शिव
को सहस्त्रमुखी यानी हज़ार मुंह वाला भी कहा गया है, लेकिन प्रमुखतया शिव
पंचमुखी हैं। इन्हीं पांचों मुखों के ज़रिए शिव दुनिया को चलाते हैं। शिव की
प्रिय संख्या है पांच। शिव मध्यमार्गी हैं। यानी न देवों के, न असुरों के।
वह बीच के हैं, जो चाहे, वह प्राप्त कर ले। शून्य का विस्फोट हुआ, तो उससे
नौ संख्याएं निकलीं-एक से नौ तक। पांच सबसे बीच की संख्या है।
शिव का प्रिय मंत्र है-नमो शिवाय। इसमें भी पांच ही अक्षर हैं, इसीलिए इसे
‘पंचाक्षर मंत्र’ कहा जाता है। शिव पंचतत्व के देव हैं। इंद्रियां भी पांच
होती हैं और शिव इंद्रियों के भी स्वामी हैं। अंकशास्त्र के अनुसार अगर
किसी का भाग्यांक पांच हो, तो उसे शिव की विशेष आराधना करनी चाहिए। उस पर
शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। शिवपुराण के अनुसार, इनके पांच मुंह तथा इनके
गुण ये हैं- ईशान यह क्रीडा का मुख है। जितने मनोरंजन, खेल, विज्ञान आदि हैं, ये सब शिव के इसी मुख द्वारा संचालित होते हैं। तत्पुरुष यह तपस्या का मुख है। साधना, पढ़ाई-लिखाई, इच्छा व लक्ष्य प्राप्ति के लिए किया जाने वाला हर काम इसी मुख से संचालित होता है। अघोर
यह शिव का रौद्रमुख है। पूरी दुनिया में जो युद्ध, आपदाएं, मृत्यु आती
हैं, शिव के इसी मुख के कारण आती हैं। यह न्याय भी करता है और पाप का दंड
भी दे सकता है। आपदाशांति के लिए अघोर-उपासना इसीलिए की जाती है। यह शिव का
मध्यमुख है। उपरोक्त दोनों मुख शिव की दाईं ओर होते हैं। वामदेव
यह अंहकार का रूप है। शिव के वाम का पहला मुख। हमारे अहंकार, गर्व, प्रेम,
मोह, आसक्ति आदि इसी मुख के कारण इस संसार में दिखते हैं। सद्योजात यह ज्ञान का मुख है। यह शिव का अतिशालीन रूप है। शिव के इसी रूप की सबसे •यादा आराधना होती है। शिव के पांच काम शिव
पूरी दुनिया को पांच गतिविधियों से चलाते हैं। ये पांच काम हैं-सृष्टि,
पालन, संहार, निग्रह यानी प्रेम आदि और अनुग्रह यानी कृपा। ये पांचों काम
उनके पांचों मुखों से होते हैं।