र वर्ण का महाप्राण रूप

314 views
Skip to first unread message

narayan prasad

unread,
Apr 2, 2011, 7:29:02 AM4/2/11
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
हिन्दी की कुछ भाषाओं / उपभाषाओं में र वर्ण का महाप्राण रूप भी प्रयोग में है, परन्तु इसके लिए देवनागरी लिपि में कोई स्वतन्त्र चिह्न नहीं है । जैसे ड़ का महाप्राण रूप ढ़ है, उसी प्रकार र वर्ण के लिए एक महाप्राण रूप की कल्पना कर सकते हैं । जिस प्रकार महाप्राण वर्ण ख के लिए क्ह, घ के लिए ग्ह आदि का प्रयोग न करके इनके लिए स्वतन्त्र वर्ण चिह्न सभी भारतीय लिपियों में बनाए गए हैं, उसी प्रकार र के महाप्राण वर्ण के लिए र्ह का प्रयोग न कर इसके स्थान पर एक स्वतन्त्र वर्ण की आवश्यकता है । आपलोगों में से यदि कोई फोंट डिजाइनर हों तो इसके बारे में कृपया जरूर सोचें ।

उदाहरण के लिए मगही भाषा से कुछ शब्द दिए जा रहे हैं जिनमें र के महाप्राण रूप का प्रयोग किया जाता है । स्वतन्त्र वर्ण चिह्न न होने के कारण इसके स्थान पर र्ह का प्रयोग किया जा रहा है ।
(1) अर्हाना = कोई काम करने के लिए किसी को आदेश देना या कहना, काम में प्रवृत्त करना
(2) बिर्हनी = बिढ़नी, ततैया
(3) पर्हे = परसाल

हिन्दी की किसी अन्य उपभाषा में या किसी भी भारतीय भाषा में यदि र के महाप्राण रूप का प्रयोग होता हो तो कृपया इस पर प्रकाश डालें ।
---नारायण प्रसाद

Hariraam

unread,
Nov 15, 2011, 9:51:49 AM11/15/11
to technic...@googlegroups.com
क्या U+0931 ऱ
यह महाप्राण रूप नहीं है?

narayan prasad

unread,
Nov 15, 2011, 11:29:04 AM11/15/11
to technic...@googlegroups.com
ऱ का उच्चारण लगभग र्र जैसा होता है, जबकि महाप्राण होने के लिए एक ही साथ रकार के बाद ह का उच्चारण होना चाहिए - अर्थात् र्+ह, परन्तु अलग-अलग नहीं, बल्कि दोनों का एक साथ, जैसे क का महाप्राण क्ह नहीं, ख होता है । तुलना कीजिए - ड़ का महाप्राण ढ़ ।

 ---नारायण प्रसाद

2011/11/15 Hariraam <hari...@gmail.com>

Arun Upadhyay

unread,
Nov 15, 2011, 9:13:40 PM11/15/11
to technic...@googlegroups.com
वेद में दो प्रकार के ल थे, जिनका प्रयोग अभी केवल दक्षिण भारत की भाषाओं (ओड़िया भी) में सीमित है-ल, ळ । इस दूसरे ळ का उच्चारण ड़ जैसा होता है। यह भी एक प्रमाण है कि वेद की प्राचीन परम्परायें दक्षिण भारत में थीं, न कि तथा-कथित सिन्धु-घाटी से वैदिक आर्यों ने इसका प्रचार दक्षिण तथा पूर्व में किय। कई प्राचीन वैदिक शब्द केवल दक्षिण भारत में ही हैं। हम इसका उल्लेख भागवत माहात्म्य में ५००० वर्षों से करते आ रहे हैं, पर भारत में पराधीन मनोवृत्ति के कारण अपने शास्त्रों में विश्वास नहीं करते, केवल अंग्रेजों का अनुकरण करते हैं-
अहं भक्तिरिति ख्याता इमौ मे तनयौ मतौ।
ज्ञान वैराग्यनामानौ कालयोगेन जर्जरौ॥४५॥
उत्पन्ना द्रविडे साहं वृद्धिं कर्णाटके गता। क्वचित् क्वचित् महाराष्ट्रे गुर्जरे जीर्णतां गता॥४८॥
तत्र घोर कलेर्योगात् पाखण्डैः खण्डिताङ्गका। दुर्बलाहं चिरं जाता पुत्राभ्यां सह मन्दताम्॥४९॥
वृन्दावनं पुनः प्राप्य नवीनेव सुरूपिणी। जाताहं युवती सम्यक् श्रेष्ठरूपा तु साम्प्रतम्॥५०॥
(
पद्म पुराण उत्तर खण्ड श्रीमद् भागवत माहात्म्य, भक्ति-नारद समागम नाम प्रथमोऽध्यायः)
यजुर्वेद की प्राचीन तैत्तिरीय शाखा भी दक्षिण भारत के तैत्तिरिक में ही थी, जिसे अभी उडुपी कहते हैं-
अथापरे जनपदा दक्षिणापथवासिनः ॥४७॥
तथा तैत्तिरिकाश्चैव दक्षिणापथवासिनः॥५०॥
(मत्स्य पुराण, अध्याय ११४)
केवल दक्षिण भारत में नगर के लिये उरु शब्द का व्यवहार है, जैसे बेंगलूरु, मंगलूरु, एल्लुरु-
उरुं हि राजा वरुण श्चकार (ऋग् वेद /२४/)
शं नो विष्णुरुरुक्रमः (ऋग् वेद /९०/)
केवल आन्ध्र प्रदेश में समुद्र तट भूमि के पालन-कर्त्ता को रेड्डी कहते हैं, जो वैदिक उच्चारण रेळ्हि का एक रूप है-
एकः सुपर्णः समुद्रमाविवेश इदं भुवनं वि चष्टे
तं पाकेन मनसापश्यमन्तितस्तं
, माता रेऴ्हि रेऴ्हि मातरम् (ऋग् वेद १०/११४/)
यहां प्रयुक्त सुपर्ण शब्द भी नौसेना-प्रमुख के लिये व्यवहार होता था। स्पष्टतः समुद्र सम्बन्धी शब्द उत्तर प्रदेश या पंजाब के नहीं हो सकते। ऋग्वेद के प्रथम सूक्त में ही दिन-रात के लिये दोषा-वस्ता का प्रयोग है, जिनका प्रयोग केवल दक्षिण में है। वस्ता = दिन, इसका दिनकर सूर्य के रूप में भी प्रयोग है-रमैया वस्ता-वैया मैंने दिल तुझको दिया। दोषा = रात्रि, अतः रात्रि के मुख्य भोजन को दोषा कहते हैं। उत्तर भारत में केवल प्रदोष शब्द का प्रयोग है, दोषा के पूर्व सन्ध्या को प्रदोष कहते हैं।
इसके अतिरिक्त गुरु-वर्ष की प्राचीन स्वायम्भुव (पितामह) पद्धति दक्षिण में तथा बाद की वैवस्वत (सूर्य-सिद्धान्त) उत्तर में है।
-अरुण कुमार उपध्याय, कटक, ९४३७०३४१७२
 
