दंतकथा

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Ashutosh Kumar

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Mar 20, 2013, 11:14:51 AM3/20/13
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एक मित्र ने फेसबुक पर गुहार लगाई है कि दंतकथा में दंतकथा क्यों कहते
हैं .

Abhay Tiwari

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Mar 20, 2013, 11:30:15 AM3/20/13
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जो लिखी न गई हो.. दाँतो के ज़रिये कही गई हो.. एक तरह से अप्रमाणित.. दाँतों से दाँतों तक विचरती हुई और बदलती हुई.. ज़ाहिर तौर पर तो यही अर्थ सूझता है.. और लोग परीक्षण करें!   

2013/3/20 Ashutosh Kumar <ashuv...@gmail.com>
एक मित्र ने फेसबुक पर गुहार लगाई है कि दंतकथा में दंतकथा क्यों कहते
हैं .

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अजित वडनेरकर

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Mar 20, 2013, 11:38:47 AM3/20/13
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हिन्दी शब्दसागर में तुलसी का दिलचस्प उद्धरण है "इति वेद वदंति न दंतकथा । रवि आतप भिन्न न भिन्न यथा"

इस पर गौर करें तो वदंत हाथ लगता है। वदंत कथा यानी जिसे कई बार कहा जा चुका हू। 'व' लुप्त हो गया, 'दंत' शेष रहा। कहने की क्रिया का दाँतों से रिश्ता जोड़ना
सरलीकरण के आधार पर तो ठीक है, पर वर्षों से मेरे गले नहीं उतर रहा है। दाँतो के ज़रिये वाग्मितार्थ के अन्य उदाहरण भी नहीं मिलते।

विचार किया जाए। आगे कुछ नहीं कहूँगा:)

2013/3/20 Ashutosh Kumar <ashuv...@gmail.com>
एक मित्र ने फेसबुक पर गुहार लगाई है कि दंतकथा में दंतकथा क्यों कहते
हैं .
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अजित

http://shabdavali.blogspot.com/
औरंगाबाद/भोपाल, 07507777230


  

अजित वडनेरकर

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Mar 20, 2013, 11:45:49 AM3/20/13
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तत्सम रूपों से तद्बव रूप और फिर उसका भी देशीकरण इसी तरह होता है कि मूल शब्द ही गुम हो जाता है या रूप बदल लेता है। मराठी में ज़मींदोज़ का रूप ज़मीनदोस्त हो गया । लोक को फ़ारसी के दोज़ से मतलब नहीं था। उसने दोस्त सुना, दोस्त माना। वदंति में कहने के भाव का आशय स्पष्ट है। लोक में आकर वदंत का दंत रह जाना सहज स्वाभाविक है।

2013/3/20 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>

lalit sati

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Mar 20, 2013, 11:54:02 AM3/20/13
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क्या इसका रिश्ता दंत के एक अर्थ कुंज arbour से भी हो सकता है, ऐसे स्थान पर लोग किस्से-कहानियां सुनाते हों?

अजित वडनेरकर

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Mar 20, 2013, 11:57:37 AM3/20/13
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@lalit sati
दिलचस्प है...

2013/3/20 lalit sati <lalit...@gmail.com>

ashutosh kumar

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Mar 20, 2013, 12:04:02 PM3/20/13
to शब्द चर्चा
प्रफुल्ल कोलख्यान ने ये राय दी है -आदरणीय दोस्तो। पूरा शब्द है किंवदंती। वद का अर्थ बोलना होता है। वदंत/वदंती वैयाकरणिक रूप है। किंवदती> किंवदंत> दंत> और फिर उसमें कथा लगकर दंत-कथा, अर्थात किंवदंत-कथा से दंत-कथा। यहाँ वदंत और कथा के एक साथ आने में पुनरुक्ति है। जैसे पाव-रोटी में पुनरुक्ति है। पाव पुर्तगाल का शब्द है जिसका अर्थ रोटी है। हमारे यहाँ की रोटी से वह भिन्न था इसलिए पाव-रोटी में पाव रोटी का विशेषण की तरह बनकर चल निकला। उसी तरह दंत-कथा में दंत कथा का विषेषण की तरह बनकर चल रहा है।

ashutosh kumar

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Mar 20, 2013, 12:25:17 PM3/20/13
to शब्द चर्चा
"इति वेद वदंति न दंतकथा । रवि आतप भिन्न न भिन्न यथा"
शंका यह है कि इस चौपाई में वदन्ति दंतकथा के विपरीत अर्थ में आ रहा है . वेद ऐसा कहते हैं. यह दंतकथा नहीं है .

वदंतकथा और दंत कथा में अर्थ विपर्यय लगता है . ऐसा हुआ होगा ?


2013/3/20 ashutosh kumar <ashuv...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

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Mar 20, 2013, 12:39:30 PM3/20/13
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ध्यान दीजिए आशुभाई, मैने केवल वदंति>वदंत के ज़रिये दंतकथा शब्द सामने आने वाली बात कही है। दोहे का भावार्थ मैने नहीं समझाया बल्कि उसके बहाने से वदंत के दंत में तब्दील होने की लोक प्रवृत्ति की ओर इशारा किया है। प्रफुल्लजी भी उसी लाइन पर हैं। तुलसी ने इस दोहे में दंतकथा का निरुक्त रचा है यह भी नहीं कहा और न ही उसके आधार के तौर पर पेश किया। किंवदंती से भी दंतकथा का अर्थ समझ में आता है, मगर दंतकथा का मूल किंवदंती भी नहीं है। मूल बात वदंत से दंत का बनना है। इसी ओर अपन ने संतों का ध्यान खींचा।
जै हो।

2013/3/20 ashutosh kumar <ashuv...@gmail.com>

ashutosh kumar

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Mar 20, 2013, 1:07:03 PM3/20/13
to शब्द चर्चा
आपकी बात में दम तो  है ..

