संत

555 views
Skip to first unread message

हंसराज सुज्ञ

unread,
Jun 15, 2012, 8:38:04 AM6/15/12
to शब्द चर्चा
ज्ञानीजन व्याख्या करें… "संत" शब्द की धातु और व्युत्पत्ति की!!


 सविनय,
हंसराज "सुज्ञ"

Madhusudan H Jhaveri

unread,
Jun 15, 2012, 2:00:24 PM6/15/12
to shabdc...@googlegroups.com
हंसराज जी
इसका निर्णय कुछ कठिन प्रतीत होता है। शायद इसी लिए आपने पूछा है।
(१)
मुझे इसकी धातु सान्त्व्‌ --सान्त्वयति और (उभयपदी) होने के कारण सान्त्वयते भी प्रतीत हो रही है।
इसमें शान्त करना, सान्त्वना देना, चिन्तामुक्त करना, ढाढस बँधाना, खुश करना ---ऐसे और भी इसके अर्थ स्तर हो सकते हैं।


=====================================================================
पर
(२) सन्त:
= का अर्थ(संस्कृत के) कोश में अंजलि (दो हाथ जोडकर)ऐसा दिया गया है।
=================================================================
(३) हिन्दी का रूढ अर्थ अलग ही,==>  (भार्गव) संत=साधु, महात्मा, धर्मात्मा ऐसा दिया हुआ है।

भार्गव भी संस्कृत से ही अपने अर्थ को पुष्ट करते हैं।
===============================================================
कुछ जटिल लग रहा  है।

मधुसूदन



 


From: "हंसराज सुज्ञ" <hansra...@msn.com>
To: "शब्द चर्चा" <shabdc...@googlegroups.com>
Sent: Friday, June 15, 2012 8:38:04 AM
Subject: [शब्द चर्चा] संत

Abhay Tiwari

unread,
Jun 15, 2012, 2:25:18 PM6/15/12
to shabdc...@googlegroups.com
इसका सम्बन्ध सन्‌ धातु से लगता है .. इसी सन्‌ से सनत्  , सनन्दन और सनत्कुमार भी बने हैं.. अर्थ है पूजा करना, प्रेम करना, सम्मान करना आदि.. 

2012/6/15 Madhusudan H Jhaveri <mjha...@umassd.edu>

Baljit Basi

unread,
Jun 15, 2012, 5:08:42 PM6/15/12
to shabdc...@googlegroups.com
शायद 'सद' (बैठना)  से इसका नाता है. 

शुक्रवार, 15 जून 2012 2:25:18 pm UTC-4 को, अभय तिवारी ने लिखा:

हंसराज सुज्ञ

unread,
Jun 16, 2012, 5:58:42 AM6/16/12
to शब्द चर्चा
क्या इसका सम्बंध "स + अंत" = संत से हो सकता है?  अर्थ :-  जो अपनी तृष्णाओं दुखों का अंत करने में संघर्षरत हो?

Date: Fri, 15 Jun 2012 14:08:42 -0700
From: balji...@yahoo.com
To: shabdc...@googlegroups.com
Subject: Re: [शब्द चर्चा] संत

Dr. Sheo Shankar Jaiswal

unread,
Jun 16, 2012, 11:17:56 PM6/16/12
to shabdc...@googlegroups.com
लेकिन स+अंत से संत तो नहीं बनता, सांत बनता है. संत का जो अर्थ निकाला जा रहा है, वह भी जैसे उस पर थोपा जा रहा हो. 

2012/6/16 हंसराज सुज्ञ <hansra...@msn.com>



--
Dr. S S Jaiswal

हंसराज सुज्ञ

unread,
Jun 17, 2012, 1:51:09 AM6/17/12
to शब्द चर्चा
एक शब्दकोश में कुछ इसतरह है- संत ( 'सत्' का प्रथमा बहुवचनांत रूप)
ज्ञानीजन कृपया प्रकाश डालें।

Date: Sun, 17 Jun 2012 08:47:56 +0530

Subject: Re: [शब्द चर्चा] संत

Baljit Basi

unread,
Jun 17, 2012, 10:09:00 AM6/17/12
to shabdc...@googlegroups.com
इस शब्द पर पहले भी संक्षिप्त चर्चा हो चुकी है. तब मैंने इसको सत से ही जुड़ा  लिखा था . लेकिन बाद में किसी जगह मैंने इसका नाता 'सद' धातु से जुड़ा पाया. वह श्रोत अब मुझे मिल नहीं रहा. जैसे 'प्रसन्न' शब्द सद से बना है ऐसे ही कुछ संत के बारे में पढ़ा था. पंजाबी के कुछ कोष इसको शांत से जुड़ा भी बता रहे हैं. लेकिन अधिक श्रोत सत से ही इसकी व्युत्पति मानते हैं. मेरा ख्याल है यही ठीक है.

