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ज्ञेयराशिगताभ्यस्तं विभजेत् ज्ञानराशिना ॥ २४
Here's the etymology of each word in the original Sanskrit text: ChatGPT
इत्युपायसमुद्देशः (ityupāyasamuddēśaḥ):
भूयः (bhūyaḥ):
अपि (api):
अह्नः (ahnaḥ):
प्रकल्पयेत् (prakalpayet):
ज्ञेयराशिगता (jñeyarāśigatā):
अभ्यस्तं (abhyastam):
विभजेत् (vibhajet):
ज्ञानराशिना (jñānarāṣinā):
२४ (24):
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इत्युपायसमुद्देशोभूयोऽप्यह्नःप्रकल्पयेत्।
ज्ञेयराशिगतान्व्यस्तान्विभजेज्ज्ञानराशिना॥४२॥
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साधुवादः !!
अभ्यस्तम् = गुणितम् is a great help here.
The difference you have pointed out may be attributed to whether the shloka appears in ऋग्वेदाङ्गज्योतिष, यजुर्वेदाङ्गज्योतिष or अथर्ववेदाङ्गज्योतिष। This statement is supported by the following text from Hindi Wikipedia which is mostly taken from https://www.csu-lucknow.edu.in/e-books/rigjyotisham/p1.html .
वर्तमान समय में 'वेदाङ्ग ज्योतिष' के नाम से तीन ग्रन्थ माने जा सकते हैं, पहला- ऋग्वेदाङ्गज्योतिष, दूसरा- यजुर्वेदाङ्गज्योतिष और तीसरा- अथर्ववेदाङ्गज्योतिष।
इनमें ऋक् और यजुः ज्याेतिषाें के प्रणेता लगध
नामक आचार्य हैं। अथर्व ज्याेतिष के प्रणेता का पता नहीं है। सामवेद
ज्योतिष नाम का कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि सामवेद
और अथर्ववेद दोनों के लिए अथर्ववेद ज्योतिष नाम का ग्रन्थ ही है। ऋग्वेद
ज्योतिष और यजुर्वेद ज्योतिष में लगभग साठ-सत्तर प्रतिशत साम्य है। तीस से
चालीस प्रतिशत श्लोकों में भिन्नता है।
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Can I get a translation of the following भाष्य in English or in Hindi ?
इत्येव पूर्वोदितविधिना उपायसमुद्देशो वेधोपायोपदेश एव बोध्यः । वेधेन ज्ञातराशौ गतं प्राप्तं कमपि पदार्थ विज्ञाय ततो ज्ञेयराशौ तत्पदानयनार्थ गणको ज्ञानराशि सम्बन्धिगतेन पदार्थेनाभ्यस्तं गुणितं ज्ञेयराशि ज्ञानराशिना विभजेत् फलं ज्ञेयराशिसम्बधि तत्पदार्थमानं भवति । एवं ज्ञानराशिना भूयः पुनः पुनः सर्वान् सावनदिवसादीन् प्रकल्पयेदिति । अत्रोपपत्तिः । ज्ञेयराशिरिच्छारा शिस्ततस्त्रैराशिकेन वासना स्फुटा ॥ ४३ ॥
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साधुवादः !!
अभ्यस्तम् = गुणितम् is a great help here.
The difference you have pointed out may be attributed to whether the shloka appears in ऋग्वेदाङ्गज्योतिष, यजुर्वेदाङ्गज्योतिष or अथर्ववेदाङ्गज्योतिष। This statement is supported by the following text from Hindi Wikipedia which is mostly taken from https://www.csu-lucknow.edu.in/e-books/rigjyotisham/p1.html .
वर्तमान समय में 'वेदाङ्ग ज्योतिष' के नाम से तीन ग्रन्थ माने जा सकते हैं, पहला- ऋग्वेदाङ्गज्योतिष, दूसरा- यजुर्वेदाङ्गज्योतिष और तीसरा- अथर्ववेदाङ्गज्योतिष।
- (१) ऋग्वेद का ज्यौतिष शास्त्र - आर्चज्याेतिषम् : इसमें ३६ पद्य हैं। इसके रचना के काल के बारे में बहुत मतभेद है। एक विचार के अनुसार इसका काल १३५० ई पू माना जाता है। अतः यह संसार का ही सर्वप्राचीन ज्याेतिष ग्रन्थ माना जा सकता है। यह ज्योतिष का आधार ग्रन्थ है।
- (२) यजुर्वेद का ज्यौतिष शास्त्र – याजुषज्याेतिषम् : इसमें ४४ पद्य हैं।
- (३) अथर्ववेद ज्यौतिष शास्त्र - आथर्वणज्याेतिषम् : इसमें १६२ पद्य हैं।
इनमें ऋक् और यजुः ज्याेतिषाें के प्रणेता लगध नामक आचार्य हैं। अथर्व ज्याेतिष के प्रणेता का पता नहीं है। सामवेद ज्योतिष नाम का कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि सामवेद और अथर्ववेद दोनों के लिए अथर्ववेद ज्योतिष नाम का ग्रन्थ ही है। ऋग्वेद ज्योतिष और यजुर्वेद ज्योतिष में लगभग साठ-सत्तर प्रतिशत साम्य है। तीस से चालीस प्रतिशत श्लोकों में भिन्नता है।
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Can I get a translation of the following भाष्य in English or in Hindi ?
