शुद्ध हिंदी प्रयोग करें

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Suyash

unread,
Sep 20, 2018, 3:23:34 PM9/20/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
ये हैं वो उर्दू के शब्द जो आप प्रतिदिन प्रयोग करते हैं, इन विदेशी शब्दों को त्याग कर मातृभाषा का प्रयोग करें:-

ईमानदार - "*निष्ठावान*"
इंतजार - "*प्रतीक्षा*"
इत्तेफाक - "*संयोग*"
सिर्फ - "*केवल*"
शहीद - "*बलिदान*"
यकीन - "*विश्वास,भरोसा*"
इस्तकबाल - "*स्वागत*"
इस्तेमाल - "*उपयोग,प्रयोग*"
किताब - "*पुस्तक*"
मुल्क - "*देश*"
कर्ज - "*ऋण*"
तारीफ - "*प्रशंसा*"
इल्ज़ाम - "*आरोप*"
गुनाह - "*अपराध*"
शुक्रिया - "*धन्यवाद*"
सलाम - "*नमस्कार*"
मशहूर - "*प्रसिद्ध*"
अगर - "*यदि*"
ऐतराज - "*आपत्ति*"
सियासत - "*राजनीति*"
इंतकाम - "*प्रतिशोध*"
इज्जत - "*सम्मान*"
इलाका - "*क्षेत्र*"
एहसान - "*आभार,उपकार*"
अहसानफरामोश - "*कृतघ्न*"
मसला - "*समस्या*"
इश्तेहार - "*विज्ञापन*"
इम्तेहान - "*परीक्षा*"
कुबूल - "*स्वीकार*"
मजबूर - "*विवश,लाचार*"
मंजूरी - "*स्वीकृति*"
इंतकाल - "*मृत्यु*"
बेइज्जती - "*तिरस्कार*"
दस्तखत - "*हस्ताक्षर*"
हैरान - "*आश्चर्य*"
कोशिश - "*प्रयास,चेष्टा*"
किस्मत - "*भाग्य*"
फैसला - "*निर्णय*"
हक - "*अधिकार*"
मुमकिन - "*संभव*"
फर्ज - "*कर्तव्य*"
उम्र - "*आयु*"
साल - "*वर्ष*"
शर्म - "*लज्जा*"
सवाल - "*प्रश्न*"
जबाब - "*उत्तर*"
जिम्मेदार - "*उत्तरदायी*"
फतह - "*विजय*"
धोखा - "*छल*"
काबिल - "*योग्य*"
करीब - "*समीप,निकट*"
जिंदगी - "*जीवन*"
हकीकत - "*सत्य*"
झूठ - "*मिथ्या*"
जल्दी - "*शीघ्र*"
इनाम - "*पुरस्कार*"
तोहफा - "*उपहार*"
इलाज - "*उपचार*"
हुक्म - "*आदेश*"
शक - "*संदेह*"
ख्वाब - "*स्वप्न*"
तब्दील - "*परिवर्तित*"
कसूर - "*दोष*"
बेकसूर - "*निर्दोष*"
कामयाब - "*सफल*"
गुलाम - "*दास*"
वजह - "*कारण*"
अहसास- "*अनुभूति*"

----------------------------इसके अतिरिक्त हम प्रतिदिन अगणित -
उर्दू शब्द का प्रयोग में लेते हैं। ------------------------भाषा बचाइये , संस्कृति बचाइये -------------
जांच करें कि आप कितने उर्दू के शब्द बोलते है।

धन्यवाद !!

10 hrs · Public

लीना मेहेंदळे (Leena Mehendale)

unread,
Sep 21, 2018, 9:52:12 AM9/21/18
to technic...@googlegroups.com
सुंदर शब्द

गुरु, 20 सित॰ 2018 को 9:23 pm बजे को Suyash <suyas...@gmail.com> ने लिखा:
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आपको यह संदेश इसलिए प्राप्त हुआ क्योंकि आपने Google समूह "Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
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--
 ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्य स्विद्धनम्।।
---- गायत्री न्दसामहम् ----
हिंदीसहित सभी भारतीय भाषाओंमें शीघ्रतासे टंकन सीखें 
लीना मेहेंदळे -Leena Mehendale
मुख्य सूचना आयुक्त गोवा (निवृत्त)
पौड रोड, पुणे 411038
Ph (Res) 020-25383472
चित्र


Raju Kumar

unread,
Sep 21, 2018, 11:20:40 AM9/21/18
to technic...@googlegroups.com
उर्दू विदेशी भाषा नहीं है.

और ये सारे शब्द हिंदी को समृद्ध करते हैं. 

बाकी आपकी मर्जी

Regards

Raju Kumar


Anand D

unread,
Sep 21, 2018, 1:55:46 PM9/21/18
to technic...@googlegroups.com
हिंदी को शुद्ध रखने के लिए अच्छा है कि उसे परदे के पीछे पेटी में संजोकर ताला बंद कर रख दें, वरना बाहर निकलेगी को उर्दू, देसी, विदेशी शब्द अपनी मीठी-मी ठी बातों से इसे बहका लेंगे, बहला-फुसलाकर भ्रष्ट कर देंगे। 

हाँ, मेहमानों के आने पर अपना संस्कार जाहिर करने के लिए बस थोड़ी देर के लिए निकाल सकते हैं। लेकिन इससे कामकाज तो न हो पाएगा, सो काम के लिए आया रख सकते हैं, जिसे हिंदुस्तानी कहें, जो घर-बाहर दोनों का काम कर सके। इस प्रोसेस में किसी उर्दू या अन्य म्लेच्छ भाषा से छूने पर कोई ऐतराज न हो, जिसके भ्रष्ट होने से संस्कृति खराब न हो। तब तो ठीक रहेगा न महराज?

