ये फ़ेसबुक पर पंकज श्रीवास्तव का सन्देश है। आप की क्या राय है?
विजय व पराजय विलोम हैं। पराजित का अर्थ है जिसके सन्दर्भ में कहा जा रहा है वह
हारा है। तो विजित का अर्थ क्या हुआ? जिसके सन्दर्भ में कहा जा रहा है - वह
जीता है।
अगर इस नज़रिये से देखें तो अर्थ ठीक बैठता है..
----- Original Message -----
From: "अभय तिवारी" <abha...@gmail.com>
To: "शब्द चर्चा" <shabdc...@googlegroups.com>
Sent: Wednesday, December 15, 2010 1:22 PM
Subject: [शब्द चर्चा] विजित
On Dec 15, 1:39 pm, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> देखिए ऑनलाइन मोनियर-विलियम्स का संस्कृत अंग्रेजी कोश, पृष्ठ 960, col.3 -
>
> http://www.sanskrit-lexicon.uni-koeln.de/cgi-bin/monier/serveimg.pl?f...
>
> विजित = (1) conquered , subdued , defeated , won , gained (2) a conquered
> country (3) any country or district (4) conquest , victory
>
> विजितवान् (विजितवत्) = one who has conquered, victorious
>
> ---नारायण प्रसाद
>
> 2010/12/15 Vinod Sharma <vinodjisha...@gmail.com>
On 15 दिस., 05:51, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> <<जिसे क्रोध आया हो वह क्रोधित, जिसे लज्जा आए वह लज्जित, जो उदय हुआ हो
> उदित, जिस पर फल लगा हो या फल मिला हो फलित, तो क्या .......जिसने विजय पाई हो
> वह विजित?>>
>
> यदि यह तर्क या नियम सही हो तो -
> जिसने पढ़ा हो वह पठित ।
> जिसने रचा हो वह रचित ।
> जिसने लिखा हो वह लिखित ।
>
> परन्तु सब को मालूम है कि उपर्युक्त अर्थ सही नहीं है ।
>
> पाणिनि व्याकरण के अनुसार -
> पा॰3.4.70 - तयोरेव कृत्यक्तखलर्थाः ।
>
> इस नियम के अनुसार सकर्मक क्रिया में क्त (= त) प्रत्यय कर्ता में नहीं, बल्कि
> कर्म में होता है ।
>
> अतः विजित [उपसर्ग "वि"+धातु "जि" (=जीतना)+प्रत्यय क्त (=त)] का अर्थ होगा -
> जिसको जीत लिया गया हो, या जिसपर विजय पाई गई हो ।
>
> इसका अर्थ कर्ता में अर्थात् जिसने जीत लिया हो, या जिसने विजय पाई हो - ऐसा
> कभी नहीं होगा ।
>
> ---नारायण प्रसाद
>
> 2010/12/15 ghughuti basuti <ghughutibas...@gmail.com>
>
>
>
> > विजित शब्द सही नहीं लग रहा। विजयी व विजेता शब्द का यह विलोम ही लग रहा
> > है। वैसे सोचा जाए तो
> > क्रोध क्रोधित
> > लज्जा लज्जित
> > प्रयोजन प्रयोजित
> > उदय उदित
> > कूज ध्वनि कूजित
> > ध्वनि ध्वनित
> > मुद्रण मुद्रित
> > कसुम कुसुमित
> > प्रफुल्ल प्रफुल्लित
> > पुलक पुलकित
> > फल फलित
> > विजय विजित
> > जिसे क्रोध आया हो वह क्रोधित, जिसे लज्जा आए वह लज्जित, जो उदय हुआ हो
> > उदित, जिस पर फल लगा हो या फल मिला हो फलित, तो क्या जिसे विजय किया गया
> > हो या जिसने विजय पाई हो वह विजित?
> > घुघूती बासूती- उद्धृत पाठ छिपाएँ -
>
> उद्धृत पाठ दिखाए
On 15 दिस., 14:37, anil janvijay <aniljanvi...@gmail.com> wrote:
> संतो! भारत सरकार के हिन्दी अधिकारी शायद अविजित कहना चाहते थे। लेकिन हिन्दी
> का ज्ञान सीमित रह गया।
>
> 2010/12/15 anil janvijay <aniljanvi...@gmail.com>
>
>
>
>
>
> > संतो! भारत सरकार के हिन्दी अधिकारी शायद अविजित कहना चाहते थे। लेकिन हिन्दी
> > का ज्ञान सीनित रह गया।
>
> > 2010/12/15 Abhay Tiwari <abhay...@gmail.com>
>
> >> नारायण जी, आपके उत्तर से संशय छँट गया। शुक्रिया!
>
> >> ----- Original Message -----
> >> *From:* narayan prasad <hin...@gmail.com>
> >> *To:* shabdc...@googlegroups.com
> >> *Sent:* Wednesday, December 15, 2010 4:21 PM
> >> *Subject:* Re: [शब्द चर्चा] Re: विजित
>
> >> <<जिसे क्रोध आया हो वह क्रोधित, जिसे लज्जा आए वह लज्जित, जो उदय हुआ हो
> >> उदित, जिस पर फल लगा हो या फल मिला हो फलित, तो क्या .......जिसने विजय पाई
> >> हो वह विजित?>>
>
> >> यदि यह तर्क या नियम सही हो तो -
> >> जिसने पढ़ा हो वह पठित ।
> >> जिसने रचा हो वह रचित ।
> >> जिसने लिखा हो वह लिखित ।
>
> >> परन्तु सब को मालूम है कि उपर्युक्त अर्थ सही नहीं है ।
>
> >> पाणिनि व्याकरण के अनुसार -
> >> पा॰3.4.70 - तयोरेव कृत्यक्तखलर्थाः ।
>
> >> इस नियम के अनुसार सकर्मक क्रिया में क्त (= त) प्रत्यय कर्ता में नहीं,
> >> बल्कि कर्म में होता है ।
>
> >> अतः विजित [उपसर्ग "वि"+धातु "जि" (=जीतना)+प्रत्यय क्त (=त)] का अर्थ होगा -
> >> जिसको जीत लिया गया हो, या जिसपर विजय पाई गई हो ।
>
> >> इसका अर्थ कर्ता में अर्थात् जिसने जीत लिया हो, या जिसने विजय पाई हो - ऐसा
> >> कभी नहीं होगा ।
>
> >> ---नारायण प्रसाद
>
> >> 2010/12/15 ghughuti basuti <ghughutibas...@gmail.com>
> +7 916 611 48 64 ( mobile)- उद्धृत पाठ छिपाएँ -
On 16 दिस., 02:53, अजित वडनेरकर <wadnerkar.a...@gmail.com> wrote:
> बलजीत भाई,
>
> यहाँ सब कुछ प्रारम्भ से ही स्पष्ट था। गर्वबोध और शौर्य के प्रतीक के तौर पर
> एक पोत का विजित नामकरण शुरू से ही अटपटा है। नकारात्मक अर्थबोध है इसमें।
> संभव है किसी खास समूह से संबंधित लोगों ने यह नामकरण किया हो। कभी कभी मराठी
> के किन्हीं समूहों में विजित का प्रयोग अजित या अजय की तरह मैने सुना है।
> ज़रूरी नहीं के मराठी के नाते भी वे सही बोल रहे हों। और फिर बात यहाँ
> राष्ट्रीय धरोहर के नामकरण की हो रही है जो हिन्दी में रखा गया है।
>
> वि उपसर्ग में निषेध, अभाव की अर्थवत्ता है। विजित का अर्थ विजेता लगाना ठीक
> वैसा ही है मानो अजय या अजित का अर्थ पराजित और परास्त से लगाएं। यह मानते हुए
> कि अ उपसर्ग में भी निषेध या अभाव है:)
>
> 2010/12/16 दिनेशराय द्विवेदी <drdwive...@gmail.com>
