बहुत कुछ अन्य रामायणों में हैं (वालमिकीय रामायण भी इसमें सम्मिलित), जो शिष्ट समाज (सामान्य जन की आस्था) के लिए ठीक नहीं समझे जा सकते।
वहीं तुलसीदास जी का कहना है -
"चारिउ वेद पुराण अष्टदश, छवउ शास्त्र सब ग्रन्थन के रस।
मुनि-मन धन सन्तन को सरबस, सार अंश सम्मत सब ही की।
आरती श्री रामायण जी की।"
और "नाना पुराण निगमागम सम्मत यद्रामायणे निगदितं क्वचिदन्योऽपि"।
"नाना पुराण निगमागम सम्मत" पर हिन्दी में पी-एच॰ डी॰ थीसिस भी उपलब्ध है।
हाई स्कूल में पढ़ा था - "समस्त तुलसी साहित्य समन्वय की विराट् चेष्टा है।"
--- नारायण प्रसाद