श्रावण मास में शिव पूजा का अपना अलग महत्व है। महाकाल की नगरी उज्जैन की बात हो, तो यह महत्व दोगुना हो जाता है। यहाँ स्थित 84 महादेवों की अर्चना श्रावण माह में विशेष रूप से की जाती है।
इनके
महात्म्य को पुराणों में विस्तृत रूप से समझाया गया है। अलग-अलग नाम से
स्थापित इन 84 महादेवों की आराधना का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न है। बेव दुनिया
के पाठकों की जानकारी के लिए प्रस्तुत है इन शिवलिंगों का पौराणिक महत्व
एवं इतिहास।
(1) अगस्तेश्वर महादेव अगस्तेश्वर
महादेव मंदिर हरसिद्धि मंदिर के पीछे स्थित संतोषी माता मंदिर परिसर में
है। पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख के अनुसार जब दैत्यों ने देवताओं पर विजय
प्राप्त कर ली, तब निराश होकर देवता पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे।
वन
में भटकते हुए एक दिन उन्होंने सूर्य के समान तेजस्वी अगस्तेश्वर तपस्वी
को देखा। देवताओं के हाल को देखकर अगस्त्य ऋषि क्रोधित हुए। फलस्वरूप
ज्वाला उत्पन्न हुई और स्वर्ग से दानव जलकर गिरने लगे। भयभीत होकर ऋषि आदि
पाताल लोक चले गए। इससे अगस्त्य ऋषि दुःखी हुए। वे ब्रह्माजी के पास गए और
कहने लगे कि मैंने ब्रह्म हत्या की है, अतः ऐसा उपाय बताओ, जिससे मेरा
उद्धार हो।
ब्रह्मा
ने कहा कि महाकाल वन के उत्तर में वट यक्षिणी के पास उत्तम लिंग है। उनकी
आराधना से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे। ब्रह्माजी के कथन पर अगस्त्य ऋषि ने
तपस्या की और भगवान महाकाल प्रसन्न हुए। भगवान ने उन्हें वर दिया कि जिस
देवता का लिंग पूजन तुमने किया है, वे तुम्हारे नाम से तीनों लोकों में
प्रसिद्ध होंगे।
जो
मनुष्य भावभक्ति से अगस्तेश्वर का दर्शन करेगा, वह पापों से मुक्त होकर
सभी मनोकामनाओं को प्राप्त करेगा। तभी से श्रावण मास में विशेष रूप से
अगस्तेश्वर महादेव की आराधना श्रद्धालुजन करते हैं। (2) लिंग गुहेश्वर महादेव मंदिर रामघाट
पर पिशाच मुक्तेश्वर के पास सुरंग के भीतर स्थित है। इनके दर्शन मात्र से
ही उत्तम सिद्धि प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि मंकणक वेद-वेदांग
में पारंगत थे। सिद्धि की कामना में हमेशा तपश्चर्या में लीन रहते थे।
एक
दिन पर्वत पुत्र विद्ध के हाथ से कुशाग्र नामक शाकरस उत्पन्न हुआ। ऋषि
मंकणक को अभिमान हुआ कि यह उनकी सिद्धि का फल है। वे गर्व करके नृत्य करने
लगे। इससे सारे जगत में त्रास फैल गया। पर्वत चलने लगे, वर्षा होने लगी,
नदियाँ उल्टी बहने लगीं तथा ग्रहों की गति उलट गई। देवता भयभीत हो महादेव
के पास गए।
महादेव
ऋषि के पास पहुँचे और नृत्य से मना किया। ऋषि ने अभिमान के साथ शाकरस की
घटना का जिक्र किया। इस पर महादेव ने अँगुष्ठ से ताड़ना कर अँगुली के
अग्रभाग से भस्म निकाली और कहा कि देखो मुझे इस सिद्धि पर अभिमान नहीं है
और मैं नाच भी नहीं रहा हूँ। इससे लज्जित होकर ऋषि ने क्षमा माँगी और तप का
वरदान माँगा।
महादेव
ने आशीर्वाद देकर कहा कि महाकाल वन जाओ, वहाँ सप्तकुल में उत्पन्न लिंग
