युक्ताक्षर सम्बन्धी प्रश्नावली पर कृपया अपना मत दे

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narayan prasad

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Jul 5, 2010, 8:09:12 PM7/5/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी में युक्ताक्षर सम्बन्धी प्रश्नावली पर कृपया अपना मत दे । सर्वे की कड़ी यह है -
http://www.kwiksurveys.com/online-survey.php?surveyID=KLOMGJ_db5ac9f0

अभी तक केवल 9 लोग ही अपना मतदान किए हैं । लोगों से निवेदन है कि अधिक से अधिक लोग इस सर्वे में हिस्सा लें ।

धन्यवाद ।

---नारायण प्रसाद

Narayan Prasad

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Jul 8, 2010, 1:29:26 PM7/8/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
प्रतीत होता है कि इस सर्वे के बारे में यथेष्ट रूप से प्रचार नहीं हो
पाया, क्योंकि अभी तक केवल 18 लोगों ने ही अपना मतदान किया है । अभी तक
के परिणाम से यह पता चलता है कि करीब 64% से 83% लोग पारम्परिक
युक्ताक्षर ही पसन्द करते हैं ।
--- नारायण प्रसाद

On Jul 6, 5:09 am, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी में युक्ताक्षर

> सम्बन्धी प्रश्नावली पर कृपया अपना मत दे । सर्वे की कड़ी यह है -http://www.kwiksurveys.com/online-survey.php?surveyID=KLOMGJ_db5ac9f0

narayan prasad

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Jul 10, 2010, 8:19:06 AM7/10/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
अब तक कुल 22 लोग मतदान कर चुके हैं । परिणाम इस प्रकार है -
(1) आप द्व पसंद करते हैं , या द्‍व ? --- द्व 81%
(2) आप द्य पसंद करते हैं , या द्‍य ? --- द्य 82%
(3) आप द्ध पसंद करते हैं , या द्‍ध ? --- द्य 86%
(4) आप द्घ पसंद करते हैं , या द्‍घ ? --- द्घ 67%
(5) आप त्त पसंद करते हैं , या त्‍त ? --- त्त 82%
(6) आप ह्न पसंद करते हैं , या ह्‍न ? --- ह्न 71%
(7) आप ह्म पसंद करते हैं , या ह्‍म ? --- ह्म 78%


Hariram

unread,
Jul 11, 2010, 7:14:47 AM7/11/10
to technic...@googlegroups.com
संयुक्ताक्षरों के अति प्रयोग से आम जनता भ्रमित होती है।
 
-- लोग ज्ञ को ग्य कहते हैं। क्ष को ख्य कहते हैं, जो गलत है।
-- लोग द्घ (द+घ) और द्ध (द+ध) मे अन्तर नहीं कर पाते, गलती से कुछ लोग द्ध को ध्द लिखते हैं।
-- कुछ लोग गलती से द्व को व्द लिखते हैं।
-- ह्न (के दूसरे संयुक्त रूप ह के नीचे न) से ह्र का भ्रम होता है।
-- स्न (के दूसरे संयुक्त रूप स के नीचे न) से स्र का भ्रम होता है।
 
अतः संयुक्ताक्षरों का अति प्रयोग आम भोली भाली जनता में अशुद्धता बढ़ाता है। विशेषकर देवनागरी में ऊपर से नीचे वर्णों को जोड़कर संयुक्ताक्षर बनाने की परम्परा कम्प्यूटर के जमाने में अति जटिल है और इसका प्रयोग अवैध किया जाना चाहिए। सिर्फ बायें से दायें वर्णों को जोड़कर संयक्ताक्षर बनाने की रीति को ही मानकीकृत किया जाना चाहिए।
 
-- हरिराम


 
2010/7/10 narayan prasad <hin...@gmail.com>



--
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हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>
(वे पर्यावरण-प्रेमी चुल्लू भर पानी में डूब मरें, जो कूड़ा-करकट जलाकर बिजली बनाकर कूड़े का सदुपयोग करनेवाले संयंत्रों का तो विरोध करते हैं, किन्तु सड़कों के किनारे, बाजारों-बस्तियों के बीच यत्र-तत्र-सर्वत्र ढेर लगाकर कूड़ा करकट जलाकर भारी प्रदूषण एवं बीमारियाँ फैलानेवाले लोगों तथा नगरपालिका के कर्मचारियों का विरोध नहीं करते।)

narayan prasad

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Jul 15, 2010, 3:05:21 AM7/15/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
अब तक (15-7-2010 12:30) कुल 81 लोग मतदान कर चुके हैं । परिणाम इस प्रकार है -
 
(1) आप द्व पसंद करते हैं , या द्‍व ? --- द्व 86%
 
(2) आप द्य पसंद करते हैं , या द्‍य ? --- द्य 89%
 
(3) आप द्ध पसंद करते हैं , या द्‍ध ? --- द्ध 87%
 
(4) आप द्घ पसंद करते हैं , या द्‍घ ? --- द्घ 78%
 
(5) आप त्त पसंद करते हैं , या त्‍त ? --- त्त 75%
 
(6) आप ह्न पसंद करते हैं , या ह्‍न ? --- ह्न 74%
 

(7) आप ह्म पसंद करते हैं , या ह्‍म ? --- ह्म 80%


narayan prasad

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Jul 20, 2010, 6:32:22 AM7/20/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
अब तक (20-7-2010 16:00) कुल 90 लोग मतदान कर चुके हैं । परिणाम इस प्रकार है -
 
(1) आप द्व पसंद करते हैं , या द्‍व ? --- द्व 85%
 
(2) आप द्य पसंद करते हैं , या द्‍य ? --- द्य 89%
 
(3) आप द्ध पसंद करते हैं , या द्‍ध ? --- द्ध 85%
 
(4) आप द्घ पसंद करते हैं , या द्‍घ ? --- द्घ 78%
 
(5) आप त्त पसंद करते हैं , या त्‍त ? --- त्त 76%
 
(6) आप ह्न पसंद करते हैं , या ह्‍न ? --- ह्न 74%
 
(7) आप ह्म पसंद करते हैं , या ह्‍म ? --- ह्म 81%

narayan prasad

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Jul 27, 2010, 4:54:28 AM7/27/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
अब तक (27-7-2010 14:20) कुल 94 लोग मतदान कर चुके हैं । सौ पूरा करने के लिए अब केवल छह लोगों के मतदान की आवश्यकता है । इस समूह के जो सदस्य अभी तक मतदान नहीं कर पाए हैं, उनसे मतदान करने के लिए निवेदन किया जाता है ।

narayan prasad

unread,
Aug 4, 2010, 1:19:46 AM8/4/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
अब तक (04-8-2010 10:50) कुल 97 लोग मतदान कर चुके हैं । सौ पूरा करने के लिए अब केवल तीन लोगों के मतदान की आवश्यकता है ।

vinodji sharma

unread,
Aug 4, 2010, 2:26:14 AM8/4/10
to technic...@googlegroups.com
आदरणीय नारायणजी, मैं समझ ही नहीं पाया कि मतदान किस प्रकार करना है तथा कहाँ करना है?

2010/7/15 narayan prasad <hin...@gmail.com>

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सादर शुभकामनाओं सहित,
विनोद कुमार शर्मा
9413394205
01412247205

vinodji sharma

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Aug 4, 2010, 2:34:46 AM8/4/10
to technic...@googlegroups.com
मेरा मत यह है कि युक्ताक्षर, जैसे द्व, द्य, द्ध, द्घ, त्त, ह्न आदि का स्वरूप ही हिन्दी भाषा के लिये उपयुक्त है। हलन्त के साथ युक्ताक्षर को दो अक्षरों में तोड़ कर लिखने से भाषा की सुंदरता का तो लोप होगा ही, साथ ही पाठक के लिये पढ़ते समय असुविधाजनक भी होगा।

2010/8/3 vinodji sharma <vinodj...@gmail.com>

narayan prasad

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Aug 4, 2010, 2:56:00 AM8/4/10
to technic...@googlegroups.com
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी में युक्ताक्षर सम्बन्धी प्रश्नावली पर कृपया अपना मत दे । सर्वे की कड़ी यह है -
http://www.kwiksurveys.com/online-survey.php?surveyID=KLOMGJ_db5ac9f0

2010/8/4 vinodji sharma <vinodj...@gmail.com>

Hariram

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Aug 4, 2010, 9:17:36 AM8/4/10
to technic...@googlegroups.com
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी यदि ऑनलाइन उपलब्ध है किसी वेबसाइट पर, तो कृपया उसकी कड़ी भी दें।
 

 
2010/8/4 narayan prasad <hin...@gmail.com>

Suyash Suprabh (सुयश सुप्रभ)

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Aug 4, 2010, 9:34:48 AM8/4/10
to technic...@googlegroups.com
अभी मानक वर्तनी के सारे नियम इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं हैं। कुछ नियम आप यहाँ देख सकते हैं :


कुछ दिनों (अगर सरकारी गति से काम हुआ तो महीनों या सालों!) में ये नियम निम्नलिखित लिंक पर उपलब्ध होंगे :


सादर,

सुयश
9811711884

2010/8/4 Hariram <hari...@gmail.com>
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी यदि ऑनलाइन उपलब्ध है किसी वेबसाइट पर, तो कृपया उसकी कड़ी भी दें।
 

 
2010/8/4 narayan prasad <hin...@gmail.com>
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी में युक्ताक्षर सम्बन्धी प्रश्नावली पर कृपया अपना मत दे । सर्वे की कड़ी यह है -
http://www.kwiksurveys.com/online-survey.php?surveyID=KLOMGJ_db5ac9f0

2010/8/4 vinodji sharma <vinodj...@gmail.com>

आदरणीय नारायणजी, मैं समझ ही नहीं पाया कि मतदान किस प्रकार करना है तथा कहाँ करना है?