रविवार, 17 जून 2012 1:51:09 am UTC-4 को, हंसराज सुज्ञ ने लिखा:

Anil Janvijay

unread,
Jun 17, 2012, 4:28:49 PM6/17/12
to shabdc...@googlegroups.com
मधुसूदन जी की बात काफ़ी उचित लगती है कि  संस्कृत के ’सान्त्व’ शब्द से  ’संत’ की  उत्पत्ति हो सकती है। इसका मतलब ढाढ़स बंधाना ही नहीं होता बल्कि संस्कृत में इसका अर्थ है-- अच्छी बात कहना, शुभवचन बोलना, मैत्रीपूर्ण शब्द कहना। इसलिए सान्त्व से ही संत बना होगा।
सन् का अर्थ है-- प्राप्त करना, स्वीकार करना, ग्रहण करना, उपलब्धि, प्राप्ति।  सन् का एक और अर्थ होता है-- बड़ा-बूढ़ा, विशिष्ट। ब्रह्मा के चार पुत्रों में से बड़े बेटे का नाम इसीलिए ’सनक’ था।

लेकिन संस्कृत में ’सानुग’ का अर्थ होता है पवित्र, श्रेष्ठ, उत्तम। और ’सानु’ का  अर्थ ’उत्तुंग’ या ऊँचा। इसलिए मुझे लगता है कि ’सन’ धातु  सानु की है और इस में यदि ’त’ जुड़ता है। ’त’ का मतलब होता है- वह।  तो  ’संत’ का मतलब होता है-- , वह पवित्र,वह श्रेष्ठ, वह उत्तम य़ा वह उत्तुंग।

सन्त का ही संस्कृति में एक और अर्थ भी होता है--विकास,  जोड़ने वाला, स्वीकार करने वाला, स्थाई बनाने वाला। इसी से संतति शब्द बना है। संतति यानी संतान, परिवार, खानदान, यानी विकास, व्यापकता आदि।
संतन् का  अर्थ होता है जोड़ना, ओढ़ाना या पूरा करना।
संतप् का अर्थ होता है -- पीड़ा उठाना, कष्ट सहन करना। इसमें ’सन्’ और ’तप्’  दो धातुओं का मेल है। इसलिए संतप् से भी  ’संत’  शब्द की व्युत्पत्ति  संभव है। उत्तम तप (तपस्या) करने वाला। या तप करके प्राप्त करने वाला।  इसी संतप से संताप, संतापन और संतापहर जैसे शब्द भी बने हैं।




2012/6/17 Baljit Basi <balji...@yahoo.com>



--
anil janvijay
कृपया हमारी ये वेबसाइट देखें


Moscow, Russia
+7 495 422 66 89 ( office)
+7 916 611 48 64 ( mobile)

सृजन शिल्पी Srijan Shilpi

unread,
Jun 18, 2012, 2:48:55 AM6/18/12
to shabdc...@googlegroups.com
ये संत-चर्चा तो अत्यंत ज्ञानवर्द्धक होती जा रही है। लेकिन बात शब्द और उसके अर्थ से आगे बढ़े और हमारे भीतर वह प्रविष्ट हो जाए तो आनन्द हो जाए। फिर यह शब्द-चर्चा न रहकर सत्संग बन जाएगा। संत जन जुट तो चुके हैं, पर शब्दों पर ही अटके हुए हैं।

