[Uma Mahadev] ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है सृष्टि का सारा रहस्य
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Dec 22, 2012, 11:11:24 PM12/22/12
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ॐ नमः शिवाय
ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है सृष्टि का सारा रहस्य
जब
पहली बार विधाता ने इस सृष्टि की रचना शुरू की थी। दरअसल शिव के
ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है सृष्टि का सारा रहस्य। हर ज्योतिर्लिंग से
जुड़ी है मनोरथ और सिद्धि के तमाम सीढ़ियां। लेकिन पहले जानते हैं शिव कौन हैं। कैसे धारण करते हैं वो इस जगत को। कैसे देवी भगवती शक्ति बनकर हमेशा उनके साथ रहती हैं। एक
राजा थे उनकी सत्ताईस कन्याएं थीं। उनकी शादी होती है। लेकिन एक कन्या की
वजह से सारी कहानी बदल जाती है। उस कन्या का प्यार कैसे चंद्रमा के लिए शाप
का विषय बनता है। और फिर कैसे पैदा होता है शिव का पहला ज्योतिर्लिंग। देश
में शिव के जो बारह ज्योतिर्लिंग है उनके बारे में मान्यता है कि अगर सुबह
उठकर सिर्फ एक बार भी बारहों ज्योतिर्लिंगों का नाम ले लिया जाए तो सारा
काम हो जाता है। सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग
है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बड़ी विचित्र है। शिव पुराण की कथा के हिसाब
से प्राचीन काल में राजा दक्ष ने अश्विनी समेत अपनी सत्ताईस कन्याओं की
शादी चंद्रमा से की थी। सत्ताईस कन्याओं का पति बन के चंद्रमा बेहद खुश
हुए। कन्याएं भी चंद्रमा को वर के रूप में पाकर अति प्रसन्न थीं। लेकिन ये
प्रसन्नता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी। क्योंकि कुछ दिनों के बाद
चंद्रमा उनमें से एक रोहिणी पर ज्यादा मोहित हो गए। ये बात जब राजा दक्ष
को पता चली तो वो चंद्रमा को समझाने गए। चंद्रमा ने उनकी बातें सुनीं,
लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर रोहिणी पर उनकी आसक्ति और तेज हो गई। जब
राजा दक्ष को ये बात फिर पता चली तो वो गुस्से में चंद्रमा के पास गए। उनसे
कहा कि मैं तुमको पहले भी समझा चुका हूं। लेकिन लगता है तुम पर मेरी बात
का असर नहीं होने वाला। इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम क्षय रोग के
मरीज हो जाओ। राजा दक्ष के इस श्राप के तुरंत बाद चंद्रमा क्षय रोग से
ग्रस्त होकर धूमिल हो गए। उनकी रौशनी जाती रही। ये देखकर ऋषि मुनि बहुत
परेशान हुए। इसके बाद सारे ऋषि मुनि और देवता इंद्र के साथ भगवान ब्रह्मा
की शरण में गए। फिर ब्रह्मा जी ने उन्हें एक उपाय बताया। उपाय के हिसाब
से चंद्रमा को सोमनाथ के इसी जगह पर आना था। भगवान शिव का तप करना था और
उसके बाद ब्रह्मा जी के हिसाब से भगवान शिव के प्रकट होने के बाद वो दक्ष
के शाप से मुक्त हो सकते थे। इस जगह पर चंद्रमा आए। भगवान वृषभध्वज का महामृत्युंजय मंत्र से पूजन किया। फिर
छह महीने तक शिव की कठोर तपस्या करते रहे। चंद्रमा की कठोर तपस्या को
देखकर भगवान शिव खुश हुए। उनके सामने आए और वर मांगने को कहा। चंद्रमा ने वर मांगा कि हे भगवन अगर आप खुश हैं तो मुझे इस क्षय रोग से मुक्ति दीजिए और मेरे सारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए। भगवान
शिव ने कहा कि तुम्हें जिसने शाप दिया है वो भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं
है। लेकिन मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगा जरूर। इसके बाद भगवान शिव ने
चंद्रमा के साथ जो किया उसे देखकर चंद्रमा न ज्यादा खुश हो सके और न ही
उदास रह सके। लेकिन शिव ने ऐसा किया क्या। चंद्रमा की तपस्या से भगवान
