आज विशेष्यगुं जमानु च, बड़ी जनसंख्या कि भाषाइ साहित्य मा
इतिहास विशेषज्ञ ही वीं भाषा साहित्य लिखणा छन । पर गढ़वाळि भाषा साहित्य मा
बहुविधायी साहित्यकार ही तैं साहित्य बि रचण पड़द अर समालोचना -इतिहास बि
खुज्याण पोड़द। गढ़वाली कवितावली बिटेन अब तलक इनी होणु च। श्री संदीप रावत
एक कवि बि छन अर गढ़वाळी साहित्यौ समालोचक अर इतिहासकार बि छन। या पोथी
सदीप जीक परिश्रम अर टक्क लगैक काम करणो एक उदाहरण च।
गढ़वाळि कवितावली से गढ़वाळि कवियूं समालोचना अर जीवन चरित्रो
पवाण लग। सन 1975 तक अधिकांशत: गढ़वाली साहित्यौ इतिहास अर आलोचना हिंदी मा
ही ह्वे। सन 1975 मा छपीं 'गाड़ म्यटेकि गंगा ' से भग्यान अबोध बंधु
बहुगुणा जीन गढ़वाळि गद्य कु इतिहास अर समालोचना गढ़वाळि मा लिखणै
आधिकारिक पवाण (शुरवात ) लगाइ। सन 1980 मा अबोध जीन 'शैलवाणी' मा
आधुनिक गढ़वाळि कवितौं ऐतिहासिक समालोचना की पवाण लगाइ। फिर हिंदी मा डा
अनिल डबराल की पोथी 'गढ़वाली गद्य की परम्परा ', डा कोटनाला की 'गढ़वाली
काव्य का उद्भव '; अंग्रेजी मा भीष्म कुकरेतीन इंटरनेट मा आधुनिक गढ़वाली
का हरेक विधा कु साहित्यौ अर किताबुं समलोचना अर रचनाकारों क जीवन चरित्र
पर हजार से बिंडि लेख छपिन। इनी भीष्म कुकरेतीन गढ़वाळि मा 'अंग्वाळ '
पोथी मा 200 से अधिक कवियों कृतित्व पर इतिहास सम्मत भूमिका लेखि। गढ़वाली
भाषा मा वीरेंद्र पंवार की समालोचना पोथी 'बीं' गढ़वाळि समालोचना का वास्ता
एक मील स्तम्भ च। युं समालोचकुं कार्य प्रशंसनीय च स्तुतीय च। किन्तु
हरेक कार्य अलग अलग विधा (गद्य या कविता ) कु इतिहास समालोचना बतांद।
भीष्म कुकरेतीन सबि विधाओं कु इतिहास ल्याख अर समलोचना कार किन्तु कुकरेती
कु काम केवल इंटरनेट तक सीमित च अर फिर इंटरनेट की अपनी कमजोरी हूंद ।
इनी डा गुणा नंद जुयाल , डा गोविन्द चातक अर डा हरी दत्त भट्ट शैलेशन
गढ़वाली भाषा विज्ञान कु काम मा अपणु अविषमरणीय योगदान दे.
संदीप रावत पहला इन साहित्यकार छन जौन एकी किताब मा
समग्र रूप से गढ़वाली भाषा मा सबि विधाओं जन कि भाषा -विज्ञानं , पद्य,
काव्य , कथा , व्यंग्य , व्यंगय चित्र, चिट्ठी पतरी , समालोचना जन विधाओं
कु इतिहास इकबटोळ कार, समालोचना ल्याख। याने कि संदीप जी आधिकारिक रूप से
पैला साहित्यकार छन जौन सबि विधाओं कु क्रिटिकल हिस्ट्री ऑफ़ गढ़वाली की
पोथी 'गढ़वाली भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा ' गढ़वाली भाषा मा छाप। श्री
रावत की जथगा बि बड़ै करे जावु कम पोड़ल। भाषा विज्ञान कु तजबिजु बि यीं
कालजयी किताब मा मिल जांद।
भाषा इतिहास खुज्याण मा रावत जीक परिश्रम एर नीयत कु
परिचय साफ़ मिल जांद जब हम तैं गढ़वाली भाषा का सन चौदहवीं सदी से लेकि अब
तलक का सबि मील स्तंभुं सूचना यीं ऐतिहासिक किताब से मिलदी। इनी भाषा का
समय समय पर बदल्यांद रूपों ब्याख्या अर उदाहरण बतांद कि संदीप जीन कथगा
परिश्रम करी होलु।
किताब माँ साहित्य समुचित कालखंडो मा बंटे गे अर हरेक विधा तैं
महत्व दिए गे इलै इ मी बुलणु छौं कि गढ़वाली साहित्य कु ऐतिहासिक -समलोचना
की या पैली समग्र किताब च।
'गढ़वाली भाषा अर साहित्य कि
विकास जात्रा ' किताब से पता चल्द कि गढ़वालीन कै हिसाबन अर कौं परिस्थिति
मा अपण रूप -स्वरुप बदल। शब्द असल मा समय कु ज्ञान दींदन अर इं किताब से
हम तैं अंथाज लग जांद कि कै समय पर गढ़वाल मा कैं संस्कृति अर भाषा कु अधिक
प्रभाव रै होलु।
असल मा समालोचनात्मक इतिहास लिखण अपण आप मा भौति कठण
