हिंदी या हिन्दी

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Hariraam

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Jan 17, 2013, 12:19:11 AM1/17/13
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हिंदी या हिन्दी
में से ध्वनि-विज्ञान-सम्मत 'हिन्दी' की सही वर्तनी क्या होनी चाहिए?
इस बारे में विद्वानों से अपने तर्क व मत देने का अनुरोध है।

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हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>

Vineet Chaitanya

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Jan 17, 2013, 12:48:27 AM1/17/13
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"हिन्दी" सही है.
पञ्चमाक्षर को अनुस्वार से बताने की परम्परा printing press की सहूलियत के लिये प्रारम्भ हुई ऐसा मेरा अनुमान है.

2013/1/17 Hariraam <hari...@gmail.com>

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narayan prasad

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Jan 17, 2013, 12:49:22 AM1/17/13
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मैंने आज तक किसी के मुँह से "हिंदी" शब्द सुना ही नहीं । सभी लोग "हिन्दी" (अर्थात् नकार का स्पष्ट उच्चारण सहित) ही बोलते हैं । यदि "हिंदी" में प्रयुक्त अनुस्वार का ठीक-ठीक उच्चारण करेंगे तो यह "हिङ्दी" जैसा सुनाई देना चाहिए । परन्तु ऐसा उच्चारण कोई नहीं करता । इसलिए "हिंदी" वर्तनी को ही मैं अशुद्ध समझता हूँ ।
--- नारायण प्रसाद

2013/1/17 Hariraam <hari...@gmail.com>

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V S Rawat

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Jan 17, 2013, 1:23:52 AM1/17/13
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हिन्दी सही है।
 
जहाँ पर न् का ज़ुबान से किया गया स्पष्ट उच्चारण आए वहाँ पर आधा न लिखा जाता है, जैसे हन्स (पक्षी)
 
जहाँ पर न् का स्पष्ट उच्चारण न आकर सिर्फ़ नाक से एक ध्वनि जैसी आए वहाँ पर ं लिखा जाता है, जैसे हंसना(laugh)
 
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रावत


 
2013/1/17 Hariraam <hari...@gmail.com>

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Vinod Sharma

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Jan 17, 2013, 1:33:29 AM1/17/13
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सत्ताशीर्ष से जो मानकीकरण किया गया है उसमें व्यावहारिक पहलुओं की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। केवल सरलता को, कंप्यूटर पर उपयोग की सुगमता को ध्यान में रख कर ध्वनिविज्ञान सम्मत उच्चरणों के लिए भी अनुस्वार को अनुवार्य कर दिया गया है। केवल हिंदी/हिन्दी ही क्यों, ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका अनुस्वार लगाने पर उच्चारण नहीं किया जा सकता।
जैसे चंदा, बिंदी, चंद्रमा, चंचल, क्रंदन, मंद, कंद,
गंध, सौगंध, प्रबंध, निबंध
कंपन, चंपा, संपादक
राजभाषा विभाग कहता है कि इन्हें उपर्युक्त प्रकार से ही लिखा जाए, जबकि इनका उच्चरण संबंधित वर्ग के पञ्चमाक्षर के अनुसार ही होता है।

2013/1/17 narayan prasad <hin...@gmail.com>

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सादर,
विनोद शर्मा

Vinod Sharma

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Jan 17, 2013, 1:35:56 AM1/17/13
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पुनश्चः आप  पांत/पाँत और प्रांत के उच्चारण में अंतर कैसे करेंगे, यदि दोनों में अनुस्वार का प्रयोग किया जाता है

2013/1/17 narayan prasad <hin...@gmail.com>
मैंने आज तक किसी के मुँह से "हिंदी" शब्द सुना ही नहीं । सभी लोग "हिन्दी" (अर्थात् नकार का स्पष्ट उच्चारण सहित) ही बोलते हैं । यदि "हिंदी" में प्रयुक्त अनुस्वार का ठीक-ठीक उच्चारण करेंगे तो यह "हिङ्दी" जैसा सुनाई देना चाहिए । परन्तु ऐसा उच्चारण कोई नहीं करता । इसलिए "हिंदी" वर्तनी को ही मैं अशुद्ध समझता हूँ ।