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Suyash Suprabh
Freelance Translator, Proofreader & Editor
Hindi, English, German & Italian

E-mail: translate...@gmail.com
            suyash....@gmail.com

Blog: (in Hindi) http://anuvaadkiduniya.blogspot.com

Profile: http://www.proz.com/translator/76675

narayan prasad

unread,
Aug 6, 2010, 7:23:27 AM8/6/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
अब तक (06-8-2010 16:50) कुल 99 लोग मतदान कर चुके हैं । सौ पूरा करने के लिए अब केवल एक मतदान की आवश्यकता है । इसके बाद परिणाम घोषित कर दिया जाएगा ।
 

V S Rawat

unread,
Aug 6, 2010, 8:32:29 AM8/6/10
to technic...@googlegroups.com
On 8/6/2010 4:53 PM India Time, _narayan prasad_ wrote:

> अब तक (06-8-2010 16:50) कुल 99 लोग मतदान कर चुके हैं । सौ पूरा करने के लिए अब
> केवल एक मतदान की आवश्यकता है । इसके बाद परिणाम घोषित कर दिया जाएगा ।

मैं उस साइट पर जाता हूँ तो मुझे दोनों शब्द एक ही दिखते हैं। आई में भी, फ़ायरफ़ॉक्स में
भी। इसलिए मैं विकल्पों को चुन नहीं पा रहा हूँ। आश्चर्य होता है कि 99 लोगों को वह
सही दिखा तो मुझे क्यों नहीं दिखता।

रावत

Hariram

unread,
Aug 6, 2010, 9:05:16 AM8/6/10
to technic...@googlegroups.com
रावत जी,
 
मंगल फोंट में अधिकांशतः कुछ संयुक्ताक्षरों के दोनों रूप एक जैसे ही दिखते हैं।
कृपया अपने ब्राऊजर का डिफाल्ट हिन्दी फोंट कुछ अन्य सेट करके देखिए।
 
-- हरिराम

2010/8/6 V S Rawat <vsr...@gmail.com>

narayan prasad

unread,
Aug 6, 2010, 9:10:19 AM8/6/10
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
अब तक (06-08-2010 18:25) कुल 100 लोग मतदान कर चुके हैं । परिणाम इस प्रकार है -

 
(1) आप द्व पसंद करते हैं, या द्‍व ? --- द्व 85%
    (83 लोग द्व के पक्ष में, 15 लोग द्‍व के पक्ष में)
 
(2) आप द्य पसंद करते हैं, या द्‍य ? --- द्य 88%
    (87 लोग द्य के पक्ष में, 12 लोग द्‍य के पक्ष में)

(3) आप द्ध पसंद करते हैं, या द्‍ध ? --- द्ध 84%
    (80 लोग द्ध के पक्ष में, 15 लोग द्‍ध के पक्ष में)

(4) आप द्घ पसंद करते हैं, या द्‍घ ? --- द्घ 76%
    (68 लोग द्घ के पक्ष में, 21 लोग द्‍घ के पक्ष में)

(5) आप त्त पसंद करते हैं, या त्‍त ? --- त्त 74%
    (74 लोग त्त के पक्ष में, 26 लोग त्‍त के पक्ष में)
 
(6) आप ह्न पसंद करते हैं, या ह्‍न ? --- ह्न 72%
    (70 लोग ह्न के पक्ष में, 27 लोग ह्‍न के पक्ष में)
 
(7) आप ह्म पसंद करते हैं, या ह्‍म ? --- ह्म 77%
    (73 लोग ह्म के पक्ष में, 22 लोग ह्‍म के पक्ष में)

सभी मतदाताओं को बहुत-बहुत धन्यवाद ।

Ravishankar Shrivastava

unread,
Aug 6, 2010, 1:25:04 PM8/6/10
to technic...@googlegroups.com
इनके अलग अलग संस्करणों में, अलग-2 ऑपरेटिंग सिस्टम में अलग-2 तरह की हिंदी प्रदर्शन में
समस्याएँ हैं. अब एक बार ऑपेरा ब्राउजर आजमा कर देखें.

सादर,
रवि
>
> रावत
>

ePandit | ई-पण्डित

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Aug 9, 2010, 8:12:59 AM8/9/10
to technic...@googlegroups.com
संयुक्ताक्षर का नाम जी जब संयुक्ताक्षर है तो वे सुन्दर जुड़े हुये रुप में ही लगेंगे। मानकीकरण के नाम पर जो इन्हें तोड़ कर लिखने का तरीका है वह भद्दा लगता है, इसके पक्ष में लोग तर्क देते हैं कि संयुक्ताक्षर नये लोगों खासकर बच्चों के लिये जटिल हैं, समझ नहीं आते। कुछ संयुक्ताक्षरों जैसे ह् से जुड़ने वाले, ह्म (ह्+म), ङ् के साथ जुड़ने वाले (जैसे गङ्गा, मंगल फॉण्ट इसे बाइ डिफॉल्ट अलग ही दिखाता है) आदि के साथ तो यह बात सही हो सकती है लेकिन द्य जो कि एक अलग वर्ण है उसे द् य की तरह लिखना तो पूरी तरह गलता है साथ ही द्व, द्ध आदि तो आसानी से समझ आने वाले हैं।

कुल मिलाकर यदि अलग भी लिखना हो तो केवल कुछ जटिल संयुक्ताक्षरों को ही लिखना चाहिये वो भी केवल बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में।

६ अगस्त २०१० १०:५५ अपराह्न को, Ravishankar Shrivastava <ravir...@gmail.com> ने लिखा:


रावत


--
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--
Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.

ePandit: http://epandit.shrish.in/

V S Rawat

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Aug 9, 2010, 8:36:58 AM8/9/10
to technic...@googlegroups.com
On 8/9/2010 5:42 PM India Time, _ePandit | ई-पण्डित_ wrote:

> संयुक्ताक्षर का नाम जी जब संयुक्ताक्षर है तो वे सुन्दर जुड़े हुये रुप में ही लगेंगे। मानकीकरण के
> नाम पर जो इन्हें तोड़ कर लिखने का तरीका है वह भद्दा लगता है, इसके पक्ष में लोग तर्क
> देते हैं कि संयुक्ताक्षर नये लोगों खासकर बच्चों के लिये जटिल हैं, समझ नहीं आते। कुछ
> संयुक्ताक्षरों जैसे ह् से जुड़ने वाले, ह्म (ह्+म), ङ् के साथ जुड़ने वाले (जैसे गङ्गा, मंगल फॉण्ट
> इसे बाइ डिफॉल्ट अलग ही दिखाता है) आदि के साथ तो यह बात सही हो सकती है लेकिन द्य
> जो कि एक अलग वर्ण है उसे द् य की तरह लिखना तो पूरी तरह गलता है साथ ही द्व, द्ध
> आदि तो आसानी से समझ आने वाले हैं।
>
> कुल मिलाकर यदि अलग भी लिखना हो तो केवल कुछ जटिल संयुक्ताक्षरों को ही लिखना चाहिये
> वो भी केवल बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में।

"बच्चों" की पाठ्यपुस्तकों में, को यदि "प्रारंभिक शिक्षार्थियों" की पाठ्यपुस्तकों में कह
दिया जाए तो यह व्यापक हो जाएगा, फिर चाहे प्रारंभिक शिक्षार्थी किसी भी आयु समूह
के हों।