मिलेगा। इसके दर्शन मात्र से तुम्हारा तप बढ़ जाएगा। ऋषि को लिंग गुहा के
पास मिला। लिंग दर्शन के बाद ऋषि तेजस्वी हो गए और दुर्लभ सिद्धियों को
प्राप्त कर लिया। बाद में लिंग गुहेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
ऐसा कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से इक्कीस पीढ़ियों का उद्धार होता है।
(3) ढूँढ़ेश्वर महादेव शिप्रा
तट स्थित रामघाट के समीप धर्मशाला के ऊपरी भाग पर स्थित है। रुद्र देवता
ने इन्हें स्वर्ग दिलाने वाला, सर्वपाप हरण करने वाला बताया है। पुराणों के
अनुसार कैलाश पर्वत पर ढूँढ़ नामक गणनायक था। वह कामी और दुराचारी था।
एक
दिन वह इंद्र के दरबार में जा पहुँचा और रंभा की फूलों से पिटाई कर दी। यह
देखकर इंद्र ने शाप दिया, जिससे वह मृत्युलोक में मूर्छित होकर गिर गया।
होश में आने पर उसे अपने कृत्य पर क्षोभ हुआ और वह महेन्द्र पर्वत पर तप
करने लगा।
जब
उसे सिद्धि प्राप्त नहीं हुई तो उसने धर्मकर्म त्याग दिया। तभी भविष्यवाणी
हुई कि महाकाल वन जाओ, वहाँ कार्यसिद्धि होगी। वह वन में पहुँचा और
सम्प्रतिकारक के शुभ लिंग के दर्शन किए।
तप-आराधना
से प्रसन्न होकर लिंग ने वरदान दिया। तब ढूँढ़ ने कहा कि मेरे नाम से आपको
जाना जाए। तभी से ढूँढ़ेश्वर महादेव के नाम से वह लिंग प्रसिद्ध हुआ। इनके
महात्म्य से व्यक्ति महादेव लोक को प्राप्त होता है।
(4) डमरूकेश्वर महादेव वैवस्वत
कल्प में रू रू नाम का महाअसुर था। उसका पुत्र महाबाहु बलिष्ठ वज्र था।
महाकाय तीक्ष्ण दंत वाले इस असुर ने देवताओं के अधिकार तथा संपत्ति छीन ली
और स्वर्ग से निकाल दिया।
पृथ्वी
पर वेद पठन-यज्ञ आदि बंद हो गए और हाहाकार मच गया। तब सभी देवता-ऋषि आदि
एकत्रित हुए और असुर के वध का विचार किया। विचार करते ही तेज पुंज के साथ
एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई। उसने बारंबार अट्टाहास किया, जिससे बड़ी संख्या
में देवियाँ उत्पन्ना हुईं। उन सभी ने मिलकर वज्रासुर से युद्ध किया।
दैत्य
युद्ध स्थल से भागने लगे तो वज्रासुर ने माया प्रकट की। माया से कन्याएँ
मोह को प्राप्त हो गईं। तब देवी कन्याओं को लेकर महाकाल वन में गईं, लेकिन
वज्रासुर भी उनके पीछे-पीछे वन में पहुँच गया। यह समाचार नारद मुनि ने
शिवजी को दिया।
शिवजी
ने उत्तम भैरव का रूप धारण किया और वज्रासुर पर डमरू से प्रहार शुरू कर
दिया। डमरू के शब्द से उत्तम लिंग उत्पन्न हुआ, जिससे निकली ज्वाला में
वज्रासुर भस्म हो गया। उसकी सेना का भी नाश हो गया। तब देवताओं ने उत्तम
लिंग का नाम डमरूकेश्वर रखा। इनके दर्शन से सभी दुःख दूर हो जाते हैं। श्री
डमरूकेश्वर महादेव का मंदिर राम सीढ़ी के ऊपर स्थित है।
(5) अनादिकल्पेश्वर महादेव अनादि
समय में कथा के पहले एक उत्तम लिंग पृथ्वी पर प्रकट हुआ। उस समय अग्नि,
सूर्य, पृथ्वी, दिशा, आकाश, वायु, जल, चन्द्र, ग्रह, देवता, असुर, गंधर्व,
पिशाच आदि नहीं थे।
इस
लिंग से जगत्स्थावर जंगम उत्पन्न हुए। इसी लिंग से देव, पितृ, ऋषि आदि के