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Yashwant Gehlot

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Jan 17, 2013, 2:37:06 AM1/17/13
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'हिन्दी' शब्द मध्यकालीन पश्चिमी आक्रांताओं के साथ या उनके उच्चारण के तरीके की वजह से प्रचलन में आया है। सुलभ संदर्भ के लिए pondicherryuniversity.blogspot.in से उद्धृत कर रहा हूँ-


हिन्दी’ वस्तुत: फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है-हिन्दी का या हिंद से सम्बन्धित।

हिन्दी शब्द की निष्पत्ति ‘सिन्धु’ (सिंध) से हुई है क्योंकि ईरानी भाषा में "" को "" बोला जाता है।

इस प्रकार ‘हिन्दी’ शब्द वास्तव में ‘सिन्धु’ शब्द का प्रतिरूप है। कालांतर में ‘हिंद’ शब्द सम्पूर्ण भारत का पर्याय बनकर उभरा ।

इसी ‘हिंद’ से ‘हिन्दी’ शब्द बना।


हालांकि, केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा जारी "देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण" पुस्तिका में सर्वत्र 'हिंदी' शब्द ही काम में लिया गया है। पुस्तिका में इनसान को इंसान, इनतहा को इंतहा लिखने आदि से तो मना किया गया है, लेकिन "हिन्दी" शब्द पर कोई चर्चा नहीं है।


जब सरकार की ओर से "हिंदी" शब्द चलाया जा रहा है तो उसे या तो सही माना जा सकता है या संबंधित विभाग/निदेशालय को इस बारे में बताया जा सकता है।
 
यशवंत

Vineet Chaitanya

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Jan 17, 2013, 2:41:08 AM1/17/13
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2013/1/17 V S Rawat <vsr...@gmail.com>

हिन्दी सही है।
 
जहाँ पर न् का ज़ुबान से किया गया स्पष्ट उच्चारण आए वहाँ पर आधा न लिखा जाता है, जैसे हन्स (पक्षी)
 
जहाँ पर न् का स्पष्ट उच्चारण न आकर सिर्फ़ नाक से एक ध्वनि जैसी आए वहाँ पर ं लिखा जाता है, जैसे हंसना(laugh)

   इसके लिये चन्द्रबिन्दु का प्रयोग होता है. हँसना (laugh)
 
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रावत


 
2013/1/17 Hariraam <hari...@gmail.com>
हिंदी या हिन्दी
में से ध्वनि-विज्ञान-सम्मत 'हिन्दी' की सही वर्तनी क्या होनी चाहिए?
इस बारे में विद्वानों से अपने तर्क व मत देने का अनुरोध है।

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हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>

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Vinod Sharma

unread,
Jan 17, 2013, 3:55:25 AM1/17/13
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बंधु विचारणीय प्रश्न यह है कि उच्चारण की वैज्ञानिकता, जो कि हमारी हिन्दी का आभूषण है, उसका क्या होगा?
आप जिस शब्द का उच्चारण ही नहीं कर सकते उसे लिखने से किसका हित होगा। क्योंकि यह तो स्पष्ट है कि अनुस्वार का उच्चारण पञ्चमाक्षरों के हल स्वरूप से नितांत भिन्न है। अब या तो आप पाठक के लिए दुविधा पूर्ण स्थिति उत्पन्न करें कि वह लिखे गए शब्द का चाहे जैसे उच्चारण करे। या फिर उच्चारण के अनुसार ही लिखा जाए, जिससे पढ़ने वाले को कोई दुविधा न हो।

2013/1/17 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>

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Hariraam

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Jan 18, 2013, 1:53:38 AM1/18/13
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आदरणीय विद्वानों से विनम्र निवेदन है:
 
जैसा कि "हिन्दी मानकीकरण" के यथा नाम- यथा उद्देश्य लेकर इस समूह का गठन किया गया है। सर्वप्रथम "हिन्दी" शब्द की सही वर्तनी का मानक बनाकर शुरूआत की जानी चाहिए। हिन्दी की अंग्रेजी (लेटिन लिपि) की वर्तनी 'HINDI' भी ठीक नहीं लगती, इसे 'HINDEE' या 'HINDII' क्या लिखा जाना चाहिए?
 
और सर्वोपरि इस पर सर्वसम्मति कैसे लाएँ?
5 वर्गों के 5वें वर्ण के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग मैनुअल टाइपराइर की मजबूरी के कारण प्रचलित हुआ था। क्योंकि मैनुअल हिन्दी टाइपराइटर का निर्माण अंग्रेजी टाइपराइटर की 48 कुंजियों पर येन-केन प्रकारेण देवनागरी के वर्ण/वर्णखण्ड पैबन्द की तरह चिपका कर किया गया था। इसकी कुंजियों में "ङ" एवं "ञ" को शामिल नहीं किया जा सका था। अतः मजबूरीवश अनुस्वार का प्रयोग करके काम चलाया जाता था।
 
लेकिन आज शायद ही कोई मैनुअल टाइपराइर का प्रयोग करता हो। लगभग हरेक छोटे से छोटे कार्यालय में भी मैनुअल टाइपराइटर रद्दी के भाव निपटा दिए गए हैं। हर कहीं कम्प्यूटर का प्रयोग हो रहा है। कम्प्यूटर का युग भी बीत रहा है, अब छोटे से मोबाईल (स्मार्टफोन) एवं टेब का जमाना आ गया है, जिनमें संसार की हरेक भाषा/लिपि को टाइप/प्रकट/सम्प्रेषित किया जा रहा है। मोबाईल फोन में text to speech और speech to text की सुविधाएँ आ रही हैं। युनिकोड भी 16 बिट से आगे निकल कर 32 बिट की ओर बढ़ रहा है। कम्प्यूटर आपरेटिंग सीस्टम्स भी 64 बिट वाले प्रचलित हो गए हैं।
 
अतः आज मैनुअल टाइपराइटर की मजबूरी को मानक स्वीकार करके चलते रहना, भावी पीढ़ी के लिए मार्ग-प्रशस्त करना होगा या पंख-कतरकर या कूप-मण्डूक बनाकर रखना होगा?
 
"नागरी लिपि एवं हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण" पुस्तिका की मद सं.3.6.1.2 में जैसा कि स्पष्ट लिखा है--"संयुक्त व्यञ्जन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण (पंचमाक्षर) के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो ... मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए।..."
 
 मद सं.3.6.1.2 में जैसा कि लिखा है -- "यदि पंचमाक्षर के बाद अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे वाङ्मय, अन्य, चिन्मय, उन्मुख आदि। (वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख) आदि रूप ग्राह्य नहीं होंगे।"
 
मेरा विद्वानों से यह निवेदन है कि पंचमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग करने से कोई विशेष लाभ तो नहीं हुआ? पंचमाक्षरों को वर्णमाला से निकाला तो नहीं जा सका? उलटे भाषा/लिपि की ध्वनि-वैज्ञानिकता को क्या दोगला नहीँ कर दिया गया?
 
विशेषकर देवनागरी/हिन्दी स्पेल चेकर प्रोग्रामों के अल्गोरिद्म के तर्क उक्त दोनों प्रावधानों से इतना उलझ जाते हैं कि कोई compact सूत्र बनाना दुरुह हो जाता है, समग्र पंचमाक्षरों से बने शब्दों के विशाल error-word-list के आधार पर ही बढ़ना पड़ता है। जिससे स्पेल चेकर काफी धीमा चलता है..., Auto correct whole document का विकल्प दिया जाए तो कठिनाई होती है... 
 
विशेषकर डैटाबेस प्रोग्रामों में सार्टिंग व इण्डेक्सिंग में काफी समस्या आती है। सार्टिंग में अनुस्वार का स्थान वर्णमाला में दूसरे नम्बर पर आता है, जबकि "ङ", "ञ", "ण", "म", "न" का स्थान अलग अलग क्रमों से आता है। हिन्दी शब्दकोश में यदि "अंतिम" शब्द को इसी रूप में खोजें तो यह शब्द जहाँ आएगा उससे सैंकड़ों शब्दों के बाद "अन्तिम" रूप में लिखा शब्द आएगा। ऐसे दोमुखी प्रावधान के कारण आज डैटाबेस आदि में हिन्दी का प्रयोग कठिन हो रहा है.. (हालांकि वर्णक्रमानुसार सार्टिंग/इण्डेक्सिंग के लिए देवनागरी वर्णों के क्रम-निर्धारण पर पुनर्विचार करके मानकीकरण करना भी आवश्यक है)
 
ऑनलाइन आयकर रिटर्न हिन्दी में भरने की सुविधा नहीं हो पा रही, रेलवे रिजर्वेशन काउंटर पर भले ही कोई पर्ची हिन्दी(तथा अन्य भारतीय भाषा) में भर कर दे, बुकिंग क्लर्क को अंग्रेजी में डैटा एंट्री करना पड़ता है... ऑनलाइन टिकट बुकिंग करते वक्त नाम आदि हिन्दी में भरने की सुविधा नहीं मिल पा रही, किसी भी ऑनलाइन फार्म में हिन्दी में प्रविष्टि कठिन/जटिल हो रही है...
 
