अनुदित/ अनूदित बनाम अनुवादित

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narayan prasad

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Jun 18, 2010, 1:41:57 AM6/18/10
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प्रतीत होता है कि अनूदित के अर्थ में हिन्दी में अनुवादित शब्द का प्रयोग बढ़ता जा रहा है । संस्कृत में अनुवादित शब्द अशुद्ध है ।
 

 
१७ मई २०१० १:१९ AM को, Rajeev Dubey <rajeev....@gmail.com> ने लिखा:
 
हिन्दी में तकनीकी एवं वैज्ञानिक पुस्तकों की रचना - मौलिक एवं अनुवादित - तथा शोध पत्रों का प्रकाशन - मौलिक एवं अनुवादित - विशाल स्तर पर किया जाए ऐसा मेरा मानना हैइस कार्य में आगे बढ़ने से पूर्व विचार विमर्श करना चाहता हूँकृपया अपनी राय बताएं
 
राजीव दुबे

रावेंद्रकुमार रवि

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Jun 18, 2010, 3:18:07 AM6/18/10
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प्रसाद जी की बात सही है!

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शुभकामनाओं के साथ -
आपका -
रावेंद्रकुमार रवि (संपादक : सरस पायस)

Shashi Bhushan

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Jun 18, 2010, 3:33:53 AM6/18/10
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हिन्दी को संस्कृत जैसी घटिया भाषा से क्यों जोड़ रहे हैं। अगर हिन्दी को कोई शब्द लेनी हो तो देशज भाषाएं और उर्दु जैसी भाषाओं से लेनी चाहिए। संस्कृत एक घटिया और मृत भाषा है।

2010/6/18 narayan prasad <hin...@gmail.com>

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सुमितकुमार ओम कटारिया

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Jun 18, 2010, 4:03:30 AM6/18/10
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शशि भूषणजी, आप जैसे बढ़िया भाषाविदों की ही कमी है, जिसके चलते ऐरे-गैरे
लोग संस्कृत जैसी घटिया भाषा से शब्द उठा के हिंदी में घुसेड़े जाते हैं।
मैं तो आपका मुरीद हो गया हूँ। मेहरबानी करके भाषाविद् शब्द का देशज
पर्याय बताइए। बड़ी बदबू आ रही है इससे, मुर्दे जैसी।

Anunad Singh

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Jun 18, 2010, 5:02:52 AM6/18/10
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शशिभूषण जी,
संस्कृत तो वह भाषा है जिसमें तीन-चार हजार वर्षों से साहित्य, कोशविज्ञान, भाषाविज्ञान (शिक्षा),  काव्यशास्त्र, विज्ञान, गणित, चिकित्सा, व्याकरण, अर्थ (राजनीति, कृषि, नय आदि), खगोल, दर्शन, मनोविज्ञान, न्याय (तर्कशास्त्र) , रसायन (रसविद्या) आदि की व्याख्या होते आ रही है। यह केवल 'कोठे' पर चलने वाली  और एक दूसरे का तुष्टीकरण (पैम्परिंग)  करने वाली भाषा नहीं है।  इसमें  सैकड़ों ऐसे ग्रन्थ हैं जो अपनी श्रेणी में 'प्रथम' हैं; दूसरी भाषाओं में ऐसे ग्रन्थ हजारों वर्ष बाद लिखे गये या अब भी नहीं हैं।

-- अनुनाद सिंह

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१८ जून २०१० १:३३ PM को, सुमितकुमार ओम कटारिया <katar...@gmail.com> ने लिखा:

narayan prasad

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Jun 18, 2010, 6:50:10 AM6/18/10
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सन् 1899 में Monier-Williams द्वारा सम्पादित संस्कृत-इंग्लिश शब्दकोश में संस्कृत साहित्य की दस हजार कृतियों से भी अधिक के नाम हैं । उस समय हिन्दी में लिखित कितनी रचनाएँ थीं ?
---- नारायण प्रसाद
१८ जून २०१० २:३२ PM को, Anunad Singh <anu...@gmail.com> ने लिखा:

narayan prasad

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Jun 18, 2010, 7:14:06 AM6/18/10
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मैंने गूगल पर अनुवादित और अनूदित शब्द की खोज की तो हिट संख्या निम्न प्रकार पाई गई -

अनुवादित - 647000
अनूदित - 106000

---नारायण प्रसाद

१८ जून २०१० ११:११ AM को, narayan prasad <hin...@gmail.com> ने लिखा:

अजित वडनेरकर

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Jun 18, 2010, 7:16:27 AM6/18/10
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@नारायणजी / अनुनादजी व अन्य साथी
शशिभूषण जी की टिप्पणी को तूल देने की जरूरत नही  है।
संस्कृत, उसकी परम्परा और भारतीय भाषाओं से उसके अन्तर्संबंध के प्रति वे गंभीर नजरिया नहीं रखते इसलिए ऐसा कह रहे हैं।