वंश उत्पन्न हुए। इस लिंग को अनादि सृष्टा माना जाने लगा। ब्रह्मा तथा
शिवजी में इस बात पर विवाद हो गया कि सृष्टि का निर्माता कौन है। दोनों
स्वयं को मानने लगे। तभी आकाशवाणी हुई कि महाकाल वन में कल्पेश्वर लिंग है,
यदि उसका आदि या अंत देख लोगे तो जान जाओगे कि वही सृष्टिकर्ता है।
ब्रह्मा
तथा शिव उसके आदि तथा अंत को नहीं खोज पाए। तब उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर
अनादिकल्पेश्वर नाम से यह लिंग प्रसिद्ध होगा। इसके दर्शन मात्र से ही सारे
पाप नष्ट हो जाएँगे। यह लिंग महाकालेश्वर मंदिर परिसर में स्थित है। (6) स्वर्णजालेश्वर महादेव जब
महादेव को उमा के साथ कैलाश पर्वत पर क्रीड़ा करते सौ बरस बीत गए तो
देवताओं ने अग्नि नारायण को उनके पास भेजा। महादेव ने अग्नि के मुँह में
वीर्य डाल दिया। इससे अग्नि जलने लगा और वीर्य को गंगाजी में डाल दिया। फिर
भी मुख में वीर्य के शेष रहने पर अग्नि जलने लगा।
इस
वीर्य शेष से अग्नि को पुत्र हुआ। इस तेजस्वी पुत्र का नाम सुवर्ण पुत्र
था। इसे प्राप्त करने के लिए देवताओं तथा असुरों में युद्ध शुरू हो गया।
दोनों ओर से अनेक मर गए। इस पर ब्रह्मघातक सुवर्ण को शिवजी ने बुलाया और
श्राप दिया कि उसका शरीर बल के सहित विकारमय हो जाए तथा धातु रूप बन जाए।
पुत्र
मोह में अग्नि ने महादेव से कहा कि ये आपका ही पुत्र है, इसकी रक्षा आप ही
करो। लोभवश महादेव ने उसे अभयदान दे दिया और वरदान माँगने को कहा। उसे यह
भी कहा कि तुम महाकाल वन में जाकर कर्कोटकेश्वर के दक्षिण भाग में स्थित
लिंग के दर्शन करो। दर्शन मात्र से तुम कृतकृत्य हो जाओगे।
सुवर्ण
के द्वारा उस लिंग के दर्शन-पूजन से प्रसन्ना हो महादेव ने वरदान दिया कि
तुम्हारी अक्षयकीर्ति होगी तथा तुम स्वर्णजालेश्वर के नाम से प्रसिद्धि
पाओगे। जो भी तुम्हारी अर्चना करेगा वह पुत्र-पौत्र का सुख प्राप्त करेगा।
ये महादेव राम सीढ़ी पर स्थित है।
(7) त्रिविष्टपेश्वर महादेव वाराह
कल्प में पुण्यात्मा देव ऋषि नारद स्वर्गलोक गए। वहाँ इंद्रदेव ने नारदजी
से महाकाल वन का माहात्म्य पूछा। नारदजी ने कहा कि महाकाल वन में महादेव,
गणों के साथ निवास करते हैं। वहाँ साठ करोड़ हजार तथा साठ करोड़शत लिंग निवास
करते हैं। साथ ही नवकरोड़ शक्तियाँ भी निवास करती हैं।
यह
सुनकर सभा में बैठे सभी देवता तथा इंद्र महाकाल वन पहुँचे। उनके पहुँचने
पर आकाशवाणी हुई कि आप सभी देवता मिलकर एक लिंग की स्थापना कर्कोटक से पूरब
में और महामाया के दक्षिण में करें। यह सुनकर देवताओं तथा इंद्र ने एक
लिंग की स्थापना की। इंद्र ने लिंग को स्वयं का नाम 'त्रिविष्टपेश्वर'
दिया।
महाकाल
मंदिर में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पीछे स्थित त्रिविष्टपेश्वर महादेव
की पूजा-अर्चना अष्टमी, चतुर्दशी तथा संक्रांति को करने से विशेष फल
प्राप्त होता है।
(8) कपालेश्वर महादेव वैवस्वत
कल्प में, त्रेतायुग में, महाकाल वन में पितामह यज्ञ कर रहे थे। वहाँ
ब्राह्मण समाज बैठा था। महादेव कापालिक वेश में वहाँ पहुँच गए। यह देखकर
