देवनागरी का मानकीकरण : कुछ प्रश्न

2,735 views
Skip to first unread message

Yashwant Gehlot

unread,
Dec 28, 2012, 12:51:55 AM12/28/12
to technical-hindi

'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' (2010) के कुछ शुरुआती पृष्ठ पढ़ने के बाद कुछ प्रश्न उपजे हैं:

पृष्ठ 21

3.1.2.1- क और फ के हुक को हटाकर ही संयुक्‌ताक्षर बनाए जाएँ। जैसे- 'संयुक्‍त' (संयुक्त नहीं)

3.1.2.2- 'विद्‌या'और 'चिह्‌न' ही लिखा जाए, 'विद्या' और 'चिह्न' नहीं

-कितने फॉन्ट, सॉफ्टवेयर, अनुप्रयोग संयुक्‌ताक्षरों के इस 'मानकीकृत' स्वरूप का सहजता से समर्थन करते हैं, क्या वाकई इस स्वरूप का प्रसार किया जा रहा है/ किया जाना वांछित है?


3.1.2.5- ...इ की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व। जैसे- चिट्‌ठियाँ, द्‌वितीय (चिट्ठियाँ, द्वितीय नहीं)

..लेकिन (3.15.2-पृष्ठ 32)'शुक्रिया', 'अख्तियार' जैसे शब्द (जिनकी उत्पत्ति उर्दु/अरबी/फारसी से हुई है), मूल रूप में ही लिखे जाएँ.

..तो संस्कृत मूल के शब्दों (यथा 'द्वितीय' को 'द्‌वितीय' करने की क्या आवश्यकता है? कंप्यूटर पर काम करने वाले लोग किस तरह आसानी से इसे कर पाएंगे, पढ़ने वाले कितनी सहजता से पढ़ पाएंगे?)

3.15.6.2 (पृष्ठ 35)- मानक शब्द 'संथाली' है या उसका 'मानकीकरण' करके 'संताली' कर दिया है?

शेयर किए गए दस्तावेज़ में पृष्ठ 28 नहीं है।

अनेक स्थानों पर 'ही' लिखा है (यानी ऐसा ही किया जाना चाहिए), लेकिन पृष्ठ 37 पर लिखा है- भाषाविषयक कठोर नियम बना देने से उनकी स्वीकार्यता तो संदेहास्पद हो ही जाती है, भाषा के स्वाभाविक विकास में भी अवरोध आने का थोड़ा-सा डर रहता है।.... और इसीलिए, जहाँ तक बन पड़ा है, काफ़ी हद तक उदारतापूर्ण नीति अपनाई गई है।

..देवनागरी के मानकीकरण की आवश्यकता है ताकि निजी और सरकारी, कंप्यूटर और प्रिंट, सभी जगहों पर एक जैसा स्वरूप देखने को मिले। अराजकता से बचा जा सके। दो लोगों के बीच वर्तनी या भाषा के स्वरूप को लेकर विवाद हो तो यह दस्तावेज़ संदर्भ ग्रंथ का काम करे।

मुझे संदेह है कि यह दस्तावेज़ इस उद्देश्य में सफल हो पाएगा।

यशवंत



--
Yashwant Gehlot

Anunad Singh

unread,
Dec 28, 2012, 2:09:51 AM12/28/12
to technic...@googlegroups.com
यह मानकीकरण कब (किस वर्ष में) हुआ था?

मुझे लगता है कि यह मानकीकरण बहुत पुराना या 'आब्सोलीट' हो गया है। पूर्व में हुई चर्चाओं से मुझे ऐसा आभास मिलता है कि इस मानकीकरण पर यांत्रिक टाइपराइटर युग की कमियों (लिमिटेशन्स) की छाया थी। इसके नवीनीकरण की आवश्यकता है जो वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल हो। इस बात का ध्यान रखा जाय कि वर्तमान मशीनें (कम्प्यूटर एवं अन्य युक्तियाँ) अनेक मामलों में अधिक सक्षम हैं और इनका ही अब अधिकाधिक प्रयोग होने वाला है।

-- अनुनाद


28 दिसम्बर 2012 11:21 am को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:

Vinod Sharma

unread,
Dec 28, 2012, 2:21:50 AM12/28/12
to technic...@googlegroups.com
यह मानकीकरण 2010 में जारी हुआ है। इसकी प्रक्रिया भी कुछ वर्ष चली होगी।

2012/12/28 Anunad Singh <anu...@gmail.com>

--
 
 



--
सादर,
विनोद शर्मा

Hariraam

unread,
Dec 28, 2012, 6:35:28 AM12/28/12
to technic...@googlegroups.com
यशवन्त जी,
 
आपने उचित प्रश्न उठाए हैं---


 
2012/12/28 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>

-कितने फॉन्ट, सॉफ्टवेयर, अनुप्रयोग संयुक्‌ताक्षरों के इस 'मानकीकृत' स्वरूप का सहजता से समर्थन करते हैं, क्या वाकई इस स्वरूप का प्रसार किया जा रहा है/ किया जाना वांछित है?

 

 
विण्डोज-7 के मंगल आदि फोंट में मानकों के अनुसार काफी कुछ परिवर्तन किया गया। पुराने रूप में 'क्त' द्व' आदि रेण्डर नहीं होते।

3.1.2.5- ...इ की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व। जैसे- चिट्‌ठियाँ, द्‌वितीय (चिट्ठियाँ, द्वितीय नहीं)

..लेकिन (3.15.2-पृष्ठ 32)'शुक्रिया', 'अख्तियार' जैसे शब्द (जिनकी उत्पत्ति उर्दु/अरबी/फारसी से हुई है), मूल रूप में ही लिखे जाएँ.

