On Jul 6, 5:09 am, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी में युक्ताक्षर
> सम्बन्धी प्रश्नावली पर कृपया अपना मत दे । सर्वे की कड़ी यह है -http://www.kwiksurveys.com/online-survey.php?surveyID=KLOMGJ_db5ac9f0
--
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(7) आप ह्म पसंद करते हैं , या ह्म ? --- ह्म 80%
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केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी यदि ऑनलाइन उपलब्ध है किसी वेबसाइट पर, तो कृपया उसकी कड़ी भी दें।
2010/8/4 narayan prasad <hin...@gmail.com>
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानकीकृत वर्तनी में युक्ताक्षर सम्बन्धी प्रश्नावली पर कृपया अपना मत दे । सर्वे की कड़ी यह है -
http://www.kwiksurveys.com/online-survey.php?surveyID=KLOMGJ_db5ac9f0
2010/8/4 vinodji sharma <vinodj...@gmail.com>
आदरणीय नारायणजी, मैं समझ ही नहीं पाया कि मतदान किस प्रकार करना है तथा कहाँ करना है?
--
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> अब तक (06-8-2010 16:50) कुल 99 लोग मतदान कर चुके हैं । सौ पूरा करने के लिए अब
> केवल एक मतदान की आवश्यकता है । इसके बाद परिणाम घोषित कर दिया जाएगा ।
मैं उस साइट पर जाता हूँ तो मुझे दोनों शब्द एक ही दिखते हैं। आई में भी, फ़ायरफ़ॉक्स में
भी। इसलिए मैं विकल्पों को चुन नहीं पा रहा हूँ। आश्चर्य होता है कि 99 लोगों को वह
सही दिखा तो मुझे क्यों नहीं दिखता।
रावत
सादर,
रवि
>
> रावत
>
रावत
--
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> संयुक्ताक्षर का नाम जी जब संयुक्ताक्षर है तो वे सुन्दर जुड़े हुये रुप में ही लगेंगे। मानकीकरण के
> नाम पर जो इन्हें तोड़ कर लिखने का तरीका है वह भद्दा लगता है, इसके पक्ष में लोग तर्क
> देते हैं कि संयुक्ताक्षर नये लोगों खासकर बच्चों के लिये जटिल हैं, समझ नहीं आते। कुछ
> संयुक्ताक्षरों जैसे ह् से जुड़ने वाले, ह्म (ह्+म), ङ् के साथ जुड़ने वाले (जैसे गङ्गा, मंगल फॉण्ट
> इसे बाइ डिफॉल्ट अलग ही दिखाता है) आदि के साथ तो यह बात सही हो सकती है लेकिन द्य
> जो कि एक अलग वर्ण है उसे द् य की तरह लिखना तो पूरी तरह गलता है साथ ही द्व, द्ध
> आदि तो आसानी से समझ आने वाले हैं।
>
> कुल मिलाकर यदि अलग भी लिखना हो तो केवल कुछ जटिल संयुक्ताक्षरों को ही लिखना चाहिये
> वो भी केवल बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में।
"बच्चों" की पाठ्यपुस्तकों में, को यदि "प्रारंभिक शिक्षार्थियों" की पाठ्यपुस्तकों में कह
दिया जाए तो यह व्यापक हो जाएगा, फिर चाहे प्रारंभिक शिक्षार्थी किसी भी आयु समूह
के हों।
समस्या मुद्रित या हस्तलिखित सामग्री की है। अन्यथा नेट पर प्रदर्शित सामग्री के लिए
तो बहुत ही सरल समाधान है कि दो फ़ॉण्ट हों, एक संयुक्ताक्षरों को अलग अलग कर के ही
दिखाए जिसको प्रारंभिक शिक्षार्थी डीफ़ॉल्ट बना कर उसमें सब कुछ देख कर सरलता से समझें
