी के प्रवाह कि भयावहता की एक झलकफिरोजशाह तुगलक की फौज के सन् 1354 में बंगाल से दिल्ली लौटने के समय मिलती है। बताया जाता है कि जब सुल्तान की फौजें कोसी के किनारे पहुँचीं तो देखा कि नदी के दूसरे किनारे पर हाजी शम्सुद्दीन इलियास की फौजें मुकाबले के लिए तैयार खड़ी हैं। यह वही हाजी शम्सुद्दीन थे जिन्होंने हाजीपुर तथा समस्तीपुर शहर बसाये थे। फिरोज की फौजें शायद कुरसेला के आस-पास किसी जगह पर कोसी के किनारे सोच में पड़ गईं। नदी की रफ्तार उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही थी। आखिरकार फैसला हुआ कि नदी के साथ-साथ उत्तर की ओर बढ़ा जाय और जहाँ नदी पार करने लायक हो जाय वहाँ पानी की थाह ली जाये। सुल्तान की फौजें प्रायः सौ कोस ऊपर गईं और जियारन के पास, जो कि उसी स्थान पर अवस्थित था जहाँ नदी पहाड़ों से मैदानों में उतरती थी, नदी को पार किया। नदी की धारा तो यहाँ पतली जरूर थी पर प्रवाह इतना तेज था कि पाँच-पाँच सौ मन के भारी पत्थर नदी में तिनकों की तरह बह रहे थे। जहाँ नदी को पार करना मुमकिन लगा उसके दोनों ओर सुल्तान ने हाथियों की कतार खड़ी कर दी और नीचे वाली कतार में रस्से लटकाये गये जिससे कि यदि कोई आदमी बहता हुआ हो तो इस रस्सों की मदद से उसे बचाया जा सके। शम्सुद्दीन ने कभी सोचा भी न था कि सुल्तान की फौजें कोसी को पार कर लेंगी और जब उस को इस बात का पता लगा कि सुलतान की फौजों ने कोसी को पार करने में कामयाबी पा ली है तो वह भाग निकला।

चोर पंकज झा पराशर (साहित्य अकादेमीक मैथिली परामर्शदात्री समितिक सदस्य) [जलप्रांतर २०१७ (पृ. १०५)]:

(... शीघ्र अही लिंकपर आर स्क्रीनशॉट अपडेट कएल जायत।)

(अगिला अंकमे जारी..)

विदेह "साहित्यिक भ्रष्टाचार विशेषांक" लेल निम्नलिखित विषयपर आलेख ई-मेल editorial.s...@gmail.com पर आमंत्रित अछि।
१. साहित्य, कला आ सरकारी अकादमीः-
(क) पुरस्कारक राजनीति
(ख) सरकारी अकादेमीमे पैसबाक गएर-लोकतांत्रिक विधान
(ग) सत्तागुट आ अकादमी केर काज करबाक तरीका
(घ) सरकारी सत्ताक छद्म विरोधमे उपजल तात्कालिक समानांतर सत्ताक कार्यपद्धति
(ङ) अकादेमी पुरस्कारमे पाइ फैक्टरः मिथक बा यथार्थ
२. व्यक्तिगत साहित्य संस्थान आ पुरस्कारक राजनीति
३. प्रकाशन जगतमे पसरल भ्रष्टाचार आ लेखक
४. मैथिलीक छद्म लेखक संगठन आ ओकर पदाधिकारी सबहक आचरण
५. स्कूल-कॉलेजक मैथिली विभागमे पसरल साहित्यिक भ्रष्टाचारक विविध रूप-
(क) पाठ्यक्रम
(ख) अध्ययन-अध्यापन
(ग) नियुक्ति
६. साहित्यिक पत्रकारिता, रिव्यू, मंच-माला-माइक आ लोकार्पणक खेल-तमाशा
७. लेखक सबहक जन्म-मरण शताब्दी केर चुनाव , कैलेंडरवाद आ तकरा पाछूक राजनीति
८. दलित एवं लेखिका सबहक संगे भेद-भाव आ ओकर शोषणक विविध तरीका
९. कोनो आन विषय।

-गजेन्द्र ठाकुर, सम्पादक विदेह, whatsapp no +919560960721 HTTP://VIDEHA.CO.IN/ ISSN 2229-547X VIDEHA

आब अहाँ पुछब जे तकर प्रतिकार समानान्तर धारा केना केलक, ओ तँ कन्नारोहट नै करैए, तँ तकर उत्तर अछि हमर ३ टा पोथी जे १११म सगर राति दीप जरय मे लोकार्पित भेल ३१ दिसम्बर २०२२ केँ, वएह सगर राति दीप जरय जकरा साहित्य अकादेमी गत दस बर्खसँ गीड़ि लेबाक प्रयास कऽ रहल अछि। अहाँसँ ऐ तीनू पोथीपर टिप्पणी ई-पत्र सङ्केत editorial.s...@gmail.com पर आमंत्रित अछि। पहिल दू पोथी मे राजदेव मण्डल आ सुभाष चन्द्र यादवक साहित्यक समीक्षा अछि जे हमर तेसर पोथी मैथिली समीक्षशास्त्रक सिद्धांतक आधारपर कएल गेल अछि।

तीनू पोथीक लिंक नीचाँ देल गेल अछि।

Rajdeo Mandal- Maithili Writer (Now with Supplement I & II)

नित नवल सुभाष चन्द्र यादव 

नित नवल सुभाष चन्द्र यादव (मिथिलाक्षर)

मैथिली समीक्षाशास्त्र 

मैथिली समीक्षाशास्त्र (तिरहुता)

संगमे पढ़ू कमलानन्द झा क ब्राह्मणवादपर प्रहार:

दूषण पञ्जी- The Black Book

दूषण पञ्जी- The Black Book (मिथिलाक्षर)

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