 
आप शायद ठीक से समझ नहीं पाए हैं। जहाँ संयुक्ताक्षर हल् चिह्न के साथ बनते हैं अर्थात् पूर्व वर्ण पर हल् चिह्न प्रकट रहता है, जिन वर्णों की खड़ी पाई नहीं होती, (ङ,छ, ट, ठ,ड, ढ, ण, द,) केवल उन्हीं वर्णों के संयुक्ताक्षर पर छोटी इ की मात्रा अगले वर्ण के ठीक पहले ही लगेगी। शुक्रिया में 'क्र' में कोई हलन्त प्रकट नहीं हुआ है, 'ख्ति' में 'ख' की खड़ी पाई हटाकर ही संयुक्ताक्षर बनाया गया है।
 
'द्वि' में द पर हलन्त प्रकट है, अतः छोटी इ की मात्रा केवल व पर ही लगेगी।
क्योंकि किसी वर्ण पर हलन्त प्रकट रूप में लगा है, तो उसका अर्थ ही है कि वह मूल व्यंजन है, स्वर-रहित है, यदि वह स्वर-रहित है तो फिर वह स्वर की मात्रायुक्त कैसे हो सकता है? वैज्ञानिक एवं तार्किक दृष्टि से जहाँ हलन्त प्रकट हो उस पर कोई भी स्वर की मात्रा लगना असम्भव / अवैज्ञानिक होगा।
 
पुराने रूप में गलती से छोटी की मात्रा दायें-बायें क्रम में जुड़े हलन्त-प्रकट संयुक्ताक्षर के पहले लगाई जाती थी। अर्थात् 'दि्‌व' रूप में, किन्तु वस्तुतः यहाँ एक अधिक चौड़ी टोपी वाली छोटी इ की मात्रा का प्रयोग होता था। कम्प्यूटर अल्गोरिद्‍म एडवान्स्ड प्रोसेसिंग के दौरान इसे अस्वीकार कर देता था और एरोर प्रकट होता था।

..तो संस्कृत मूल के शब्दों (यथा 'द्वितीय' को 'द्‌वितीय' करने की क्या आवश्यकता है? कंप्यूटर पर काम करने वाले लोग किस तरह आसानी से इसे कर पाएंगे, पढ़ने वाले कितनी सहजता से पढ़ पाएंगे?)

 

सही ढंग से एक बार समझ लेने पर सभी इसे ही अपनाएँगे और सहजता से पढ़ पाएँगे। संस्कृत के मूल पाठ/व्याकरण के अनुसार ही यह नियम बनाया गया है। संस्कृत के ध्वनिविज्ञान का ही नियम है कि हलन्त-युक्त वर्ण पर कोई स्वर-मात्रा नहीं लग सकती।  


--
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Dec 28, 2012, 8:12:53 PM12/28/12
to technic...@googlegroups.com
इ की मात्रा पूरे अक्षर (हलन्त युक्त वर्ण के साथ अगला वर्ण) पर लगनी चाहिये, यही हमें जमता है। हलन्त वाले पर मात्रा न लगाना हजम नहीं होता। मात्रा तो पूरे अक्षर पर ही होनी चाहिये क्योंकि हलन्त युक्त वर्ण का तो स्वतन्त्र अस्तित्व ही नहीं। हम पढ़ते आये हैं कि हलन्त युक्त वर्ण (शुद्ध व्यंजन) का बिना किसी स्वर के सहारे उच्चारण नहीं किया जा सकता तो पूरा अक्षर उच्चारण के लिये स्वर की सहायता लेता है तो मात्रा भी पूरे के ऊपर होनी चाहिये। बाकी जैसा सरकारी ज्ञानीजन जानें, अगर उनके नियम सही होंगे तो अपने-आप प्रचलित हो जायेंगे।

सच कहूँ तो मानकीकरण के कई नियम देखकर सिर पीटने का मन होता है। सरलता के चक्कर में ये नियम देवनागरी की वैज्ञानिकता को नष्ट करते हैं।

28 दिसम्बर 2012 5:05 pm को, Hariraam <hari...@gmail.com> ने लिखा:

सही ढंग से एक बार समझ लेने पर सभी इसे ही अपनाएँगे और सहजता से पढ़ पाएँगे। संस्कृत के मूल पाठ/व्याकरण के अनुसार ही यह नियम बनाया गया है। संस्कृत के ध्वनिविज्ञान का ही नियम है कि हलन्त-युक्त वर्ण पर कोई स्वर-मात्रा नहीं लग सकती।   

--
Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.

ePandit: http://epandit.shrish.in/

Vinod Sharma

unread,
Dec 28, 2012, 9:44:04 PM12/28/12
to technic...@googlegroups.com
पंडितजी एवं अन्य सभी मित्रों को सादर नमस्कार।
प्रगतिशीलता सदैव ही हितकारी नहीं होती। ये जो सरलीकरण किए गए हैं और जो भविष्य में प्रस्तावित हैं, उनके औचित्य को स्थापित करने के लिए हिंदी/देवनागरी को कंप्यूटिंग के अनुकूल बनाने की दुहाई दी जाती है। दुनिया की कितनी ही भाषाएँ हैं जो कतई बेतरतीब हैं, फिर भी उनमें कंप्यूटिंग कभी समस्या नहीं बनी।
इस मानकीकरण में कई स्थानों पर कहा गया है कि संस्कृत के शब्दों को लिखते समय ये सरलीकरण प्रभावी नहीं होंगे। जब लिपि एक ही है, संस्कृत के शब्दों के लिए पारंपरिक नियमों को यथावत रखा गया है, तो यह कैंची हिंदी पर ही क्यों चल रही है।
मुझे तो इस समूची सोच के पीछे रोमनीकरण की सुगमता की खातिर सुनियोजित ढंग से ऐसा किया जाना प्रतीत होता है। पूरी योजना एक दिन देवनागरी को रोमनीकृत अंग्रेजी लिपि से प्रतिस्थापित करने की देशा में बढ़ रही है।
जब संस्कृत के लिए संयुंक्ताक्षर पारंपरिक रूप से लिखे जा सकते हैं तो हिंदी के क्यों नहीं। हल् अक्षरों को छोटी इ की मात्रा के बाहर लिखने का नियम तो अव्यावहारिक होने के साथ-साथ हास्यास्पद भी है। यदि किसी शब्द में छोटी इ की मात्रा के बाहर दो हल् अक्षर हों तो उसको पढ़ना कितना अव्यावहारिक और दुरूह होगा।
अधिकांश नियम ठीक हैं, लेकिन इनमें से कुछ प्रतिगामी हैं, इसलिए मुझे नहीं लगता कि वे प्रचलित हो पाएँगे। हाँ, यह जरूर होगा कि कुछ लोगों के इनको अपनाने के कारण हिंदी लेखन में अराजकता की स्थिति का अवश्य विकास होने लगेगा।
2012/12/29 ePandit | ई-पण्डित sharma...@gmail.com

--
 
 

Hariraam

unread,
Dec 28, 2012, 11:57:52 PM12/28/12
to technic...@googlegroups.com
पूरे संयुक्ताक्षर/पूर्णाक्षर छोटी-इ की मात्रा लगाने के लिए जैसा कि पहले अधिक चौड़ाई वाली मात्रा का प्रयोग होता था। सारे विद्वानों ने गम्भीर विचार विमर्श के बाद इसे हटाने का निर्णय लिया। क्योंकि संस्कृत में तो कई कई वर्णों को मिलाकर एक संयुक्ताक्षर बनता है... जैसे कार्त्सन्या शब्द में र्त्स्न्य पाँच वर्णों का एक पूर्णाक्षर है। यदि कार्त्स्न्यि लिखना हो तो क्या पाँच गुना चौड़ी छोटी इ की मात्रा बनाएँगे। किसी बन्धु ने एक संयुक्ताक्षर काउदाहरण पेश किया था, जो पूरे नौ वर्णों से मिलकर होता है - तो क्या नौ गुना चौड़ी मात्रा बनाएँगे? क्या यह वैज्ञानिक और तर्कसंगत होगा?? ऐसे कितनी मात्राओं के ग्लीफ बनाएँगे??
 
किसी भी हिन्दी फोंट के ग्लीफ्स को देखिए -- रेण्डरिंग की स्पष्टता के लिए  इ की मात्रा के साथ रेफ वाले ग्लीफ भी बनाने पड़े हैं। इ की मात्रा के साथ रेफ एवं अनुस्वार वाले ग्लीफ भी बनाने पड़े हैं... इ की मात्रा के साथ रेफ एवं चन्द्रबिन्दु वाले ग्लीफ्स भी बनाने पड़े हैं... ऐसे दो गुनी, तीन गुनी, चार गुनी, .... पाँच गुनी अलग अलग चौड़ाई वाली इ की मात्राओं के कितने ग्लीफ्स बनाएँगे???
 

-- हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>

2012/12/29 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>

इ की मात्रा पूरे अक्षर (हलन्त युक्त वर्ण के साथ अगला वर्ण) पर लगनी चाहिये, यही हमें जमता है। हलन्त वाले पर मात्रा न लगाना हजम नहीं होता। मात्रा तो पूरे अक्षर पर ही होनी चाहिये ... ...

 

Hariraam

unread,
Dec 29, 2012, 12:16:33 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
ध्वनि विज्ञान के नियमों के अनुसार कोई भी मात्रा कभी किसी वर्ण के पहले लग/उच्चरित नहीं हो सकती है...
हरेक स्वर-मात्रा (dependent vowel) वर्ण के बाद में ही लगते/उच्चरित होते हैं...
संयुक्ताक्षरों में अन्तिम वर्ण पर ही स्वर-मात्रा लगती/उच्चरित होती है...
'उद्‍भिज' या 'उद्भिज' में--  उद्बुद्ध यौ सद्गुरु शब्दों में
कृपया समस्त पूर्वाग्रहों को छोड़कर ध्यान से सुनें... मात्रा का उच्चारण किस वर्ण पर होता है?
 
छोटी इ की मात्रा वर्ण के बाईं ओर लगती है, इसका अर्थ यह नहीं की वह पहले लगती/उच्चरित होती है...
ध्वनिविज्ञान में ध्वनि चारों ही नहीं, ऊपर नीचे भी दसों दिशाओं में फैलती है... देवनागरी में स्वर मात्राओं की दिशाएँ निर्धारित की गईं है। दायें-बाएँ, ऊपर नीचे...
 
सभी विद्वानगण जब ध्यान से जाँचेंगे तो स्वयं अनुभव कर पाएँगे की किसी एक मात्रा का एकाधिक वर्ण पर आच्छादन करना ही वास्तव में "हास्यास्पद" एवं "अवैज्ञानिक" है।
 
चूँकि हमें अभ्यास हो चुका है ... इसलिए फिलहाल अव्यवहारिक एवं अटपटा-सा लगता है।

--
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>
2012/12/29 Vinod Sharma <vinodj...@gmail.com>

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 12:17:38 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
हलन्त-अक्षर कई जुड़ सकते हैं इसके लिए 1-2-3 अक्षरों से होकर ग़ुज़रने के लिए उतनी तरह की छोटी ई और बड़ी ई की मात्राओं की ज़रूरत पड़ती, इसलिए यह व्यवहारिकता की बात है कि छोटी ई और बड़ी ई की एक ही मात्रा को रखा गया है।
 
इससे पहले भी शुषा जैसे प्रोपराइटरी फ़ॉन्ट में छोटी ई और बड़ी ई की एक ही मात्रा होती थी, जबकि कुछ दूसरे फ़ॉन्टों में अलग-अलग लम्बी छोटी मात्राएँ होती थीं।
 
सौन्दर्यबोध बाद को आता है, पहले तो व्यवहारिक होना चाहिए।
 
--
रावत

2012/12/29 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>
इ की मात्रा पूरे अक्षर (हलन्त युक्त वर्ण के साथ अगला वर्ण) पर लगनी चाहिये, यही हमें जमता है। हलन्त वाले पर मात्रा न लगाना हजम नहीं होता। मात्रा तो पूरे अक्षर पर ही होनी चाहिये क्योंकि हलन्त युक्त वर्ण का तो स्वतन्त्र अस्तित्व ही नहीं। हम पढ़ते आये हैं कि हलन्त युक्त वर्ण (शुद्ध व्यंजन) का बिना किसी स्वर के सहारे उच्चारण नहीं किया जा सकता तो पूरा अक्षर उच्चारण के लिये स्वर की सहायता लेता है तो मात्रा भी पूरे के ऊपर होनी चाहिये। बाकी जैसा सरकारी ज्ञानीजन जानें, अगर उनके नियम सही होंगे तो अपने-आप प्रचलित हो जायेंगे।

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 12:21:31 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
बहुत बढ़िया उदाहरण दिया हरिराम जी,
 
मैंने उदाहरण तो नहीं दिया, लेकिन मैंने भी यही बात कही थी कि क्योंकि हलन्त-संयुक्ताक्षर के जाने कितने ही वर्णों को जोड़ा जा सकता है, जिसके लिए अलग अलग चौड़ाई की छोटी ई और बड़ी ई की कई मात्राओं की ज़रूरत पड़ती, इसलिए एक ही मात्रा को मानकीकृत करना एक स्वाभाविक अच्छा निर्णय है।
 
यह मजबूरी है। निर्णय लेने वालों को भी अच्छा नहीं लगा होगा लेकिन क्या करते।
 
--
रावत

2012/12/29 Hariraam <hari...@gmail.com>

--
 
 

Hariraam

unread,
Dec 29, 2012, 12:28:50 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
यदि पूरे अक्षर या पूर्णाक्षर पर ही मात्रा होनी चाहिए... तो
 
श्वेत, द्वै (द्वैत), स्तो (स्तोत्र) आदि में ऊपर लगनेवाली मात्रा के भी अधिक चौड़े रूप बनाने चाहिए, जो पूरे अक्षर आच्छादित करें???
 
स्त्री, क्ली, ट्‍टी ... आदि के लिए भी अधिक चौडी टोपी वाली मात्रा बड़ी ई की मात्रा बनानी चाहिए???
 
द्‍भु, (अद्‍भुत्) स्तु (स्तुति) आदि में अधिक चौड़े उ-कार की मात्रा बनानी चाहिए???
 
... बेचारी छोटी-इ की मात्रा के साथ ही यह तर्क क्यों??? क्योंकि बेचारी वर्ण के बाईं ओर लगती है...??? सभी मात्राओं को सम्पूर्ण संयुक्ताक्षर पर आच्छादित होना चाहिए???
 
"कार्त्सन्या" शब्द में आ-कार की मात्रा अन्तिम वर्ण पर ही क्यों???? पूर्णाक्षर पर आच्छादित होनेवाली अधिक चौड़े आ-कार की मात्रा बनानी चाहिए ना???
 

--
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>
2012/12/29 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>
... मात्रा तो पूरे अक्षर पर ही होनी चाहिये क्योंकि हलन्त युक्त वर्ण का तो स्वतन्त्र अस्तित्व ही नहीं। हम पढ़ते आये हैं कि हलन्त युक्त वर्ण (शुद्ध व्यंजन) का बिना किसी स्वर के सहारे उच्चारण नहीं किया जा सकता तो पूरा अक्षर उच्चारण के लिये स्वर की सहायता लेता है तो मात्रा भी पूरे के ऊपर होनी चाहिये। ...


V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 12:32:02 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
ध्वनि का उच्चारण वर्ण के बाद ही होता है, इसमें तो कोई विवाद नहीं था, किसी को कोई संदेह नहीं था।
 
हम  सब हिन्दी के प्रकांड ज्ञानी हैं, हम सब तो आँखे बंद करके हिन्दी सही पढ़ सकते हैं, इसलिए हम चाहते हैं जो हमें 30-40-50-60 के हिन्दी के प्रयोग के बाद स्वाभाविक, सरल लगता है, वही नियम हम सारे विश्व के बनवा दें। जबकि नए लोगों को इन सब से कितनी दिक़्क़तें आती हैं, हमें भी आई होंगी जब हम हिन्दी सीख रहे थे, लेकिन अब हमें वो दिक़्क़तें याद नहीं हैं।
 
"चूँकि हमें अभ्यास हो चुका है"
वो अभ्यास हमें हमारे अध्यापकों ने पीट-पीट कर, डाँट-डाँट कर करवाया था।
:-)
 
--
रावत

2012/12/29 Hariraam <hari...@gmail.com>
ध्वनि विज्ञान के नियमों के अनुसार कोई भी मात्रा कभी किसी वर्ण के पहले लग/उच्चरित नहीं हो सकती है...
--
 
 

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 12:35:08 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
सही कहा हरिराम जी,
 
मुझे लगता है कि मैंने ऐसे फ़ॉन्ट देखे हैं जिनमें े ै ो ौ ॅ ँ आदि की मात्राएँ भी हलन्त-संयुक्ताक्षरों के सारे समूह के ऊपर उतनी चौड़ी करके लिखी जाती हैं।
 
यही तो समस्या थी कि इस तरह से जाने कितने कोडों की या जाने कितने वर्णों की आवश्यकता पड़ती।
 
आप बहुत सटीक उदाहरण देते हैं, हरिराम जी। मान गए आपको।
 
बहुत बहुत धन्यवाद।
 
रावत

2012/12/29 Hariraam <hari...@gmail.com>
यदि पूरे अक्षर या पूर्णाक्षर पर ही मात्रा होनी चाहिए... तो
--
 
 

Anunad Singh

unread,
Dec 29, 2012, 12:39:30 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
हरिराम जी,
संख्यात्मक दृष्टि से देखें तो दो से अधिक व्यंजनों के संयुक्ताक्षर बहुत कम होते हैं। इसलिए यदि केवल दो प्रकार की लम्बाई वाले छोटी इ की मात्राओं (पहला साधारण व्यंजनों के पहले लगाने वाला और दूसरा दो या दो से अधिक संयुक्त व्यंजनों के पहले लगाने वाला) का प्रावधान हो तो भी व्यावहारिक रूप से न कोई समस्या आयेगी न बहुत अटपटा लगेगा।

किन्तु  कम्प्यूटर प्रोग्रामों की क्षमता बहुत अधिक है। हम यांत्रिक टाइपराइटरों से काफी आगे निकल चुके हैं। इसलिए  रेण्डर करनेवाले सॉफ्टवेयर में यह प्रावधान करना कि दो व्यंजनों वाले यंयुक्ताक्षरों के लिए अलग लम्बाई की इ की मात्रा लगे और तीन व्यंजनों वाले संयुक्ताक्षरों के लिए अगल लम्बाई की, बिल्कुल कठिन नहीं है।

अतः उपरोक्त निर्णय यदि कम्प्यूटर पर रेण्डरिंग की दृष्टि से किया गया है तो उसमें दम नहीं है। और यदि हाथ से लिखने की बात हो तो उसके लिए तो बिल्कुल ही लागू नहीं होता।

-- अनुनाद सिंह

---------------------

29 दिसम्बर 2012 10:27 am को, Hariraam <hari...@gmail.com> ने लिखा:

Hariraam

unread,
Dec 29, 2012, 12:40:05 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
कृपया आप भी कुछ ऐसे उदाहरण सचित्र देने का प्रयास करें...