ब्राह्मणों ने क्रोधित हो उन्हें हवन स्थल से चले जाने को कहा। कापालिक वेश
धारण किए महादेव ने ब्राह्मणों से अनुरोध किया कि मैंने ब्रह्म हत्या का
पाप नाश करने के लिए बारह वर्ष का व्रत धारण किया है। अतः मुझे पापों का
नाश करने हेतु अपने साथ बिठाएँ। ब्राह्मणों द्वारा इंकार करने पर उन्होंने
कहा कि ठहरो, मैं भोजन करके आता हूँ।
तब
ब्राह्मणों ने उन्हें मारना शुरू कर दिया। इससे उनके हाथ में रखा कपाल
गिरकर टूट गया। इतने पर कपाल पुनः प्रकट हो गया। ब्राह्मणों ने क्रोधित
होकर कपाल को ठोकर मार दी। जिस स्थान पर कपाल गिरा वहाँ करोड़ों कपाल प्रकट
हो गए। ब्राह्मण समझ गए कि यह कार्य महादेव का ही है।
उन्होंने
शतरुद्री मंत्रों से हवन किया। तब प्रसन्ना होकर महादेव ने कहा कि जिस जगह
कपाल को फेंका है, वहाँ अनादिलिंग महादेव का लिंग है। यह समयाभाव से ढँक
गया है। इसके दर्शन से ब्रह्म हत्या का पाप नाश होगा। इस पर भी जब दोष दूर
नहीं हुआ तब आकाशवाणी हुई कि महाकाल वन जाओ। वहाँ महान लिंग गजरूप में
मिलेगा। वे आकाशवाणी सुनकर अवंतिका आए।
लिंग
दर्शन करते समय हाथ में स्थित ब्रह्म मस्तक पृथ्वी पर गिर गया। तब महादेव
ने इसका नाम कपालेश्वर रखा। बिलोटीपुरा स्थित राजपूत धर्मशाला में स्थित
कपालेश्वर महादेव के दर्शन करने मात्र से कठिन मनोरथ पूरे होते हैं।
(9) स्वर्गद्वारेश्वर महादेव नलिया
बाखल स्थित स्वर्गद्वारेश्वर महादेव के पूजन-अर्चन से स्वर्ग की प्राप्ति
होती है तथा मोक्ष मिलता है। पुराणों में अंकित जानकारी अनुसार अश्विनी तथा
उमा की बहनें, कैलाश पर्वत पर उमा से मिलने आईं तथा यज्ञ में बुलाने पर
पिता के यहाँ यज्ञ में गईं।
वहाँ
उन्हें पता चला कि उनके पति को आमंत्रित नहीं किया गया है। तब उमा ने
अपमानित हो प्राण त्याग दिए। जब उमा पृथ्वी पर अचेतन दिखीं तो सैकड़ों गण
क्रोधित होकर वहाँ पहुँचे और युद्ध शुरू कर दिया। इस बीच वीरभद्र गण ने
इंद्र को त्रिशूल मार दिया। ऐरावत हाथी को मुष्ठी से प्रहार कर ताड़ित किया।
यह
देख विष्णुजी को क्रोध आया और सुदर्शन चक्र फेंका। उसने गणों का नाश किया।
गण घबराकर महादेव के पास गए। महादेव ने गणों को स्वर्ग के द्वार पर भेज
दिया। देवताओं को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हुई तो वे ब्रह्मा के पास गए।
ब्रह्मा ने महादेव की आराधना करने को कहा।
इंद्र
देवताओं सहित महाकाल वन में कपालेश्वर के पूर्व में स्थित द्वारेश्वर गए।
पूजन कर स्वर्गद्वारेश्वर के दर्शन मात्र से स्वर्ग के द्वार खुल गए। तबसे
स्वर्गद्वारेश्वर महादेव प्रसिद्ध हुए।
(10) कर्कोटेश्वर महादेव हरसिद्धि
मंदिर परिसर स्थित कर्कोटेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से विष बाधा दूर हो
जाती है। ऐसा कहा जाता है कि माता उमा ने सर्पों को श्राप दिया कि मेरा वचन
पूरा नहीं करने से तुम जन्मेजय के यज्ञ में अग्नि में जल जाओगे। श्राप
सुनकर सर्प भयभीत होकर भागने लगे।
नागेन्द्र
एलापत्रक नामक सर्प ब्रह्माजी के पास गया और सारा वृत्तांत सुनाया।
ब्रह्मा ने उन्हें महाकाल वन जाने को कहा। उन्होंने कहा कि वहाँ जाकर
