रेमिंगटन कीबोर्ड लेआउट द्वारा Indic IME में चन्द्रबिन्दु टाइप करना

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ePandit | ई-पण्डित

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Nov 28, 2011, 7:45:12 AM11/28/11
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कुण्डली आदि पुराने फॉण्टों का उपयोग करने वाले कई लोग मुझसे पूछ चुके हैं कि Indic IME में रेमिंगटन कीबोर्ड लेआउट द्वारा चन्द्रबिन्दु कैसे टाइप किया जाय। अब मैंने पाया कि किसी अकेले वर्ण के ऊपर तो चन्द्रबिन्दु ॅ के बाद बिन्दी दबाने से बन जाता है (जैसे हँस में) परन्तु ा के डंडे के पीछे ॅ वाली कुञ्जी के बाद बिन्दी वाली कुञ्जी दबाने से नहीं बनता (जैसे हाँसी में)।

उदाहरण के लिये यहाँ के ऊपर का चन्द्रबिन्दु। कुण्डली, कृतिदेव आदि में तो वे लोग ऑल्ट कोड के उपयोग से इसे प्रकट करते थे।

कृपया इसका तरीका बतायें।

--
Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.

ePandit: http://epandit.shrish.in/

Vineet Chaitanya

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Nov 28, 2011, 7:53:02 AM11/28/11
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यदि पहले चन्द्रबिन्दु बनाकर फिर ा का डंडा लगायें तो क्या होता है?

2011/11/28 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>
--
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Anand D

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Nov 28, 2011, 9:49:37 AM11/28/11
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Hindi Remington (GAIL) के इस्‍तेमाल से

व+ह+ा+space+Backspace+ॅ+ं = वहाँ

बन जाता है।

- आनंद

2011/11/28 Vineet Chaitanya <v...@iiit.ac.in>:

Hariraam

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Nov 28, 2011, 8:11:51 PM11/28/11
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windows के character map में देखें कि उक्त फोंट में पूर्ण चन्द्रबिन्दू का भी ग्लीफ है या नहीं, या सिर्फ चन्द्राकार और अनुस्वार के दो ग्लीफ जोड़कर काम चलाया जा रहा है?
यदि पूर्ण चन्द्रबिन्दू का ग्लीफ है, तो उसे टाइप करने का भी कोई विशेष प्रोग्राम उस फोंट के IME में होगा।

ePandit | ई-पण्डित

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Nov 28, 2011, 9:07:18 PM11/28/11
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हरिराम जी यह यूनिकोड में टाइप करने के ही औजार Indic IME की बात चल रही है इसलिये ग्लिफ तो है ही। मसला यह है कि जहाँ इन्स्क्रिप्ट यूनिकोड के अनुकूल बनाया गया था वहाँ रेमिंगटन मैकेनिकल टाइपराइटर के। इसलिये रेमिंगटन लेआउट से यूनिकोड टाइपिंग औजारों में कैरैक्शन जैसे अल्गोरिथ्म लगानी पड़ती है जैसे रेमिंगटन में रेफ चिह्न (कर्म वाला) तथा बड़ी ई की मात्रा के ऊपर का निशान, दोनों के लिये एक ही कुञ्जी होती है तो छोटी इ के बाद यह कुञ्जी दबने पर पहले IME द्वारा छोटी इ मिटायी जाती है फिर उसकी जगह बड़ी ई टाइप की जाती है क्योंकि यूनिकोड में इ और ई दोनों स्वतन्त्र चिह्न हैं, ई छोटी इ के ऊपर रेफ जैसा चिह्न लगने से नहीं बनता। इसी प्रकार रेफ चिह्न जिस वर्ण के ऊपर होता है (जैसे कर्म में म के ऊपर), असल में यूनिकोड में (और हिन्दी व्याकरण के अनुसार भी) उस वर्ण से पहले स्टोर होता है जैसे कर्म = क + र् (रेफ) + म। अब रेमिेंगटन में जब कम लिखने के बाद रेफ वाली कुञ्जी दबायी जाती है तो IME म को मिटाकर पहले रेफ चिह्न टाइप करता है फिर दोबारा म टाइप करता है। ePandit IME बनाने के दौरान मुझे इस तरह की कार्यप्रणाली का पता चला। फोनेटिक और रेमिंगटन दोनों में ही इस तरह की करैक्शन अल्गोरिथ्म लगानी पड़ती हैं। करैक्शन अल्गोरिथ्म में अन्तिम टाइप किये गये वर्णों को याद रखकर उसके बाद वर्तमान में दबायी गयी कुञ्जियों के हिसाब से उन्हें मिटाकर ठीक किया जाता है। जैसे फोनेटिक में s से स छपता है, उसके बाद h वाली कुञ्जी दबाने पर IME को पिछला स मिटाकर उसकी जगह श टाइप करना होता है क्योंकि यूनिकोड में स और श दोनों स्वतन्त्र वर्ण हैं, श = स + h (या ह) जैसा कुछ नहीं है।