2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>

Hariraam

unread,
Dec 29, 2012, 12:43:20 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
एकाधिक वर्णों पर एक मात्रा का आच्छादन "अवैज्ञानिक" था, इसलिए सुधार किया गया...

2012/12/29 Anunad Singh <anu...@gmail.com>

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 12:50:06 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
भाई, सालहासाल के इस्तेमाल के दौरान देखे होंगे तो अब नाम याद नहीं हैं।
यहाँ के सदस्यों में से भी किसी ने तो देखे ही होंगे।
 
या क्या आप कहना चाह रहे हैं कि सिर्फ़ इ ई की मात्रा के लिए ऐसा किया जाता है, बाकी के लिए नहीं?
 
रावत

2012/12/29 Hariraam <hari...@gmail.com>
कृपया आप भी कुछ ऐसे उदाहरण सचित्र देने का प्रयास करें...


2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>
मुझे लगता है कि मैंने ऐसे फ़ॉन्ट देखे हैं जिनमें े ै ो ौ ॅ ँ आदि की मात्राएँ भी हलन्त-संयुक्ताक्षरों के सारे समूह के ऊपर उतनी चौड़ी करके लिखी जाती हैं।

--
 
 

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 12:53:24 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
अनुनाद जी,
 
बात सिर्फ़ हाथ से या कम्पयूटर से लिखने की नहीं है।
 
बात उस लिखे को पढ़ने वालों के समझ पाने की है।
 
यदि हाथ से या कम्पयूटर से सही लिखा भी जा सके तो उसे पढ़ने पर नए छात्रों को वो अजीब सा, कुछ अलग सा लगेगा, जिससे उसे समझने में, याद रखने में अड़चन आएगी, एक नया नियम समझना पड़ेगा और इस्तेमाल करना पड़ेगा। यह सब  भाषा को जटिल बनाता है।
 
रावत

2012/12/29 Anunad Singh <anu...@gmail.com>

--
 
 

Anunad Singh

unread,
Dec 29, 2012, 1:05:44 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
रावत जी,
क्यों कठिन लगेगा? कोई नौ संयुक्त व्यंजनों वाले शब्द को लिख या सीख रहा है, वह कठिन नहीं है?  कठिन तो यह भी है कि बहुत से लोगों को  'ट्र' , 'द्र' आदि में 'आधा र' होना समझ आता है। यह तो समझाना/सिखाना ही पड़ेगा कि ट्र = ट् + र  ; न कि  ट + र् ।

-- अनुनाद

29 दिसम्बर 2012 11:23 am को, V S Rawat <vsr...@gmail.com> ने लिखा:

Madhusudan H Jhaveri

unread,
Dec 29, 2012, 1:29:37 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
मुझे फॉन्ट बनाने की जानकारी नहीं है। पर जब से मैं ने जपानी फॉन्ट देखें, (निम्न कडी पर) और अंग्रेज़ी की कठिन स्पेलिंग देखी, तो देवनागरी प्रिय लगने लगी।
एक अज्ञानी का ही विचार है यह। मात्र निम्न कडी पर जाकर जापानी अक्षर की जटिलता देख लें।

अव्यापारेषु व्यापार के लिए, पहले ही क्षमस्व।
मधुसूदन
http://www.japanese-language.aiyori.org/japanese-words-6.html


From: "Anunad Singh" <anu...@gmail.com>
To: technic...@googlegroups.com
Sent: Saturday, December 29, 2012 1:05:44 AM
Subject: Re: [technical-hindi] देवनागरी का मानकीकरण : कुछ प्रश्न
--
 
 

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 1:34:19 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
हलन्त लगने पर तो वर्ण का मूल रूप दिखता है, लेकिन जब हलन्त-संयुक्ताक्षर वाला वर्ण मूल वर्ण के एकदम अलग दिखता है तो वो लोगों के लिए भाषा का एक नया चिह्न हो जाता है। इस वजह से भाषा सिर्फ़ 52 चिह्नों से बनी हुई नहीं लगती है, बल्कि अनेकानेकों अलग-अलग दिखने वाले वर्णों से बनी दिखती है। इससे जटिलता बढ़ती है।
 
रावत

2012/12/29 Anunad Singh <anu...@gmail.com>
रावत जी,

--
 
 

Yashwant Gehlot

unread,
Dec 29, 2012, 2:26:48 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
मेरा मानना है कि जो व्यक्ति भाषा सीखता है/सीखना चाहता है, उसके लिए मुश्किल कुछ भी नहीं है. वह संयुक्ताक्षर पर भी मात्रा लगाना सीख जाएगा और हलंत लगाने के बाद भी मात्रा लगाना सीख जाएगा और कंप्यूटर भी दोनों चीज़ें आसानी से कर सकता है. 

मुझे एकरूपता की कमी खलती है. 
मैं तो इन्स्क्रिप्ट में ही टाइप करता हूँ लेकिन एक्सपी में अलग 'द्वितीय' बनता है और विंडोज़ 7 में अलग. 

सवाल यह है कि लेखन में हम कौन-सा वाला 'द्वितीय' बनाएँ. बच्चों को आजकल कौन-सा वाला 'द्वितीय' सिखाया जा रहा है

क्या हिंदी में अंग्रेज़ी की तरह दो शैलियां चलेंगी- लिखने में अलग और टाइपिंग में अलग.

यशवंत

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 2:37:22 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
अंग्रेज़ी में कौन सी दो शैलियां होती हैं? - लिखने में अलग और टाइपिंग में अलग?
 
