नागरी लिपि के सम्‌मुख उत्‌पन्‌न चुनौतियों का सामना करने की तैयारी

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Feb 8, 2019, 6:08:07 PM2/8/19
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An easy to write, teach and learn ligature free Hindi.


एक समय था जब महात्‌मा गांधी और विनोबा भावे जैसे स्‌वतंत्‌रता सेनानी राष्‌ट्‌रीय एकता की दृष्‌टि से राष्‌ट्‌रभाषा के रूप में हिंदी और राष्‌ट्‌रीय लिपि के रूप में देवनागरी लिपि को स्‌थापित करने के लिए प्‌रयासरत थे। यहाँ तक कि शहीदे आज़म भगत सिंह ने भी अपनी मातृभाषा पंजाबी के लिए गुरुमुखी के बजाए वैज्‌ञानिकता के चलते देवनागरी को अपनाने की बात कही थी। उनका प्‌रयास था कि देश के जिन हिस्‌सों में देनवागरी प्‌रचलित नहीं हैं वहाँ भी जन-जन तक देवनागरी लिपि पहुंचाई जाए। इसलिए महात्‌मा गांधी व विनोबा भावे द्‌वारा हिंदी के साथ-साथ देवनागरी लिपि के लिए अनेक संस्‌थाएँ खड़ी की थी।

लेकिन जिस प्‌रकार की नीतियाँ अपनाई गई उसके चलते परिणाम उद्‌देश्‌य के विपरीत आते रहे। आगे बढ़ने के बजाए हम पीछे की ओर बढ़ते गए। इसके कारणों की मिमांसा अलग से की जा सकती है।अब स्‌थित यह है कि हिंदी भाषी क्‌षेत्‌रों में भी देवनागरी की जगह रोमन लिपि लेती जा रही है । पहले जिन क्‌षेत्‌रों में देवनागरी लिपि प्‌रचलित नहीं थी, वहाँ देवनागरी लिपि को बढ़ाने की बात थी। अब देवनागरी लिपि को बचाने की स्‌थिति आ गई है। सिनेमा मेरा मतलब है कि हिंदी की खानेवाला और हिंदी की बजानेवाला हिंदी सिनेमा, जहाँ एक अर्‌से से कलाकार हिंदी बोलने में शर्‌म अनुभव करते थे, अब वे देवनागरी लिपि को अलविदा कह चुके हैं। हिंदी के पटकथा लेखक भले ही देवनागरी लिपि को पसंद करते हों, हिंदी सिनेमा के कलाकारों की अंग्‌रेजियत के चलते पटकथा , संवाद आदि रोमन लिपि में लिखते हैं। अगर हिंदी में बात करें और देवनागरी में पढ़ें तो अंग्‌रेजियत का मुलम्‌मा न उतर जाएगा।

इस समय देवनागरी लिपि के सामने गंभीर चुनौतियां है। अगर यूँ कहा जाए कि देवनागरी लिपि के अस्‌तित्‌व को खतरा उत्‌पन्‌न हो रहा है तो अनुचित न होगा। किसी भी भाषा की पत्‌र-पत्‌रिकाओं की अपनी भाषा को बढ़ाने की जिम्‌मेदारी होती है। अभिव्‌यक्‌ति के लिए नए शब्‌द, शैली, प्‌रयोग आदि के माध्‌यम से भाषा आगे बढ़ती है।लेकिन हिंदी में तो ऐसा लगता है कि पराजित भाव से हिंदी पत्‌रकारिता ने अंग्‌रेजी के साम्‌राज्‌यवाद के सामने घुटने टेक दिए हैं और उनके सिपाही बन कर चुन-चुन कर अपनी भाषा के जीते-जागते , चलते फिरते सशक्‌त शब्‌दों की पीठ में छुरा घोंप कर उसकी जगह अंग्‌रेजी शब्‌दों को स्‌थापित कर रहे हैं। यहाँ तक कि ये हिंदी के ये समाचार पत्‌र अब विश्‌व की सर्‌वाधिक वैज्‌ञानिक लिपि और अपनी भाषा की लिपि अर्‌थात देवनागरी लिपि के अपदस्‌थ करते हुए उसके स्‌थान पर रोमन लिपि को स्‌थापित करने में जुटे हैं। ऐसा भी कह सकते हैं कि अपनी पत्‌रकारिता की अपनी भाषा के ही सिपाही निर्‌ममता से अपनी लिपि को भी कुचलते जा रहे हैं। हो सकता है कि उनकी पीठ पर बैठे प्‌रबंधन के अंग्‌रेजीदां सिपहसालार उन्‌हें ऐसा करने को विवश कर रहे हैं।

जो भी हो अंग्‌रेजी माध्‌यम की सुनामी में एक के बाद एक भाषा के शब्‌द, मुहावरे , लोकोक्‌ति, प्‌रयुक्‌ति और उसकी लिपि बहती जा रही है। हालात तो ऐसे बनते जा रहे हैं कि हिंदी भाषी क्‌षेत्‌रों में भी हिंदी भाषियों के बच्‌चे देवनागरी लिपि को पढ़ने में कठिनाई महसूस करने लगे हैं। उनके लिए देवनागरी में लिखना तो और भी मुश्‌किल होता जा रहा है। और हाँ, इन हालात के लिए हम सब जो भले ही स्‌वयं को हिंदी सेवी कहते हों, हम कम जिम्‌मेवार नहीं, जो पत्‌रकार, साहित्‌यकार, लेखक, शिक्‌षक, प्‌रकाशक, राजभाषाकर्‌मी, अकादमियों के कर्‌णधार, कलाकार, विज्‌ञापन जगत के दृष्‌टा आदि बन कर किसी न किसी रुप में हिंदी को दुह रहे हैं। भारत को छोड़ कर ऐसा दुनिया में कहाँ होता है मुझे तो नहीं पता। तर्‌क भले ही जो भी दें, सच तो यह है कि जिस थाली में खा रहे हैं हम उसी में छेद बना रहे हैं।

इन खतरों और चुनौतियों से निपटने के लिए जिस प्‌रकार की सक्‌रियता और तैयारी की आवश्‌यकता है वह अभी दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रही। अगर सीमा पर दुश्‌मन आगे बढ़ रहा हो और हमारे सैनिक दुश्‌मन का मुकाबला करने के बजाए वहाँ देश-प्‌रेम के गीतों पर झूमने लगें, गीत. संगीत , कविता , कहानी सुरू कर दें तो क्‌या होगा ? भाषा के क्‌षेत्‌र में भाषा के हमारे सिपाही क्‌या कर रहे हैं ? यही तो कर रहे हैं। छोटे -छोटे गाँवों तक अंग्‌रेजी माध्‌यम के विद्‌यालयों का हमला हो चुका है । हर क्‌षेत्‌र में अंग्‌रेजी का साम्‌राज्‌य स्‌थापित होता जा रहा है और हम कहानी, कविता, कवि सम्‌मेलनों की चुटकले बाजी, हिंदी पखवाड़ों और हिंदी के नाम पर चलने वाले नाटक – नौटंकी में लगे हैं। इससे तो कुछ बचने वाला नहीं। जब हिंदी और देवनागरी लिपि न बचेंगी तो हिंदी का साहित्‌य, गीत-संगीत, संगीत-नाटक, आदि कैसे बचेगा ? जो हम रच रहे हैं उसे कौन पढ़ेगा?

आवश्‌यक है कि नागरी लिपि को आगे बढ़ाने के लिए बनी संस्‌थाओं सहित सभी भाषायी संस्‌थाएँ इसके लिए सुनियोजित ढंग से ऐसी योजनाएँ बनाए जिससे कि इन चुनौतियों का सामना किया जा सके। यह भी कि इस कार्‌य के लिए सक्‌रिय अन्‌य संस्‌थाओं का भी परस्‌पर सहयोग लेकर आगे ब़ढ़ा जाए। हम केवल याचक की मुद्‌रा में ही क्‌यों खड़े रहें। हिंदी के पत्‌र-पत्‌रिकाओं और चैनलों को भी झिंझोड़ा जाए। संविधान के अनुच्‌छेद 343 के संदर्‌भ में सरकार को भी ऐसे दिशा निर्‌देश जारी करने के लिए कहा जाए कि हिंदी के समाचार पत्‌र-पत्‌रिकाएं हिंदी के लिए देवनागरी लिपि का ही प्‌रयोग करें, रोमन लिपि का नहीं। संविधान के अनुच्‌छेद 351 में संघ को इस संबंध में निदेश दिए गए हैं। मैंने 11वें विश्‌व हिंदी सम्‌मेलन में यह सुझाव भी दिया था कि प्‌रेस-परिषद जैसी संस्‌थाओं के अंतर्‌गत मीडिया की भाषा को नियंत्‌रित करने के लिए एक नियामक संस्‌था गठित की जाए या ऐसी ही कोई अन्‌य विधिक व्‌यवस्‌था की जाए ताकि अपनी भाषाओं को अंग्‌रेजी व रोमन लिपि की सुनामी से बचाया जा सके।

सबसे बड़ा और जरूरी काम तो शिक्‌षा के क्‌षेत्‌र में किया जाना है जिसे हमने निजी क्‌षेत्‌र के हाथ में है, जहाँ भारतीयों को काला अंग्‌रेज बनाने और भारतीयता से दूर ले जाने के लिए कड़ी मेहनत की जाती है । अंग्‌रेजी के इन ठिकानों से मातृभाषा, राष्‌ट्‌रभाषा , देवनागरी लिपि वगैरह के फूल तो नहीं खिलने वाले । जो बो रहे हैं वही काट रहे हैं। भाषा और लिपि का चोली-दोमन का साथ है । शिक्‌षा जगत में इनके बीजारोपण से ही बात बनेगी और कोई उपाय नहीं। इस कार्‌य के लिए उत्‌सवधर्‌मिता के बजाए गांधी और विनोबा जैसी प्‌रतिबद्‌धता चाहिए।

हम से ज्‌यादा बड़े हिंदी-सेवी तो वे हैं जो प्‌रौद्‌योगिकी की रोटी खा कर हिंदी व भारतीय भाषा के लिए प्‌रौद्‌योगिकी विकास करते हुए इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में हिंदी की लिपि यानी नागरी लिपि को बचाने में महत्‌वपूर्‌ण भूमिका निभा रहे हैं। हिंदी व अन्‌य भारतीय भाषाओं के शिक्‌षअ के लिए पर्‌ौद्‌योगिकी विकसित कर रहे हैं । मशीनी अनुवाद पर कार्‌य कर रहे हैं। देश का काम हिंदी सहित देश की भाषाओं में हो सके इसके लिए विभिन्‌न कार्‌यों के लिए बनाई गई प्‌रणालियों में आवश्‌यक व्‌यवस्‌थाएँ कर रहे हैं। ऐसे प्‌रौद्‌योगिकीविदों को नमन।

यदि लिपि रूपी नींव खिसकी तो जर्‌जर होती जा रही भाषा की इमारत ढहते भी देर न लगेगी। देवनागरी लिपि के सामने उत्‌पन्‌न चुनोतियाँ गंभीर भी हैं और जटिल भी । समय रहते अब भी अगर हम न जागे तो बचाने को कुछ न होगा। आने वाला इतिहास हमसे सवाल तो पूछेगा कि विश्‌व की श्‌रेष्‌ठतम भाषा और लिपि को बचाने के बजाए आक्‌रमक विदेशी भाषा की दासता को स्‌वीकारने वाले वे कौन से भाषाई सिपाही थे, स्‌वार्‌थ सिद्‌धि या कायरता के चलते जिन्‌होंने अपनी भाषा -लिपि की दीवार को गिरने दिया। जिससे कारण इस देश की समृद्‌ध संस्‌कृति, साहित्‌य, ज्‌ञान-विज्‌ञान सब नष्‌ट हो गया।

डॉ मोतीलाल गुप्‌ता ‘आदित्‌य’
वैश्‌विक हिंदी सम्‌मेलन।


http://jayvijay.co/2019/01/10/%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%aa%e0%a4%bf-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%96-%e0%a4%89%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%aa/

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Feb 8, 2019, 7:22:09 PM2/8/19
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नागरी लीपी के सम्मुख उत्पन्न चुनौतीयॉ का सामना करने की तैयारी

एक समय था जब महात्मा गाॅधी और वीनोबा भावे जैसे स्वतन्त्रता सेनानी राष्ट्रीय एकता की दृष्टी से राष्ट्रभाषा के रुप मॅ हीन्दी और राष्ट्रीय लीपी के रुप मॅ देवनागरी लीपी को स्थापीत करने के लीए प्रयासरत थे.यहॉ तक की शहीदे आजम भगत सीन्ह ने भी अपनी मातृभाषा पन्जाबी के लीए गुरुमुखी के बजाए वैज्ञानीकता के चलते देवनागरी को अपनाने की बात कही थी.उनका प्रयास था की देश के जीन हीस्सॉ मॅ देनवागरी प्रचलीत नही है वहॉ भी जन-जन तक देवनागरी लीपी पहुन्चाई जाए.इसलीए महात्मा गाॅधी व वीनोबा भावे द्वारा हीन्दी के साथ-साथ देवनागरी लीपी के लीए अनेक सन्स्थाऍ खडी की थी.

लेकीन जीस प्रकार की नीतीयॉ अपनाई गई उसके चलते परीणाम उद्देश्य के वीपरीत आते रहे.आगे बढने के बजाए हम पीछे की ओर बढते गए.इसके कारणॉ की मीमाॅसा अलग से की जा सकती है.अब स्थीत यह है की हीन्दी भाषी क्षेत्रॉ मॅ भी देवनागरी की जगह रोमन लीपी लेती जा रही है .पहले जीन क्षेत्रॉ मॅ देवनागरी लीपी प्रचलीत नही थी, वहॉ देवनागरी लीपी को बढाने की बात थी.अब देवनागरी लीपी को बचाने की स्थीती आ गई है. सीनेमा मेरा मतलब है की हीन्दी की खानेवाला और हीन्दी की बजानेवाला हीन्दी सीनेमा, जहॉ एक अर्से से कलाकार हीन्दी बोलने मॅ शर्म अनुभव करते थे, अब वे देवनागरी लीपी को अलवीदा कह चुके है.हीन्दी के पटकथा लेखक भले ही देवनागरी लीपी को पसन्द करते हॉ, हीन्दी सीनेमा के कलाकारॉ की अन्ग्रेजीयत के चलते पटकथा , सन्वाद आदी रोमन लीपी मॅ लीखते है.अगर हीन्दी मॅ बात करॅ और देवनागरी मॅ पढॅ तो अन्ग्रेजीयत का मुलम्मा न उतर जाएगा.

इस समय देवनागरी लीपी के सामने गन्भीर चुनौतीयाॅ है.अगर युन् कहा जाए की देवनागरी लीपी के अस्तीत्व को खतरा उत्पन्न हो रहा है तो अनुचीत न होगा.कीसी भी भाषा की पत्र-पत्रीकाऑ की अपनी भाषा को बढाने की जीम्मेदारी होती है.अभीव्यक्ती के लीए नए शब्द, शैली, प्रयोग आदी के माध्यम से भाषा आगे बढती है.लेकीन हीन्दी मॅ तो ऐसा लगता है की पराजीत भाव से हीन्दी पत्रकारीता ने अन्ग्रेजी के साम्राज्यवाद के सामने घुटने टेक दीए है और उनके सीपाही बन कर चुन-चुन कर अपनी भाषा के जीते-जागते , चलते फीरते सशक्त शब्दॉ की पीठ मॅ छुरा घॉप कर उसकी जगह अन्ग्रेजी शब्दॉ को स्थापीत कर रहे है.यहॉ तक की ये हीन्दी के ये समाचार पत्र अब वीश्व की सर्वाधीक वैज्ञानीक लीपी और अपनी भाषा की लीपी अर्थात देवनागरी लीपी के अपदस्थ करते हुए उसके स्थान पर रोमन लीपी को स्थापीत करने मॅ जुटे है.ऐसा भी कह सकते है की अपनी पत्रकारीता की अपनी भाषा के ही सीपाही नीर्ममता से अपनी लीपी को भी कुचलते जा रहे है.हो सकता है की उनकी पीठ पर बैठे प्रबन्धन के अन्ग्रेजीदाॅ सीपहसालार उन्हॅ ऐसा करने को वीवश कर रहे है.

जो भी हो अन्ग्रेजी माध्यम की सुनामी मॅ एक के बाद एक भाषा के शब्द, मुहावरे , लोकोक्ती, प्रयुक्ती और उसकी लीपी बहती जा रही है.हालात तो ऐसे बनते जा रहे है की हीन्दी भाषी क्षेत्रॉ मॅ भी हीन्दी भाषीयॉ के बच्चे देवनागरी लीपी को पढने मॅ कठीनाई महसुस करने लगे है.उनके लीए देवनागरी मॅ लीखना तो और भी मुश्कील होता जा रहा है.और हॉ, इन हालात के लीए हम सब जो भले ही स्वयन् को हीन्दी सेवी कहते हॉ, हम कम जीम्मेवार नही, जो पत्रकार, साहीत्यकार, लेखक, शीक्षक, प्रकाशक, राजभाषाकर्मी, अकादमीयॉ के कर्णधार, कलाकार, वीज्ञापन जगत के दृष्टा आदी बन कर कीसी न कीसी रुप मॅ हीन्दी को दुह रहे है.भारत को छोड कर ऐसा दुनीया मॅ कहॉ होता है मुझे तो नही पता. तर्क भले ही जो भी दॅ, सच तो यह है की जीस थाली मॅ खा रहे है हम उसी मॅ छेद बना रहे है.

इन खतरॉ और चुनौतीयॉ से नीपटने के लीए जीस प्रकार की सक्रीयता और तैयारी की आवश्यकता है वह अभी दुर-दुर तक कही दीखाई नही दे रही.अगर सीमा पर दुश्मन आगे बढ रहा हो और हमारे सैनीक दुश्मन का मुकाबला करने के बजाए वहॉ देश-प्रेम के गीतॉ पर झुमने लगॅ, गीत. सन्गीत , कवीता , कहानी सुरु कर दॅ तो क्या होगा ? भाषा के क्षेत्र मॅ भाषा के हमारे सीपाही क्या कर रहे है ? यही तो कर रहे है.छोटे -छोटे गॉवॉ तक अन्ग्रेजी माध्यम के वीद्यालयॉ का हमला हो चुका है .हर क्षेत्र मॅ अन्ग्रेजी का साम्राज्य स्थापीत होता जा रहा है और हम कहानी, कवीता, कवी सम्मेलनॉ की चुटकले बाजी, हीन्दी पखवाडॉ और हीन्दी के नाम पर चलने वाले नाटक – नौटन्की मॅ लगे है.इससे तो कुछ बचने वाला नही. जब हीन्दी और देवनागरी लीपी न बचॅगी तो हीन्दी का साहीत्य, गीत-सन्गीत, सन्गीत-नाटक, आदी कैसे बचेगा ? जो हम रच रहे है उसे कौन पढेगा?

आवश्यक है की नागरी लीपी को आगे बढाने के लीए बनी सन्स्थाऑ सहीत सभी भाषायी सन्स्थाऍ इसके लीए सुनीयोजीत ढन्ग से ऐसी योजनाऍ बनाए जीससे की इन चुनौतीयॉ का सामना कीया जा सके.यह भी की इस कार्य के लीए सक्रीय अन्य सन्स्थाऑ का भी परस्पर सहयोग लेकर आगे बढा जाए.हम केवल याचक की मुद्रा मॅ ही क्यॉ खडे रहॅ. हीन्दी के पत्र-पत्रीकाऑ और चैनलॉ को भी झीन्झोडा जाए.सन्वीधान के अनुच्छेद 343 के सन्दर्भ मॅ सरकार को भी ऐसे दीशा नीर्देश जारी करने के लीए कहा जाए की हीन्दी के समाचार पत्र-पत्रीकाऍ हीन्दी के लीए देवनागरी लीपी का ही प्रयोग करॅ, रोमन लीपी का नही.सन्वीधान के अनुच्छेद 351 मॅ सन्घ को इस सन्बन्ध मॅ नीदेश दीए गए है.मैने 11वॅ वीश्व हीन्दी सम्मेलन मॅ यह सुझाव भी दीया था की प्रेस-परीषद जैसी सन्स्थाऑ के अन्तर्गत मीडीया की भाषा को नीयन्त्रीत करने के लीए एक नीयामक सन्स्था गठीत की जाए या ऐसी ही कोई अन्य वीधीक व्यवस्था की जाए ताकी अपनी भाषाऑ को अन्ग्रेजी व रोमन लीपी की सुनामी से बचाया जा सके.

सबसे बडा और जरुरी काम तो शीक्षा के क्षेत्र मॅ कीया जाना है जीसे हमने नीजी क्षेत्र के हाथ मॅ है, जहॉ भारतीयॉ को काला अन्ग्रेज बनाने और भारतीयता से दुर ले जाने के लीए कडी मेहनत की जाती है .अन्ग्रेजी के इन ठीकानॉ से मातृभाषा, राष्ट्रभाषा , देवनागरी लीपी वगैरह के फुल तो नही खीलने वाले .जो बो रहे है वही काट रहे है.भाषा और लीपी का चोली-दोमन का साथ है .शीक्षा जगत मॅ इनके बीजारोपण से ही बात बनेगी और कोई उपाय नही.इस कार्य के लीए उत्सवधर्मीता के बजाए गाॅधी और वीनोबा जैसी प्रतीबद्धता चाहीए.

हम से ज्यादा बडे हीन्दी-सेवी तो वे है जो प्रौद्योगीकी की रोटी खा कर हीन्दी व भारतीय भाषा के लीए प्रौद्योगीकी वीकास करते हुए इन्टरनेट और सोशल मीडीया के युग मॅ हीन्दी की लीपी यानी नागरी लीपी को बचाने मॅ महत्वपुर्ण भुमीका नीभा रहे है.हीन्दी व अन्य भारतीय भाषाऑ के शीक्षअ के लीए प्रौद्योगीकी वीकसीत कर रहे है .मशीनी अनुवाद पर कार्य कर रहे है.देश का काम हीन्दी सहीत देश की भाषाऑ मॅ हो सके इसके लीए वीभीन्न कार्यॉ के लीए बनाई गई प्रणालीयॉ मॅ आवश्यक व्यवस्थाऍ कर रहे है.ऐसे प्रौद्योगीकीवीदॉ को नमन.

यदी लीपी रुपी नीव खीसकी तो जर्जर होती जा रही भाषा की इमारत ढहते भी देर न लगेगी. देवनागरी लीपी के सामने उत्पन्न चुनोतीयॉ गन्भीर भी है और जटील भी .समय रहते अब भी अगर हम न जागे तो बचाने को कुछ न होगा.आने वाला इतीहास हमसे सवाल तो पुछेगा की वीश्व की श्रेष्ठतम भाषा और लीपी को बचाने के बजाए आक्रमक वीदेशी भाषा की दासता को स्वीकारने वाले वे कौन से भाषाई सीपाही थे, स्वार्थ सीद्धी या कायरता के चलते जीन्हॉने अपनी भाषा -लीपी की दीवार को गीरने दीया.जीससे कारण इस देश की समृद्ध सन्स्कृती, साहीत्य, ज्ञान-वीज्ञान सब नष्ट हो गया.

