'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' (2010) के कुछ शुरुआती पृष्ठ पढ़ने के बाद कुछ प्रश्न उपजे हैं:
पृष्ठ 21
3.1.2.1- क और फ के हुक को हटाकर ही संयुक्ताक्षर बनाए जाएँ। जैसे- 'संयुक्त' (संयुक्त नहीं)।
3.1.2.2- 'विद्या'और 'चिह्न' ही लिखा जाए, 'विद्या' और 'चिह्न' नहीं।
-कितने फॉन्ट, सॉफ्टवेयर, अनुप्रयोग संयुक्ताक्षरों के इस 'मानकीकृत' स्वरूप का सहजता से समर्थन करते हैं, क्या वाकई इस स्वरूप का प्रसार किया जा रहा है/ किया जाना वांछित है?
3.1.2.5- ...इ की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व। जैसे- चिट्ठियाँ, द्वितीय (चिट्ठियाँ, द्वितीय नहीं)
..लेकिन (3.15.2-पृष्ठ 32)'शुक्रिया', 'अख्तियार' जैसे शब्द (जिनकी उत्पत्ति उर्दु/अरबी/फारसी से हुई है), मूल रूप में ही लिखे जाएँ.
..तो संस्कृत मूल के शब्दों (यथा 'द्वितीय' को 'द्वितीय' करने की क्या आवश्यकता है? कंप्यूटर पर काम करने वाले लोग किस तरह आसानी से इसे कर पाएंगे, पढ़ने वाले कितनी सहजता से पढ़ पाएंगे?)
3.15.6.2 (पृष्ठ 35)- मानक शब्द 'संथाली' है या उसका 'मानकीकरण' करके 'संताली' कर दिया है?
शेयर किए गए दस्तावेज़ में पृष्ठ 28 नहीं है।
अनेक स्थानों पर 'ही' लिखा है (यानी ऐसा ही किया जाना चाहिए), लेकिन पृष्ठ 37 पर लिखा है- भाषाविषयक कठोर नियम बना देने से उनकी स्वीकार्यता तो संदेहास्पद हो ही जाती है, भाषा के स्वाभाविक विकास में भी अवरोध आने का थोड़ा-सा डर रहता है।.... और इसीलिए, जहाँ तक बन पड़ा है, काफ़ी हद तक उदारतापूर्ण नीति अपनाई गई है।
..देवनागरी के मानकीकरण की आवश्यकता है ताकि निजी और सरकारी, कंप्यूटर और प्रिंट, सभी जगहों पर एक जैसा स्वरूप देखने को मिले। अराजकता से बचा जा सके। दो लोगों के बीच वर्तनी या भाषा के स्वरूप को लेकर विवाद हो तो यह दस्तावेज़ संदर्भ ग्रंथ का काम करे।
मुझे संदेह है कि यह दस्तावेज़ इस उद्देश्य में सफल हो पाएगा।
यशवंत
-कितने फॉन्ट, सॉफ्टवेयर, अनुप्रयोग संयुक्ताक्षरों के इस 'मानकीकृत' स्वरूप का सहजता से समर्थन करते हैं, क्या वाकई इस स्वरूप का प्रसार किया जा रहा है/ किया जाना वांछित है?
3.1.2.5- ...इ की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व। जैसे- चिट्ठियाँ, द्वितीय (चिट्ठियाँ, द्वितीय नहीं)
..लेकिन (3.15.2-पृष्ठ 32)'शुक्रिया', 'अख्तियार' जैसे शब्द (जिनकी उत्पत्ति उर्दु/अरबी/फारसी से हुई है), मूल रूप में ही लिखे जाएँ.
..तो संस्कृत मूल के शब्दों (यथा 'द्वितीय' को 'द्वितीय' करने की क्या आवश्यकता है? कंप्यूटर पर काम करने वाले लोग किस तरह आसानी से इसे कर पाएंगे, पढ़ने वाले कितनी सहजता से पढ़ पाएंगे?)
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हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>
सही ढंग से एक बार समझ लेने पर सभी इसे ही अपनाएँगे और सहजता से पढ़ पाएँगे। संस्कृत के मूल पाठ/व्याकरण के अनुसार ही यह नियम बनाया गया है। संस्कृत के ध्वनिविज्ञान का ही नियम है कि हलन्त-युक्त वर्ण पर कोई स्वर-मात्रा नहीं लग सकती।
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इ की मात्रा पूरे अक्षर (हलन्त युक्त वर्ण के साथ अगला वर्ण) पर लगनी चाहिये, यही हमें जमता है। हलन्त वाले पर मात्रा न लगाना हजम नहीं होता। मात्रा तो पूरे अक्षर पर ही होनी चाहिये ... ...
इ की मात्रा पूरे अक्षर (हलन्त युक्त वर्ण के साथ अगला वर्ण) पर लगनी चाहिये, यही हमें जमता है। हलन्त वाले पर मात्रा न लगाना हजम नहीं होता। मात्रा तो पूरे अक्षर पर ही होनी चाहिये क्योंकि हलन्त युक्त वर्ण का तो स्वतन्त्र अस्तित्व ही नहीं। हम पढ़ते आये हैं कि हलन्त युक्त वर्ण (शुद्ध व्यंजन) का बिना किसी स्वर के सहारे उच्चारण नहीं किया जा सकता तो पूरा अक्षर उच्चारण के लिये स्वर की सहायता लेता है तो मात्रा भी पूरे के ऊपर होनी चाहिये। बाकी जैसा सरकारी ज्ञानीजन जानें, अगर उनके नियम सही होंगे तो अपने-आप प्रचलित हो जायेंगे।
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... मात्रा तो पूरे अक्षर पर ही होनी चाहिये क्योंकि हलन्त युक्त वर्ण का तो स्वतन्त्र अस्तित्व ही नहीं। हम पढ़ते आये हैं कि हलन्त युक्त वर्ण (शुद्ध व्यंजन) का बिना किसी स्वर के सहारे उच्चारण नहीं किया जा सकता तो पूरा अक्षर उच्चारण के लिये स्वर की सहायता लेता है तो मात्रा भी पूरे के ऊपर होनी चाहिये। ...
ध्वनि विज्ञान के नियमों के अनुसार कोई भी मात्रा कभी किसी वर्ण के पहले लग/उच्चरित नहीं हो सकती है...
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2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>मुझे लगता है कि मैंने ऐसे फ़ॉन्ट देखे हैं जिनमें े ै ो ौ ॅ ँ आदि की मात्राएँ भी हलन्त-संयुक्ताक्षरों के सारे समूह के ऊपर उतनी चौड़ी करके लिखी जाती हैं।
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मेरा मानना है कि जो व्यक्ति भाषा सीखता है/सीखना चाहता है, उसके लिए मुश्किल कुछ भी नहीं है. वह संयुक्ताक्षर पर भी मात्रा लगाना सीख जाएगा और हलंत लगाने के बाद भी मात्रा लगाना सीख जाएगा और कंप्यूटर भी दोनों चीज़ें आसानी से कर सकता है.
अंग्रेज़ी में कौन सी दो शैलियां होती हैं? - लिखने में अलग और टाइपिंग में अलग?रावत
आप कोई नई भाषा सीखिए, फिर उसमें लिस्ट बनाइए कि किन किन नियमों से आपको क़ोफ़्त हुई कि कितना जटिल नियम है।रावत
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हिन्दी में तो लगभग हर वर्ण मात्रा के लिए कलम को कई बार उठाना पड़ता है, जिससे हिन्दी लेखन धीमा रहता है।
लेकिन हिन्दी का लाभ यह है कि इसमें हर वर्ण का सटीक उच्चारण होता है, इसलिए अंग्रेजी की तरह हिन्दी में वर्णों के उच्चारण को स्पष्ट करने के लिए वर्णों को संयुक्त नहीं करना पड़ता है, जिससे हिन्दी में कम लिखना पड़ता है।ऐसा कोई तरीक़ा ईजाद करना चाहिए।
Cursive English का लाभ है कि लिखते समय बार-बार कलम-पेन्सिल को पेज से उठाना नहीं पड़ता है जिससे लेखन की गति तेज़ होती है, इसलिए यह इस्तेमाल में है।
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ये तो सत्यनारायण की कथा जैसा कह गए आप।
सत्यनारायण की कथा में कथा की महिमा का बखान ही किया जाता है, सत्यनारायण की असली पूरी कथा तो बताई ही नहीं जाती है।बताइए क्या तरीक़ा है।रावत2012/12/29 Pk Sharma <pksharm...@gmail.com>2012/12/29 V S Rawat <vsr...@gmail.com>हिन्दी में तो लगभग हर वर्ण मात्रा के लिए कलम को कई बार उठाना पड़ता है, जिससे हिन्दी लेखन धीमा रहता है।लेकिन हिन्दी का लाभ यह है कि इसमें हर वर्ण का सटीक उच्चारण होता है, इसलिए अंग्रेजी की तरह हिन्दी में वर्णों के उच्चारण को स्पष्ट करने के लिए वर्णों को संयुक्त नहीं करना पड़ता है, जिससे हिन्दी में कम लिखना पड़ता है।ऐसा कोई तरीक़ा ईजाद करना चाहिए।
तरीका तो हैसरल भी हैसीखना भी सरल हैगणक उपयुक्त भी बन गया हैपर घोर विरोध होगा--आदत से लाचार हम लोग सुनना भी पसन्द नहीं करते--
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यशवन्त जी, बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में आजकल आमतौर पर संयुक्ताक्षर अलग-अलग ही होते हैं। हाँ इ की मात्रा पूरे अक्षर पर ही लगायी जाती है।
यशवन्त जी, बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में आजकल आमतौर पर संयुक्ताक्षर अलग-अलग ही होते हैं। हाँ इ की मात्रा पूरे अक्षर पर ही लगायी जाती है।
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'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' (2010) के कुछ शुरुआती पृष्ठ पढ़ने के बाद कुछ प्रश्न उपजे हैं:
... ...शेयर किए गए दस्तावेज़ में पृष्ठ 28 नहीं है।
यशवंत
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Yashwant Gehlot
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Yashwant Gehlot --