प्राचीनकाल की सेना-टुकड़ियों के लिए तकनीकी शब्द

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narayan prasad

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Oct 24, 2012, 12:36:42 PM10/24/12
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
चतुरंगिनी सेना के लिए प्रयुक्त 'अक्षौहिणी' शब्द से आप सभी लोग परिचित होंगे । इसमें 21870 हाथी, 21870 रथ, 65610 अश्व और 109350 पैदल होते थे । परन्तु चतुरंगिनी सेना के लिए अन्य प्रयुक्त छोटी इकाइयों का उल्लेख साधारणतः मिलता नहीं । यद्यपि इन सभी इकाइयों का उल्लेख पृथक्-पृथक् शब्दों के रूप में वामन आप्टे आदि के संस्कृत कोशों में मिलते हैं, परन्तु एकत्र सामान्यतः नहीं । निम्नलिखित पद्य मुझे बारहवीं शताब्दी के कन्नड कवि नागवर्मा प्रथम के वस्तुकोश में मिला ।

ऒंदुसामजमॊंदुतेर् मूऱश्वमय्दुकालाळ्गळुं पत्तियक्कुं ।
संद पत्ति मूऱागॆ सेनामुखं मूऱऱिं गुल्मं मूऱुगुल्म ॥
क्कॊंदुगणमवु मूऱु वाहिनि तत्रयं पृतनाख्यॆ पृतनॆगळ् मू ।
ऱॊंदितोऱॆ चमु मूऱुमनीकिनि पत्तनीकिनियक्षौहिणियॆनिक्कुं ॥ 327 ॥

इसके अनुसार -
पत्ति = सेना का सबसे छोटा दस्ता जिसमें 1 हाथी, 1 रथ, 3 अश्व और 5 पैदल होते थे ।
सेनामुख = 3 पत्ति
गुल्म = 3 सेनामुख
गण = 3 गुल्म
वाहिनी = 3 गण
पृतना = 3 वाहिनी
चमू = 3 पृतना
अनीकिनी = 3 चमू
अक्षौहिणी = 10 अनीकिनी

--- नारायण प्रसाद

(Dr.) Kavita Vachaknavee

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Oct 24, 2012, 12:54:52 PM10/24/12
to technic...@googlegroups.com
बहुत महत्वपूर्ण व रोचक जानकारी।

आभार आपका।

Madhusudan H Jhaveri

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Oct 24, 2012, 10:51:38 PM10/24/12
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निम्न जानकारी विकीपिडिया से मिली।

चतुरंगिणी - प्राचीन भारतीय संगठित सेना। सेना के चार अंग- हस्ती, अश्व, रथ, पदाति माने जाते हैं और जिस सेना में ये चारों हैं, वह चतुरंगिणी कहलाती है। चतुरंगबल शब्द भी इतिहासपुराणों में मिलता है। इस विषय में सामान्य नियम यह है कि प्रत्येक रथ के साथ १० गज, प्रत्येक गज के साथ १० अश्व, प्रत्येक अश्व के साथ १० पदाति रक्षक के रूप में रहते थे, इस प्रकार सेना प्राय: चतुरंगिणी ही होती थी।

सेना की सबसे छोटी टुकड़ी (इकाई) 'पत्ति' कहलाती है, जिसमें एक गज, एक रथ, तीन अश्व, पाँच पदाति होते थे। ऐसी तीन पत्तियाँ सेनामुख कहलाती थीं। इस प्रकार तीन तीन गुना कर यथाक्रम गुल्म, गण, वाहिनी, पृतना, चमू और अनीकिनी का संगठन किया जाता था। १० अनीकिनी एक अक्षौहिणी के बराबर होती थी। तदनुसार एक अक्षौहिणी में २१८७० गज, २१९७० रथ, ६५६१० अश्व और १०९३५० पदाति होते थे। कुल योग २१८७०० होता था। कहते हैं, कुरुक्षेत्र के युद्ध में ऐसी १८ अक्षौहिणी सेना लड़ी थी। अक्षौहिणी का यह परिमाण महाभारत (आदि पर्व २/१९-२७) में उल्लिखित है। महाभारत में (उद्योग पर्व १५५/२४-२६) में सेना परिमाण की जो गणना है, उससे इस गणना में कुछ विलक्षणता है। शांतिपर्व ५९/४१-४२ में 'अष्टांग सेना' का उल्लेख है, उसमें भी प्रथम चार यही चतुरंगिणी सेना है।




From: "ken" <drk...@gmail.com>
To: technic...@googlegroups.com
Sent: Wednesday, October 24, 2012 3:21:26 PM
Subject: [technical-hindi] Re: प्राचीनकाल की सेना-टुकड़ियों के लिए तकनीकी शब्द

Mr.prasa'd,

Here are some links related to topic.

http://en.wikipedia.org/wiki/Kurukshetra_War


On Wednesday, October 24, 2012 11:36:43 AM UTC-5, Narayan Prasad wrote:
चतुरंगिनी सेना के लिए प्रयुक्त 'अक्षौहिणी' शब्द से आप सभी लोग परिचित होंगे । इसमें 21870 हाथी, 21870 रथ, 65610 अश्व और 109350 पैदल होते थे । परन्तु चतुरंगिनी सेना के लिए अन्य प्रयुक्त छोटी इकाइयों का उल्लेख साधारणतः मिलता नहीं । यद्यपि इन सभी इकाइयों का उल्लेख पृथक्-पृथक् शब्दों के रूप में वामन आप्टे आदि के संस्कृत कोशों में मिलते हैं, परन्तु एकत्र सामान्यतः नहीं । निम्नलिखित पद्य मुझे बारहवीं शताब्दी के कन्नड कवि नागवर्मा प्रथम के वस्तुकोश में मिला ।

ऒंदुसामजमॊंदुतेर् मूऱश्वमय्दुकालाळ्गळुं पत्तियक्कुं ।
संद पत्ति मूऱागॆ सेनामुखं मूऱऱिं गुल्मं मूऱुगुल्म ॥
क्कॊंदुगणमवु मूऱु वाहिनि तत्रयं पृतनाख्यॆ पृतनॆगळ् मू ।
ऱॊंदितोऱॆ चमु मूऱुमनीकिनि पत्तनीकिनियक्षौहिणियॆनिक्कुं ॥ 327 ॥


इसके अनुसार -
पत्ति = सेना का सबसे छोटा दस्ता जिसमें 1 हाथी, 1 रथ, 3 अश्व और 5 पैदल होते थे ।
सेनामुख = 3 पत्ति
गुल्म = 3 सेनामुख
गण = 3 गुल्म
वाहिनी = 3 गण
पृतना = 3 वाहिनी
चमू = 3 पृतना
अनीकिनी = 3 चमू
अक्षौहिणी = 10 अनीकिनी

--- नारायण प्रसाद

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narayan prasad

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Oct 25, 2012, 4:08:32 AM10/25/12
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इस कड़ी के लिए धन्यवाद । महाभारत मैंने बहुत पहले पढ़ा था । मुझे ऐसा लगता था कि कहीं तो विस्तृत सूचना देखी थी । परन्तु, सन्दर्भ याद नहीं आ रहा था ।

--- नारायण प्रसाद

2012/10/25 Madhusudan H Jhaveri <mjha...@umassd.edu>

Yashwant Gehlot

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Oct 26, 2012, 2:44:01 AM10/26/12
to technic...@googlegroups.com
अभी डिक्शनरी में कुछ और खोज रहा था, तभी एक शब्द दिखा- 'चंडावल' यानी
सेना में पीछे रहने वाली टुकड़ी. एक मिलता-जुलता शब्द और मिला- 'हरावल'
यानी सेना में सबसे आगे रहने वाली टुकड़ी.

लेकिन संभवतः ये प्राचीनकाल के शब्द नहीं है, मध्यकाल (राजपूतयुगीन) के हैं.

यशवंत

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Yashwant Gehlot

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