लम्बे समय के बाद रोज़गार अपडेट्स को पुनः शुरू किया जा रहा है. यह मेलिंग लिस्ट नरेगा सम्बंधित जानकारी आदान-प्रदान करने का एक प्रयास है. अगर आपके पास नरेगा समबन्धित कोई ऐसी जानकारी है जो आप औरों के साथ बांटना चाहेंगे, तो उसे
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0.27 प्रतिशत हो गया. हालांकि 2016-17 में यह अनुपात 0.39 था, परन्तु यह भी बहुत अपर्याप्त था चूंकि वित्तीय वर्ष के अंत तक
का भुगतान लंबित था.
कानून में ही नरेगा के विकेन्द्रीकृत कार्यान्वयन की परिकल्पना की गई थी जिसके अनुसार हर राज्य की अपनी ‘रोज़गार गारंटी योजना’ होनी थी. परन्तु, बाद में नरेगा पर “महात्मा गांधी” का ठप्पा लगाकर राज्य-स्तरीय योजनाओं की जगह दिल्ली से चलने वाली एक राष्ट्रीय योजना लाई गई. दिल्ली से जो निरंतर निर्देश मिलते रहते हैं, उनसे अक्सर धरातल पर कई
होती हैं.
बड़े पैमाने में जॉब कार्डों को रद्द करना: देश भर में
93 लाख जॉब कार्ड रद्द किए गए हैं. रद्द जॉब कार्डों को मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा "
संदिग्ध" कहा गया है. मंत्रालय के एक अन्य
अधिकारी के अनुसार जिन जॉब कार्डों पर पिछले तीन वर्षों में एक दिन भी काम नहीं किया गया है, उनको रद्द किया जा रहा है. परन्तु, नरेगा कानून की अनुसूची II के अनुसार, “कोई भी कार्य कार्ड रद्द नहीं किया जा सकता यथा जहां इसकी अनुलिपि पाई जाती है या सम्पूर्ण गृहस्थी स्थायी रूप से ग्राम पंचायत बाहर किसी स्थान के लिए प्रवास कर चुकी हो या गाँव में न विद्यमान हो”. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 2017-18 के लिए निर्गत मनरेगा पर ऐनुअल मास्टर सर्कुलर के अनुसार जॉब कार्ड सूची में सब संशोधनों को सार्वजनिक करना है व ग्राम सभा / वार्ड सभा के समक्ष प्रस्तुत करना है. परन्तु,
झारखंड में अधिकतर मज़दूर जिनके जॉब कार्ड रद्द हुए हैं, उन्हें नरेगा काम की आवश्यकता है और उन्हें उनका जॉब कार्ड रद्द होने की जानकारी भी नहीं है. (
इस सत्यापन से पता कर सकते हैं कि किसी गाँव में जॉब कार्ड सही या गलत प्रकार से रद्द किये गए हैं.)
अनुचित टेक्नौलजी: नरेगा में कई टेक्नौलजियाँ अधिकारियों व न कि मज़दूरों की
सुविधा के लिए लाई जा रही हैं. इसका एक उदाहरण है
आधार. आधार के कारण अनगिनत मज़दूर अपने काम के अधिकार से वंचित हैं. गलत आधार नंबर की कम्प्यूटर में एंट्री व आधार नंबर का गलत बैंक से जुड़ाव के कारण कई मज़दूरों को उनकी मज़दूरी
नहीं मिल रही. नरेगा संपत्तियों की “
Geo-tagging” से मज़दूरों को शायद की कोई लाभ है.
MIS के साथ छेड़खानी: पिछले एक वर्ष में मंत्रालय ने नरेगा के लिए आवंटित सीमित राशि को बचाने के लिए कार्यक्रम के मैनेजमेंट इन्फौर्मेशन सिस्टम के साथ कई प्रकार की
छेड़खानी की है. 2016 के गर्मी के महीनों में जब नरेगा काम की मांग बहुत बढ़ गई थी, तब मंत्रालय ने MIS के साथ इस प्रकार छेड़खानी की कि कई महीनों तक सामाग्री का भुगतान नहीं हो पाया. दिसंबर 2016 में इस प्रकार का बदलाव किया कि जिन मज़दूरों की फ़ोटो MIS में नहीं चढ़ी थी, उनको काम आवंटित नहीं हो पा रहा था. पिछले वित्तीय वर्ष में MIS में बदलाव के कारण कई परिवार 100 दिन का काम पूरा नहीं कर पाए.
भुगतान में देरी की अधूरी गणना व मज़दूरों को मुआवज़ा न देना: MIS मज़दूरी भुगतान की पूरी गणना नहीं करता. वह केवल उन प्रक्रियाओं में देरी की गणना करता है जिनकी जिम्मेवारी राज्यों की है, और उनमें नहीं जिनकी जिम्मेवारी केंद्र सरकार, बैंक या डाकघरों की है. इस
अधूरी गणना के कारण विलम्ब से भुगतान होने के लिए मजदूरों को मिलने वाले मुआवज़े की भी अपूर्ण गणना होती है. जिस मुआवज़े की गणना होती भी है, वह भी आमतौर पर मज़दूरों को नहीं मिलता क्योंकि मंत्रालय ने कार्यक्रम पदाधिकारी को MIS द्वारा गणित मुआवज़े को अस्वीकार करने की शक्ति दी है, जिसका कोई औचित्य नहीं है. पिछले चार वर्षों में केवल 4 प्रतिशत मुआवज़ा ही स्वीकार हुआ है और उसके भी केवल 60 प्रतिशत का भुगतान हुआ है.
प्रभावी शिकायत निवारण की कमी: हालांकि नरेगा कानून में शिकायत निवारण के कई प्रावधान हैं, इनको केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा नज़रंदाज़ या कमज़ोर किया जा रहा है. 32 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में से
12 ने अभी तक शिकायत निवारण नियमावली नहीं बनाई है. हर ज़िले के लिए 2 लोकपाल नियुक्त हो सकते हैं, पर वर्तमान में औसातन देश के
हर तीन ज़िलों पर एक लोकपाल ही है.
नरेगा पर हाल में संघर्षनरेगा पर प्रेस वार्ता: नरेगा की समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करने के लिए 19 अप्रैल को दिल्ली में एक प्रेस वार्ता हुई थी.
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नरेगा पर बैठक: नरेगा की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए व संघर्ष की रूपरेखा बनाने के लिए 6 मई को दिल्ली में एक बैठक हुई थी जिसमें 10 राज्यों से लगभग 40 लोग आए थे. बैठक में यह
तय हुआ था कि अगले कुछ महीनों में राज्य-व्यापी कार्यक्रम होंगे और सितम्बर में ‘नरेगा संघर्ष मोर्चा’ के तहत दिल्ली में प्रदर्शन होगा. अगले वर्ष की शुरुआत में अन्य अभियानों के साथ मिलकर एक बड़ा प्रदर्शन करने का निर्णय भी लिया गया.