काम च। यदि इतिहासकार हावी ह्वे जावो तो पुस्तक नीरस व संदर्भ पुस्तक
साबित ह्वे जांद अर यदि विवेचना जादा हो तो ऐतिहासिकता पर धक्का लगणो डौर
रौंद। संदीप जीन एक सामंजस्य रैखिक काम करी।
समालोचनात्मक इतिहास कु लिख्वारौ समिण कथगा ही
दुविधा आंदन। जन कि भौत दैं इन किताब मा इतिहास साधारण ह्वे जांद अर
समालोचना समग्र रौंद या इतिहास समग्र रूप से विकास बथान्द किन्तु समालोचना
खंडों मा खंडित ह्वे जांद या कै काल मा समालोचना कु आधार याने आइना अलग त
हैंक कालखंड मा समलोचना कु आधार ही बदल जांद । संदीप जीन हमेशा ख़याल राख
कि ऐतिहासिक तथ्य ही समालोचना का आधार बणन। समग्र ऐतिहासिक समालोचना संदीप
जीक खासियत च।
कबि कबि समालोचक इन साहित्यकार की छ्वीं लगाँद जौं तैं पारम्परिक आलोचक
जादा महत्व नि दींदन। संदीप जीन भौत सा इन साहित्यकारुं तैं समिण लैन
जौंक कार्य महत्वपूर्ण छौ पर हमार समालोचकोंन यूं साहित्यकारूं अणजाण मा
अवहेलना कार। जन कि कथाकार भग्यान काली प्रसाद घिल्डियाल अर बृजेन्द्र
नेगी या गीतकार विष्णु दत्त जुयाल तैं समालोचकुंन उथगा महत्व नि दे जथगा की
यो साहित्य्कार हकदार छा। संदीप जीन इन साहित्यकारो तैं यथोचित महत्व
दे।
कला लम्बी हूंद अर जीवन छुटु इलै ही इतिहास अर समालोचना असल मा
मौलिक ह्वेइ नि सकद अर इतिहासकार -समालोचक तैं रिकॉर्डों याने पुराण
आख्यानो कु आसरा लीण आवश्यक हूंद। संदीप रावत जीन अवश्य ही अफु से पैलाक
साहित्यकारो लेखुं या किताबुं आसरा ले पण फिर माप-तौल का वास्ता अपणा
विशेष टिप्प्णी बि दे। जगह जगह रिकॉर्ड्स, साक्ष्य व अन्य साहित्यकार
या समलचकों का कोटेसन से किताब मा ऑथेंटिसिटी पूरी तरह से रईं च. यदि संदीप
रावत तैं लगद कि कै हैक साहित्यकार का विचार संदीप का विचारूं से मेल नि
खान्दन तो संदीप अपनी विचार बताण मा नि झिझकदन। फिर संदीप जीकी टिप्प्णी
नया तरह से सुचणो अवसर बि दींदी अर नई पीढ़ी वास्ता बाटु बथाणो काम बि
'गढ़वाली भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा ' करदि।
रावत जीकी समालोचना मा साफ़ साफ़ निर्णय , साहित्य दिखणो अपण
ढंग , मीमांसा -विवेचना सब ठीक च। साहित्यिक इतिहास अर समालोचना मा भाषा
कु गरिष्ट होणो खतरा भौत हूंद पण रावत जीन सरल भाषा कु प्रयोग से विषय तैं
गरिष्ट हूण से बचायी।
संदीप रावत जी को गढ़वाली साहित्य मा वो ही
स्थान च जन साहित्यिक इतिहासकार -समलोचक डेविड डाइसेस (अंग्रेजी );डा
फ्रेडरिक बियालो ब्लोटज्की (जर्मन ); फ्रेडरिक ओटो व जॉर्ज कॉक्स (रुसी
भाषा ); जॉर्ज सेन्ट्सबरी (फ्रेंच ); फ्रांसिस्को विजिलो बारबाकोवि अर
जिरोलामो तिराबोस्की )इटालियन ); कार्ल ऑलफ्रीड डोनाल्डसन (यूनानी ); जॉर्ज
टिकनोर (स्पेनी ); मर्ल काल्विन रिक्लेफस (मलय );ताओ तैंग (चीनी भाषा );
लॉरेंट क्जिगानी (हंगरी भाषा ) ;ताल्वज रॉबिन्सन (पोलिश भाषा ) ; फ्रेडरिक
बॉटेविक (पुर्तगाली भाषा ) ; जूडिथ जैकोब अर डेविड स्मिथ (कम्बोडियाई
भाषा ) कु भाषा -साहित्यौ समालोचनात्मक इतिहास विधा संसार मा स्थान च।
इन तरां की किताब की गढ़वाली साहित्य तैं भारी आवश्यकता
बि छे। आशा च अग्वाड़ी संदीप रावत जी गढ़वाली साहित्यौ इतिहास अर समलोचना
तैं नई नई दिशा द्याला।
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Garhwali Bhasha ar Sahitya ki Jatra
historian- Sandeep Rawat
Language -Garhwali
Pages-192
Price-275
Vinsar Prakashan , faltu Line Dehradun
Contact 09720752367
Regards
Bhishma Kukreti