गंगा में अवैध खनन के खिलाफ संत निगमानंद के 19 फरवरी को शुरू हुए अनशन
के 68वें दिन 27 अप्रैल 2011 को पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया था। एक
संत के जान-माल की रक्षा के लिए प्रशासन ने यह गिरफ्तारी की थी। संत
निगमानंद को गिरफ्तार करके जिला चिकित्सालय हरिद्वार में भर्ती किया गया।
हालांकि 68 दिन के लंबे अनशन की वजह से उनको आंखों से दिखाई और सुनाई
पड़ना काफी कम हो गया था। फिर भी वे जागृत और सचेत थे और चिकित्सा
सुविधाओं के वजह से उनके स्वास्थ्य में धीरे-धीरे सुधार हो रहा था।
लेकिन अचानक 2 मई 2011 को उनकी चेतना पूरी तरह से जाती रही और वे कोमा की
स्थिति में चले गए। जिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक पीके
भटनागर संत निगमानंद के कोमा अवस्था को गहरी नींद बताते रहे। बहुत
जद्दोजहद और वरिष्ठ चिकित्सकों के कहने पर देहरादून स्थित दून अस्पताल
में उन्हें भेजा गया। अब उनका इलाज जौली ग्रांट स्थित हिमालयन
इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल में चल रहा है।
हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल के चिकित्सकों को संत निगमानंद के बीमारी
में कई असामान्य लक्षण नजर आए और उन्होंने नई दिल्ली स्थित ‘डॉ लाल
पैथलैब’ से जांच कराई। चार मई को जारी रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि
ऑर्गोनोफास्फेट कीटनाशक उनके शरीर में उपस्थित है। मातृ-सदन के संत
दयानंद की ओर से हरिद्वार मुख्य चिकित्सा अधीक्षक पीके भटनागर और खनन
माफिया ज्ञानेश कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है।
इस प्रकरण से जुड़ी मुख्य खबर
न्यायपालिका की चौखट पर गंगा-भक्त
Author:
शिराज केसर
गंगा में खनन को रोकने के लिए पिछले तीन-चार सालों के अंदर ही लंबे अनशन
के कारण मातृसदन के संत निगमानंद अंतबेला में पहुंच चुके हैं। वैसे तो
संत का अंत नहीं होता, संत देह मुक्त होकर अनंत हो जाता है। हरिद्वार की
भूमि पर हजारों संतों, मठों, आश्रमों, शक्तिपीठों के वैभव का प्रदर्शन तो
हम आये दिन देखते रहते हैं। पर हरिद्वार के मातृसदन के संत निगमानंद के
आत्मोत्सर्ग की सादगी का वैभव हम पहली बार देख रहे हैं।
देश की स्वाभिमानी पीढ़ी तक शायद यह खबर भी नहीं है कि गंगा के लिए एक
संत 2008 में 73 दिन का आमरण अनशन करता है जिसकी वजह से न्यूरोलॉजिकल
डिसऑर्डर का शिकार होता है। और अब 19 फरवरी से शुरू हुआ उनका आमरण अनशन
27 अप्रैल को पुलिस हिरासत से पूरा होता है। संत निगमानंद ने घोषणा की थी
कि अगर उनकी मांगे न मान करके सरकार अगर जबर्दस्ती खिलाने की कोशिश करती
है, तो वो आजीवन मुंह से अन्न नहीं ग्रहण नहीं करेंगे।
संत निगमानंद: नैनीताल उच्च न्यायालय की भ्रष्टाचार के खिलाफ 68 दिन से
अनशन पर बैठे संत निगमानंद अब कोमा में पहुंचेऐसी धारणा बनती जा रही है
कि बेलगाम सरकारों और आपराधिक राजनैतिक तंत्र पर लगाम न्यायपालिका ही लगा
पा रही है। पर आम लोगों का बड़ा तबका न्यायपालिका से शायद ही कोई उम्मीद
करता है। गरीब आदमी तो वकीलों की बड़ी-बड़ी फीसें नहीं दे सकता, वह न्याय
से वंचित रह जाता है। जो लोग न्यायिक प्रक्रिया से जुडे हैं वे अच्छी तरह
जानते हैं कि न्यायपालिका में भी उतना ही भ्रष्टाचार है जितना कि राज्य
की अन्य संस्थाओं में। देश अब एक नए तरह के नेक्सस नेता-माफिया-अधिकारी-
न्यायपालिका का शिकार हो रहा है।
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