लाल्टू
2014 में मानव कहाँ पर है? हालैंड की एक कंपनी का दावा है कि दल साल बाद से वह लोगों को मंगल ग्रह पहुँचा कर वहाँ बस्ती बनाना शुरू कर देगी.
इसके लिए कई लोगों ने चंदा भी भर दिया है और कंपनी ने पहले यात्रियों की सूची भी जारी की है. इसमें कुछेक भारतीय भी हैं.
कंप्यूटर की दुनिया में सिलिकॉन आधारित टेक्नोलोजी ऐसी सीमा तक पहुँच गई है कि इसमें आगे तेजी से तरक्की होने की संभावना कम है. इसलिए भविष्य के कंप्यूटर कैसे होंगे, डी एन ए और क्वांटम कंप्यूटर आदि पर भारी शोध हो रहा है. इंसान के दिमाग से लेकर ब्रह्मांड की
शुरूआत तक के कई सवालों का जवाब मिल चुका है और आगे और भी जवाब तेजी से मिलते जे रहे हैं. साथ ही पूँजीवादी लूट के लिए टेक्नोलोजी के ग़लत इस्तेमाल से धरती विनाश की दहलीज पर भी आ गई है.
राष्ट्रीय संकीर्णताओं से ऊपर उठकर लोग मानवता और प्रकृति के बारे में गंभीरता से सोचने लगे हैं. आपसी मतभेदों को मिटाकर मौसम में बदलाव और पारिस्थिकी में असंतुलन जैसी सार्वभौमिक समस्याओं के
निदान ढूँढे जा रहे हैं.
ऐसे में धरती पर सबसे बड़े लोकतंत्र माने जाने वाले मुल्क भारत में स्थिति क्या है? आधी जनता अनपढ़ है. जो पढ़-लिख सकते हैं, उनमें से बहुत कम ही कॉलेज तक की उच्च शिक्षा पा सकते हैं. जो कॉलेजों तक पहुँच भी जाते हैं, उन्हें बैंक से कर्ज़ लेकर पढ़ाई पूरी करनी पड़ती है. फिर कहने को हालाँकि सूचना क्रांति आदि क्षेत्रों का बोलबाला है, पर कम ही लोगों को अपनी
योग्यताओं के मुताबिक नौकरियाँ मिलती हैं.
देश भर में शहरीकरण हो रहा है. शहरों में हर ओर ऊँची अट्टालिकाएँ दिखती हैं. अधिकतर शहरों में कहीं कोई योजना नहीं दिखती. छोटी छोटी सड़कों के दोनों ओर गाड़ियाँ वालों के लिए फ्लैट बन रहे हैं. गाड़ियाँ खड़ी करने की जगह नहीं है. कहीं बड़े बड़े मॉल बन रहे हैं. भयानक सामाजिक विसंगति के इस माहौल में आश्चर्य नहीं कि हिंसा बढ़ रही है.
ऐसे में यह
अपेक्षा होती है कि संसद के चुनावों में पार्टियाँ बुनियादी मुद्दों पर बहस करेंगीं. शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में निजीकरण से जो घोर संकट आम आदमी के सामने है, उस पर कोई गंभीर विकल्प सोचे जाएँगे. पर नहीं, हमारे राजनैतिक दल इसी बात में उलझे हुए हैं कि हिंदू और मुसलमानों को वोट कैसे बाँटे जाएँ.
नरेंद्र मोदी और उनकी टीम बहुसंख्यक हिंदुओं को भड़काने में
जुटे हैं तो कॉंग्रेस इमाम बुखारी से समर्थन लेती है. सपा बसपा भी पीछे नहीं हैं. आआपा काश्मीर में मानव अधिकारों पर बात होते ही घबराकर प्रेस कान्फरेंस करती है कि हम मोदी से कम नहीं हैं.
यह सब कुछ देखते हुए भारतेंदु का रोना दुबारा याद आता है- हा हा भारत दुर्दशा देखी न जाई! मोदी के समर्थक चिल्लाएँगे कि इसीलिए तो अबकी बार.... पर यही सबसे बड़ी विड़ंबना है.
देश की जो दुर्दशा आज
है, वह जिस भ्रष्ट मुनाफाखोर सरमाएदार तबके की देन है, उसी के पैसों से मोदी का प्रचार हो रहा है. जो देश छोड़कर कबके विदेशों में जा बसे हैं, जो देशी मुनाफाखोरों के बाद देश का खून चूसने वालों में सबसे आगे हैं, वे मोदी के सबसे बड़े समर्थक हैं. अमेरिकी और यूरोप की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ उनका गठजोड़ है. नवउदारवाद के शिकंजे में फँसा देश का भूखा, ग़रीब आम आदमी इतनी बातें नहीं सोच
सकता. उसे तो अपने दैन्य से उबरने के लिए कोई जुनून चाहिए. अपनी दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार अपने आस-पास कोई दुश्मन ढूँढ लिया जाए तो सामयिक रूप से ही, एक झूठा सुकून मिलता है.
सांप्रदायिकता के इसी हैवानी जुनून को भड़का कर मोदी आज राष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहचान बना पाए हैं. इसके लिए उनके साथ मध्ययुगीन मानसिकता वाले संघियों की पूरी फौज है, जो लंबे अरसे से देश को हिंदू
राष्ट्र बनाने के लिए जुटे हुए हैं. हालाँकि यूरोप में, जहाँ पर कौमी राज की आधुनिक धारणा का जन्म हुआ, वहाँ के लोग इसकी सीमाओं को समझ चुके हैं और आज खुली सरहदों वाला महासंघ बना चुके हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश में कौमी राष्ट्रीयता के भयंकर परिणाम हम सब जानते हैं. फिर भी अनपढ़ता और अमानवीय स्थितियों का फायदा उठाकर संघ परिवार बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक जहर फैलाने में सफल होता
जा रहा है.
पाकिस्तान के समझदार लोग भारत में राजनैतिक माहौल के इस कदर बिगड़ने पर हैरान हैं. शायरा फ़हमीदा रियाज़ ने लिखा है - 'वो मूरखता, वो घामड़पन/ जिसमें हमने सदी गँवाई/ आखिर पहुँची द्वार तुम्हारे/ अरे बधाई, बहुत बधाई./ प्रेत धर्म का नाच रहा है/ कायम हिंदू राज करोगे ?/ सारे उल्टे काज करोगे !/ अपना चमन ताराज़ करोगे !' पर क्या कीजे कि संघ परिवार सदियों पुरानी अपनी समझ के
आवर्त्त में फँसा हुआ है! आगे फ़हमीदा सही कहती हैं - 'अब जाहिलपन के गुन गाना./ आगे गड्ढा है यह मत देखो/ लाओ वापस, गया जमाना/ एक जाप सा करते जाओ/ बारंबार यही दोहराओ/ 'कैसा वीर महान था भारत/ कैसा आलीशान था-भारत'.
कई लोग यह मानते हैं कि संवैधानिक धर्म-निरपेक्षता एक पश्चिमी खयाल है. हमारे लोग सर्वधर्म- समभाव में यकीन रखते हैं और हमारी अपनी सांस्कृतिक विरासत है, जो पश्चिम से थोपी गई
आधुनिकता से मेल नहीं रखती- इसलिए हमें संघ परिवार और मोदी जैसे हिंदुत्ववादियों को हमें उदारता से देखना चाहिए.
इसमें कोई शक नहीं कि देश-समाज और कायनात के बारे में हमारी समझ अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर निर्भर करती है और हर समुदाय के लोगों को यह हक होना चाहिए कि अपनी विरासत के अंदर रहकर वह अपना भविष्य स्वयं तय कर सकें. पर कुछ बातें ऐसी होती हैं जो सार्वभौमिक होती हैं.
जैसे आज किसी इंसान का कत्ल किया जाना किसी भी संस्कृति में स्वीकार नहीं किया जा सकता.
एक समय था जब नर-बलि या सती आदि पर बहस होती थी, पर आज ऐसी रुढ़ियों के समर्थन में कहने के लिए कोई खड़ा नहीं होगा. परस्पर नफ़रत के आधार पर सामाजिक सोच रखना आज मान्य नहीं हो सकता. निर्दोष लोगों के मानव अधिकारों के हनन को यह कहकर सही नहीं बतलाया जा सकता कि वे जिस समुदाय के हैं उन लोगों ने कहर ढाए
हैं, आदि.
संघ परिवार की विचारधारा में भारत महज वह देश नहीं जहाँ हम जन्मे पले, जहाँ की मिट्टी, हवा और पानी से हमें प्यार है, भारत तो वह देश है जहाँ एकमात्र हिंदू संस्कृति और हिंदू परंपराएँ थीं, हैं और रहेंगीं. एक तो इस तरह की एकांगी दृष्टि अपने आप में ग़लत है, दूसरी बात यह है कि अपनी सोच को ज़बर्दस्ती दूसरों पर थोपने के लिए गैरलोकतांत्रिक हथकंडे अपनाना और यूरोपी ढंग के उस
हिटलरी राष्ट्रवाद को अपना ध्येय मानना, जिससे यूरोप के लोग अब नफ़रत करते हैं, यह संघ परिवार की दिमागी नसों में घर कर चुका है. मोदी के नेतृत्व में वे इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए जुटे हुए हैं.
देशी और विश्व-स्तर के पूँजीवाद को तब तक इस बात से कोई दिक्कत नहीं कि पुरातनपंथी और मानवविरोधी ताकतें सत्ता पर काबिज हो सकती हैं, जब तक उसके सरगनाओं को खुली लूट की पूरी छूट है.
यूरोप के लोगों को अपनी ग़लतियों को समझने के लिए पिछली सदी में भयंकर तबाही और विनाश से गुजरना पड़ा. जो आज मोदी और संघ परिवार के समर्थन में हैं, देर सबेर वो अपनी ग़लती समझेंगे, पर तब तक देर हो चुकी होगी. अगली पीढ़ियाँ अचंभित होती रहेंगीं कि इतना कुछ उजागर होने के बावजूद भी उनके माता-पिता इस अँधेरे में कैसे फँस गए.
मानव नियति की इन विडंबनाओं से हमें स्वयं अपने अलावा कोई और
नहीं बचा सकता. इसलिए इस बार के संसदीय चुनाव पहले के सभी चुनावों से अधिक सोच-समझ की माँग करते हैं. फ़हमीदा की चेतावनी है - भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा/ फिर तुम लोग पहुँच जाओगे/ बस परलोक पहुँच जाओगे/ हम तो हैं पहले से वहाँ पर/ तुम भी समय निकालते रहना/ अब जिस नरक में जाओ वहाँ से/ चिट्ठी-विठ्ठी डालते रहना.
The clip of the poem by shaayra Fahmida Riaz at Apne Aap - tum bilkul hum jaise nikle