2012/6/18 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>



--
सृजन शिल्पी
Welcome to http://srijanshilpi.com

Anil Janvijay

unread,
Jun 18, 2012, 4:55:07 AM6/18/12
to shabdc...@googlegroups.com
सुज्ञ जी ने जब यह समस्या उठाई थी तभी एक और बात भी मेरे मन में आई थी कि हो सकता है यह सन् और यत् की संधि से मिलकर बना हो क्योंकि सन् का अर्थ है-- प्राप्त करना, स्वीकार करना, ग्रहण करना, उपलब्धि और यत् का अर्थ होता है ख़ुद को पीड़ा देने वाला, कोशिश करने वाला, ख़ुद को समर्पित करने वाला। यानी ख़ुद को समर्पित करके कुछ पाने वाला ’संत’ हुआ। यत् से ही यति बना है, जिसका मतलब होता है-- तपस्वी या ऋषि।
कोई संस्कृत का विद्वान ही बता सकता है कि संत की व्युत्पत्ति कैसे हुई। मैं तो  भाषा के मामले में नीम-हक़ीम हूँ। और आपने सुना ही होगा --नीम-हकीम ख़तरे जान।

2012/6/18 सृजन शिल्पी Srijan Shilpi <srijan...@gmail.com>

lalit sati

unread,
Jun 18, 2012, 5:10:34 AM6/18/12
to shabdc...@googlegroups.com
भारतीय साहित्य संग्रह वेबसाइट पर इसे बारे में कुछ जानकारी है, जो इस प्रकार है -

"व्युत्पत्ति की दृष्टि से ‘संत शब्द’ संस्कृत के सन् का बहुवचन है। सन् शब्द भी अस्भुवि (अस=होना) धातु से बने हुए ‘सत’ शब्द का पुर्लिंग रूप है जो ‘शतृ’ प्रत्यय लगाकर प्रस्तुत किया जाता है और जिसका अर्थ केवल ‘होनेवाला’ या ‘रहने वाला’ हो सकता है। इस प्रकार ‘संत’ शब्द का मौलिक अर्थ ‘शुद्ध अस्तित्व’ मात्र का बोधक है। डॉ. पीतांबरदत्त बड़थवाल के अनुसार ‘संत’ शब्द की संभवतः दो प्रकार की व्युत्पत्ति हो सकती है। या तो इसे पालिभाषा के उस ‘शांति’ शब्द से निकला हुआ मान सकते हैं जिसका अर्थ निवृत्ति मार्गी या विरागी होता है अथवा यह उस ‘सत’ शब्द का बहुवचन हो सकता है जिसका प्रयोग हिंदी में एकवचन जैसा होता है और इसका अभिप्राय एकमात्र सत्य में विश्वास करने वाला अथवा उसका पूर्णतः अनुभव करने वाला व्यक्ति समझा जाता है इसके अतिरिक्त ‘संत’ शब्द की व्युत्पत्ति शांत, शांति, सत् आदि से भी बताई गई है। कुछ विद्वानों ने इसे अंग्रेजी के शब्द सेंट (Saint) समानार्थक उसका हिंदी रूपांतर सिद्ध करने का प्रयास किया है। "
साधना पथ -  स्वामी अवधेशानन्द गिरि
(http://pustak.org/home.php?bookid=4389)


2012/6/18 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>

हंसराज सुज्ञ

unread,
Jun 18, 2012, 5:38:31 AM6/18/12
to शब्द चर्चा
सृजन शिल्पी जी, संत जन जुट तो चुके हैं किन्तु इन्हें सत्संग योग्य तराशना सृजन शिल्पी का काम है :)
और संतजन बनने से पूर्व उन्हें ज्ञात तो हो कि जिस संत संज्ञा को वे धारण करने जा रहे है उसका अर्थ क्या है?
इस जिज्ञासा के उद्भव का एक कारण यह भी है कि मैने, हमारे इस शब्द-चर्चा मंच पर ज्ञानीजनों द्वारा 'शब्द-शास्त्रियों' के लिए 'संतजन' उपमा का प्रयोग करते देखा है। :)

Date: Mon, 18 Jun 2012 12:18:55 +0530

Subject: Re: [शब्द चर्चा] संत

सृजन शिल्पी Srijan Shilpi

unread,
Jun 18, 2012, 6:46:02 AM6/18/12
to shabdc...@googlegroups.com
इसमें कतई संदेह नहीं कि इस शब्द चर्चा-मंच से लोग जुड़े हैं, वे वाकई संत ही हैं, जन्म-जन्मांतर से संत, पर शब्दों की कर्म-कुंडली बांचते समय हमें उस सत्य का साक्षात्कार जरूर होना चाहिए जिनका संकेत करने के लिए उन शब्दों को गढ़ा और मढ़ा जाता रहा था उनके द्वारा।