 
 


--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.


narayan prasad

unread,
Nov 16, 2011, 12:21:10 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com

<<वेद में दो प्रकार के थे, जिनका प्रयोग अभी केवल दक्षिण भारत की भाषाओं (ओड़िया भी) में सीमित है-, >>

 

का प्रयोग उत्तर भारत की भाषाओं में भी होता है - जैसे गुजराती, पंजाबी आदि

<<केवल दक्षिण भारत में नगर के लिये उरु शब्द का व्यवहार है, जैसे बेंगलूरु, मंगलूरु, एल्लुरु->>

 

उरु नहीं, बल्कि "ऊरु" या "ऊर्"

 

<<माता रेऴ्हि रेऴ्हि मातरम् (ऋग् वेद १०/११४/) >>

 

ऊपर आपने वेद में दो तरह के की बात की और अभी उदाहरण तीसरे प्रकार के (अर्थात् ) का दिया

 

---नारायण प्रसाद



 
2011/11/16 Arun Upadhyay <arunupa...@yahoo.in>
वेद में दो प्रकार के ल थे, जिनका प्रयोग अभी केवल दक्षिण भारत की भाषाओं (ओड़िया भी) में सीमित है-ल, ळ । इस दूसरे ळ का उच्चारण ड़ जैसा होता है। यह भी एक प्रमाण है कि वेद की प्राचीन परम्परायें दक्षिण भारत में थीं, न कि तथा-कथित सिन्धु-घाटी से वैदिक आर्यों ने इसका प्रचार दक्षिण तथा पूर्व में किय। कई प्राचीन वैदिक शब्द केवल दक्षिण भारत में ही हैं। हम इसका उल्लेख भागवत माहात्म्य में ५००० वर्षों से करते आ रहे हैं, पर भारत में पराधीन मनोवृत्ति के कारण अपने शास्त्रों में विश्वास नहीं करते, केवल अंग्रेजों का अनुकरण करते हैं-
------------------------
 
तं पाकेन मनसापश्यमन्तितस्तं
,
माता रेऴ्हि रेऴ्हि मातरम् (ऋग् वेद १०/११४/)
--------------------------------------------------

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 16, 2011, 1:24:43 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com
का प्रयोग मराठी, गुजराती और राजस्थानी में भी होता है.
 
मैं यह जानना चाहता था कि क्या का कहीं उपयोग होता है...
 
यशवंत

2011/11/16 narayan prasad <hin...@gmail.com>

narayan prasad

unread,
Nov 16, 2011, 1:39:41 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com
<<मैं यह जानना चाहता था कि क्या का कहीं उपयोग होता है...>>
 
बंगला और उड़िया में । बिना नुक्ता वाले य का उच्चारण ज जैसा होता है, जैसे- यमुना = जमुना ।

--- नारायण प्रसाद

2011/11/16 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>

Vineet Chaitanya

unread,
Nov 16, 2011, 1:50:38 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com


2011/11/16 narayan prasad <hin...@gmail.com>

<<मैं यह जानना चाहता था कि क्या का कहीं उपयोग होता है...>>
 
बंगला और उड़िया में । बिना नुक्ता वाले य का उच्चारण ज जैसा होता है, जैसे- यमुना = जमुना ।

    इसलिये जब य का उच्चारण य ही करना होता है तो य़ का प्रयोग किया जाता है.

--- नारायण प्रसाद

2011/11/16 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>
का प्रयोग मराठी, गुजराती और राजस्थानी में भी होता है.
 
मैं यह जानना चाहता था कि क्या का कहीं उपयोग होता है...
 
यशवंत

--

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 16, 2011, 2:09:27 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com
धन्यवाद. संभवतः इसीलिए उस क्षेत्र के लोग मुझे जसवंत/जसबंत नाम से संबोधित करते हैं.
मेरे विचार से हिंदी के मानक कीबोर्ड (इन्स्क्रिप्ट) में की आवश्यकता नहीं थी.
 
यशवंत

Vineet Chaitanya

unread,
Nov 16, 2011, 2:33:04 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com


2011/11/16 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>

धन्यवाद. संभवतः इसीलिए उस क्षेत्र के लोग मुझे जसवंत/जसबंत नाम से संबोधित करते हैं.
मेरे विचार से हिंदी के मानक कीबोर्ड (इन्स्क्रिप्ट) में की आवश्यकता नहीं थी.

    इन्स्क्रिप्ट केवल हिन्दी का ही नहीं वरन् सभी भारतीय भाषाओं के लिये मानक कीबोर्ड है.
 
यशवंत


2011/11/16 narayan prasad <hin...@gmail.com>
<<मैं यह जानना चाहता था कि क्या का कहीं उपयोग होता है...>>
 
बंगला और उड़िया में । बिना नुक्ता वाले य का उच्चारण ज जैसा होता है, जैसे- यमुना = जमुना ।

    इसलिये जब य का उच्चारण य ही करना होता है तो य़ का प्रयोग किया जाता है.

--- नारायण प्रसाद

 

--

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 16, 2011, 4:06:21 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com
मेरे विचार से हिंदी के मानक कीबोर्ड (इन्स्क्रिप्ट) में की आवश्यकता नहीं थी.

    इन्स्क्रिप्ट केवल हिन्दी का ही नहीं वरन् सभी भारतीय भाषाओं के लिये मानक कीबोर्ड है.
 
विनीत जी, मैं यह जानना चाहता था कि हिंदी के इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड में की आवश्यकता /महत्व /उपयोग क्या है....
यशवंत

Anunad Singh

unread,
Nov 16, 2011, 5:09:23 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com
यशवन्त जी,
आप केवल हिन्दी लिखने के सन्दर्भ में इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल में 'य़'  के अस्तित्व को  अनावश्यक/बेकार मान सकते हैं किन्तु सभी भारतीय भाषाओं की टंकण आवश्यकताओं की पूर्ति को ध्यान में रखकर बनाये गये कुंजीपटल में इसकी आवश्यकता पर आपको संदेह क्यों हो रहा है?

दूसरी बात .... मान लीजिये मैं बांग्ला या ओड़िया का देवनागरी में लिप्यन्तरण करना चाहता हूँ या बांग्ला को ही देवनागरी में लिखना चाहता हूँ तो भी इसकी जरूरत पड़ेगी।

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 16, 2011, 10:20:13 AM11/16/11
to technic...@googlegroups.com
अनुनाद जी,
 
आपकी बात से सहमत हूं. साथ ही मेरा यह मानना है कि ऐसे कई कैरेक्टर हैं जो कुंजीपटल पर सीधे मौजूद नहीं हैं लेकिन कैरेक्टर मैप में उपलब्ध हैं. मेरा यह मत है कि हिंदी कीबोर्ड पर की जगह अगर शृ (जिसे मंगल में टाइप नहीं किया जा सकता), तो उपयोगकर्ताओं को अधिक फायदा होता.
 
यशवंत

2011/11/16 Anunad Singh <anu...@gmail.com>

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 16, 2011, 8:29:38 PM11/16/11
to technic...@googlegroups.com
यशवन्त जी शृ = श + ृ बटन दबाने से ही बनता है, उसकी कीबोर्ड पर जरूरत नहीं। यह कीबोर्ड बटन नहीं बल्कि फॉण्ट में ग्लिफ न होने की समस्या है। मंगल में शृ का सही ग्लिफ नहीं है जबकि संस्कृत २००३ आदि कुछ फॉण्टों में है।

आप मंगल में लिखे गये शृ को चुनकर फॉण्ट संस्कृत २००३ करके देखें, सही रूप में दिखेगा।

१६ नवम्बर २०११ ८:५० अपराह्न को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:
--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.



--
Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.

ePandit: http://epandit.shrish.in/

Hariraam

unread,
Nov 16, 2011, 10:14:24 PM11/16/11
to technic...@googlegroups.com
नारायण जी, अनुनाद जी,


ओड़िआ लिपि के युनिकोड कूटों के निर्धारण के वक्त कुछ भूल रह गई थी।
वास्तव में
ओड़िआ ଯ = U0B2F== देवनागरी का य़ = U095F है
ओड़िआ ୟ = U0B5F== देवनागरी का य = U092F है

युनिकोड वालों को ଯ को U095F तथा ୟ को U092F कोड नम्बर देना चाहिए था। इसका विवरण बाद में उनके comments में दे दिया है।

ओड़िआ ୱ = U0B71== देवनागरी का व = U0935 है तथा इसके अलावा
ओड़िआ= U0B35== भी देवनागरी का व = U0935 है (व के दो रूप ओड़िआ में प्रचलित हैं)
ओड़िआ ବ = U0B2C == देवनागरी का ब = U092C है। लेकिन बंगला के प्रभाव में आकर (क्योंकि बंगला में व अक्षर नहीं है)
ओड़िआ में लोग भ्रमवश व के स्थान पर ब का ही अधिकाधिक प्रयोग करते हैं।

'व'-फला युक्त युक्ताक्षरों
यथा श्वास, ध्वंश, पक्व, बिल्व, ज्वाला आदि का सही लिप्यन्तरण
 ଶ୍ୱାସ, ଧ୍ବଂଶ, ପକ୍ୱ, ବିଲ୍ୱ, ଜ୍ୱାଲା होना चाहिए। लेकिन
ओड़िआ भाषी व के स्थान पर ब का प्रयोग करने के कारण वर्तमान 8-बिट ओड़िआ फोंट से युनिकोड में परिवर्तित पाठ में ये शब्द
ଶ୍ବାସ, ଧ୍ବଂଶ, ପକ୍ବ, ବିଲ୍ବ, ଜ୍ବାଲା जैसे गलत रूप में प्रकट होते हैं। जो कि ध्वनिविज्ञान की दृष्टि से गलत है।

इसीलिए ओड़िआ हिन्दी लिप्यन्तरण में भारी भ्रम होता है।

लेकिन दुःख की बात है कि विभिन्न फोंट निर्माता ब-व के भ्रम या विवाद के कारणअलग अलग रेण्डरिंग देनेवाले फोंट्स बना चुके हैं। जिससे युनिकोड का महत्व गड़बड़ा गया है।


उदाहरण के लिेए माइक्रोसॉफ्ट  विण्डोज-7 के kalinga फोंट में  halant+u0b71 टाइप करने पर निम्न संयुक्ताक्षर सही रूप में प्रकट होते हैं।

ଶ୍ୱାସ, ଧ୍ୱଂଶ, ପକ୍ୱ, ବିଲ୍ୱ, ଜ୍ୱାଲା

तथा halanta+u0b2c टाइप करने पर निम्न संयुक्ताक्षर के रूप में प्रकट होते हैं।
ଶ୍ବାସ, ଧ୍ବଂଶ, ପକ୍ବ, ବିଲ୍ବ, ଜ୍ବାଲା
किन्तु आकृति या सीडैक के ओड़िआ युनिकोड फोंट्स में halant+u0b2c टाइप करने पर निम्न संयुक्ताक्षर प्रकट होते हैं। (हालांकि यहाँ मैंने halant+u0b71 ही टाइप किया है क्योंकि इस समूह के सभी/अधिकांश पाठकों के कम्प्यूटरों डिफाल्ट रूप में शायद ओड़िआ का kalinga font ही होगा।
ଶ୍ୱାସ, ଧ୍ୱଂଶ, ପକ୍ୱ, ବିଲ୍ୱ, ଜ୍ୱାଲା

halant+u0b71 या halant+0b35 टाइप करने पर संयुक्ताक्षर नहीं बन पाते, हलन्त युक्त शब्द में प्रकट होते हैं। यथा--

ଶ୍‍ୱାସ


इसी विवाद के कारण युनिकोड ओड़िआ में इण्टरनेट में सामग्री नगण्य-सी ही उपलब्ध होती है।

-- हरिराम

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 17, 2011, 3:52:12 AM11/17/11
to technic...@googlegroups.com
मेरे लिए यह मानना कठिन है कि हिंदी के कीबोर्ड में य़ और ऱ का उपयोग शृ (सही ग्लिफ वाला) के उपयोग से अधिक होता है. यह मैं अपने उपयोग के आधार पर कह रहा हूं कि य़ या ऱ के स्थान पर यदि शृ (सही ग्लिफ वाला) होता तो बेहतर होता. विद्वज्जनों की राय इससे भिन्न हो सकती है, मैं उनका सम्मान करता हूं.
 
यशवंत 

2011/11/17 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>

narayan prasad

unread,
Nov 17, 2011, 4:16:54 AM11/17/11
to technic...@googlegroups.com
<<यदि शृ (सही ग्लिफ वाला) होता तो बेहतर होता.>>
 
आपकी यह गलतफहमी है कि "शृ" लिखना गलत है । देवनागरी में कई ऐसे वर्ण हैं जो एक से अधिक तरह से लिखे जाते हैं । श तीन तरह से लिखा जाता है ।
---नारायण प्रसाद

2011/11/17 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 17, 2011, 8:12:10 AM11/17/11
to technic...@googlegroups.com
'सही ग्लिफ' मैंने किसी अन्य ईमेल से उधार लिया है. हम उसके लिए 'पारंपरिक शृ' या 'प्रचलित शृ' शब्द भी काम में ले सकते हैं.
किसी भी भाषा में किसी वर्ण के एक से अधिक रूप प्रचलित होना कोई ऐसी बात नहीं है जिसका सभी लोग समर्थन करें. अन्य भाषा-भाषियों के लिए यह बात मुश्किलें ही खड़ी करती है.

खैर, मेरा मुद्दा यह नहीं था. मेरा बस यही कहना था कि हिंदी के कीबोर्ड में य़ या ऱ के स्थान पर यदि शृ (पारंपरिक ग्लिफ वाला) होता तो बेहतर होता.

यशवंत

2011/11/17 narayan prasad <hin...@gmail.com>

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 17, 2011, 8:18:29 AM11/17/11
to technic...@googlegroups.com
यशवन्त जी आप अब भी समझ नहीं पाये। दरअसल जिस सही शृ की आप बात कर रहे हैं वह कीबोर्ड से लिखने का मामला नहीं फॉण्ट का मामला है।

संस्कृत २००३ फॉण्ट शृ का सही रूप ही दिखाता है। यह लेख पढ़ें,
http://epandit.shrish.in/327/sanskrit-2003-best-devanagari-unicode-font/
इसमें ऊपर-नीचे मंगल और संस्कृत २००३ में शृ का रूप दिखाया गया है।

आप यहाँ से संस्कृत २००३ डाउनलोड कर इंस्टाल करें। फिर वर्ड में यह फॉण्ट चुनकर पहले श लिखें फिर उस पर ृ (ऋ की मात्रा) लगायें, वह अपने-आप आपके बताये सही रूप में छपेगा।



१७ नवम्बर २०११ २:२२ अपराह्न को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:
--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.

Anunad Singh

unread,
Nov 17, 2011, 10:23:06 PM11/17/11
to technic...@googlegroups.com
यशवन्त जी,
आप 'शृ' के लिये अलग से कुंजी क्यों चाहते हैं? ऐसे में तो 'कृ' के लिये भी चाहिये, 'वृ' के लिये भी और अन्य के लिये भी। इस प्रकार कोई ३५-३६  अतिरिक्त कुंजियाँ चाहिये।  और यदि यही सभी मात्रों के लिये किया गया तो .... ?

-- अनुनाद




Yashwant Gehlot

unread,
Nov 20, 2011, 6:25:41 AM11/20/11
to technic...@googlegroups.com
(तीन दिन अपने मेलबॉक्स से दूर रहने के बाद)

श्रीश जी,

यदि मैं आपकी बात ठीक-ठीक समझा हूं, तो इसका मतलब यह है कि संस्कृत 2003 फॉण्ट चुनने पर पारंपरिक शृ बन जाएगा और मेरी समस्या दूर हो जाएगी. लेकिन क्या वह पारंपरिक शृ उन लोगों के कम्प्यूटर में भी वैसा ही दिखाई देगा जिनके पास उक्त फॉण्ट नहीं है...

मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है कि भारत सरकार ने इस 'शृ' को मान्यता दी है या नहीं. मेरा यह मानना है कि दोनों में से एक ही स्वरूप का उपयोग होना चाहिए. अन्यथा अनेक लोग भ्रमवश श्रृ का उपयोग भी करते हैं. जिस तरह अब का केवल एक रूप प्रचलित है, वैसा ही कुछ शृ के लिए भी होना चाहिए. और यदि हम पारंपरिक शृ चाहते हैं तो वह या तो बगैर किसी फॉण्ट का चयन किए श और ृ के संयोग से बन जाना चाहिए या उसके लिए कुंजीपटल पर स्थान होना चाहिए.

यशवंत

2011/11/17 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>
यशवन्त जी आप अब भी समझ नहीं पाये। दरअसल जिस सही शृ की आप बात कर रहे हैं वह कीबोर्ड से लिखने का मामला नहीं फॉण्ट का मामला है।

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 20, 2011, 6:36:42 AM11/20/11
to technic...@googlegroups.com
अनुनाद जी,

आपने बहुत अच्छी बात उठाई. स्वयं मुझे संयुक्ताक्षरों (त्र, ज्ञ, क्ष आदि) के सीधे प्रयोग के बजाए उन्हें मूल वर्णों से बनाने की आदत पड़ गई है. एक लोकेलाइजेशन कम्पनी के सॉफ्टवेयर में संयुक्ताक्षर वाली कुंजियां काम नहीं करती थीं, तो मुझे वैसी ही आदत पड़ गई. लेकिन यही बात नुक्ते वाले य और र पर भी लागू होती है. उन्हें भी नुक्ता लगाकर बनाया जा सकता है. 

यशवंत 

2011/11/18 Anunad Singh <anu...@gmail.com>

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 20, 2011, 8:45:54 PM11/20/11
to technic...@googlegroups.com
यशवन्त जी नुक्त युक्त य़, ऱ आदि को अलग कुञ्जियाँ इसलिये दी गयी हैं क्योंकि ये भाषा में एक स्वतन्त्र वर्ण हैं, इसी तरह क्ष, त्र, ज्ञ भी स्वतन्त्र वर्ण हैं (श्र एक अपवाद है जिसे स्वतन्त्र वर्ण न होने पर भी अलग जगह दे दी गयी)। दूसरी ओर शृ आदि स्वतन्त्र वर्ण न होकर व्यञ्जन पर मात्रा लगाकर बने हैं।

२० नवम्बर २०११ ५:०६ अपराह्न को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:

--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.

Vineet Chaitanya

unread,
Nov 20, 2011, 11:40:55 PM11/20/11
to technic...@googlegroups.com


2011/11/21 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>

यशवन्त जी नुक्त युक्त य़, ऱ आदि को अलग कुञ्जियाँ इसलिये दी गयी हैं क्योंकि ये भाषा में एक स्वतन्त्र वर्ण हैं, इसी तरह क्ष, त्र, ज्ञ भी स्वतन्त्र वर्ण हैं (श्र एक अपवाद है जिसे स्वतन्त्र वर्ण न होने पर भी अलग जगह दे दी गयी)। दूसरी ओर शृ आदि स्वतन्त्र वर्ण न होकर व्यञ्जन पर मात्रा लगाकर बने हैं।

   वास्तव में क्ष, त्र और ज्ञ भी  संयुक्ताक्षर ही हैं:

