ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथाय नमः
Auṃ Hrīṃ ŚrīPārśvanāthāya Namaḥ
Jay Jinendra
उत्तम क्षमा
Uttama Kṣamā
जल-सम शीतलता नहीं
नहीं अग्नि-सम ताप
अनुभव में यह आता है
क्रोध से नित होता सन्ताप
मैंने ख़ूब किया है मान
किया बहुतों का अपमान
उसका इतना खेद है
नहीं वर्णन आसान
जब से जग में हूँ आया
छूटी नहीं मुझ से माया
इसी वजह से मैं अपना
शीश कभी न उठा पाया
यदि मेरे कुछ लोभ से
दुःखी हुए हों आप
तो मैं अपने हृदय से
करता पश्चात्ताप
इन चार कषायोंने मुझको
जकड़ रखा है जन्मों से
मुझे इन्होंने आज तक
मिलने न दिया कभी अपनों से
इसी लिये ओ प्रियवर मेरे
करता रहा भूल पर भूल
तथापि मुझे क्षमा कर देना
कदापि न रखना मन में शूल
~ मनीष मोदी
मिच्छा मि दुक्कडं
Micchā mi Dukkaḍaṃ