प्रिय महोदयः
प्रणमामः
भारतीय परम्परा के अनुसार जिस व्यक्ति का जो आराध्य देव होता हॆ, वह अपने
किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ, उसी देव की स्तुति से करता हॆ न कि अन्य
देव की स्तुति से ! कालिदास के आराध्य शिव हॆं या पार्वती को भी उनका
आराध्य माना जा सकता हॆ, " वन्दे पार्वतीपरमेश्वरॊ" कहकर शिव के
अर्धनारीश्वर रूप की स्तुति का भी संकेत हॆI यद्यपि पार्वती के
पर्यायवाची शब्दो‘मे‘ काली का भी समावेश हॆ - (अमरकोश १-१-३६,३७)! तथापि
कालिदास की रचनाओं में काली शब्द का प्रयोग पार्वती के स्वरूप की
अभिव्यक्ति के लिये कहीं भी नहीं प्राप्त होता हॆ! इस प्रकार कालिदास को
पार्वती के काली के स्वरूप का उपासक स्वीकार कर कालिदास शब्द की सार्थकता
सिद्ध नहीं की जा सकती हॆ! इससे यह प्रमाणित होता हॆ कि कालिदास देवी
काली के भक्त नहीं थे! मेरे कथन का अभिप्राय यह हॆ कि कालिदास के काल तक
काली का वह स्वरूप विकसित नहीं दिखायी देता जो कि पश्चात्काल साहित्य में
दिखायी देता हॆ! कुमारसंभवे सप्तमसर्गे -
तासां च पश्चात् कनकप्रभाणां काली कपालाभरणा चकाशे।
बलाकिनी नीलपयोदराजिर्दूरं पुरःक्षिप्तशतह्रदेव॥ ३९।
अत्र तु कृष्णवर्णत्वसूचनाय कालीसंज्ञयाभिधानम्! अथवा काल्याः कालत्वात्
कालीति नाम सार्थकम् प्रतीयते॒! इस प्रकार काली शब्द का प्रयोग या तो
कृष्ण वर्ण को सूचित करता हॆ अथवा कालादि अन्य अर्थ को न कि महाभारत,
पुराण आदि में वर्णित देवी काली या महाकाली के लिये! तथापि मात्र इस एक
उद्धरण को आधार मानकर कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता हॆ!
कुमारसंभव (१.२६, तथा ५.२८) में ही पार्वती, ऊमा तथा अपर्णा शब्दों का
ऊल्लेख कर इन शब्दों की संरचना किस प्रकार हुयी हॆ इसका अत्यन्त सुन्दर
उदाहरण प्राप्त होता हॆ! पी० वी काणे के धर्मशास्त्र के अनुसार इन
उद्धरणों का समय महाभारत में निश्चितिता से परे हॆ क्योंकि इसके आधार पर
कोई भी कालक्रम निर्धारित नहीं किया जा सकता हॆ! इन सबके अतिरिक्त
पार्वती को गॊरी(रघुवंश-२.२६ तथा कुमारसम्भव-७.९५), भवानी(कुमा०८४),
चण्डी(मेघदूत१.३३) आदि शब्दों से सम्बोधित किया गया हॆ! मातॄ या सप्तमातॄ
(कुमारसम्भव-७.३०,३८) तथा काली की भी चर्चा हॆ किन्तु inakA सम्बन्ध
पार्वती से नहीं हॆ!
यहां यह भी विचारणीय हॆ कि यद्यपि पाणिनि के व्याकरण के आधार पर -
"कालिदासः कालीदासः - इत्युभयोरपि साधुत्वमुचितमेव, संज्ञात्वात्,
"ङ्यापोः संज्ञा-च्छन्दसोर्बहुलम्" इति कालिदासः इति संज्ञायाम्,
संज्ञाभावे कालीदासः - काल्याः दासः इति च साध्वेव। सज्ञायाम्,
यथाप्रयोगदर्शनं साधुत्वं संपादनीयम्। यदि प्रामाणिकः प्रयोगः, काली-दासः
इत्यपि साधुरेव।"- कालिदास व कालीदास दोनों ही प्रयोग उचित हॆं, तथापि
कालिदास की रचनiओं के मूल पाण्डुलिपियों के किसी भी प्रतियों में
सम्भवतः"कालीदास" शब्द का प्रयोग नहीं मिलता हॆ! ऒर न ही पाणिनि के
व्याकरण में कहिं "कालि" शब्द का प्रयोग हुआ हॆ! जनपदकुण्ड० (पाणि०
४.१.४२) "काली, वर्णः! कालान्या!" !इस प्रकार काली शब्द का प्रयोग वर्ण
को सूचित करता हॆ! सधन्यवादः
Markandeya Purana
तासां च पश्चात् कनकप्रभाणां काली कपालाभरणा चकाशे।
बलाकिनी नीलपयोदराजिर्दूरं पुरःक्षिप्तशतह्रदेव॥ ३९।
तथापि यदीदं प्रमाणं न स्यात --- कुमारसंभवे चतुर्थसर्गे
तासाम = मातॄणाम, सुवर्णवर्णानाम, पश्चात, काली-संज्ञा माता,
सितकपालालंकृता चकाशे।
................ ... .... काल्याः कालत्वात् कालीति नाम।
प्राचीनतमा व्याख्या श्री-वल्लभदेवस्यास्य प्रयोगस्य प्रमाणं न स्यात।
महाभारते ऽपि कालीशब्दस्य देवीभेदार्थत्वे प्रयोगं दर्शयति - Monier Williams.:
(H1B) काली 1[L=49056] a form of दुर्गा MBh. iv , 195
Markandeya Purana देवीमाहात्म्ये:
तत: काली समुत्पत्य गगनं क्ष्मामताडयत्।कराभ्यां तन्निनादेन
प्राक्स्वनास्ते तिरोहिता:॥००.९२२॥
कालीदास के समय ही विवाद ग्रस्त है, तो उन के समय पर ये उल्लेखों का
उक्तार्थ में न मानने की औचित्य न समझा। चाहे तो काली कि बारे में
प्रचलित दन्तकथा समझे, वास्तव में कालीदास तो बडे विद्वान थे यह तो कहा
जा सकता है।
सादरं प्रणामाः।
ऐसे ही सन्दर्भ मे महाभाष्यकार मे ऐसा कहा था ---
महान खलु शब्दस्य विषयः ... सप्तद्वीपा वसुमती एकविंशतिधा बाह्वृचम,
एकशतमध्वर्युवेदः, सहस्रवर्त्मा सामवेदः .....
.....एतावन्तं शब्दराशिमननुनिशम्य साहसमेतत अस्त्यप्रयुक्तः शब्दः
2009/12/10 sanskrit samiti <sanskri...@gmail.com>:
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rnp