...वैसे तो गलौज ही चलता है . लेकिन बहुत से लोग गलौच भी लिखते- बोलते
हैं . ध्वनि के इस बदलाव का मुख्य कारण क्या है ? क्या यह कोई क्षेत्रीय
प्रभाव है , या कुछ और ?
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बलजीत बासी
पंजाबी में गाली-गलौच ही चलता है , बल्कि 'गाली-गलोच' , गाली गलौज नहीं .
लगता है इसका व्यापक प्रचलन है., इसको गलत नहीं कहना चाहिए
बलजीत बासी
गलौज ध्वनि अनुकरण से बना है। गलौज, गलौच, गलोच में
क्या सही है, क्या ग़लत इसके
फेर में नहीं पड़ना चाहिए। वैसे हिन्दी कोशों में गलौज को ही सही बताया
गया है। चूँकि ध्वनि अनुकरण का मामला है इसलिए अलग अलग क्षेत्रों में च और ज का फ़र्क़ हो सकता है। पंजाबी से हिन्दी में इसके आने की बात भी सही नहीं है। बलजीत भाई ने सिर्फ़ पंजाबी में च के उच्चार की बात कही है।
गाली-गुफ्तार पर विचार करें। गुफ्तार मुख-सुख से नहीं आया है मगर गाली-गुफ्तार पद का प्रयोग हिन्दी में गाली-गुफ्ता की तरह होता है। अनजाने में गालीगुप्ता भी देखा जाता है। गलचउर स्वतंत्र सामासिक शब्द है जबकि गलौज / गलौच अनुकरणात्मक। मेरे विचार में गलचउर का ही एक रूप गलचौरा भी होता है। इसे गली-चौराहों पर होने वाले मुफ़्त के ज्ञानचिन्तन और वाग्विलास से भी जोड़ते हुए देखा जाना चाहिए।
कल-कल की शब्दावली
भाषा का विकास प्राकृतिक ध्वनियों का अनुकरण करने से हुआ है। पानी के बहाव का संकेत ‘कल-कल’ ध्वनि से मिलता है। इस ‘कल’ के आधार पर देखते हैं कि हमारी भाषाओं को कितने शब्द मिले हैं। कल् की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है। नदी-झरने की कल-कल और भीड़ के कोलाहल में यही कल ध्वनि सुनाई पड़ रही है। पक्षियों की चहचह और कुहुक के लिए प्रचिलत कलरव का अर्थ भी कल ध्वनि (रव) ही है।
प्राचीन रोम में पुरोहित नए मास की जोर-शोर से घोषणा करते थे इसे calare कहा जाता था। अंग्रेजी का call भी इससे ही बना है। रोमन में calare का अर्थ होता है पुकारना या मुनादी करना। कैलेयर से बने कैलेंडे का मतलब होता है माह का पहला दिन। माह-तालिका के लिए कैलेंडर के मूल में भी यही कैलेयर है। भाषा विज्ञान के नजरिये से calare का जन्म संस्कृत के कल् या इंडो-यूरोपीय मूल के गल यानी gal से माना जाता है। इन दोनों ही शब्दों का मतलब होता है कहना या शोर मचाना, जानना-समझना या सोचना-विचारना।
कल-कल में ध्वनिवाची संकेत से पानी के बहाव का अर्थ तय हुआ मगर ध्वनिवाचक अर्थ भी बरक़रार रहा। बहाव के अर्थ में बरसाती नाले को खल्ला / खाला कहते हैं। यह स्खल से आ रहा है जिसमें गिरने, फिसलने, बहने, टपकने, नीचे आने, निम्नता जैसे भाव हैं। ज़ाहिर है कल का अगला रूप ही स्खल हुआ जिससे नाले के अर्थ में खल्ला बना। कल का ही अगला रूप गल होता है। ज़रा सोचे पंजाबी के गल पर जिसका मतलब भी कही गई बात ही होता है। साफ़ है कि अंग्रेजी का कॉल, संस्कृत का कल् और पंजाबी का गल एक ही है।