महामाया के समीप महादेव की आराधना करो। यह सुनकर कर्कोटक नाम का सर्प
स्वेच्छा से महामाया के सामने बैठकर महादेव की अर्चना करने लगा।
महादेव
ने प्रसन्ना होकर वरदान दिया कि जो सर्प विष उगलने वाला क्रूर होगा उसका
नाश होगा किंतु धर्माचरण करने वाले साँपों का नाश नहीं होगा। तभी से वह
शिवलिंग कर्कोटेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हो गया। इनके दर्शन से कभी
भी सर्प पीड़ा नहीं होती है।
(11) सिद्धेश्वर महादेव सिद्धनाथ
स्थित सिद्धेश्वर महादेव सिद्धि देने वाले हैं। इनकी सिद्धि करने पर
अपुत्र को पुत्र, विद्यार्थी को विद्या प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है
कि देवदारू वन में ब्राह्मण एकत्रित हुए और स्पर्धा के साथ तपश्चर्या करने
लगे। तरह-तरह के व्रत व आसन करने के बाद भी सैकड़ों वर्षों तक उन्हें सिद्धि
प्राप्त नहीं हुई।
तब
वे तपश्चर्या की निंदा कर नास्तिकता का विचार करने लगे। तभी आकाशवाणी हुई
कि ईर्ष्या तथा स्पर्धा से किए तप से सिद्धि प्राप्त नहीं होती है। तुम सभी
महाकाल वन जाओ और सिद्धि देने वाले महादेव की आराधना करो।
यह
सुनकर वे महाकाल वन गए और सर्वसिद्धि देने वाले शिवलिंग के दर्शन किए।
उनका मनोरथ पूरा हुआ। उसी दिन से वह लिंग सिद्धेश्वर महादेव के नाम से
ख्यात हुआ।
(12) लोकपालेश्वर महादेव हरसिद्धि
दरवाजा स्थित लोकपालेश्वर महादेव के दर्शन प्रत्येक अष्टमी को करने पर
शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। साधक विमान में बैठकर इंद्रलोक जाते हैं
तथा सुख को प्राप्त कर ब्रह्मलोक में गमन करते हैं।
ऐसा
कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप के समय हजारों दैत्यगण उत्पन्ना हुए। उन्होंने
संपूर्ण पृथ्वी पर स्थित आश्रमों को नष्ट कर दिया। यज्ञ-अग्निकुंडों को
मांस-मदिरा-रक्त से भर दिया। देवता भयभीत होकर विष्णु भगवान के पास गए।
भगवान विष्णु उपाय सोचते तब तक दैत्यगणों ने इंद्र, वरूण, धर्मराज, अरुण,
कुबेर आदि को जीत लिया। देवताओं की व्याकुलता देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें
महाकाल वन जाकर महादेव की आराधना करने को कहा।
जब
देवतागण महाकाल वन जा रहे थे तो रास्ते में दैत्यों ने उन्हें रोक लिया।
वे पुनः भगवान विष्णु के पास गए तब उन्होंने कहा कि शिवभक्त बनकर शरीर पर
भभूत लगाकर जाओ। ऐसा करने पर जब वे महाकाल वन पहुँचे तो महान लिंग, तेज से
युक्त देखा। इससे निकलने वाली ज्वाला से सभी दैत्य जल गए।
इसका माहात्म्य जानकर देवताओं (लोकपाल) ने उनका नाम लोकपालेश्वर महादेव रखा।
(13) मनकामनेश्वर महादेव गंधर्ववती
घाट स्थित श्री मनकामनेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से सौभाग्य प्राप्त
होता है। ऐसा कहा जाता है कि एक समय ब्रह्माजी प्रजा की कामना से ध्यान कर
रहे थे। उसी समय एक सुंदर पुत्र उत्पन्ना हुआ। ब्रह्माजी के पूछने पर उसने
कहा कि कामना की आपकी इच्छा से, आपके ही अंश से उत्पन्ना हुआ हूँ। मुझे
आज्ञा दो, मैं क्या करूँ?