     क्+ष, त्+र, और ज् + ञ

Anunad Singh

unread,
Nov 20, 2011, 11:54:55 PM11/20/11
to technic...@googlegroups.com
वस्तुतः कुंजीपटल का उद्देश्य लिखने की सुविधा देना है। इसमें
कुंजियों पर केवल 'मूल वर्ण' ही रखे जायेंगे ऐसी बंदिश क्यों रहेगी। मान
लीजिये कि किसी कुंजीपटल के डिजाइनर को लगता है कि 'है' शब्द बार-बार
टंकित करना पड़ता है तो वह इसके लिये एक अलग कुंजी प्रदान कर सकता है।
उसका यह निर्णय तर्कपूर्ण और उपयोगी है।

२१-११-११ को, Vineet Chaitanya <v...@iiit.ac.in> ने लिखा:

>>> http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hiपर इस समूह पर जाएं.
>>>
>>
>>
>>
>> --
>> *Shrish Benjwal Sharma* *(श्रीश बेंजवाल शर्मा <http://hindi.shrish.in>)*
>> ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
>> *If u can't beat them, join them.*
>>
>> ePandit <http://epandit.shrish.in/>:* *http://epandit.shrish.in/


>>
>> --
>> आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and
>> Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
>> इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल
>> भेजें.
>> इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए,
>> technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
>> और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hiपर

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 21, 2011, 12:14:55 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com

इस विषय पर चर्चा के लिए मैं सभी सदस्यों का धन्यवाद देते हुए एक आखिरी सवाल पूछना चाहता हूं. क्या इस 'शृ' को केंद्रीय हिंदी निदेशालय या किसी अन्य संस्था ने मान्यता दी है...
यदि मान्यता दी गई है तो इसी शृ का प्रयोग होना चाहिए और पारंपरिक शृ धीरे-धीरे लुप्त हो जाना चाहिए. एक वर्ण का एक ही रूप प्रचलित रहे तो ज़्यादा अच्छा है.
 
यशवंत

Anuradha R.

unread,
Nov 21, 2011, 12:30:48 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
यह सवाल मेरा भी है, काफी समय से। माना कि देवनागरी में और बाषाएं भी लिखी जाती हैं, लेकिन हिंदी उनमें सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है, कई गुना ज्यादा। ऐसे में पारंपरिक शृ को एक कुंजी दिया जाना सुविधाजनक होगा। ऐसा बदलाव सार्वभौमिक रहे, हर यूनिकोड फॉन्ट में आ जाए तो बात ही क्या है।
-अनुराधा

2011/11/21 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>
--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.



--
सुरेंद्र प्रताप सिंह संचयन

राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित

चंदन कुमार मिश्र

unread,
Nov 21, 2011, 1:39:07 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
अनुनाद जी का 'है' वाला उदाहरण बहुत पसन्द आया। बढ़िया। धन्यवाद!

चंदन

Anunad Singh

unread,
Nov 21, 2011, 2:10:39 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
गूगल इंडिक आईएमई तथा कुछ अन्य में  अब ऐसी सुविधा है कि यदि आपके टंकण में कोई शब्द, कोई शब्द-समूह या यहाँ तक कि वाक्य-समूह  बार-बार  आता है तो उसे केवल एक कुंजी दबाकर टंकित किया जा सकता है।

चंदन कुमार मिश्र

unread,
Nov 21, 2011, 2:15:40 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
गूगल के अलावा और किसमें यह है, बताने का कष्ट करें। मेहरबानी होगी।

--
चंदन कुमार मिश्र

hindibhojpuri.blogspot.com
bhojpurihindi.blogspot.com

Anunad Singh

unread,
Nov 21, 2011, 2:20:15 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
इस चर्चा में कई बांते मिश्रित हो रहीं हैं-
(१)  कुंजीपटल में कौन से अक्षर कैसे विन्यस्त हों ; 
(२) किन वर्णों को अलग यूनिकोड दिया जाय (और क्या कोड दिया जाय) ;
(३) किस वर्ण का स्क्रीन पर (या छपाई के बाद कागज पर) क्या रूप दिखेगा 
(४) देवनागरी के कुछ अक्षरों के अलग-अलग स्वरूपों में से कौन से मानकृत हैं...

आदि अलग-अलग मुद्दे हैं। ये काफी सीमा तक एक-दूसरे से स्वतंत्र भी हैं।  उदाहरण के लिये 'परम्परागत शृ'  को स्क्रीन पर परम्परागत रूप में दिखाने के लिये जरूरी नहीं है कि इसके लिये एक  अलग 'कोड' हो ही।

-- अनुनाद

-----------------------------------------------------------------
२१ नवम्बर २०११ ११:०० पूर्वाह्न को, Anuradha R. <ranur...@gmail.com> ने लिखा:

Anunad Singh

unread,
Nov 21, 2011, 2:23:57 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
अभी मुझे केवल गूगल की याद आ रही है। किन्तु सॉफ्तवेयर की द्Rष्टि से यह बहुत आसान काम है। छोटे-मोटे  एडितरों में भी यह सुविधा दी जा सकती है।
-- अनुनाद

२१ नवम्बर २०११ १२:४५ अपराह्न को, चंदन कुमार मिश्र <hindiaur...@gmail.com> ने लिखा:

Anunad Singh

unread,
Nov 21, 2011, 4:04:39 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
बार-बार आने वाले कठिन शब्दों या वाक्यांशों  को आसानी से टंकित करने का एक सीधा और आसान तरीका भी है।

मान लीजिये आपको 'वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो'  दस-बीस बार टंकित करना है।  तो टंकण करते समय  उसके स्थान पर 'क्क्क् '  (या कुछ और) टंकित कर दीजिये। सब कुछ टंकित कर लेने के बाद 'खोजो-बदलो' की सहायता लीजिये और 'क्क्क्' को  'वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो'   से बदल दीजिये।

यह तरीका सब जगह काम करेगा।

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 21, 2011, 5:09:13 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
लेकिन क्या वह पारंपरिक शृ उन लोगों के कम्प्यूटर में भी वैसा ही दिखाई देगा जिनके पास उक्त फॉण्ट नहीं है...

नहीं, यह केवल उसी फॉण्ट में शुद्ध रूप में दिखेगा जिस फॉण्ट में वैसा ग्लिफ बना होगा।


मेरा यह मानना है कि दोनों में से एक ही स्वरूप का उपयोग होना चाहिए

शृ का रूप चाहे तो मंगल वाला  दिखे या संस्कृत २००३ वाला (शुद्ध रूप), यह कम्प्यूटर में स्टोर समान रूप से ही होता है, यूनिकोड कूट वही रहता है। जिस फॉण्ट में शृ का पारम्परिक ग्लिफ बना होगा उसमें वह पारम्परिक रूप में दिखेगा अन्यथा इस रूप में।


यदि हम पारंपरिक शृ चाहते हैं तो वह या तो बगैर किसी फॉण्ट का चयन किए श और ृ के संयोग से बन जाना चाहिए या उसके लिए कुंजीपटल पर स्थान होना चाहिए.

