<<वेद में दो प्रकार के ल थे, जिनका प्रयोग अभी केवल दक्षिण भारत की भाषाओं (ओड़िया भी) में सीमित है-ल, ळ ।>>
ळ का प्रयोग उत्तर भारत की भाषाओं में भी होता है - जैसे गुजराती, पंजाबी आदि ।
<<केवल दक्षिण भारत में नगर के लिये उरु शब्द का व्यवहार है, जैसे बेंगलूरु, मंगलूरु, एल्लुरु->>
उरु नहीं, बल्कि "ऊरु" या "ऊर्" ।
<<माता रेऴ्हि स उ रेऴ्हि मातरम् ॥ (ऋग् वेद १०/११४/४) >>
ऊपर आपने वेद में दो तरह के ल की बात की और अभी उदाहरण तीसरे प्रकार के ल (अर्थात् ऴ) का दिया ।
---नारायण प्रसाद
वेद में दो प्रकार के ल थे, जिनका प्रयोग अभी केवल दक्षिण भारत की भाषाओं (ओड़िया भी) में सीमित है-ल, ळ । इस दूसरे ळ का उच्चारण ड़ जैसा होता है। यह भी एक प्रमाण है कि वेद की प्राचीन परम्परायें दक्षिण भारत में थीं, न कि तथा-कथित सिन्धु-घाटी से वैदिक आर्यों ने इसका प्रचार दक्षिण तथा पूर्व में किय। कई प्राचीन वैदिक शब्द केवल दक्षिण भारत में ही हैं। हम इसका उल्लेख भागवत माहात्म्य में ५००० वर्षों से करते आ रहे हैं, पर भारत में पराधीन मनोवृत्ति के कारण अपने शास्त्रों में विश्वास नहीं करते, केवल अंग्रेजों का अनुकरण करते हैं-
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,तं पाकेन मनसापश्यमन्तितस्तं
माता रेऴ्हि स उ रेऴ्हि मातरम् ॥ (ऋग् वेद १०/११४/४)--------------------------------------------------
<<मैं यह जानना चाहता था कि क्या य़ का कहीं उपयोग होता है...>>बंगला और उड़िया में । बिना नुक्ता वाले य का उच्चारण ज जैसा होता है, जैसे- यमुना = जमुना ।
--- नारायण प्रसाद2011/11/16 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>
ळ का प्रयोग मराठी, गुजराती और राजस्थानी में भी होता है.मैं यह जानना चाहता था कि क्या य़ का कहीं उपयोग होता है...यशवंत
--
धन्यवाद. संभवतः इसीलिए उस क्षेत्र के लोग मुझे जसवंत/जसबंत नाम से संबोधित करते हैं.मेरे विचार से हिंदी के मानक कीबोर्ड (इन्स्क्रिप्ट) में य़ की आवश्यकता नहीं थी.
यशवंत
2011/11/16 narayan prasad <hin...@gmail.com>
<<मैं यह जानना चाहता था कि क्या य़ का कहीं उपयोग होता है...>>बंगला और उड़िया में । बिना नुक्ता वाले य का उच्चारण ज जैसा होता है, जैसे- यमुना = जमुना ।
इसलिये जब य का उच्चारण य ही करना होता है तो य़ का प्रयोग किया जाता है.
--- नारायण प्रसाद
--
मेरे विचार से हिंदी के मानक कीबोर्ड (इन्स्क्रिप्ट) में य़ की आवश्यकता नहीं थी.
इन्स्क्रिप्ट केवल हिन्दी का ही नहीं वरन् सभी भारतीय भाषाओं के लिये मानक कीबोर्ड है.
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यशवन्त जी आप अब भी समझ नहीं पाये। दरअसल जिस सही शृ की आप बात कर रहे हैं वह कीबोर्ड से लिखने का मामला नहीं फॉण्ट का मामला है।
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यशवन्त जी नुक्त युक्त य़, ऱ आदि को अलग कुञ्जियाँ इसलिये दी गयी हैं क्योंकि ये भाषा में एक स्वतन्त्र वर्ण हैं, इसी तरह क्ष, त्र, ज्ञ भी स्वतन्त्र वर्ण हैं (श्र एक अपवाद है जिसे स्वतन्त्र वर्ण न होने पर भी अलग जगह दे दी गयी)। दूसरी ओर शृ आदि स्वतन्त्र वर्ण न होकर व्यञ्जन पर मात्रा लगाकर बने हैं।
२१-११-११ को, Vineet Chaitanya <v...@iiit.ac.in> ने लिखा:
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>>>
>>
>>
>>
>> --
>> *Shrish Benjwal Sharma* *(श्रीश बेंजवाल शर्मा <http://hindi.shrish.in>)*
>> ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
>> *If u can't beat them, join them.*
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>> ePandit <http://epandit.shrish.in/>:* *http://epandit.shrish.in/
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इस विषय पर चर्चा के लिए मैं सभी सदस्यों का धन्यवाद देते हुए एक आखिरी सवाल पूछना चाहता हूं. क्या इस 'शृ' को केंद्रीय हिंदी निदेशालय या किसी अन्य संस्था ने मान्यता दी है...
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चंदन
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चंदन कुमार मिश्र
लेकिन क्या वह पारंपरिक शृ उन लोगों के कम्प्यूटर में भी वैसा ही दिखाई देगा जिनके पास उक्त फॉण्ट नहीं है...
मेरा यह मानना है कि दोनों में से एक ही स्वरूप का उपयोग होना चाहिए
यदि हम पारंपरिक शृ चाहते हैं तो वह या तो बगैर किसी फॉण्ट का चयन किए श और ृ के संयोग से बन जाना चाहिए या उसके लिए कुंजीपटल पर स्थान होना चाहिए.
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वास्तव में क्ष, त्र और ज्ञ भी संयुक्ताक्षर ही हैं
यह सवाल मेरा भी है, काफी समय से। माना कि देवनागरी में और बाषाएं भी लिखी जाती हैं, लेकिन हिंदी उनमें सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है, कई गुना ज्यादा। ऐसे में पारंपरिक शृ को एक कुंजी दिया जाना सुविधाजनक होगा। ऐसा बदलाव सार्वभौमिक रहे, हर यूनिकोड फॉन्ट में आ जाए तो बात ही क्या है।
सादर,
चंदन
--
चंदन कुमार मिश्र
‘स्थान’ एवं ‘प्रयत्न’ दोनों ही आधारों पर ध्वनियों का स्पष्ट परिचय देकर उन्होंने हिन्दी-व्याकरणों में पाये जाने वाले एक बड़े अभाव की पूर्ति की है । किन्तु, इस प्रकरण में कुछ सूक्ष्म ध्वनिवैज्ञानिक तथ्यों पर उनका ध्यान नहीं गया है; उदाहरणार्थ - अनुस्वार, जिसका उच्चारण और प्रयोग नियमतः स्वरों के पश्चात् और अन्तःस्थ तथा ऊष्म व्यञ्जनों के ही पूर्व होना अपेक्षित है, वास्तव में ‘ङ् - ञ् - ण् - न् - म्’ का प्रतिनिधि नहीं है, अपितु एक विशिष्ट ध्वनि है ।
इसी प्रकार ‘क्ष’ और ‘ज्ञ’ वास्तव में क्+ष और ज्+ञ के संयुक्त रूप नहीं, अपितु सहोच्चरित रूप हैं । संयुक्त ध्वनियों के उच्चारण में पूर्वापर सम्बन्ध होता है, जैसे ‘क्ह’ में ‘क्’ पहले और ‘ह’ बाद में उच्चरित होगा, किन्तु सहोच्चरित में दोनों का एक ही साथ, जैसे ‘ख’ आदि में । ‘क्ष’ और ‘ज्ञ’ के साथ यही स्थिति है, इसलिए इन विशिष्ट ध्वनियों को वर्णमाला में स्थान नहीं दिया जाना अनुचित है । हाँ, ‘त्र’ निश्चय ही संयुक्त ध्वनि है, उसे छोड़ा जा सकता है ।
---नारायण प्रसाद
वास्तव में क्ष, त्र और ज्ञ भी संयुक्ताक्षर ही हैं
वास्तव में क्ष, त्र और ज्ञ भी संयुक्ताक्षर ही हैं
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जिसने भी यह कुंजीपटल डिज़ाइन किया, उन्होंने श्र तो पारंपरिक स्वरूप में रखा और शृ को आधुनिक स्वरूप दे दिया
यदि कोई संगतता (consistency) की अपेक्षा रखता है तो उसमें गलत क्या है...
वर्ण के पीछे यूनिकोड कूट क्या है, उससे आम आदमी को क्या वास्ता हो सकता है... छप क्या रहा है, वह महत्वपूर्ण है.
अब यदि ऐसा है कि इस नए स्वरूप वाले शृ की जगह पारंपरिक शृ नहीं आ सकता, तो इसी स्वरूप को मान्यता दिलाने की कोशिश की जानी चाहिए.
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डिफ़ॉल्ट फ़ॉण्ट्स को ठीक करके बड़े स्तर पर उन्हें लागू करना किस तरह से संभव है, यह मेरी बुद्धि से परे है.
यूनिकोड के अनेक उपयोगकर्ताओं ने नए शृ को इस हद तक स्वीकार कर लिया है कि उन्हें इसमें कुछ भी गलत नज़र नहीं आता है. इस मंच पर भी ऐसे अभिमत सामने आए.
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धन्यवाद श्रीश जी,