ब्रह्माजी
ने कहा कि तुम सृष्टि की रचना करो। यह सुनकर कंदर्प नामक वह पुत्र वहाँ से
चला गया, लेकिन छिप गया। यह देखकर ब्रह्माजी क्रोधित हुए और नेत्राग्नि से
नाश का श्राप दिया। कंदर्प के क्षमा माँगने पर उन्होंने कहा कि तुम्हें
जीवित रहने हेतु 12 स्थान देता हूँ, जो कि स्त्री शरीर पर होंगे। इतना कहकर
ब्रह्माजी ने कंदर्प को पुष्य का धनुष्य तथा पाँच नाव देकर बिदा किया।
कंदर्प
ने इन शस्त्रों का उपयोग कर सभी को वशीभूत कर लिया। जब उसने तपस्यारत
महादेव को वशीभूत करने का विचार किया तब महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोल
दिया। इससे कंदर्प (कामदेव) भस्म हो गया। उसकी स्त्री रति के विलाप करने पर
आकाशवाणी हुई कि रुदन मत कर, तेरा पति बिना शरीर का (अनंग) रहेगा। यदि वह
महाकाल वन जाकर महादेव की पूजा करेगा तो तेरा मनोरथ पूर्ण होगा।
कामदेव
(अनंग) ने महाकाल वन में शिवलिंग के दर्शन किए और आराधना की। इस पर
प्रसन्ना होकर महादेव ने वर दिया कि आज से मेरा नाम, तुम्हारे नाम से
कंदर्पेश्वर महादेव नाम से प्रसिद्ध होगा। चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को जो
व्यक्ति दर्शन करेगा, वह देवलोक को प्राप्त होगा।
(14) कुटुम्बेश्वर महादेव सिंहपुरी
क्षेत्र स्थित कुटुम्बेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से गोत्र वृद्धि होती
है। ऐसा कहा जाता है कि जब देवों तथा दैत्यों ने क्षीरसागर का मंथन किया तब
उसमें से ऐसा विष निकला, जिसने चारों ओर त्राहि मचा दी।
देवताओं
ने महादेव से स्तुति की कि वे इससे उनकी रक्षा करें। महादेव ने मोर बनकर
उस विष को पी लिया, किंतु वे भी इसे सहन नहीं कर पाए। तब महादेव ने शिप्रा
नदी को वह विष दे दिया। शिप्रा ने इसे महाकाल वन स्थित कामेश्वर लिंग पर
डाल दिया। वह लिंग विषयुक्त हो गया। इसके दर्शन मात्र से ब्राह्मण आदि मरने
लगे।
महादेव
को मालूम होने पर उन्होंने ब्राह्मणों को जीवित किया तथा वरदान दिया कि आज
से जो भी इस लिंग के दर्शन करेगा वह आरोग्य को प्राप्त होगा तथा कुटुम्ब
में वृद्धि करेगा। तब से यह लिंग कुटुम्बेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता
है।
(15) इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव पटनी
बाजार क्षेत्र में, मोदी की गली स्थित इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव के दर्शन
से यश तथा कीर्ति प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है कि महिपति के राजा
इन्द्रद्युम्नेश्वर थे। उन्होंने पृथ्वी की रक्षा पुत्रवत की।
धार्मिक
प्रवृत्ति के ये राजा स्वर्ग को प्राप्त हुए। पुण्य का हिस्सा पूर्ण होने
पर वे पृथ्वी पर गिर पड़े। इससे उन्हें शोक-संताप हुआ। उन्होंने विचार किया
कि बुरे काम करने पर ही स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरना पड़ता है, अतः पाप कर्म
त्यागकर कीर्ति बढ़ाना चाहिए।
वे
स्वर्ग प्राप्ति की आकांक्षा में हिमालय पर्वत पर गए और मार्कण्डेय मुनि
के दर्शन कर तपश्चर्या का फल पूछा। मुनि ने उन्हें महाकाल की आराधना करने
को कहा। इन्द्रद्युम्न की तप आराधना से प्रसन्ना होकर उन्हें वरदान मिला कि
यह लिंग उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध होकर 'इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव'
कहलाएगा। (16) ईशानेश्वर महादेव पटनी
बाजार क्षेत्र में मोदी की गली के बड़े दरवाजे में स्थित श्री ईशानेश्वर