समस्या मुद्रित या हस्तलिखित सामग्री की है। अन्यथा नेट पर प्रदर्शित सामग्री के लिए
तो बहुत ही सरल समाधान है कि दो फ़ॉण्ट हों, एक संयुक्ताक्षरों को अलग अलग कर के ही
दिखाए जिसको प्रारंभिक शिक्षार्थी डीफ़ॉल्ट बना कर उसमें सब कुछ देख कर सरलता से समझें
पढ़ें, और दूसरी फ़ॉण्ट संयु्क्ताक्षरों को मिश्रित करके, एक ही चिह्न बना कर दिखाए
जिसको ज्ञानी लोग डीफ़ॉल्ट बनाएँ और उसमें पढ़ें।

यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी
मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार से
दिखाते रहेंगे।

रावत

>
> ६ अगस्त २०१० १०:५५ अपराह्न को, Ravishankar Shrivastava

> <ravir...@gmail.com <mailto:ravir...@gmail.com>> ने लिखा:

narayan prasad

unread,
Aug 9, 2010, 8:56:38 AM8/9/10
to technic...@googlegroups.com
<<यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार से दिखाते रहेंगे।>>

तो इनका भी मानकीकरण करवाया जाना चाहिए । कम्प्यूटर प्रोग्राम या मशीनी कार्रवाई को आसान बनाने के लिए भाषा की लिपि को ही तोड़-मरोड़ देना तो उसी प्रकार की मूर्खता होगी जैसा कि पहले आ, इ, ई आदि स्वर को भी अकार पर स्वर की मात्रा चढ़ाकर दिखाने की सिफारिश की गई थी ताकि अंग्रेजी टाइपराइटर से कमती कुंजियों से ही काम चलाया जा सके । ऐसे लोगों को चीनी लोगों से सीखना चाहिए कि वे अपनी संस्कृति को बचाने के लिए कितना परिश्रम करते हैं ।

---नारायण प्रसाद 

2010/8/9 V S Rawat <vsr...@gmail.com>

Hariram

unread,
Aug 9, 2010, 10:14:48 AM8/9/10
to technic...@googlegroups.com
युनिकोड में CJK (चीनी, जापानी, कोरियन) अर्थात् तीन तीन राष्ट्रों की लिपियों को मिलाकर एक एनकोडिंग की गई है। जिसमें 25000 से अधिक मूल अक्षरों कूट-निर्धारण हुआ है।
 
लेकिन ये सभी एक एक पूर्णाक्षर हैं।
 
इसी की तर्ज पर एक अभियान चला था कि देवनागरी के भी संयुक्ताक्षरों एवं पूर्णाक्षरों की एनकोडिंग की जानी चाहिए। कुछ अन्तर्राष्ट्रीय फोंट-निर्माता कम्पनियों ने भी निःशुल्क ऐसे संयुक्ताक्षरों के फोंट बनाने के लिए भी इच्छा प्रकट की थी।
 
लेकिन दुःख की बात है कि अभी तक देवनागरी के कुल पूर्णाक्षरों की पूरी सूची देना तो दूर की बात, कुल पूर्णाक्षरों की संख्या तक कोई नहीं बता पाया है।
 
बन्धुगण,
 
संयुक्ताक्षरों का विकास कागज पर कलम/पेन्सिल से लिखने के क्रम में शीघ्र लिख पाने के उद्देश्य से क्रमशः होता गया। अब जब कम्प्यूटर और इण्टरनेट का जमाना है। SMS और संक्षिप्ति का जमाना चल रहा है। कम्प्यूटर सिमट कर मोबाइल फोन में (स्मार्ट फोन में) समाता जा रहा है। मोबाईल पर चलनेवाले लगभग 20000 प्रकार के सॉफ्टवेयर उपलब्ध हो गए हैं।
 
यह संगम काल है प्राचीन और अर्वाचीन का। अतः कुछ पुराने लोगों को संयुक्ताक्षर रूप में पूर्णाक्षर चाहिए, तो नव-तकनीकीविशेषज्ञों को मूल एनकोडिंग मात्र में ही काम करने का संक्षिप्त रूप चाहिए।
 
अतः एक ऐसे प्रोग्राम की आवश्यकता है जो एक क्लिक करते ही उस शब्द के वर्णों को निम्न रूपों में प्रदर्शित कर दे।
 
1. संयुक्ताक्षर/पूर्णाक्षर की प्रचलित रेण्डरिंग में
2. युनिकोड के मूल वर्णों में
3. युनिकोड हेक्स कोड में
4. UTF8 कूटों में
5. plain 8 bit ttf font में
6. 16 bit Open Type Fonts के glyphs कोड नं. में
7. पुराने प्रिंटरों के codepage में
8. IPA में
 
श्रीश जी और नारायण जी एवं विद्वानों से अनुरोध है कि वे निम्न प्रयोग करके देखें--
 
अपने कम्प्यूटर में विण्डोज का डिफाल्ट screen saver सेट करें -- 3D Text.
सेटिंग्स में प्रदर्शन के लिए "हिन्दी" शब्द टाइप करें। मंगल फोंट सेलेक्ट करें। फिर स्क्रीनसेवर रन करें।
 
देखिए "हिन्दी" के स्थान पर "ह ि न् द ी" प्रदर्शित होकर चक्कर खाता रहेगा।
 
विण्डोज का रेण्डरिंग इंजिन हर स्थान पर काम नहीं करता।
यही कारण है कि आज तक भी ADOBE CS4 आ जाने पर भी छपाई उद्योग Indic unicode का प्रयोग नहीं कर पा रहा है।
 
अतः युनिकोड के इतने प्रचलन के बावजूद भी आवश्यकता है कि भारत सरकारी या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समग्र विश्व में प्रयोग के लिए एक 8 bit देवनागरी TTF फोंट को चुनकर मानक रूप में घोषित किया जाए कि सभी उसी का प्रयोग करें। ताकि इतने सारे अमानकीकृत फोंट-कूट के बीच कनवर्टरों को विकास करते करते हमारा बहुमूल्य जीवन ही न बीत जाए।
 
देवनागरी के दोहरे मानकों (कूट रूप में खाने के दाँत और संयुक्ताक्षर/पूर्णाक्षर रूप में दिखाने के दाँत और) की इस गम्भीर समस्या को सुधारने के लिए हमें देवनागरी के क्रमविकास के मूल में जाना होगा।
 

 
2010/8/9 narayan prasad <hin...@gmail.com>

<<यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार से दिखाते रहेंगे।>>

तो इनका भी मानकीकरण करवाया जाना चाहिए । कम्प्यूटर प्रोग्राम या मशीनी कार्रवाई को आसान बनाने के लिए भाषा की लिपि को ही तोड़-मरोड़ देना तो उसी प्रकार की मूर्खता होगी
 
 
देवनागरी लिपि के वर्ण कालक्रम में टूटते-फूटते-जुड़ते हुए वर्तमान रूप में पहुँचे हैं। मूल रूप में कई वर्ण कुछ अलग ही थे। भाषा/लिपि में आए विकार को भी विकास ही माना जाता है। अतः यदि विकास के लिए कुछ वर्णों में कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो हमें उस परिवर्तन को सर्वसम्मति से सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। रूढ़ बने रहने से हम आज के प्रगत विश्व में पिछड़े ही रह जाएँगे।
 
वैसे भी तकनीकी रूप से भारतीय भाषाएँ बहुत ही पिछड़ी हुई हैं। अनेक प्रकार की Advanced text processing, Regular Expressions, Wild card आदि भारतीय लिपियों काम नहीं करते।
 
 
जैसा कि पहले आ, इ, ई आदि स्वर को भी अकार पर स्वर की मात्रा चढ़ाकर दिखाने की सिफारिश की गई थी ताकि अंग्रेजी टाइपराइटर से कमती कुंजियों से ही काम चलाया जा सके । ऐसे लोगों को चीनी लोगों से सीखना चाहिए कि वे अपनी संस्कृति को बचाने के लिए कितना परिश्रम करते हैं ।

---नारायण प्रसाद 

 
संयुक्ताक्षरों का प्रचलन पुराने जमाने में ऊपर से नीचे के क्रम में अधिक होता था।
जैसे कि 'स' के नीचे 'न' लगाकर 'स्न' बनाया जाता था। 'स' के नीचे 'त' लगाकर 'स्त' बनाया जाता था। अतः कई पुराने संस्कृत विद्वान उसी रूप में आज भी संयुक्ताक्षर चाहते हैं।
 
फिर टाइपराइटर का जमाना आने के बाद संयुक्ताक्षर खड़ी पाई को हटाकर बायें से दायें के क्रम में दो वर्णों को जोड़ कर बनाए जाने लगे। 'स' की खड़ी पाई को हटाकर 'त' जोड़ कर 'स्त' और 'स' की खड़ी पाई को हटाकर 'न' जोड़ कर 'स्न'।
 
आज सभी विद्वान बायें से दायें के क्रम में बने ऐसे संयुक्ताक्षरों को तो पसन्द करने लगे हैं। किसी को भी कोई विरोध नहीं है।
 
लेकिन खड़ी पाई रहित या आधा वर्ण रहित वर्णों -  ङ, छ, ट, ठ, ड, ढ, द, र से बनने वाले संयुक्ताक्षरों के बारे में ही समस्या है। क (क्क), ह (ह्‍क), फ (फ्फ) का भी आधा अक्षर प्रचलित हो चुका है। यदि ऊपर लिखित 8 वर्णों के भी आधे अक्षरों (या मूल व्यंजन रूप) का निर्माण/विकास/प्रचलन हो जाए तो बायें से दायें क्रम में बननेवाले संयुक्ताक्षरों को सभी स्वीकार कर लेंगे।
 
किन्तु अधिकांश वर्णों के संयुक्ताक्षर बायें से दायें क्रम में स्वीकार कर लेना और सिर्फ द्व, द्ध, द्न, ह्न, ह्म इत्यादि के ऊपर से नीचे के क्रम (जो तकनीकी रूप से क्लिष्ट है) वाले संयुक्ताक्षर रूप को अधिक महत्व देना कुछ विद्वानों दोगली मनस्थिति का सूचक है।
 
यदि ऊपर से नीचे के क्रम के संयुक्ताक्षरों ही प्राथमिकता दी जाए तो पुराने sanskrit99 जैसे फोंट में 'ट' के नीचे 'ट' लिखकर 'ट्ट', 'ड' के नीचे 'ढ' लिखकर 'ड्ढ' बनाना आदि को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
 
इन रूपों पर भी एक सर्वेक्षण किया जाना चाहिए।
 
कृपया कोई विद्वान इसे "आक्षेप" न मानें। हम समस्या का समाधान निकालने के लिए मूल में जाकर तर्क करना आवश्यक है।
 
संस्कृत में पाँच पाँच वर्णों से मिलकर बना हुआ एक शब्द पाया जाता है "कार्त्स्न्या"।
 
यहाँ "र्+त्+स्+न्+य" पाँच वर्णों का एक संयुक्ताक्षर है। यदि ऊपर से नीचे के क्रम इस संयुक्ताक्षर का प्रयोग भी कुछ हस्तलिखित पोथियों में होगा। यदि आज कम्प्यूटर के युग में उसी रूप में इस संयुक्ताक्षर को लिया जाए तो देवनागरी फोंट के लिए इण्टर लाइन स्पेसिंग (Inter line spacing) 5 गुना रखनी होगी।
 
अतः बेहतर तो यही होगा कि हम  ङ, छ, ट, ठ, ड, ढ, द, र आदि खड़ी पाई रहित वर्णों के मूल व्यंजन रूपों (या आधे अक्षरों) का विकास करें ताकि देवनागरी तकनीकी रूप से सरल और सपाट बन सके। इसकी सारी जटिलताएँ मिट जाएँ और अन्य लिपियों से तेज दौड़कर अग्रणी हो। 'विश्वलिपि' बन जाए।
 
वैसे भी देवनागरी लिपि को NASA के वैज्ञानिक भी सबसे श्रेष्ठ 'ध्वनि विज्ञान की कसौटी पर कसी हुई' फोनेटिक लिपि प्रमाणित कर चुके हैं। इसके गुण स्वयं ही इसे आगे बढ़ाते रहे हैं।
 
 
प्राचीन रूप में संयुक्ताक्षरों के प्रयोग को भी नकारा नहीं जाना चाहिए। अभिलेखागार की आवश्यकताओं के मद्देनजर इनके लिए विशेष फोंट का निर्माण/प्रयोग किया जा सकता है।

V S Rawat

unread,
Aug 9, 2010, 12:26:23 PM8/9/10
to technic...@googlegroups.com
On 8/9/2010 6:26 PM India Time, _narayan prasad_ wrote:

> <<यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी
> मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार से
> दिखाते रहेंगे।>>
>
> तो इनका भी मानकीकरण करवाया जाना चाहिए । कम्प्यूटर प्रोग्राम या मशीनी कार्रवाई
> को आसान बनाने के लिए भाषा की लिपि को ही तोड़-मरोड़ देना तो उसी प्रकार की मूर्खता
> होगी जैसा कि पहले आ, इ, ई आदि स्वर को भी अकार पर स्वर की मात्रा चढ़ाकर दिखाने
> की सिफारिश की गई थी ताकि अंग्रेजी टाइपराइटर से कमती कुंजियों से ही काम चलाया जा
> सके । ऐसे लोगों को चीनी लोगों से सीखना चाहिए कि वे अपनी संस्कृति को बचाने के लिए
> कितना परिश्रम करते हैं ।

चीनी भाषा का आपने बहुत अच्छा उदाहरण दिया।

http://en.wikipedia.org/wiki/Chinese_character
The number of Chinese characters contained in the Kangxi dictionary is
approximately 47,035, although a large number of these are rarely used
variants accumulated throughout history.

अब सोचिए कि 47,035 अक्षरों को क्या किसी भी प्रकार से न सिर्फ़ कम्प्यूटर के लिए
बल्कि साधारण मुद्रण (प्रिंटिंग) के लिए, या बच्चों को सिखाने के लिए भी प्रयोग किया
जा सकता था? यदि एक बच्चा एक दिन में 10 अक्षर भी सीख पाता है तो उसे 4704 दिन
मतलब 12 साल लगते बिना किसी छुट्टी के।

इसलिए, उन्होंने एक सरलीकृत चीनी भाषा बनाई जिसमें सरलीकरण की अवस्था के अनुसार
अलग अलग चार्ट हैं जिनमें 350, 132+14, 1753 अक्षर हैं और दो परिशिष्टों में 39, 35
अक्षर हैं। ये भी बहुत अधिक हैं, परंतु उस 47 हज़ार की तुलना में 5 प्रतिशत हैं।

http://en.wikipedia.org/wiki/Simplified_Chinese_characters

एक तरफ़ आप चीनियों का उदाहरण देते हैं, दूसरी तरफ़ आप उनके द्वारा अपनाए गए
सरलीकरणों को हिन्दी में अपनाए जाने का विरोध करते हैं।

रावत


> ---नारायण प्रसाद
>

> 2010/8/9 V S Rawat <vsr...@gmail.com <mailto:vsr...@gmail.com>>


>
> "बच्चों" की पाठ्यपुस्तकों में, को यदि "प्रारंभिक शिक्षार्थियों" की पाठ्यपुस्तकों में कह
> दिया जाए तो यह व्यापक हो जाएगा, फिर चाहे प्रारंभिक शिक्षार्थी किसी भी आयु
> समूह के हों।
>
> समस्या मुद्रित या हस्तलिखित सामग्री की है। अन्यथा नेट पर प्रदर्शित सामग्री के
> लिए तो बहुत ही सरल समाधान है कि दो फ़ॉण्ट हों, एक संयुक्ताक्षरों को अलग अलग कर
> के ही दिखाए जिसको प्रारंभिक शिक्षार्थी डीफ़ॉल्ट बना कर उसमें सब कुछ देख कर
> सरलता से समझें पढ़ें, और दूसरी फ़ॉण्ट संयु्क्ताक्षरों को मिश्रित करके, एक ही चिह्न बना
> कर दिखाए जिसको ज्ञानी लोग डीफ़ॉल्ट बनाएँ और उसमें पढ़ें।
>
> यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी
> मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार
> से दिखाते रहेंगे।
>
> रावत
>
>

Anunad Singh

unread,
Aug 9, 2010, 11:41:43 PM8/9/10
to technic...@googlegroups.com
रावत जी,
चीनी लिपि को सरलीकृत किया गया है इसलिये देवनागरी को भी सरल करना चाहिये - ये तुलना कुछ वैसे ही है जैसे किसी दो सौ किलो  वाले मोटे आदमी को उपवास करते देखकर कोई चालीस किलो वाला भी उपवास करना चालू कर दे।

मैं देवनागरी में सरलीकरण का विरोध नहीं करता, किन्तु उसका कोई सुविचारित और तर्कसम्मत कारण  होना चाहिये।

-- अनुनाद

narayan prasad

unread,
Aug 10, 2010, 1:32:02 AM8/10/10
to technic...@googlegroups.com
<<एक तरफ़ आप चीनियों का उदाहरण देते हैं, दूसरी तरफ़ आप उनके द्वारा अपनाए गए सरलीकरणों को हिन्दी में अपनाए जाने का विरोध करते हैं।>>
 
देवनागरी में सरलीकरण की आवश्यकता ही नहीं है । क्ष, ज्ञ, द्य आदि इने-गिने युक्ताक्षर हैं जिसके बारे में बच्चों को या नवसिखुए को बताने की आवश्यकता होती है । शेष युक्ताक्षर बिलकुल स्पष्ट होते हैं । यदि  कुछ युक्ताक्षर स्पष्ट नहीं लगते तो ऐसे युक्ताक्षर प्रस्तुत करें ।
 
संयुक्त व्यंजन या तो बाएँ से दाएँ या ऊपर से नीचे के क्रम में लिखे जाते हैं । ऊपर से नीचे लिखने वाला क्रम आजकल बहुत ही कम प्रयोग में आता है ।
 
चीनी शब्दों का सरलीकरण सरकार या विद्वानों की देन नहीं है । सरकार की ओर से केवल यह किया गया कि आम शिक्षित चीनी जनता चीनी शब्दों को कैसे लिखती है उसी सरलीकृत रूप को भी मान्यता दे दी । उदाहरण के लिए येन (= नमक) शब्द पारम्परिक चीनी लिपि में कुल 24 लकीरों से ( ) लिखा जाता है, जबकि सरलीकृत चीनी लिपि में केवल 10 लकीरों द्वारा ( )। इस बात का खुलासा मुझे पेइचिंग (Beijing) के एक उच्चतर शिक्षा हेतु ऑक्सफोर्ड गए छात्र से बातचीत के दौरान हुआ ।

V S Rawat

unread,
Aug 10, 2010, 3:22:02 AM8/10/10
to technic...@googlegroups.com
On 8/10/2010 9:11 AM India Time, _Anunad Singh_ wrote:

> रावत जी,
> चीनी लिपि को सरलीकृत किया गया है इसलिये देवनागरी को भी सरल करना चाहिये - ये
> तुलना कुछ वैसे ही है जैसे किसी दो सौ किलो वाले मोटे आदमी को उपवास करते देखकर कोई
> चालीस किलो वाला भी उपवास करना चालू कर दे।

एक बार मैं अखबार में लिपोसक्शन (शरीर से चर्बी को मशीन से चूस कर निकाल देना) का
विज्ञापन पढ़ के उस चिकित्सालय पहुँच गया था। चिकित्सक ने मुझे भगा दिया। बोला कि
यह तकनीकी 150-200 किलो वाले लोगों के लिए है, मेरे जैसे 60 किलो वालों के लिए नहीं।
बोला कि थोड़ा व्यायाम किया करो, डाइट कंट्रोल करों, उससे हो जाएगा। अब यही तो
मैं नहीं कर पा रहा था।

>
> मैं देवनागरी में सरलीकरण का विरोध नहीं करता, किन्तु उसका कोई सुविचारित और तर्कसम्मत
> कारण होना चाहिये।

सुधार के क्षेत्र पहले तय कर लिए जाएँ तो "सुविचारित और तर्कसम्मत कारण" आप जैसे
अनुभवी लोग ही बता पाएँगे।

1. संयुक्ताक्षर हिन्दी को कठिन बना रहे हैं। यह पहला क्षेत्र है जहाँ सरलीकरण किया

जाना चाहिए।

2. छोटी ई की मात्रा का अक्षर के पहले आना, यहाँ तक की यदि वो अक्षर संयुक्ताक्षर
है, तो छोटी ई की मात्रा का उस पूरे संयुक्ताक्षर से पहले आना हिन्दी के लेखन और पठन में
व्यवधान डालता है, इसका भी कुछ किया जाना चाहिए।

3. आधे र को अगले अक्षर, उसकी मात्रा, उसके संयुक्ताक्षरों के बाद लिखना भी इसी
प्रकार का व्यवधान डालता है, इसका कुछ किया जाना चाहिए।

इत्यादि

>
> -- अनुनाद

--
रावत

V S Rawat

unread,
Aug 10, 2010, 3:27:02 AM8/10/10
to technic...@googlegroups.com
On 8/10/2010 11:02 AM India Time, _narayan prasad_ wrote:

> <<एक तरफ़ आप चीनियों का उदाहरण देते हैं, दूसरी तरफ़ आप उनके द्वारा अपनाए गए
> सरलीकरणों को हिन्दी में अपनाए जाने का विरोध करते हैं।>>
> देवनागरी में सरलीकरण की आवश्यकता ही नहीं है । क्ष, ज्ञ, द्य आदि इने-गिने युक्ताक्षर हैं
> जिसके बारे में बच्चों को या नवसिखुए को बताने की आवश्यकता होती है । शेष युक्ताक्षर
> बिलकुल स्पष्ट होते हैं । यदि कुछ युक्ताक्षर स्पष्ट नहीं लगते तो ऐसे युक्ताक्षर प्रस्तुत करें ।
> संयुक्त व्यंजन या तो बाएँ से दाएँ या ऊपर से नीचे के क्रम में लिखे जाते हैं । ऊपर से नीचे
> लिखने वाला क्रम आजकल बहुत ही कम प्रयोग में आता है ।
> चीनी शब्दों का सरलीकरण सरकार या विद्वानों की देन नहीं है । सरकार की ओर से केवल यह
> किया गया कि आम शिक्षित चीनी जनता चीनी शब्दों को कैसे लिखती है उसी सरलीकृत रूप को
> भी मान्यता दे दी । उदाहरण के लिए येन (= नमक) शब्द पारम्परिक चीनी लिपि में कुल 24
> लकीरों से ( 鹽 ) लिखा जाता है, जबकि सरलीकृत चीनी लिपि में केवल 10 लकीरों द्वारा (

> *盐* )। इस बात का खुलासा मुझे पेइचिंग (Beijing) के एक उच्चतर शिक्षा हेतु ऑक्सफोर्ड


> गए छात्र से बातचीत के दौरान हुआ ।

जी हाँ, दी गई लिंक
http://en.wikipedia.org/wiki/Simplified_Chinese_characters

पर "Method of simplification" में इस प्रकार के अनेकों तरीके दिए गए हैं, जिनमें
दिए हुए अक्षरों को देख कर हम चीनी भाषा न जानने वाले भी अकस्मात ही कह सकते हैं कि
कौन सा अक्षर सरल है।

उनका पूरा प्रयोजन भाषा को लिखना, पढ़ना समझना सरल करना था। हमको हिन्दी के
लिए भी इसी प्रयोजन पर काम करना है तभी हिन्दी सरल बनेगी।

> ---नारायण प्रसाद

रावत

>
> 2010/8/9 V S Rawat <vsr...@gmail.com <mailto:vsr...@gmail.com>>


>
> चीनी भाषा का आपने बहुत अच्छा उदाहरण दिया।
>
> http://en.wikipedia.org/wiki/Chinese_character
> The number of Chinese characters contained in the Kangxi
> dictionary is approximately 47,035, although a large number of
> these are rarely used variants accumulated throughout history.
>
> अब सोचिए कि 47,035 अक्षरों को क्या किसी भी प्रकार से न सिर्फ़ कम्प्यूटर के
> लिए बल्कि साधारण मुद्रण (प्रिंटिंग) के लिए, या बच्चों को सिखाने के लिए भी
> प्रयोग किया जा सकता था? यदि एक बच्चा एक दिन में 10 अक्षर भी सीख पाता
> है तो उसे 4704 दिन मतलब 12 साल लगते बिना किसी छुट्टी के।
>
> इसलिए, उन्होंने एक सरलीकृत चीनी भाषा बनाई जिसमें सरलीकरण की अवस्था के
> अनुसार अलग अलग चार्ट हैं जिनमें 350, 132+14, 1753 अक्षर हैं और दो
> परिशिष्टों में 39, 35 अक्षर हैं। ये भी बहुत अधिक हैं, परंतु उस 47 हज़ार की
> तुलना में 5 प्रतिशत हैं।
>
> http://en.wikipedia.org/wiki/Simplified_Chinese_characters
>
> एक तरफ़ आप चीनियों का उदाहरण देते हैं, दूसरी तरफ़ आप उनके द्वारा अपनाए गए
> सरलीकरणों को हिन्दी में अपनाए जाने का विरोध करते हैं।
>
> रावत
>

Anunad Singh

unread,
Aug 11, 2010, 5:48:30 AM8/11/10
to technic...@googlegroups.com
Zero width Joiner (ZWJ)  तथा  Zero Width Non-Joiner  (ZWNZ) नामक दो यूनिकोड  वर्ण (कैरेक्टर)  ऐसे हैं जो विशेषत:  देवनागरी के लिये बनाये गये हैं और ये   अर्धाक्षर/संयुक्ताक्षर से सम्बन्धित हैं।  दोनो ऐसे वर्ण हैं जो अदृष्य रहकर काम करते हैं। ये निराकार हैं।

१) Zero width Joiner :  यदि किसी देवनागरी फॉण्ट में  'आधा अक्षर'  और उसके बाद का 'पूरा अक्षर'  सामान्यत: जुड़कर एक संयुक्ताक्षर  नहीं बनाते  तो  यदि आप  आधे अक्षर के बाद Zero width Joiner  लगा देते हैं तो  यह संयुक्ताक्षर बनाने के लिये विवश  करेगा (बशर्ते वैसा कोई संयुक्ताक्षर होता हो)

२) Zero Width Non-Joiner : यदि आप आधा अक्षर और उसके बाद वाले अक्षर को मिलकर संयुक्ताक्षर नहीं होने देना चाहते तो  आधे अक्षर के बाद  Zero Width Non-Joiner  लगा दीजिये।  यह आधे अक्षर को  हलन्त के साथ दिखने के लिये विवश करेगा और संयुक्ताक्षर नहीं बनने देगा।


नीचे का पाठ मैने  फॉक्सरिप्लेस प्रोग्राम की  की सहायता से   'हलन्त'   को    'हलन्त + ZWNJ'   से प्रतिस्थापित करके प्राप्त किया है। कृपया बताइये यह  पढ़ने में कैसा लग रहा है?

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ऑनलाइन हिन्दी प्रशिक्षण हेतु लीला प्रबोध , प्रवीण एवं प्राज्ञ  के नए पाठ्यक्रम

सी-डैक पुणे के तकनीकी सहयोग से विकसित एवं राजभाषा विभाग द्‌‌वारा प्‌‌रायोजित ऑनलाइन हिन्‌‌दी प्‌‌रशिक्‌‌षण हेतु लीला सॉफ्‌‌टवेयर हिन्‌‌दी भाषा प्‌‌रशिक्‌‌षार्‌‌थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है । इसके इस्‌‌तेमाल से प्‌‌रशिक्‌‌षार्‌‌थियों को घर बैठे ही भाषा के सूक्‌‌ष्‌‌मातिसूक्‌‌ष्‌‌म अंगों (जैसे वर्‌‌ण परिचय , वर्‌‌णो का स्‌‌वर और व्‌‌यंजनों मे वर्‌‌गीकरण,उच्‌‌चारण भेद,अनुनासिक,अनुस्‌‌वार एवं संयुक्‌‌त व्‌‌यंजनों का स्‌‌वरूप, काल विभाजन,कारक चिन्‌‌हों का सटीक प्‌‌रयोग सहित मानक वर्‌‌तनी आदि) की जानकारी सहज रूप से हो जाती है। दृश्‌‌य एवं श्‌‌रव्‌‌य उपकरणों की सहायता से प्‌‌रयोगकर्‌‌ता अपनी मातृभाषा में ही लक्‌‌ष्‌‌यभाषा हिन्‌‌दी को बड़ी आसानी से सीख सकता है। यदि आप भी अपनी मातृभाषा के माध्‌‌यम से हिन्‌‌दी सीखना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्‌‌लिक करें - http://lilappp.cdac.in/newhome.asp तथा अपना पंजीकरण करवाएँ । यह  सेवा बिल्‌‌कुल निशुल्‌‌क है तथा तीनों ही पाठयक्‌‌रमों को एक साथ भी सीखा जा सकता है । प्‌‌रशिक्‌‌षार्‌‌थी अपनी सुविधानुसार पाठ्‌‌यक्‌‌रम को पूरा कर सकता है, इसके लिए कोई समय सीमा निर्‌‌धारित नहीं है । फिलहाल यह प्‌‌रशिक्‌‌षण सुविधा English  के अतिरिक्‌‌त  इन भारतीय भाषाओं के माध्‌‌यम से उपलब्‌‌ध है- Assamese, Bodo, Bangla, Gujarati, Kannada, Kashmiri, Malayalam, Manipuri, Marathi, Nepalese, Oriya, Punjabi, Tamil and Telugu.

Hariram

unread,
Aug 11, 2010, 2:54:47 PM8/11/10
to technic...@googlegroups.com
ZWJ & ZWNJ समस्या का सही समाधान नहीं है।
 
हलन्त भी कोई सही समाधान नहीं है।
 
मूल व्यञ्जनों (आधे अक्षरों) की encoding किया जाना आवश्यक है।


 
On 8/11/10, Anunad Singh <anu...@gmail.com> wrote:
Zero width Joiner (ZWJ)  तथा  Zero Width Non-Joiner  (ZWNZ) नामक दो यूनिकोड  वर्ण (कैरेक्टर)  ऐसे हैं जो विशेषत:  देवनागरी के लिये बनाये गये हैं और ये   अर्धाक्षर/संयुक्ताक्षर से सम्बन्धित हैं।  दोनो ऐसे वर्ण हैं जो अदृष्य रहकर काम करते हैं। ये निराकार हैं।

१) Zero width Joiner :  यदि किसी देवनागरी फॉण्ट में  'आधा अक्षर'  और उसके बाद का 'पूरा अक्षर'  सामान्यत: जुड़कर एक संयुक्ताक्षर  नहीं बनाते  तो  यदि आप  आधे अक्षर के बाद Zero width Joiner  लगा देते हैं तो  यह संयुक्ताक्षर बनाने के लिये विवश  करेगा (बशर्ते वैसा कोई संयुक्ताक्षर होता हो)

२) Zero Width Non-Joiner : यदि आप आधा अक्षर और उसके बाद वाले अक्षर को मिलकर संयुक्ताक्षर नहीं होने देना चाहते तो  आधे अक्षर के बाद  Zero Width Non-Joiner  लगा दीजिये।  यह आधे अक्षर को  हलन्त के साथ दिखने के लिये विवश करेगा और संयुक्ताक्षर नहीं बनने देगा।


नीचे का पाठ मैने  फॉक्सरिप्लेस प्रोग्राम की  की सहायता से   'हलन्त'   को    'हलन्त + ZWNJ'   से प्रतिस्थापित करके प्राप्त किया है। कृपया बताइये यह  पढ़ने में कैसा लग रहा है?

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ऑनलाइन हिन्दी प्रशिक्षण हेतु लीला प्रबोध , प्रवीण एवं प्राज्ञ  के नए पाठ्यक्रम

सी-डैक पुणे के तकनीकी सहयोग से विकसित एवं राजभाषा विभाग द्‌‌वारा प्‌‌रायोजित ऑनलाइन हिन्‌‌दी प्‌‌रशिक्‌‌षण हेतु लीला सॉफ्‌‌टवेयर हिन्‌‌दी भाषा प्‌‌रशिक्‌‌षार्‌‌थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है । इसके इस्‌‌तेमाल से प्‌‌रशिक्‌‌षार्‌‌थियों को घर बैठे ही भाषा के सूक्‌‌ष्‌‌मातिसूक्‌‌ष्‌‌म अंगों (जैसे वर्‌‌ण परिचय , ............

Hariram

unread,
Aug 11, 2010, 3:07:18 PM8/11/10
to technic...@googlegroups.com
भारतीय रुपये का चिह्न
पढ़ें कृपया।

 

हरिराम



 
On 8/12/10, Hariram <hari...@gmail.com> wrote:
रावत जी,

On 8/10/10, V S Rawat <vsr...@gmail.com> wrote:

1. संयुक्ताक्षर हिन्दी को कठिन बना रहे हैं। यह पहला क्षेत्र है जहाँ सरलीकरण किया जाना चाहिए।

2. छोटी ई की मात्रा का अक्षर के पहले आना, यहाँ तक की यदि वो अक्षर संयुक्ताक्षर है, तो छोटी ई की मात्रा का उस पूरे संयुक्ताक्षर से पहले आना हिन्दी के लेखन और पठन में व्यवधान डालता है, इसका भी कुछ किया जाना चाहिए।
 
छोटी इ की मात्रा कदापि अक्षर के पहले नहीं लगती, बल्कि बाईं ओर प्रकट होती है। कोई भी मात्रा किसी वर्ण के पहले नहीं लग सकती। शून्य संहिता - तान्त्रिक अणाकार यन्त्र सारा रहस्य उजागर करता है।
 

3. आधे र को अगले अक्षर, उसकी मात्रा, उसके संयुक्ताक्षरों के बाद लिखना भी इसी प्रकार का व्यवधान डालता है, इसका कुछ किया जाना चाहिए।
 
 
'र' का वर्तमान रूप कालक्रम में बिगड़ कर बना है। रेफ कदापि अगले वर्ण के ऊपर नहीं लगता था। हाल ही में जारी भारतीय रुपये की चिह्न भी तकनीकी दृष्टि से अवैज्ञानिक है।
 

--
हरिराम
प्रगत भारत http://hariraama.blogspot.com



--
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>
(वे पर्यावरण-प्रेमी चुल्लू भर पानी में डूब मरें, जो कूड़ा-करकट जलाकर बिजली बनाकर कूड़े का सदुपयोग करनेवाले संयंत्रों का तो विरोध करते हैं, किन्तु सड़कों के किनारे, बाजारों-बस्तियों के बीच यत्र-तत्र-सर्वत्र ढेर लगाकर कूड़ा करकट जलाकर भारी प्रदूषण एवं बीमारियाँ फैलानेवाले लोगों तथा नगरपालिका के कर्मचारियों का विरोध नहीं करते।)

Hariram

unread,
Aug 11, 2010, 3:05:19 PM8/11/10
to technic...@googlegroups.com
रावत जी,

On 8/10/10, V S Rawat <vsr...@gmail.com> wrote:

1. संयुक्ताक्षर हिन्दी को कठिन बना रहे हैं। यह पहला क्षेत्र है जहाँ सरलीकरण किया जाना चाहिए।

2. छोटी ई की मात्रा का अक्षर के पहले आना, यहाँ तक की यदि वो अक्षर संयुक्ताक्षर है, तो छोटी ई की मात्रा का उस पूरे संयुक्ताक्षर से पहले आना हिन्दी के लेखन और पठन में व्यवधान डालता है, इसका भी कुछ किया जाना चाहिए।
 
छोटी इ की मात्रा कदापि अक्षर के पहले नहीं लगती, बल्कि बाईं ओर प्रकट होती है। कोई भी मात्रा किसी वर्ण के पहले नहीं लग सकती। शून्य संहिता - तान्त्रिक अणाकार यन्त्र सारा रहस्य उजागर करता है।
 

3. आधे र को अगले अक्षर, उसकी मात्रा, उसके संयुक्ताक्षरों के बाद लिखना भी इसी प्रकार का व्यवधान डालता है, इसका कुछ किया जाना चाहिए।
 
 
'र' का वर्तमान रूप कालक्रम में बिगड़ कर बना है। रेफ कदापि अगले वर्ण के ऊपर नहीं लगता था। हाल ही में जारी भारतीय रुपये की चिह्न भी तकनीकी दृष्टि से अवैज्ञानिक है।
 

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Aug 11, 2010, 8:37:51 PM8/11/10
to technic...@googlegroups.com
शून्य संहिता - तान्त्रिक अणाकार यन्त्र सारा रहस्य उजागर करता है।

यह क्या चीज है हरिराम जी?


 हाल ही में जारी भारतीय रुपये का चिह्न भी तकनीकी दृष्टि से अवैज्ञानिक है।

कृपया इस बात पर प्रकाश डालें।

१२ अगस्त २०१० १२:३५ पूर्वाह्न को, Hariram <hari...@gmail.com> ने लिखा:
--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.

Anunad Singh

unread,
Aug 11, 2010, 11:31:21 PM8/11/10
to technic...@googlegroups.com
हरिराम जी,
आधे अक्षरों (मूल व्यंजनों) को कोड-संख्या देने से इस समस्या का समाधान कैसे होगा, कृपया समझाएँ?

--  अनुनाद

=======================

१२ अगस्त २०१० १२:२४ AM को, Hariram <hari...@gmail.com> ने लिखा:

Hariram

unread,
Aug 12, 2010, 8:53:32 AM8/12/10
to technic...@googlegroups.com
वर्तमान केवल पूरे अक्षर और हलन्त ही एनकोडेड है युनिकोड में। ISCII-86, ISCII-88, ISCII-1991 कोड में भी ऐसा ही था।
 
आधा अक्षर करने के लिए हलन्त को जोड़ना पड़ता है, जबकि वैज्ञानिक ढंग से इसका कार्य 'अ' ध्वनि को हटाना/घटाना है।
 
'स्व' टंकित करने में
स + हलन्त +व
ही प्रोसेस होता है।
 
= sa+(-a)+wa
 
यदि आधे अक्षर और 'अ' की मात्रा निराकार(invisible) और कण रूप में कोडित होती तो
स्व = s+w+a = स् (आधे रूप में खड़ी पाई रहित) + व् (आधे रूप में खड़ी पाई रूप में) + अ(खड़ी पाई रूप में) ही टंकित/प्रोसेसिंग करना पड़ता। जैसा कि हिन्दी टाइपराइटर में श्‍ख्‍ आदि के लिए आज भी किया जाता है।
 
हाँ 8 कण (खड़ी पाई रहित) व्यंजनों के नए आधे रूप निर्धारित करने पड़ेगे अवश्य...
 
 
यदि ऐसा होता तो तब......
 
न ही विण्डोज के USP (unicode script processor - speiclally for indic & arabic)
की जरूरत होती,
न ही अमानकीकृत open type font glyph की
न ही फोंट कनवर्टरों की
न ही on the fly twisting की
न ही अलग अलग एनकोडिंग (प्रोसिंग के लिए एक, डिस्प्ले के दूसरी, इनपुट के लिए तीसरी और विभिन्न तकनीकी जरूरतों के मद्देनजर अलग अलग) की जरूरत होती
न ही किसी मात्रा की जरूरत होती(कम्प्यूटर के आन्तरिक संसाधन के लिए) - सिर्फ मूल स्वर और व्यंजन 'कि' = क्+इ = k+i
 
न ही इतनी समस्याएँ होती
न ही देवनागरी पिछड़ी होती, न जटिल होती
 
न ही टाइप करने की जरूरत होती, क्योंकि बोलकर कम्प्यूटरों को डिक्टेशन देना (देवनागरी) में इतना सरल हो जाता।
 
मोबाईल फोन में भी एसएमएस टाइप करने जरूरत नहीं होती, जो भी बोलते वह वर्ण में बदलकर digital text mode में transmit होकर गंतव्य तक 1000 गुणा शीघ्रता से जाता।
 
जटिल प्रोसेसिंग, फोंट कनवर्टर, इनपुट में समस्या, धीमापन आदि के कारण होनेवाले मानव श्रम घंटों की कितनी बचत होती, यदि इस बाबत अनुमान लगाया जाए तो क्या भारत की लगभग 35000 करोड़ रुपयों की सालाना बचत नहीं होती???????
 
यदि इतनी बचत होती, तो शायद भारत को कभी बजट नहीं बनाना पड़ता, लोगों से कोई टैक्स नहीं लेना पड़ता???
 
तब भारत सोने की चिड़िया तो क्या शायद 'हीरे की चिड़िया बन जाता'?????
 
तब देवनागरी सही मायने में विश्वभाषा नहीं बन जाती????
 
तब क्या संसार के सारे लोग देवनागरी ही स्वतः नहीं पना लेते?????
 
यदि भारत 'हीरे की चिड़िया' बन जाता, तो अन्य 'विकसित' देश पिछड़ नहीं जाते????
 
अभी 49 रुपये में एक डॉलर मिल रहा है, तब शायद एक रुपये में 49 डॉलर नहीं मिलने लगते?????
 
यदि ऐसा होता तो क्या अमेरिका आदि विकसित देश सह पाते????
 
वे इराक की तरह भारत को काबू/गुलाम करने के लिए जान की बाजी नहीं लगा देते????
 
... बंधुओं, जानबूझकर, सोच समझकर देवनागरी को क्लिष्ट बनाया गया है ताकि हम कभी अग्रणी नहीं बन पाएँ, अंग्रेजी के गुलाम बनें रहें। या या कालक्रम में देवनागरी क्लिष्ट बन गई है, यह हम सभी मिलकर अनुसन्धान करें, सुधार करें....
 
लार्ड मैकाले की माया ... तो आप सभी विद्वान जानते ही हैं न....
 
अतः युनिकोड आधे अक्षरों की एनकोडिंग करेगा, यह आशा करना ही नहीं चाहिए...
 
वैसे भी कम्प्यूटर की आन्तरिक संसाधन व्यवस्था के लिए न ही मात्राओं की जरूरत है और न ही संयुक्ताक्षरों की।
 
बेहतर होगा कि हम स्वयं विद्वान मिलकर गैर-सरकारी संगठन रूप में अपना एक मानकीकरण संगठन गठित कर कार्यवाही करें। अपने मानकों का प्रचलन करें।
 
-- हरिराम
 
 


 
2010/8/12 Anunad Singh <anu...@gmail.com>

Hariram

unread,
Aug 12, 2010, 8:55:57 AM8/12/10
to technic...@googlegroups.com


2010/8/12 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>

शून्य संहिता - तान्त्रिक अणाकार यन्त्र सारा रहस्य उजागर करता है।

यह क्या चीज है हरिराम जी?