रावत

 
2012/12/29 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 2:38:44 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
आप कोई नई भाषा सीखिए, फिर उसमें लिस्ट बनाइए कि किन किन नियमों से आपको क़ोफ़्त हुई कि कितना जटिल नियम है।
 
रावत

2012/12/29 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>
मेरा मानना है कि जो व्यक्ति भाषा सीखता है/सीखना चाहता है, उसके लिए मुश्किल कुछ भी नहीं है. वह संयुक्ताक्षर पर भी मात्रा लगाना सीख जाएगा और हलंत लगाने के बाद भी मात्रा लगाना सीख जाएगा और कंप्यूटर भी दोनों चीज़ें आसानी से कर सकता है. 

Yashwant Gehlot

unread,
Dec 29, 2012, 3:04:28 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
रावत जी, 
आपका सवाल बुनियादी है. शायद मेरे कहने के तरीके से यह भ्रम हुआ हो. मेरा आशय Cursive English से था जो कि टाइप की जाने वाली अंग्रेज़ी से अलग होती है. 
विकिपीडिया के अनुसार- Cursive is considered distinct from the so-called manuscript (as known in education), also commonly called block letterprintwriting,blockwriting (and sometimes incorrectly referred to as "printscript" which is an oxymoron or simply "print" which is too basic and therefore confusing term which could mean mechanical printing), in which the letters of a word are unconnected and in Gothic formation rather than script.

यशवंत

2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>
अंग्रेज़ी में कौन सी दो शैलियां होती हैं? - लिखने में अलग और टाइपिंग में अलग?
 
रावत

Yashwant Gehlot

unread,
Dec 29, 2012, 3:16:24 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
दूसरी भाषा सीखते समय व्यक्ति अपनी मातृभाषा से तुलना करता है, इसलिए उसे कुछ चीज़ें जटिल लगती हैं. हम लोग अंग्रेज़ी सीखते समय सोचते हैं कि to और go का उच्चारण कहीं साम्य क्यों नहीं रखता है. क्योंकि हमारा आधार वे भाषाएँ हैं जिनमें लिखना-बोलना एक जैसा होता है. 
जो लोग हिंदी सीखते हैं, उन्हें सबसे ज़्यादा दिक्कत व्याकरणिक लिंग की आती है. लेकिन यह हिंदी की विशेषता है. 
मानकीकरण से यह अपेक्षा है कि वह दो प्रचलनों में से एक को मान्यता दे दे ताकि विवाद के समय उसका हवाला दिया जा सके. मानकीकरण का काम भाषा को बदलना नहीं है. नियम जटिल हो, कोई दिक्कत नहीं. भ्रामक नहीं होना चाहिए.

यशवंत 

2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>
आप कोई नई भाषा सीखिए, फिर उसमें लिस्ट बनाइए कि किन किन नियमों से आपको क़ोफ़्त हुई कि कितना जटिल नियम है।
 
रावत


V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 4:36:23 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
Cursive English का लाभ है कि लिखते समय बार-बार कलम-पेन्सिल को पेज से उठाना नहीं पड़ता है जिससे लेखन की गति तेज़ होती है, इसलिए यह इस्तेमाल में है।
 
हिन्दी में तो ऐसा कर्सिव तरीक़ा कोई है ही नहीं जिसमें बार-बार कलम-पेन्सिल को पेज से उठाना न पड़े।
 
हिन्दी में तो लगभग हर वर्ण मात्रा के लिए कलम को कई बार उठाना पड़ता है, जिससे हिन्दी लेखन धीमा रहता है।
 
लेकिन हिन्दी का लाभ यह है कि इसमें हर वर्ण का सटीक उच्चारण होता है, इसलिए अंग्रेजी की तरह हिन्दी में वर्णों के उच्चारण को स्पष्ट करने के लिए वर्णों को संयुक्त नहीं करना पड़ता है, जिससे हिन्दी में कम  लिखना पड़ता है।
 
ऐसा कोई तरीक़ा ईजाद करना चाहिए।
 
--
रावत

2012/12/29 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>
रावत जी, 

--
 
 

Pk Sharma

unread,
Dec 29, 2012, 4:59:47 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>
हिन्दी में तो लगभग हर वर्ण मात्रा के लिए कलम को कई बार उठाना पड़ता है, जिससे हिन्दी लेखन धीमा रहता है।
 
लेकिन हिन्दी का लाभ यह है कि इसमें हर वर्ण का सटीक उच्चारण होता है, इसलिए अंग्रेजी की तरह हिन्दी में वर्णों के उच्चारण को स्पष्ट करने के लिए वर्णों को संयुक्त नहीं करना पड़ता है, जिससे हिन्दी में कम  लिखना पड़ता है।
 
ऐसा कोई तरीक़ा ईजाद करना चाहिए।

तरीका तो है
सरल भी है
सीखना भी सरल है
गणक उपयुक्त भी बन गया है
पर घोर विरोध होगा
आदत से लाचार हम लोग सुनना भी पसन्द नहीं करते


--





now use indian languages on pc more easily with :
www.SimpleKeyboard.In

IT'S EASY !!    IT'S FREE !!!

Hariraam

unread,
Dec 29, 2012, 5:08:26 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
मैंने अपने कुछ गुरुजनों (स्व.) को बिना कलम की नोंक को कागज से उठाए पूरा शब्द लिखते हुए देखा था... उनकी हस्तलिपि के नमूनों का समय निकालकर स्कैन करके सन्दर्भ हेतु किसी वेबपृष्ठ पर रखूँगा...

2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>
Cursive English का लाभ है कि लिखते समय बार-बार कलम-पेन्सिल को पेज से उठाना नहीं पड़ता है जिससे लेखन की गति तेज़ होती है, इसलिए यह इस्तेमाल में है।

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 5:27:33 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
ये तो सत्यनारायण की कथा जैसा कह गए आप।
सत्यनारायण की कथा में कथा की महिमा का बखान ही किया जाता है, सत्यनारायण की असली पूरी कथा तो बताई ही नहीं जाती है।
 
बताइए क्या तरीक़ा है।
रावत
2012/12/29 Pk Sharma <pksharm...@gmail.com>

--
 
 

Yashwant Gehlot

unread,
Dec 29, 2012, 5:39:43 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
शायद विषयांतर हो गया है. मेरा इतना ही कहना था कि कर्सिव अंग्रेज़ी और टाइपिंग अंग्रेज़ी अलग-अलग होती है. जैसे लिखने में t, i आदि अलग रहता है, टाइपिंग में अलग. क्या उसी तरह लिखने वाला 'द्वितीय' अलग होगा और टाइपिंग वाला 'द्वितीय' अलग? या लिखने में भी हम हलंत के बाद 'व' के ऊपर ही मात्रा लगाएंगे? 