2010/6/18 Anunad Singh <anu...@gmail.com>

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--
शुभकामनाओं सहित
अजित
http://shabdavali.blogspot.com/

jaywant pandya

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Jun 18, 2010, 7:18:53 AM6/18/10
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सुमितकुमारजी (या शशीभूषणजी) को संस्कृत से क्या आपत्ति है? वो किस वजह से उसे घटिया भाषा बता रहे है?
संस्कृत से बढिया कोई भाषा नहीं।
Regards,
Jaywant Pandya
+919898254925
meet me at
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2010/6/18 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>

Rajeev Dubey

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Jun 18, 2010, 8:08:43 AM6/18/10
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मेरे विचार से ऐसे अभद्र एवं असम्मानजनक  विचारों को समूह के मर्यादा पूर्ण व्यवहार  के दिशानिर्देशों के अनुसार प्रतिबन्धित कर समूह के पटल से हटा देना चाहिए .
 
राजीव दुबे

2010/6/18 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
@नारायणजी / अनुनादजी व अन्य साथी

Anunad Singh

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Jun 18, 2010, 10:08:12 AM6/18/10
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शशिभूषण जी,

देखिये  किस प्रकार पन्द्रहवीं शदी के  केरल के महान गणितज्ञ माधव   ज्या-सारणी (Sine table) बनायी है। इसमें  एक चतुर्थांश में आने वाले  चौबीस कोणॉं के मान  निम्नलिखित  'कविता'  में दिये गये हैं। इस कविता में छिपे हुए  संख्याओं  ( कोणों के ज्या के मान )  को  पाने के लिये आपको  'कटपयादि '  प्रणाली पता होनी चाहिये।  विकिपिडिया पर कटपयादि  के बारे में  और  माधव की ज्या-सारणी के बारे में विस्तार से सोदाहरण दिया गया है।


कविता में ज्या-सारणी :

श्रेष्ठो नाम वरिष्ठानां  हिमाद्रिर्वेदभावनः
तपनो भानु सूक्तज्ञो मध्यमं विद्धि दोहनं
धिगाज्यो नाशनं कष्टं छन्नभोगाशयांबिका
मृगाहारो नरेशोयं  वीरो रणजयोत्सुकः
मूलं विशुद्धं नाळस्य गानेषु विरळा नराः
अशुद्धिगुप्ता चोरश्रीः  शम्कुकर्णो नगेश्वरः
तनूजो गर्भजो मित्रं  श्रीमानत्र सुखी सखे
शशी रात्रौ हिमाहारौ  वेगज्ञः पथि सिन्धुरः
छाया लयो गजो नीलो  निर्मलो नास्ति सल्कुले
रात्रौ दर्पणमभ्रांगं  नागस्तुंग नखो बली
धीरो युवा कथालोलः  पूज्यो नारीजनैर्भगाः
कन्यागारे नागवल्ली  देवो विश्वस्थली भृगुः


आजकल केवल शून्य डिग्री, ३० दिग्री, ४५ डिग्री, ६० डिग्री, और ९० डिग्री के  ज्या-मानों की सारणी विद्यार्थियों को याद करायी जाती है।  वही याद नहीं कर पाते हैं।


Anunad Singh

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Jun 18, 2010, 10:28:56 AM6/18/10
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इसके अलावा भी बहुत कुछ है जो 'हम सब' भूल गये हैं -

१) नीलकण्ठ द्वारा रचित  तंत्रसंग्रह में और  इसपर  तंत्रसंग्रहव्याख्या (अज्ञात रचनाकार) नामक भाष्य में त्रिकोणमितीय फलनों के  श्रेणी में प्रसार (series expansion of trigonometric functions)  कविता के रूप में दिये हुए हैं।

२) पादुकासहस्रम   में  कम्प्यूटर अल्गोरिद्म की एक विख्यात समस्या (नाइट्स मूव) का  श्लोक में हल दिया हुआ है।

३)  पिङ्गल  द्वारा रचित  मेरु प्रस्तार  नामक छन्दशास्त्र  ग्रन्थ में पास्कल त्रिकोण  का विस्तृत वर्णन है।

४) आर्यभट ने अपने महान ग्रन्थ  आर्यभटीय के  प्रथम अध्याय (गीतिका पदम) के द्वितीय श्लोक में  'दस पर अट्ठारह घात'  तक की संख्याओं  (इतनी बड़ी !)  को  निरूपित करने के लिये  ककहरा ( क का कि की .. ह हा हि हि आदि)  का उपयोग किया है।


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