डॉ मोतीलाल गुप्ता ‘आदीत्य’

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Apr 8, 2019, 4:43:28 PM4/8/19
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As we all know that Vedic Sanskrit alphabet has been simplified to Devanāgarī and to shirorekhā free Gujanāgarī script for faster writings. Shirorekhā also limits new fonts, causes visual disruption, requires more pen strokes, reduces writing speed. Most world languages have simplified their alphabets as needed for proper writings. If Hindi can be learned in a complex Urdu script with more Persian words then why not in shirorekhā free regional scripts via transliteration? Hindi can be Indianized with more regional languages words. 

નાગરી લિપિ કે સમ્મુખ ઉત્પન્ન ચુનૌતિયોં કા સામના કરને કી તૈયારી

એક સમય થા જબ મહાત્મા ગાંધી ઔર વિનોબા ભાવે જૈસે સ્વતંત્રતા સેનાની રાષ્ટ્રીય એકતા કી દૃષ્ટિ સે રાષ્ટ્રભાષા કે રૂપ મેં હિંદી ઔર રાષ્ટ્રીય લિપિ કે રૂપ મેં દેવનાગરી લિપિ કો સ્થાપિત કરને કે લિએ પ્રયાસરત થે. યહાઁ તક કિ શહીદે આજ઼મ ભગત સિંહ ને ભી અપની માતૃભાષા પંજાબી કે લિએ ગુરુમુખી કે બજાએ વૈજ્ઞાનિકતા કે ચલતે દેવનાગરી કો અપનાને કી બાત કહી થી. ઉનકા પ્રયાસ થા કિ દેશ કે જિન હિસ્સોં મેં દેનવાગરી પ્રચલિત નહીં હૈં વહાઁ ભી જન-જન તક દેવનાગરી લિપિ પહુંચાઈ જાએ. ઇસલિએ મહાત્મા ગાંધી વ વિનોબા ભાવે દ્વારા હિંદી કે સાથ-સાથ દેવનાગરી લિપિ કે લિએ અનેક સંસ્થાએઁ ખડ઼ી કી થી.

લેકિન જિસ પ્રકાર કી નીતિયાઁ અપનાઈ ગઈ ઉસકે ચલતે પરિણામ ઉદ્દેશ્ય કે વિપરીત આતે રહે. આગે બઢ઼ને કે બજાએ હમ પીછે કી ઓર બઢ઼તે ગએ. ઇસકે કારણોં કી મિમાંસા અલગ સે કી જા સકતી હૈ.અબ સ્થિત યહ હૈ કિ હિંદી ભાષી ક્ષેત્રોં મેં ભી દેવનાગરી કી જગહ રોમન લિપિ લેતી જા રહી હૈ . પહલે જિન ક્ષેત્રોં મેં દેવનાગરી લિપિ પ્રચલિત નહીં થી, વહાઁ દેવનાગરી લિપિ કો બઢ઼ાને કી બાત થી. અબ દેવનાગરી લિપિ કો બચાને કી સ્થિતિ આ ગઈ હૈ. સિનેમા મેરા મતલબ હૈ કિ હિંદી કી ખાનેવાલા ઔર હિંદી કી બજાનેવાલા હિંદી સિનેમા, જહાઁ એક અર્સે સે કલાકાર હિંદી બોલને મેં શર્મ અનુભવ કરતે થે, અબ વે દેવનાગરી લિપિ કો અલવિદા કહ ચુકે હૈં. હિંદી કે પટકથા લેખક ભલે હી દેવનાગરી લિપિ કો પસંદ કરતે હોં, હિંદી સિનેમા કે કલાકારોં કી અંગ્રેજિયત કે ચલતે પટકથા , સંવાદ આદિ રોમન લિપિ મેં લિખતે હૈં. અગર હિંદી મેં બાત કરેં ઔર દેવનાગરી મેં પઢ઼ેં તો અંગ્રેજિયત કા મુલમ્મા ન ઉતર જાએગા.

ઇસ સમય દેવનાગરી લિપિ કે સામને ગંભીર ચુનૌતિયાં હૈ. અગર યૂઁ કહા જાએ કિ દેવનાગરી લિપિ કે અસ્તિત્વ કો ખતરા ઉત્પન્ન હો રહા હૈ તો અનુચિત ન હોગા. કિસી ભી ભાષા કી પત્ર-પત્રિકાઓં કી અપની ભાષા કો બઢ઼ાને કી જિમ્મેદારી હોતી હૈ. અભિવ્યક્તિ કે લિએ નએ શબ્દ, શૈલી, પ્રયોગ આદિ કે માધ્યમ સે ભાષા આગે બઢ઼તી હૈ.લેકિન હિંદી મેં તો ઐસા લગતા હૈ કિ પરાજિત ભાવ સે હિંદી પત્રકારિતા ને અંગ્રેજી કે સામ્રાજ્યવાદ કે સામને ઘુટને ટેક દિએ હૈં ઔર ઉનકે સિપાહી બન કર ચુન-ચુન કર અપની ભાષા કે જીતે-જાગતે , ચલતે ફિરતે સશક્ત શબ્દોં કી પીઠ મેં છુરા ઘોંપ કર ઉસકી જગહ અંગ્રેજી શબ્દોં કો સ્થાપિત કર રહે હૈં. યહાઁ તક કિ યે હિંદી કે યે સમાચાર પત્ર અબ વિશ્વ કી સર્વાધિક વૈજ્ઞાનિક લિપિ ઔર અપની ભાષા કી લિપિ અર્થાત દેવનાગરી લિપિ કે અપદસ્થ કરતે હુએ ઉસકે સ્થાન પર રોમન લિપિ કો સ્થાપિત કરને મેં જુટે હૈં. ઐસા ભી કહ સકતે હૈં કિ અપની પત્રકારિતા કી અપની ભાષા કે હી સિપાહી નિર્મમતા સે અપની લિપિ કો ભી કુચલતે જા રહે હૈં. હો સકતા હૈ કિ ઉનકી પીઠ પર બૈઠે પ્રબંધન કે અંગ્રેજીદાં સિપહસાલાર ઉન્હેં ઐસા કરને કો વિવશ કર રહે હૈં.

જો ભી હો અંગ્રેજી માધ્યમ કી સુનામી મેં એક કે બાદ એક ભાષા કે શબ્દ, મુહાવરે , લોકોક્તિ, પ્રયુક્તિ ઔર ઉસકી લિપિ બહતી જા રહી હૈ. હાલાત તો ઐસે બનતે જા રહે હૈં કિ હિંદી ભાષી ક્ષેત્રોં મેં ભી હિંદી ભાષિયોં કે બચ્ચે દેવનાગરી લિપિ કો પઢ઼ને મેં કઠિનાઈ મહસૂસ કરને લગે હૈં. ઉનકે લિએ દેવનાગરી મેં લિખના તો ઔર ભી મુશ્કિલ હોતા જા રહા હૈ. ઔર હાઁ, ઇન હાલાત કે લિએ હમ સબ જો ભલે હી સ્વયં કો હિંદી સેવી કહતે હોં, હમ કમ જિમ્મેવાર નહીં, જો પત્રકાર, સાહિત્યકાર, લેખક, શિક્ષક, પ્રકાશક, રાજભાષાકર્મી, અકાદમિયોં કે કર્ણધાર, કલાકાર, વિજ્ઞાપન જગત કે દૃષ્ટા આદિ બન કર કિસી ન કિસી રુપ મેં હિંદી કો દુહ રહે હૈં. ભારત કો છોડ઼ કર ઐસા દુનિયા મેં કહાઁ હોતા હૈ મુઝે તો નહીં પતા. તર્ક ભલે હી જો ભી દેં, સચ તો યહ હૈ કિ જિસ થાલી મેં ખા રહે હૈં હમ ઉસી મેં છેદ બના રહે હૈં.