यह मानक आए हुए तो दो वर्ष हो गए हैं. सरकारी स्कूलों में किस तरह लिखना सिखाया जा रहा है (मेरा संदर्भ संयुक्ताक्षरों में इ की मात्रा को लेकर ही है)

यशवंत

2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>
ये तो सत्यनारायण की कथा जैसा कह गए आप।
सत्यनारायण की कथा में कथा की महिमा का बखान ही किया जाता है, सत्यनारायण की असली पूरी कथा तो बताई ही नहीं जाती है।
 
बताइए क्या तरीक़ा है।
रावत
2012/12/29 Pk Sharma <pksharm...@gmail.com>


2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>
हिन्दी में तो लगभग हर वर्ण मात्रा के लिए कलम को कई बार उठाना पड़ता है, जिससे हिन्दी लेखन धीमा रहता है।
 
लेकिन हिन्दी का लाभ यह है कि इसमें हर वर्ण का सटीक उच्चारण होता है, इसलिए अंग्रेजी की तरह हिन्दी में वर्णों के उच्चारण को स्पष्ट करने के लिए वर्णों को संयुक्त नहीं करना पड़ता है, जिससे हिन्दी में कम  लिखना पड़ता है।
 
ऐसा कोई तरीक़ा ईजाद करना चाहिए।

तरीका तो है
सरल भी है
सीखना भी सरल है
गणक उपयुक्त भी बन गया है
पर घोर विरोध होगा
आदत से लाचार हम लोग सुनना भी पसन्द नहीं करते


--





now use indian languages on pc more easily with :
www.SimpleKeyboard.In

IT'S EASY !!    IT'S FREE !!!

--
 
 

--
 
 



--
Yashwant Gehlot

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Dec 29, 2012, 6:01:04 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
यशवन्त जी, बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में आजकल आमतौर पर संयुक्ताक्षर अलग-अलग ही होते हैं। हाँ इ की मात्रा पूरे अक्षर पर ही लगायी जाती है।

29 दिसम्बर 2012 4:09 pm को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:

--
 
 



--
Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.

ePandit: http://epandit.shrish.in/

Vinod Sharma

unread,
Dec 29, 2012, 6:05:41 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
मुझे पंडितजी की बात पसंद आई थी कि यदि ये परिवर्तन व्यावहारिक हुए तो प्रचलित हो जाएँगे, अन्यथा जैसे दो साल हो गए हैं उसी तरह से आगे भी समय निकलता जाएगा। कंप्यूटर पर टाइप करने वाले को तो कोई फर्क पड़ेगा नहीं। क्यों कि टाइप तो उसी क्रम में अभी भी किया जा रहा है। बल प्रिंट में अलग-अलग अक्षर दिखाई देंगे।


 
2012/12/29 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>
यशवन्त जी, बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में आजकल आमतौर पर संयुक्ताक्षर अलग-अलग ही होते हैं। हाँ इ की मात्रा पूरे अक्षर पर ही लगायी जाती है।

--
 
 



--
सादर,
विनोद शर्मा

Yashwant Gehlot

unread,
Dec 29, 2012, 6:39:14 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
धन्यवाद श्रीश जी, 

इससे यह स्पष्ट हो गया कि सरकार की ओर से ही दो रूप चल रहे हैं. बच्चों को लिखते समय सिखाया जाता है कि 'द' के नीचे 'व' बनाते हुए 'द्वि' लिखें, लेकिन कंप्यूटर पर सिखाया जाता है  कि मात्रा 'व' पर ही आनी चाहिए पूरे द्व पर नहीं.

यशवंत

2012/12/29 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>
यशवन्त जी, बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में आजकल आमतौर पर संयुक्ताक्षर अलग-अलग ही होते हैं। हाँ इ की मात्रा पूरे अक्षर पर ही लगायी जाती है।
 

ePandit | ई-पण्डित

unread,
Dec 29, 2012, 6:48:13 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
नहीं यशवन्त जी, सरकार की ओर से इस बारे में कोई दिशानिर्देश स्कूलों में नहीं जारी किये गये हैं। पाठ्यपुस्तकों में जैसा रूप आने लगता है शिक्षक वैसे ही बताने लगते हैं। द्व आदि (विशेषकर छोटे बच्चों की पुस्तकों) में अलग-अलग वाले रूप में आने लगे हैं तो छोटे बच्चों को शिक्षक भी वैसे ही बताते हैं। बड़ी कक्षाओं जैसे १२वीं आदि की पुस्तकों में पारम्परिक रूप भी देखने को मिल जाते हैं। 

29 दिसम्बर 2012 5:09 pm को, Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com> ने लिखा:
--
 
 

V S Rawat

unread,
Dec 29, 2012, 6:49:21 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
बच्चों को सिखाई जानी वाली विधि सरकार की तय करी हुई है।
 
कंप्यूटर पर सिखाई जाने वाली विधि सरकार की तय करी कैसे हुई? वो तो फ़ॉन्ट निर्माताओं ने बनाई।
 
रावत

2012/12/29 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>
धन्यवाद श्रीश जी, 

--
 
 

Yashwant Gehlot

unread,
Dec 29, 2012, 7:19:36 AM12/29/12
to technic...@googlegroups.com
@ श्रीश जी, 
पाठ्यक्रम तो सरकार द्वारा ही तय किए जाते हैं. एनसीईआरटी सरकारी है. इसलिए हमें यह तो मानना होगा कि सरकार की नीति के तहत ही हिंदी सिखाई जा रही है और जो स्वरूप सिखाया जा रहा है, उसे सरकार की स्वीकृति/सहमति है.


