ROZ EK SHER : Kunvar Narayan

4 views
Skip to first unread message

Manish Modi

unread,
May 31, 2025, 10:39:24 AMMay 31
to ROZ EK SHER
अनाम पूर्वजों का साहस ~ कुँवर नारायण

कितना हँसोड़ रहा होगा
कितना हँसोड़ रहा होगा वह आदमी
जिसने एक ऊँट के साथ मज़ाक किया होगा
उसके मुँह में ज़ीरे का एक दाना रखकर।
सचमुच बड़ा फक्कड़ रहा होगा वह,
बड़ा ही मस्तमौला
जिसने छछूंदर के सिर पर
चमेली का तेल मले जाने की
मज़ेदार बात सोची होगी।

ज़रा कहावतों के जन्म के बारे में सोचें
किसने कहा होगा पहली बार —
"अधजल गगरी छलकत जाए,"
"आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।"
वे हमारे पूर्वज थे
जिन्हें कवि नहीं बनना था,
नहीं होना था उन्हें प्रसिद्ध,
इसलिए कहावतों में
उन्होंने अपना नाम नहीं जोड़ा।
वे ज़िन्दगी के कटु आलोचक रहे होंगे —
गुलमोहर की लाल हँसी हँसनेवाले,
समय को गेंद की तरह उछालनेवाले,
अपनी नींद और अपने आराम के बारे में
ख़ुद फ़ैसले लेनेवाले यारबाश लोग रहे होंगे वे।

उनमें से कोई तेज़-तर्रार भड़भूँजा
रहा होगा
जिसने पहली बार महसूस किया होगा
कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।
कोई उत्साही मल्लाह रहा होगा
जिसने निष्कर्ष निकाला —
"जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।"

क्या आप उन अनाम पूर्वजों के साहस की तपिश
महसूस कर सकते हैं?
ज़रा सोचो, उस दिन क्या हुआ होगा
जब उन्हीं में से किसी ने
एक ढोंगी की ओर उँगली उठाकर
कहा होगा —
"मुँह में राम, बगल में छुरी!"

उन अनाम पूर्वजों ने डरना तो शायद सीखा ही नहीं होगा।
जब मौत भी उनके सिरहाने
आ खड़ी होती होगी
तो वे उसे चिढ़ाते होंगे
रँगासियार कहकर।

अब नहीं दिखते वैसे मस्तमौला, फक्कड़ और साहसी लोग।
नहीं रहे ज़िन्दगी के कटु आलोचक
और इसीलिए दम तोड़ रही हैं कहावतें।

तुम्हें अपनी भाषा की कितनी कहावतें याद हैं?
यह समझदार लोगों का दौर है,
यह चालाक कवियों का दौर है,
यह प्रायोजित शब्दों का दौर है।

काश, इस दौर के बारे में
मैं एक सटीक कहावत कह पाता।

Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages