हिंदी वाक्य में अल्पविराम (comma) का प्रयोग

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Chopra

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Oct 13, 2011, 12:00:38 AM10/13/11
to शब्द चर्चा
महानुभावो,

हिंदी अल्पविराम के प्रयोग के संबंध में मन में कुछ दुविधा है। आपके
विचार में निम्नलिखित में कौन-सा वाक्य सही है:

अगर आप भविष्य में सुखी रहना चाहते हैं तो आज ही बचत आरम्भ करें।

अगर आप भविष्य में सुखी रहना चाहते हैं, तो आज ही बचत आरम्भ करें।

अगर आप भविष्य में सुखी रहना चाहते हैं तो, आज ही बचत आरम्भ करें।

मैंने कमोबेश ये तीनों ही प्रयोग हिंदी में देखे हैं, लेकिन इस बारे में
अनिश्चय बना हुआ है कि व्याकरणिक रूप से शुद्ध और स्वीकार्य प्रयोग कौन-
सा है?

शुभकामनाओं सहित,

चोपड़ा

दिनेशराय द्विवेदी

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Oct 13, 2011, 12:12:12 AM10/13/11
to shabdc...@googlegroups.com
अल्पविराम के प्रयोग को नियमों में बांधा जाना क्या संभव है?
आप इस वाक्य को लिखते समय वहाँ अल्प विराम लगाएँ, जहाँ आप चाहते हों कि पाठक कुछ रुक कर आगे पढ़े।

2011/10/13 Chopra <lingua...@gmail.com>



--
दिनेशराय द्विवेदी, कोटा, राजस्थान, भारत
Dineshrai Dwivedi, Kota, Rajasthan,
क्लिक करें, ब्लाग पढ़ें ...  अनवरत    तीसरा खंबा

Abhay Tiwari

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Oct 13, 2011, 12:39:19 AM10/13/11
to shabdc...@googlegroups.com
आपके तीनों विकल्पों में पहला वाला सही है। यानी इस वाक्य में कॉमा की ज़रूरत नहीं है क्योंकि दो वाक्यांशों के बीच सम्बन्ध बिठाने वाला 'तो' वहाँ है। ऐसे किसी सम्बन्ध की अनुपस्थिति में कॉमा ज़रूरी हो जाता है।

2011/10/13 दिनेशराय द्विवेदी <drdwi...@gmail.com>

Vinod Sharma

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Oct 13, 2011, 12:50:16 AM10/13/11
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तिवारी गुरू की बात से अक्षरशः सहमत।
अंग्रेजी में संबंध कारक होते हुए भी अल्पविराम लगाते हैं जैसे and से पहले, or से पहले भी अल्पविराम लगाते हैं।
हमारे अनुवादक भाई अंग्रेजी प्रथा का अनुसरण करते हुए, 'और' एवं 'या' से पहले भी अल्पविराम लगा देते हैं। प्रूफ़रीडिंग
के कार्य में अक्सर मैंने यह पाया है।

2011/10/13 Abhay Tiwari <abha...@gmail.com>

Hansraj sugya

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Oct 13, 2011, 1:03:39 AM10/13/11
to शब्द चर्चा
अल्पविराम आशय स्पष्ट करने के उद्देश्य से लगाया जाना चाहिए
जैसे…
धनसंग्रह करो नहीं करोगे तो पछताओगे।
धनसंग्रह करो, नहीं करोगे तो पछताओगे।
धनसंग्रह करो नहीं, करोगे तो पछताओगे।








Date: Thu, 13 Oct 2011 10:20:16 +0530
Subject: Re: [शब्द चर्चा] हिंदी वाक्य में अल्पविराम (comma) का प्रयोग
From: vinodj...@gmail.com
To: shabdc...@googlegroups.com

narayan prasad

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Oct 13, 2011, 1:09:41 AM10/13/11
to shabdc...@googlegroups.com
पकड़ो मत जाने दो ।
पकड़ो, मत जाने दो ।
पकड़ो मत, जाने दो ।

2011/10/13 Hansraj sugya <hansra...@msn.com>

anil janvijay

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Oct 13, 2011, 1:32:59 AM10/13/11
to shabdc...@googlegroups.com
अभय तिवारी जी की बात से सहमत हूँ। पहला वाक्य ही ठीक है।