पढ़ें, और दूसरी फ़ॉण्ट संयु्क्ताक्षरों को मिश्रित करके, एक ही चिह्न बना कर दिखाए
जिसको ज्ञानी लोग डीफ़ॉल्ट बनाएँ और उसमें पढ़ें।
यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी
मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार से
दिखाते रहेंगे।
रावत
>
> ६ अगस्त २०१० १०:५५ अपराह्न को, Ravishankar Shrivastava
> <ravir...@gmail.com <mailto:ravir...@gmail.com>> ने लिखा:
<<यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार से दिखाते रहेंगे।>>तो इनका भी मानकीकरण करवाया जाना चाहिए । कम्प्यूटर प्रोग्राम या मशीनी कार्रवाई को आसान बनाने के लिए भाषा की लिपि को ही तोड़-मरोड़ देना तो उसी प्रकार की मूर्खता होगी
जैसा कि पहले आ, इ, ई आदि स्वर को भी अकार पर स्वर की मात्रा चढ़ाकर दिखाने की सिफारिश की गई थी ताकि अंग्रेजी टाइपराइटर से कमती कुंजियों से ही काम चलाया जा सके । ऐसे लोगों को चीनी लोगों से सीखना चाहिए कि वे अपनी संस्कृति को बचाने के लिए कितना परिश्रम करते हैं ।
---नारायण प्रसाद
> <<यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी
> मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार से
> दिखाते रहेंगे।>>
>
> तो इनका भी मानकीकरण करवाया जाना चाहिए । कम्प्यूटर प्रोग्राम या मशीनी कार्रवाई
> को आसान बनाने के लिए भाषा की लिपि को ही तोड़-मरोड़ देना तो उसी प्रकार की मूर्खता
> होगी जैसा कि पहले आ, इ, ई आदि स्वर को भी अकार पर स्वर की मात्रा चढ़ाकर दिखाने
> की सिफारिश की गई थी ताकि अंग्रेजी टाइपराइटर से कमती कुंजियों से ही काम चलाया जा
> सके । ऐसे लोगों को चीनी लोगों से सीखना चाहिए कि वे अपनी संस्कृति को बचाने के लिए
> कितना परिश्रम करते हैं ।
चीनी भाषा का आपने बहुत अच्छा उदाहरण दिया।
http://en.wikipedia.org/wiki/Chinese_character
The number of Chinese characters contained in the Kangxi dictionary is
approximately 47,035, although a large number of these are rarely used
variants accumulated throughout history.
अब सोचिए कि 47,035 अक्षरों को क्या किसी भी प्रकार से न सिर्फ़ कम्प्यूटर के लिए
बल्कि साधारण मुद्रण (प्रिंटिंग) के लिए, या बच्चों को सिखाने के लिए भी प्रयोग किया
जा सकता था? यदि एक बच्चा एक दिन में 10 अक्षर भी सीख पाता है तो उसे 4704 दिन
मतलब 12 साल लगते बिना किसी छुट्टी के।
इसलिए, उन्होंने एक सरलीकृत चीनी भाषा बनाई जिसमें सरलीकरण की अवस्था के अनुसार
अलग अलग चार्ट हैं जिनमें 350, 132+14, 1753 अक्षर हैं और दो परिशिष्टों में 39, 35
अक्षर हैं। ये भी बहुत अधिक हैं, परंतु उस 47 हज़ार की तुलना में 5 प्रतिशत हैं।
http://en.wikipedia.org/wiki/Simplified_Chinese_characters
एक तरफ़ आप चीनियों का उदाहरण देते हैं, दूसरी तरफ़ आप उनके द्वारा अपनाए गए
सरलीकरणों को हिन्दी में अपनाए जाने का विरोध करते हैं।
रावत
> ---नारायण प्रसाद
>
> 2010/8/9 V S Rawat <vsr...@gmail.com <mailto:vsr...@gmail.com>>
>
> "बच्चों" की पाठ्यपुस्तकों में, को यदि "प्रारंभिक शिक्षार्थियों" की पाठ्यपुस्तकों में कह
> दिया जाए तो यह व्यापक हो जाएगा, फिर चाहे प्रारंभिक शिक्षार्थी किसी भी आयु
> समूह के हों।
>
> समस्या मुद्रित या हस्तलिखित सामग्री की है। अन्यथा नेट पर प्रदर्शित सामग्री के
> लिए तो बहुत ही सरल समाधान है कि दो फ़ॉण्ट हों, एक संयुक्ताक्षरों को अलग अलग कर
> के ही दिखाए जिसको प्रारंभिक शिक्षार्थी डीफ़ॉल्ट बना कर उसमें सब कुछ देख कर
> सरलता से समझें पढ़ें, और दूसरी फ़ॉण्ट संयु्क्ताक्षरों को मिश्रित करके, एक ही चिह्न बना
> कर दिखाए जिसको ज्ञानी लोग डीफ़ॉल्ट बनाएँ और उसमें पढ़ें।
>
> यदि यूनीकोड अद्वितीय चिह्नों पर आधारित है तो यूनीकोड में संयुक्ताक्षरों का भी
> मानकीकरण करना पड़ सकता है वरना अलग अलग फ़ॉण्ट संयुक्ताक्षरों को अलग-अलग प्रकार
> से दिखाते रहेंगे।
>
> रावत
>
>
> रावत जी,
> चीनी लिपि को सरलीकृत किया गया है इसलिये देवनागरी को भी सरल करना चाहिये - ये
> तुलना कुछ वैसे ही है जैसे किसी दो सौ किलो वाले मोटे आदमी को उपवास करते देखकर कोई
> चालीस किलो वाला भी उपवास करना चालू कर दे।
एक बार मैं अखबार में लिपोसक्शन (शरीर से चर्बी को मशीन से चूस कर निकाल देना) का
विज्ञापन पढ़ के उस चिकित्सालय पहुँच गया था। चिकित्सक ने मुझे भगा दिया। बोला कि
यह तकनीकी 150-200 किलो वाले लोगों के लिए है, मेरे जैसे 60 किलो वालों के लिए नहीं।
बोला कि थोड़ा व्यायाम किया करो, डाइट कंट्रोल करों, उससे हो जाएगा। अब यही तो
मैं नहीं कर पा रहा था।
>
> मैं देवनागरी में सरलीकरण का विरोध नहीं करता, किन्तु उसका कोई सुविचारित और तर्कसम्मत
> कारण होना चाहिये।
सुधार के क्षेत्र पहले तय कर लिए जाएँ तो "सुविचारित और तर्कसम्मत कारण" आप जैसे
अनुभवी लोग ही बता पाएँगे।
1. संयुक्ताक्षर हिन्दी को कठिन बना रहे हैं। यह पहला क्षेत्र है जहाँ सरलीकरण किया
जाना चाहिए।
2. छोटी ई की मात्रा का अक्षर के पहले आना, यहाँ तक की यदि वो अक्षर संयुक्ताक्षर
है, तो छोटी ई की मात्रा का उस पूरे संयुक्ताक्षर से पहले आना हिन्दी के लेखन और पठन में
व्यवधान डालता है, इसका भी कुछ किया जाना चाहिए।
3. आधे र को अगले अक्षर, उसकी मात्रा, उसके संयुक्ताक्षरों के बाद लिखना भी इसी
प्रकार का व्यवधान डालता है, इसका कुछ किया जाना चाहिए।
इत्यादि
>
> -- अनुनाद
--
रावत
> <<एक तरफ़ आप चीनियों का उदाहरण देते हैं, दूसरी तरफ़ आप उनके द्वारा अपनाए गए
> सरलीकरणों को हिन्दी में अपनाए जाने का विरोध करते हैं।>>
> देवनागरी में सरलीकरण की आवश्यकता ही नहीं है । क्ष, ज्ञ, द्य आदि इने-गिने युक्ताक्षर हैं
> जिसके बारे में बच्चों को या नवसिखुए को बताने की आवश्यकता होती है । शेष युक्ताक्षर
> बिलकुल स्पष्ट होते हैं । यदि कुछ युक्ताक्षर स्पष्ट नहीं लगते तो ऐसे युक्ताक्षर प्रस्तुत करें ।
> संयुक्त व्यंजन या तो बाएँ से दाएँ या ऊपर से नीचे के क्रम में लिखे जाते हैं । ऊपर से नीचे
> लिखने वाला क्रम आजकल बहुत ही कम प्रयोग में आता है ।
> चीनी शब्दों का सरलीकरण सरकार या विद्वानों की देन नहीं है । सरकार की ओर से केवल यह
> किया गया कि आम शिक्षित चीनी जनता चीनी शब्दों को कैसे लिखती है उसी सरलीकृत रूप को
> भी मान्यता दे दी । उदाहरण के लिए येन (= नमक) शब्द पारम्परिक चीनी लिपि में कुल 24
> लकीरों से ( 鹽 ) लिखा जाता है, जबकि सरलीकृत चीनी लिपि में केवल 10 लकीरों द्वारा (
> *盐* )। इस बात का खुलासा मुझे पेइचिंग (Beijing) के एक उच्चतर शिक्षा हेतु ऑक्सफोर्ड
> गए छात्र से बातचीत के दौरान हुआ ।
जी हाँ, दी गई लिंक
http://en.wikipedia.org/wiki/Simplified_Chinese_characters
पर "Method of simplification" में इस प्रकार के अनेकों तरीके दिए गए हैं, जिनमें
दिए हुए अक्षरों को देख कर हम चीनी भाषा न जानने वाले भी अकस्मात ही कह सकते हैं कि
कौन सा अक्षर सरल है।
उनका पूरा प्रयोजन भाषा को लिखना, पढ़ना समझना सरल करना था। हमको हिन्दी के
लिए भी इसी प्रयोजन पर काम करना है तभी हिन्दी सरल बनेगी।
> ---नारायण प्रसाद
रावत
>
> 2010/8/9 V S Rawat <vsr...@gmail.com <mailto:vsr...@gmail.com>>
>
> चीनी भाषा का आपने बहुत अच्छा उदाहरण दिया।
>
> http://en.wikipedia.org/wiki/Chinese_character
> The number of Chinese characters contained in the Kangxi
> dictionary is approximately 47,035, although a large number of
> these are rarely used variants accumulated throughout history.
>
> अब सोचिए कि 47,035 अक्षरों को क्या किसी भी प्रकार से न सिर्फ़ कम्प्यूटर के
> लिए बल्कि साधारण मुद्रण (प्रिंटिंग) के लिए, या बच्चों को सिखाने के लिए भी
> प्रयोग किया जा सकता था? यदि एक बच्चा एक दिन में 10 अक्षर भी सीख पाता
> है तो उसे 4704 दिन मतलब 12 साल लगते बिना किसी छुट्टी के।
>
> इसलिए, उन्होंने एक सरलीकृत चीनी भाषा बनाई जिसमें सरलीकरण की अवस्था के
> अनुसार अलग अलग चार्ट हैं जिनमें 350, 132+14, 1753 अक्षर हैं और दो
> परिशिष्टों में 39, 35 अक्षर हैं। ये भी बहुत अधिक हैं, परंतु उस 47 हज़ार की
> तुलना में 5 प्रतिशत हैं।
>
> http://en.wikipedia.org/wiki/Simplified_Chinese_characters
>
> एक तरफ़ आप चीनियों का उदाहरण देते हैं, दूसरी तरफ़ आप उनके द्वारा अपनाए गए
> सरलीकरणों को हिन्दी में अपनाए जाने का विरोध करते हैं।
>
> रावत
>
Zero width Joiner (ZWJ) तथा Zero Width Non-Joiner (ZWNZ) नामक दो यूनिकोड वर्ण (कैरेक्टर) ऐसे हैं जो विशेषत: देवनागरी के लिये बनाये गये हैं और ये अर्धाक्षर/संयुक्ताक्षर से सम्बन्धित हैं। दोनो ऐसे वर्ण हैं जो अदृष्य रहकर काम करते हैं। ये निराकार हैं।
१) Zero width Joiner : यदि किसी देवनागरी फॉण्ट में 'आधा अक्षर' और उसके बाद का 'पूरा अक्षर' सामान्यत: जुड़कर एक संयुक्ताक्षर नहीं बनाते तो यदि आप आधे अक्षर के बाद Zero width Joiner लगा देते हैं तो यह संयुक्ताक्षर बनाने के लिये विवश करेगा (बशर्ते वैसा कोई संयुक्ताक्षर होता हो)
२) Zero Width Non-Joiner : यदि आप आधा अक्षर और उसके बाद वाले अक्षर को मिलकर संयुक्ताक्षर नहीं होने देना चाहते तो आधे अक्षर के बाद Zero Width Non-Joiner लगा दीजिये। यह आधे अक्षर को हलन्त के साथ दिखने के लिये विवश करेगा और संयुक्ताक्षर नहीं बनने देगा।
नीचे का पाठ मैने फॉक्सरिप्लेस प्रोग्राम की की सहायता से 'हलन्त' को 'हलन्त + ZWNJ' से प्रतिस्थापित करके प्राप्त किया है। कृपया बताइये यह पढ़ने में कैसा लग रहा है?
=========================================
ऑनलाइन हिन्दी प्रशिक्षण हेतु लीला प्रबोध , प्रवीण एवं प्राज्ञ के नए पाठ्यक्रम
सी-डैक पुणे के तकनीकी सहयोग से विकसित एवं राजभाषा विभाग द्वारा प्रायोजित ऑनलाइन हिन्दी प्रशिक्षण हेतु लीला सॉफ्टवेयर हिन्दी भाषा प्रशिक्षार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है । इसके इस्तेमाल से प्रशिक्षार्थियों को घर बैठे ही भाषा के सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंगों (जैसे वर्ण परिचय , ............
हरिराम
रावत जी,
On 8/10/10, V S Rawat <vsr...@gmail.com> wrote:
1. संयुक्ताक्षर हिन्दी को कठिन बना रहे हैं। यह पहला क्षेत्र है जहाँ सरलीकरण किया जाना चाहिए।
2. छोटी ई की मात्रा का अक्षर के पहले आना, यहाँ तक की यदि वो अक्षर संयुक्ताक्षर है, तो छोटी ई की मात्रा का उस पूरे संयुक्ताक्षर से पहले आना हिन्दी के लेखन और पठन में व्यवधान डालता है, इसका भी कुछ किया जाना चाहिए।
छोटी इ की मात्रा कदापि अक्षर के पहले नहीं लगती, बल्कि बाईं ओर प्रकट होती है। कोई भी मात्रा किसी वर्ण के पहले नहीं लग सकती। शून्य संहिता - तान्त्रिक अणाकार यन्त्र सारा रहस्य उजागर करता है।
3. आधे र को अगले अक्षर, उसकी मात्रा, उसके संयुक्ताक्षरों के बाद लिखना भी इसी प्रकार का व्यवधान डालता है, इसका कुछ किया जाना चाहिए।
'र' का वर्तमान रूप कालक्रम में बिगड़ कर बना है। रेफ कदापि अगले वर्ण के ऊपर नहीं लगता था। हाल ही में जारी भारतीय रुपये की चिह्न भी तकनीकी दृष्टि से अवैज्ञानिक है।
--
हरिराम
प्रगत भारत http://hariraama.blogspot.com
1. संयुक्ताक्षर हिन्दी को कठिन बना रहे हैं। यह पहला क्षेत्र है जहाँ सरलीकरण किया जाना चाहिए।
2. छोटी ई की मात्रा का अक्षर के पहले आना, यहाँ तक की यदि वो अक्षर संयुक्ताक्षर है, तो छोटी ई की मात्रा का उस पूरे संयुक्ताक्षर से पहले आना हिन्दी के लेखन और पठन में व्यवधान डालता है, इसका भी कुछ किया जाना चाहिए।
3. आधे र को अगले अक्षर, उसकी मात्रा, उसके संयुक्ताक्षरों के बाद लिखना भी इसी प्रकार का व्यवधान डालता है, इसका कुछ किया जाना चाहिए।
शून्य संहिता - तान्त्रिक अणाकार यन्त्र सारा रहस्य उजागर करता है।
हाल ही में जारी भारतीय रुपये का चिह्न भी तकनीकी दृष्टि से अवैज्ञानिक है।
--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
इस समूह में पोस्ट करने के लिए, technic...@googlegroups.com को ईमेल भेजें.
इस समूह से सदस्यता समाप्त करने के लिए, technical-hin...@googlegroups.com को ईमेल करें.
और विकल्पों के लिए, http://groups.google.com/group/technical-hindi?hl=hi पर इस समूह पर जाएं.
शून्य संहिता - तान्त्रिक अणाकार यन्त्र सारा रहस्य उजागर करता है।
यह क्या चीज है हरिराम जी?
कृपया इस बात पर प्रकाश डालें।
हाल ही में जारी भारतीय रुपये का चिह्न भी तकनीकी दृष्टि से अवैज्ञानिक है।
बहुत बढ़िया लिखा है हरि भाई, हम लोग यूनीकोड के गुण गा रहे हैं, और यह लाभप्रद तो
है, परंतु इसमें भी बनाने वालों ने बहुत अवरोध जानबूझ कर पैदा किया गया है, जैसे अक्षर,
वर्णमाला के क्रम में नहीं है, इसलिए इनकी कभी सॉर्टिंग तो हो नहीं पाएगी, और
विभिन्न भारतीय भाषाओं के एक ही अक्षर मात्रा को एक उसकी कोड संख्या में एक ही
ऑफ़सेट देना चाहिए था, फिर तो सिर्फ कोई एक बिट बदलने से एक भारतीय भाषा का
दूसरी भारतीय भाषा में लिप्यांतरण हो जाता। परंतु यह सब उन्होंने कुछ सोच के ही नहीं
किया है। उनका उद्देश्य है हमारी भाषा को दबाना।
मैं तो हमेशा से कह रहा हूँ कि हम सबको मिल के कुछ प्रारंभ करना चाहिए, आगे जहाँ तक
पहुँचें। परंतु यहाँ भी मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना है।
कुछ सुझाइए। मैं ऐसे किसी भी प्रयास में आपके साथ हूँ।
रावत
> 2010/8/12 Anunad Singh <anu...@gmail.com <mailto:anu...@gmail.com>>
>
> हरिराम जी,
> आधे अक्षरों (मूल व्यंजनों) को कोड-संख्या देने से इस समस्या का समाधान कैसे होगा,
> कृपया समझाएँ?
>
> -- अनुनाद
>
> =======================
>
> १२ अगस्त २०१० १२:२४ AM को, Hariram <hari...@gmail.com
> <mailto:hari...@gmail.com>> ने लिखा:
> हरिराम जी,
>
> आप बताइए कि कैसे काम होगा ? किन संसाधनों कि ज़रूरत है ? और कितना धन लगेगा ? किन
> लोगों कि ज़रूरत है .
>
> फिर पूरा समूह है , और बाहर से भी जो ज़रूरत होगी जुटी जाएगी .
आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता बाद को पड़ेगी जब हमारे पास कुछ विकसित होता है। पहले
तो शॉर्टलिस्ट करना है कि हिन्दी में आख़िर क्या कठिनाइयाँ हैं, उनको सरल कैसे किया
जाए - इस पर मानस मंथन करना है और एकमत समाधान निकालना है।
तो प्रारंभ करते हैं। कुछ सुझाव
- छोटी ई की मात्रा (ि) का पिछले अक्षर-समूह के पीछे जाना
- आधे र (कर्म वाले) का अगले अक्षर-समूह के आगे जाना
- अक्षरों का आधा अक्षर बनाने का एक नियम नहीं होना। अभी कुछ से दाई डंडी हटाई
जाती है, तो कुछ से बीच की डंडी के दाएँ का आधा हिस्सा हटाया जाता है और कुछ का
आधा तो है ही नहीं और उनमें हलन्त लगे को आधा माना जाता है।
- बिंदु (अनुस्वर ं ) को कभी म् पढ़ा जाता है, कभी न्। इसी को पहले पाँच वर्गों में
पंचमाक्षर के आधे के रूप में भी प्रयोग किया और पढ़ा जाता है। यह सबसे बड़ी अवैज्ञानिक
बात है कि एक ही चिह्न को शब्द के प्रसंग में अलग अलग पढ़ा जाए।
- संयुक्ताक्षरों का मूल अक्षरों से इतना अलग हो जाना कि लोगों को ये नए अक्षर लगने
लगते हैं जिससे वो समझते हैं हिन्दी में 52 नहीं 52^^52 (52 की घात 52) अक्षर हैं या
इतने ही कुछ।
- नुक़्ते को हटाने के अति-उत्साह में कई लोग उर्दू उच्चारण से नुक़्ता हटा कर हिन्दी में
लिख रहे हैं जिससे दुनिया में नए शब्द पैदा हो रहे हैं। जब नुक़्ता है तो क्यों न उसे अपना
कर उन्हीं उच्चारणों को हिन्दी में लिखा जाए।
- हिन्दी में अन्य भारतीय भाषाओं के अनोखे उच्चारण वाले अक्षरों मात्राओं को जोड़ा जाए।
इससे बच्चे उन उच्चारणों को बचपन से ही सीख सकेंगे और बाद को उन भाषाओं का प्रयोग
करने में सरलता होगी। जैसे मराठी का ळ, तमिल की बीच वाली ए और बीच वाली औ।
आप लोग भी बताएँ जो आपके मन में है। अभी किसी बात को काटे मत वरना बहस शुरु हो
जाएगी। यह मानस मंथन ब्रेनस्टॉर्मिंग चरण है। जो भी निकले उसको सूचीबद्ध करें। बाद को
देखेंगे कि कौन सा विष था, कौन सा अमृत।
रावत
>
> धन्यवाद,
>
> मयूर
>
>
> 2010/8/12 V S Rawat <vsr...@gmail.com <mailto:vsr...@gmail.com>>
> <mailto:anu...@gmail.com> <mailto:anu...@gmail.com
> <mailto:anu...@gmail.com>>>
>
>
> हरिराम जी,
> आधे अक्षरों (मूल व्यंजनों) को कोड-संख्या देने से इस समस्या का समाधान कैसे होगा,
> कृपया समझाएँ?
>
> -- अनुनाद
>
> =======================
>
> १२ अगस्त २०१० १२:२४ AM को, Hariram <hari...@gmail.com
> <mailto:hari...@gmail.com>
> <mailto:hari...@gmail.com <mailto:hari...@gmail.com>>> ने लिखा:
--
आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
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हरिराम जी, आपके इस विचार में मैं भी आपके साथ हूँ। बताइये क्या क्या करना है? इससे पहले
यदि आप कुछ संसाधन बता सके (कोई पुस्तक या कड़ी) तो उसको पढ़ समझ कर इस पर
प्रारम्भिक समझ बनायी जा सकेगी।
यह काम बहुत महत्वपूर्ण है इस पर हम सब को मिल कर पूरा करना चाहिये।
--
धन्यवाद सहित
सादर
काकेश
http://kakesh.com