आनंद

--
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प्रदीप पाराशर

unread,
Sep 21, 2018, 3:09:46 PM9/21/18
to technic...@googlegroups.com
कुछ दशकों पहले की हिन्दी जो उस कालखंड की पाठ्य पुस्तकों, समाचार पत्रों - पत्रिकाओं के माध्यम से प्रचलन में थी उससे आज की हिन्दी को समृद्ध कहने वाले जो भी तर्क दें किंतु वे यह भी स्वीकारते हैं कि हिन्दी की भाषिक गुणवत्ता में कमी आई है। किसी समय फारसी के स्वरूप से भिन्न देशज देहलवी हिंदवी, दक्षिणी हिंदवी खड़ी बोलियों से पनपी संपर्क भाषा को हिन्दी के मानक स्तर तक पहुंचाने तथा उसे राष्ट्रीयता का वाहक बनाने वाले विद्वजन का हम सम्मान स्मरण नहीं कर पा रहे हैं। हिंदुस्तानी के नाम से उर्दू की राजनीति फारसी अरबी शब्दावली व लिपि से करने वाले जान रहे हैं कि देवनागरी लिपि की स्वीकार्यता निरंतर बढ़ रही है। अनेक प्रादेशिक क्षेत्रीय भाषाओं को देवनागरी से ही व्यापक प्रचार प्रसार मिल रहा है। विगत दो दशकों में लाखों की संख्या सरकारी मदरसे बनवाने व उन्हें बोर्ड के समान अधिकार देने की नई राजनीति अरबी लिपि व मान्यताओं को मनवाने का षड्यंत्र देखते हुए भी अनदेखा करवाया जा रहा है। संभव है कि कुछ समूहों उनके प्रति सदाशयी व्यक्तियों की दृष्टि हिन्दी तथा भारत का कल्याण इसी से हो रहा है।   

यहाँ समूह की पोस्टों में पक्ष विपक्ष या वाद-विवाद के तर्कों - तुक्कों के स्थान पर हिंदी तथा भारतीय भाषाओं को तकनीक की दृष्टि से समृद्ध करने पर बल दिया जा रहा है जिसके मूल में सांस्कृतिक राष्ट्रीयता रूपी एकता रूपी भारतीयता को समृद्ध करना ही ध्येय है। सरकार की राजभाषा हिंदी तो देवनागरी में कुछ भी लिख देने तथा हस्ताक्षर हिंदी जैसे होने में प्रगति समंक पूरे करने का ऐसा तंत्र है जो अधिकार रहित है।
दूसरी ओर लोकप्रियता के बोस डी के से लेकर अरब तुर्क फारस के सत्तात्मक इष्ट का गुणगान हर चौथे गीत में है। समाज का दर्पण कहा जाने वाला मीडिया की भाषा व तेवर की यह स्टाइल है।
विषय के साथ पुनः केंद्बरित होकर कहें तो बहुत से ऐसे विदेशी शब्द हैं जो हिन्दी में सांस्कृतिक संज्ञाओं के साथ सहज मेल खाते हैं लेकिन यह भी ध्यान रहे कि हर छोटी सी घटना पर दुआएं व कैंडल मार्च वालों की मंशा व भाषा किस ओर भारतीय समाज को ले जाने की है। अनेक विद्वान जो स्वयं को मार्क्सवादी स्वीकारते रहे हैं लेकिन भारतीयता के, हिंदी भाषा के पोषक के रूप में भी उनकी पहचान सम्मान भी है।
अतः जो बंधु भाषिक संस्कार व सांस्कृतिक पहचान के साथ भाषा को समृद्ध सबल करना चाहते हैं वे अपने कार्य से गुणवत्ता युक्त सामग्री से इसे आगे बढ़ाएं तथा ऐसे लोग जो 1947-1950 में बने इंडिया रिपब्लिक के काल से ही इस देश को पहचान देने वाले सत्ताअभिमुख तंत्र से प्रभावित हैं वे भी अपने ढंग से अपने एजेंडे को न छोड़ें
क्योंकि उनके उत्तर भी यही हैं हमको तो बाल बच्चे पालने हैं, क्या करें।   

प्रदीप पाराशर
Pradeep Parashar

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V S Rawat

unread,
Sep 21, 2018, 4:37:30 PM9/21/18
to technic...@googlegroups.com, Suyash
> ईमानदार - "*निष्ठावान*" -

यह पर्यायवाची के तौर पर मुझे अजीब लगा। निष्ठा अलग चीज़ होती है, ईमान अलग होता है।

> शहीद - "*बलिदान*"

शहीद - "*बलिदानी*"
शहादत - "*बलिदान*"

> यकीन - "*विश्वास,भरोसा*"

भरोसा ख़ुद उर्दू शब्द है।

> मसला - "*समस्या*"

मसला - मामला होना चाहिए, तो समस्या कुछ अलग चीज़ है।

> बेइज्जती - "*तिरस्कार*"

आम चलन में अपमान है, वो नहीं जमा क्या?

> हकीकत - "*सत्य*"

वास्तविकता। सत्य तो अलग अर्थ हुआ।

> झूठ - "*मिथ्या*"
असत्य नहीं जमा क्या?

अच्छी सूचि है। शुद्धतावादियों के काम आएगी।

धन्यवाद।
रावत

Anunad Singh

unread,
Sep 22, 2018, 3:10:56 AM9/22/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
देश-कल और सन्दर्भ के अनुसार 'शुद्ध हिंदी' के कई रूप सम्भव हैं।  एक सामान्य बात तो सबको मान्य होगी कि जो शब्द सहस्रों वर्षों से भारतीय समाज में  रचे बसे हैं, उनके प्रयोग को दबाते हुए उनके स्थान पर  विदेशी शब्दों का प्रयोग करना ठीक नहीं है। उदाहरण के लिए, वक्त, इम्तहान,  शायर,  शायरी,  इत्तेफाक,   आदि  शब्दों का भारतीय भाषाओं में प्रयोग क्यों करें जबकि हमारा समाज इनके लिए  समय, परीक्षा, कवि, काव्य,  संयोग,   आदि का उपयोग करता आया है।  ये शब्द हमारे रक्त में  रचे बसे हैं।  

यह सोचना कि अरबी-फारसी-अंग्रेजी के शब्द  भारतीय भाषाओं में  स्वाभाविक रूप से (अनायास) आये हैं ,  सत्य से कोसों दूर है।  ये डंडे के बल पर घुसाये गये हैं।  ये डण्डा कहीं  राजसत्ता द्वारा पारित कानून का डंडा था तो कहीं परोक्ष रूप से इसके लिए कार्य कर रहा कोई समूह।  सर्वविदित है कि उत्तर भारत में भारतेन्दु के समय में भी न्यायालयों की भाषा और लिपि दोनों ही फारसी थी जिसे हटाने के लिए एक सुविचारित आन्दोलन आरम्भ हुआ और आधुनिक हिन्दी की एक नयी चेतना ने जन्म लिया।  यह आन्दोलन अत्यन्त सफल हुआ  और हिन्दी की सर्वांगीण उन्नति हुई। 

आनदन्द जी,  यह समस्य न तो नई है और न ही केवल हिन्दी की समस्या है।  यह समस्या यदि गहराई से देखेंगे तो जापानी, फ्रांसीसी,  आदि सैकड़ों अन्य भाषाओं में भी मिलेगी।   इस समस्या को जिस तुलना या रूपक के द्वारा आपने अभिव्यक्त किया है वह इस समस्या के लिए सही रूपक नहीं है।  यदि यह रूपक सही होता ओ भारत पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजों को  भारत पर अंग्रेजी लादने के लिए कानून बनाने की आवश्यकता नहीं होती।  अंग्रेजी  हजार-दो हजार  भारतीय शब्द  ले ली होती और  पूरे भारत में अनायास छा गयी होती।

रावत जी,  इमान शब्द का सही तुल्य शब्द भारतीय भाषाओं में मिल ही नहीं सकता।  क्योंकि   इमानदर वह है जो -
  1. Belief in Allah, The Only God
  2. Belief in the Angels
  3. Belief in Holy Books
  4. Belief in the Prophets
  5. Belief in the Day of Judgment
  6. Belief in God's predestination
   --अनुनाद सिंह

On Sat, Sep 22, 2018 at 2:16 AM V S Rawat <vsr...@gmail.com> wrote:
Boxbe This message is eligible for Automatic Cleanup! (vsr...@gmail.com) Add cleanup rule | More info
 > ईमानदार - "*निष्ठावान*" -

यह पर्यायवाची के तौर पर मुझे अजीब लगा। निष्ठा अलग चीज़ होती है, ईमान अलग होता है।

 > शहीद - "*बलिदान*"

शहीद - "*बलिदानी*"
शहादत - "*बलिदान*"


 > यकीन - "*विश्वास,भरोसा*"

भरोसा ख़ुद उर्दू शब्द है।

 > मसला - "*समस्या*"

मसला - मामला होना चाहिए, तो समस्या कुछ अलग चीज़ है।

 > बेइज्जती - "*तिरस्कार*"

आम चलन में अपमान है, वो नहीं जमा क्या?

 > हकीकत - "*सत्य*"

वास्तविकता। सत्य तो अलग अर्थ हुआ।

 > झूठ - "*मिथ्या*"
असत्य नहीं जमा क्या?

अच्छी सूचि है। शुद्धतावादियों के काम आएगी।

धन्यवाद।
रावत

On 9/21/2018 12:53 AM, Suyash wrote:
--
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Anunad Singh

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Sep 22, 2018, 3:17:41 AM9/22/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
 मेरे पूर्वसन्देश के ही क्रम में,

... इसलिए 'मैं इमानदार हूँ'  या ' इमानदारी से बोलूँ तो...'  आदि कहना  बिलकुल भिन्न अर्थ रखते हैं।
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Suyash

unread,
Sep 22, 2018, 10:28:01 AM9/22/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
अनुनाद जी आपका बहुत आभारी हूँ। आप ने इस पोस्ट के मूल हेतू को - स्वाभिमान - स्वदेशी भाषा एवं संस्कृति के अभिमान को उजागर करने का प्रयास किया।

बाकी कुछ लोग तो इस विषय को राजनितिक, धार्मिक तथा मूढतापूर्ण अर्थ देने में लगे हैै।

ऐसे कुछ पोस्ट पर उत्तर देना चाहता हूँ।


<हिंदी को शुद्ध रखने के लिए अच्छा है कि उसे परदे के पीछे पेटी में संजोकर ताला बंद कर रख दें, वरना बाहर निकलेगी को उर्दू, देसी, विदेशी शब्द अपनी मीठी-मी ठी बातों से इसे बहका लेंगे, बहला-फुसलाकर भ्रष्ट कर देंगे। >

 यह वाक्य लेखक के बुद्धीहीनता का प्रदर्शन करता है। हिंदी को ताला बंद कर रखने की भला क्या आवश्यकता है? जिस भाषा संस्कृति को कुचलने का, मिटा देने का प्रयास फारसी -अरबी शासकों ने सैकडों वर्षों तक किया पर फिर भी जो
भाषा जन-जन के जीवन का भाग बनी रहीं, जिस भाषा को संस्कृत एवं प्राकृत का सुदृढ संबल प्राप्त है, जो भाषा भारतभूमी पर सबसे अधिक बोली जाती है, उस भाषा को कोई विदेशी भाषा कैसे भ्रष्ट कर सकती है? 
बस इतनी आवश्यकता है की बोल चाल में मूल हिंदी (प्राकृत+संस्कृत) शब्दों का ही उपयोग किया जाये न की अरबी- फारसी।


<हाँ, मेहमानों के आने पर अपना संस्कार जाहिर करने के लिए बस थोड़ी देर के लिए निकाल सकते हैं। लेकिन इससे कामकाज तो न हो पाएगा, सो काम के लिए आया रख सकते हैं, जिसे हिंदुस्तानी कहें, जो घर-बाहर दोनों का काम कर सके।>

इस वाक्य से लेखक की न्यून स्तर की मानसिकता तथा संस्कार प्रदर्शित होते है। एसे विचारों पर टिप्पणी करना भी मै उचित नहीं समझता।


<इस प्रोसेस में किसी उर्दू या अन्य म्लेच्छ भाषा से छूने पर कोई ऐतराज न हो, जिसके भ्रष्ट होने से संस्कृति खराब न हो।>

जिस भाषा - संस्कृति को न गजनवी मिटा पाया न ही औरंगजेब, उस के भ्रष्ट या खराब होने की चिंता आप जैसे लोग न करें यही अच्छा होगा।


जिस मनुष्य को अपने भाषा, धरोहर एवं संस्कृति का अभिमान न हो उसकी अवस्था - 'न घर का ना घाट का' ऐसी हो जाती है।

जहाँ तक ईमान और निष्ठा का प्रश्न है - यह जिसे उसे अपने अंदर झाँक कर देखना होगा।


धन्यवाद।

Anand D

unread,
Sep 22, 2018, 11:21:01 AM9/22/18
to technic...@googlegroups.com
सुयश जी, 

आपने "कुछ लोग" के कथन पर अपना रिएक्शन दिया, जिसके अंतर्गत आपने इस नाचीज की बातों के कोट किया, इसलिए मैं इसमें अपनी प्रतिक्रिया भी देना चाहता हूँ: 

1. आपकी कही बुद्धिहीनता, और समझदारी के न्यूनतम स्तर वाली बात से सहमत हूँ।

2. भाषा और संस्कृति के प्रति आपके स्वाभिमान की प्रशंसा करता हूँ।

3.  मैंने आपको सुयश सुप्रभ (Suyash Suprabh <translate...@gmail.com>) समझ लिया था, इसलिए पिछली टिप्पणी कुछ ज्यादा तीखी कर दी। आप आहत हुए इसलिए क्षमा चाहता हूँ। 

4. लेकिन थोड़ा आपसे डिफर हूँ, कि जिस भाषा को आप रिफर कर रहे हैं और "जिसे गजनवी न मिटा पाया" वह आज की भाषा नहीं है। आज की हिंदी में फिल्म, कहानी, उपन्यास, कविता, सोशल मीडिया सबका बहुत बड़ा दखल हो गया है, और यह मिलावट प्रेमचंद के जमाने से चालू हो चुकी है। आप बहुत देर से जागे हैं। अब कुछ नहीं हो सकता। भाषा इससे बहुत आगे बढ़ चुकी है। आपका आग्रह, कि उर्दू और दीगर शब्दों को हटा देना चाहिए, आज अप्रासंगिक है।

5. फिर भी आप जिद करते हैं, और स्वाभिमान का मुद्दा बनाते हैं, तो हिंदी को सुधारने से ज्यादा प्रैक्टिकल सुझाव संस्कृत को आम जन के बीच रिवाइव करने का होगा।

आनंद


--
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Madhusudan H Jhaveri

unread,
Sep 22, 2018, 11:23:45 AM9/22/18
to technic...@googlegroups.com

ईमानदार के लिए (मराठी में) महाराष्ट्र में "प्रामाणिक" शब्द प्रयोजा जाता है.

मधुसूदन



From: technic...@googlegroups.com <technic...@googlegroups.com> on behalf of Suyash <suyas...@gmail.com>
Sent: Saturday, September 22, 2018 10:28 AM
To: Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
Subject: [technical-hindi] Re: शुद्ध हिंदी प्रयोग करें
 
--

Raju Kumar

unread,
Sep 23, 2018, 1:51:23 AM9/23/18
to technic...@googlegroups.com
क्या वाकई उर्दू विदेशी भाषा है? क्या वाकई हिंदी गज़नवी के समय थी? क्या वाकई तथाकथित शुद्ध हिंदी को इस तरह से बढ़ावा देने वाले की मंशा हिंदी के लिए ही है राजनीतिक नहीं?
क्या वाकई वर्तमान में प्रचलित हिंदी के कारण हिंदी का नुकसान हो रहा है? 

अद्भुत!

This work, published in Delhi in 1920, is a history of the Urdu language from its origins to the development of an Urdu literature. Urdu and Hindi share an Indo-Aryan base, but Urdu is associated with the Nastaliq script style of Persian calligraphy and reads right-to-left, whereas Hindi resembles Sanskrit and reads left-to-right. The earliest linguistic influences in the development of Urdu probably began with the Muslim conquest of Sindh in 711. The language started evolving from Farsi and Arabic contacts during the invasions of the Indian subcontinent by Persian and Turkic forces from the 11th century onward. Urdu developed more decisively during the Delhi Sultanate (1206–1526) and the Mughal Empire (1526–1858). When the Delhi Sultanate expanded south to the Deccan Plateau, the literary language was influenced by the languages spoken in the south, by Punjabi and Haryanvi, and by Sufi and court usage. The earliest verse dates to the 15th century, and the golden period of Urdu poetry was the 18th–19th centuries. Urdu religious prose goes back several centuries, while secular writing flourished from the 19th century onward. Modern Urdu is the national language of Pakistan and is also spoken by many millions of people in India.
Message has been deleted

Anunad Singh

unread,
Sep 23, 2018, 6:58:02 AM9/23/18
to technic...@googlegroups.com
'उर्दू विदेशी भाषा है या नहीं'- इसका ठीक-ठीक उत्तर तक नहीं दिया जा
सकता जब तक आप यह स्पष्ट न करें कि आप 'उर्दू' किसे कहते हैं।

हिन्दी गजनवी के समय थी या नहीं, इसके लिए हिन्दी का इतिहास पढ़ लीजिए।
हिन्दी का वीरगाथा काल कौन सा काल है? कुछ लोग तो हिन्दी के इतिहास को
इससे भी बहुत पीछे तक ले जाते हैं।

कृपया आप बताएँ कि आप 'राजनीति' से क्या समझते हैं। क्या भाषा और उससे
सम्बन्धित विषय, राजनीति का अंग नहीं है?

क्या 'परीक्षा' को इम्तिहान या एक्जामिनेशन कहने से हमारी भाषा को हानि
नहीं पहुँचती है? यदि वैसे देखें तो किसी को बुरी से बुरी गाली देने पर
भी उसके शरीर को कोई चोट नहीं पहुँचती।


On 9/23/18, Raju Kumar <neer...@gmail.com> wrote:
> This message is eligible for Automatic Cleanup! (neer...@gmail.com)
> Add cleanup rule:
> https://www.boxbe.com/popup?url=https%3A%2F%2Fwww.boxbe.com%2Fcleanup%3Fkey%3D%252FGGsP1Ugc0sMlYF%252Be5Hqbr8L5hoIeyl7ihSh613UeG8%253D%26token%3DBC%252ByCYzOWmF4zRFMbkgaFywACgpn0COikrlpkICOkWbhgfYc3bpKgb5n5uYYkr8as7MSQksEDmIznklNVFm16zvTBm7ZySk7wspEYClUOhPyErPATVNsKC%252BPRhTTUfgKnMsjy9X3IEQ%253D&tc_serial=43448629001&tc_rand=504519010&utm_source=stf&utm_medium=email&utm_campaign=ANNO_CLEANUP_ADD&utm_content=001
> More info:
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>

Shree Devi Kumar

unread,
Sep 23, 2018, 8:18:12 AM9/23/18
to technic...@googlegroups.com
I am not sure whether this discussion is pertinent to the group technical-hindi.

However if you are indeed looking for historical origins, please see




Linguistic survey of India / [compiled and edited] by George Abraham Grierson.
Calcutta : Office of the Superintendent of Government Printing, India, 1903-1928.

--
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Suyash

unread,
Sep 23, 2018, 10:54:44 AM9/23/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
Raju Kumar,
आप ने पूरा इतिहास शायद पढा नहीं या फिर पढ कर भी अपनी आँखे ढक रखी है।

भले ही उर्दू का उद्भव भारत में हुआ हो पर जिस भाषा ने ९० प्रतिशत से भी अधिक शब्द अरबी एवं फारसी से उधार लिये हो वह भाषा स्वदेशी कैसे हो सकती है?
जिस फारसी भाषा को मुगलो ने तलवार के नौक पर जबरदस्ती
फैलाने की कोशिश की उसी फारसी की नाजायज औलाद है उर्दू।
जो भाषा जुल्म और गुलामी की निशानी है, जिस भाषा को स्वदेशी शब्द और लिपी अपनाने में लज्जा आती है वह भाषा है
उर्दू।
ओर सब से जरूरी तथ्य - हिंदी उदारमना हो कर अरबी फारसी शब्द अपना लेती है, तो उर्दू को संस्कृत - प्राकृत शब्द अपनाने में संकोच क्यो? उर्दू के विद्वानों को देवनागरी लिपी अपनाने से कौन रोकता है?
ऐसे अलगाववादी और ओछी सोच रखने वाले उर्दू को मै अपने मिट्टी की भाषा बिल्कुल नही मानता। यह तो जुलमी आक्रमकों की भाषा है - यह तो मेरे देश के टुकडे करनेवालों की भाषा है।

मातृभूमी, भाषा एवं संस्कृति प्रति अभिमान को यदि आप राजनिती कहते है तो मुझे इससे कोई आपत्ती नहीं है।

फिर वही बात दोहराता हूँ - जिस मनुष्य को अपने धरोहर, संस्कृति एवं परंपराओ पर अभिमान नहीं होता उसकी अवस्था - न घर का ना घाट का ऐसे धोबी के कुत्ते जैसी हो जाती है।

धन्यवाद।

Raju Kumar

unread,
Sep 23, 2018, 1:18:47 PM9/23/18
to technic...@googlegroups.com
शुक्रिया। खुलकर आने के लिएऔर आपकी शालीनता के लिए।

अब ये भी कह दीजिए कि बाकी भाषाओं से नहीं बल्कि सिर्फ उर्दू से आपको समस्या है।  

Regards

Raju Kumar


--
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लीना मेहेंदळे (Leena Mehendale)

unread,
Sep 24, 2018, 3:45:29 AM9/24/18
to technic...@googlegroups.com, Suyash
समस्या तो है परन्तु सुयशजीने जिस समस्याका उल्ललेख किया उसे आपने ठीकसे समझा नही। मुझे ऊर्दू या अंग्रेजीसे तबतक कोई समस्या नही जबतक उसके साहित्य-आस्वादके लिये मैं उसका उपयोग करूँ। लेकिन जब वह मेरी हिंदीपर हावी होनेका  डर उत्पन्न करती है तो मुझे सचेत होना पडेगा। यह वैसा ही है कि जबतक देशमें केवल २२ प्रतिशन आरक्षण था किसीको आपत्ति नही थी पर जैसेही वह ५० और अधिक ऊपर जाने लगा तो वह मेरिट व एफिशिएन्सी के लिये संकट बन गया। सोनेमें थोडी मिलावट हो तो सुंदर गहने बनते हैं जो मूल्यवृद्धि करते हैं अधिक हो जाये तो मूल्यका ह्रास ही होता है।

रवि, 23 सित॰ 2018 को 7:18 pm बजे को Raju Kumar <neer...@gmail.com> ने लिखा:
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रवि-रतलामी

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Sep 24, 2018, 7:51:45 AM9/24/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
संयोगवश, अभी ही गिरिजेश राव ने अपना  एक अद्भुत, दिलचस्प और जानकारी-परक अनुभव साझा किया है. कुछ अंश हैं -

