''मीठे बच्चे - सब बातों में सहनशील बनो, निंदा-स्तुति, जय-पराजय सबमें समान रहो, सुनी सुनाई बातों में विश्वास नहीं करो''
प्रश्न: आत्मा सदा चढ़ती कला में आगे बढ़ती रहे उसकी सहज युक्ति सुनाओ?
उत्तर: एक बाप से ही सुनो, दूसरे से नहीं। फालतू परचिन्तन में, वाह्यात बातों में अपना समय बरबाद न करो, तो आत्मा सदा चढ़ती कला में रहेगी। उल्टी-सुल्टी बातें सुनने से, उन पर विश्वास करने से अच्छे बच्चे भी गिर पड़ते हैं, इसलिए बहुत सम्भाल करनी है।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी जांच आपेही करनी है। देखना है मैं बहुत-बहुत मीठा बना हूँ? हमारे में क्या-क्या कमी है? सब दैवीगुण धारण हुए हैं! अपनी चलन देवताओं जैसी बनानी है। आसुरी खान-पान त्याग देना है।
2) कोई भी वाह्यात बातें न सुननी है और न बोलनी है। सहनशील बनना है।
वरदान: सर्व शक्तियों की सम्पत्ति से सम्पन्न बन दाता बनने वाले विधाता, वरदाता भव
जो बच्चे सर्व शक्तियों के सम्पत्तिवान हैं-वही सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति के समीपता का अनुभव करते हैं। उनमें कोई भी भक्तपन के वा भिखारीपन के संस्कार इमर्ज नहीं होते, बाप की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, शक्ति चाहिए-यह चाहिए शब्द दाता विधाता, वरदाता बच्चों के आगे शोभता ही नहीं। वे तो विश्व की हर आत्मा को कुछ न कुछ दान वा वरदान देने वाले होते हैं।
स्लोगन: हर आत्मा को कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन ही सत वचन हैं।
मन्सा सेवा के लिए: किसी की कमजोरी को जानते हुए उस आत्मा की कमजोरी को भुलाकर, उसकी विशेषता के शक्ति की स्मृति दिलाकर समर्थ बनाओ। अपनी शुभचिंतक स्थिति द्वारा गिरी हुई आत्माओं को ऊंचा उठाओ, यही मन्सा सेवा है।