कल् का विकास गल् है जिसका अर्थ है टपकना, चुआना, रिसना, पिघलना आदि। यह कल के बहाववाची भावों का विस्तार है। गौर करें इन सब क्रियाओं पर जो जाहिर करती हैं कि कहीं कुछ खत्म हो रहा है, नष्ट हो रहा है। यह स्पष्ट होता है इसके एक अन्य अर्थ से जिसमें अन्तर्धान होना, गुजर जाना, ओझल हो जाना या हट जाना जैसे भाव हैं। गलन, गलना जैसे शब्दों से यह उजागर होता है। कोई वस्तु अनंत काल तक रिसती नहीं रह सकती। स्रोत कभी तो सूखेगा अर्थात वहाँ जो पदार्थ है वह अंतर्धान होगा। गल् धातु से ही बना है गला जिसका मतलब होता है कंठ, ग्रीवा, गर्दन आदि। ध्यान रहे, गले से गुज़रकर खाद्य पदार्थ अंतर्धान हो जाता है।
गल् से गला बना है और गली भी। निगलना शब्द भी इसी मूल से बना है। गले की आकृति पर ध्यान दें। यह एक अत्यधिक पतला, सँकरा, संकुचित रास्ता होता है। गली का भाव यहीं से उभर रहा है। कण्ठनाल की तरह सँकरा रास्ता ही गली है। गली से ही बना है गलियारा जिसमें भी तंग, संकरे रास्ते का भाव है। गल् में निहित गलन, रिसन के भाव का अंतर्धान होने के अर्थ में प्रकटीकरण अद्भुत है। कुछ विद्वान गलियारे की तुलना अंग्रेजी शब्द गैलरी gallery से करते हैं। यूँ गुज़रने और प्रवाही अर्थ में भी सँकरे रास्ते के तौर पर कल, गल से होते हुए गला और गली के विकास को समझा जा सकता है।
गौर करें सुबह सोकर उठने के बाद मुँह में पानी भर कर गालों की पेशियों को ज़ोरदार हरक़त देने से ताज़गी मिलती है। इसे कुल्ला करना कहते हैं। यह कुल्ला मूलतः ध्वनि अनुकरण से बना शब्द है और इसमें वही कल-कल ध्वनि है जो पत्थरों से टकराते पानी में होती है। वैसे कुल्ला का मूल संस्कृत के कवल से माना जाता है। हिन्दी में जो गाल है वह संस्कृत के गल्ल से आ रहा है। फ़ारसी में गल्ल से कल्ला बनता है जिसका प्रयोग हिन्दी में भी होता है जैसे कल्ले में पान दबाना यानी मुँह में पान रखना। गल्ल और कल्ल की समानता गौरतलब है। गल्ल से हिन्दी में गाल बनता है और फ़ारसी में कल्ला। मगर दोनों ही भाषाओं में कुल्ला का अर्थ गालों में पानी भरकर उसमें खलबली पैदा करना ही है।
ताज़गी के लिए कुल्ला के अलवा गरारा भी किया जाता है। यह संस्कृत के गर्गर (गर-गर) से आ रहा है। कल कल का ही विकास गर गर है। आमतौर पर गर गर ध्वनि गले से अथवा नाक से निकलती है। इस ध्वनि के लिए नाक या गले में नमी होना भी जरूरी है। क वर्णक्रम की ध्वनियाँ आमतौर पर एक दूसरे से बदलती हैं। नींद में मुँह से निकलनेवाली आवाजों को खर्राटा कहा जाता है। इसकी तुलना गर्गर से करना आसान है। यहाँ ग ध्वनि ख में तब्दील हो रही है। ख, क ग कण्ठ्य ध्वनियाँ है मगर इनमें भी ख संघर्षी ध्वनि है और बिना प्रयास सिर्फ निश्वास के जरिये बन रही है। सो खर्राटा शब्द भी इसी कड़ी से जुड़ रहा है।
अंग्रेजी के गार्गल gargle शब्द का प्रयोग भी शहरी क्षेत्रों में आमतौर पर होने लगा है। इसकी आमद मध्यकालीन फ्रैंच भाषा के gargouiller मानी जाती है जो प्राचीन फ्रैंच के gargouille से जन्मा है जिसमें गले में पानी के घर्षण और मंथन से निकलने वाली ध्वनि का भाव निहित है। इस शब्द का जन्म गार्ग garg- से हुआ है जिसमें गले से निकलने वाली आवाज का भाव है। इसकी संस्कृत के गर्ग (रः) से समानता गौरतलब है। गार्गल शब्द बना है garg- (गार्ग) + goule (गॉल) से। ध्यान रहे पुरानी फ्रैंच का goule शब्द लैटिन के गुला gula से बना है जिसका अर्थ है गला या कण्ठ। लैटिन भारोपीय भाषा परिवार से जुड़ी है। लैटिन के गुला और हिन्दी के गला की समानता देखें।
अपशब्द, निंदासूचक या फूहड़ बात के लिए हिन्दी उर्दू में गाली शब्द है। प्रायः कोशों में इसका मूल संस्कृत का गालि बताया गया है। ध्यान रहे कल् या गल् में कुछ कहने का भाव है प्रमुख है। विकास यात्रा में अपशब्द के लिए गालि का विकास भी इसी गल् से हुआ। गल् यानी ध्वनि। कहना। गाल यानी वह अंग जहाँ जीभ व अन्य उपांगों से ध्वनि पैदा होती है। गला यानी वह महत्वपूर्ण अंग जहाँ से ध्वनि पैदा होती है। गुलगपाड़ा, शोरगुल, कोलाहल, कल-कल, कॉल, गल, कलरव, गर-गर, गॉर्गल जैसे शब्दों में कहना, ध्वनि करना ही महत्वपूर्ण है। गाली का एक अन्य रूप गारी भी होता है। उलाहना, भर्त्सना, धिक्कार या झिड़कने को गरियाना भी कहते हैं। किसी को दुर्वचन कहने, लताड़ने, फटकारने के अर्थ में भी इसका प्रयोग किया जाता है। जॉन प्लैट्स के कोश में गाली की व्युत्पत्ति प्राकृत के गरिहा से बताई गई है। संस्कृत में इसका मूल गर्ह् है जिसका अर्थ भर्त्सना या धिक्कार ही है। गर्ह् के मूल में भी गर् ध्वनि को पहचाना जा सकता है।
गाली बकने की क्रिया के लिए गाली-गलौज शब्द भी है। इसमें गलौज ध्वनि अनुकरण से बना है। गलौज, गलौच, गलोच में क्या सही है, क्या ग़लत इसके फेर में नहीं पड़ना चाहिए। वैसे हिन्दी कोशों में गलौज को ही सही बताया गया है। चूँकि ध्वनि अनुकरण का मामला है इसलिए अलग अलग क्षेत्रों में च और ज का फ़र्क़ हो सकता है। गलौज ध्वनि अनुकरण से बना है। गलौज, गलौच, गलोच में क्या सही है, क्या ग़लत इसके फेर में नहीं पड़ना चाहिए। वैसे हिन्दी कोशों में गलौज को ही सही बताया गया है। चूँकि ध्वनि अनुकरण का मामला है इसलिए अलग अलग क्षेत्रों में च और ज का फ़र्क़ हो सकता है। इसी कड़ी में गाली-गुफ्तार पर विचार करें। गुफ्तार मुख-सुख से नहीं आया है मगर गाली-गुफ्तार पद का प्रयोग हिन्दी में गाली-गुफ्ता की तरह होता है। अनजाने में गालीगुप्ता भी देखा जाता है।