"वृद्ध पराशर स्मृति" को "पराशर स्मृति" के नाम से जाना जाता है, जो कि एक धर्मसंहिता है और विशेष रूप से कलियुग के लिए धर्म-नीति बताती है। यह स्मृति युगानुरूप धर्म की महत्ता पर बल देती है, जिसमें कलियुग के लिए दान को सबसे महत्वपूर्ण धर्म माना गया है, जैसा कि इस श्लोक से पता चलता है: "तपः परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते। द्वापरे यज्ञमित्यूचुर्दानमेकं कलौयुगे॥"।
मुख्य बिंदुकलियुग के लिए: यह स्मृति विशेष रूप से कलियुग के लिए है, जबकि अन्य स्मृतियाँ सत्ययुग, त्रेता और द्वापर के धर्मों के बारे में बताती हैं।
धार्मिक नियम: इसमें
आचार और
प्रायश्चित्त पर प्रमुख रूप से विचार किया गया है।
दान की महत्ता: कलियुग में लोगों की शारीरिक शक्ति कम होने के कारण, तपस्या, ज्ञान और यज्ञ जैसे धर्म कठिन हो जाते हैं, इसलिए कलियुग में दान को सबसे प्रमुख धर्म माना गया है।
अन्य विषय: इसमें
वानप्रस्थ और
संन्यास आश्रमों का विस्तृत वर्णन भी है, और ग्रंथ के अंत में योग पर जोर दिया गया है।
अहिंसा: पराशर मुनि अहिंसा को परम महत्व देते हैं और गोमाता को पूजनीय मानते हैं।
रचनाकार: इसके रचनाकार
ऋषि पराशर हैं, जो वेदव्यास के पिता थे।