आवश्यक नहीं है कि हर परदेशी स्वर के लिये मानक वर्णमाला में स्थान बनाया जाए । तमिल भाषा क,ख,ग,घ,ह के लिये एक ही वर्ण रखती है । हिन्दी व्यञ्जनों के लिये मानक व्यवस्था बदलना उन्हें हितावह नहीं लगा । अतः मानक व्यवस्था में फेरबदल की आवश्यकता नहीं है मेरे मन्तव्य में ।
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महाशय,
ऐसा बिल्कुल नही है कि, " ॉ (ऍ)" और "ऑ " यह विदेशी स्वर है । इनका उच्चारण विदेशी भाषा के लिए जरुर है पर यह पूरी तरह भारतीय स्वर है ।
यह पूरी तरह देवनागरी लिपी के ही स्वर है न की किसी लैटीन लिपी के ।
जैसे कि मैने पहले ही बताया भाषा को परिपूर्ण रुप से दर्शाने के लिए यह जरुरी है कि, उसके प्रत्येक वर्ण (अक्षर) को भाषा के वर्णमाला में स्थान दिया जाए । यह बात भाषा विकास तथा मानकीकरण (Standardization) के लिए आवश्यक है । इस बात को अच्छे से समझना विद्वानोंको आवश्यक है ।
आधी- अधूरी वर्णमाला रख कर हम यह नही कह सकते की हम हिन्दी के प्रचारक है । अगर हिन्दी को सच में परीपूर्ण बनाना है तो इसकी वर्णमाला भी परीपूर्ण बनानी होगी ।
हिन्दी तोडने की नही, जोडने की भाषा है। इस मे कई बोलियाँ सम्मिलित है, लोगों के दिलो को यह जोडती है । तो यह कितना उचित है कि हम उसके मूल स्वरो को भी दर्शाने से परहेज करे? इस बात पर जरा सोचे ।
जहाँ तक तामिल की बात है, उस भाषा के लिपी मे "क,ख,ग,घ" इन वर्णों को दर्शाने के लिए अलग- अलग अक्षर उपलब्ध नही है इसिलिए वहाँ पर एक ही वर्ण प्रयुक्त किया जाता है । और यह उस भाषा की विशेषता है न की कमजोरी । तामिल और हिन्दी के उच्चारण/ लेखन में भी बहुत भिन्नता है । तो यह उचित नही होगा की हम उनके लिपीयों की तुलना करें ।
यह सबसे अनुरोध है की अपने हिन्दी को अधिक परिपूर्ण बनाने की कोशिश करे ।
On Wednesday, March 9, 2016 at 12:52:21 PM UTC+5:30, Suyash wrote:
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Narayan Prasad जी ,
"ऍ" और "ऑ" हम अंग्रेजी भाषा को हिन्दी देवनागरी मे दर्शित करने के लिए प्रयुक्त करते है...