महादेव की आराधना से कीर्ति, लक्ष्मी तथा सिद्धि प्राप्त होती है।
ऐसा
कहा जाता है कि मंडासुर के पुत्र तुहुण्ड ने देवताओं पर बहुत जुल्म किए।
उसने ऋषि, यक्ष, गंधर्व एवं किन्नारों को भी अपने अधिकार में कर लिया।
इंद्र को जीतकर ऐरावत हाथी को अपने मकान के दरवाजे पर बाँध लिया। देवताओं
के अधिकारों का हरण कर उन्हें स्वर्ग जाने से रोक दिया।
उनकी
ऐसी स्थिति देखकर मुनि नारद ने कहा कि 'महाकाल वन जाओ। वहाँ
इंद्रद्युम्नेश्वर महादेव के पास पूर्व दिशा में स्थित लिंग का पूजन-आराधना
करो। ईशान कल्प में इसी लिंग की कृपा से राजा ईशान ने अपना खोया राज्य
प्राप्त किया था।'
यह
वचन सुनकर देवतागण, महाकाल वन गए। वहाँ उन्होंने लिंग की आराधना की। लिंग
से अचानक धुआँ निकलने लगा। फिर ज्वाला निकली, उस ज्वाला ने तुहुण्ड को
परिवार सहित जलाकर भस्म कर दिया। देवताओं ने लिंग का नाम ईशानेश्वर महादेव
रखा।
(17) अप्सरेश्वर महादेव मोदी
की गली में ही कुएँ के पास स्थित अप्सरेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से ही
अभिष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है। इनको स्पर्श करने से राज्य-सुख तथा
मोक्ष मिलता है।
एक
बार नंदन वन में इंद्रदेव विराजित थे। अप्सरा रंभा नृत्य कर उनका मनोरंजन
कर रही थी। अचानक कोई विचार आने पर रंभा की लय बिगड़ गई। इस पर इंद्र
क्रोधित हुए और श्राप दिया कि वह कांतिहीन होकर मृत्युलोक में गमन करे।
रंभा
पृथ्वी पर गिर पड़ी और रूदन करने लगी। उसकी सखी अप्सराएँ भी वहाँ आ गईं तभी
वहाँ से मुनि नारद गुजरे। उन्होंने रंभा की जबानी सारा वृत्तांत सुना तो
बोले- 'रंभा तुम महाकाल वन जाओ। वहाँ मनोरथपूर्ण करने वाला लिंग मिलेगा।
उसके पूजन, आराधना से तुम्हें स्वर्ग मिलेगा। उर्वशी अप्सरा को भी इनके
पूजन से पुरुरवा राजा पति के रूप में मिले थे।'
ऐसा
कहने पर रंभा ने लिंग की आराधना की। इस पर महादेव प्रसन्ना हुए और रंभा को
आशीर्वाद दिया कि वह इंद्र की वल्लभप्रिया बनेगी तथा यह लिंग अप्सरेश्वर
महादेव के नाम से जाना जाएगा।
(18) कलकलेश्वर महादेव श्री
कलकलेश्वर महादेव के दर्शन से कलह नहीं होता है। एक बार महादेव ने उमा को
महाकाली नाम से पुकारा। इस बात को लेकर महादेव-उमा में कलह बढ़ गया। कलह के
कारण तीनों लोक कम्पित होने लगे। यह देख देव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व आदि भय
को प्राप्त हुए।
इस
भीषण हो-हल्ले में पृथ्वी के गर्भ से एक लिंग निकला। उस लिंग से शुभ एवं
सुख वचन की वाणी निकली। लिंग ने त्रिलोक को शांति के वचन कहे। इस पर
देवताओं ने उस लिंग का नाम कलकलेश्वर महादेव रखा।
इसका
पूजन-अर्चन करने वाले मनुष्य को दुःख, व्याधि तथा अकाल मौत से मुक्ति
मिलती है। ये महादेव मोदी की गली में कुएँ के सामने स्थित हैं।
(19) नागचंद्रेश्वर महादेव पटनी
बाजार स्थित नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन से निर्माल्य लंघन से उत्पन्ना
पाप का नाश होता है। ऐसा कहा जाता है कि देवर्षि नारद एक बार इंद्र की सभा
में कथा सुना रहे थे। इंद्र ने मुनि से पूछा कि हे देव, आप त्रिलोक के
ज्ञाता हैं। मुझे पृथ्वी पर ऐसा स्थान बताओ, जो मुक्ति देने वाला हो।
यह
सुनकर मुनि ने कहा कि उत्तम प्रयागराज तीर्थ से दस गुना ज्यादा महिमा वाले
महाकाल वन में जाओ। वहाँ महादेव के दर्शन मात्र से ही सुख, स्वर्ग की
प्राप्ति होती है। वर्णन सुनकर सभी देवता विमान में बैठकर महाकाल वन आए।
उन्होंने आकाश से देखा कि चारों ओर साठ करोड़ से भी शत गुणित लिंग शोभा दे