आप दरअसल यूनिकोड का मसला नहीं समझ पा रहे। माना अंग्रेजी वर्णों जैसे E आदि को अलग-अलग फॉण्ट अलग-अलग रूप में दिखायें लेकिन रहता तो वह वही है, ऑस्की कूट वही होता है। वैसे ही शृ चाहे जैसे मर्जी दिखे (श नीचे ृ जैसा या पारम्परिक जैसा) यूनिकोड कूट वही रहता है। हाँ अगर कोई इसे गलत रूप से श्रृ लिखे तो कूट अलग होगा।

कुञ्जीपटल पर अलग कुञ्जी होने से अन्तर नहीं पड़ेगा, अलग कुञ्जी होने पर उससे टाइप करने पर भी मंगल फॉण्ट में श की नीचे ृ वाला ही दिखेगा। अलग कुञ्जी तो आप माइक्रोसॉफ्ट के MSKLC टूल द्वारा असाइन कर सकते हैं पर उससे बात नहीं बनेगी।

और यह मामला केवल शृ का ही नहीं है, कई अन्य का है। कुछ यूनिकोड फॉण्ट किसी संयुक्ताक्षर को पारम्परिक रूप में जोड़कर दिखाते हैं कुछ अलग करके। जैसे गङ्गा में ङ्ग में मंगल ग को ङ् के दायें दिखायेगा जबकि संस्कृत २००३ आदि कुछ अन्य फॉण्ट पारम्परिक रूप में नीचे दिखायेंगे।

मंगल का सिस्टम का डिफॉल्ट फॉण्ट होने के कारण उसके विण्डोज़ ७ वाले नये संस्करण में अधिकतर संयुक्ताक्षर पारम्परिक जुड़े रूप की बजाय अलग-अलग दिखते हैं जैसे ऍक्सपी वाले मंगल में द्य, क्त आदि जुड़े दिखते थे जबकि ७ वाले में अलग-अलग दिखते हैं।


२० नवम्बर २०११ ४:५५ अपराह्न को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:

--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 21, 2011, 5:36:14 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
वास्तव में क्ष, त्र और ज्ञ भी  संयुक्ताक्षर ही हैं

जी हाँ, ये तीनों भी संयुक्ताक्षर ही हैं, हिन्दी में बहुत संयुक्ताक्षर हैं परन्तु ये तीनों इस मामले में विशिष्ट हैं कि इन्हें हिन्दी वर्णमाला में अलग से स्थान दिया गया है। शायद इसीलिये इन्हें मानक कीबोर्ड इन्स्क्रिप्ट पर भी अलग कुञ्जियों दी गयीं, साथ में सोचा गया होगा कि श्र इन तीनों के बाद सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला संयुक्ताक्षर है तो उसे भी अलग जगह दे दी गयी।

२१ नवम्बर २०११ १०:१० पूर्वाह्न को, Vineet Chaitanya <v...@iiit.ac.in> ने लिखा:

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 21, 2011, 5:47:20 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
अनुराधा जी आप भी वही गलती कर रहे हैं जो यशवन्त जी। शृ को कुञ्जीपटल पर अलग स्थान देने से मामला हल नहीं होगा। चाहे शृ को दो की स्ट्रोक से लिखे (पहले श वाली फिर ृ मात्रा वाली) चाहे एक की स्ट्रोक से, उसका यूनिकोड कूट वही स्टोर होगा। यानि एक कुञ्जी पर रखने से भी मंगल में शृ श के नीचे ृ वाले रूप में ही दिखेगा।

पारम्परिक शृ और मंगल में दिखने वाला शृ कोई अलग चीज नहीं एक ही हैं, यूनिकोड कूट समान है। वह फॉण्ट पर निर्भर है कि उसमें पारम्परिक शृ वाला ग्लिफ है या नहीं। संस्कृत २००३ में है, मंगल में नहीं।

इसे एक और उदाहरण से समझें, द्य मंगल के विण्डोज़ ऍक्सपी वाले संस्करण में जुड़े रूप में (घ जैसा वाला) दिखता है जबकि विण्डोज़ ७ वाले संस्करण में अलग-अलग (द्‌य)। अब द्य के लिये भी कीबोर्ड पर अलग कुञ्जी नहीं होती कोई कहे कि यह पारम्परिक रूप में दिखने के लिये कीबोर्ड पर अलग कुञ्जी होनी चाहिये तो वह नासमझी होगी।

२१ नवम्बर २०११ ११:०० पूर्वाह्न को, Anuradha R. <ranur...@gmail.com> ने लिखा:
यह सवाल मेरा भी है, काफी समय से। माना कि देवनागरी में और बाषाएं भी लिखी जाती हैं, लेकिन हिंदी उनमें सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है, कई गुना ज्यादा। ऐसे में पारंपरिक शृ को एक कुंजी दिया जाना सुविधाजनक होगा। ऐसा बदलाव सार्वभौमिक रहे, हर यूनिकोड फॉन्ट में आ जाए तो बात ही क्या है।



--

चंदन कुमार मिश्र

unread,
Nov 21, 2011, 6:04:20 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
वाह अनुनाद जी। धन्यवाद इसको याद दिलाने के लिए। यह तो आसान है लेकिन
ध्यान नहीं आ सका। आभार आपका।

सादर,

चंदन

--
चंदन कुमार मिश्र

hindibhojpuri.blogspot.com
bhojpurihindi.blogspot.com

narayan prasad

unread,
Nov 21, 2011, 6:14:40 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
<<वास्तव में क्ष, त्र और ज्ञ भी  संयुक्ताक्षर ही हैं

जी हाँ, ये तीनों भी संयुक्ताक्षर ही हैं,>>
 
इस प्रसंग में भारतीय संविधान में हिन्दी के राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित होने के बाद सरकार की प्रेरणा एवं सहयोग से शिक्षा विभाग की 1954 में गठित समिति के द्वारा हिन्दी के व्याकरण-निर्माण सम्बन्धी तैयार की गई रूपरेखा के अनुरूप डॉ॰ अर्येन्द्र शर्मा द्वारा अंग्रेजी में रचित एवं सन् 1958 ई॰ में प्रकाशित ‘अ बेसिक ग्रामर ऑव् मोडर्न हिन्दी’ (आधुनिक हिन्दी का प्रारम्भिक व्याकरण)  की डॉ॰ अनन्त चौधरी द्वारा की गई समीक्षा द्रष्टव्य है (“हिन्दी व्याकरण का इतिहास”, 1972, पृ॰653) –

 