 
यह एक निराकार( अदृश्य) यन्त्र है, लिखकर बताना संभव नहीं।
 

 हाल ही में जारी भारतीय रुपये का चिह्न भी तकनीकी दृष्टि से अवैज्ञानिक है।

कृपया इस बात पर प्रकाश डालें।

 
इस पर तकनीकी आलेख प्रस्तुति अधीन है।
 
-- हरिराम

V S Rawat

unread,
Aug 12, 2010, 9:27:45 AM8/12/10
to technic...@googlegroups.com
> बेहतर होगा कि हम स्वयं विद्वान मिलकर गैर-सरकारी संगठन रूप में अपना एक मानकीकरण
> संगठन गठित कर कार्यवाही करें। अपने मानकों का प्रचलन करें।

बहुत बढ़िया लिखा है हरि भाई, हम लोग यूनीकोड के गुण गा रहे हैं, और यह लाभप्रद तो
है, परंतु इसमें भी बनाने वालों ने बहुत अवरोध जानबूझ कर पैदा किया गया है, जैसे अक्षर,
वर्णमाला के क्रम में नहीं है, इसलिए इनकी कभी सॉर्टिंग तो हो नहीं पाएगी, और
विभिन्न भारतीय भाषाओं के एक ही अक्षर मात्रा को एक उसकी कोड संख्या में एक ही
ऑफ़सेट देना चाहिए था, फिर तो सिर्फ कोई एक बिट बदलने से एक भारतीय भाषा का
दूसरी भारतीय भाषा में लिप्यांतरण हो जाता। परंतु यह सब उन्होंने कुछ सोच के ही नहीं
किया है। उनका उद्देश्य है हमारी भाषा को दबाना।

मैं तो हमेशा से कह रहा हूँ कि हम सबको मिल के कुछ प्रारंभ करना चाहिए, आगे जहाँ तक
पहुँचें। परंतु यहाँ भी मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना है।

कुछ सुझाइए। मैं ऐसे किसी भी प्रयास में आपके साथ हूँ।

रावत

> 2010/8/12 Anunad Singh <anu...@gmail.com <mailto:anu...@gmail.com>>


>
> हरिराम जी,
> आधे अक्षरों (मूल व्यंजनों) को कोड-संख्या देने से इस समस्या का समाधान कैसे होगा,
> कृपया समझाएँ?
>
> -- अनुनाद
>
> =======================
>
> १२ अगस्त २०१० १२:२४ AM को, Hariram <hari...@gmail.com

> <mailto:hari...@gmail.com>> ने लिखा:

Mayur Dubey

unread,
Aug 12, 2010, 9:34:16 AM8/12/10
to technic...@googlegroups.com
हरिराम जी,

आप बताइए कि कैसे काम होगा ? किन संसाधनों कि ज़रूरत है ? और कितना धन लगेगा ? किन लोगों कि ज़रूरत है .

फिर पूरा समूह है , और बाहर से भी जो ज़रूरत होगी जुटी जाएगी .

धन्यवाद,

मयूर


2010/8/12 V S Rawat <vsr...@gmail.com>

V S Rawat

unread,
Aug 12, 2010, 9:51:21 AM8/12/10
to technic...@googlegroups.com
On 8/12/2010 7:04 PM India Time, _Mayur Dubey_ wrote:

> हरिराम जी,
>
> आप बताइए कि कैसे काम होगा ? किन संसाधनों कि ज़रूरत है ? और कितना धन लगेगा ? किन
> लोगों कि ज़रूरत है .
>
> फिर पूरा समूह है , और बाहर से भी जो ज़रूरत होगी जुटी जाएगी .

आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता बाद को पड़ेगी जब हमारे पास कुछ विकसित होता है। पहले
तो शॉर्टलिस्ट करना है कि हिन्दी में आख़िर क्या कठिनाइयाँ हैं, उनको सरल कैसे किया
जाए - इस पर मानस मंथन करना है और एकमत समाधान निकालना है।

तो प्रारंभ करते हैं। कुछ सुझाव

- छोटी ई की मात्रा (ि) का पिछले अक्षर-समूह के पीछे जाना

- आधे र (कर्म वाले) का अगले अक्षर-समूह के आगे जाना

- अक्षरों का आधा अक्षर बनाने का एक नियम नहीं होना। अभी कुछ से दाई डंडी हटाई
जाती है, तो कुछ से बीच की डंडी के दाएँ का आधा हिस्सा हटाया जाता है और कुछ का
आधा तो है ही नहीं और उनमें हलन्त लगे को आधा माना जाता है।

- बिंदु (अनुस्वर ं ) को कभी म् पढ़ा जाता है, कभी न्। इसी को पहले पाँच वर्गों में
पंचमाक्षर के आधे के रूप में भी प्रयोग किया और पढ़ा जाता है। यह सबसे बड़ी अवैज्ञानिक
बात है कि एक ही चिह्न को शब्द के प्रसंग में अलग अलग पढ़ा जाए।

- संयुक्ताक्षरों का मूल अक्षरों से इतना अलग हो जाना कि लोगों को ये नए अक्षर लगने
लगते हैं जिससे वो समझते हैं हिन्दी में 52 नहीं 52^^52 (52 की घात 52) अक्षर हैं या
इतने ही कुछ।

- नुक़्ते को हटाने के अति-उत्साह में कई लोग उर्दू उच्चारण से नुक़्ता हटा कर हिन्दी में
लिख रहे हैं जिससे दुनिया में नए शब्द पैदा हो रहे हैं। जब नुक़्ता है तो क्यों न उसे अपना
कर उन्हीं उच्चारणों को हिन्दी में लिखा जाए।

- हिन्दी में अन्य भारतीय भाषाओं के अनोखे उच्चारण वाले अक्षरों मात्राओं को जोड़ा जाए।
इससे बच्चे उन उच्चारणों को बचपन से ही सीख सकेंगे और बाद को उन भाषाओं का प्रयोग
करने में सरलता होगी। जैसे मराठी का ळ, तमिल की बीच वाली ए और बीच वाली औ।

आप लोग भी बताएँ जो आपके मन में है। अभी किसी बात को काटे मत वरना बहस शुरु हो
जाएगी। यह मानस मंथन ब्रेनस्टॉर्मिंग चरण है। जो भी निकले उसको सूचीबद्ध करें। बाद को
देखेंगे कि कौन सा विष था, कौन सा अमृत।

रावत

>
> धन्यवाद,
>
> मयूर
>
>

> 2010/8/12 V S Rawat <vsr...@gmail.com <mailto:vsr...@gmail.com>>

> <mailto:anu...@gmail.com> <mailto:anu...@gmail.com


> <mailto:anu...@gmail.com>>>
>
>
> हरिराम जी,
> आधे अक्षरों (मूल व्यंजनों) को कोड-संख्या देने से इस समस्या का समाधान कैसे होगा,
> कृपया समझाएँ?
>
> -- अनुनाद
>
> =======================
>
> १२ अगस्त २०१० १२:२४ AM को, Hariram <hari...@gmail.com
> <mailto:hari...@gmail.com>

> <mailto:hari...@gmail.com <mailto:hari...@gmail.com>>> ने लिखा:

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Aug 12, 2010, 11:56:41 AM8/12/10
to technic...@googlegroups.com
हरिराम जी इस विषय पर आपने एक समूह का गठन किया था जिस पर एक पोस्ट के बाद कुछ चर्चा नहीं हुयी। बाद में स्पैमरों ने उस पर कब्जा जमा लिया। स्पैम मेल को डिलीट करके उस समूह पर इस विषय विशेष पर चर्चा आरम्भ की जानी चाहिये।

१२ अगस्त २०१० ६:२३ अपराह्न को, Hariram <hari...@gmail.com> ने लिखा:

--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.

Kakesh Kumar

unread,
Aug 13, 2010, 12:19:44 AM8/13/10
to technic...@googlegroups.com
On 12/08/2010 18:23, Hariram wrote:
> बेहतर होगा कि हम स्वयं विद्वान मिलकर गैर-सरकारी संगठन रूप में अपना एक मानकीकरण
> संगठन गठित कर कार्यवाही करें। अपने मानकों का प्रचलन करें।

हरिराम जी, आपके इस विचार में मैं भी आपके साथ हूँ। बताइये क्या क्या करना है? इससे पहले
यदि आप कुछ संसाधन बता सके (कोई पुस्तक या कड़ी) तो उसको पढ़ समझ कर इस पर
प्रारम्भिक समझ बनायी जा सकेगी।

यह काम बहुत महत्वपूर्ण है इस पर हम सब को मिल कर पूरा करना चाहिये।

--
धन्यवाद सहित
सादर

काकेश
http://kakesh.com

narayan prasad

unread,
Aug 13, 2010, 4:05:04 AM8/13/10
to technic...@googlegroups.com
Dear Members,
    I request all of you to send your messages on this topic on an appropriate subject as under:
 
देवनागरी का मानकीकरण ( कम्प्यूटर की आन्तरिक प्रक्रमण व्यवस्था के लिए)
https://groups.google.com/group/technical-hindi/browse_thread/thread/4e96149c0ef92269
   Links of all the related messages will be supplied with a separate message under the above subject.
 
   Thanks and regards.
   Narayan Prasad
  
2010/8/13 Kakesh Kumar <kakes...@gmail.com>
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