प्रभावती गुप्त
पूना-तामपत्र के अनुसार गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह संभवतः 380 ई. में पाटिल पुत्र में नागपुर की वाकाटक शाक रुद्रसेन द्वितीय के साथ हुआ था। इस विवाह से दोनों राजवंशों में घनिष्ठता स्थापित हुई। रुद्रसेन शैव था, प्रभावती वैष्णव थी। वह अपनी राजधानी नन्दिवर्धन के समीपस्थ रामगिरि पर प्रतिष्ठित भगवान रामचन्द्र की पादुकाओं की भक्त थी। इसके परिणाम-स्वरूप रुद्रसेन वैष्णव हो गया। लगभग चौथी शती के अन्त में रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई और 13 वर्ष की प्रभावती ने अपने अल्प-व्यस्क पुत्रों की संरक्षिका के रूप में शासन किया। उसका पुत्र दिवाकर सेन ज्येष्ठ (पाँच वर्ष) था तथा दामोदर सेन (दो वर्ष) नाबालिग, अतः वह उसकी संरक्षिका बनी। ज्येष्ठ पुत्र दिवाकर सेन की मृत्यु उसके संरक्षण-काल में ही हो गई और दामोदर सेन व्यस्क होने पर सिंहासन पर बैठा। यही 410 ई. में प्रवर सेन द्वितीय के नाम से वाकाटक शासक बना। उसने राजधानी नन्दिवर्धन को बदल कर प्रवरपुर बनाई। शकों के उन्मूलन का कार्य प्रभावती गुप्त के संरक्षण काल में संपन्न हुआ। इस विजय के फलस्वरूप गुप्त सत्ता गुजरात एवं काठियावाड़ में स्थापित हो गई। उसने व्यावहारिक कठिनाइयों को शासन कार्य का अनुभव न होने पर भी अपनी व्यक्तिगत योग्यता और पिता की सहायता से दूर कर शासन किया। उसने अपने पितृगोत्र को ही धारण किया तथा अपने अभिलेखों में पति की वंशावली न देकर पिता की वंशावली दी। वह अपने पिता के राज्य और पुत्र की रक्षा के उद्देश्य से पिता की सहायता व मंत्रणा लेती थी। विधवा राजमाता प्रभावती गुप्त सौ वर्षों से अधिक उम्र तक जीवित रहीं और उसे अपने कम-से-कम दो पुत्रों की मृत्यु का दुःख सहना पड़ा।
गौरवशाली भारतीय वीरांगनाएँ
शान्ति कुमार स्याल
राजपाल एंड सन्स
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संस्कृत-समितिः
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