साबुन को आपकी भाषा में क्या कहते हैं ?

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Anil Janvijay

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Dec 26, 2011, 2:44:35 AM12/26/11
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प्रिय साथियो !
एक शब्द जो प्राय: मुझे परेशान करता है, वह है साबुन । ’साबुन’- तुर्की भाषा का शब्द है, जो अरबी-फ़ारसी के रास्ते हिन्दी-उर्दू में आया। दुनिया की कम से कम बीस भाषाएँ ऐसी हैं. जिनमें साबुन को साबुन ही कहा जाता है। जैसे उज़्बेकी, बश्कीरी, तातारी, दगिस्ताम की सभी सोलह भाषाएँ, अज़रबैजानी, फ़ारसी, उर्दू, तुर्कमेनी, कज़ाखी आदि। साबुन के लिए इन भाषाओं में कोई दूसरा शब्द नहीं है। हिन्दी में और कौन-कौन से शब्द हैं इसके लिए? कृपया गुजराती, मराठी, पंजाबी आदि में साबुन को क्या कहा जाता है, यह भी बताएँ। सादर।

--
anil janvijay
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अजित वडनेरकर

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Dec 26, 2011, 2:46:56 AM12/26/11
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साबुन पर तीन साल पहले एक पोस्ट लिखी थी। कृपया देखें-

Wednesday, March 4, 2009

साबुन ज़रूरी नहीं…निंदक नियरे राखिये

4057860059821550 दुनियाभर में साबुन जैसे पदार्थों का इस्तेमाल तो हजारों वर्षों से हो रहा है। रीठा या शिकाकाई भारत में प्राचीनकाल से ही साबुन का पर्याय रहे हैं।
को ई बिरला हिन्दीभाषी होगा जिसने संत कबीर का यह दोहा न सुना हो-निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय। बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सुभाय।। मनुष्य को परिष्कार और आत्मोन्नति के प्रयास निरंतर करते रहना चाहिए। निंदा करनेवाले के जरिये ही हमें अपने परिष्कार का अवसर मिलता है। इस दोहे में साबुन शब्द पर गौर करें। साबुन शरीर की सफाई करता है। मैल साफ करता है। कबीरवाणी का महत्व ही इसलिए है क्योंकि उन्होंने गहन दार्शनिक अर्थवत्ता वाली बातें  लोगों को आमफ़हम शब्दावली में समझाई हैं। आज से पांचसौ वर्ष पहले अगर कबीर साबुन शब्द का प्रयोग आध्यात्मिक व्यंजना के लिए करते हैं तो स्पष्ट है कि उस दौर का समाज भी शरीर का मैल साफ करने के लिए साबुन का इस्तेमाल आमतौर पर कर रहा होगा। यहां हम साबुन नाम के पदार्थ की व्युत्पत्ति की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि मैल साफ करने के साधन के बतौर साबुन शब्द की बात कर रहे हैं। व्यापक तौर पर दुनियाभर में साबुन जैसे पदार्थों का इस्तेमाल तो हजारों वर्षों से हो रहा है। रीठा या शिकाकाई भारत में प्राचीनकाल से ही साबुन का पर्याय रहे हैं।


2011/12/26 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>



--


अजित

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औरंगाबाद- 07507777230

  


Anil Janvijay

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Dec 26, 2011, 2:56:38 AM12/26/11
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अजित भाई, निश्चय ही आपका विश्लेषण गहरा है और अच्छा है। लेकिन संस्कृत या अन्य भारतीय भाषाओं में क्या सचमुच कोई दूसरा शब्द नहीं है? बड़े आश्चर्य की बात है।

2011/12/26 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>

Baljit Basi

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Dec 26, 2011, 2:59:16 AM12/26/11
to शब्द चर्चा
पंजाबी में 'साबण कहते हैं. गुरबानी में 'साबूण आया है:
मूत पलीती कपड़ होइ
दे साबूणु लइए ओह धोइ
यह अंग्रेज़ी soap का सुजाति है. अजित वडनेरकर ने इसपर एक पोस्ट लिखी है.

अजित वडनेरकर

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Dec 26, 2011, 3:00:00 AM12/26/11
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हाँ, इस पर काफ़ी विचार किया था। निश्चित नहीं कहा जा सकता।
इस पर और काम की आवश्यकता है। सम्भव है कोई शब्द हाथ लग जाए, पर वह आनुष्ठानिक काम ही होगा क्योंकि
सचमुच प्रचलन में तो बीती कई सदियों से साबुन का कोई जोड़ मुझे लोकभाषाओँ तक में नहीं मिला। मिलता तो
कबीर साबुन का उल्लेख क्यों करते। सहज भाषा के सबसे बड़े यायावर तो कबीर खुद थे।


2011/12/26 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>

narayan prasad

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Dec 26, 2011, 4:16:30 AM12/26/11
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फ्रेंच में साबुन को सावौं (savon) कहते हैं, जो साबुन से मिलता-जुलता है ।
--- नारायण प्रसाद

2011/12/26 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

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Dec 26, 2011, 4:27:10 AM12/26/11
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शुक्रिया नारायणजी,

savon का उल्लेख मेरी पोस्ट में है, पर  मुझे शुद्ध उच्चारण
नहीं पता था।
साभार
अजित

2011/12/26 narayan prasad <hin...@gmail.com>

Abhay Tiwari

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Dec 26, 2011, 5:58:22 AM12/26/11
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कामसूत्र के चौथे अध्याय यानी नागरकवृत्तप्रकरणम्‌ का छठा श्लोक है: 

नित्यं स्नानं। द्वितीयकमुत्सादनम। तृतीयक: फेनक:। चतुर्थकमायुष्यम्‌। पञ्चकं दशमकं वा प्रत्यायुष्यमित्यहीनम्‌। सातत्याच्च संवृतकक्षास्वेदापनोदः।।

देवदत्त शास्त्री जी की विलक्षण टीका में इसका अर्थ दिया है- प्रतिदिन स्नान करें, दूसरे दिन मालिश कराएं, तीसरे दिन साबुन लगाएं। चौथे दिन दाढ़ी व मूँछ के बाल कटाएं। तथा पाँचवें दिन अथवा दसवें दिन गोपनीय अंगों के बाल कटाएं। ढकी हुई काँखों के पसीने को सदैव सुगन्धित पाउडर से सुखाते रहें। 

स्पष्ट है उस काल में साबुन जैसी चीज़ मौजूद थी और उसे फेनक कहा जाता था। 

2011/12/26 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
शुक्रिया नारायणजी,

Anil Janvijay

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Dec 26, 2011, 6:23:03 AM12/26/11
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अभय जी!
बहुत ख़ूब! संस्कृत में अन्ततः शब्द मिल ही गया।
'फेनक'  सचमुच अच्छा है। कुछ साल पहले एक गुजराती कम्पनी समूह ने भी 'फेना' के नाम से कपड़े धोने का साबुन निकाला था। कहीं उसके आधार में यह
फेनक ही तो नहीं था?
यानी फेन (झाग) शब्द भी संस्कृत का ही है। मैं तो अब साबुन को फेनक ही कह करूँगा।
2011/12/26 Abhay Tiwari <abha...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

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Dec 26, 2011, 6:50:07 AM12/26/11
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बढ़िया है।
रीठा या शिकाकाई भारत में प्राचीनकाल से ही साबुन का पर्याय रहे हैं।
यह फेनक निश्चित ही इससे बना उत्पाद रहा होगा। अनिल जी ने फेना को भी बखूबी पहचाना है।

सोचने की बात यह है कि क्योंकर यह फेना लोकबोलियों की ऊपरी परत पर भी नहीं मिलता।
दरअसल उबटन, फेनक जैसी चीज़ें हमारे यहाँ आभिजात्य संस्कारों में आती रही हैं।
सामान्य व्यक्ति तो कछार की मिट्टी से ही खुद को चमका लेता था। सम्भवतः
इसलिए  साबुन जैसे झागकारी पदार्थ
की उपस्थिति लोकभाषा में नहीं मिलती।



2011/12/26 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

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Dec 26, 2011, 6:51:17 AM12/26/11
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क्योंकर यह फेना लोकबोलियों की

कृपया फेनक पढ़ें

अजित वडनेरकर

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Dec 26, 2011, 6:54:32 AM12/26/11
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आखिर तीसरे दिन साबुन लगाने की व्यवस्था
फेनक-अनुष्ठान ही कहलाएगी:)

Baljit Basi

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Dec 26, 2011, 7:01:10 AM12/26/11
to शब्द चर्चा
मोनिअर -विलिअम्ज़ में 'स्तोमक्षार' का अर्थ साबुन दिया है.


Baljit Basi

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Dec 26, 2011, 7:05:29 AM12/26/11
to शब्द चर्चा
शब्दसागर में फेनक की प्रविष्टि है:
फेनक संज्ञा पुं० [सं०] १. फेन । झाग । २. टिकिया के आकार का एक पकवान
या मिठाई । बतासफेनी । ३. शरीर धोने या मलने की एक क्रिया (संभवतः रीठी
आदि के फेन से धोना जिस प्रकार आजकल साबुन मलते हैं) । ३. साबुन ।

Abhay Tiwari

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Dec 26, 2011, 7:07:30 AM12/26/11
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सूतफेनी तो ख़ूब प्रचलित है..

2011/12/26 Baljit Basi <balji...@yahoo.com>

Anil Janvijay

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Dec 26, 2011, 7:08:19 AM12/26/11
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विकिपीडिया में भी फेनक है :

भारतीय साहित्य में सोलह श्रृंगारी (षोडश श्रृंगार) की यह प्राचीन परंपरा रही हैं :

अंगशुची, मंजन, वसन, माँग, महावर, केश।
तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।।

मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध।

अर्थात् अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, माँग भरना, महावर लगाना, बाल सँवारना, तिलक लगाना, ठोढी़ पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दाँतों में मिस्सी, आँखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना।

इस देश में आदि काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों प्रसाधन करते आए हैं और इस कला का यहाँ इतना व्यापक प्रचार था कि प्रसाधक और प्रसाधिकाओं का एक अलग वर्ग ही बन गया था। इनमें से प्राय: सभी श्रृंगारों के दृश्य हमें रेलिंग या द्वारस्तंभों पर अंकित (उभारे हुए) मिलते हैं।

स्नान के पहले उबटन का बहुत प्रचार था। इसका दूसरा नाम अंगराग है। अनेक प्रकार के चंदन, कालीयक, अगरु और सुगंध मिलाकर इसे बनाते थे। जाड़े और गर्मी में प्रयोग के हेतु यह अलग अलग प्रकार का बनाया जाता था। सुगंध और शीतलता के लिए स्त्री पुरुष दोनों ही इसका प्रयोग करते थे।

स्नान के अनेक प्रकार काव्यों में वर्णित मिलते हैं पर इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय जलविहार या जलक्रीड़ा था। अधिकांशत: स्नान के जल को पुष्पों से सुरभित कर लिया जाता था जैसे आजकल "बाथसाल्ट" का प्रयत्न किया जाता है। एक प्रकार के साबुन का भी प्रयोग होता था जो "फेनक" कहलाता था और जिसमें से झाग भी निकलते थे।

 
कृपया इस लिंक को भी देखें
 
 
 
 
 

 
2011/12/26 Baljit Basi <balji...@yahoo.com>

Ravikant

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Dec 26, 2011, 7:09:38 AM12/26/11
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क्या बात है, अभय। फेना ही लेना! ये अनुष्ठान वाली बात भी ठीक है, फेनक या उबटन लोग ख़ास मौक़ों पर ही लगाते थे।(ये दीगर बात है कि हर दैनिक कृत्य हिन्दुओं में किसी न किसी संस्कार या अनुष्ठान का रूप ले लेता है, या कम-से-कम उसी श्रेणी में रखा जाता है, जैसा कि वात्स्यायन के वर्णन से भी स्पष्ट है)। बंगाली थोड़े ज़्यादा लगाते थे, राजगीर के गर्म कुंड में स्नान करने से पहले। मुझे याद है, मेरे बाबा साबुन कभी-कभी ही लगाते थे, टाल की मिट्टी ज़रूर नियमित तौर पर लगाते थे।हमारे अपने दौर में ग्रामीण अंचलों में उपभोक्तावाद की बढ़ती हुई ताक़त को रेखांकित करने वाली कहानी 'पिंटी का साबुन' इसीलिए शास्त्रीय दर्जा पा सकी है।

रविकान्त

Baljit Basi

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Dec 26, 2011, 7:16:32 AM12/26/11
to शब्द चर्चा
>विकिपीडिया में भी फेनक है>


कहाँ है 'फेनक' , दिखाई नहीं दिया?

Baljit Basi

unread,
Dec 26, 2011, 7:21:56 AM12/26/11
to शब्द चर्चा
'सोलह शृंगार' की प्रविष्टि में फेनक मिल गया.

narayan prasad

unread,
Dec 31, 2011, 8:30:55 AM12/31/11
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साबुन पर एक रुचिकर असली घटना के बारे में पढ़िए - "अरे भाई, साबुन चाहिए, साबुन, साबुन !"

--- नारायण प्रसाद

2011/12/26 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>
शुक्रिया नारायणजी,

Avinash Vachaspati

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Dec 31, 2011, 8:32:06 AM12/31/11
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जिसे घिसने में कम से कम एक सप्‍ताह तो लगे।

2011/12/31 narayan prasad <hin...@gmail.com>



--
सादर/सस्‍नेह
अविनाश वाचस्‍पति/Avinash Vachaspati
मोबाइल 09718750843/09717849729
नीचे घूमते फिरते रहा कीजिए मित्रो


अजित वडनेरकर

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Dec 31, 2011, 8:36:02 AM12/31/11
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वाकई दिलचस्प।
मगही, मैथिल की लकारबहुलता सुहानी है।

2011/12/31 Avinash Vachaspati <nuk...@gmail.com>

narayan prasad

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Dec 31, 2011, 10:05:49 PM12/31/11
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<<मगही, मैथिली की लकारबहुलता सुहानी है।>>

शायद आप भूतकालिक "ल" प्रत्यय की बात कर रहे हैं । यह मराठी, बंगाली, असमिया, उड़िया,  सभी स्लावोनिक भाषाओं, और यहाँ तक कि चीनी भाषा में भी है ।
उदाहरणार्थ, चीनी में -

थ्येनानमन त्साय नार ?
(थ्येनानमन नजदीक है ?)

वांग पइ त्सोउ, च्यु ताओ ल ।
(तरफ उत्तर जाना, तब वहाँ समाप्त)
अर्थात् उत्तर तरफ जाइए, तब आप वहाँ पहुँच जाएँगे ।

नोटः चीनी की एक खासियत है कि किसी भी शब्द के रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता  अर्थात् सभी शब्द अविकारी होते हैं । क्रिया भी हमेशा मूल रूप में रहता है ।

---नारायण प्रसाद


2011/12/31 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>

अजित वडनेरकर

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Jan 1, 2012, 3:42:25 AM1/1/12
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दिलचस्प है।
भतकालिक वाक्यों में मराठी में बुंदेली के हते की तरह होते का प्रयोग भी होता है इसलिए इतना ज्यादा आभास नहीं होता।
आले, गेले यानी आए गए के साथ ही होते भी जुड़े जाता है। यानी आले होते, गेले होते...तब इस लकार पर ध्यान नहीं जाता ।

2012/1/1 narayan prasad <hin...@gmail.com>

narayan prasad

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Jan 1, 2012, 4:25:56 AM1/1/12
to shabdc...@googlegroups.com
<<आले, गेले यानी आए गए के साथ ही होते भी जुड़े जाता है। यानी आले होते, गेले होते...तब इस लकार पर ध्यान नहीं जाता ।>>

जी हाँ, यह बात तो है । था/थे के लिए होता/होते के प्रयोग से उतना आभास नहीं होता । लेकिन मगही आदि में "ह" या "हो" धातु से भी भूतकालिक "-ल" का प्रयोग आवश्यक है ।

विस्तृत जानकारी के लिए देखें -

हिन्दी के "था/थी" के लिए मगही के क्रिया-रूप

हिन्दी के "थे/थीं" के लिए मगही के क्रिया-रूप


---नारायण प्रसाद

2012/1/1 अजित वडनेरकर <wadnerk...@gmail.com>

Abhishek Avtans

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Jan 3, 2012, 1:44:10 AM1/3/12
to shabdc...@googlegroups.com
जापानी में साबुन को शाबोन  ( シャボン ) कहते हैं.
यह शब्द वहां अधिक प्रचलित है जबकि साबुन के लिए मूल जापानी शब्द सेक्केन  (石鹸) है.
मंगोलियाई में इसे सावन कहते हैं.
इतालवी में इसे सपोने कहते हैं.


2012/1/1 narayan prasad <hin...@gmail.com>



--

Abhishek Avtans अभिषेक अवतंस




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