स्थानएवं प्रयत्नदोनों ही आधारों पर ध्वनियों का स्पष्ट परिचय देकर उन्होंने हिन्दी-व्याकरणों में पाये जाने वाले एक बड़े अभाव की पूर्ति की है । किन्तु, इस प्रकरण में कुछ सूक्ष्म ध्वनिवैज्ञानिक तथ्यों पर उनका ध्यान नहीं गया है; उदाहरणार्थ - अनुस्वार, जिसका उच्चारण और प्रयोग नियमतः स्वरों के पश्चात् और अन्तःस्थ तथा ऊष्म व्यञ्जनों के ही पूर्व होना अपेक्षित है, वास्तव में ङ् - ञ् - ण् - न् - म्का प्रतिनिधि नहीं है, अपितु एक विशिष्ट ध्वनि है ।

 

इसी प्रकार क्षऔर ज्ञवास्तव में क्+ष और ज्+ञ के संयुक्त रूप नहीं, अपितु सहोच्चरित रूप हैं । संयुक्त ध्वनियों के उच्चारण में पूर्वापर सम्बन्ध होता है, जैसे क्हमें क्पहले और बाद में उच्चरित होगा, किन्तु सहोच्चरित में दोनों का एक ही साथ, जैसे आदि में । क्षऔर ज्ञके साथ यही स्थिति है, इसलिए इन विशिष्ट ध्वनियों को वर्णमाला में स्थान नहीं दिया जाना अनुचित है । हाँ, ‘त्रनिश्चय ही संयुक्त ध्वनि है, उसे छोड़ा जा सकता है ।

 

---नारायण प्रसाद



2011/11/21 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>
वास्तव में क्ष, त्र और ज्ञ भी  संयुक्ताक्षर ही हैं

Anuradha R.

unread,
Nov 21, 2011, 6:28:57 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
श्रीश जी, आपकी बात पिछले दो जवाबों से काफी कुछ समझ में आ गई। लेकिन जो एक फॉन्ट में दिखेगा उसे सभी फॉन्टों में क्यों न रखा जाए। " ऐसा बदलाव सार्वभौमिक रहे, हर यूनिकोड फॉन्ट में आ जाए तो बात ही क्या है।" कारण यह है कि हम, बिना संस्कृत की हिंदी देवनागरी में काम करने वालों के लिए पारंपरिक शृ की ही आदत है। यह शृ अजीब और गलत लगता है क्योंकि किताबों में भी ऐसा कहीं नहीं देखा।
-अनुराधा

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 21, 2011, 6:30:21 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
जिसने भी यह कुंजीपटल डिज़ाइन किया, उन्होंने श्र तो पारंपरिक स्वरूप में रखा और शृ को आधुनिक स्वरूप दे दिया. यदि कोई संगतता (consistency) की अपेक्षा रखता है तो उसमें गलत क्या है...
वर्ण के पीछे यूनिकोड कूट क्या है, उससे आम आदमी को क्या वास्ता हो सकता है...
छप क्या रहा है, वह महत्वपूर्ण है. अब यदि ऐसा है कि इस नए स्वरूप वाले शृ की जगह पारंपरिक शृ नहीं आ सकता, तो इसी स्वरूप को मान्यता दिलाने की कोशिश की जानी चाहिए.
यशवंत
2011/11/21 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>
वास्तव में क्ष, त्र और ज्ञ भी  संयुक्ताक्षर ही हैं

Vineet Chaitanya

unread,
Nov 21, 2011, 8:05:11 AM11/21/11
to technic...@googlegroups.com
नारायण प्रसादजी,

           ज्ञ का उच्चारण तो अलग अलग प्रान्तो में काफी अलग अलग है किन्तु क्ष के विषय में मुझे सन्देह है. क्या संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से आप इस पर कुछ और प्रकाश डाल सकते हैं? यहाँ सन्दर्भ लिपि का है

विनीत चैतन्य

2011/11/21 narayan prasad <hin...@gmail.com>

--

narayan prasad

unread,
Nov 23, 2011, 3:14:52 AM11/23/11
to technic...@googlegroups.com
<<ज्ञ का उच्चारण तो अलग अलग प्रान्तो में काफी अलग अलग है किन्तु क्ष के विषय में मुझे सन्देह है. >>
 
क्ष का उच्चारण भी अलग अलग प्रान्तों में अलग-अलग है । जैसे - बांगला में "क्ख" (लक्ष्मी = लक्खी), उड़िया में "ख्य" (भिक्षा = भिख्या) और हिन्दी क्षेत्रों में कई जगहों में "च्छ" (शिक्षा = सिच्छा) ।
 
---नारायण प्रसाद

2011/11/21 Vineet Chaitanya <v...@iiit.ac.in>

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 23, 2011, 10:20:56 AM11/23/11
to technic...@googlegroups.com
जिसने भी यह कुंजीपटल डिज़ाइन किया, उन्होंने श्र तो पारंपरिक स्वरूप में रखा और शृ को आधुनिक स्वरूप दे दिया

फिर वही गलती, श्र को पारम्परिक रूप या शृ को गलत रूप (जिसे आप आधुनिक कह रहे हैं) कुञ्जीपटल बनाने वालों ने नहीं दिया बल्कि यह फॉण्ट निर्माताओं की गलती है।


यदि कोई संगतता (consistency) की अपेक्षा रखता है तो उसमें गलत क्या है...

बिलकुल गलत नहीं है, मैं भी यही अपेक्षा करता हूँ लेकिन गलती ये है कि आपको यह अपेक्षा कुञ्जीपटल नहीं फॉण्ट बनाने वालों से रखनी चाहिये।


वर्ण के पीछे यूनिकोड कूट क्या है, उससे आम आदमी को क्या वास्ता हो सकता है... छप क्या रहा है, वह महत्वपूर्ण है.

वास्ता भले न हो पर वर्णों के स्टोरेज एवं डिस्प्ले में यूनिकोड की ही भूमिका है।


अब यदि ऐसा है कि इस नए स्वरूप वाले शृ की जगह पारंपरिक शृ नहीं आ सकता, तो इसी स्वरूप को मान्यता दिलाने की कोशिश की जानी चाहिए.

कुछ संयुक्ताक्षरों के दो-दो रूप प्रचलित हैं जैसे श्व तथा श्ल आदि, द्य के भी अलग वाला रूप ( द् ् य) आजकल पाठ्य-पुस्तकों में दिखता है (यद्यपि वह मुझे कतई अच्छा नहीं लगता) परन्तु शृ का मंगल में दिखने वाले रूप (श के नीचे ृ) को कभी मान्यता नहीं मिली, किसी मुद्रित पुस्तक में यह रूप नहीं मिलता। यह केवल मंगल जैसे यूनिकोड फॉण्टों में सही ग्लिफ (श्रृ जैसे दिखने वाले शृ) के न होने से बाइ डिफॉल्ट श के नीचे ृ लगने से प्रकट होता है। पहले ही श्रृंखला, श्रृंगार जैसे गलतियाँ प्रचलित थी, इस सही ग्लिफ न होने से यह भ्रम और बढ़ गया। लोग जिन्हें पता भी था कि यह श्र पर ृ मात्रा नहीं बल्कि श पर ृ मात्रा लगाने से बनता है वह भी स्क्रीन पर अपेक्षित रूप न देखकर भ्रमित होने लगे।

होना यह चाहिये कि मंगल आदि यूनिकोड फॉण्ट के निर्माताओं को इस गलती की तरफ ध्यान दिलाया जाय।

२१ नवम्बर २०११ ५:०० अपराह्न को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:

--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 23, 2011, 1:35:31 PM11/23/11
to technic...@googlegroups.com
श्रीश जी,

धन्यवाद.
अधिकतर लोगों के कंप्यूटर में मंगल या एरियल यूनिकोड एमएस डिफॉल्ट फ़ॉण्ट होते हैं. आपने संस्कृत 2003 के ज़रिए समाधान दिया है. लेकिन डिफ़ॉल्ट फ़ॉण्ट्स को ठीक करके बड़े स्तर पर उन्हें लागू करना किस तरह से संभव है, यह मेरी बुद्धि से परे है.

<<शृ का मंगल में दिखने वाले रूप (श के नीचे ृ) को कभी मान्यता नहीं मिली, किसी मुद्रित पुस्तक में यह रूप नहीं मिलता।>>

मैंने पहले भी जानना चाहा था कि नए शृ को कहीं से मान्यता मिली है या नहीं. आपसे यह उत्तर सुनकर अच्छा लगा. दरअसल यूनिकोड के अनेक उपयोगकर्ताओं ने नए शृ को इस हद तक स्वीकार कर लिया है कि उन्हें इसमें कुछ भी गलत नज़र नहीं आता है. इस मंच पर भी ऐसे अभिमत सामने आए.

लेकिन यह चर्चा बड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक रही.

धन्यवाद
यशवंत

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 24, 2011, 4:09:46 AM11/24/11
to technic...@googlegroups.com
डिफ़ॉल्ट फ़ॉण्ट्स को ठीक करके बड़े स्तर पर उन्हें लागू करना किस तरह से संभव है, यह मेरी बुद्धि से परे है.

यह सुधार फॉण्ट निर्माताओं द्वारा ही सम्भव है। उन्हें मेल करके इस बारे में सूचित किया जाना चाहिये।


यूनिकोड के अनेक उपयोगकर्ताओं ने नए शृ को इस हद तक स्वीकार कर लिया है कि उन्हें इसमें कुछ भी गलत नज़र नहीं आता है. इस मंच पर भी ऐसे अभिमत सामने आए.

दरअसल शृ के दिखावटी रूप (ग्लिफ) को हमने स्वीकार नहीं किया बल्कि वर्ण संरचना के हिसाब से स्वीकार किया है। व्याकरणिक वर्ण संरचना के हिसाब से शृ ठीक है, इसका मंगल द्वारा स्क्रीन पर प्रदर्शन वाला रूप सही नहीं है। इसे ऐसे समझें कि माना किसी फॉण्ट में ज्ञ का सही ग्लिफ अनुपस्थित हो तो वह ज्‌ञ के रूप में दिखेगा जो कि व्याकरणिक रूप से तो सही होगा पर दिखने में सही नहीं होगा।

यही मामला यहाँ है, शृ व्याकरणिक रूप से तो श के नीचे ृ मात्रा ही होता है परन्तु इन दोनों के जुड़ने पर इसका रूप (दिखने में) बदल जाता है, वह नया रूप (श्रृ जैसा दिखने वाला जिसे संस्कृत २००३ सही दिखाता है) फॉण्ट में न डला होने से वह श के नीचे ृ जैसा दिखता है।

२४ नवम्बर २०११ १२:०५ पूर्वाह्न को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:

--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.

Hariraam

unread,
Nov 24, 2011, 5:04:19 PM11/24/11
to technic...@googlegroups.com
नई छपी या छपनेवाली हिन्दी पाठ्य पुस्तकों में वर्तमान शृ रूप ही मिलता है।

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 29, 2011, 12:34:23 PM11/29/11
to technic...@googlegroups.com
एक बात याद आयी कि उबुंटू, फेडोरा, रैडहैट आदि कई प्रमुख लिनक्स वितरणों के डिफॉल्ट हिन्दी फॉण्ट लोहित देवनागरी में शृ का सही परम्परागत रूप ही दिखता है। इन ऑपरेटिंग सिस्टमों पर आपको बिना कुछ किये सही रूप ही दिखेगा।

२४ नवम्बर २०११ १२:०५ पूर्वाह्न को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:

--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Nov 29, 2011, 12:45:35 PM11/29/11
to technic...@googlegroups.com
और हाँ विण्डोज़ पर भी शृ को सही रूप में ही देखने के लिये आप अपने ब्राउजर का डिफॉल्ट हिन्दी फॉण्ट मंगल से बदलकर संस्कृत २००३ कर सकते हैं। सब ब्राउजर में इसकी प्रक्रिया थोड़ी-थोड़ी अलग होती है। विस्तार से तो यहाँ बता नहीं सकता हिंट दे देता हूँ।

फायरफॉक्स में इसके लिये Options में content टैब में विकल्प है।

गूगल क्रोम में Options में Under The Hood में Web Content में Customize fonts... में जायें।

इंटरनेट ऍक्सप्लोरर में Internet Options में General टैब में सबसे नीचे Appearance फ्रेम में Fonts बटन पर क्लिक करें।

हर ब्राउजर के विकल्प में जब जायें तो, उपयुक्त भाषा या लिपि के लिये ही फॉण्ट सैट करें नहीं तो अंग्रेजी के लिये भी वही सैट हो जायेगा।

एक बार डिफॉल्ट फॉण्ट संस्कृत २००३ सैट कर लेने पर आपको सभी वेबसाइटों पर शृ स्वतः सही परम्परागत रूप में ही दिखेगा।

२९ नवम्बर २०११ ११:०४ अपराह्न को, ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com> ने लिखा:

Yashwant Gehlot

unread,
Nov 30, 2011, 12:22:40 AM11/30/11
to technic...@googlegroups.com

धन्यवाद श्रीश जी, 

आपने बेहद उपयोगी सुझाव दिए हैं.

मैं अधिकतर गूगल क्रोम काम में लेता हूं. क्या आप थोड़ा और विस्तार से बता सकते हैं कि Web Content में Customize fonts में जाकर कौनसे फील्ड में परिवर्तन करना है
 
यशवंत

2011/11/29 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>



--
Yashwant Gehlot
Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages