कालिदास की मृत्यु

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sanskrit samiti

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Dec 14, 2009, 12:09:18 AM12/14/09
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विश्व के नाट्य परिदृश्य पर अपनी विराट छवि बनाने वाले महाकवि कालिदास के रचना संसार से प्रभावित लोग, उनके दुखद अंत से परिचित नहीं हैं

कहा जाता है कि उज्जयिनी निवासी कालिदास की मृत्यु श्रीलंका मेंहुई थी। लंका में उनके अंत की कथा, जनश्रुति के रूप में प्रचलित है। लोग इसे इतिहास से भी जोड़ते हैं। यह भी कहा जाता है कि कालिदास की समाधि दक्षिणी लंका में किरन्दी नदी तथा समुद्र के संगम पर आज भी मौजूद है

दरअसल महाकवि की मृत्यु का हादसा लंका के राजा कुमारदास से जुड़ा है, जो स्वयं भी अच्छे कवि थे और कालिदास से प्रभावित थे। कुमारदास सिंहलद्वीप (लंका) की एक धनाढ्य गणिका कामिनी से प्रेम करते थे। अपने एक प्रणय-प्रसंग के दौरान, कुमारदास द्वारा कविता की एक पंक्ति कामिनी को देकर, यह वचन दिया जाता है कि यदि वह उसे पूरा कर देती है, तो राजा उससे विवाह कर लेंगे

इसी बीच कालिदास, कुमारदास के आमंत्रण पर सिंहलद्वीप पहुँच जाते हैं और उन्हें चकित कर देने के उद्देश्य से सूचित नहीं करते। संयोगवश कालिदास उस गणिका के घर जा पहुँचते हैं। कविता की अधूरी पंक्ति देख, जब कालिदास उसे पूर्ण कर देते हैं और इस भय से कि कहीं कुमारदास को यह जानकारी न मिल जाए, कामिनी विष पिलाकर कालिदास की हत्या कर देती है

कुमारदास को जब यह तथ्य ज्ञात होता है, तो वे भी आत्महत्या कर लेते हैं। कालिदास अपनी मृत्यु के समय यह मानते हैं कि विद्योत्तमा को पत्नी के स्थान पर गुरु मान लेने की गलती के कारण, उसका शाप ही उनकी मृत्यु का कारण बना।

संग्रह का दूसरा नाटक 'मेघप्रश्न' कालिदास रचित 'मेघदूतम' की समाप्ति के बाद की कथा है। 'मेघदूतम' की कथा के अनुसार यक्षराज कुबेर यक्ष को शाप देकर रामगिरि के वनों में भेजते हैं। अलकापुरी में यक्षिणी इस वियोग के आठ माह व्यतीत कर चुकी है। आषाढ़ के आनेपर यक्ष, अपनी वियोग-गाथा मेघ को दूत बनाकर भेजता है

दूतरूपी मेघ यक्ष की वियोग-गाथा अपने करुण स्वर में यक्षिणी को सुनाता है। संयोग से कुबेर गाथा सुनकर द्रवित हो जाता है व यक्ष को शापमुक्त कर देता है। यक्ष तब यक्षिणी के पास अलकापुरी लौट आता है

इस नाटक में मेघ का प्रश्न है कवि कालिदास यक्षिणी की पीड़ा की अनुभूति तो भली प्रकार से कर पाए, किंतु वे स्वयं मेघ थी, विद्युता से विरह की पीड़ा को व्यक्त क्यों नहीं कर पाए। मेघ कहता है- 'मेरी प्रिया विद्युता, निकट आते ही क्षणभर में ओझल हो जाती है...और मैं...उसके वियोग में दुखी हो, वर्षाकणों में धार-धार बह निकलता हूँ, आँसू बनकर। कुछ तो कहो महाकवि, कहाँ हो तुम?'

पुस्तक : कंधे पर बैठा शाप।
लेखक : मीराकांत।
प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, 18, इंस्टीट्यूशल एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली-3
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संस्कृत-समितिः
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pandey ramanath

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Dec 14, 2009, 6:18:38 AM12/14/09
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संस्कृत-समितिः
महोदय
कृपया सन्दर्भ बतायें यह् प्रसंग किस पुस्तक में वर्णित हॆ! विना सन्दर्भ
के किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता हॆ!

2009/12/14 sanskrit samiti <sanskri...@gmail.com>:

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rnp

pandey ramanath

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Dec 14, 2009, 6:19:06 AM12/14/09
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संस्कृत-समितिः महोदय

कृपया सन्दर्भ बतायें यह् प्रसंग किस पुस्तक में वर्णित हॆ! विना सन्दर्भ
के किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता हॆ!

2009/12/14 sanskrit samiti <sanskri...@gmail.com>:

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rnp

pandey ramanath

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Dec 18, 2009, 5:32:00 AM12/18/09
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प्रणमामः,
वागर्थाविव सम्पृक्तॊ वागर्थ प्रतिपत्तये, अत्र वाक् शब्दस्य अर्थः किं ?
शब्दः., वाक्यः वाक् (वाणी) इति वा ? शब्दार्थॊ काव्यम्, वाक्यं इति
काव्यम् वाक् एव इति काव्यं वा?
2009/12/14 pandey ramanath <rnpm...@gmail.com>:

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rnp

hn bhat

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Dec 18, 2009, 6:15:35 AM12/18/09
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"शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली"

"रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्"

"वाक्यं रसात्मकं काव्यम्" 

इत्यादिवाक्यैः शरीरशरीरिणोरिव शब्दार्थयोः संबन्धः, अर्थरहितस्य केवलस्य निर्जीवकलेवरप्रायत्वात्। इति क्षेत्र-क्षेत्रज्ञयोरिव वा संबन्धः। शब्दे अर्थाध्यासः, अर्थे शब्दाध्यासः, इतरेतराध्यासं विना व्यवहारायोग्यत्वात् "नित्यः शब्दार्थसंबन्धः" इति हि शब्दविदां मतम्। "शब्दार्थौ सहितावेव काव्यम्" इति काव्यविदां मतम्। 

सर्वथा अर्थसहितस्यैव काव्यत्वव्यवहारः सिद्धः, इति शब्दार्थयोर्यथा सिद्धः संबन्धः, न साध्यः, तथा नित्ययुक्तावेव जगतः पितरौ इति अक्षरार्थः। विशेषार्थस्तु व्याख्यानेभ्यो ऽवगन्तुं शक्य एव। 




2009/12/18 pandey ramanath <rnpm...@gmail.com>

प्रणमामः,
वागर्थाविव सम्पृक्तॊ वागर्थ प्रतिपत्तये, अत्र वाक् शब्दस्य अर्थः किं ?
शब्दः., वाक्यः वाक् (वाणी) इति वा ? शब्दार्थॊ काव्यम्, वाक्यं इति
काव्यम् वाक् एव इति काव्यं वा?
 
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Dr. Hari Narayana Bhat B.R.
EFEO,
PONDICHERRY

pandey ramanath

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Dec 18, 2009, 1:02:50 PM12/18/09
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Adarniya Bhatta mahodayaH
मम मूल प्रश्नः आसीत् यत् "वागर्थाविव सम्पृक्तॊ वागर्थ प्रतिपत्तये"

अत्र वाक् शब्दस्य अर्थः किं ?
शब्दः., वाक्यः वाक् (वाणी) इति वा ? काव्यमधिकृत्य मम् प्रश्नं नास्ति!
काव्यशास्त्रस्य उद्धरणम् तु सम्यक् एव! काव्ये तु सर्वम् चलति एव! तथापि
अत्रापि मम एकः प्रश्नः ? गुणदोषविवेचने तेषाम् आकारः कुत्र वर्तते?
तत्र हि, पनसादि शब्देन, पनसात् अर्थप्रतिपत्तिर्नास्ति कथमिति चेत्
पृथगर्थदर्शनात्. अनेन शब्दश्च हस्तसंकेतसम्बन्धनिर्देशात् अर्थसाधनात्.
अतः पनसशब्देन अर्थप्रतिपत्तिर्नास्ति. ननु च अप्रतिपत्तिरस्ति. अतः
वाक्यमेवार्थानां शब्दार्थस्य प्राधान्ये अस्ति. न तु शब्दः .!
वाक्यपदीयकारमतेन अपि शब्देन अर्थ प्रतिपत्ति न भवति तदयथा-
नित्येअनित्येअपि वAच्ये अर्थे पुरुषेण कथंचन! सम्बन्धो अकृतसंबन्धॆः
शब्दॆः कर्तुं न शक्यते!!वाक्यपदीय(१४९,१.९-१०) एतस्मात् कारणात्
वागर्थाविव सम्पृक्तो वागर्थ प्रतिपत्तये , अत्र तु वाक् इति पदस्य अर्थः
वाक्य एव अस्ति न तु शब्दः इति. मन्तव्यः! अस्मिन् श्लोके कालिदासस्य
अभिप्रायः तु अयम् अस्ति यत् संसारस्य व्यवहारः वाक्येन चलति न तु
शब्देन.!. तत्र वाक्यंपदीये - अनादिनिधनम् ब्रह्म शब्दतत्त्वम् यदक्षरम्,
विवर्तते अर्थभावेन प्रक्रिया जगतो यतः!! वाक्य० १/१ वाक्यं विना शब्दाः
निरर्थकाः भवन्ति! एवं अपि च, शब्द ब्रह्म एव अस्ति चेत् , तदा, नॆव वाचा
नॆव मनसा ग्यातुम् शक्यो न चक्षुषा इति वचनस्य सार्थकता भविष्यति!
अर्थस्य प्रतिपत्ति तु वाण्या(भाषा) एव भवति न तु वाक्येन शब्देन वा
इति!.. अत्रापि वाक्यं तु मात्र भाषायाः एकिकं(इकाई) अस्ति! अतएव भावस्य
सम्यक् अभिव्यक्ति मात्र वाक्येन एव न भवति! तत्कृते तु प्रकरणस्य
आवश्यकता, प्रकरणे सति शब्दानाम् परस्परसम्बन्धेन वाक्यस्य निर्माणम्
भवति तदनन्तरमेव विविधभावानाम् भाषामाध्मेन अभिव्यक्ति भवति! अतएव
अमरकोषे वाक् इति शब्दस्य समानार्थशब्देषु सन्ति - भारती, भाषा, गीः,
वाक्, वाणी, सरस्वती! मम कथनस्य सारः अभिप्रायः वा अस्ति यत् कालिदास्य
मते अपि तु वाक् (वाणी) च अर्थ च वागर्थॊ मन्तव्यः ! अर्थः तु वाण्यां
उत् भाषायां सम्मिलिताः सन्ति न तु शब्दे इति! अतः पश्यन्ति, मध्यमा,
वॆखरी रूपेण भावस्य अभिव्यक्तिर्भवति अत्र परा वाक् इत्यस्य संकेतः
नास्ति तत् तु ब्रह्म एव अस्ति एतस्मात्! काव्यशास्त्रेषु च
काव्यनिर्माणे तु प्रतिभा एव मुख्यं, तत्र रम्यांणि वीक्ष्य मधुराणि
-----अभिशा०/९ इति!
अतः पार्वतीपर्मेश्वरॊ, अत्र तु नित्यस्य अभिप्रायः नास्ति, अनित्यस्य एव
पार्वतीपर्मेश्वरॊ तु जगतस्य पितरॊ अस्ति, न तु नित्य ब्रह्म परावाक्
इति तत् तु अखन्डम् एकम् नित्यम् न इश्वरॊ न परमेश्वरॊ इति!
Ataeva शरीरशरीरिणोरिव शब्दार्थयोः संबन्धः satyam nAsti nityam api nAsti ca


2009/12/18 hn bhat <hnbh...@gmail.com>:

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rnp

sanskrit samiti

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Dec 26, 2009, 12:39:01 AM12/26/09
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उक्त लेख "कंधे पर बैठा शाप" नामक ग्रन्थ से लिया गया है\
जिसका विवरण इस प्रकार है


पुस्तक : कंधे पर बैठा शाप।
लेखक : मीराकांत।
प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, 18, इंस्टीट्यूशल एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली-3
धन्यवाद

2009/12/14 pandey ramanath <rnpm...@gmail.com>



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