क्या देवनागरी लिपि केवल सरल पाठ (plain text), कविता, कहानी इत्यादि तक ही सीमित रहनी चाहिए? क्या इसे डैटाबेस, गणित, अभियांत्रिकी, वैज्ञानिक प्रयोग/सूत्र, प्रोग्रामिंग ... आदि  के लिए अनुपयुक्त ही बनाए रखना चाहिए?
 
चूँकि अब युनिकोड व ओपेन टाइप फोंट सर्वत्र प्रचलित हो गए हैं, इनमें व्यापक सुविधाएँ हैं, ऐसी व्यवस्था भी की जा सकती है कि अनुस्वार के बाद उसी वर्ग के चारों वर्णों में से कोई आए तो वह स्वतः पंचमाक्षर में बदल कर प्रकट हो, यथा-  'प+ं+च' टाइप करते ही शब्द "पञ्च' रूप में प्रकट हो। जिससे टंकण करनेवाले व्यक्ति को भी अतिरिक्त परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। 
 
आज के वैज्ञानिक युग में विशेषकर कम्प्यूटिंग के जमाने में यदि किसी प्राचीन काल में किसी मजबूरी में काम चलाने के लिए हुए प्रचलन को ही यदि मानक रहने दिया जाए तो समग्र भाषा/लिपि का प्रयोग क्या अवरूद्ध नहीं रहेगा। प्रगत राष्ट्रों के साथ होड़ तो दूर की बात, उलटे कदम चलना नहीं हो जाएगा?
 
अतः क्या आज तथा भविष्य को ध्यान में रखते हुए क्या मानकों के उक्त दो मदों पर नए शोध करके पुनर्विचार नहीं किया जाना चाहिए?

 
2013/1/18 (Dr.) Kavita Vachaknavee <kavita.va...@gmail.com>
व्याकरणानुसार केवल 'हिन्दी' ही एकमात्र सही है व स्वयं मैं सदा इसका ही प्रयोग करती हूँ। किन्तु यह ध्यान दिलाया जाना अनिवार्य है महात्मा गाँधी अ. हि. विश्वविद्यालय द्वारा जो मानकीकरण की योजना चल रही है उसे डॉ रामप्रकाश सक्सेना (नागपुर विश्वविद्यालय) देखते हैं और वे ऐसे प्रत्येक तर्क को निरस्त कर देते हैं, यह कहते हुए कि संस्कृत का व्याकरण आप हिन्दी पर क्यों लागू करती/करते हैं। 

मेरी उनसे कई घंटों लंबी बहसें हुई हैं कि हिन्दी के शब्द व लिपि सब ही संस्कृत से आयत्त है तो नियम भी तो वही चलेंगे।यह प्रत्येक भाषा के साथ होता है।  किन्तु उनके अपने हजार तर्क हैं और अब उनके अनुसार जारी करवाए जा रहे मानकीकरण को ही अंतिम मान कर तदनुसार अपनाए जाने की प्रक्रिया चल रही है। 

Hariraam

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Jan 18, 2013, 5:07:46 AM1/18/13
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अरविन्द जी,
 
आपने बिल्कुल ठीक कहा है...
 
समय की जरूरत के अनुसार सब बदलता रहता है... जब टाइपराइटर युग आया तो मजबूरी-वश पङ्क के बदले पंक, पञ्च के बदले पंच, पण्डा के बदले पंडा, पन्त के बदले पंत, पम्प के बदले पंप का प्रयोग करना पड़ा... अब जब विशेष सुविधाएँ आ गईं है तो लोग पुनः शुद्ध उच्चारण के अनुसार प्रयोग करने लगे हैं।
 
अभी "श्रुतलेखन" सॉफ्टवेयर भी काफी कुछ सुधर गया है, और सुधर रहा है, और "वाचान्तर" भी विकसित हो रहा है... जब स्पीच टू टेक्स्ट की सुविधा - मोबाईल फोन में भी -- आ जाएगी,  यदि किसी को टाइप करना ही नहीं पड़ेगा, तो डिफॉल्ट रूप में ध्वनि-विज्ञान के अनुकूल प्रयोग ही प्रचलित होने लगेंगे...
 
बड़े से बड़े ई-शब्दकोश भी कुछ ही मिनटों में सुधार लिए जाएँगे। लेकिन मुद्रित पुस्तकें पुरानी पुस्तक के रूप में रहेगी ही...
 
मानक एकरूपता के लिए निर्धारत किए जाते हैं, लेकिन यदि कोई मानक विज्ञान व तकनीकी के अनुकूल न हो तो कालक्रम में अप्रयुक्त होते होते स्वतः रद्द हो जाता है...
 
भाषा सम्बन्धी कोई मानक या कोई भी नियम (आयकर अधिनियम की तरह) किसी पर थोपा तो जा ही नहीं सकता। देश, काल, पात्र के अनुसार भाषा/बोली/लहजा सब बदल जाते हैं। मानकों का प्रयोग सभी करेंगे या कर पाएँगे... इसमें सन्देह और लचीलापन रहता है... हाँ यदि सरल, सुलभ और सस्ता हो तो सभी स्वतः अपना लेते हैं।
 
-- हरिराम

2013/1/18 Arvind Kumar <samant...@gmail.com>

... ...

जिस तरह के मानकीकरण की बात अब सदस्यजन करने लगे हैं, उसे पाने का एकमात्र उपाय एक नया हिंदी कोश बनाना है. ऐसा कोश बन भी गया तो कौन किस संदर्भ में क्या लिखेगा, यह उस पर छोड़ देना होगा.  

 

... ...

 

अरविंद

 

Anunad Singh

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Jan 18, 2013, 9:46:01 AM1/18/13
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मैने आज तक 'मानकीकरण' का जो अर्थ समझा है वह यह है - 'किसी चीज की बहुत सी
प्रचलित पद्धतियों में से एक को उसकी वैज्ञानिकता, उपयोगिता और लोकप्रियता आदि के कारण प्रोत्साहित करना एवं शेष सभी का प्रचलन कम करना।'

जब सक्सेना जी 'हिन्दी संस्कृत नहीं है' कहते हैं तो ऐसा लगता है कि उन्हें 'मानकीकरण' का कोई अन्य अर्थ भी पता है। मेरे खयाल से मानकीकरण का अर्थ 'किसी नई प्रणाली का अनुसंधान' नहीं है बल्कि 'प्रचलित प्रणालियों में से सर्वश्रेष्ठ का वरण' है।
 
मुझे तो कभी-कभी लगता है कि पंचमाक्षर के को अमान्य करके उसके स्थान पर अनुस्वार को 'मानक' घोषित करने के लिए समिति को किसी समूह ने बंधक तो नहीं बनाया था!

-- अनुनाद

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2013/1/18 (Dr.) Kavita Vachaknavee <kavita.va...@gmail.com>
व्याकरणानुसार केवल 'हिन्दी' ही एकमात्र सही है व स्वयं मैं सदा इसका ही प्रयोग करती हूँ। किन्तु यह ध्यान दिलाया जाना अनिवार्य है महात्मा गाँधी अ. हि. विश्वविद्यालय द्वारा जो मानकीकरण की योजना चल रही है उसे डॉ रामप्रकाश सक्सेना (नागपुर विश्वविद्यालय) देखते हैं और वे ऐसे प्रत्येक तर्क को निरस्त कर देते हैं, यह कहते हुए कि संस्कृत का व्याकरण आप हिन्दी पर क्यों लागू करती/करते हैं। 

मेरी उनसे कई घंटों लंबी बहसें हुई हैं कि हिन्दी के शब्द व लिपि सब ही संस्कृत से आयत्त है तो नियम भी तो वही चलेंगे।यह प्रत्येक भाषा के साथ होता है।  किन्तु उनके अपने हजार तर्क हैं और अब उनके अनुसार जारी करवाए जा रहे मानकीकरण को ही अंतिम मान कर तदनुसार अपनाए जाने की प्रक्रिया चल रही है। 

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