2011/10/13 narayan prasad <hin...@gmail.com>



--
anil janvijay
कृपया हमारी ये वेबसाइट देखें


Moscow, Russia
+7 495 422 66 89 ( office)
+7 916 611 48 64 ( mobile)

Abhay Tiwari

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Oct 13, 2011, 2:07:02 AM10/13/11
to shabdc...@googlegroups.com
तिवारी गुरू?!  बाप रे बाप.. जीवन में ऐसे गुरु घंटालों से पाला पड़ा कि कोई गुरु कहे तो हड़क कर सावधान हो जाता हूँ.. 

शर्मा जी, दोस्त ही बना रहने दीजिये.. दोस्तों से बहुत कुछ सीखा है।  :) 

2011/10/13 Vinod Sharma <vinodj...@gmail.com>

Avinash Vachaspati

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Oct 13, 2011, 3:10:55 AM10/13/11
to shabdc...@googlegroups.com
कोमा ही है न 
कील तो नहीं
फिर क्‍यों
रहे हैं घबरा
किसी को
जब तक न चुभे
तब तक
लगाते रहिए
अपनी मर्जी से
किसी को चुभ जाए
तो निकाल दीजिएगा।

2011/10/13 Abhay Tiwari <abha...@gmail.com>



--
सादर/सस्‍नेह
अविनाश वाचस्‍पति/Avinash Vachaspati
मोबाइल 09718750843/09717849729
नीचे घूमते फिरते रहा कीजिए मित्रो


भाई भोपाली

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Oct 13, 2011, 3:26:33 AM10/13/11
to shabdc...@googlegroups.com
कोई कोमा में ही पहुँच जाए तो?

2011/10/13 Avinash Vachaspati <nuk...@gmail.com>



--


अजित

http://shabdavali.blogspot.com/
मोबाइल-
औरंगाबाद- 07507777230

  


Avinash Vachaspati

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Oct 13, 2011, 4:24:02 AM10/13/11
to shabdc...@googlegroups.com
कोई कौन
अपना देश ही
कोमा में पहुंचा 
लगता है।

2011/10/13 भाई भोपाली <wadnerk...@gmail.com>

vinit utpal

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Oct 13, 2011, 4:42:27 AM10/13/11
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बिना कोमा लगाये बात करते रहिये
मगर किसी कौम को लेकर जुबान बंद रखिये
कम, काम, कोमा, कॉम, कौम सभी शब्द हैं ऐसे 
जहां क और म तो हैं 
मगर आ, ओ, औ के प्रयोग से शब्द बदल जाते हैं.    

anil janvijay

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Oct 13, 2011, 11:07:14 AM10/13/11
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साथियो!
अब नीचे लिखी ख़बर पढ़िए और कोमा-फ़ुलस्टॉप लगाइए। यह ख़बर सात घंटे पहले टाइम्स आफ़ इण्डिया में छपी और अब सारी दुनिया में इसकी चर्चा हो रही है।
 
NEW DELHI: Government babus will now not have to struggle to find Hindi words for commonly used English words like 'awareness', 'regular', 'de-forestation', 'programme', 'rain-water harvesting', and 'higher education' while making notes in Hindi.

Their copy can use a mix of Hindi and English words without any adverse remark as long as they use the English words in the Devnagri script.

The home ministry recently issued comprehensive guidelines on use of simple Hindi in official work, making it possible for babus to use English words as frequently as they might be doing so in their daily conversation.

Noting that the use of difficult Hindi words generates disinterest among masses, the ministry has recommended that such words can be replaced with English alternatives in the Devnagari script. The circular advocates use of popular Hindi words and English alternatives to make the language more attractive and popular in offices and masses.

"Whenever, during the official work, Hindi is used as translating language, it becomes difficult and complex. There is an urgent need to make changes in the process of English to Hindi translations. Translations should carry expression of the original text rather than word-by-word Hindi substitute," the circular said.

It said use of popular words of Urdu, English, and other regional languages should be promoted in official correspondence. Pure Hindi should be for literary purposes while practical 'mixed' version for work purposes.

"Foreign words which are now popular in Hindi like `ticket', `signal', `lift', `station', `police', `bureau', `button', `fee'...and Arabian, Turkish, Farsi words like `Adalat', `Kanoon', `Muqadma', `Kagaz', `Daftar'...should be used as it is in Hindi correspondence," it said.

The ministry said it was better to use popular English terms in the Devnagri script than to translate them in pure Hindi.


2011/10/13 vinit utpal <vinit...@gmail.com>

Abhay Tiwari

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Oct 13, 2011, 11:28:56 AM10/13/11
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सही क़दम है। 

2011/10/13 anil janvijay <anilja...@gmail.com>

भाई भोपाली

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Oct 13, 2011, 11:36:08 AM10/13/11
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बिल्कुल सहमत हूँ।
किसी भी राज भाषा के संदर्भ में ये पंक्तियाँ सही हैं-


It said use of popular words of Urdu, English, and other regional languages should be promoted in official correspondence. Pure Hindi should be for literary purposes while practical 'mixed' version for work purposes.

2011/10/13 Abhay Tiwari <abha...@gmail.com>

दिनेशराय द्विवेदी

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Oct 13, 2011, 11:49:36 AM10/13/11
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मैं भी सहमत हूँ। इस से अंग्रेजी का प्रयोग कम होगा और हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा। हमारे एक उस्ताद आरंभ में यही करते थे अपने दावों व आवेदनों में जहाँ भी हिन्दी शब्द नहीं मिलते थे वे सीधे अंग्रेजी शब्दों का उपयोग करते थे। कई पुराने वकील अब भी यही करते हैं। जैसे एस्टोप्ड, मिसकंसीव्ड आदि।

भाई भोपाली

unread,
Oct 13, 2011, 12:00:47 PM10/13/11
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बड़ी बात अभिव्यक्ति को दुरूह बनाने वाले पारिभाषिक शब्दों के गैरज़रूरी प्रयोग से आम आदमी को मुक्ति मिलेगी। राजभाषा का सर्वाधिक मज़ाक ऐसे शब्दों के प्रयोगों से ही होता था। आज़ादी के छह दशकों से सरकारी कामकाम में यह नकली हिन्दी जमी है, इसके बावजूद अगर पारिभाषिक शब्दों को जनता न अपनाए तो कोई क्या करे? हिन्दी साहित्य तो बढ़ रहा है, हिन्दी समाज की अभिव्यक्ति भी दिनोंदिन समृद्ध हो रही है। जैसे पाश्चात्य वेशभूषा के बावजूद भारतीय को भारतीय के रूप में ही पहचाना जाएगा, वैसे ही सहज भाव से हजारों विदेशी शब्दों को पचा चुकी हिन्दी हर हाल में हिन्दी के तौर पर ही पहचानी जाएगी, न कि क्रियोल की तरह। पारिभाषिक शब्दों में अपनापन कम और अजनबीयत ज़्यादा होती है। सिर्फ हिन्दी पदों के इस्तेमाल से ही अगर उन्हे हिन्दी माना जाए तब वे आसानी से समझ आने चाहिए। मगर ऐसा होता नहीं। पारिभाषिक शब्दों का अर्थ ज़बानी कोई नहीं बता पाता। शब्दकोश साथ रखने की ज़रूरत पड़ती है। तब वकील से जिस रूप में उन्होंने समझा है और फैसले में जिसका इस्तेमाल हुआ है, और जिससे सम्बन्धित पक्ष परिचित है, उसी का प्रयोग होगा।

Abhishek Avtans

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Oct 14, 2011, 4:45:44 AM10/14/11
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मित्रों
भारतीय शिक्षा व्यवस्था को निजी कंपनियों को बेचने के बाद अब सरकार हिंदी पर भी बाज़ार को हावी होने देने की तैयारी में है। पहले का "सुप्रभाव" तो आपने यहाँ पढ़ा ही होगा। दूसरी ओर राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (जिस कुछ लोग राष्ट्रीय अज्ञान आयोग भी बुलाते हैं) तो पहले से ही मोर्चा खोले हुए कि सभी भारतीय बच्चे पैदा होते ही अंग्रेजी सीखना और बोलना शुरू कर दें। सरल भाषा का मतलब हिंगलिश नहीं है। क्या हमारे दादा-परदादा घर में संस्कृत में बात करते थे?...हिंदी  और उसकी लोकभाषाओं को ही बोलते थे...पर हिंगलिश नहीं...राजभाषा के कठिन शब्दों को अगर इंग्लिश में देवनागरी बना कर लिख दिया जाए..तो क्या उन्हें समझना आसान हो जाएगा? दोनों के लिए शब्दकोश तो खोलना ही पड़ेगा। क्या अंग्रेजी में लिखे पत्रों में भी हिंदी के आम शब्द  जैसे बैल, घर, किसान, पानी, आदि रॊमन लिपि में इस्तेमाल किए जाएँगे। राजभाषा की दुरहता को कम करने के लिए Rain water harvesting को रेन वाटर हार्वेस्टिंग लिखना  सही नहीं है....सही तो है कि उसे "बरसाती जल संग्रहण" कहा जाए।
सादर
--

Abhishek Avtans अभिषेक अवतंस


भाई भोपाली

unread,
Oct 14, 2011, 7:41:57 AM10/14/11
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ज़रूरी यह है कि राजभाषा के क्लिष्ट पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग करते हुए कोष्ठक में प्रचलित अंग्रेजी विकल्प भी दिया जाए। रेनवाटर हार्वेस्टिंग के स्थान पर अगर बरसाती जल संग्रह लिखा है तो किसी को क्या दिक्कत है। यह राजभाषा की दुरूहता को उजागर करने वाला उदाहरण नहीं है।  मगर हजारों उन कठिन शब्दों के बारे में सोच कर बीच का रास्ता निकाला गया होगा, जिन्हें पढ़ कर उन्हें रचने वाले भी चक्कर में पड़ जाते हैं कि इन्हें किस लिए रचा था। शब्दकोश देखना मजबूरी हो जाता है।

अगर हम भारतीयों के लिए अंग्रेजी इतनी ही आसान होती तो आज़ादी भी किन्ही कांग्रेसियों, वामपंथियों, चंद प्रगतिशील लेखकों, लीगीयों-तब्लिगीयों के प्रयासों से नहीं आई होती, जैसा की दावा किया जाता है। उससे कहीं पहले आ गई होती।  अंग्रेजी आसान होती तो अभी तक निश्चित ही अंग्रेजी के बूते चंद लोग ऐश नहीं कर रहे होते। भाषा का काम अभिव्यक्ति है। अभिव्यक्ति को आसान बनाने के लिए शब्दों का आदान-प्रदान मेरे या आपके कहने से नहीं होता, सहज ही हो जाता है और भाषा तब भी मौलिक ही बनी रहती है। हमारे पुरखे संस्कृत बोल रहे होते तो हरिद्रा से हल्दी कैसे बनती? मगर हम हिन्दी बोलते हुए जब आज त्रिविमीय अभ्यावेदन जैसे पद पढ़ते हैं तब लगता है कि बिना मेहनत किए संस्कृत से आयात चल रहा है। वह भी टर्म का नहीं, सिर्फ़ शब्दों का। यहाँ दिक्कत है। चोट लगने पर डॉक्टर कहता है कि सॉफ्ट टिशु इंजरी है। कुल मिल कर यह बात यूँ समझ में आती है कि भीतरी नर्म त्वचा जख्मी हुई है। क्या यह बात अनुवाद करते समय इसी तरीके से नहीं समझाई जा सकती है? कठिन पद रचना ज्यादा ज़रूरी है?
ये सब विचारणीय बातें हैं। जितना विचार करेंगे, हल निकलेगा। हर बार सिर्फ हिन्दी नष्ट हो जाएगी, षड्यंत्र जैसी बातें पिष्टपेषण हैं। उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी भी हिन्दी को नष्ट नहीं कर सकी है। कितने पारिभाषिक शब्द हम रोज़ बोलते हैं? इसके बावजूद वे समझ में अगर नहीं आएँ तो उनके आसान मूलभाषी विकल्पों कों ही लोग बोलेंगे। इसमें कोई जबर्दस्ती नहीं होती। यहाँ कठिन से सरल की ओर जाने वाली बातों को इस तरह लिया जाता है मानों हम पारिभाषिक शब्दों के खिलाफ मोर्चा खोल कर बैठे हैं। अरे भाई जो पारिभाषिक शब्द आसान और सर्वग्राह्य है वो तो जनमानस में जम ही चुके हैं। उन्हें कौन हटाना चाहता है। हम हटाने के नहीं लादने के खिलाफ हैं।

