अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।(?)

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Ashutosh Kumar

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Dec 12, 2012, 11:50:09 AM12/12/12
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चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸
विपत्ति विघ्न जो पडें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेल मेल हाँ¸ बढ़े न भिन्नता कभी¸
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।(?)
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

पुण्यतिथि पर राष्ट्रकवि को याद करते हुए , संतों , बताइये कि क्या
प्रश्नांकित पंक्ति शुद्ध पाठ है ? क्या आशय है इस का ? ( फेसबुक पर इस
कविता के शुद्ध पाठ की खोज की एक कड़ी के रूप में )

Vinod Sharma

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Dec 12, 2012, 12:06:26 PM12/12/12
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आशुतोषजी,
पंक्ति तो सही प्रतीत होती है।
एक पंथ के भीतर अतर्क की गुंजाइश है
लेकिन पंथ सभी सतर्क होने चाहिएं।

2012/12/12 Ashutosh Kumar <ashuv...@gmail.com>



--
सादर,
विनोद शर्मा


Anil Janvijay

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Dec 12, 2012, 12:07:46 PM12/12/12
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मुझे लगता है कि यह कविता का शुद्ध पाठ है। अतर्क का मतलब यहाँ अनुपयुक्त, असंगत, अनुचित, अप्रासंगिक अयोग्य से है।

2012/12/12 Ashutosh Kumar <ashuv...@gmail.com>
पंथ



--
anil janvijay
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ashutosh kumar

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Dec 12, 2012, 12:20:19 PM12/12/12
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कोई ऐसा अन्वय नहीं बन रहा , जिस से अप दोनों मित्रों के सुझाए मानी प्रकट होते हों . अन्वय कर के देखिये .


2012/12/12 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>

eg

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Dec 12, 2012, 12:22:37 PM12/12/12
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मुझे लगता है कि पंथ के स्थान पर 'पांथ' होना चाहिये माने राही। 

2012/12/12 Ashutosh Kumar <ashuv...@gmail.com>
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸

Anil Janvijay

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Dec 12, 2012, 12:43:54 PM12/12/12
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पंथ का अर्थ होता है कोई सिद्धान्त या कोई मत (सम्प्रदाय, धर्म, मजहब)। पंथ का एक दूसरा मतलब होता है रास्ता या मार्ग या राह)। 
और अतर्क का अर्थ है -- अनुपयुक्त , असंगत, अनुचित, अप्रासंगिक, अयोग्य।
यानी सतर्क का मतलब होगा-- उपयुक्त, संगत, उचित, प्रासंगिक, योग्य
 
आइए अब इस पंक्ति की व्याख्या करें।
कोई भी मत या सिद्धान्त अनुपयुक्त असंगत, अनुचित, अप्रासंगिक, अयोग्य नहीं होना चाहिए। सभी मतों को, सभी विचारों को, सभी सिद्धान्तों को
उपयुक्त, संगत, उचित , प्रासंगिक और योग्य ही होना चाहिए (तभी भाव समर्थ होगा)  तभी उस मत या सिद्धान्त की भावना  ठीक होगी। और वह भावना इतनी समर्थ होगी कि वह मनुष्य को  मनुष्य बनाए रखेगी ।उसे अमानव नहीं बनने देगी।
 
 
 
 
2012/12/12 eg <girij...@gmail.com>

ashutosh kumar

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Dec 12, 2012, 1:05:45 PM12/12/12
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नहीं अनिल जी , ये व्याख्या ठीक नहीं बैठ रही .वैसा कहने के लिए सीधे यों कहा जा सकता था-- अतर्क पंथ छोड़ कर सतर्क पंथ हों सभी . फिर तरने की क्रिया मनुष्य पर लागू   हो सकती है , पंथ पर नहीं . 


2012/12/12 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>
पंथ का अर्थ होता है कोई सिद्धान्त या कोई मत (सम्प्रदाय, धर्म, मजहब)। पंथ का एक दूसरा मतलब होता है रास्ता या मार्ग या राह)। 

Anil Janvijay

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Dec 12, 2012, 1:17:02 PM12/12/12
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आशुतोष जी, यहाँ पंथ के तरने का मतलब है -- पंथ का विकास होना।

2012/12/12 ashutosh kumar <ashuv...@gmail.com>

vibhas verma

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Dec 13, 2012, 1:56:46 AM12/13/12
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एक दूर की कौड़ी है। यदि अतर्क की जगह अतर्क्य पढ़ें तो पहले वाले पंथ का सम्बन्ध राष्ट्रवाद से और दूसरे का देश में विद्यमान अन्यान्य पंथों से आशय जुड़ सकता है।

2012/12/12 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>

vibhas verma

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Dec 13, 2012, 1:58:55 AM12/13/12
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अतर्क्य यानी तर्कातीत, अप्रश्नेय। 

2012/12/13 vibhas verma <vibha...@gmail.com>

lalit sati

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Dec 13, 2012, 2:01:11 AM12/13/12
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मुझे तो अनिल जी की बात में अधिक दम लग रहा है।

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी को यदि ऐसे पढें अतर्क एक राह के सतर्क मत हों सभी


2012/12/13 vibhas verma <vibha...@gmail.com>

Vinod Sharma

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Dec 13, 2012, 2:09:10 AM12/13/12
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बिलकुल सही कहा, राष्ट्रकवि की ओर से यह देशवासियों का आह्वान है, एक राह राष्ट्र-निर्माण, राष्ट्र-भक्ति की है।
विभिन्न मतों वाले लोगों का राष्ट्र के प्रति एक मत होने का आह्वान किया गया है।

2012/12/13 lalit sati <lalit...@gmail.com>

ashutosh kumar

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Dec 13, 2012, 11:42:05 AM12/13/12
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आश्चर्य की बात है कि विभास की कौड़ी मेरे उस संशय से मेल खाती है , जिस ने इस प्रश्न को प्रेरित किया था . अगर शब्द अतर्क्य हो तो बात बनती दिखती है . वैसे विचार करें कि अतर्क हिंदी का कोई प्रचलित शब्द है भी नहीं .इस भाव के लिए तर्कहीन शब्द चलता है .अब सवाल यह है कि इस बात की पुष्टि कैसे हो कि मूल पाठ में शब्द अतर्क  है या अतर्क्य ?नेट पर इस कविता का एक भी शुद्ध पाठ उपलब्ध नहीं है .वैसे मुझे लगभग यकीन हो चला है कि राष्ट्रकवि ने अतर्क्य ही लिखा होगा .


2012/12/13 Vinod Sharma <vinodj...@gmail.com>

vishal srivastava

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Dec 14, 2012, 1:13:18 AM12/14/12
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मैं भी थोड़ी धृष्टता कर ही लूं :

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी = 'सभी सतर्क पंथ अतर्क एक पंथ के हों' 

यानि सभी मत मतान्तर तर्क छोड़ कर एक राह के हो जायें।
वैसे भी कविता का मूल आशय भिन्नताओं को छोड़ने का आग्रह ही है।

 



2012/12/13 ashutosh kumar <ashuv...@gmail.com>



--
Vishal Srivastava

www.nayasamay.blogspot.com

ashutosh kumar

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Dec 14, 2012, 4:56:52 AM12/14/12
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यह अन्वय संभव है . तब अतर्क्य की जरूरत नहीं होगी , लेकिन आशय वही है .


2012/12/14 vishal srivastava <vis...@gmail.com>
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