ઇન ખતરોં ઔર ચુનૌતિયોં સે નિપટને કે લિએ જિસ પ્રકાર કી સક્રિયતા ઔર તૈયારી કી આવશ્યકતા હૈ વહ અભી દૂર-દૂર તક કહીં દિખાઈ નહીં દે રહી. અગર સીમા પર દુશ્મન આગે બઢ઼ રહા હો ઔર હમારે સૈનિક દુશ્મન કા મુકાબલા કરને કે બજાએ વહાઁ દેશ-પ્રેમ કે ગીતોં પર ઝૂમને લગેં, ગીત. સંગીત , કવિતા , કહાની સુરૂ કર દેં તો ક્યા હોગા ? ભાષા કે ક્ષેત્ર મેં ભાષા કે હમારે સિપાહી ક્યા કર રહે હૈં ? યહી તો કર રહે હૈં. છોટે -છોટે ગાઁવોં તક અંગ્રેજી માધ્યમ કે વિદ્યાલયોં કા હમલા હો ચુકા હૈ . હર ક્ષેત્ર મેં અંગ્રેજી કા સામ્રાજ્ય સ્થાપિત હોતા જા રહા હૈ ઔર હમ કહાની, કવિતા, કવિ સમ્મેલનોં કી ચુટકલે બાજી, હિંદી પખવાડ઼ોં ઔર હિંદી કે નામ પર ચલને વાલે નાટક – નૌટંકી મેં લગે હૈં. ઇસસે તો કુછ બચને વાલા નહીં. જબ હિંદી ઔર દેવનાગરી લિપિ ન બચેંગી તો હિંદી કા સાહિત્ય, ગીત-સંગીત, સંગીત-નાટક, આદિ કૈસે બચેગા ? જો હમ રચ રહે હૈં ઉસે કૌન પઢ઼ેગા?

આવશ્યક હૈ કિ નાગરી લિપિ કો આગે બઢ઼ાને કે લિએ બની સંસ્થાઓં સહિત સભી ભાષાયી સંસ્થાએઁ ઇસકે લિએ સુનિયોજિત ઢંગ સે ઐસી યોજનાએઁ બનાએ જિસસે કિ ઇન ચુનૌતિયોં કા સામના કિયા જા સકે. યહ ભી કિ ઇસ કાર્ય કે લિએ સક્રિય અન્ય સંસ્થાઓં કા ભી પરસ્પર સહયોગ લેકર આગે બ઼ઢ઼ા જાએ. હમ કેવલ યાચક કી મુદ્રા મેં હી ક્યોં ખડ઼ે રહેં. હિંદી કે પત્ર-પત્રિકાઓં ઔર ચૈનલોં કો ભી ઝિંઝોડ઼ા જાએ. સંવિધાન કે અનુચ્છેદ 343 કે સંદર્ભ મેં સરકાર કો ભી ઐસે દિશા નિર્દેશ જારી કરને કે લિએ કહા જાએ કિ હિંદી કે સમાચાર પત્ર-પત્રિકાએં હિંદી કે લિએ દેવનાગરી લિપિ કા હી પ્રયોગ કરેં, રોમન લિપિ કા નહીં. સંવિધાન કે અનુચ્છેદ 351 મેં સંઘ કો ઇસ સંબંધ મેં નિદેશ દિએ ગએ હૈં. મૈંને 11વેં વિશ્વ હિંદી સમ્મેલન મેં યહ સુઝાવ ભી દિયા થા કિ પ્રેસ-પરિષદ જૈસી સંસ્થાઓં કે અંતર્ગત મીડિયા કી ભાષા કો નિયંત્રિત કરને કે લિએ એક નિયામક સંસ્થા ગઠિત કી જાએ યા ઐસી હી કોઈ અન્ય વિધિક વ્યવસ્થા કી જાએ તાકિ અપની ભાષાઓં કો અંગ્રેજી વ રોમન લિપિ કી સુનામી સે બચાયા જા સકે.

સબસે બડ઼ા ઔર જરૂરી કામ તો શિક્ષા કે ક્ષેત્ર મેં કિયા જાના હૈ જિસે હમને નિજી ક્ષેત્ર કે હાથ મેં હૈ, જહાઁ ભારતીયોં કો કાલા અંગ્રેજ બનાને ઔર ભારતીયતા સે દૂર લે જાને કે લિએ કડ઼ી મેહનત કી જાતી હૈ . અંગ્રેજી કે ઇન ઠિકાનોં સે માતૃભાષા, રાષ્ટ્રભાષા , દેવનાગરી લિપિ વગૈરહ કે ફૂલ તો નહીં ખિલને વાલે . જો બો રહે હૈં વહી કાટ રહે હૈં. ભાષા ઔર લિપિ કા ચોલી-દોમન કા સાથ હૈ . શિક્ષા જગત મેં ઇનકે બીજારોપણ સે હી બાત બનેગી ઔર કોઈ ઉપાય નહીં. ઇસ કાર્ય કે લિએ ઉત્સવધર્મિતા કે બજાએ ગાંધી ઔર વિનોબા જૈસી પ્રતિબદ્ધતા ચાહિએ.

હમ સે જ્યાદા બડ઼ે હિંદી-સેવી તો વે હૈં જો પ્રૌદ્યોગિકી કી રોટી ખા કર હિંદી વ ભારતીય ભાષા કે લિએ પ્રૌદ્યોગિકી વિકાસ કરતે હુએ ઇંટરનેટ ઔર સોશલ મીડિયા કે યુગ મેં હિંદી કી લિપિ યાની નાગરી લિપિ કો બચાને મેં મહત્વપૂર્ણ ભૂમિકા નિભા રહે હૈં. હિંદી વ અન્ય ભારતીય ભાષાઓં કે શિક્ષઅ કે લિએ પર્ૌદ્યોગિકી વિકસિત કર રહે હૈં . મશીની અનુવાદ પર કાર્ય કર રહે હૈં. દેશ કા કામ હિંદી સહિત દેશ કી ભાષાઓં મેં હો સકે ઇસકે લિએ વિભિન્ન કાર્યોં કે લિએ બનાઈ ગઈ પ્રણાલિયોં મેં આવશ્યક વ્યવસ્થાએઁ કર રહે હૈં. ઐસે પ્રૌદ્યોગિકીવિદોં કો નમન.

યદિ લિપિ રૂપી નીંવ ખિસકી તો જર્જર હોતી જા રહી ભાષા કી ઇમારત ઢહતે ભી દેર ન લગેગી. દેવનાગરી લિપિ કે સામને ઉત્પન્ન ચુનોતિયાઁ ગંભીર ભી હૈં ઔર જટિલ ભી . સમય રહતે અબ ભી અગર હમ ન જાગે તો બચાને કો કુછ ન હોગા. આને વાલા ઇતિહાસ હમસે સવાલ તો પૂછેગા કિ વિશ્વ કી શ્રેષ્ઠતમ ભાષા ઔર લિપિ કો બચાને કે બજાએ આક્રમક વિદેશી ભાષા કી દાસતા કો સ્વીકારને વાલે વે કૌન સે ભાષાઈ સિપાહી થે, સ્વાર્થ સિદ્ધિ યા કાયરતા કે ચલતે જિન્હોંને અપની ભાષા -લિપિ કી દીવાર કો ગિરને દિયા. જિસસે કારણ ઇસ દેશ કી સમૃદ્ધ સંસ્કૃતિ, સાહિત્ય, જ્ઞાન-વિજ્ઞાન સબ નષ્ટ હો ગયા.

ડૉ મોતીલાલ ગુપ્તા ‘આદિત્ય’
વૈશ્વિક હિંદી સમ્મેલન.

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Eka samaya thā jaba Mahātmā Gā̇dhī aura Vinobā bhāve jaise svatȧtratā senānī rāṣṭrīya ekatā kī dṛṣṭi se rāṣṭrabhāṣā ke rūpa mė  Hïdī aura rāṣṭrīya lipi ke rūpa mė  devanāgarī lipi ko sthāpita karane ke lie prayāsarata the. Yahā̐ taka ki shahīde āj̣ama Bhagata sïha ne bhī apanī mātṛbhāṣā Pȧjābī ke lie Gurumukhī ke bajāe vaijñānikatā ke chalate Devanāgarī ko apanāne kī bāta kahī thī. Unakā prayāsa thā ki desha ke jina hissȯ  mė  Denavāgarī prachalita nahī̇  haï  vahā̐ bhī jana-jana taka Devanāgarī lipi pahu̇chāī jāe. Isalie Mahātmā Gā̇dhī va Vinobā Bhāve dvārā Hïdī ke sātha-sātha Devanāgarī lipi ke lie aneka sȧsthāe̐  khad̤ī kī thī.

Lekina jisa prakāra kī nītiyā̐ apanāī gaī usake chalate pariṇāma uddeshya ke viparīta āte rahe. Āge bad̤h ane ke bajāe hama pīchhe kī ora bad̤h ate gae. Isake kāraṇȯ  kī mimā̇sā alaga se kī jā sakatī hai.Aba sthita yaha hai ki Hïdī bhāṣī kṣetrȯ  mė  bhī Devanāgarī kī jagaha Romana lipi letī jā rahī hai . Pahale jina kṣetrȯ  mė  Devanāgarī lipi prachalita nahī̇  thī, vahā̐ Devanāgarī lipi ko bad̤h āne kī bāta thī. Aba Devanāgarī lipi ko bachāne kī sthiti ā gaī hai. Sinemā merā matalaba hai ki Hïdī kī khānevālā aura Hïdī kī bajānevālā Hïdī sinemā, jahā̐ eka arse se kalākāra Hïdī bolane mė  sharma anubhava karate the, aba ve Devanāgarī lipi ko alavidā kaha chuke haï . Hïdī ke paṭakathā lekhaka bhale hī Devanāgarī lipi ko pasȧ da karate hȯ , Hïdī sinemā ke kalākārȯ  kī Ågrejiyata ke chalate paṭakathā , sȧvāda ādi Romana lipi mė  likhate haï . Agara Hïdī mė  bāta karė  aura Devanāgarī mė  pad̤hė  to Ågrejiyata kā mulammā na utara jāegā.

Isa samaya Devanāgarī lipi ke sāmane gȧbhīra chunautiyā̇  hai. Agara yū̐  kahā jāe ki Devanāgarī lipi ke astitva ko khatarā utpanna ho rahā hai to anuchita na hogā. Kisī bhī bhāṣā kī patra-patrikāȯ  kī apanī bhāṣā ko bad̤hāne kī jimmedārī hotī hai. Abhivyakti ke lie nae shabda, shailī, prayoga ādi ke mādhyama se bhāṣā āge bad̤h atī hai.Lekina Hïdī mė  to aisā lagatā hai ki parājita bhāva se Hïdī patrakāritā ne Ågrejī ke sāmrājyavāda ke sāmane ghuṭane ṭeka die haï  aura unake sipāhī bana kara chuna-chuna kara apanī bhāṣā ke jīte-jāgate , chalate phirate sashakta shabdȯ  kī pīṭha mė  chhurā ghȯpa kara usakī jagaha Ågrejī shabdȯ  ko sthāpita kara rahe haï . Yahā̐ taka ki ye hï dī ke ye samāchāra patra aba vishva kī sarvādhika vaijñānika lipi aura apanī bhāṣā kī lipi arthāta Devanāgarī lipi ke apadastha karate hue usake sthāna para Romana lipi ko sthāpita karane mė  juṭe haï . Aisā bhī kaha sakate haï  ki apanī patrakāritā kī apanī bhāṣā ke hī sipāhī nirmamatā se apanī lipi ko bhī kuchalate jā rahe haï . Ho sakatā hai ki unakī pīṭha para baiṭhe prabȧ dhana ke Ågrejīdā̇  sipahasālāra unhė  aisā karane ko vivasha kara rahe haï .

Jo bhī ho Ågrejī mādhyama kī sunāmī mė  eka ke bāda eka bhāṣā ke shabda, muhāvare , lokokti, prayukti aura usakī lipi bahatī jā rahī hai. Hālāta to aise banate jā rahe haï  ki Hïdī bhāṣī kṣetrȯ  mė  bhī Hïdī bhāṣiyȯ  ke bachche Devanāgarī lipi ko pad̤h ane mė  kaṭhināī mahasūsa karane lage haï . Unake lie Devanāgarī mė  likhanā to aura bhī mushkila hotā jā rahā hai. Aura hā̐, ina hālāta ke lie hama saba jo bhale hī svayȧ  ko Hïdī sevī kahate hȯ , hama kama jimmevāra nahī̇ , jo patrakāra, sāhityakāra, lekhaka, shikṣaka, prakāshaka, rājabhāṣākarmī, akādamiyȯ  ke karṇadhāra, kalākāra, vijñāpana jagata ke dṛṣṭā ādi bana kara kisī na kisī rupa mė  Hïdī ko duha rahe haï . Bhārata ko chhod̤ a kara aisā duniyā mė  kahā̐ hotā hai mujhe to nahī̇  patā. Tarka bhale hī jo bhī dė , sacha to yaha hai ki jisa thālī mė  khā rahe haï  hama usī mė  chheda banā rahe haï .

Ina khatarȯ  aura chunautiyȯ  se nipaṭane ke lie jisa prakāra kī sakriyatā aura taiyārī kī āvashyakatā hai vaha abhī dūra-dūra taka kahī̇  dikhāī nahī̇  de rahī. Agara sīmā para dushmana āge bad̤ha rahā ho aura hamāre sainika dushmana kā mukābalā karane ke bajāe vahā̐ desha-prema ke gītȯ  para jhūmane lagė , gīta. Sȧgīta , kavitā , kahānī surū kara dė  to kyā hogā ? Bhāṣā ke kṣetra mė  bhāṣā ke hamāre sipāhī kyā kara rahe haï  ? Yahī to kara rahe haï . Chhoṭe -chhoṭe gā̐vȯ  taka Ågrejī mādhyama ke vidyālayȯ  kā hamalā ho chukā hai . Hara kṣetra mė  Ågrejī kā sāmrājya sthāpita hotā jā rahā hai aura hama kahānī, kavitā, kavi sammelanȯ  kī chuṭakale bājī, Hïdī pakhavād̤ȯ  aura Hïdī ke nāma para chalane vāle nāṭaka – nauṭȧ kī mė  lage haï . Isase to kuchha bachane vālā nahī̇ . Jaba hï dī aura Devanāgarī lipi na bachė gī to Hïdī kā sāhitya, gīta-sȧgīta, sȧgīta-nāṭaka, ādi kaise bachegā ? Jo hama racha rahe haï  use kauna pad̤h egā?

Āvashyaka hai ki Nāgarī lipi ko āge bad̤hāne ke lie banī sȧsthāȯ  sahita sabhī bhāṣāyī sȧ sthāe̐  isake lie suniyojita ḍhȧga se aisī yojanāe̐  banāe jisase ki ina chunautiyȯ  kā sāmanā kiyā jā sake. Yaha bhī ki isa kārya ke lie sakriya anya sȧsthāȯ  kā bhī paraspara sahayoga lekara āge b̈ad̤hā jāe. Hama kevala yāchaka kī mudrā mė  hī kyȯ  khad̤e rahė . Hïdī ke patra-patrikāȯ  aura chainalȯ  ko bhī jhïjhod̤ā jāe. Sȧvidhāna ke anuchchheda 343 ke sȧ darbha mė  sarakāra ko bhī aise dishā nirdesha jārī karane ke lie kahā jāe ki Hïdī ke samāchāra patra-patrikāė  Hïdī ke lie Devanāgarī lipi kā hī prayoga karė , Romana lipi kā nahī̇ . Sȧvidhāna ke anuchchheda 351 mė  sȧgha ko isa sȧbȧdha mė  nidesha die gae haï . Maï ne 11vė  Vishva Hïdī sammelana mė  yaha sujhāva bhī diyā thā ki presa-pariṣada jaisī sȧsthāȯ  ke ȧtargata mīḍiyā kī bhāṣā ko niyȧtrita karane ke lie eka niyāmaka sȧsthā gaṭhita kī jāe yā aisī hī koī anya vidhika vyavasthā kī jāe tāki apanī bhāṣāȯ  ko Ågrejī va Romana lipi kī sunāmī se bachāyā jā sake.

Sabase bad̤ā aura jarūrī kāma to shikṣā ke kṣetra mė  kiyā jānā hai jise hamane nijī kṣetra ke hātha mė  hai, jahā̐ bhāratīyȯ  ko kālā Ågreja banāne aura bhāratīyatā se dūra le jāne ke lie kad̤ī mehanata kī jātī hai . Ȧgrejī ke ina ṭhikānȯ  se mātṛbhāṣā, rāṣṭrabhāṣā , Devanāgarī lipi vagairaha ke phūla to nahī̇  khilane vāle . Jo bo rahe haï  vahī kāṭa rahe haï . Bhāṣā aura lipi kā cholī-domana kā sātha hai . Shikṣā jagata mė  inake bījāropaṇa se hī bāta banegī aura koī upāya nahī̇ . Isa kārya ke lie utsavadharmitā ke bajāe Gā̇dhī aura Vinobā jaisī pratibaddhatā chāhie.

Hama se jyādā bad̤e Hïdī-sevī to ve haï  jo praudyogikī kī roṭī khā kara Hïdī va bhāratīya bhāṣā ke lie praudyogikī vikāsa karate hue ïṭaraneṭa aura soshala mīḍiyā ke yuga mė  Hïdī kī lipi yānī nāgarī lipi ko bachāne mė  mahatvapūrṇa bhūmikā nibhā rahe haï . Hïdī va anya bhāratīya bhāṣāȯ  ke shikṣaa ke lie par_audyogikī vikasita kara rahe haï  . Mashīnī anuvāda para kārya kara rahe haï . Desha kā kāma Hïdī sahita desha kī bhāṣāȯ  mė  ho sake isake lie vibhinna kāryȯ  ke lie banāī gaī praṇāliyȯ  mė  āvashyaka vyavasthāe̐  kara rahe haï . Aise praudyogikīvidȯ  ko namana.

Yadi lipi rūpī nī̇va khisakī to jarjara hotī jā rahī bhāṣā kī imārata ḍhahate bhī dera na lagegī. Devanāgarī lipi ke sāmane utpanna chunotiyā̐ gȧbhīra bhī haï  aura jaṭila bhī . Samaya rahate aba bhī agara hama na jāge to bachāne ko kuchha na hogā. Āne vālā itihāsa hamase savāla to pūchhegā ki vishva kī shreṣṭhatama bhāṣā aura lipi ko bachāne ke bajāe ākramaka videshī bhāṣā kī dāsatā ko svīkārane vāle ve kauna se bhāṣāī sipāhī the, svārtha siddhi yā kāyaratā ke chalate jinhȯne apanī bhāṣā -lipi kī dīvāra ko girane diyā. Jisase kāraṇa isa desha kī samṛddha sȧskṛti, sāhitya, jñāna-vijñāna saba naṣṭa ho gayā.

Ḍŏ  Motīlāla Guptā ‘Āditya’
Vaishvika Hïdī Sammelana.

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Apr 8, 2019, 8:00:38 PM4/8/19
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(The Schwa (Ə/a) sound at the end of  each word is deleted in Hindi for proper pronunciation of a  word. 
Here are some mispronounced Sanskrit words.  āsana, yoga, chakra, hātha, shāstra, ānaṃda, gaṇesha, āyurveda,saṃskṛta

Ek samay thā jab Mahātmā Gā̇dhī aur Vinobā bhāve jaise svatȧtratā senānī rāṣṭrīy ekatā kī dṛṣṭi se rāṣṭrabhāṣā ke rūp mė  Hïdī aur rāṣṭrīy lipi ke rūp mė  Devanāgarī lipi ko sthāpit karane ke lie prayāsarat the. Yahā̐ tak ki shahīde āj̣am Bhagat sïh ne bhī apanī mātṛbhāṣā Pȧjābī ke lie Gurumukhī ke bajāe vaijñānikatā ke chalate Devanāgarī ko apanāne kī bāt kahī thī. Unakā prayās thā ki desh ke jin hissȯ  mė  Denavāgarī prachalit nahī̇  haï  vahā̐ bhī jan-jan tak Devanāgarī lipi pahu̇chāī jāe. Isalie Mahātmā Gā̇dhī v Vinobā Bhāve dvārā Hïdī ke sāth-sāth Devanāgarī lipi ke lie anek sȧsthāe̐  khad̤ī kī thī.

Lekin jis prakār kī nītiyā̐ apanāī gaī usake chalate pariṇām uddeshy ke viparīt āte rahe. Āge bad̤h ane ke bajāe ham pīchhe kī or bad̤h ate gae. Isake kāraṇȯ  kī mimā̇sā alag se kī jā sakatī hai.Ab sthit yah hai ki Hïdī bhāṣī kṣetrȯ  mė  bhī Devanāgarī kī jagah Roman lipi letī jā rahī hai . Pahale jin kṣetrȯ  mė  Devanāgarī lipi prachalit nahī̇  thī, vahā̐ Devanāgarī lipi ko bad̤h āne kī bāt thī. Ab Devanāgarī lipi ko bachāne kī sthiti ā gaī hai. Sinemā merā matalab hai ki Hïdī kī khānevālā aur Hïdī kī bajānevālā Hïdī sinemā, jahā̐ ek arse se kalākār Hïdī bolane mė  sharm anubhav karate the, ab ve Devanāgarī lipi ko alavidā kah chuke haï . Hïdī ke paṭakathā lekhak bhale hī Devanāgarī lipi ko pasȧ d karate hȯ , Hïdī sinemā ke kalākārȯ  kī Ȧgrejiyat ke chalate paṭakathā , sȧvād ādi Roman lipi mė  likhate haï . Agar Hïdī mė  bāt karė  aur Devanāgarī mė  pad̤hė  to Ȧgrejiyat kā mulammā n utar jāegā.

Is samay Devanāgarī lipi ke sāmane gȧbhīr chunautiyā̇  hai. Agar yū̐  kahā jāe ki Devanāgarī lipi ke astitv ko khatarā utpann ho rahā hai to anuchit n hogā. Kisī bhī bhāṣā kī patr-patrikāȯ  kī apanī bhāṣā ko bad̤hāne kī jimmedārī hotī hai. Abhivyakti ke lie nae shabd, shailī, prayog ādi ke mādhyam se bhāṣā āge bad̤h atī hai.Lekin Hïdī mė  to aisā lagatā hai ki parājit bhāv se Hïdī patrakāritā ne Ȧgrejī ke sāmrājyavād ke sāmane ghuṭane ṭek die haï  aur unake sipāhī ban kar chun-chun kar apanī bhāṣā ke jīte-jāgate , chalate phirate sashakt shabdȯ  kī pīṭh mė  chhurā ghȯp kar usakī jagah Ȧgrejī shabdȯ  ko sthāpit kar rahe haï . Yahā̐ tak ki ye Hïdī ke ye samāchār patr ab vishv kī sarvādhik vaijñānik lipi aur apanī bhāṣā kī lipi arthāt Devanāgarī lipi ke apadasth karate hue usake sthān par Roman lipi ko sthāpit karane mė  juṭe haï . Aisā bhī kah sakate haï  ki apanī patrakāritā kī apanī bhāṣā ke hī sipāhī nirmamatā se apanī lipi ko bhī kuchalate jā rahe haï . Ho sakatā hai ki unakī pīṭh par baiṭhe prabȧ dhan ke Ȧgrejīdā̇  sipahasālār unhė  aisā karane ko vivash kar rahe haï .