रहे हैं। उन्हें विमान उतारने की जगह दिखाई नहीं दे रही थी।
इस
पर निर्माल्य उल्लंघन दोष जानकर वे महाकाल वन नहीं उतरे, तभी देवताओं ने
एक तेजस्वी नागचंद्रगण को विमान में बैठकर स्वर्ग की ओर जाते देखा। पूछने
पर उसने महाकाल वन में महादेव के उत्तम पूजन कार्य को बताया। देवताओं के
कहने पर कि वन में घूमने पर तुमने निर्माल्य लंघन भी किया होगा, तब उसके
दोष का उपाय बताओ।
नागचंद्रगण
ने ईशानेश्वर के पास ईशान कोण में स्थित लिंग का महात्म्य बताया। इस पर
देवता महाकाल वन गए और निर्माल्य लंघन दोष का निवारण उन लिंग के दर्शन कर
किया। यह बात चूँकि नागचंद्रगण ने बताई थी, इसीलिए देवताओं ने इस लिंग का
नाम नागचंद्रेश्वर महादेव रखा।
(20) प्रतिहारेश्वर महादेव पटनी
बाजार स्थित नागचंद्रेश्वर महादेव के पास प्रतिहारेश्वर महादेव का मंदिर
है। इनके दर्शन मात्र से व्यक्ति धनवान बन जाता है। एक बार महादेव उमा से
विवाह के बाद सैकड़ों वर्षों तक रनिवास में रहे।
देवताओं
को चिंता हुई कि यदि महादेव को पुत्र हुआ तो वह तेजस्वी बालक त्रिलोक का
विनाश कर देगा। ऐसे में गुरु महा तेजस्वी ने उपाय बताया कि आप सभी महादेव
के पास जाकर गुहार करो। जब सभी मंदिराचल पर्वत पहुँचे तो द्वार पर नंदी
मिले। इस पर इंद्र ने अग्नि से कहा कि हंस बनकर नंदी की नजर चुराकर जाओ और
महादेव से मिलो।
हंस
बने अग्नि ने महादेव के कान में कहा कि देवतागण द्वार पर खड़े इंतजार कर
रहे हैं। इस पर महादेव द्वार पर आए तथा देवताओं की बात सुनी। उन्होंने
देवताओं को पुत्र न होने देने का वचन दिया। लापरवाही के स्वरूप उन्होंने
नंदी को दंड दिया। नंदी पृथ्वी पर गिरकर विलाप करने लगा।
नंदी
का विलाप सुनकर देवताओं ने नंदी से महाकाल वन जाकर शिवपूजा का महात्म्य
बताया। नंदी ने वैसा ही किया। उसने लिंग पूजन कर वरदान प्राप्त किया। लिंग
से ध्वनि आई कि तुमने महाभक्ति से पूजन किया है अतः तुम्हें वरदान है कि
तुम्हारे नाम प्रतिहार (नंदीगण) से यह लिंग जाना जाएगा। तब से उसे
प्रतिहारेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्धि मिली।
(21) दुर्धरेश्वर महादेव छोटी
रपट के पास स्थित गंधर्ववती घाट पर दुर्धरेश्वर महादेव मंदिर है। इनके
दर्शन से मनुष्य पापमुक्त हो वांछित फल पाता है। एक बार नेपाल का राजा
दुर्धष वन में शिकार को गया। थकने पर एक सरोवर से जलपान कर वहीं सो गया।
वह
सरोवर सिद्ध देवकन्याओं का स्नानागार था। तीन स्त्रियों का पति दुर्धष
देवकन्याओं के आने पर मोहित हो गया। कल्प मुनि की कन्या राजा पर मोहित होकर
बोली कि आप मेरे पिताश्री से मुझे माँग लो। राजा के निवेदन पर मुनि ने
कन्यादान कर दिया। इस पर राजा अपना राजपाट तथा स्त्रियों को भूलकर मुनि
कन्या के साथ घर जमाई बनकर रहने लगा।
एक
दिन राक्षस ने मुनि कन्या का अपहरण कर लिया। राजा ने पत्नी वियोग से दुःखी
हो मुनि से उपाय जाना। मुनि ने कहा कि महाकाल वन जाकर शिप्रा तट स्थित
ब्रह्मेश्वर से पश्चिम में जाओ। वहाँ स्थित लिंग की तपस्या करने पर
तुम्हारा मनोरथपूर्ण होगा।
राजा
ने ऐसा ही किया, तब लिंग से आकाशवाणी हुई कि मैंने राक्षस का नाश कर मुनि
कन्या को छुड़ा लिया है। तुम सुखपूर्वक इसके साथ रहो। इस लिंग का पूजन कर
दुर्धष ने मनोरथ प्राप्त किया, तभी से इसका नाम दुर्धरेश्वर महादेव पड़ा।
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Posted By उमा महादेव ग्रुप to Uma Mahadev on 8/23/2013 09:28:00 am