दूसरी ओर इन्स्क्रिप्ट में सभी कुञ्जियों पर स्वतन्त्र वर्ण हैं, किसी में करैक्शन अल्गोरिथ्म नहीं लगाना पड़ता। जो एकाधिक कुञ्जियों द्वारा संयुक्त वर्ण बनते हैं (जैसे क्ष = क + ् + ष), वे यूनिकोड में भी इसी रूप में स्टोर होते हैं इसलिये क के बाद क्रमशः हलन्त और ष दबाने पर पिछले वर्ण  मिटाने नहीं पड़ते बल्कि वे खुद ही जुड़ कर क्ष का रूप ले लेते हैं। इसलिये प्रोग्रामिंग के लिहाज से इन्स्क्रिप्ट सबसे आसान कीबोर्ड है।

अब वापस मुद्दे पर आते हैं। टाइपराइटर में शायद ॅ चिह्न  लगाने के बाद बिन्दी लगाने से शायद वह उसके ऊपर लग कर चन्द्रबिन्दु बन जाती होगी तो यही क्रम यूनिकोड रेमिंगटन टाइपिंग औजारों द्वारा अपनाया गया। अब Indic IME में ॅ के बाद ं (बिन्दी) दबाने से तो उन दोनों को मिटाकर चन्द्रबिन्दु टाइप करने की व्यवस्था की गयी परन्तु ा के बाद ॅ तथा ं दबने पर ऐसा लॉजिक लगाना शायद रह गया।

२९ नवम्बर २०११ ६:४१ पूर्वाह्न को, Hariraam <hari...@gmail.com> ने लिखा:

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Hariraam

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Nov 29, 2011, 9:57:11 AM11/29/11
to technic...@googlegroups.com
श्रीश जी,

यह सभी समस्याएँ मैं लगभग 10 पहले सन् 2000 के पहले झेल चुका हूँ। विण्डोज 2000 में युनिकोड समर्थन आने के बाद पुराने फोंट्स का उपयोग बन्द कर दिया। युनिकोड इन्स्क्रिप्ट (मेरे द्वारा संशोधित) का ही उपयोग करता हूँ।

जहाँ मुद्रण के लिए सामग्री जरूरी होती है, सीडैक के आईएसएम के कनवर्टर से मुद्रक के फोंट में कनवर्ट करके दे देता हूँ।

किन्तु आम जनता/उपयोक्ता जिनको टाइपराइटर कीबोर्ड का अभ्यास है, उनकी सेवा के लिए आपने ime विकसित करके स्तुत्य प्रयास किया है।

चूँकि आजकल लगभग सभी कार्यालयों टाइपराइटरों का प्रयोग बन्द हो गया है। शायद ही कोई मैनुअल टाइपराइटर का उपयोग करता हो। सब रद्दी के भाव बिक चुके हैं/रहे हैं। इनका स्थान कम्प्यूटर ने ले लिया है, मैनुअल टाइपराइटर जहाँ हैं, वहाँ कोई मैकेनिक भी नहीं मिलते, जंक लगकर बेकार हो गए हैं। अधिकांशतः शीशे के अक्षरों की टाइपसेटिंग वाले प्रिंटिंग प्रेस के पुर्जे किलो के भाव कबाड़ी को बेचे जा चुके हैं।

और फिर मैनुअल टाइपराइटर के कीबोर्ड भी कई प्रकार के हैं, रेमिंगटन का अलग, फासिट का अलग, गेल का अलग, .... कुछ न कुछ कुंजियों का हेरफेर तो है ही।

इसलिए मैनुअल टाइपराइटर के 'हू-ब-बू' अनुसार ime बनाने का कोई फायदा नहीं दिखता। आप कुछ प्रोग्रामिंग के लिहाज ही नहीं, बल्कि लोगों को देवनागरी लिपि के सही क्रम का ज्ञान कराने के उद्देश्य भी निम्नवत् कुछ सरल आईएमई बना सकते हैं। टाइपराइटर के अभ्यस्त लोगों को कुछेक कुंजियों को टाइप करने का अपना पुराना अभ्यास तो बदलना ही होगा, समय के साथ तेज चलने के लिए।

1.
म के बाद रेफ लगाकर 'कर्म' लिखने के बजाए लोगों को रेफ(र्) के बाद म लिखने के लिए प्रेरित करें, अर्थात् आईएमई में ऐसी ही व्यवस्था करें। तो ग्लीफ पोजिशनिंग बदलने के झमेले से मुक्त हो जाएँगे। क्योंकि आखिर टाइप तो युनिकोड समर्थित ओ.टी. फोट में ही करना है ना...

2.
छोटी इ पर रेफ लगाकर ई बनाने की व्यवस्था को बदलकर छोटी इ पर नुक्ता टाइप करके 'ई' प्रकट हो, ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं। इससे ग्लीफ रिप्लेशमेंट में सुविधा होगी। टाइपराइटर मे अनुपलब्ध अनेक वर्णों के लिए नुक्ता लगाकर ही काम चलाया जाता था, यथा ओड़िआ का य़, क़, ज़ .... ळ के लिए ल+नुक्ता का प्रयोग होता है। इनस्क्रिप्ट में भी ऐसी ही व्यवस्था की गई थी। वैसे भी युनिकोड 6.0 में शामिल नए अक्षरों को टाइपराइटर कीबोर्ड से टाइप करने के लिए आपको विशेष कुंजियों की व्यवस्था करनी होगी। कंट्रोल-प्लस, या अल्ट-प्लस के सहारे, इससे बेहतर है उन्हें नुक्ता का प्रत्ययरूप में प्रयोग करके टाइप करने की व्यवस्था की जाए।

3.
छोटी इ की मात्रा पहले टाइप करके बाद में वर्ण टाइप करने के गलत क्रम को भी सुधारने की शिक्षा देना जरूरी है, पहले वर्ण फिर मात्रा के सही क्रम की ही व्यवस्था करें।

(क्योंकि युनिकोड समर्थित भावी ओ.टी. फोंट में कुछ ऐसी व्यवस्था करने का प्रयास हो रहा है कि वर्ण के बाईँ ओर टाइप होनेवाली छोटी इ की मात्रा के ग्लीफ पोजिशनिंग की जटिल समस्या से बचा जा सके, छोटी इ की मात्रा को दो टुकड़ों में बाँट कर खड़ी पाई और ऊपर की टोपी अलग अलग करके। पहले लगी खड़ी पाई sorting / processing आदि में ignore हो जाए और सिर्फ ऊपर की टोपी को ही छोटी इ माना जाए। ऊपर की टोपी तो ए, ऐ, आदि की मात्रा की तरह वर्ण के बाद में भी टाइप हो सकती है।)

4.
आधे वर्णों पर खड़ी पाई टाइप करके पूर्ण अक्षर बनाने की टाइपराइटर की टंकण-विधि भावी कम्प्यूटिंग की दृष्टि से सही है, क्योंकि भविष्य में हलन्त लगाकर आधा करके संयुक्ताक्षर बनाने की प्रक्रिया का सरलीकरण होने की सभावना है।

आप चाहें तो आधे वर्ण (हलन्त युक्त) + sort a अर्थात् U0904 = वर्ण का अस्थायी उपाय करके (अर्थात् 0904 को अ की मात्रा अर्थात् खड़ी पाई मानकर) भी काम चला सकते हैं। लेकिन यह सिर्फ हिन्दी के लिेए होगा, देवनागरी लिपि का प्रयोग करनेवाली अन्य भाषाओं के लिए लागू नहीं हो सकता।)

अंग्रेजी से हिन्दी शब्दकोश तो सभी देखते व उपयोग करते हैं, फटाफट इच्छित शब्द खोज भी लेते हैं। क्योंकि A-Z का क्रम निश्चित है। लेकिन हिन्दी से अंग्रेजी का शब्दकोश बहुत कम लोग प्रयोग करते हैं, प्रयोग करते वक्त कौन-सा संयुक्ताक्षर+मात्रा वाला पूर्णाक्षर किसके बाद व कहाँ पर आएगा, यह खोजने में माथापच्ची करनी पड़ती है। समय अधिक लगता है। क्योंकि देवनागरी की sorting तो सिर्फ मूल वर्णों के अनुसार ही होती है ना.. किन्तु संयुक्ताक्षर व मात्रा आँखों से देखकर हमारे दिमाग को अन्दर ही अन्दर मूल वर्णों के क्रम बैठाने/सजाने का गुप्त परिश्रम करना पड़ता है। .. इसी प्रकार अन्य उन्नत प्रोसेसिंग की जरूरतों को लोग समझने का प्रयास ही नहीं करते। सिर्फ जैसे-तैसे टंकण कर पाठ मुद्रित कर लेने तक सीमित रहते हैं।

ऐसे कुछ ध्वनि-वैज्ञानिक कसौटी पर खरे उतरे सामान्य परिवर्तन करके आई.एम.ई. में सरल सुधार कर सकते है। ताकि मैनुअल टाइपराइटर के अभ्यस्त लोग ज्यादा परेशानी के बिना युनिकोड में शीघ्रता से पाठ टाइप कर सकें।

मेरे कहने का उद्देश्य यह है कि "जैसा टाइपराइटर मशीन की तत्कालीन सीमाओं के मद्देनजर भूतकाल में लिपि को येन केन प्रकारेण तोड़-मरोड़ काम चलाया गया था" हू-ब-हू उसी के अनुरूप गलत और भ्रम व भ्रान्ति फैलानेवाले अभ्यास को आगे और फैलाने में आप जैसे विद्वान महारथियों को अपना बहुमूल्य समय जाया न करके, भावी कम्प्यूटिंग की संभावनाओं के मद्देनजर कुछ नया कर दिखाने में अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।


- हरिराम

Hariraam

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Nov 29, 2011, 10:32:52 AM11/29/11
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टाइपराइटर में चन्द्रबिन्दू टंकण के लिए चन्द्राकार (लघु ए, ओ आदि ध्वनि को प्रकट करनेवाले) में अनुस्वार जोड़कर बनाने की समस्या के कारण ही तो हिन्दी भाषा व देवनागरी लिपि में गलत व भ्रान्त प्रयोग फैल गए--

सिर्फ कहाँ, वहाँ .. आदि आ-कारयुक्त शब्दों पर तथा कहूँ, चाहूँ, पहुँच, आदि नीचे लगनेवाली मात्राओं युक्त शब्दों पर ही चन्द्रबिन्दू लगाई जा सकी।

कहीँ वहीँ, नहीँ, कहेँ, भेजेँ, राहोँ बातोँ, पौधोँ, चिल्ल-पौँ,
आदि ऊपर लगनेवाली मात्राओं युक्त शब्दों पर भी जहाँ चन्द्रबिन्दू का प्रयोग होना चाहिए, वहाँ केवल अनुस्वार लगाकर काम चलाया जाने लगा। जो ध्वनिविज्ञान की दृष्टि से गलत है। श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर में इसके कारण समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उच्चारण भी गलत हो रहा है। वेदों के कई मन्त्र सिद्ध नहीं हो पाते, निष्फल होते हैं।

अब युनिकोड में विशेषकर मंगल फोंट में ऊपर लगनेवाली मात्राओं युक्त वर्णों पर भी चन्द्रबिन्दू लगाने व्यवस्था उपलब्ध हो जाने के बाद भी, हमारे जैसे जानकार लोग भी चन्द्रबिन्दू के स्थान  सिर्फ अनुस्वार लगाने का गलत प्रयोग करते चले जा रहे हैं। सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात है कि सी-डैक आदि के हिन्दी स्पेलचेकर प्रोग्रामों में भी कहीँ, वहीँ आदे के बदले कहीं, वहीं आदि को ही सही मान लिया गया है।

यदि आप चन्द्राकार जैसे दिखनेवाले U0945 vowel sign chandra e पर अनुस्वार जोड़कर भी चन्द्रबिन्दु बनाने की व्यवस्था करें तो भी यह प्रोसेसिंग/सार्टिंग में समस्या खड़ी करेगा।

अतः स्वतंत्र चन्द्रबिन्दु (U0901) को ही टाइप करने की व्यवस्था करें। Control+अनुस्वार या डबल अनुस्वार टाइप करके इसे चन्द्रबिन्दु में बदलकर प्रकट करने की व्यवस्था कर सकते हैं।


- हरिराम

On 29-11-2011 07:37, ePandit | ई-पण्डित wrote:

ePandit | ई-पण्डित

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Nov 29, 2011, 12:30:23 PM11/29/11
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ऊपर लगने वाली मात्राओं (ो, ौ, े, ै, ि, ी आदि) के ऊपर चन्द्रबिन्दु न लगाने वाला मामला एक बार अरविन्द कुमार जी (समान्तर कोश के रचयिता) ने भी उठाया था। दरअसल हम सब बचपन से ही वहीं, नहीं जैसे रूप देखते आये हैं इसलिये वहीँ, नहीँ आदि अधिकतर लोग उल्टा गलत समझ लेते हैं। एक बार जो परम्परा चल जाय उसे बदलना बड़ा मुश्किल होता है।


अब युनिकोड में विशेषकर मंगल फोंट में ऊपर लगनेवाली मात्राओं युक्त वर्णों पर भी चन्द्रबिन्दू लगाने व्यवस्था उपलब्ध हो जाने के बाद भी

सभी यूनिकोड फॉण्टों में ऊपर की मात्राओं पर चन्द्रबिन्दु लगाया जा सकता है, हाँ कुछ में यह ऊपर की मात्रा के साथ ओवरलैप हुआ दिख सकता है पर उससे कम्प्यूटिंग में कोई समस्या नहीं बस प्रिंट में अच्छा नहीं दिखेगा।


यदि आप चन्द्राकार जैसे दिखनेवाले U0945 vowel sign chandra e पर अनुस्वार जोड़कर भी चन्द्रबिन्दु बनाने की व्यवस्था करें तो भी यह प्रोसेसिंग/सार्टिंग में समस्या खड़ी करेगा। अतः स्वतंत्र चन्द्रबिन्दु (U0901) को ही टाइप करने की व्यवस्था करें। Control+अनुस्वार या डबल अनुस्वार टाइप करके इसे चन्द्रबिन्दु में बदलकर प्रकट करने की व्यवस्था कर सकते हैं।

दरअसल यह नहीं होता कि chandra e के ऊपर अनुस्वार जु़ड़ कर चन्द्रबिन्दु बनता हो, केवल वह key सीक्वेंस फॉलो किया जाता है। मैं समझाने की कोशिश करता हूँ।

ॅ वाली की (w) की दबने पर IME टाइप करता है ॅ तथा अपनी मेमोरी में दर्ज कर लेता है कि अन्तिम बार यह की दबायी गयी थी।

इसके बाद अनुस्वार वाली की (a) दबने पर IME देखता है कि क्या अन्तिम बार दबायी गयी की w थी तो वह पहले टाइप किये गये चिह्न ॅ को मिटाकर उसकी जगह नया स्वतन्त्र चिह्न ँ टाइप कर देता है। इसी प्रकार की कई करैक्शन अल्गोरिथ्म होती हैं। तो चाहे तो ॅ के बाद अनुस्वार दबने पर चन्द्रबिन्दु की व्यवस्था की जाय या दो बार अनुस्वार वाली की दबने से, कोई अन्तर नहीं पड़ता।

अब Indic IME के साथ समस्या यह है कि यह केवल ॅ के बाद बिन्दी दबने पर तो उस पर यह करैक्शन अल्गोरिथ्म लगा देता है लेकिन यदि ा (या शायद कुछ और मात्राओं के बाद भी) के बाद क्रमशः ॅ तथा बिन्दी दबायी जाय तो यह अल्गोरिथ्म काम नहीं करता। मेरे अपने टूल के अनुभव से लगता है कि यह अन्तिम की में ॅ की बजाय ाॅ रिकॉर्ड कर रहा है जिससे कि लॉजिक काम नहीं कर रहा। जैसे कि आनन्द जी ने सुझाव दिया कि पहले स्पेस फिर बैकस्पेस दबाया जाय तो हो जायेगा, उसका कारण है कि स्पेस दबाने पर मेमोरी में अन्तिम रिकॉ़र्ड की गयी की रीसैट हो जाती है तथा फिर क्रमशः ॅ एवं बिन्दी दबने पर अल्गोरिथ्म काम करता है। अपने टूल के अनुभव से मुझे यही कारण लगता है बाकी क्या पता Indic IME का क्या लॉजिक हो।

वैसे रेमिंगटन की कमियों (हिन्दी व्याकरण और यूनिकोड के अनुकूल क्रम न होना तथा कई चिह्नों की अनुपलब्धता) के कारण मैंने अपने टूल में केवल इन्स्क्रिप्ट लेआउट ही रखा। रेमिंगटन के लिये औजार बनाने के लिये उस लेआउट की पूरी जानकारी भी चाहिये और मेहनत/कोडिंग/झंझट भी बहुत गुणा बढ़ जाता है।


२९ नवम्बर २०११ ९:०२ अपराह्न को, Hariraam <hari...@gmail.com> ने लिखा:
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