विद्या, चिह्न या विद्‍या, चिह्‍न? (मानक हिंदी के संदर्भ में)

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Suyash Suprabh

unread,
May 2, 2009, 6:58:12 AM5/2/09
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
सन् 2003 में आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी में निर्धारित नियम के अनुसार
द और ह के संयुक्ताक्षर बनाने के लिए हल् चिह्न का प्रयोग करना चाहिए।

उपर्युक्त नियम के अनुसार विद्या और चिह्न को क्रमश: विद्‍या और चिह्‍न
लिखना चाहिए।

व्यावहारिक कारणों से इस नियम का पालन नहीं हो पाता है। अधिकतर लोग
कंप्यूटर पर हल् चिह्न टाइप नहीं कर पाते हैं।

इंटरनेट पर भी केवल 'विद्या' और 'चिह्न' के उदाहरण मिलते हैं।

अनेक अनुभवी अनुवादकों का यह मानना है कि यह नियम वास्तविकता की अनदेखी
करते हुए बनाया गया है।

क्या आप भी इस नियम में संशोधन की आवश्यकता महसूस करते हैं?

सादर,

सुयश
http://anuvaadkiduniya.blogspot.com

Anand D

unread,
May 2, 2009, 7:51:40 AM5/2/09
to technic...@googlegroups.com
सुयश जी,

मैंने पहले किसी लेख में पढ़ा था (कहाँ यह याद नहीं आ रहा है), कि हिंदी में संयुक्ताक्षरों की परंपरा बहुत पुरानी है। परंतु मैन्‍युअल टाइपराइटर में कुंजियों की संख्‍या सीमित होती थी, इसलिए संयुक्‍ताक्षर के विकल्‍प के रूप में हलंत लगाकर काम चलाया जाता था। शायद इसीलिए हलंत वाले शब्‍द इतने लोकप्रिय हो गए होंगे कि उन्‍होंने मानक का स्‍थान ले लिया।

मेरा मानना है कि अब, जब कंप्यूटर में यूनीकोड में विभिन्‍न प्रकार के संयुक्‍ताक्षर लिखने की सुविधा उपलब्‍ध है, जैसे प्रतिष्‍ठा के बजाए प्रतिष्ठा या रक्‍त के बजाए रक्त, तो क्‍यों न उनके मूल रूप जैसे प्रतिष्ठा या रक्त (आपके प्रश्‍न के संदर्भ में चिह्न या विद्या) में लिखा जाए।  और आप देखेंगे कि डिफ़ॉल्‍ट रूप में टाइप करने पर अधिकांश संयुक्ताक्षर स्‍वत: ही बन जाते हैं, हलंत लगाकर लिखने के लिए कुछ अतिरिक्त उद्यम करना पड़ता है।

हाँ सन 2003 की संगोष्ठी क्‍या थी, उसमें कौन-कौन से नियम या सिफारिशें की गईं, इस बारे में कुछ विस्‍तार से बताएँ तो ज्ञानवर्धन होगा।

- आनंद


2009/5/2 Suyash Suprabh <translate...@gmail.com>

Suyash Suprabh

unread,
May 2, 2009, 10:31:05 AM5/2/09
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
आनंद जी,

आपके उत्तर से भी यही बात सामने आती है कि द और ह के संयुक्ताक्षर बनाने
के लिए हल् चिह्न के प्रयोग को मानक घोषित करना उचित नहीं है।

भारत सरकार ने मानक हिंदी पर विचार-विमर्श के लिए सन् 2003 में अखिल
भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया था। मैं समयाभाव के कारण सभी नियमों का
उल्लेख नहीं कर पा रहा हूँ। कुछ नियम इस प्रकार हैं :

"1. संयुक्‍त वर्ण

1.1.1 खड़ी पाई वाले व्यंजन
खड़ी पाई वाले व्यंजनों के संयुक्‍त रूप परंपरागत तरीके से खड़ी पाई को
हटाकर ही बनाए जाएँ। यथा:–
ख्याति, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा, नगण्य, कुत्‍ता, पथ्य, ध्वनि, न्यास,
प्यास, डिब्बा, सभ्य, रम्य, शय्या, उल्लेख, व्यास, श्‍लोक, राष्ट्रीय,
स्वीकृति, यक्ष्मा, त्र्यंबक

1.1.2 अन्य व्यंजन

1.1.2.1 क और फ/फ़ के संयुक्‍ताक्षर संयुक्‍त, पक्का, दफ़्तर आदि की तरह
बनाए जाएँ।

1.1.2.2 ङ, छ, ट, ड, ढ, द और ह के संयुक्‍ताक्षर हल् चिह्‍न लगाकर ही
बनाए जाएँ। यथा:–
वाङ‍्मय, लट्टू, बुड्ढा, विद्‍या, चिह्‍न, ब्रह्‍मा।

1.1.2.3 संयुक्‍त ‘र’ के प्रचलित तीनों रूप यथावत् रहेंगे। यथा:–
प्रकार, धर्म, राष्ट्र।

