वर्ण विपर्यय पर हमने चर्चा की तो मुझे यह सूत्र सूझा। यह मामला विपर्यय
का है या यह दोनों शब्द अलग-अलग हैं।
अब ध्यान देने योग्य बात ये है कि पंडे, पण्डित एक अर्थ में संग्रह करने वाले
भी हैं.. वे कथाओं का संग्रह करते हैं, सूत्रों का संग्रह करते हैं, और
वंशावलियों का संग्रह करते हैं। और यदि आप गौर से देखें तो सारे पुराण इन्ही
तीन तरह के संग्रहों का संकलन हैं। आज भी तीर्थों में मिलने वाले पंडे जिस बात
के लिए प्रसिद्ध हैं वो है उनकी वंशावली रखने की विशेषता।
अंत में एक असम्बद्धित बात कहने से अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ कि पुराणों की
ऐतिहासिकता पर प्रश्न चिह्न लगाने वाले वे सारे वैज्ञानिक इतिहासकार सभी
पुराणों के भीतर मौजूद इन वंशावलियों के पहलू को पूरी तरह अनदेखा कर के महज़
पुरातत्त्वीय साक्ष्य की माला जपते रहते हैं।