उन्हों ने उसकी पुष्टि की जो मैं कहता रहा हूँ - हिन्‍दी को संस्कृतनिष्ठ बनाये रखें तो शेष भारत के समस्त भाषा भाषी उसे अधिक समझेंगे एवं उत्साह से अपनायेंगे। उनका कहना था कि तमिळनाडु से बाहर होने पर उन्हें उत्तर या पश्चिम भारत की भाषाओं को समझने में कोई समस्या नहीं होती क्योंकि संस्कृत के कारण वह जोड़ कर समझ लेते हैं।
भाषिक क्षेत्र में माँग एवं आपूर्ति में इतना बड़ा अंतर स्यात ही मिले! दक्षिण भारतीय संस्कृतनिष्ठ हिंदी हेतु तड़प रहे हैं जब कि हिंदी जन उसे अरबी फारसी की रखैल बनाने में लगे हुये हैं ! 
(मुझे ज्ञात है कि इसे पढ़ कर आप के मन में 'भाषा बहता नीर', आधुनिक काल की सबसे अल्प समझी गयी एवं हिंदी के पतित काहिलों द्वारा सर्वाधिक दु:प्रयुक्त उक्ति आ रही होगी किन्‍तु मेरी बात बहुत ही सीधी है, मैं नदी नहीं, जीभ से बहती नाली की बात कर रहा हूँ।)
उनसे अन्य अनेक विषयों पर चर्चा हुई जिनकी परास बड़ी है। यह भी बता दूँ कि उन्हें तमिळ भाषा पर गर्व था एवं वह उसके 'पतन' से व्यथित थे।
आज प्रात:काल (तमिळ में आज भी प्रात या प्रातकालै या कालै, मध्याह्न एवं सायं प्रचलित हैं, साधारण जन बोलते हैं, हिन्‍दी पट्टी में कोई बोलता मिल जाय तो मेरे लिये आठवाँ आश्चर्य होगा) जब मैं संस्कृत पाठों हेतु यूट्यूब पर गया तो यह सुन कर व्यथित हुआ कि सभी 'दोस्तो' सम्बोधन का प्रयोग कर रहे थे न कि 'मित्रो' का।
दोस्त पा(फा)रसी मूल का शब्द है जिसका वास्तविक रूप दूस्त है । मेरा ध्यान ऐंवे दोस्त से गोश्त एवं दूस्त से दुष्ट पर चला जाता है। विचार करें कि जब आप 'मित्र' कहते हैं तो ऋग्वैदिक मित्र-वरुण, सूर्य, मैत्री से जुड़ते हैं एवं मंत्र, मंत्रणा जैसे समान वर्ण वाले शब्द भी आप के अंतर्मन में कहीं न कहीं उमड़ते हैं ।
विभाषा के शब्द अपने 'यार' शब्दों को आकर्षित करते हैं दोस्त कहेंगे तो 'जिगरी' आयेगा ही, परंतु मित्र कहेंगे तो 'परम' एवं 'घनिष्ठ' शब्द ही उसके साथ भाषित होंगे। भाषायें ऐसे ही बिगड़ती हैं, प्रदूषित हो जाती हैं। इसे भिन्न प्रकार का अनुनादी प्रभाव भी कह सकते हैं तथा String Theory की इस व्युत्पत्ति से भी जोड़ सकते हैं कि एक तितली यदि पर फड़फड़ाती है तो उससे सुदूर कहीं कोई अट्टालिका भी ध्वस्त हो सकती है ।
दैनिक जीवन की बातचीत से अरबी फारसी शब्दों के प्रयोग क्रमश:, सायास, हटायें, फड़फड़ाहटें हिन्‍दी को ध्वस्त कर रही हैं।

पूरा आलेख यहाँ पढ़ें - 


😍

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018 को 12:53:34 पूर्व UTC+5:30 को, Suyash ने लिखा:

Anunad Singh

unread,
Sep 24, 2018, 1:28:01 PM9/24/18
to technic...@googlegroups.com
शुद्ध हिन्दी या संस्कृतमयी हिन्दी का उपर्युक्त पक्ष बहुत ही महत्वपूर्ण
है किन्तु इसकी जानबूझकर उपेक्षा की गयी है। हिन्दी को भ्रष्ट करने के
लिए 'भाखा बहता नीर' का जमकर दुरुपयोग हुआ है। हिन्दी को भ्रष्ट करने के
पीछे एक या अनेक गुप्त शक्तियाँ हों तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना
चाहिए।

आज भारतीय समाज की स्थिति यह है कि उसकी शब्दावली से हजारों छोटे-छोटे
सरल किन्तु अभिव्यक्तिपोषक शब्द लुप्त हो गये हैं। ऊपर बड़ी सारगर्भित
बात कही गयी है कि यदि आप 'दोस्त' शब्द का प्रयोग करेंगे और उसके साथ
विशेषण लगाना हो तो जिगरी ही उपयुक्त लगेगा, परम नहीं।

शुद्ध हिन्दी पूरे भारत में ही नहीं, भारत से बाहर श्रीलंका, म्यांमार,
थाईलैण्ड और जाबा बोर्नियो तक अधिक स्वीकार्य होगी। भारत की प्रतिष्ठा
बढ़ाएगी। इतना ही नहीं, संस्कृतमयी हिन्दी पाकिस्तान के सिन्ध और पंजाब
में भी अधिक स्वीकार्य होगी। ऊर्दू तो पाकिस्तान के सभी प्रदेशों के लिए
'विदेशी' भाषा है। इसीलिए वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग ने भी
'अखिल भारतीय पारिभाषिक शब्दावली' पर ध्यान दिया, केवल हिन्दी शब्दावली
पर नहीं। लक्ष्य यह था कि ऐसे शब्द चुने जाँय, बनाए जाँय जो अधिकाधिक
भारतीय भाषाओं में बिना अतिरिक्त परिश्रम के समझ आ जाँय या अधिकाधिक
भाषाओं में पहले से ही प्रचलित हों।

Anand D

unread,
Sep 24, 2018, 10:35:52 PM9/24/18
to technic...@googlegroups.com
अनुनाद जी,