@ रावत जी,
हमारी चर्चा का विषय केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा जारी 'मानकीकरण' पुस्तिका है. सरकार के निर्देश हैं कि 'द्वि' जैसे शब्दों में 'द' के नीचे 'व'  नहीं होना चाहिए, बल्कि 'द' में हलंत के बाद 'वि' लिखा जाना चाहिए (और वैसा ही दिखना चाहिए). 
इसका फॉन्ट निर्माताओं से कुछ संबंध नहीं है.

यशवंत

Hariraam

unread,
Jan 1, 2013, 7:52:47 AM1/1/13
to technic...@googlegroups.com, yge...@gmail.com
विजय जी द्वारा भेजी गई इस पुस्तिका के छूट गए पृष्ठ सं. 28 की पीडीएफ फाइल संलग्न है..

2012/12/28 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>

'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' (2010) के कुछ शुरुआती पृष्ठ पढ़ने के बाद कुछ प्रश्न उपजे हैं:

... ...शेयर किए गए दस्तावेज़ में पृष्ठ 28 नहीं है।

यशवंत


--
Yashwant Gehlot  
Page 28_img-101150410.pdf

Hariraam

unread,
Jan 2, 2013, 12:54:52 AM1/2/13
to Yashwant Gehlot, technic...@googlegroups.com
प्रोफेसर राजेश कुमार जी द्वारा "देवनागरी लिपि एवं हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण" पुस्तिका के सम्पूर्ण पृष्ठों को समेकित करके, सुधार करके पीडीएफ बनाकर डाऊनलोड हेतु उपलब्ध कराया गया है--
 
--
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>
 
Rajesh Kumar <draje...@gmail.com> wrote:
 
आदरणीय मल्होत्रा साहब की कृपा से मानकीकरण पुस्तिका का संपूर्ण रूप आपकी सेवा में यहाँ उपलब्ध है-
https://docs.google.com/open?id=0B_z693LEvM3HYXVSU0ZHMDJZUTQ
सादर
राजेश




narayan prasad

unread,
Jan 3, 2013, 12:17:07 AM1/3/13
to technic...@googlegroups.com
कृपया इसे सीधे डाउनलोड करने की कड़ी दें । इस पर अनुमति की जरूरत होती है जिसमें व्यर्थ का समय लग जाता है ।
--- नारायण प्रसाद

2013/1/2 Hariraam <hari...@gmail.com>

Hariraam

unread,
Jan 3, 2013, 12:41:04 AM1/3/13
to technic...@googlegroups.com
मैं तो सीधे डाऊनलोड कर पाया हूँ। मैं गूगल डॉक्स का सदस्य भी नहीं हूँ। कोई अनुमति की जाँच नहीं हुई। हाँ, बीच में Virus cannot be scanned वाला संदेश आया था। शायद कोई एंटी वायरस रोकता होगा।

2013/1/3 narayan prasad <hin...@gmail.com>

Vineet Chaitanya

unread,
Jan 3, 2013, 12:46:59 AM1/3/13
to technic...@googlegroups.com
हरिराम जी,
मैं भी p[ermiision की request भेजकर अनुमति मिलने पर ही file download कर सका.
आपको शायद उन्होंने पहले ही अनुमति दे रखी होगी.

2013/1/3 Hariraam <hari...@gmail.com>
--
 
 

अजित वडनेरकर

unread,
Jan 3, 2013, 1:05:02 AM1/3/13
to technic...@googlegroups.com
मैने तो बिना किसी दिक्कत डाऊनलोड कर लिया ।
मैं तकनीकी दक्ष भी नहीं हूँ ।

2013/1/3 Vineet Chaitanya <v...@iiit.ac.in>
--
 
 



--


अजित

http://shabdavali.blogspot.com/
औरंगाबाद/भोपाल, 07507777230


  

Yashwant Gehlot

unread,
Jan 3, 2013, 1:45:12 AM1/3/13
to technic...@googlegroups.com
आप में से जो भी उस दस्तावेज़ को डाउनलोड कर पाए हों, वे कृपया उसे सबके साथ शेयर कर दें। उसे अनुमति मांगने की प्रक्रिया से मुक्त रखें। जब आप गूगल दस्तावेज़ शेयर करते हैं तो यह विकल्प आता है कि लिंक के ज़रिये कोई भी उसे डाउनलोड कर सकता है, कहीं लॉगिन करने की भी आवश्यकता नहीं होती।
 
यशवंत
 
  

2013/1/3 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
--
 
 



--
Yashwant Gehlot

Vinod Sharma

unread,
Jan 3, 2013, 2:23:47 AM1/3/13
to technic...@googlegroups.com
मित्रो,
फाइल का आकार 25 एमबी से अधिक बड़ा है जिसे संलग्न नहीं किया जा सकता। अतः मैंने इस गूगल ड्राइव पर साझा कर दिया है। आप यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं।

विनोद शर्मा

2013/1/3 Yashwant Gehlot <yge...@gmail.com>



--
Yashwant Gehlot

--
 
 

रवि-रतलामी

unread,
Jan 3, 2013, 8:45:01 PM1/3/13
to technic...@googlegroups.com
यह ईबुक यहाँ पर सीधे ही पठन पाठन के लिए उपलब्ध है -


और यह फ्लैश आधारित है तो थोड़ा तेज भी है.

वहीं से डाउनलोड की कड़ी भी प्राप्त कर सकते हैं.
सादर,
रवि

बृहस्पतिवार, 3 जनवरी 2013 10:47:07 am UTC+5:30 को, Narayan Prasad ने लिखा:

Yashwant Gehlot

unread,
Jan 4, 2013, 1:37:07 AM1/4/13
to technic...@googlegroups.com
रवि जी,

मैंने कहीं देखा था कि आपने भी 'संताली' शब्द काम में लिया है. मैं अब तक 'संथाली' ही देखता-सुनता आया था, लेकिन इस मानकीकरण दस्तावेज़ में 'संताली' शब्द लिखा गया है.
कृपया 'संताली' और 'संथाली' के अंतर पर प्रकाश डालें...

यशवंत

2013/1/4 रवि-रतलामी <ravir...@gmail.com>
Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages