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ॐ नमः शिवाय
कालों के काल महाकाल
कहते हैं शिव के अनेक रूप हैं। शिव की आराधना करने से आपकी हर मनोकामना
पूर्ण होती है। श्रावण मास में तो शिव की आरधना अति फलदायी होती है। भगवान
शिव देशभर में अनेक स्थानों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। भारत
देश में 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग है, जिनमें से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
है।
आज हम आपको कराते हैं सैर भारत के एक ऐसे नगर की जहाँ का कण-कण भक्ति के रस
से श्रृंगारित है, जहाँ हर सुबह गली-चौराहों पर हर हर महादेव के जयकारे
सुनाई पड़ते हैं, जहाँ हर छोटे-बड़े गली-मुहल्लों व घरों में मंदिर ही
मंदिर हैं। भगवान महाकालेश्वर के इस नगर में एक-दो नहीं बल्कि 33 करोड़
देवता छोटे-बड़े मंदिरों में विराजते हैं।
भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश के उज्जैन में पुण्य सलिला शिप्रा के तट के
निकट भगवान शिव 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' के रूप में विराजमान हैं।
महाराजा विक्रमादित्य के न्याय की नगरी उज्जयिनी में भगवान महाकाल की असीम
कृपा है। देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' का
अपना एक अलग महत्व है। कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है उसका काल भी
कुछ नहीं बिगाड़ सकता। महाकाल के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि यह
पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है। महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार
से भी किया गया है -
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥
इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
"उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है इसलिए इसका
महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन यहाँ दस दुर्लभ योग होते हैं, जैसे :
वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल
पक्ष, पूर्णिमा आदि।"
उज्जैन का इतिहास :
उज्जैन की प्रसिद्धि सदियों से एक पवित्र व धार्मिक नगर के रूप में रही है।
लंबे समय तक यहाँ न्याय के राजा महाराजा विक्रमादित्य का शासन रहा। महाकवि
कालिदास, बाणभट्ट आदि की कर्मस्थली भी यही नगर रहा। श्रीकृष्ण की शिक्षा
भी यहीं हुई थी।
दैवज्ञ वराहमिहिर की जन्मभूमि, महर्षि सांदीपनि की तपोभूमि, भर्तृहरि की
योगस्थली, हरीशचंद्र की मोक्षभूमि आदि के रूप में उज्जैन की प्रसिद्धि रही
है। उज्जैन का वर्णन कई ग्रंथों व पुराणों जैसे शिव महापुराण, स्कंदपुराण
आदि में हुआ है।
महाकालेश्वर मंदिर :
महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है, जहाँ कई देवी-देवताओं के
छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार से गर्भगृह
तक की दूरी तय करनी पड़ती है। इस मार्ग में कई सारे पक्के चढ़ाव उतरने
पड़ते हैं परंतु चौड़ा मार्ग होने से यात्रियों को दर्शनार्थियों को अधिक
परेशानियाँ नहीं आती है। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए पक्की सीढ़ियाँ
बनी हैं।
मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है। वर्तमान में जो महाकालेश्वर
ज्योतिर्लिंग है वह तीन खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर,
मध्य के खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर
स्थित है। गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी
शिवलिंग है, ज्योतिष में जिसका विशेष महत्व है।
इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक
प्रतिमाएँ हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्ज्वलित होता
रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है। इस
कक्ष में बैठकर हजारों श्रद्धालु शिव आराधना का पुण्य लाभ लेते हैं।
मुख्य आकर्षण :
महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य आकर्षणों में भगवान महाकाल की भस्म आरती,
नागचंद्रेश्वर मंदिर, भगवान महाकाल की शाही सवारी आदि है। प्रतिदिन अलसुबह
होने वाली भगवान की भस्म आरती के लिए कई महीनों पहले से ही बुकिंग होती है।
इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का
श्रृंगार किया जाता है लेकिन आजकल इसका स्थान गोबर के कंडे की भस्म का
उपयोग किया जाता है परंतु आज भी यही कहा जाता है कि यदि आपने महाकाल की
भस्म आरती नहीं देखी तो आपका महाकालेश्वर दर्शन अधूरा है।
प्रति बारह वर्ष में पड़ने वाला कुंभ मेला यहाँ का सबसे बड़ा मेला है,
जिसमें देश-विदेश से आए साधु-संतों व श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है।
महाकालेश्वर मंदिर के ऊपरी तल पर स्थित प्राचीन व चमत्कारी नागचंद्रेश्वर
मंदिर वर्ष में एक बार केवल नागपंचमी को ही श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोला
जाता है। यहाँ हर वर्ष श्रावण मास में भगवान महाकाल की शाही सवारी निकाली
जाती हैं।
हर सोमवती अमावस्या पर उज्जैन में श्रद्धालु पुण्य सलिला शिप्रा स्नान के
लिए पधारते हैं। फाल्गुनकृष्ण पक्ष की पंचमी से लेकर महाशिवरात्रि तक तथा
नवरात्रि महोत्सव पर यहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के विशेष दर्शन, पूजन व
रूद्राभिषेक होता है।
यहाँ का सिंहस्थ मेला :
सिंहस्थ मेले के बारे में यह कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के पश्चात
देवता अमृत कलश को दानवों से बचाने के लिए वहाँ से पलायन कर रहे थे, तब
उनके हाथों में पकड़े अमृत कलश से अमृत की बूँद धरती पर जहाँ-जहाँ भी गिरी
थी, वो स्थान पवित्र तीर्थ बन गए। उन्हीं स्थानों में से एक उज्जैन है।
यहाँ प्रति बारह वर्ष में सिंहस्थ मेला आयोजित होता है।
उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है इसलिए इसका महत्व
और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन यहाँ दस दुर्लभ योग होते हैं, जैसे :
वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल
पक्ष, पूर्णिमा आदि।
उज्जैन में और भी :
भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन व उसके आसपास के गाँवों में कई प्रसिद्ध मंदिर
व आश्रम है, जिनमें चिंतामण गणेश मंदिर, कालभैरव, गोपाल मंदिर, हरसिद्धि
मंदिर, त्रिवेणी संगम, सिद्धवट, मंगलनाथ, इस्कॉन मंदिर आदि प्रमुख है। इन
स्थानों पर पहुँचने के लिए महाकालेश्वर मंदिर से बस व टैक्सी सुविधा उपलब्ध
है।
कैसे पहुँचें उज्जैन :
उज्जैन पहुँचने के लिए आपको इंदौर, रतलाम, भोपाल आदि स्थानों से बस, ट्रेन व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। यहाँ का नजदीकी हवाई अड्डा देवी अहिल्या एयरपोर्ट इंदौर है।