>
>
>
>
>
> > अविजित की अपेक्षा भी अजेय शब्द अधिक उपयुक्त होता।
> > मुझे लगता है इस नामकरण में कोई ज्योतिषीय पंगा भी रहा होगा। जैसे वि अक्षर से
> > नाम का आरंभ।
>
> > 2010/12/16 Baljit Basi <baljit_b...@yahoo.com>
> > *क्लिक करें, ब्लाग पढ़ें ... अनवरत <http://anvarat.blogspot.com/> तीसरा
> > खंबा <http://teesarakhamba.blogspot.com/>*
>
> --
> शुभकामनाओं सहित
> *अजित*http://shabdavali.blogspot.com/- उद्धृत पाठ छिपाएँ -
बलजीत भाई,
On 18 दिस., 21:48, narayan prasad <hin...@gmail.com> wrote:
> सन्दर्भ: अजीत वह, जो पराजित होता
> रहे<http://shabdavali.blogspot.com/2010/02/blog-post_12.html>
>
> जीत का अर्थ विजय है । उसमें अ उपसर्ग लगाने से उसका विपरीतार्थक अर्थ ही
> निकलेगा अर्थात् पराजय, हार ।
>
> << *जीत *शब्द संस्कृत में नहीं है बल्कि यह *जित्* से बना देशज रूप है। >>
>
> हो सकता है । परन्तु जीत भाववाचक संज्ञा है, जबकि (समास के अन्त में प्रयुक्त)
> जित् (उदाहरणस्वरूप "इन्द्रजित्" ) का अर्थ जीतनेवाला ।
> जित् शब्द जि धातु में कृत् प्रत्यय क्विप् लगाने से बनता है । क्विप् प्रत्यय
> का कुछ भी अंश शेष नहीं बचता अर्थात् इसका सर्वापहारी लोप हो जाता है । अतः
> जि+क्विप् = जि ।
> अब यहाँ पाणिनि सूत्र "ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्" (पा॰6.1.71) से "जि" के
> ह्रस्व स्वरान्त होने से अन्त में तकार का आगम हो जाता है और बनता है "जित्" ।
> उसी तरह कृ (= करना) धातु से निर्मित कृत और (समास के अन्त में प्रयुक्त) कृत्
> में अन्तर है ।
> कृत् = करनेवाला अर्थात् कर्ता ।
> कृत = किया हुआ ।
> अतः कृत् प्रत्ययान्त शब्द कर्ता में प्रयुक्त होते हैं (कुछ इने-गिने अपवादों
> को छोड़कर) ।
> ---नारायण प्रसाद
>
> 2010/12/16 अजित वडनेरकर <wadnerkar.a...@gmail.com>
>
>
>
> > बलजीत भाई,
>
> > अजित अजीत का फ़र्क़ मैं सफ़र में ( अजीत वह, जो पराजित होता रहे<http://shabdavali.blogspot.com/2010/02/blog-post_12.html>) स्पष्ट कर चुका हूं। आप भी उसे देख चुके हैं। वहाँ समाधान का प्रयास भी कर
> > चुका हूँ। इससे ज्यादा गुंजाइश है नहीं इसमें।
>
> > अजीत शब्द चूंकि गलत है इसलिए शब्दकोशों में भी दीर्घ ई वाला अजीत ढूंढे से
> > नहीं मिलेगा। संभव है अपनी पोस्ट में मैं बात स्पष्ट न कर सका हूं, नारायणजी
> > शायद मेरी बात को ज्यादा बेहतर ढंग से समझा सकें। नारायणजी से आग्रह है कि एक
> > बार उक्त नन्ही पोस्ट पढ़ लें तो मेरा और बलजीत भाई की शंका का समाधान भी हो
> > जाएगा।
>
> > सादर, साभार- उद्धृत पाठ छिपाएँ -
On 20 दिस., 08:48, anil janvijay <aniljanvi...@gmail.com> wrote:
> 2010/12/20 Baljit Basi <baljit_b...@yahoo.com>
> +7 916 611 48 64 ( mobile)- उद्धृत पाठ छिपाएँ -