1.1.2.4 श्र का प्रचलित रूप ही मान्य होगा। श्र और त्र के अतिरिक्‍त अन्य
व्यंजन+र के संयुक्‍ताक्षर 1.1.2.3 के नियमानुसार बनेंगे। जैसे :– क्र,
प्र, ब्र, स्र, ह्र आदि।

1.1.2.5 हल् चिह्‍न युक्त वर्ण से बनने वाले संयुक्‍ताक्षर के द्वितीय
(इस नियम के अनुसार 'द्वितीय' की वर्तनी मानक नहीं है। मैं मानक वर्तनी
टाइप नहीं कर पा रहा हूँ।) व्यंजन के साथ इ की मात्रा का प्रयोग संबंधित
व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व। (मैं
इस नियम के उदाहरण टाइप नहीं कर पा रहा हूँ)
टिप्पणी : संस्कृत भाषा के मूल श्‍लोकों को उद्‍धृत करते समय
संयुक्‍ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे। जैसे:– संयुक्त, चिह्न,
विद्या, विद्वान, वृद्ध, द्वितीय, बुद्धि आदि। किंतु यदि इन्हें भी
उपर्युक्‍त नियमों के अनुसार ही लिखा जाए तो कोई आपत्‍ति नहीं होगी।"

मैं आशा करता हूँ कि अन्य सदस्य भी हमें अपने विचारों से अवगत कराएँगे।

सादर,

सुयश
09868315859
http://anuvaadkiduniya.blogspot.com


On May 2, 4:51 pm, Anand D <anande...@gmail.com> wrote:
> सुयश जी,
>
> मैंने पहले किसी लेख में पढ़ा था (कहाँ यह याद नहीं आ रहा है), कि हिंदी में
> संयुक्ताक्षरों की परंपरा बहुत पुरानी है। परंतु मैन्‍युअल टाइपराइटर में
> कुंजियों की संख्‍या सीमित होती थी, इसलिए संयुक्‍ताक्षर के विकल्‍प के रूप में
> हलंत लगाकर काम चलाया जाता था। शायद इसीलिए हलंत वाले शब्‍द इतने लोकप्रिय हो
> गए होंगे कि उन्‍होंने मानक का स्‍थान ले लिया।
>
> मेरा मानना है कि अब, जब कंप्यूटर में यूनीकोड में विभिन्‍न प्रकार के
> संयुक्‍ताक्षर लिखने की सुविधा उपलब्‍ध है, जैसे प्रतिष्‍ठा के बजाए प्रतिष्ठा
> या रक्‍त के बजाए रक्त, तो क्‍यों न उनके मूल रूप जैसे प्रतिष्ठा या रक्त (आपके
> प्रश्‍न के संदर्भ में चिह्न या विद्या) में लिखा जाए।  और आप देखेंगे कि
> डिफ़ॉल्‍ट रूप में टाइप करने पर अधिकांश संयुक्ताक्षर स्‍वत: ही बन जाते हैं,
> हलंत लगाकर लिखने के लिए कुछ अतिरिक्त उद्यम करना पड़ता है।
>
> हाँ सन 2003 की संगोष्ठी क्‍या थी, उसमें कौन-कौन से नियम या सिफारिशें की गईं,
> इस बारे में कुछ विस्‍तार से बताएँ तो ज्ञानवर्धन होगा।
>
> - आनंद
>

> 2009/5/2 Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com>

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Hariraam

unread,
May 2, 2009, 11:56:06 PM5/2/09
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
सुयश जी,

जी हाँ, मैं इन नियमों में संशोधन की नितान्त आवश्यकता महसूस करता हूँ।
क्योंकि
ये नियम तत्कालीन लेखन तथा टंकण (मैनुअल टाइपराइटर पर) के कार्य को ही
ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे।
आधुनिक Computing needs की इसमें पूरी अनदेखी की गई है।


वर्तमान देवनागरी विश्वव्यापी हो गई है, विशेषकर युनिकोड के प्रचलन से।
युनिकोड में केवल कोड-प्वाइंट ही computing में save और process होते
हैं। पारम्परिक (संयुक्ताक्षर रूप में ) रूप में प्रदर्शन तथा मुद्रण के
लिए ओपेन टाइप फोंट में glyph substitution तथा glyph possitioning आदि
जटिल प्रक्रियाओं का सहारा लिया जाता है।
विशेषकर Automatic Database Management, OCR, online forms, Advance
forms, Dynamic forms, speech to text तथा text to speech आदि के उन्नत
अनुप्रयोगों लिए देवनागरी के मूल स्वरूप को ही एकमुखी रूप में प्रयोग
करना होगा।


चिह्न शब्द यों save होता है
च + इ(मात्रा) + ह + हलन्त + न


जबकि प्रदर्शन यों होता है
इ(मात्रा) + च + ह्न (संयुक्ताक्षर)


यह प्रदर्शन आपरेटिंग सीस्टम से rendering engine और OT fonts की glyph
substitution प्रक्रिया के सहारे on the fly किया होता है, जिसका यूजर
को
पता तक नहीं चलता। 3 tier system के आधार पर देवनागरी लिपि process होती
है, इसी कारण इसे Complex Script वर्ग में रख गया है।


किन्तु भविष्य में देवनागरी में भी वर्तमान basic-latin के समान सरल व
सपाट single tier computing को ध्यान में रखते हुए सभी स्तर पर
व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं। देवनागरी कूट-निर्धारण और वर्तनी के नियमों
में भी तदनुकूल भारी परवर्तन होगा।


-- हरिराम


On 2 मई, 15:56, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com> wrote:
.....


On 2 मई, 19:31, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com> wrote:
>

Suyash Suprabh

unread,
May 3, 2009, 8:06:07 AM5/3/09
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
हरिराम जी,

अच्छी जानकारी प्रदान करने के लिए बहुत धन्यवाद।

क्या द्‍वितीय शब्द में 'इ' की मात्रा को 'व' से ठीक पहले टाइप करना संभव
है? इससे संबंधित नियम इस प्रकार है:

"1.1.2.5 हल् चिह्‍न युक्त वर्ण से बनने वाले संयुक्‍ताक्षर के द्वितीय
(इस नियम के अनुसार 'द्वितीय' की वर्तनी मानक नहीं है। मैं मानक वर्तनी
टाइप नहीं कर पा रहा हूँ।) व्यंजन के साथ इ की मात्रा का प्रयोग संबंधित
व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व। (मैं
इस नियम के उदाहरण टाइप नहीं कर पा रहा हूँ)
टिप्पणी : संस्कृत भाषा के मूल श्‍लोकों को उद्‍धृत करते समय
संयुक्‍ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे। जैसे:– संयुक्त, चिह्न,
विद्या, विद्वान, वृद्ध, द्वितीय, बुद्धि आदि। किंतु यदि इन्हें भी
उपर्युक्‍त नियमों के अनुसार ही लिखा जाए तो कोई आपत्‍ति नहीं होगी।"

सादर,

सुयश
http://anuvaadkiduniya.blogspot.com

Dr. Kavita Vachaknavee

unread,
May 3, 2009, 8:39:15 AM5/3/09
to technic...@googlegroups.com

narayan prasad

unread,
May 3, 2009, 8:57:28 AM5/3/09
to technic...@googlegroups.com
<<क्या द्‍वितीय शब्द में 'इ' की मात्रा को 'व' से ठीक पहले टाइप करना संभव है?>>
 
द्‌वितीय
 
ZWNJ कुंजी का प्रयोग करें ।
 
मेरे विचार में द्वितीय के स्थान पर द्‌वितीय लिखना अशुद्ध है, क्योंकि उच्चारण द्वितीय ही होता है, द्‌वितीय नहीं । मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि द्व का एक साथ उच्चारण किया जाता है, पृथक्-पृथक् नहीं । इसका अन्दाज आपको तब लग सकता है जब "क्ह" और "ख", "ग्ह" और "घ" आदि में उच्चारण में अन्तर आप स्पष्ट रूप से कर सकें । 

 मानक वर्तनी बनानेवालों की सूची यदि आप दे सकें तो कृपा होगी ।
 
जैसे पहले "इ", "ई", "उ", "ऊ", आदि के लिए "अ" अक्षर में मात्रा का प्रयोग करके "अ‍ि", "अ‍ी", "अ‍ु", "अ‍ू" आदि लिखने के प्रस्ताव का लोगों ने स्वागत नहीं किया, वैसे ही संयुक्ताक्षरों की भद्दी वर्तनी लोगों को (कम से कम संस्कृतज्ञों को) तो पसन्द नहीं आयेगी ।
---नारायण प्रसाद
३ मई २००९ १७:३६ को, Suyash Suprabh <translate...@gmail.com> ने लिखा:

Suyash Suprabh

unread,
May 3, 2009, 10:37:38 AM5/3/09
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
नारायण जी,

आपने लिखा है:

<<मेरे विचार में द्वितीय के स्थान पर द्‌वितीय लिखना अशुद्ध है, क्योंकि
उच्चारण द्वितीय ही होता है, द्‌वितीय नहीं ।>>

मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।

मैंने 'द्वितीय' से संबंधित नियम को केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा सन्
2006 में प्रकाशित 'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' शीर्षक
पुस्तिका से उद्धृत (मानक वर्तनी (?) - उद्‍धृत) किया है। यह पुस्तिका
नि:शुल्क उपलब्ध है। निदेशालय का पता इस प्रकार है:

केंद्रीय हिंदी पुस्तकालय
माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा विभाग
मानव संसाधन विकास मंत्रालय
पश्‍चिमी खंड-7, रामकृष्णपुरम
नई दिल्ली-110066

पुनरावलोकन तथा अखिल भारतीय संगोष्ठी में कुल मिलाकर 32 सदस्य उपस्थित
थे। इनकी सूची अभी मैं समयाभाव के कारण प्रस्तुत नहीं कर पा रहा हूँ। मैं
समय मिलते ही यह सूची आपको भेज दूँगा।

सादर,

सुयश

On May 3, 5:57 pm, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> <<क्या द्‍वितीय शब्द में 'इ' की मात्रा को 'व' से ठीक पहले टाइप करना संभव
> है?>>
>
> द्‌वितीय
>
> ZWNJ कुंजी का प्रयोग करें ।
>
> मेरे विचार में द्वितीय के स्थान पर द्‌वितीय लिखना अशुद्ध है, क्योंकि उच्चारण
> द्वितीय ही होता है, द्‌वितीय नहीं । मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि द्व का एक
> साथ उच्चारण किया जाता है, पृथक्-पृथक् नहीं । इसका अन्दाज आपको तब लग सकता है
> जब "क्ह" और "ख", "ग्ह" और "घ" आदि में उच्चारण में अन्तर आप स्पष्ट रूप से कर
> सकें ।
>
>  मानक वर्तनी बनानेवालों की सूची यदि आप दे सकें तो कृपा होगी ।
>
> जैसे पहले "इ", "ई", "उ", "ऊ", आदि के लिए "अ" अक्षर में मात्रा का प्रयोग करके
> "अ‍ि", "अ‍ी", "अ‍ु", "अ‍ू" आदि लिखने के प्रस्ताव का लोगों ने स्वागत नहीं
> किया, वैसे ही संयुक्ताक्षरों की भद्दी वर्तनी लोगों को (कम से कम संस्कृतज्ञों
> को) तो पसन्द नहीं आयेगी ।
> ---नारायण प्रसाद

> ३ मई २००९ १७:३६ को, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com> ने लिखा:

Suyash Suprabh

unread,
May 3, 2009, 10:40:37 AM5/3/09
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
केंद्रीय हिंदी निदेशालय का पता:

केंद्रीय हिंदी निदेशालय

माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा विभाग
मानव संसाधन विकास मंत्रालय
पश्‍चिमी खंड-7, रामकृष्णपुरम
नई दिल्ली-110066

On May 3, 5:57 pm, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> <<क्या द्‍वितीय शब्द में 'इ' की मात्रा को 'व' से ठीक पहले टाइप करना संभव
> है?>>
>
> द्‌वितीय
>
> ZWNJ कुंजी का प्रयोग करें ।
>
> मेरे विचार में द्वितीय के स्थान पर द्‌वितीय लिखना अशुद्ध है, क्योंकि उच्चारण
> द्वितीय ही होता है, द्‌वितीय नहीं । मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि द्व का एक
> साथ उच्चारण किया जाता है, पृथक्-पृथक् नहीं । इसका अन्दाज आपको तब लग सकता है
> जब "क्ह" और "ख", "ग्ह" और "घ" आदि में उच्चारण में अन्तर आप स्पष्ट रूप से कर
> सकें ।
>
>  मानक वर्तनी बनानेवालों की सूची यदि आप दे सकें तो कृपा होगी ।
>
> जैसे पहले "इ", "ई", "उ", "ऊ", आदि के लिए "अ" अक्षर में मात्रा का प्रयोग करके
> "अ‍ि", "अ‍ी", "अ‍ु", "अ‍ू" आदि लिखने के प्रस्ताव का लोगों ने स्वागत नहीं
> किया, वैसे ही संयुक्ताक्षरों की भद्दी वर्तनी लोगों को (कम से कम संस्कृतज्ञों
> को) तो पसन्द नहीं आयेगी ।
> ---नारायण प्रसाद

> ३ मई २००९ १७:३६ को, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com> ने लिखा:

narayan prasad

unread,
May 3, 2009, 11:41:44 AM5/3/09
to technic...@googlegroups.com

"भाषा" पत्रिका में मेरा निम्नलिखित लेख छपा था -
"नारायण प्रसाद (2007): "वैज्ञानिक तथा अभियंता हेतु अनुप्रयुक्त संस्कृत", भाषा (वर्षः 46  अंक 6 ; जुलाई-अगस्त), केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, पृष्ठ 13-19."

इसमें मेरे द्वारा प्रयुक्त युक्ताक्षरों को आपके द्वारा निर्दिष्ट मानकीकरण को आधार बनाकर परिवर्तित करके छापा गया था ।

बहुतेरे आधुनिक विद्वज्जन भाषा को आधुनिक मशीन से बने Procrustean Bed पर सुलाना चाहते हैं । उनकी दृष्टि में मशीन के अनुसार वर्णमाला और वर्तनी को फिट होना चाहिए, न कि इसके विपरीत अर्थात् धर्म (religion) मानव के कल्याण के लिए न होकर, मानव को वैसा बनना है जिससे धर्म का कल्याण हो ।  इसी बात को लेकर 1950 के दशक में कुछ लोग देवनागरी वर्णमाला को ही परिवर्तित करके अंगरेजी टाइपराइटर के अनुसार फिट करना चाहते थे । आचार्य रघुवीर ने इसका कड़ा विरोध किया था । उनका कहना था कि मशीन को ही परिवर्तित करके देवनागरी के लायक बनाना चाहिए । इसके लिए उन्होंने चीन में निर्मित चीनी लिपि में टाइप करने के लिए चालीस हजार कुंजियों वाले टाइपराइटर का उदाहरण प्रस्तुत किया था । आज तो जैसा आपलोग भी जानते हैं, यूनिकोड CJK चिह्नों की संख्या लगभग अस्सी हजार है । चीनी लोग तो एक लाख से ऊपर प्रयुक्त सभी चीनी चिह्नों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं । और हमारे देश में कुछ इने-गिने देवनागरी चिह्नों ही की दुर्गति करके अंगरेजी ढर्रे पर ढालकर कुछ ही चिह्नों को शेष रखना चाहते हैं । 

नोटः

Procrustes: (Gk legend) Robber who laid travellers on a bed and made them fit it by cutting off their limbs, or stretching them. He was killed by Theseus.

Procrustean: compelling conformity by violent means.

--- नारायण प्रसाद 

३ मई २००९ २०:१० को, Suyash Suprabh <translate...@gmail.com> ने लिखा:

अजित वडनेरकर

unread,
May 3, 2009, 12:58:11 PM5/3/09
to technic...@googlegroups.com
नारायणजी , 
बहुत बढ़िया लगा आपकी बातें पढ़कर। 
यही है स्थिति। 
आभार

2009/5/3 narayan prasad <hin...@gmail.com>



--
शुभकामनाओं सहित
अजित
http://shabdavali.blogspot.com/

Hariram

unread,
May 3, 2009, 9:50:04 PM5/3/09
to Suyash Suprabh, hindian...@googlegroups.com, technic...@googlegroups.com
आप
(1) क्क (2) क्‍क (3) क्‌क
तीनों रूपों में टाइप कर सकते हैं।
 
यदि आप विण्डोज के इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड का उपयोग करते हैं तो
 
क्क तो सामान्यत प्रकट होगा - क + हलन्त + क टाइप करके
 
क्‍क रूप के लिए -- क + हलन्त + control-F1(अर्थात् zwj) + क
 
क्‌क रूप के लिए -- क + हलन्त + control-F2(अर्थात् zwnj) + क
 
 
यहाँ एक आधा अक्षर और एक पूरा अक्षर टाइप करने के लिए चार-चार कोड type, save & process करने पड़ते हैं।
 
अर्थात डेढ़ अक्षर के लिए चार अक्षरों का कूट
 
जबकि दो अक्षरों के लिए दो ही कूट लगेंगे यदि सिर्फ "कक" लिखना हो तो।
 
 
यही है देवनागरी युनिकोड कूट-निर्धारण में हुई त्रुटियों की विडम्बना,
जिसके कारण Sortig, Indexing, Auto-Database, OCR, STT, TTS इत्यादि सभी computing के प्रयोग बिगड़ जाते हैं।
 
उदाहरण के लिए -- यदि किसी शब्दकोष में उपर्युक्त तीन रूपों में "क्क, क्‍क या क्‌क" का प्रयोग हुआ हो तो तीनों का क्रम-विन्यास (alphabetical sorting) अलग अलग होगा और तीनों रूपों में प्रयुक्त वर्ण अलग-अलग स्थानों पर प्रकट होंगे।
 
-- हरिराम
 
2009/5/3 Suyash Suprabh <translate...@gmail.com>
हरिराम जी,

क्षमा करें, थोड़ी देर पहले गूगल समूह में 'विद्या और चिह्न' वाली पोस्ट मुझसे मिट गई थी।

मैंने इस पोस्ट को अपने इनबॉक्स से हिंदी अनुवादकों के गूगल समूह को पुन: अग्रेषित किया है।

मैं आशा करता हूँ कि आप इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।

क्या 'क' के नीचे आधा 'क' जोड़कर लिखना संभव है? मैं 'क्क' तो टाइप कर लेता हूँ, लेकिन मैं इसे दूसरे रूप में टाइप  नहीं कर पा रहा हूँ।

सादर,

सुयश


On May 3, 10:10 pm, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com> wrote:
> ---------- अग्रेषित संदेश ----------
> प्रेषक: Hariraam <harira...@gmail.com>

> दिनांक: ३ मई २००९ ०९:१६
> विषय: Re: विद्या, चिह्न या विद्‍या, चिह्‍न? (मानक हिंदी के संदर्भ में)
> प्रति: "हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)"
> <hindian...@googlegroups.com>

>
> सुयश जी,
>
> जी हाँ, मैं इन नियमों में संशोधन की नितान्त आवश्यकता महसूस करता हूँ।
> क्योंकि ये नियम तत्कालीन लेखन तथा टंकण (मैनुअल टाइपराइटर पर) के कार्य

> को ही ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे। आधुनिक Computing needs की इसमें
> पूरी अनदेखी की गई है।
>
> वर्तमान देवनागरी विश्वव्यापी हो गई है, विशेषकर युनिकोड के प्रचलन से।
> युनिकोड में केवल कोड-प्वाइंट ही computing में save और process होते
> हैं। पारम्परिक (संयुक्ताक्षर रूप में ) रूप में प्रदर्शन तथा मुद्रण के
> लिए ओपेन टाइप फोंट में glyph substitution तथा glyph possitioning आदि
> जटिल प्रक्रियाओं का सहारा लिया जाता है।
>
> विशेषकर Automatic Database Management, OCR, online forms, Advance
> forms, Dynamic forms, speech to text तथा text to speech आदि के उन्नत
> अनुप्रयोगों लिए देवनागरी के मूल स्वरूप को ही एकमुखी रूप में प्रयोग
> करना होगा।
>
> चिह्न शब्द यों save होता है
> च + इ(मात्रा) + ह + हलन्त + न
>
> जबकि प्रदर्शन यों होता है
> इ(मात्रा) + च + ह्न (संयुक्ताक्षर)
>
> यह प्रदर्शन आपरेटिंग सीस्टम से rendering engine और OT fonts की glyph
> substitution प्रक्रिया के सहारे on the fly किया होता है, जिसका यूजर को
> पता तक नहीं चलता। 3 tier system के आधार पर देवनागरी लिपि process होती
> है, इसी कारण इसे Complex Script वर्ग में रख गया है।
>
> किन्तु भावी single tier computing को ध्यान में रखते हुए सभी स्तर पर
> व्यपाक परिवर्तन हो रहे हैं। देवनागरी कूट-निर्धारण और वर्तनी के नियमों

Hariram

unread,
May 3, 2009, 10:45:01 PM5/3/09
to technic...@googlegroups.com, hindian...@googlegroups.com
नारायण जी, सुयश जी एवं अन्य सभी विद्वानो
 
सही विकास के लिए न तो भाषा को मशीन के अनुकूल बनाने हेतु तोड़ा-मरोड़ा जाना चाहिए, और न ही भाषा में कुछ गलत प्रयोगों के कारण घुस आई अवैज्ञानिकता को अन्धविश्वास तथा अन्धश्रद्धा के आधार पर प्रश्रय देते हुए वैज्ञानिक नियमों के आधार पर बनी मशीनों (कम्प्यूटर) की प्रणाली को बिगाड़ा जाना चाहिए।
 
बल्कि दोनों के बीच सही ताल-मेल करते हुए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे प्रचलित पारम्परिक रूप में प्रयोग करनेवाले उपयोक्ता को उसके अनुरूप प्रदर्शन और मुद्रण मिल सके और मशीन(कम्प्यूटर) के आन्तरिक संसाधन के लिए कोई विघ्न बाधा या तर्कहीन अवैज्ञानिक रोड़ा आए व प्रोसेसिंग सरल और तीव्र हो।
 
इसके लिए ही Open Type Fonts का विकास हुआ है, जिसमें मूलतः encoded characters और non-encoded characters (संयुक्ताक्षरों यथा ज्ञ, क्ष, त्र, द्व, द्ध... इत्यादि) दोनों को शामिल किया जा पा रहा है, तथा प्रोसेसिंग तथा उपयोक्ता के लिए  पारम्परिक रूप में प्रकट करने दोनों की क्षमता है। इसी कारण आज देवनागरी लिपि विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित हो पा रही है।
 
OT fonts में एक ही फोंट में कुल 65536 संयुक्ताक्षरों, वर्णों, मात्राओं को शामिल कर सकते हैं। जबकि अभी तक देवनागरी OT font में केवल 760 glyphs ही रखे गए हैं। नारायण जी के मतानुसार संस्कृत के पारम्परिक विद्वानों के अनुकूल और जितने चाहें संयुक्ताक्षर डिजाइन करके शामिल किए जा सकते हैं।
 
युनिकोड देवनागरी में अभी तक 106 कूट निर्धारित किए गए हैं। जबकि संस्कृत के व्याकरणविदों के 16 स्वर+33व्यंजन कुल 49 ही मूल अक्षर होते हैं। कुछ मात्राओं तथा संयुक्ताक्षरों की भी encoding हुई है।
 
आधुनिक तकनीकी विज्ञान दिनों दिन छोटा और अधिक शक्तिशाली होता जा रहा है। अभी कम्प्यूटर सिमिटकर मोबाईल फोन में समाने लगा है। मोबाईल फोन में speech to text sms, mms, इत्यादि होने लगे हैं। सूक्ष्म सॉफ्टवेयर बन रहे हैं, इसलिए भाषा, वर्ण आदि भी संक्षित होते जा रहे हैं। लोग इण्टरनेट, वेबपेज, ई-मेल आदि भी मोबाइल से ही करने लगे हैं। अतः उनके लिए आवश्यक है ऐसे IME का निर्माण जो मोबाइल फोन की 10-15 कुंजियों से ही हिन्दी ही नहीं, विश्व की समस्त भाषाओं के युनिकोड आधारित तीव्र टंकण करके सन्देश/पाठ/डैटा भेजने हेतु T9 जैसी स्कीम उपयोग की जा रही है।
 
कोई जरूरी नहीं है कि CJK आदि के हजारों अक्षरों के इनपुट के लिए हजारों कुंजियों वाला बड़ा मोबाईल फोन बनाया जाए, जिसे ढोने के लिए फिर एक गाड़ी साथ रखनी पड़े।
 
1989-90 के दौरान जब देवनागरी के कूटों का निर्धारण युनिकोड में हुआ, उस दौरान कुछ त्रुटियाँ रह गईं, जिनसे अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक दो-चार वर्षों बाद अवगत हुए तथा इन्हें सुधारने का प्रयास भी काफी हुआ। किन्तु युनिकोड की stability policy के कारण "this can't be changed, even if completely wrong" नियम के तहत कोई सुधार सम्भव नहीं हो पाया।
जो भी हो अब सारांश में ऐसी व्यवस्था की जा रही है जिससे मूल कोड कम से कम हों जिनकी कुंजियों के संचालन से लाखों वर्णों को अत्यन्त सरलता से और तीव्रगति से इनपुट किया जा सके। समाज के सभी वर्गों के लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक सभी सुविधाएँ मिलें। मूल कोड प्वाइंट कम से कम हो और आउटपुट में संयुक्ताक्षर आदि अधिक से अधिक मिल सकें।
 
-- हरिराम

 
2009/5/3 narayan prasad <hin...@gmail.com>

"भाषा" पत्रिका में मेरा निम्नलिखित लेख छपा था -
"नारायण प्रसाद (2007): "वैज्ञानिक तथा अभियंता हेतु अनुप्रयुक्त संस्कृत", भाषा (वर्षः 46  अंक 6 ; जुलाई-अगस्त), केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, पृष्ठ 13-19."

इसमें मेरे द्वारा प्रयुक्त युक्ताक्षरों को आपके द्वारा निर्दिष्ट मानकीकरण को आधार बनाकर परिवर्तित करके छापा गया था ।

बहुतेरे आधुनिक विद्वज्जन भाषा को आधुनिक मशीन से बने Procrustean Bed पर सुलाना चाहते हैं । उनकी दृष्टि में मशीन के अनुसार वर्णमाला और वर्तनी को फिट होना चाहिए, न कि इसके विपरीत अर्थात् धर्म (religion) मानव के कल्याण के लिए न होकर, मानव को वैसा बनना है जिससे धर्म का कल्याण हो ।  इसी बात को लेकर 1950 के दशक में कुछ लोग देवनागरी वर्णमाला को ही परिवर्तित करके अंगरेजी टाइपराइटर के अनुसार फिट करना चाहते थे । आचार्य रघुवीर ने इसका कड़ा विरोध किया था । उनका कहना था कि मशीन को ही परिवर्तित करके देवनागरी के लायक बनाना चाहिए । इसके लिए उन्होंने चीन में निर्मित चीनी लिपि में टाइप करने के लिए चालीस हजार कुंजियों वाले टाइपराइटर का उदाहरण प्रस्तुत किया था । आज तो जैसा आपलोग भी जानते हैं, यूनिकोड CJK चिह्नों की संख्या लगभग अस्सी हजार है । चीनी लोग तो एक लाख से ऊपर प्रयुक्त सभी चीनी चिह्नों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं । और हमारे देश में कुछ इने-गिने देवनागरी चिह्नों ही की दुर्गति करके अंगरेजी ढर्रे पर ढालकर कुछ ही चिह्नों को शेष रखना चाहते हैं । 

नोटः


--
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>

रावेंद्रकुमार रवि

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May 3, 2009, 11:03:19 PM5/3/09
to technic...@googlegroups.com
>> बहुतेरे आधुनिक विद्वज्जन भाषा को आधुनिक मशीन से बने *Procrustean Bed* पर

>> सुलाना चाहते हैं । उनकी दृष्टि में मशीन के अनुसार वर्णमाला और वर्तनी को
>> फिट
>> होना चाहिए, न कि इसके विपरीत अर्थात् धर्म (religion) मानव के कल्याण के लिए
>> न
>> होकर, मानव को वैसा बनना है जिससे धर्म का कल्याण हो । इसी बात को लेकर 1950
>> के दशक में कुछ लोग देवनागरी वर्णमाला को ही परिवर्तित करके अंगरेजी
>> टाइपराइटर
>> के अनुसार फिट करना चाहते थे । आचार्य रघुवीर ने इसका कड़ा विरोध किया था ।
>> उनका कहना था कि मशीन को ही परिवर्तित करके देवनागरी के लायक बनाना चाहिए ।
>> इसके लिए उन्होंने चीन में निर्मित चीनी लिपि में टाइप करने के लिए चालीस
>> हजार
>> कुंजियों वाले टाइपराइटर का उदाहरण प्रस्तुत किया था । आज तो जैसा आपलोग भी
>> जानते हैं, यूनिकोड CJK चिह्नों की संख्या लगभग अस्सी हजार है । चीनी लोग तो
>> एक
>> लाख से ऊपर प्रयुक्त सभी चीनी चिह्नों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं ।
>> और
>> हमारे देश में कुछ इने-गिने देवनागरी चिह्नों ही की दुर्गति करके अंगरेजी
>> ढर्रे
>> पर ढालकर कुछ ही चिह्नों को शेष रखना चाहते हैं ।
>>
>> नोटः
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> हरिराम
> प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>
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शुभकामनाओं के साथ -
आपका
रावेंद्रकुमार रवि
http://saraspaayas.blogspot.com/

Anand D

unread,
May 5, 2009, 8:38:04 AM5/5/09
to technic...@googlegroups.com
हरी राम जी,

आपने इतनी ज्ञानप्रद जानकारी दी। इससे मन में कई और सवाल उठ खड़े हुए, जैसे Open Type Font क्‍या हैं ? क्‍या मंगल Open Type नहीं है ? अब वर्तमान में हिंदी के लिए 3 tier system प्रचलन में है, जिससे कई समस्‍याएँ उठ खड़ी हुईं, तो इसके लिए 1 tier system कैसे लाया जा सकता है ? कृपया इस बारे में भी प्रकाश डालें।

- आनंद



2009/5/4 रावेंद्रकुमार रवि <raavend...@gmail.com>

mjha...@umassd.edu

unread,
May 5, 2009, 10:48:48 AM5/5/09
to technic...@googlegroups.com, technic...@googlegroups.com

Dear friends,( Sorry for writing in English.) PLEASE FORGIVE.

At the risk of asking a stupid question by the standards of this web
site, may I inquire, the following?

I have been using BARAHA Fonts in GUJARATI, MARATHI, HINDI and SANSKRIT.
It works in other language fonts also, as per BARAHA claim.

It has no problem about all variations of "Vidyaa"---as being discussed
on this site.

It does not seem UNICODE COMPLIANT.

ANY SOLUTIONS? OR DO I HAVE TO MASTER SOME OTHER FONTS?
If so which one do you recommend?
Are there any calligraphic fonts?

I thank all the members as this web site has helped me a lot.
I specially thank the moderators and authorities who are doing an immense
service for the cause of Hindi, which I admire.


Dr. Madhusudan Jhaveri.
Ph. D. ( Structural Engineering)
P. E. (Massachusetts)
University of Massachusetts
Dartmouth, USA

Anunad Singh

unread,
May 5, 2009, 11:14:17 PM5/5/09
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
हिन्दी वर्तनी विचार.pdf नामक एक फाइल में हिन्दी के किसी विद्वान ने
हिन्दी की वर्तनी पर सम्यक दृष्टि डाली है। यह फाइल इस चर्चा समूह के
फाइल-प्रभाग में डाल दी गयी है। यहाँ देखें-

http://groups.google.co.in/group/technical-hindi/web/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0.pdf

Hariram

unread,
May 6, 2009, 11:17:30 PM5/6/09
to technic...@googlegroups.com
आनन्द जी,
 
मंगल भी ओपेन टाइप फोंट है।
देवनागरी मूलतः सरल और एकलस्तरीय थी, कालक्रम में भूल प्रयोगों के कारण यह जटिल बन गई। अब फिर से वर्तमान और मूल के बीच तालमेल हेतु अनुसंधान जारी हैं।

2009/5/5 Anand D <anan...@gmail.com>

narayan prasad

unread,
May 7, 2009, 9:04:40 AM5/7/09
to technic...@googlegroups.com
<<अभी तक देवनागरी OT font में केवल 760 glyphs ही रखे गए हैं।>>
 
इसकी सम्पूर्ण सूची कहाँ मिलेगी ?
 
<<किन्तु युनिकोड की stability policy के कारण "this can't be changed, even if completely wrong" नियम के तहत कोई सुधार सम्भव नहीं हो पाया।>>
 
शायद यह stability policy इसलिए रखी गई हो ताकि अब तक जालस्थल पर तैयार की गई सामग्री व्यर्थ न पड़ जाय ।
 
यूनिकोड में कुल कोड प्वाइंट की क्षमता का 10% ही प्रयोग किया गया है ।
 
----नारायण प्रसाद
४ मई २००९ ०८:१५ को, Hariram <hari...@gmail.com> ने लिखा:

Hariram

unread,
May 7, 2009, 11:40:02 AM5/7/09
to technic...@googlegroups.com


2009/5/7 narayan prasad <hin...@gmail.com>

<<अभी तक देवनागरी OT font में केवल 760 glyphs ही रखे गए हैं।>>
 
इसकी सम्पूर्ण सूची कहाँ मिलेगी ?
 
किसी भी OT Font को  किसी Font Desiging App. में खोल कर देख सकते हैं।
 

 
<<किन्तु युनिकोड की stability policy के कारण "this can't be changed, even if completely wrong" नियम के तहत कोई सुधार सम्भव नहीं हो पाया।>>
 
शायद यह stability policy इसलिए रखी गई हो ताकि अब तक जालस्थल पर तैयार की गई सामग्री व्यर्थ न पड़ जाय ।
 
यूनिकोड में कुल कोड प्वाइंट की क्षमता का 10% ही प्रयोग किया गया है ।
 
----नारायण प्रसाद
 
कोई भी नियम/शास्त्र/कूट जो वैज्ञानिक व्यतिक्रम या गलत बना हो, कालक्रम में उपयोग हीन रहकर नष्ट हो जाता है, या सड़ जाता है, जैसे कि किसी तालाब का बन्धा हुआ पानी। नवीन सरल और सुबोध आविष्कार को लोग अपनाने लगते हैं।
 
मुझे सन्देह है कि युनिकोड आगामी भविष्य में सुप्रचलित रहेगा। अन्तर्राष्ट्रीय रूप में इससे बेहतर, सरल, अति उन्नत और त्रुटिरहित सम्पूर्णतः ध्वन्यात्मक आधारित कम्प्यूटर कूटों के विकास का प्रयास w3c के कुछ वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है।
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