शिव प्रसन्न थे। उन्हें वर देना चाहते थे लेकिन संकट देखिए। जिन्होंने
चंद्रमा को श्राप दिया है वो भी कोई साधारण हस्ती नहीं थे। असमंजस था ऐसा
असमंजस जिसमें भगवान शिव भी पड़ गए थे। खैर, शिव एक रास्ता निकालते हैं।
चंद्रमा से कहते हैं कि मैं तुम्हारे लिए ये कर सकता हूं एक माह में जो दो
पक्ष होते हैं, उसमें से एक पक्ष में तुम निखरते जाओगे। लेकिन दूसरे पक्ष
में तुम क्षीण भी होओगे। ये पौराणिक राज है चंद्रमा के शुक्ल और कृष्ण पक्ष
का जिसमें एक पक्ष में वो बढ़ते हैं और दूसरे में वो घटते जाते हैं। भगवान शिव के इस वर से भी चंद्रमा काफी खुश हो गए। उन्होंने भगवान शिव का आभार प्रकट किया उनकी स्तुति की। यहां
पर एक बड़ा अच्छा रहस्य है। अगर आप साकार और निराकर शिव का रहस्य जानते
हैं तो आप इसे समझ जाएंगे, क्योंकि चंद्रमा की स्तुति के बाद इसी जगह पर
भगवान शिव निराकार से साकार हो गए थे। और साकार होते ही देवताओं ने उन्हें
यहां सोमेश्वर भगवान के रूप में मान लिया। यहां से भगवान शिव तीनों लोकों
में सोमनाथ के नाम से विख्यात हुए। जब शिव सोमनाथ के रूप में यहां
स्थापित हो गए तो देवताओं ने उनकी तो पूजा की ही, चंद्रमा को भी नमस्कार
किया। क्योंकि चंद्रमा की वजह से ही शिव का ये स्वरूप इस जगह पर मौजूद है। समय
गुजरा। इस जगह की पवित्रता बढ़ती गई। शिव पुराण में कथा है कि जब शिव
सोमनाथ के रूप में यहां निवास करने लगे तो देवताओं ने यहां एक कुंड की
स्थापना की। उस कुंड का नाम रखा गया सोमनाथ कुंड। कहते हैं कि कुंड में
भगवान शिव और ब्रह्मा का साक्षात निवास है। इसलिए जो भी उस कुंड में स्नान
करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं। उसे हर तरह के रोगों से निजात मिल
जाता है। शिव पुराण में लिखा है कि असाध्य से असाध्य रोग भी कुंड में
स्नान करने के बाद खत्म हो जाता है। लेकिन एक विधि है जिसको मानना पड़ता
है। अगर कोई व्यक्ति क्षय रोग से ग्रसित है तो उसे उस कुंड में लगातार छह
माह तक स्नान करना होगा। ये महिमा है सोमनाथ की। शिव पुराण में ये भी
लिखा है कि अगर किसी वजह से आप सोमनाथ के दर्शन नहीं कर पाते हैं तो सोमनाथ
की उत्पति की कथा सुनकर भी आप वही पौराणिक लाभ उठा सकते हैं। इस तीर्थ पर और भी तमाम मुरादें हैं जिन्हें पूरा किया जा सकता है। क्योंकि ये तीर्थ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे महत्वपूर्ण है। धरती
का सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र में काठियावाड़ नाम की जगह पर स्थित
है। इस मंदिर में जो सोमनाथ देव हैं उनकी पूजा पंचामृत से की जाती है। कहा
जाता है कि जब चंद्रमा को शिव ने शाप मुक्त किया तो उन्होंने जिस विधि से
साकार शिव की पूजा की थी, उसी विधि से आज भी सोमनाथ की पूजा होती है। यहां
जाने वाले जातक अगर दो सोमवार भी शिव की पूजा को देख लेते हैं तो उनके
सारे मनोरथ पूरे हो जाते हैं। अगर आप सावन की पूर्णिमा में कोई मनोरथ लेकर
आते हैं तो भरोसा रखिए उसके पूरा होने में कोई विलंब नहीं होगा। अगर आप
शिवरात्रि की रात यहां महामृत्युंजय मंत्र का महज एक सौ आठ बार भी जाप कर
देते हैं तो वो सारी चीजें आपको हासिल हो सकती जिसके लिए आप परेशान हैं। ये
है इस धरती के सबसे पहले ज्योतिर्लिंग की महिमा। शिव पुराण में ये कथा
महर्षि सूरत जी ने दूसरे ऋषियों को सुनाई है। जो जातक इस कथा को ध्यान से
सुनते हैं या फिर सुनाते हैं उन पर चंद्रमा और शिव दोनों की कृपा होती है।
चंद्रमा शीतलता के वाहक हैं। उनके खुश होने से इंसान मानसिक तनाव से दूर
होता है। और शिव इस जगत के सार हैं। उनके खुश होने से जीवन के सारे मनोरथ
पूरे हो जाते हैं।