कोई मुहिम नहीं, कोई हिडन एजेंडा:) नहीं। सिर्फ अभिव्यक्ति की बात।






2011/10/14 Abhishek Avtans <abhia...@gmail.com>

Abhay Tiwari

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Oct 14, 2011, 9:29:40 AM10/14/11
to shabdc...@googlegroups.com
मुश्किल तब होती है जब बोला जा रहा हो रेनवाटर हारवेस्टिंग मगर लिखा जाय बरसाती जल संग्रहण.. मिसाल के लिये मैंने  रेनवाटर हारवेस्टिंग के बारे मे सुना है मगर बरसाती जल संग्रहण पहली बार देखा। मैं समझ गया.. मेरी बात अलग है.. पर आम आदमी समझेगा शक है। बरसाती जल संग्रहण शायद एक बार समझ भी ले.. अपेक्षाकृत सरल है पर कुछ शब्द ऐसे टेढ़े होते हैं कि अच्छे-अच्छे उनके आगे बेबस हो जाते हैं। 

ऐसे में रोमन मे लिख लेना बेहतर है.. भाषा शब्दों से नहीं व्याकरण से बनती है।

ये मेरा मत है। किसी भी और मसले की तरह इस पर भी  मित्रों से मतभेद होना स्वाभाविक है। :) 

2011/10/14 Abhishek Avtans <abhia...@gmail.com>

भाई भोपाली

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Oct 14, 2011, 9:41:30 AM10/14/11
to shabdc...@googlegroups.com
एकदम वाजिब बात:)

2011/10/14 Abhay Tiwari <abha...@gmail.com>

ePandit | ई-पण्डित

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Oct 15, 2011, 10:54:44 AM10/15/11
to shabdc...@googlegroups.com
मेरी बात अलग है.. पर आम आदमी समझेगा शक है।

मुझे शक है कि आम आदमी रैन वाटर हारवेस्टिंग भी समझेगा। सरकारी स्कूल का एक विद्यार्थी बरसाती जल संग्रहण में संग्रह तक से अन्दाजा लगा लेगा पर हारवैस्टिंग निश्चित रूप से उसे मालूम नहीं होगी।

१४ अक्तूबर २०११ ६:५९ अपराह्न को, Abhay Tiwari <abha...@gmail.com> ने लिखा:



--
Shrish Benjwal Sharma (श्रीश बेंजवाल शर्मा)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
If u can't beat them, join them.

ePandit: http://epandit.shrish.in/

दिनेशराय द्विवेदी

unread,
Oct 15, 2011, 11:07:29 AM10/15/11
to shabdc...@googlegroups.com
वर्षा जलसंचय

2011/10/15 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>

Abhishek Avtans

unread,
Oct 15, 2011, 12:25:28 PM10/15/11
to shabdc...@googlegroups.com
मित्रों यहाँ rain water harvesting का उदाहरण उसी खबर से उद्धत है जिस पर चर्चा हो रही है।
वहाँ और भी शब्द दिए गए है जैसे Deforestation और Higher Education
कहा जा रहा है इन शब्दों को ज्यों का त्यों देवनागरी में लिखा जाए।
चलिए ठीक है लिख दिया जाए।
अब विवाद यहाँ है कि क्या वे हिन्दी के पर्यायवाची शब्दों से ज्यादा सरल और सुपाच्य हैं
मुझे लगता है सरकारी अफसर खुद ही यह निर्णय लेंगे कि कौन से अंग्रेजी शब्द उनके लिए सरल हैं और कौन से नहीं।
इस निर्णय में उनकी टिप्पणी को पढ़ने वालों जैसे सूचना का अधिकार के तहत सूचना मांगने वाले से कोई वास्ता नहीं होगा।
मतलब साहब खुद अपने लिए या अपने जैसों के लिए ही ये टिप्पणियाँ लिखेंगे।
एक और उदाहरण देता हूँ।
बोलचाल की भाषा में आमतौर पर announcement के लिए कई लोगों के मुँह से अलाउंसमेन्ट शब्द सुना है।
या दिल्ली में Park को आमतौर पर  पारक कहते हैं।
Risk के लिए रिक्स
Rickshaw के लिए महाराष्ट्र में रिक्षा चलता है।
बड़ी बैटरी के लिए बैटरा
Cold Storage के लिए कोलस्टोर आदि
अगर बोलचाल के शब्दों को लाना ही है तो क्यों इन्हें ही आने दिया जाए....
रेन वाटर हार्वेस्टिंग से तो भाषा की कृतिमता  और गरिष्ठता बरकरार ही रहेगी।
सादर
2011/10/15 दिनेशराय द्विवेदी <drdwi...@gmail.com>
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दिनेशराय द्विवेदी

unread,
Oct 15, 2011, 12:51:30 PM10/15/11
to shabdc...@googlegroups.com
कर्ण देखा है, आपने!
मुझे एक ग्रामीण ने दिखाया।
वह क्रेन थी।

2011/10/15 Abhishek Avtans <abhia...@gmail.com>
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Abhishek Avtans

unread,
Oct 15, 2011, 1:05:52 PM10/15/11
to shabdc...@googlegroups.com
सही तो कहा है...
कर्ण का नाम सबने सुना होगा।
ये क्रेन -व्रेन कौन जानता है..
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भाई भोपाली

unread,
Oct 15, 2011, 1:07:12 PM10/15/11
to shabdc...@googlegroups.com
Rickshaw के लिए महाराष्ट्र में रिक्षा चलता है।
यह वर्तनी का मामला है।
ध्वनि व उच्चारण एक ही है।
मराठी हिन्दी की शैली नहीं, अलग भाषा है, सो वहाँ हिन्दी-उर्दू-फ़ारसी शब्दों
का बर्ताव एकदम अलग है।
जैसे जमीन्दोज़ के लिए ज़मीनदोस्त,
इस पर यहाँ चर्चा हो चुकी है।

बाकी उदाहरण बोलचाल की भाषा के ही हैं।
इनके लिखित रूप वही हैं जो किताबों-अखबारों में छपते हैं,
अर्थात पारक नहीं पार्क,
कोलस्टोर नहीं कोल्डस्टोरेज
वगैरह वगैरह।
हम फिर बोलीभाषा और
लिखतभाषा में घालमेल कर रहे हैं।
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भाई भोपाली

unread,
Oct 15, 2011, 1:10:58 PM10/15/11
to shabdc...@googlegroups.com
क्रेन और कर्ण में दिलचस्प रिश्तेदारी भी है।
कर्ण में तिर्यक या खम का भाव है और क्रेन यानी पक्षी की गर्दन में जो खम होता है, उसी रचना के आधार पर
एक मशीन को क्रेन नाम दिया गया।

वैसे क्रेन और कर्ण में ध्वनिसाम्य ही है, व्युत्पत्तिमूलक रिश्तेदारी
नहीं। ऐसा कोई साक्ष्य मुझे नहीं मिला।

2011/10/15 भाई भोपाली <wadnerk...@gmail.com>
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Amrendra Nath Tripathi

unread,
Oct 15, 2011, 8:56:27 PM10/15/11
to शब्द चर्चा
अभय जी की बात से सहमत हूँ। जहाँ वाक्य संयोजक तो/और/फिर/...आदि हों वहाँ
कामा अनावश्यक सा है। जहाँ भाव-भंग हो , तदनुसार वाक्य-भंग , वहाँ कामा
काम की चीज है। वैसे मानकीकरण से हट जिंदगी जीती है, आज का अधिकांश लेखन
त्वरित-त्वरित का है इसलिये एतदविषयक मानकीकरण-च्युति आम चीज है। मैं इसी
का समर्थक भी हूँ। सादर..!
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