पाण्डे-पाण्डेय

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Rangnath

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Sep 17, 2010, 2:38:18 PM9/17/10
to शब्द चर्चा
वर्ण विपर्यय पर हमने चर्चा की तो मुझे यह सूत्र सूझा। यह मामला विपर्यय
का है या यह दोनों शब्द अलग-अलग हैं।

अजित वडनेरकर

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Sep 17, 2010, 3:35:43 PM9/17/10
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मेरे विचार में पांडे और पाण्डेय एक ही है। आपटे कोश के अनुसार पांडु से भी पाण्ड्य या पण्ड्या की व्युत्पत्ति मानी जाती है अर्था पाण्ड्य देश जिसे पांडु देश भी कहते हैं।
पाण्ड्य क्षेत्र के निवासियों को पाण्डेय कहा जा सकता है। पाण्ड्य संबंधी पाण्डेय ठीक वैसे ही जैसे गंगा संबंधी गांगेय या कुंती संबंधी कौंतेय। विद्वज्जन और प्रकाश डाल सकते हैं, अपना हाथ संस्कृत में तंग है।

हालांकि ब्राह्मणों के कुलनाम पाण्डे, पांडे की व्युत्पत्ति कुछ भिन्न है। ऐसा लगता है कि पण्डित से पाण्डे और फिर मुखसुख के लिए इसमें य प्रत्यय लगा होगा। या फिर पाण्ड्य क्षेत्र वाले पाण्डेय से ध्वनिसाम्य इस ब्राह्मण कुलनाम के साथ मुखसुख के लिए आ जुड़ा। कुछ स्पष्ट नहीं है। फिलहाल संबंधित पोस्ट देखें-
संस्कीरत भाखते पोंगा पंडित

2010/9/18 Rangnath <rangna...@gmail.com>

वर्ण विपर्यय पर हमने चर्चा की तो मुझे यह सूत्र सूझा। यह मामला विपर्यय
का है या यह दोनों शब्द अलग-अलग हैं।



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शुभकामनाओं सहित
अजित
http://shabdavali.blogspot.com/

Abhay Tiwari

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Sep 17, 2010, 9:05:49 PM9/17/10
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सही कहा अजित भाई आप ने, आप्टे कोष पाण्ड्या की उत्पत्ति पांडु देश से करता है,
लेकिन सवाल यह है कि किसी भी ग्रंथ में मुझे तो आजकल पांडु देश का नाम पढ़ने को
नहीं मिला। ख़ुद आप्टे जी अपने कोष में पांडु के नीचे इस नाम के किसी देश होने
का उल्लेख नहीं करते.. मेरी समझ में पण्डित, पाण्डे, पण्डा आदि की उत्पत्ति
पण्ड धातु से ही है, जो आप ने भी बताई है, मैं उस में सिर्फ़ इतना और जोड़ना
चाहता हूँ कि पण्ड का एक अर्थ संग्रह करना भी है..

अब ध्यान देने योग्य बात ये है कि पंडे, पण्डित एक अर्थ में संग्रह करने वाले
भी हैं.. वे कथाओं का संग्रह करते हैं, सूत्रों का संग्रह करते हैं, और
वंशावलियों का संग्रह करते हैं। और यदि आप गौर से देखें तो सारे पुराण इन्ही
तीन तरह के संग्रहों का संकलन हैं। आज भी तीर्थों में मिलने वाले पंडे जिस बात
के लिए प्रसिद्ध हैं वो है उनकी वंशावली रखने की विशेषता।

अंत में एक असम्बद्धित बात कहने से अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ कि पुराणों की
ऐतिहासिकता पर प्रश्न चिह्न लगाने वाले वे सारे वैज्ञानिक इतिहासकार सभी
पुराणों के भीतर मौजूद इन वंशावलियों के पहलू को पूरी तरह अनदेखा कर के महज़
पुरातत्त्वीय साक्ष्य की माला जपते रहते हैं।

Satya Mishra

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Sep 18, 2010, 2:39:29 AM9/18/10
to shabdc...@googlegroups.com
भूमिहार जाति अपने नाम के सरनेम में पाण्डे के साथ ’य’ लगाती है.जबकि ब्राह्ममन सिर्फ़ पाण्डे ऐसा क्यों?

2010/9/18 Rangnath <rangna...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

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Sep 18, 2010, 3:08:15 AM9/18/10
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पांडु देश तो मेरे पढ़ने में भी नहीं आया अभय भाई। हां, इतिहास में दक्षिण के चोल, चेरि, पाण्ड्य राज्यों का उल्लेख ज़रूर है जिन्हें चेरनाडु, चोळनाडु और पाण्डियनाडु  कहा जाता था। प्राचीनकाल में चेरनाडु, चोळनाडु और पाण्डियनाडु को मिलाकर ही तमिलनाडु प्रदेश कहलाता था।
केरल, नारियल और खोपड़ी


2010/9/18 Satya Mishra <spm...@gmail.com>

दिनेशराय द्विवेदी

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Sep 18, 2010, 4:23:01 AM9/18/10
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फर्जी वंशावलियाँ भी बहुत बनती रही हैं, आदिम जाति के वीरों को आर्यों के वंशज प्रमाणित करने के लिए। एक उदाहरण तो शिवाजी का ही मौजूद है।

2010/9/18 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>



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दिनेशराय द्विवेदी, कोटा, राजस्थान, भारत
Dineshrai Dwivedi, Kota, Rajasthan,
क्लिक करें, ब्लाग पढ़ें ...  अनवरत    तीसरा खंबा

अजित वडनेरकर

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Sep 18, 2010, 7:51:14 AM9/18/10
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शिवाजी का क्या मामला है दिनेशजी?

2010/9/18 दिनेशराय द्विवेदी <drdwi...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

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Sep 18, 2010, 7:52:58 AM9/18/10
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मेरी जानकारी में वे कुनबी क्षत्रिय थे।
खुद को विधिवत राजवंशी घोषित करने के लिए जब उन्होंने सिंहासनारोहण कराया था तब अपने वंश सूत्रों की पड़ताल कराई और पाया कि उनका संबंध राजस्थान के सिसौदिया वंश से है।

शिवाजी सावंत की छावा में ऐसा उल्लेख है।
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