To: Abhishek Avtans <
abhia...@gmail.com>
अभिषेक जी, नमस्कार!
सुखद! आपने याद किया।
आपने कुछ सज्जनों के विचार भी भेजे हैं। अच्छा लगा देखकर।
कुछ लोग भारतकोश की आत्मा को अंग्रेज़ी का बता रहे हैं उनके विचार भी सदैव स्वागत योग्य ही रहेंगे मेरे लिए।
कारण कि मुझे कमियाँ निकालने वालों की सख़्त ज़रूरत रहती है इससे अपने सृजन को और अधिक सुधारने में सहायता मिलती है।
पहले मैंने सोचा कि "निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय" कहावत लिख दूँ लेकिन फिर सोचा कि कहीं
किसी ने "नियरे" को अंग्रेज़ी का "Near" समझ लिया तो भारतकोश की आत्मा के साथ-साथ मेरी आत्मा को भी अंग्रेज़ी से
ओत-प्रोत समझ लिया जायेगा।
...बात ये है कि अट्ठारह सौ सत्तावन के स्वतंत्रता संग्राम में मेरे परम पितामह को अंग्रेज़ों ने फांसी दी
थी। मेरे पिता जी की जवानी भी अंग्रेज़ो की दी हुई जेल यातनाओं को भुगतते हुए गुज़री। अब बताइये कि मुझे कैसा लगा होगा
यह जानकर कि भारतकोश को कोई अग्रेज़ी आत्मा वाला बताये? मुझे हँसी ही आई...
भारतकोश पर उपलब्ध गंभीर विषयों की अधिकतर सामग्री अनेक विद्वानों द्वारा लिखे गये ग्रंथों से ली जाती है।
उदाहरण के लिए "भारत रत्न सम्मानित वामन काणे जी"।
ख़ैर ज़्यादा क्या लिखूँ भारतकोश तो आप सभी का अपना है ही... इसे आपको ही आगे बढ़ाना है
और आप निश्चिंत रहें धीरे-धीरे सभी भारत प्रेमी भारतकोश से जुड़ जाएँगे...
एक बात और कि हम तो जाट हैं, किसान आदमी हैं, हम क्या जानें हिन्दी और विद्वता की बातें... किसान का बेटा या तो फ़ौज में या खेत में...
यदि "विद्वानों" को लगता है कि भारतकोश में कुछ कमियाँ हैं तो उनको भारतकोश पर कार्य करना चाहिए रोका किसने ?
रही बात विकिपीडिया की तो इस वर्ष का उनका बजट 75 करोड़ रुपये है और हमारी रामकहानी का तो आप अंदाज़ा लगा ही सकते हैं...
धन्यवाद सहित