Abhay Tiwari

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Mar 20, 2013, 1:19:34 PM3/20/13
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किंवदंति से दंतकथा बनना तार्किक है.. दांतो वाली बात पोली है.. :) 

2013/3/20 ashutosh kumar <ashuv...@gmail.com>

Sheo S. Jaiswal

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Mar 21, 2013, 12:16:07 AM3/21/13
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वदन्त कथा शब्द कैसे, कहाँ से मिला? क्या इसका संकेत कहीं "इति वेद वदंति न दंतकथा । रवि आतप भिन्न न भिन्न यथा" में है? तुलसी की इन पंक्तियों में 'वदन्ति' का अर्थ है 'कहते हैं '. वदन्ति से तो वदन्त बनेगा नहीं। 
2013/3/20 Abhay Tiwari <abha...@gmail.com>



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Dr. S. S. Jaiswal

vishal srivastava

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Mar 21, 2013, 2:25:39 AM3/21/13
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पंडित वाद वदंते झूठा।

वैसे किम्वदन्त वाली थ्योरी सटीक लग रही है, तुलसी का उद्धरण यहाँ काम नहीं कर रहा.


2013/3/21 Sheo S. Jaiswal <jais...@gmail.com>



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Vishal Srivastava

www.nayasamay.blogspot.com

अजित वडनेरकर

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Mar 21, 2013, 3:23:33 AM3/21/13
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मैं ऊपर स्पष्ट कर चुका हूँ। बार बार क्या कहूँ। मुद्दा वदंत में दंत को देखना है, न कि दंत में दाँत। तुलसी को दोहा  तो प्रसंगवश आया है। विशालजी  जब "वाद वदंते"
जैसे उक्ति तलाशते हैं तब भी उन्हें स्वतंत्र रूप में वदंत की मौजूदगी नज़र नहीं आ रही है और वे किंवदंती का आधार मज़बूत पा रहे हैं। मेरे लिये दंत को समझने का आश्रय किंवदंती बेहतर है। वदंत तो स्वतंत्र रूप में है और उससे ही दंत बना। बाद में कथा शब्द जुड़ कर दंतकथा समास बना। हिन्दी में दंत शब्द किंवदंती से नहीं आया यही समझाना चाहता हूँ संतों। व्यापकता से देखिए। जिस तुलसी के उद्धरण में आए वदंति से संकेत स्वरूप दंत की शंका सुलझानी चाही उसमें अब किसी को शंका नहीं है।
वदंत का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकारें या न स्वीकारें, आपकी मर्ज़ी। दंतकथा को दाँत की पकड़ से मुक्ति मिली मेरे लिए यही बहुत है।



2013/3/21 vishal srivastava <vis...@gmail.com>

दिनेशराय द्विवेदी

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Mar 21, 2013, 6:33:32 AM3/21/13
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किसी को दाँतों से छुड़ा लेना क्या कम बात है


2013/3/21 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>



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दिनेशराय द्विवेदी, कोटा, राजस्थान, भारत
Dineshrai Dwivedi, Kota, Rajasthan,
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vishal srivastava

unread,
Mar 21, 2013, 10:08:22 AM3/21/13
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अजित  सर, किम्वदंत कहना वदन्त की सत्ता का स्वीकार ही है, निषेध नहीं। लगा सिर्फ यह कि  'दन्त-कथा' पद का अर्थ किम्वदंत के अधिक निकट है। दाँत वाला अर्थ खोजना तो शुरू से ही ठीक नहीं था। तुलसी के सन्दर्भ से  आपने 'वदन्ति' को ग्रहण किया है, पर वहां संयोगवश 'दन्त कथा' भी है और पूरी पंक्ति का अर्थ कुछ विरोधी होता दीखता है। आपकी व्युत्पत्ति के सन्दर्भ में कभी शंका नहीं रही सर!


2013/3/21 दिनेशराय द्विवेदी <drdwi...@gmail.com>



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Vishal Srivastava

www.nayasamay.blogspot.com

अजित वडनेरकर

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Mar 21, 2013, 10:32:47 AM3/21/13
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ठीक है भाई। मैने वदंति से वदंत को ग्रहण किया है। एकाध जगह वदंति लिख गया हूँ तो उसे वर्तनी की चूक माना जाए।  भावार्थ का उल्लेख ही व्यर्थ है, मैने उससे कुछ भी ग्रहण नहीं किया है। पहले भी स्पष्ट कर चुका हूँ। 'वदंतकथा'  जैसा कोई पद रहा होगा, यह भी दावा नहीं है। बात को स्पष्ट करने के लिए वदंत के साथ कथा शब्द भी रख दिया ताकि बात स्पष्ट हो जाए। तब भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है तो मेरा दुर्भाग्य। एक बार फिर मेरी पहली प्रतिक्रिया देखें-

"हिन्दी शब्दसागर में तुलसी का दिलचस्प उद्धरण है "इति वेद वदंति न दंतकथा । रवि आतप भिन्न न भिन्न यथा" इस पर गौर करें तो वदंत हाथ लगता हैवदंत कथा यानी जिसे कई बार कहा जा चुका हू। 'व' लुप्त हो गया, 'दंत' शेष रहा। कहने की क्रिया का दाँतों से रिश्ता जोड़ना
सरलीकरण के आधार पर तो ठीक है, पर वर्षों से मेरे गले नहीं उतर रहा है। दाँतो के ज़रिये वाग्मितार्थ के अन्य उदाहरण भी नहीं मिलते। "

मैं दीर्घावकाश पर निकल पड़ा हूँ, तब भी व्यक्तिगत सम्पर्क के लिए तो उपलब्ध हूँ ही। 
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