Jo bhī ho  Ȧgrejī mādhyam kī sunāmī mė  ek ke bād ek bhāṣā ke shabd, muhāvare , lokokti, prayukti aur usakī lipi bahatī jā rahī hai. Hālāt to aise banate jā rahe haï  ki Hïdī bhāṣī kṣetrȯ  mė  bhī Hïdī bhāṣiyȯ  ke bachche Devanāgarī lipi ko pad̤h ane mė  kaṭhināī mahasūs karane lage haï . Unake lie Devanāgarī mė  likhanā to aur bhī mushkil hotā jā rahā hai. Aur hā̐, in hālāt ke lie ham sab jo bhale hī svayȧ  ko Hïdī sevī kahate hȯ , ham kam jimmevār nahī̇ , jo patrakār, sāhityakār, lekhak, shikṣak, prakāshak, rājabhāṣākarmī, akādamiyȯ  ke karṇadhār, kalākār, vijñāpan jagat ke dṛṣṭā ādi ban kar kisī n kisī rup mė  Hïdī ko duh rahe haï . Bhārat ko chhod̤  kar aisā duniyā mė  kahā̐ hotā hai mujhe to nahī̇  patā. Tark bhale hī jo bhī dė , sach to yah hai ki jis thālī mė  khā rahe haï  ham usī mė  chhed banā rahe haï .

In khatarȯ  aur chunautiyȯ  se nipaṭane ke lie jis prakār kī sakriyatā aur taiyārī kī āvashyakatā hai vah abhī dūr-dūr tak kahī̇  dikhāī nahī̇  de rahī. Agar sīmā par dushman āge bad̤h rahā ho aur hamāre sainik dushman kā mukābalā karane ke bajāe vahā̐ desh-prem ke gītȯ  par jhūmane lagė , gīt, Sȧgīt , kavitā , kahānī surū kar dė  to kyā hogā ? Bhāṣā ke kṣetr mė  bhāṣā ke hamāre sipāhī kyā kar rahe haï  ? Yahī to kar rahe haï . Chhoṭe -chhoṭe gā̐vȯ  tak Ȧgrejī mādhyam ke vidyālayȯ  kā hamalā ho chukā hai . Har kṣetr mė Ȧgrejī kā sāmrājy sthāpit hotā jā rahā hai aur ham kahānī, kavitā, kavi sammelanȯ  kī chuṭakale bājī, Hïdī pakhavād̤ȯ  aur Hïdī ke nām par chalane vāle nāṭak – nauṭȧ kī mė  lage haï . Isase to kuchh bachane vālā nahī̇ . Jab hï dī aur Devanāgarī lipi n bachė gī to Hïdī kā sāhity, gīt-sȧgīt, sȧgīt-nāṭak, ādi kaise bachegā ? Jo ham rach rahe haï  use kaun pad̤h egā?

Āvashyak hai ki Nāgarī lipi ko āge bad̤hāne ke lie banī sȧsthāȯ  sahit sabhī bhāṣāyī sȧ sthāe̐  isake lie suniyojit ḍhȧg se aisī yojanāe̐  banāe jisase ki in chunautiyȯ  kā sāmanā kiyā jā sake. Yah bhī ki is kāry ke lie sakriy any sȧsthāȯ  kā bhī paraspar sahayog lekar āge b̈ad̤hā jāe. Ham keval yāchak kī mudrā mė  hī kyȯ  khad̤e rahė . Hïdī ke patr-patrikāȯ  aur chainalȯ  ko bhī jhïjhod̤ā jāe. Sȧvidhān ke anuchchhed 343 ke sȧdarbh mė  sarakār ko bhī aise dishā nirdesh jārī karane ke lie kahā jāe ki Hïdī ke samāchār patr-patrikāė  Hïdī ke lie Devanāgarī lipi kā hī prayog karė , Roman lipi kā nahī̇ . Sȧvidhān ke anuchchhed 351 mė  sȧgh ko is sȧbȧdh mė  nidesh die gae haï . Maï ne 11vė  Vishv Hïdī sammelan mė  yah sujhāv bhī diyā thā ki pres-pariṣad jaisī sȧsthāȯ  ke ȧtargat mīḍiyā kī bhāṣā ko niyȧtrit karane ke lie ek niyāmak sȧsthā gaṭhit kī jāe yā aisī hī koī any vidhik vyavasthā kī jāe tāki apanī bhāṣāȯ  ko Ȧgrejī v Roman lipi kī sunāmī se bachāyā jā sake.

Sabase bad̤ā aur jarūrī kām to shikṣā ke kṣetr mė  kiyā jānā hai jise hamane nijī kṣetr ke hāth mė  hai, jahā̐ bhāratīyȯ  ko kālā Ȧgrej banāne aur bhāratīyatā se dūr le jāne ke lie kad̤ī mehanat kī jātī hai . Ȧgrejī ke in ṭhikānȯ  se mātṛbhāṣā, rāṣṭrabhāṣā , Devanāgarī lipi vagairah ke phūl to nahī̇  khilane vāle . Jo bo rahe haï  vahī kāṭ rahe haï . Bhāṣā aur lipi kā cholī-doman kā sāth hai . Shikṣā jagat mė  inake bījāropaṇ se hī bāt banegī aur koī upāy nahī̇ . Is kāry ke lie utsavadharmitā ke bajāe Gā̇dhī aur Vinobā jaisī pratibaddhatā chāhie.

Ham se jyādā bad̤e Hïdī-sevī to ve haï  jo praudyogikī kī roṭī khā kar Hïdī v bhāratīy bhāṣā ke lie praudyogikī vikās karate hue ïṭaraneṭ aur soshal mīḍiyā ke yug mė  Hïdī kī lipi yānī nāgarī lipi ko bachāne mė  mahatvapūrṇ bhūmikā nibhā rahe haï . Hïdī v any bhāratīy bhāṣāȯ  ke shikṣa ke lie par_audyogikī vikasit kar rahe haï  . Mashīnī anuvād par kāry kar rahe haï . Desh kā kām Hïdī sahit desh kī bhāṣāȯ  mė  ho sake isake lie vibhinn kāryȯ  ke lie banāī gaī praṇāliyȯ  mė  āvashyak vyavasthāe̐  kar rahe haï . Aise praudyogikīvidȯ  ko namana.

Yadi lipi rūpī nī̇v khisakī to jarjar hotī jā rahī bhāṣā kī imārat ḍhahate bhī der n lagegī. Devanāgarī lipi ke sāmane utpann chunotiyā̐ gȧbhīr bhī haï  aur jaṭil bhī . Samay rahate ab bhī agar ham n jāge to bachāne ko kuchh n hogā. Āne vālā itihās hamase savāl to pūchhegā ki vishv kī shreṣṭhatam bhāṣā aur lipi ko bachāne ke bajāe ākramak videshī bhāṣā kī dāsatā ko svīkārane vāle ve kaun se bhāṣāī sipāhī the, svārth siddhi yā kāyaratā ke chalate jinhȯne apanī bhāṣā -lipi kī dīvār ko girane diyā. Jisase kāraṇ is desh kī samṛddh sȧskṛti, sāhity, jñān-vijñān sab naṣṭ ho gayā.

Ḍŏ  Motīlāl Guptā ‘Ādity’
Vaishvik Hïdī Sammelan.
 

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