इत्येव पूर्वोदितविधिना उपायसमुद्देशो वेधोपायोपदेश एव बोध्यः । वेधेन ज्ञातराशौ गतं प्राप्तं कमपि पदार्थ विज्ञाय ततो ज्ञेयराशौ तत्पदानयनार्थ गणको ज्ञानराशि सम्बन्धिगतेन पदार्थेनाभ्यस्तं गुणितं ज्ञेयराशि ज्ञानराशिना विभजेत् फलं ज्ञेयराशिसम्बधि तत्पदार्थमानं भवति । एवं ज्ञानराशिना भूयः पुनः पुनः सर्वान् सावनदिवसादीन् प्रकल्पयेदिति । अत्रोपपत्तिः । ज्ञेयराशिरिच्छारा शिस्ततस्त्रैराशिकेन वासना स्फुटा ॥ ४३ ॥
On Wed, May 29, 2024 at 11:44 AM S. L. Abhyankar <sl.abh...@gmail.com> wrote:I get different versions of this verse.इत्युपायसमुद्देशोभूयोऽप्यह्नःप्रकल्पयेत्।
ज्ञेयराशिगतान्व्यस्तान्विभजेज्ज्ञानराशिना॥४२॥
As in the images below from <(संदर्भः - https://sa.wikisource.org/wiki/पृष्ठम्:Jyautisha_Vedangam.pdf/1 to 57) > अभ्यस्तम् = गुणितम्Actually in the pages below is the सुधाकरभाष्यम् by महामहोपाध्यायः सुधाकर-द्विवेदी-महोदयः on this verse.Cordially, S. L. Abhyankar
On Tue, 28 May 2024 at 20:16, Anunad Singh <anu...@gmail.com> wrote:
इत्येव पूर्वोदितविधिना उपायसमुद्देशो वेधोपायोपदेश एव बोध्यः । वेधेन ज्ञातराशौ गतं प्राप्तं कमपि पदार्थ विज्ञाय ततो ज्ञेयराशौ तत्पदानयनार्थ गणको ज्ञानराशि सम्बन्धिगतेन पदार्थेनाभ्यस्तं गुणितं ज्ञेयराशि ज्ञानराशिना विभजेत् फलं ज्ञेयराशिसम्बधि तत्पदार्थमानं भवति । एवं ज्ञानराशिना भूयः पुनः पुनः सर्वान् सावनदिवसादीन् प्रकल्पयेदिति । अत्रोपपत्तिः । ज्ञेयराशिरिच्छाराशिस्ततस्त्रैराशिकेन वासना स्फुटा ॥ ४३ ॥
इति एव पूर्व-उदितविधिना उपायसमुद्देश: वेध-उपाय-उपदेश: एव बोध्यः । वेधेन ज्ञातराशौ गतं प्राप्तं कम् अपि पदार्थम् विज्ञाय तत: ज्ञेयराशौ तत्-पद-अर्थ-आनयन-अर्थम् गणक: ज्ञानराशिसम्बन्धिगतेन पदार्थेन अभ्यस्तं गुणितं ज्ञेयराशिम् ज्ञानराशिना विभजेत् फलं ज्ञेयराशिसम्बधि तत्-पद-अर्थ-मानं भवति । एवं ज्ञानराशिना भूयः पुनः पुनः सर्वान् सावनदिवस-आदीन् प्रकल्पयेत् इति । अत्र उपपत्तिः । ज्ञेयराशि: इच्छाराशि: ततः त्रैराशिकेन वासना स्फुटा ॥ ४३ ॥
Now पूर्व-उदितविधिना (?) What is that पूर्व-उदितविधि: ?
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