यह हमें तय करना है कि हमें लिखना किसके लिए है, ऐसा कि जिसे लोग पढ़ें, समझें या ऐसा जो स्वयं या कुछ एलीट लोगों की समझ में आए।  संस्कृतनिष्ठ हिंदी के प्रयोग से भाषा की दुरूहता बढ़ती ही है, यह किसी साजिश के तहत नहीं, बल्कि अपने अनुभवों से कहता हूँ। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद के दौरान जब भी शुद्ध हिंदी का उपयोग किया है, भाषा अझेल हो गई है। दो पैराग्राफ पढ़ना भी मुश्किल हो गया है। यह कई अनुवाद साहित्य को पढ़ने के दौरान भी यही महसूस किया है। 

वहीं दूसरी ओर उर्दू, देशज और स्थानीय बोलियों के मिले जुले रूप यानि हिंदुस्तानी का प्रयोग किया है, उसकी पठनीयता बढ़ी है। यदि उर्दू के शब्दों के उपयोग से हमारी भाषा की पठनीयता, प्रवाहशीलता, सरलता बढ़ती है, तो इसमें उर्दू का थैंकफुल होना चाहिए, न कि नाक भौं सिकोड़ना चाहिए। हमने तो यह भी पढ़ा है कि हिंदी और उर्दू दरअसल एक ही हैं। बाद में राजनीतिक कारणों से एक ने संस्कृत के शब्दों को अपनाया, दूसरे ने अरबी, फारसी के शब्दों को। एक ने देवनागरी का आधार लिया दूसरे ने अरबी का। वे राजनीतिक कारण आज भी हैं। 

ताज्जुब होता है कि कितनी आसानी से कुछ लोग अपने से मतभेद रखने वालों को बुद्धिहीन, कुसंस्कारी या जाहिल घोषित कर देते हैं। माफ करें मैं इन्हें शुद्धतावादी भी नहीं मानता। ये अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना नहीं चाहते, स्वयं में मुग्ध। इन्हें समाज में क्या चल रहा है, लोगों की क्या सोच है, क्या समझ है, इससे कोई वास्ता नहीं है। यदि आपने मास की परवाह नहीं करते, तो मास भी आपकी परवाह नहीं करता। वह अपनी भाषा कहीं से भी खोज लेता है। 

भाषा बहता नीर ही तो है, हमेशा परिवर्तनशील होती है। देश और समय के अनुसार उसमें बदलाव होता रहता है। यदि बहता नीर नहीं होगी तो इसका पानी सड़ जाएगा। आप्रासंगिक हो जाएगी, अपने समय और समाज से कट जाएगी। इतनी सहज बात समझने में क्या दिक्कत है? 

- आनंद

Sameer Sharma

unread,
Sep 25, 2018, 12:53:08 AM9/25/18
to technic...@googlegroups.com
मैं आनंद जी की समझ से सहमत हूँ। 

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Anunad Singh

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Sep 25, 2018, 1:11:06 AM9/25/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
आनन्द जी,
'भाषा बहता नीर' का उल्लेख करके आपने सिद्ध कर दिया कि आप वही रटि-रटायी बातें कह रहे हैं।  क्या इसे उद्धृत करते हुए गंगा, यमुना और भारत की अन्य नदियों की दुर्दशा का स्मरण नहीं हुआ? कहा जा रहा है कि ये 'बहते नीर'  अब पशुओं के नहाने तक के लिए उपयुक्त नहीं हैं,  उन्हें पीने और 'पवित्र' होने की बात ही छोड़ दीजिए।  और ये अपनी इस दुर्दशा को कैसे प्राप्त हुईं है?  असंस्कारित मल-जल और कारखानों का कचड़ा सीधे इनमें डालने से।  सोचिये यहाँ भी लोगों को कितनी 'सुविधा' मिल रही होगी, बिना एक कौड़ी खर्च किए  अपना कचड़ा गंगा में बहा दो। 

आप एक और बात कह रहे हैं,  'हमें लिखना किसके लिए है'।  प्राथमिक कक्षा के शिक्षक और  एमएससी के प्राध्यापक  की भाषा एक कैसे हो सकती है?  किसानों के समक्ष  भाषण देना हो  और दूसरी तरफ राजनयिकों की सभा को सम्बोधित करना हो, एक ही शब्दावली कैसे हो सकती है?  युद्धभूमि में शृंगाररस की कविता कैसे काम करेगी?  शब्दावली ही नहीं है,  अलग-अलग स्थितियों में  उपमाएँ बदलना आवशयक होता है, रूपक बदलना आवश्यक होता है,  अलग तरह के उदाहरण  देना होगा।   केवल 'सरल भाषा'  ही सब कुछ नहीं है, जो विचार अभिव्यक्त करना था वह हो पाया या नहीं- यह जानना जरूरी है। 

मेरा एक मित्र एक सच्ची घटना बताता है। उसके एक अध्यापक  इलेक्त्रॉनिक्स में 'फ्लिप-फ्लॉप' नामक इलेक्ट्रॉनिक युक्ति (डिवाइस) के बारे में पढ़ाने आये।  इसका परिचय कुछ इस तरह आरम्भ हुआ-  " फ्लिप-फ्लॉप' , बहुत आसान है।  फ्लिप-फ्लॉप, फ्लिप-फ्लॉप,  फ्लिप-फ्लॉप, फ्लिप-फ्लॉप।  "   और इसी तरह व्याख्यान समाप्त हो गया और नए विषय (टॉपिक) पर चले गये। आप भी इसी तरह की 'सरल भाषा'  की बात कर रहे हैं।  लेकिन सच्चाई यह थी कि गुरुजी को फ्लिप-फ्लॉप के बारे में जानकारी नहीं थी।  उसे अच्छी तरह समझाने के लिए केवल भाषा ही नहीं,  परिपथ-आरेख (सर्किट डायग्राम) भी बनाना पड़ता, उसकी कार्यप्रणाली को एक-एक करके समझाना होता,  उसकी उपयोगिता समझानी होती,  उस परिपथ की डिजाइन में किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है- यह बताना होता तथा इसी तरह के दस-पन्द्रह  कोणों से इस विषय को विद्यार्थियों को समझाना होता।


On Tue, Sep 25, 2018 at 8:11 AM Anand D <anan...@gmail.com> wrote:
Boxbe This message is eligible for Automatic Cleanup! (anan...@gmail.com) Add cleanup rule | More info

Raju Kumar

unread,
Sep 25, 2018, 1:28:03 AM9/25/18
to technic...@googlegroups.com
आनंद जी की बात से सहमत 

लेकिन आनंद जी इस बात को समझिये कि उन्हें सिर्फ उर्दू से समस्या है। इसे भाषायी कट्टरता ही कहा जा सकता है। इससे भाषा समृद्ध होने के बजाय आम लोगों से दूर होती है। आज हिंदी का लगातार फैलाव कट्टर हिंदी वालों के कारण नहीं बल्कि उसके हिंदुस्तानी स्वभाव के कारण है। 

Raju Kumar

unread,
Sep 25, 2018, 1:40:02 AM9/25/18
to technic...@googlegroups.com
नदियों में कूड़ा कचरा डालने से नदियां प्रदूषित होती है, लेकिन बिना सहायक नदी नालों के उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है।

खैर अपनी अपनी समझ।

मैं अब इस बहस से बाहर होता हूं।

सबको शुक्रिया।

Anunad Singh

unread,
Sep 25, 2018, 3:04:29 AM9/25/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
राजू कुमार जी, 
जिनको आप 'सहायक नदी-नाले' कह रहे हैं उसमें  भी 'जल' होता है तभी वे सहायक होते हैं।  किन्तु जल-मल हो,  अम्ल हो, कारखानों का कचड़ा और घातक रसायन हों तो वह 'सहायक नदी-नाला' होते हुए भी मूल नदी के जीवन के लिए सहायक नहीं होते। 

लगता है कि आप अब भी इस बात से 'सहमत' नहीं हैं कि हिन्दी गजनवी के समय में भी थी।  खैर, अपनी-अपनी सोच।

प्रदीप पाराशर

unread,
Sep 25, 2018, 6:28:25 PM9/25/18
to technic...@googlegroups.com
अरबी फारसी तुर्की पुर्तगाली अंग्रेजी के शब्द हिंदी मराठी या किसी भाषा में आ गए हैं तथा समझे भी जाते हैं तो उनका आना व प्रयोग होना समस्या नहीं है, बंधुओं लेकिन उर्दू के नाम पर अरबी फारसी तुर्की  की शब्दावली को योजनाबद्ध ढंग से डालकर उसे हिंदुस्तानी के मायावी सरलता के नाम पर लाने के लिए मदरसे से लेकर टीवी मीडिया तक अनेक समूह काम कर रहे हैं। उनके लिए ईश्वर मात्र "ऊपर वाला" है जिससे बाहर कुफ्र है अतः भारतीय जीवन में रचे बचे संस्कार व शब्दावली पर नियोजित प्रहार का विरोध करना मेरी दृष्टि में कहीं भी अनुचित नहीं है। 
तर्क से परे रहते हुए शुद्धतावादी लोहपथगामनी वाले हास्य व्यंग्य आज भी किए जा रहे हैं जबकि ऐसा नहींं है। हिंदी साहित्य का 1900 से लेकर 1960 तक परिष्कार हुआ है तथा हिंदी को मानकीकृत किया गया है। इसके बाद देश की राजनीतिक स्थितियों को देखते हुए वर्ग विशेष ने संविधान के अधिकार की हिंदी को लागू न करने के लिए व अंग्रेजी का वर्चस्व बनाए रखने के लिए अनेको षड्यंत्र रचे हैं जो अब भी जारी हैं। यदि हम लोग उन्हें समझते हैं तो कार्य भी अधिक करना है व लाभार्थियों के प्रभाव से भी बचाना - बचाना है। जो मित्र इस भाव से सहमत नहीं हैं वह क्रियोलीकरण की तरफ जाने वाली भाषा के पक्ष में ही रहेंगे तथा उसके लिए तर्क भी देंगे।    
और अंत में मैंने साहिर को पढ़ा है तथा मूल पंक्ति "सना ख्वाने तकदीसे मशरक" को गीत में "जिन्हें नाज है हिंद पर वह कहां हैंं " भी सुना है। अनुवाद मैं 35 वर्ष से कर रहा हूँ तथा उसकी स्थिति से परिचित हूँ। 
लीना जी,अनुनाद जी, रवि जी ने भाव पक्ष व व्यवहारिक पक्ष पर बहुत कुछ कह दिया है व कुछ संकेत देने का प्रयास मैंने भी किया है।

अतः इस विषय पर चर्चा आगे बढ़ाने के स्थान पर विंडोज 10 विशेषकर 64 बिट के लिए रेमिंगटन / कृतिदेव लेआउट का कीबोर्ड लेआउट तथा हिंदी ट्रेडीशनल में देवनागरी के आवश्यक चिह्न जोड़कर 3 नए लेआउट बीटा वर्जन समूह में रखने की अनुमति प्रबंधक महोदय से मांगते हुए अपनी बात पूर्ण करता हूँ।  

प्रदीप पाराशर
Pradeep Parashar

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रवि-रतलामी

unread,
Sep 27, 2018, 12:44:34 AM9/27/18
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
"विंडोज 10 विशेषकर 64 बिट के लिए रेमिंगटन / कृतिदेव लेआउट का कीबोर्ड लेआउट तथा हिंदी ट्रेडीशनल में देवनागरी के आवश्यक चिह्न जोड़कर 3 नए लेआउट बीटा वर्जन समूह में रखने की अनुमति प्रबंधक महोदय से मांगते हुए अपनी बात पूर्ण करता हूँ। " >>>

नेकी और पूछ-2!

प्रदीप जी, नेक कार्य के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है. कृपया शीघ्र ही इन्हें समूह में रखें ताकि हम इनसे लाभान्वित हों.

सादर,
रवि


बुधवार, 26 सितंबर 2018 को 3:58:25 पूर्व UTC+5:30 को, प्रदीप पाराशर ने लिखा:
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