2012/6/18 हंसराज सुज्ञ <hansra...@msn.com>

Anil Janvijay

unread,
Jun 18, 2012, 7:41:44 AM6/18/12
to shabdc...@googlegroups.com
सृजनशिल्पी जी,
आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी। हिन्दी में बहुत प्रसिद्ध है :-
जहाँ-जहाँ भीड़ लगी संतन की, तहाँ-तहाँ बंटाढार।

On 6/18/12, सृजन शिल्पी Srijan Shilpi <srijan...@gmail.com> wrote:
> इसमें कतई संदेह नहीं कि इस शब्द चर्चा-मंच से लोग जुड़े हैं, वे वाकई संत ही
> हैं, जन्म-जन्मांतर से संत, पर शब्दों की कर्म-कुंडली बांचते समय हमें उस सत्य
> का साक्षात्कार जरूर होना चाहिए जिनका संकेत करने के लिए उन शब्दों को गढ़ा और
> मढ़ा जाता रहा था उनके द्वारा।
>
> 2012/6/18 हंसराज सुज्ञ <hansra...@msn.com>
>
>> सृजन शिल्पी जी, संत जन जुट तो चुके हैं किन्तु इन्हें सत्संग योग्य तराशना
>> सृजन शिल्पी का काम है :)
>> और संतजन बनने से पूर्व उन्हें ज्ञात तो हो कि जिस संत संज्ञा को वे धारण
>> करने जा रहे है उसका अर्थ क्या है?
>> इस जिज्ञासा के उद्भव का एक कारण यह भी है कि मैने, हमारे इस शब्द-चर्चा मंच
>> पर ज्ञानीजनों द्वारा 'शब्द-शास्त्रियों' के लिए 'संतजन' उपमा का प्रयोग करते
>> देखा है। :)
>>
>>
>>

>> सविनय,*
>> हंसराज "सुज्ञ" <http://shrut-sugya.blogspot.in/>*
>> <http://shrut-sugya.blogspot.in/>
>>
>> ------------------------------

>> सविनय,*
>> हंसराज "सुज्ञ" <http://shrut-sugya.blogspot.in/>*
>> <http://shrut-sugya.blogspot.in/>
>>
>> ------------------------------


>> Date: Sun, 17 Jun 2012 08:47:56 +0530
>> Subject: Re: [शब्द चर्चा] संत
>> From: jais...@gmail.com
>> To: shabdc...@googlegroups.com
>>
>> लेकिन स+अंत से संत तो नहीं बनता, सांत बनता है. संत का जो अर्थ निकाला जा
>> रहा है, वह भी जैसे उस पर थोपा जा रहा हो.
>>
>> 2012/6/16 हंसराज सुज्ञ <hansra...@msn.com>
>>
>> क्या इसका सम्बंध "स + अंत" = संत से हो सकता है? अर्थ :- जो अपनी
>> तृष्णाओं दुखों का अंत करने में संघर्षरत हो?
>>
>>

>> सविनय,*
>> हंसराज "सुज्ञ" <http://shrut-sugya.blogspot.in/>*
>> <http://shrut-sugya.blogspot.in/>
>>
>> ------------------------------


>> Date: Fri, 15 Jun 2012 14:08:42 -0700
>> From: balji...@yahoo.com
>> To: shabdc...@googlegroups.com
>> Subject: Re: [शब्द चर्चा] संत
>>
>>
>> शायद 'सद' (बैठना) से इसका नाता है.
>>
>> शुक्रवार, 15 जून 2012 2:25:18 pm UTC-4 को, अभय तिवारी ने लिखा:
>>
>> इसका सम्बन्ध सन्‌ धातु से लगता है .. इसी सन्‌ से सनत् , सनन्दन और
>> सनत्कुमार भी बने हैं.. अर्थ है पूजा करना, प्रेम करना, सम्मान करना आदि..
>>
>> 2012/6/15 Madhusudan H Jhaveri <mjha...@umassd.edu>
>>
>> हंसराज जी
>> इसका निर्णय कुछ कठिन प्रतीत होता है। शायद इसी लिए आपने पूछा है।
>> (१)
>> मुझे इसकी धातु सान्त्व्‌ --सान्त्वयति और (उभयपदी) होने के कारण सान्त्वयते
>> भी प्रतीत हो रही है।
>> इसमें शान्त करना, सान्त्वना देना, चिन्तामुक्त करना, ढाढस बँधाना, खुश करना
>> ---ऐसे और भी इसके अर्थ स्तर हो सकते हैं।
>>
>>

>> ==============================****==============================****


>> =========
>> पर
>> (२) सन्त:= का अर्थ(संस्कृत के) कोश में अंजलि (दो हाथ जोडकर)ऐसा दिया गया
>> है।

>> ==============================****==============================****=====


>> (३) हिन्दी का रूढ अर्थ अलग ही,==> (भार्गव) संत=साधु, महात्मा, धर्मात्मा
>> ऐसा दिया हुआ है।
>>
>> भार्गव भी संस्कृत से ही अपने अर्थ को पुष्ट करते हैं।

>> ==============================****==============================****===


>> कुछ जटिल लग रहा है।
>>
>> मधुसूदन
>>
>>
>>
>>
>>

>> ------------------------------
>> *From: *"हंसराज सुज्ञ" <hansra...@msn.com>
>> *To: *"शब्द चर्चा" <shabdc...@googlegroups.com****>
>> *Sent: *Friday, June 15, 2012 8:38:04 AM
>> *Subject: *[शब्द चर्चा] संत


>>
>>
>> ज्ञानीजन व्याख्या करें… "संत" शब्द की धातु और व्युत्पत्ति की!!
>>
>>

>> सविनय,*
>> हंसराज "सुज्ञ" <http://shrut-sugya.blogspot.in/>*
>> <http://shrut-sugya.blogspot.in/>

हंसराज सुज्ञ

unread,
Jun 18, 2012, 7:52:51 AM6/18/12
to शब्द चर्चा
अनिल जी,

इस कहावत को ऐसे सुना था……
जहाँ-जहाँ भीड़ पडी संतन की, तहाँ-तहाँ बंटाधार।
'भीड़ पडी' से आशय 'कमी हुई' से था :)



 सविनय,
> Date: Mon, 18 Jun 2012 15:41:44 +0400

> Subject: Re: [शब्द चर्चा] संत

संजय | sanjay

unread,
Jun 18, 2012, 7:57:03 AM6/18/12
to shabdc...@googlegroups.com
मैने तो उल्टा सुना है, जहाँ जहाँ पैर पड़े संतन के.... :)  
--
संजय बेंगाणी | sanjay bengani
छवि मीडिया एण्ड कॉम्यूनिकेशन
ए-507, स्मिता टावर, गुरूकुल रोड़,
मेमनगर , अहमदाबाद, गुजरात. 



हंसराज सुज्ञ

unread,
Jun 18, 2012, 8:01:15 AM6/18/12
to शब्द चर्चा
संत शब्द भिन्न भिन्न धातु व्युत्पत्ति और अर्थ प्रकाश में आए है।
विद्वजनों की कृपा से किसी एक धातु, उत्पत्ति और अर्थ पर मत स्थिर हो जाय तो उपलब्धि होगी।

Date: Mon, 18 Jun 2012 14:40:34 +0530

Subject: Re: [शब्द चर्चा] संत

Madhusudan H Jhaveri

unread,
Jun 18, 2012, 10:30:34 AM6/18/12
to shabdc...@googlegroups.com

Forgive, using Roman script.(On travel)

I Remember Nirukt & quote by memory.

(1)THERE CAN BE MORE THAN ONE VYUTPATTIs.

EVEN 3.

 

(2) Vyutpattis do not ==>always follow PERFECT VAKARAN<== (again by my memory)

 

(3)Yet  I am open for suggestions.

 

Nirukt says--MEANING IS THE MOST IMPORTANT ELEMENT---IN CONNECTING.

Vyakaran --is "Gaun"---less important.

 

madhu sudan jhaveri

Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages